अल्पना वर्मा जी ने मुझसे मेरी इस पोस्ट पर आग्रह किया था कि मैं खुद कर्मनाशा नदी को देखकर आने के बाद एक रिपोर्ट यहाँ डालूँ . वह संयोग कल पूरा हुआ और एक बार फिर मैं कर्मनाशा प्रसंग पर आपसे कुछ तफसील से साझा करना चाहता हूँ . सबसे पहले नदी के बारे में कुछ प्राथमिक बातें! कर्मनाशा नदी का उद्गम बिहार के कैमूर जिले के अधौरा व भगवानपुर स्थित कैमूर की पहाड़ी से हुआ है। यह बक्सर के समीप गंगा नदी में विलीन हो जाती है।मगर अपने विस्तार में यह उत्तर प्रदेश के गाजीपुर ,चंदौली और सोनभद्र जनपदों से गुजरती है और कुल 192 किमी का रास्ता तय करती है .इस नदी के बारे में जो बात हैरान करती है वह है इसका अभिशप्त होना ,अपवित्र होना . जबकि यह पतित पावनी गंगा की ही एक सहायिका है . कहाँ गंगा के दर्शन मात्र से मुक्ति की मान्यता और कहाँ इस नदी के स्पर्श मात्र से संचित पुण्यों के स्खलित हो जाने का भय आज भी जन समुदाय में व्याप्त है .
अब कर्मनाशा को लेकर एक पौराणिक आख्यान भी आपको बताता चलूँ . सत्यवादी हरिश्चंद्र के पिता व सूर्यवंशी राजा त्रिवंधन के पुत्र सत्यव्रत, जो त्रिशंकु के रूप में विख्यात हुए उन्हीं के लार से यह नदी अवतरित हुयी। वर्णन है कि त्रिशंकु अपने कुल गुरु वसिष्ठ के यहाँ गये और उनसे सशरीर स्वर्ग लोक में भेजने का आग्रह किया। पर, वशिष्ठ ने यह कहते हुए उनकी इच्छा को ठुकरा दिया कि स्वर्गलोक में सदेह जाना सनातनी नियमों के विरुद्ध है। इसके बाद वे वशिष्ठ पुत्रों के यहाँ पहुंचे और उनसे भी अपनी इच्छा जताई। लेकिन, वे भी गुरु वचन के अवज्ञा न करने की बात कहते हुए उन्हें चंडाल होने का शाप दे दिया। सो, वह वशिष्ठ के द्रोही महर्षि विश्वामित्र के यहाँ चले गये और उन्हें उकसाया। विश्वामित्र ने अपने तपोबल से त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया। इस पर देवताओं ने आश्चर्य प्रकट किया और देवराज इन्द्र ने त्रिशंकु को नीचे धक्का दे दिया । त्रिशंकु त्राहिमाम करते हुए धरती पर गिरने लगे। विश्वामित्र ने ठहरो बोलकर पुन: उन्हें स्वर्गलोक भेजने का प्रयत्न किया। देवताओं व विश्वामित्र के तप के द्वंद में सिर नीचे किये त्रिशंकु आसमान में ही लटक गये। जिनके मुंह से लार टपकने लगी और उसी से एक नदी का उदय हुआ। कालांतर में यही कर्मनाशा के नाम से जानी गयी। कर्मनाशा शब्द की व्याख्या करते हुए आचार्य कृष्णानंद जी 'शास्त्रीजी' का कहना है कि जिस नदी के दर्शन व स्नान से नित्य किये गये कर्मो के पुण्य का क्षय, धर्म, वर्ण व संप्रदाय का नाश होता है, वह कर्मनाशा कहलाती है।( सन्दर्भ:भारत कोश)..
गंगा के किनारे का वासी होकर जब मुझे यहाँ सोनभद्र आना हुआ तभी कर्मनाशा से साक्षात्कार का भी संयोग प्रबल हो गया था .यहाँ कर्मनाशा पर ही नगवां विकास खंड में एक बड़ा बाँध बना दिया गया है जो अत्यंत घने दुर्गम वन क्षेत्र में है और नक्सली प्रभावित होने से वहां अधिकारियों का आना जाना कम ही रहता है .यद्यपि विगत कई वर्षों से यहाँ कोई वारदात नहीं हुयी है और जंगल क्षेत्र में ही सेन्ट्रल पैरा मिलिट्री फ़ोर्स की एक पूरी छावनी स्थायी तौर पर स्थापित है मगर फिर भी वहां राबर्ट्सगंज मुख्यालय से अधिकारियों कर्मचारियों का आना जाना कम ही है . राबर्ट्सगंज से बाँध चालीस किमी पर है . कल सिचाई विभाग के अधिशासी अभियंता श्री के बी सिंह के सौजन्य से मुझे कर्मनाशा पर बने इस बाँध को देखने का सौभाग्य मिल ही गया .कहते हैं जब इसका निर्माण हुआ था तो यहाँ के घने जंगल में बाघ शेर तक प्रायः दिख जाते थे और दीगर वन्य जीवों की तो भरमार थी .ड्राइवर ने हमें वह जगहं दिखाई जहाँ १5 वर्षों पहले सीधे मार्ग पर ही उसने शेर को आराम फरमाते देखा था .खैर .....हम बाँध टाप पर पहुंचे और अवरूद्ध कर्मनाशा का विशाल जलाशय देखा . अधिशासी अभियंता श्री सिंह ने बताया कि इस बाँध के डाउन स्ट्रीम से निकली नहरों से हजारों किसानों की खेती आज हरी भरी है और उनकी आजीविका चलती है .
अब कर्मनाशा को लेकर एक पौराणिक आख्यान भी आपको बताता चलूँ . सत्यवादी हरिश्चंद्र के पिता व सूर्यवंशी राजा त्रिवंधन के पुत्र सत्यव्रत, जो त्रिशंकु के रूप में विख्यात हुए उन्हीं के लार से यह नदी अवतरित हुयी। वर्णन है कि त्रिशंकु अपने कुल गुरु वसिष्ठ के यहाँ गये और उनसे सशरीर स्वर्ग लोक में भेजने का आग्रह किया। पर, वशिष्ठ ने यह कहते हुए उनकी इच्छा को ठुकरा दिया कि स्वर्गलोक में सदेह जाना सनातनी नियमों के विरुद्ध है। इसके बाद वे वशिष्ठ पुत्रों के यहाँ पहुंचे और उनसे भी अपनी इच्छा जताई। लेकिन, वे भी गुरु वचन के अवज्ञा न करने की बात कहते हुए उन्हें चंडाल होने का शाप दे दिया। सो, वह वशिष्ठ के द्रोही महर्षि विश्वामित्र के यहाँ चले गये और उन्हें उकसाया। विश्वामित्र ने अपने तपोबल से त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया। इस पर देवताओं ने आश्चर्य प्रकट किया और देवराज इन्द्र ने त्रिशंकु को नीचे धक्का दे दिया । त्रिशंकु त्राहिमाम करते हुए धरती पर गिरने लगे। विश्वामित्र ने ठहरो बोलकर पुन: उन्हें स्वर्गलोक भेजने का प्रयत्न किया। देवताओं व विश्वामित्र के तप के द्वंद में सिर नीचे किये त्रिशंकु आसमान में ही लटक गये। जिनके मुंह से लार टपकने लगी और उसी से एक नदी का उदय हुआ। कालांतर में यही कर्मनाशा के नाम से जानी गयी। कर्मनाशा शब्द की व्याख्या करते हुए आचार्य कृष्णानंद जी 'शास्त्रीजी' का कहना है कि जिस नदी के दर्शन व स्नान से नित्य किये गये कर्मो के पुण्य का क्षय, धर्म, वर्ण व संप्रदाय का नाश होता है, वह कर्मनाशा कहलाती है।( सन्दर्भ:भारत कोश)..
कर्मनाशा
गंगा के किनारे का वासी होकर जब मुझे यहाँ सोनभद्र आना हुआ तभी कर्मनाशा से साक्षात्कार का भी संयोग प्रबल हो गया था .यहाँ कर्मनाशा पर ही नगवां विकास खंड में एक बड़ा बाँध बना दिया गया है जो अत्यंत घने दुर्गम वन क्षेत्र में है और नक्सली प्रभावित होने से वहां अधिकारियों का आना जाना कम ही रहता है .यद्यपि विगत कई वर्षों से यहाँ कोई वारदात नहीं हुयी है और जंगल क्षेत्र में ही सेन्ट्रल पैरा मिलिट्री फ़ोर्स की एक पूरी छावनी स्थायी तौर पर स्थापित है मगर फिर भी वहां राबर्ट्सगंज मुख्यालय से अधिकारियों कर्मचारियों का आना जाना कम ही है . राबर्ट्सगंज से बाँध चालीस किमी पर है . कल सिचाई विभाग के अधिशासी अभियंता श्री के बी सिंह के सौजन्य से मुझे कर्मनाशा पर बने इस बाँध को देखने का सौभाग्य मिल ही गया .कहते हैं जब इसका निर्माण हुआ था तो यहाँ के घने जंगल में बाघ शेर तक प्रायः दिख जाते थे और दीगर वन्य जीवों की तो भरमार थी .ड्राइवर ने हमें वह जगहं दिखाई जहाँ १5 वर्षों पहले सीधे मार्ग पर ही उसने शेर को आराम फरमाते देखा था .खैर .....हम बाँध टाप पर पहुंचे और अवरूद्ध कर्मनाशा का विशाल जलाशय देखा . अधिशासी अभियंता श्री सिंह ने बताया कि इस बाँध के डाउन स्ट्रीम से निकली नहरों से हजारों किसानों की खेती आज हरी भरी है और उनकी आजीविका चलती है .
नगवां में कर्मनाशा पर बाँध
फिर यह नदी कैसे अपवित्र हुई? और ऊपर वर्णित आख्यान के पीछे का यथार्थ क्या है? मैं इसी का उत्तर पाने को व्यग्र रहा हूँ . इसी सिलसिले में कर्मनाशा ब्लॉग के लेखक सिद्धेश्वर सिंह जी से बात भी हुयी थी और उनका एक लेख सृजनगाथा पर मुझे मिला। इसमें उन्होंने प्रसिद्ध साहित्यकार शिवप्रसाद सिंह की लम्बी कहानी कर्मनाशा की हार का भी जिक्र किया है . सिद्धेश्वर सिंह जी के बचपन का एक अनुभव है -"मल्लाह को उतराई देने के लिये अक्सर पिताजी मुझे दो चवन्नियां इस हिदायत के साथ पकड़ा दिया करते थे कि इन्हें पानी में नहीं डालना है।क्यों? पूछने की हिम्मत तो नहीं होती थी लेकिन बालमन में यह सवाल तो उठता ही था कि जब हम गाजीपुर जाते वक्त गंगाजी में सिक्के प्रवाहित करते हैं तो कर्मनाशा में क्यों नहीं? हां, एक सवाल यह भी कौंधता था कि गंगाजी की तर्ज पर कर्मनाशाजी कहने की कोशिश करने से डांट क्यों पड़ती है?" यह एक दृष्टांत ही काफी है यह बताने के लिए कि पौराणिक आख्यान आज भी जन मानस को कितना प्रभावित किये हुए हैं। आज भी बहुत से सनातनी इस नदी में स्नान नहीं करते . मेरी संकल्पना थी कि इसके पानी में हो सकता है कुछ विकारकारी प्रभाव हो और इसलिए विज्ञ पुरखो ने आख्यान की रचना कर आम कार्य व्यवहार के लिए इसे प्रतिबंधित किया हो .मगर मुझे अपनी संकल्पना की पुष्टि के पक्ष में अभी तक तो प्रमाण नहीं मिले हैं . फिर इस नदी के अभिशप्त होने का कारण?
बाँध से बना विशाल जलाशय
ऐसा लगता है कि मगध में जब बौद्धों का आधिपत्य हुआ और उन्हें राजाश्रय मिला तो सनातनियों की शामत आ गयी . वैदिक ब्राह्मणों को उपेक्षित ही नहीं निर्वासित भी होना पड़ा होगा .बस प्रतिशोध की एक भाव भूमि तैयार हुयी होगी। लिहाजा गंगा के नित महिमा मंडन के साथ ही कर्मनाशा (जो निश्चय ही इसका मूल नाम नहीं रहा होगा ) का अवगुण वर्णन आरम्भ हुआ होगा क्योंकि कर्मनाशा को पार करने के बाद ही बौद्धों का प्रदेश प्रारंभ हो जाता था।कर्मनाशा अब पतित बन गयी थीं .गया आदि क्षेत्र आज भी प्रेत कर्म पिंड दान आदि के लिए ही घोषित बने हुए हैं .तो यह एक ऐसी घनघोर वैचारिक लड़ाई थी जिसकी भारी कीमत एक नदी को अपनी ख्याति देकर चुकानी पडी . कितना क्षोभजनक है यह? बिचारी कर्मनाशा!
पुण्य क्षय कारिणी सह बिचारीत्व को प्राप्त नदी पर आपका अनुरोधवादी जनश्रुति लेखन पसंद आया !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया आलेख ।
जवाब देंहटाएंकर्मनाशा के साथ - साथ चलना हुआ। कुछ उत्तर , कुछ जानकारियाँ और सवाल भी ढेर सारे।
शुक्रिया मित्र।
बहुत बढ़िया आलेख व ज्ञान की बात।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बौद्धों के प्रभाव क्षेत्र की बात जम तो रही थी परन्तु महाभारत में कर्मनाशा का उल्लेख अवरोधक बना हुआ है. हाँ यह हो सकता है कि कर्मनाशा के रूप में उस नदी को चिन्हित करने में, आपके कहे कारणों से, जान बूझ कर भूल की गई हो. शोध जारी रखने की आवश्यकता लग रही है.
जवाब देंहटाएंकर्मनाशा पर एक अदद सामग्री की दरकार थी, यह आज पूरी हुई।
जवाब देंहटाएंवाह !कर्म नाशा के बहाने बड़े बांधों को आधुनिक मंदिरों की संज्ञा देने वाले परम पुरुष को अच्छा
जवाब देंहटाएंआईना दिखाया है इस पोस्ट ने ."उत्तराखंड" शेर के लापता होने से ही होते हैं श्री मन .
इतिहास भूगोल और मिथक के झरोखे से एक अप्रतिम पोस्ट .
ॐ शान्ति
कर्मनाशा नदी के बारे में यह जन धारणा गलत लगता है . उसके पानी किसी वजह से अहितकारी होगी , इसीलिए कहानी बनाकर उसे प्रतिबंधित किया होगा क्योंकि कोई अपना पुण्य खोंना नहीं चाहता.धर्मभीरु लोगों को समझाने का यही तरीका है
जवाब देंहटाएंlatest post केदारनाथ में प्रलय (भाग १)
जानकारीपूर्ण आलेख !!
जवाब देंहटाएंकर्मनाशा जन्म से ही अभिशापित रही , यह सम्भावना अधिक नजर आती है कि इस नदी के जल में विषैले तत्त्व रहे हों कभी ...
जवाब देंहटाएंयूँ तो हम मनुष्य सभी नदियों को ही अभिशापित करने में लगे थे , आखिर नदी के तांडव ने ही मनुष्य जाति को सचेत किया ! ये मानव समझे तब ना !
विस्तृत रिपोर्ट का तथ्यात्मक विश्लेषण प्रभावी लगा .
आपने लिखा....हमने पढ़ा....
जवाब देंहटाएंऔर लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 13/07/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
'विश्वामित्र'
जवाब देंहटाएंनहीं 'विश्वमित्र 'हैं यह क्योंकि 'विश्व'+'अमित्र'=विश्वामित्र होता है जबकि वह तो विश्व के मित्र थे और जन-कल्याण में संलग्न थे। वशिष्ठ जी के विद्रोही भी वह नहीं थे। 'वशिष्ठ' जी दशरथ जी के प्रधानमंत्री थे और 'विश्वमित्र' जी उनके सलाहकार जो वरिष्ठ विज्ञान विद भी थे। विश्वमित्र जी की प्रयोग शाला में 'गोरैया'चिड़िया ,'नारियल'वृक्ष और 'सीता' जी का बीज विकास हुआ था। 'त्रिशंकू' वह कृत्रिम उपग्रह (सेटेलाईट)है जो आज भी नौ लाख वर्षों से आकाश में ज्यों का त्यों परिभ्रमण कर रहा है और ज़रा भी क्षतिग्रस्त नहीं हुआ है। आधुनिक विज्ञान अभी उस क्षमता तक पहुँच भी नहीं पाया है। विदेशियों ने हमारे देश के ज्ञान-विज्ञान को नीचा दिखाने हेतु अनर्गल पौराणिक आख्यान लालची पोंगा-पंडितों को उपकृत करके लिखवाये हैं जिनका उद्देश्य जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ना है। पहले मुद्रा 'स्वर्ण','रजत','ताम्र' धातुओं की होती थी और ये तीनों सोना-चांदी-तांबा धातुयेँ जल-शोधक (Water Purifire) हैं इसलिए उस वक्त नदियों,तालाबों के पानी को मानव जीवन के लिए शुद्ध बनाए रखने हेतु ही 'सिक्के' पानी में प्रवाहित करने का प्रचलन था। आज के स्टील (जिसमें 'निकिल'शामिल है)के सिक्के पानी में प्रवाहित करना महा-मूर्खता ही है। H2O=पानी/जल/वाटर फिर मुंह की लार से कैसे नदी का उद्गम हो गया?कितनी वैज्ञानिकता है इस तथ्य में?भूतकाल के अंतराल में प्रविष्ट होकर 'तथ्य के मोतियों'को सामने लाने के उद्देश्य से इस ओर इंगित किया है ,लेख की आलोचना हेतु नहीं।
हमारा विज्ञान ऐसा था..हमारा विज्ञान वैसा था... तो कहाँ गया वह विज्ञान. अगर वाकई वह इतना ही महान था तो हम सभी नाकारे हैं जो उसे अभी तक बचा नहीं पाए.
हटाएंविजय राज बली माथुर जी ,
हटाएंपोस्ट के अंत में निष्कर्ष को ध्यान से पढ़िए .... विश्वमित्र कथा तो कपोल कल्पित ही है !
सनातनियों ने एक मिथक ही रच दिया !
नदी का अभिशप्त माना जाना तो फिर भी तर्कक्षेत्र में उतरा नहीं...कोई नही कैसे अभिशप्त हो सकती है।
जवाब देंहटाएंदेवताओं व विश्वामित्र के तप के द्वंद में सिर नीचे किये त्रिशंकु आसमान में ही लटक गये। जिनके मुंह से लार टपकने लगी और उसी से एक नदी का उदय हुआ..
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक कलम, पौराणिक उद्धरण ...
प्रवीण शाह नहीं आये आज :)
हटाएंपोस्ट के अंत में निष्कर्ष को ध्यान से पढ़िए ....
सनातनियों ने एक मिथक ही रच दिया !
जिस नदी के दर्शन व स्नान से नित्य किये गये कर्मो के पुण्य का क्षय, धर्म, वर्ण व संप्रदाय का नाश होता है, वह कर्मनाशा कहलाती है।
जवाब देंहटाएंउपरोक्त कथन के संदर्भ में कहना चाहुंगा कि यदि यह कथन सही मान लें तो वर्तमान में तो यह नदी ताऊओं (नेताओं, भ्रष्टाचारियों)के लिये तो परम मोक्ष दायिनी साबित होगी.
सारे ताऊ आकंठ पाप कर्मों में डूबे हुये हैं,उनके पास पाप कर्मों के अलावा अन्य कोई कर्म तो है ही नही, अपने पाप कर्मों का क्षय इसमे स्नान करके सहज ही हो सकता है.
कलियुग की पापतारिणी कर्मनाशा हुई ये तो, हम तो सोच रहे हैं कि यदि मौका मिला तो एक डुबकी अवश्य लगा आयेंगे.:)
रामराम.
आपकी बोद्धौं के आधिपत्य वाली बात ही सच लगती है, सुंदर आलेख, आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बेचारी नदी का मूल नाम नहीं पता-
जवाब देंहटाएंपर अंध-वैचारिक युद्ध में कर्मनाशा हो गई -
सुन्दर चित्रण-
सादर
प्रिय डॉ अरविन्द, बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ क्योंकि कर्मनाशा के वृतांत ने मुझे खींच लिया. विवरण प्रभावशाली है. भारत को समझने के लिये हमें नियमित रूप से अपने प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करते रहने की जरूरत महसूस होती रहती है. लेकिन हम दूसरे कार्यों में उलझे रहते हैं. मैं तो बड़ा अक्षम महसूस करता हूँ क्योंकि बिना जाने ही हम टिप्पणियों पर उतर आते हैं. मुझे कर्मनाशा नदी का नाम पहली हार गुरुदेव रविन्द्र नाथ ठाकुर की कहानी 'The Return of the Child' की मार्फ़त पता लगा था. बड़ी ही मार्मिक है कहानी.बौद्धों और इनके मठों का पतन होने से सनातन का जो उदय हुआ और इसने आज जिस रूप को ग्रहण किया है उससे भारत के लोगों का कोई भला नहीं होने वाला क्योंकि यह सब दिखावे वाले कर्मकांड में उलझ गया है और रोजी-रोटी और राजनीति का साधन मात्र बन गया है. इसमें जो विकृतियाँ आयी हैं उन्हें दूर करने के लिये वर्तमान शंकराचार्यों की कोई रूचि दिखाई नहीं देती. वे तो बस श्रीमती इंदिरा गांधी जैसी महिला और विदेशियों को अन्दर आने की वर्जना जैसे आदेश ही जारी कर सकते हैं. मुझे तो कई बार यह तीव्र अहसास होता है कि क्यों न Pagan बन जाऊं और धर्म-वर्म का चक्र छोड़ कर केवल ज्ञान से ही वास्ता रखूँ.
जवाब देंहटाएंआभार रणबीर जी ,आपने नयी जानकारी दी!
हटाएंमगर आपका यह वक्तव्य "बौद्धों और इनके मठों का पतन होने से सनातन का जो उदय हुआ" पुनर्चिन्तन की मांग करता है ..
सनातन विचार मान्यता तो बुद्ध के बहुत पहले से ही थी ,हाँ बौद्धों ने इसे जोरदार धक्का दिया .हाँ बाद में बौद्ध दर्शन अनेकानेक कारणों से जब भारत से निर्यातित हुआ तो फिर सनातनियों की बन आई !
Don’t confuse Sanatan Dharma with superstitions and evil social practices. You can never give up dharma no matter what you practice. Path of “Knowledge’ (Gyan) is the core of dharma. Need of the hour is that Hindus like you should try to reform the system, no matter how little, limited or modest it is. Superstitions have no place in Dharma. Even if you become atheist, you will still be within the folds of Dharma (remember Charvak Darshan!)
हटाएंकर्मनाशा के बारे में जानकर अच्छा लगा. हमरे गाँव के आसपास अकेले कोसी नदी का ही इतना खौफ है कि दूसरी नदियों की चर्चा भी नहीं होती.
जवाब देंहटाएंयदि इसके पानी से किसानों के खेत हरे भरे रहते हैं और किसानों को भी इससे कोई हानि नहीं हुई तो निश्चित है कि इसके पानी में कोई विषैला पदार्थ नहीं है। बाकि तो सब दन्त कथाएं हैं जिन पर हम तो विश्वास नहीं रखते। हमारे देश में धार्मिक भीरुता इतनी कूट कूट कर भरी है कि आम जनता को बहकाना बड़ा आसान है।
जवाब देंहटाएंगौर से देखा जाये तो दिल्ली में बहने वाली यमुना को क्या कहेंगे ?
नदियां नदी किनारे के लोगों के लिये तो जीवन दायिनी होती हैं।
जवाब देंहटाएंकर्मनाशा बेहद आकर्षित करने वाला नाम है. इसके बारे में इतनी जानकारी एक ही जगह पाकर बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंश्रम सार्थक हुआ
हटाएंदेर से आने के लिए क्षमा चाहती हूँ.
जवाब देंहटाएंआप ने मेरे अनुरोध पर इस नदी के चित्र और जानकारी दी है जिसके लिए आभारी हूँ.इस जानकारी को पढ़ कर ऐसा लगता है कि वाकई सनातनियों के एक मिथक ने इस नदी की गरिमा को हर लिया और उसे अभिशप्त करार दिया.
जो नदी इतने खेतों को हरा भरा करती है,जीवनदायिनी ही कही जायेगी.
आजकल राज्यों /शहरों /कस्बों के नाम बदल दिए जाते हैं तो क्यूँ न प्रशासन द्वारा इस का नाम ही बदल दिया जाता तो शायद इस नदी की मायूसी कुछ कम हो जाती.कभी अवसर मिला तो अवश्य ही इस नदी को देखना चाहूंगी.
मेरी टिप्पणी कहाँ गयी??
जवाब देंहटाएं'त्रिशंकू' वह कृत्रिम उपग्रह (सेटेलाईट)है जो आज भी नौ लाख वर्षों से आकाश में ज्यों का त्यों परिभ्रमण कर रहा है और ज़रा भी क्षतिग्रस्त नहीं हुआ है।"
मान्यवर कैसा त्रिशंकु ?आजकल कुछ भी ग्लोबल पोजिशनिंग सेटेलाईट की जद में है .मिथक मिथ और यथार्थ और प्रतीकों में बड़ा फर्क होता है .मिथक घड़े जाते हैं आदर्शों की स्थापना के लिए .देर सबेर विज्ञान वैसा कर भी सकता है लेकिन मिथक और विज्ञान के फर्क है .
पुराने मिथकों के पीछे क्या-क्या असलियतें छिपी हुआ थीं अब इस पर शोध किया जाये तो तब की बहुत सी बातें सामने आने लगेंगी!
जवाब देंहटाएंप्राचीन काल में जो हमारी धार्मिक मान्यताएं काफी हदतक सत्य प्रतीतहोती है। क्योंकि हम गंगा को पावन मानते हैं और देखिये इस का जल वर्षों खराब नहीं होता और विज्ञान भी मानता है कि इस के जल में कयी रोगों को दूर करने की क्षमता है।... और भी ऐसे कयी उदाहरण है... सुंदर भाव...
जवाब देंहटाएंयही तोसंसार है...
बढ़िया जानकारी मिली...धन्यवाद
जवाब देंहटाएंहमने तो एक कहानी पढ़ी थी "कर्मनाशा की हार" | बाकी आपसे पता चल गया |
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी देती पोस्ट। मैं तो शिवप्रसाद सिंह की लम्बी कहानी कर्मनाशा की हार से ही नदी को पहचानता था। बाढ़ और इससे होने वाली जान-माल की क्षति से ही कर्मनाशा को अपवित्र माना जाता होगा, ऐसा सोचता था।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आलेख,शायद अभी भी बहुत से प्रशन अनुत्तरित हैं,आपका शोध बहुत ही सराहनीय है.भविष्य में भी उत्सुकता से इंतजार रहेगा.
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिखा है मिथकों की बादशाह ने .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों के लिए .ॐ शान्ति .
जवाब देंहटाएंसम्पूर्ण भारतवर्ष में कई ऐसी चीजें हैं जो विज्ञान द्वारा सिद्ध होने से पहले मिथक या पोंगा पंडित की कल्पना लगती थीं(यथा सेतु समुद्रम,जो अब विज्ञानसे शोधित होकर सिद्ध हो चूका है। नाद ब्रह्म और ओम की ध्वनि को सूर्य द्वारा निकलने वाली ध्वनि तरंगों को कम्प्रेस करके ॐ के उच्चारण को रिकार्ड किया गया है और नासा ने इसे जन सामान्य।के लिए जारी भी किया है।प्राचीन भारत की वैज्ञानिकता सिद्ध है हाँ उसके प्रमाण और रूप की जानकारी के लिए आपको उसके साहित्य को सीखना और पढ़ना पड़ेगा।त्रिसंकु की कथा बहुत प्राचीन है। उसमें कर्मनासा नदी इस रूप में जोड़ा जाना हो सकता बाद की घटना हो। इसे सनातन बौद्ध से जोड़ना उसी तरह गल्प लगता है जैसे कर्मनस से जुडी हुई किवदंतियां
जवाब देंहटाएंपौराणिक कथाओं में गुरु विशिष्ट तथा विश्वामित्र वर्णित किए गए है,आश्चर्य इस् बात का होता है कि इनकी उम्र कितनी रही होगी ? राजा दशरथ,फिर श्रीराम,तथा श्री राम से चालित सूर्यवंशी पीढ़ियां,यह कथाए मनोरंजन हेतु,दृष्टी से रोचक लगती है,परंतु इस से सत्य प्रमाणित नहीं होता।
जवाब देंहटाएंपरंतु यहाँ प्रत्यक्ष रूप से नदी पर बांध बंध गया,कई एकड़ जमीन उपजाऊ हो गई,जन कल्याण हुवा,आज हर व्यक्ति अपने मतलब से मतलब रखता है,और उसका भलीभांति उपयोग करता है। हमें तो कर्मनाशा में स्नान की इच्छा हो रही है।
पौराणिक कथाओं में गुरु विशिष्ट तथा विश्वामित्र वर्णित किए गए है,आश्चर्य इस् बात का होता है कि इनकी उम्र कितनी रही होगी ? राजा दशरथ,फिर श्रीराम,तथा श्री राम से चालित सूर्यवंशी पीढ़ियां,यह कथाए मनोरंजन हेतु,दृष्टी से रोचक लगती है,परंतु इस से सत्य प्रमाणित नहीं होता।
जवाब देंहटाएंपरंतु यहाँ प्रत्यक्ष रूप से नदी पर बांध बंध गया,कई एकड़ जमीन उपजाऊ हो गई,जन कल्याण हुवा,आज हर व्यक्ति अपने मतलब से मतलब रखता है,और उसका भलीभांति उपयोग करता है। हमें तो कर्मनाशा में स्नान की इच्छा हो रही है।
Vasishth and Viswamitra are just some of the ancient titles like Narada, Durvasha, Bhoj, Kalidas, Vikramaditya etc. Vasishth was the title of the Gurus' of Surya- banshi kings. They were all either descendants of the Ad Vasishth or followers of his school of thought.
हटाएंDon’t be surprised. In the last eight centuries, Britain had eight kings named “George” and France had 11 kings named Luis. It is not uncommon even now, especially is the villages, to address a boy by his father’s name.
Ganga Ji Vs Karmnasha Ji
जवाब देंहटाएंGanga is pap nashini (you can wash away your sins in Ganga Ji), but not Adharm nashini (you cannot wash way your bad karma in Ganga Ji). Human body carries the burden of pap, while the burden of adharm or duskarma is carried by your soul.
Karmanasha‘s importance must be seen in that context. Ganga cannot (probably does not want to) absolve anyone of his/her bad Karma. She can only cleanse your body of every day sins. But Karmanasha can absolve your soul of bad karma. Your soul can start with a clean slate, but to wash away the sins you8r body must take a dip in ganga ji.
I leave you all to discuss the difference between pap (sins) and bad karma (adharma or duskarma)