लीजिये आज निजी आनलाईन डायरी का वह संपादित अंश आपसे साझा कर रहा हूँ जिससे एक स्नेह सम्बन्ध का दुखद अंत हो गया !
मुझे किसी के सम्मान की अपेक्षा कदापि नहीं है - आपको किसी और का प्रवक्ता बनने का कोई औचित्य नहीं है -पहले आप अपना स्टैंड और आचरण दुरुस्त की कीजिये -मतलब चाल चेहरा और चरित्र (बी जे पी वाले माफ़ करें )-और चरित्र की मेरी त्रिसूत्री परिभाषा है -मनुष्य का अकृतग्य न होना ,सत्यनिष्ठ / एकनिष्ठ होना और नैतिक बल से युक्त होना !
आप में ज़रा भी नैतिक साहस है तो यह मुद्दा वहीं छेडिये मंच पर और देखिये तब शायद मैं आपके साथ वहां खडा मिलूंगा -मैं आपके गोपन आचरणों से स्वयं भी क्षुब्ध हो गया हूँ -मुझसे कोई उम्मीद न रखें !
मैं यहाँ सम्माननीय बनने या विद्वान् की कटेगरी हासिल करने नहीं आया हूँ -लोगों से सहज सम्बन्ध बना रहे यही पर्याप्त है ! और यह भी समझ लीजिये मैं किसी को स्नेह करता हूँ तो अपरिहार्य और अति असहनीय आचरणों पर किसी दैवीय प्रेरणा वश यथा सामर्थ्य दण्डित किये बिना भी नहीं छोड़ता ! चाहे वह मेरा निकटतम रक्त संबंधी ही क्यों न हो ! एक डेढ़ साल साथ रहकर आप यह समझ नहीं पायीं ,आश्चर्य है ! मैं ऐसा ही हूँ ! बाई बर्थ !
इधर आप निरंतर उद्धत होती रही हैं ,बेखौफ ,निर्द्वंद ! वह असीम सत्ता न करे कि मेरे आकलन में आप भी आचरण की वह लक्ष्मण रेखा छू ले जो मुझमें सहसा दैवीय प्रेरणाएं जगा देती है ! और वह दिन हमारे इस आभासी संपर्क- सम्बन्ध का अंतिम दिन होगा -स्वयमेव सहज !
कान खोल के सुन लीजिये मैं आपके उन तमाम आभासी और अन -आभासी लल्लुओं पंजुओं से बहुत अलग और विशिष्ट हूँ -मगर हीरे को जौहरी ही पहचानता है -हीरा असहाय सा उस मूढ़ जौहरी को भी देखता है जिसकी आन्खे उसे पहचानने में चुधियाँ सी जाती हैं !
स्नेह ,
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
-
Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
बेशक..... हीरे को जौहरी ही पहचानता है, बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद...
जवाब देंहटाएंऔर यह भी समझ लीजिये मैं किसी को स्नेह करता हूँ तो अपरिहार्य और अति असहनीय आचरणों पर किसी दैवीय प्रेरणा वश यथा सामर्थ्य दण्डित किये बिना भी नहीं छोड़ता !
जवाब देंहटाएंदैवीय योग से ...या दुर्योग से ...ऐसी नालायकी हमारे भीतर भी कूट कूट कर भरी है ...
मगर फिर भी प्रार्थना यही रहती है की किसी का स्नेह बंधन ना छूटे ..!!
कुछ समझ नहीं आया यह सम्पादित अंश। प्रतीक रूप से लिखा गया है या फिर वैसे ही।
जवाब देंहटाएंये तो बता देते कि ये कहा किसने, इतने समझदारीपूर्ण भाषण कोई बीजेपी वाला तो नहीं दे सकता आज की डेट में ! :) या फिर ये सम्पादन करने का असर है ?
जवाब देंहटाएंहुजूर रहीम दास जी का एक दोहा है , जिसे
जवाब देंहटाएंआपसे साझा करना चाहता हूं---
बड़े बड़ाई न करैं
बड़े न बोलैं बोल |
रहिमन हीरा कब कहे
लाख टका मेरा मोल ||
धन्यवाद ...
लोगों से सहज सम्बन्ध बना रहे यही पर्याप्त है !bilkul sahi kahan aapne....
जवाब देंहटाएंहीरे को जौहरी ही पहचानता है -हीरा असहाय सा उस मूढ़ जौहरी को भी देखता है जिसकी आन्खे उसे पहचानने में चुधियाँ सी जाती हैं !
जवाब देंहटाएंवाह शुद्ध तत्व ज्ञान है. बहुत आभार.
रामराम.
हीरा है सदा के लिये।
जवाब देंहटाएंअरे, ये मामला क्या है? कुछ कुछ समझ में तो आ रहा है, पर पता नहीं वे आशंकाएं कितनी सही हों?
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत ही अच्छा लिखा है ।
जवाब देंहटाएंकुछ समझ नहीं आई यह बात ..हीरा तो हीरा है ..पर किस संदर्भ में यह नहीं समझ आया
जवाब देंहटाएंबढिया है.
जवाब देंहटाएंKshama karen....Post ka aashay samajh na aaya......
जवाब देंहटाएंये क्या हुआ ?
जवाब देंहटाएंआप आज किस से मुखातिब है ?
अजी हमे तो कुछ भी समझ मै नही आया? कही टंकी पर चढने की तेयारी तो नही हो रही? सोच ले सर्दियो मै पानी की टंकी पर...तेज हवा...
जवाब देंहटाएंआभासी और अन -आभासी लल्लुओं पंजुओं की बदौलत एक स्नेह संबंध का अंत, दुखद: रहा
जवाब देंहटाएंबी एस पाबला
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकौन क्या आचरण करता है, कौन कितने मुखौटे ले जीता है; कौन केवल मुंह रखता है कान नहीं; कितनी खोज खबर रखी जाये!
जवाब देंहटाएंआपके संदर्भ का पता नहीं पर लिखा काफी अच्छा है।
@गोदियाल जी, @रंजना जी ,रंजू जी , सच हैं, सम्पादन ज्यादा कसा हुआ हो गया -डर था निजता कही भंग न हो जाय ! उसका सम्मान तो अपरिहार्य है ना !
जवाब देंहटाएं@कुश सभी से मुखातिब हैं आपसे भी -अपने कृत्य के उचित अनुचित का सार्वजनिक /पंचों से अनुमोदन चाहते हैं -गलत भी तो हो सकते हैं !
जनता जनार्दन जो कहे हाँ तो हाँ ना तो ना -आखिर हम लोकतंत्र में है न ?
@ज्ञान जी आप मेरी संवेदना से कुछ जुड़े और थोडा खुल कर टिप्पणी किये -आई लायिक इट -आभार !
@ निर्द्वन्द्व रहें भाटिया जी ,इरादा ऐसा नहीं है -कलेजा मजबूत कर लिए हैं !
बहनों, चाचियों, दादियों !
जवाब देंहटाएंभाइयों, चचाओं, दद्दुओं!!
@
एक डेढ़ साल साथ रहकर आप यह समझ नहीं पायीं
आप लोग बिना किसी धोखे में रहते हुए यह याद करिए कि पिछ्ले एक डेढ़ साल में आप के साथ क्या क्या महत्त्वपूर्ण हुए! बाकी आप लोग खुद समझदार हैं। आभासी और अ-आभासी दोनों पक्षों को याद करिए।
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आप हड़का रहे हैं लेकिन हम नहीं हड़क रहे हैं क्यों कि अभी एक साल भी पूरे नहीं हुए! बन्दा निश्चिन्त है। पुराने लोग जाने समझें।
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लिखे मस्त हैं, इसमें कोई दो राय नहीं। अपना आइ पी पता भेज दीजिए, आप के कम्पू में कुछ अनुसन्धान करने हैं।
ऑनलाइन डायरी की फायरवॉल इतनी मज़बूत है कि हमारे जैसे सामान्य श्रोतागण कुछ समझ नही सके. हाँ लिखने का ढंग ज़रूर प्रभावी बन पड़ा है..
जवाब देंहटाएं'हीरा 'जोहरी को मूक देखता है....मेरा मानना है आभासी चाहना 'कभी मूर्त रूप ले नहीं सकती,न ही इसकी कोशिश करनी चाहिये ...
जवाब देंहटाएंyah तय है ki आभासी स्नेह संबंधों का अंत दुखद होता है इसलिए एक दूरी बनाये रखना चाहिये उसी में सब की भलाई रहती है.
कहीं कुछ आप को चुभ रहा है जिसे आप ने बाँट लिया है..अच्छा है.
पंडितजी,
जवाब देंहटाएंआज आपका दिल टूटा हुआ लगता है। काश के ऐसा हुआ ही न होता।
मालिक आपका वो सुन्दर रिश्ता फिर से बहाल करे, इसी दुआ के साथ।
दुखद अन्त के लिए दुख है।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
??
जवाब देंहटाएंलिखा तो सटीक है परंतु ......??
- लावण्या
काहे भाव खा रहे हो बन्धु जगत तो मिथ्या ही है स्नेह सम्बन्ध की आग वैसे भी इस उम्र में ज्यादा दिन नहीं चलने वाली यह सत्य जितनी जल्दी उजागर हो जाये उतना ही अच्छा है तू शोक मत कर पार्थ लेखनी उठा
जवाब देंहटाएंचुटकी लेने से बाज नहीं आते अरुण -और मेरी उम्र ? आपसे कम है तब भी ऐसा कह रहे हैं ?
जवाब देंहटाएंआपके गणित के मास्टर भोदू थे क्या ? अरे चिर युवा रहिये !
कान खोल के सुन लीजिये मैं आपके उन तमाम आभासी और अन -आभासी लल्लुओं पंजुओं से बहुत अलग और विशिष्ट हूँ -मगर हीरे को जौहरी ही पहचानता है -हीरा असहाय सा उस मूढ़ जौहरी को भी देखता है जिसकी आन्खे उसे पहचानने में चुधियाँ सी जाती हैं !
जवाब देंहटाएंइसे कहते हैं हीरे द्वारा रोशनी की नोक पर अपनी पहचान का प्रमाणपत्र लेना। :)
@हीरा तो हीरा सदा है उसे कहाँ किसी प्रमाणपत्र की दरकार ......!हाँ ,जो उसे न पहचान पाया वह काहे का जौहरी !
जवाब देंहटाएंजो ना पहचान पाये वो कोयला का व्यापारी होता है. यानि नया सिक्खड..क्योंकि कोयला हीरे कि प्रारम्भिक अवस्था होती है.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
रचा बढ़िया हैं, तनि दिशा भी पता लगती तो चोट का असर भी देख आते. :)
जवाब देंहटाएंदिले नादाँ तुझे हुआ क्या है .. आखिर इस दर्द की दवा क्या है ..
जवाब देंहटाएंहम तो चोट की मार देखने को तरस रहे हैं ...हाय रेSSSSSSSSSSSSS
जवाब देंहटाएंबात का मर्म पूरी तरह नहीं समझे शायद मगर आप हीरा हैं इसमें कोनो शक नहीं है.
जवाब देंहटाएंजीवन का जो मर्म समझते
लम्बी तान सदा सोते न
तत्व एक कोयले हीरे में
रख कोयला हीरा खोते न
जिससे एक स्नेह सम्बन्ध का दुखद अंत हो गया !
जवाब देंहटाएंकोई आपका दिल दुखा सकता है यकीन नहीं होता दुःख हुआ पढ़कर मगर कुछ समझ नहीं आया???
regards
"एक डेढ़ साल साथ रहकर आप यह समझ नहीं पायीं ,आश्चर्य है ! मैं ऐसा ही हूँ ! बाई बर्थ !"
जवाब देंहटाएंहम तो इस कसक पर ही मुग्ध हुए । निश्चय ही आप ऐसे ही हैं ! ...