बस अभी अभी लौटा हूँ बनारस ! ब्लागिंग धर्म का तकाजा कि कुछ टिपियाँ भी दूं ! भाई लोग टिपिया टिपिया थक चुके हैं ! उन्हें ज़रा रिलीव भी कर दूं ,फुरसतिया कर दूं ! मैं यहाँ सक्षिप्त सूत्र वाक्यों में ही चर्चा करूगां.
नामवर ने चिट्ठे शब्द का अनुमोदन कर दिया ! अब यह हिन्दी विभाग /साहित्य द्बारा भी स्वीकृत समझिये ! और पूरी आधी दुनिया ब्लॉग संगोष्ठी से गायब रही . आखिर क्यों ? उन्हें समुचित रूप से बुलाया नहीं गया या फिर अन्यान्य कारणों से वे नहीं आ पायीं ! नारी जो ठहरीं ? कौन जवाब देगा ? महज सुश्री मीनू खरे ,मनीषा पांडे और आभा दिखीं ! क्या 'त्रिदेवियों' की यह नुमायिन्दगी पर्याप्त है ? आप सोचें ! मेरा काम बस रपट कर देना है ! सो कर रहा हूँ ! स्थानीय नारी प्रतिभागिता भी नगण्य रही !
उदघाटन के उपरांत का सत्र बेहद कमजोर सचालन की भेट चढ़ गया ! पूरी आराजकता तारी हो गयी ! लोगों ने संचालक को परे धकेला खुद माईक हथिया लिया ! पूरा सद्य ब्लॉग चरित्र साकार हो उठा -अट्टहास कर बैठा ! ज्ञान जी चुपके से निकल भागे !
जो मैंने आज तक के जीवन में इन अवसरों पर नहीं देखा वह भी देख लिया ! माईक पर पहुँच स्वनामधन्य ब्लॉगर यह पूंछते भये कि मुझे आखिर बोलना किस विषय पर है -उद्धतता ,अहमन्यता की सीमा ! मन संतप्त हो उठा !घोर अराजकता ! वैसी ही जैसी हम आये दिन इहाँ देख ही रहे हैं ! शायद इसका बड़ा कारण संचालक का कैजुअल अट्टीचूयड ही था ! समझना चाहिए भैये कि आभासी जगत की चक्कलस और है और वास्तविक जगत में समारोह/संगोष्ठी का सञ्चालन बिलकुल अलग ! कुछ नैराश्य जनित आक्रोश से पीड़ित और बलाग जगत की ओर पलायित कर रहे मीडिया कर्मियों ने इस सत्र को हाईजैक कर लिया ! घिसे पिटे जुमले उछाले गए ! अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई दी गयी !कुंठासुरों ने अपनी कुठाओं का वमन कर दिया ! अब तो बदबू भी फैल चुकी थी !यह सत्र कुंठासुरों ने ही हाईजैक कर लिया! सबसे बड़े कुंठासुर वे जो केवल अपने ही ब्लॉग को गीता कुरान समझते हैं बाकी पर कभी भूल कर भी नहीं जाते ! अच्छा है वे अपने पर ही निपट लेते हैं !
जिन्हें बोलना था वे तो बोल नहीं पाए मगर कुछ अनाहूत पोडियम पर चढ़ बैठे . मंच की गरिमा पूरी तरह जाती ही रहती अगर कुछ और शिष्ट विशिष्ट वरिष्ठ हस्तक्षेप न किये होते . उदघाटन सत्र की जो फिजा बनी थी वह शाम तक तार तार हो चुकी थी ! खैर शाम हम कुछ और बुद्धू बने लौटे डेरे पर ! पूरी तरह चटे,थके और हताश ! अब लाजिस्टिक्स( logistics ) की कुछ बातें! उत्साही स्थानीय आयोजकों का शायद यह पहला राष्ट्रीय कार्यक्रम संभालने का मौका था! उदघाटन सत्र की भव्य सफलता से फूल कर कुप्पा हुए आयोजक मानव प्रबन्धन भूल चुके थ . जहां हम रुके वहां के मेस का जो रोजमर्रा का आम खाना था (जिसका मीनू तक भी नहीं चैक किया गया था )हम उदरस्थ किये ! जब जब भी हम दूसरों के रहमों करम पर इलाहबाद में रुके हैं मच्छरों ने सोना हराम कर दिया है -सो रात भर मच्छरों का आतंक झेलते रहे ! अब इलाहाबद हमारे इल्म की माँ रही है ! माँ से क्या शिकायत मगर हमें उसकी आँचल में रहने तो दिया जाय ! हमें तो उससे दूर कर और ही भरोसा दिया गया ! सुबह की चाय नदारद -बताया गया कि ज्यादातर इलाहाबादी कार्यक्रमों में बेड टी का इंतजाम नहीं रहता ! बेड टी के चक्कर में रवि जी ने मार्निंग वाक् करा दिया पूरे दर्जन भर लोगों को रवि जी ने ही चाय पिलवा दी -अपने बटुए से ! और नाश्ता ? आयोजकों को इसके मीनू के बारे में भी जानकारी नहीं थी ! आश्चर्य हो रहा है ना ? मगर यह सच है !
बातें और भी हैं मगर शायद अगली पोस्ट करुँ तब निकले ,पहले तो यह रपट -और वे जुमले और विचार विस्फोट भी जिनके बावजूद इन बातों के जीवन्तता बनी रही .
अभी कुछ रिपोर्टे भी पढीं ! लोगों ने अपने अपने नजरिये से की बोर्ड तोडू लिखा है मगर अनूप जी की रिपोर्ट जिसे वे जबरदस्ती लाईव कहने पर जुटे हुए हैं अपने मन्मौजिया/ एकांगी नजरिये का खुला खेल खेल रही हैं -कहते भये हैं कि मैं अपने वक्तव्य में आत्म प्रचार में लगा था -काहें सच उगलवाने का थर्ड ग्रेड अख्तियार कर रहे हैं अनूप भाई -अब आत्मप्रचार की असली कहानी कह दी जायेगी तो पता नहीं आपको मिर्ची लगे या न लगे मेरा मित्र धर्म खतरे में पड़ जाएगा ! चलिए हम बेहयाई केवल राजनीति के लिए छोड़ दें !
आयोजनों में प्रतिभागी और आयोजक दोनो के ही संस्कार होते हैं । एक आयोजन में संस्कारित होने के उपरांत अगला आयोजन उत्तम होता है । निरर्थक कुछ भी नहीं होता न प्रतिभागियों के लिये न ही अयोजकों के लिये ।
जवाब देंहटाएंbahut achchi lagi yeh charcha.....
जवाब देंहटाएंआये थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास ।
जवाब देंहटाएंमिश्रा जी , आपने सही कहा है इसको जबरिया बाजारू चैनल की तरह लाइव बताया जा रहा था , जबकी ये तो एकदम से समझ समझ कर और छाट छाट कर फोटो बाजी और रिपोर्टिंग बाजी हुई है ..................
जवाब देंहटाएंऔर हां ,
आये थे सम्मलेन में लोटन लगे लोट्वास,,......................
क्या अपनी बात मनवाने केलिए दुसरे का जनाजा निकालना जरूरी है ?
कुछ इसी तर्ज पर की दुसरे का बड़प्पन करने के लिए क्या खुद को नीचा दीखाना जरूरी है ?
अब क्या कहें इस अव्यवस्थित आयोजन पर !
जवाब देंहटाएंचलिये, आपके मार्फत कुछ खुल कर पता चला...आगे भी इन्तजार कर रहे हैं अगली खुली रिपोर्ट का.
जवाब देंहटाएंअरे यह क्या? यहां भी आराजकता
जवाब देंहटाएंलोग जब भी मौका देखते हैं, खुन्नस निकाल लेते है।
जवाब देंहटाएंउन्हीने मित्रधर्म का कितना पालन किया?
मिर्च लगना हो तो लगा करे।
आप दिल का जरुर लिख दें।
कुछ एक निराशाजनक रिपोर्ट्स भी पढ़ी पर यहाँ देख कर तो हम सकते में हैं.
जवाब देंहटाएंयह सत्र कुंठासुरों ने ही हाईजैक कर लिया! सबसे बड़े कुंठासुर वे जो केवल अपने ही ब्लॉग को गीता कुरान समझते हैं बाकी पर कभी भूल कर भी नहीं जाते ! अच्छा है वे अपने पर ही निपट लेते हैं!
जवाब देंहटाएंअरे भाई, जब तक यह कुन्ठासुरी चल रही है तब तक तो कुंथासुर जी इसे चलाएंगे ही. सुनने में चाहे अजीब लगे मगर यह एक टिपिकल भारतीय अवगुण है. अँगरेज़ वाइसराय इंग्लॅण्ड से अथाह बड़ा भारत संभालने के बावजूद अपनी व्यवस्था, शासन और लोगों के प्रति नतमस्तक रहते थे जबकि सिंधिया टाइप सामंत पेशवा से २५० मील दूर पहुँचते ही अपने को महाराजाधिराज घोषित कर देते थे.
भाईसाहब जब आपने इतना वमन करा है तो अगर हमारे जैसे सचमुच के कुंठित लोग गलती से बुला लिये गये होते तो पता नहीं हम वमन के साथ रेचन भी कर रहे होते। असल में हमें आदत हो चली है वातानुकूलित गाड़ियों, दर्जेदार फाइव स्टार भोजन और विमान यात्राओं की इसलिये भड़ास निकल ही जाती है अव्यवस्था को देख कर....
जवाब देंहटाएंहम्म्म तो एसी रही मीट. पहली बार दूसरा पहलू पढ़ने को मिला. वर्ना अभी तक तो, यहां दिल्ली में बैठे , सब बल्ले बल्ले ही लग रहा था.
जवाब देंहटाएंआयोजक कर्ताओं की नियत में खराबी नहीं है खराबी तो हम तेज चैनल और सबसे तेज सबसे बड़े ब्लॉगर बनाए की होड़ की है ये तो अच्छा था कि sanचालक महोदय ने सबको बता दिया है कि सब को अनुशासन में रहना है।नहीं तो कुछ तो वही ........करजाते
जवाब देंहटाएं......शायद इतिहास इन बातों की याद न रखे ! ! !
जवाब देंहटाएंचलिए अव्यवस्था की व्यवस्था तो दुरूस्त रही
जवाब देंहटाएंवहां पर तो किसी ने सामने न खोल कर कही
यह भी अच्छी रही, यह भी अच्छी सही, वही
जो ब्लॉगिंग में हो रहा है, सम्मेलन में भी वही।
पर कहां कितना सच है
यह अभी से कैसे मान लें
कुछ अव्यवस्था के फोटो भी तो देख लें।
हमको अब तक आपका आमंत्रण याद है …
जवाब देंहटाएंचुपके चुपके …
बी एस पाबला
मतलब ब्लॉगरी की भावना को बचाये रखा गया ।
जवाब देंहटाएंजो यहां किया जाता है उससे ज्यादा वहां किया गया ।
अभी तो तेल देखा है मित्र
जवाब देंहटाएंतेल की धार अभी बाकी है...
कुछ ने दिखा दिया अपना हुनर..
कुछ के वार अभी बाकी हैँ ...
हर कोई अपने विरोधी को पटकने में जुटा है...
ये ब्लॉगजगत है या फिर कोई अखाड़ा?
तेरी गलियों में न रखेंगे कदम
जवाब देंहटाएंआज के बाद...
तेरे मिलने को न आएंगे सनम
आज के बाद...
जय हिंद...
हम तो सब 'संतों' की बात सुन रहे हैं... फीडबैक ज्यादा करके ऐसे ही आये हैं.
जवाब देंहटाएंहम तो सब 'संतों' की बात सुन रहे हैं... फीडबैक ज्यादा करके ऐसे ही आये हैं.
जवाब देंहटाएंआपकी रिपोर्ट पढने के बाद आधी दुनिया के इस आयोजन में शामिल नहीं होने का ग़म जाता रहा ...!!
जवाब देंहटाएंजैसन रिपोर्ट मिलिस है ...हमरा मन गद गद रहा और एगो परोडी लिख मारे हैं ...सोच रहे हैं की काहे नहीं छाप दें...
जवाब देंहटाएंदुनिया हँसे हँसती रहे मैं हूँ ब्लाग्गर मुझे ख़ुद से है प्यार
कुछ भी कहे कहती रहे मैं हूँ ब्लाग्गर मुझे ख़ुद से है प्यार
नगरी-नगरी जाता हूँ बस अपना राग सुनाता हूँ
जब भी मुझको मौका मिला लक्षण अपने दिखाता हूँ
सुनो न सुनो तुम मेरी पुकार....
ब्लाग जगत में विचरूं मैं ब्लाग जगत का हूँ वासी
सामाजिक प्राणी नहीं मैं, गुण हैं मेरे बनवासी
चलता हूँ लिए कलम की धार....
चलिए किसी ने तो दादा-गिरि के सामने गांधी-गिरि की।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद!
@जहेनसीब ! इस अदा और काव्य छटा पर दिल बाग़ बाग है !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
nice
जवाब देंहटाएंचलिए कोई बात नहीं, धीरे-धीरे सब ठीक हो जायेगा, अभी हम ब्लोगेर्स को थोड़ा सभा-सोसाईटी का कम्मै चस्का औ अनुभव है...:)
जवाब देंहटाएंअरविन्दजी, आपके साथ सच में ज्यादती हुई लगती है। मैं भी वहीं ठहरा था जहां आप ठहरे थे। पता नहीं मुझे वहां कोई अव्यवस्था नहीं नजर आयी जो कि आप देख सके। आपकी सजग दृष्टि का प्रताप ही है यह।
जवाब देंहटाएंमुझे वहां मच्छर भी नहीं लगे। न ही मेरे साथ ही रुके मसिजीवी, अफ़लातून, अजित वडनेरकर, रविरतलामी और प्रियंकरजी ने इस तरह की कोई सूचना दी। सब जमकर बतियाये और धांसकर सोये।
लगता है सारे मच्छर साजिशन आपकी तरफ़ धकेल दिये गये। या फ़िर मच्छर आपके प्रताप पुंज से आकर्षित होकर आपके पास खिंचे चले आये।
बेड टी नहीं मिली आपको यह भी बड़ा बवाल है। बेड टी का समय वहां पहले दिन सात बजे था। हम सब लोग इसके पहले ही टहलते हुये चाय की दुकान पर बैठकर गपियाते हुये न जाने कित्ती चाय पी गये। अगले दिन पता चला कि चाय मिलती नहीं वहां। लेकिन हम लोग इसके पहले चाय-जलेबी और सानिध्य सुख के तृप्त होकर आनंदित होते रहे। लोगों से मिलकर जो मजा आया उसके झांसे में यह सब भूल ही गये कि आयोजकों ने कित्ती बड़ी नाइंसाफ़ी की हम लोगों के साथ कि चाय तक मार गये।
और भी बहुत सारी असुविधायें रही होंगी जो हमें नहीं दिखीं। आपके सूक्ष्म विवेचन से शायद आगे दिखें।
आयोजकों (जिनमें सिद्धार्थ त्रिपाठी) भी शामिल थे को यह ख्याल रखना चाहिये था कि वे सिर्फ़ हर हाल में मौज-मजे में रहकर मिलजुलकर खुश हो जाने वालों को ही नहीं बुला रहे हैं। उनको यह समझ भी होनी चाहिये थी कि वे आप जैसे संवेदनशील वैज्ञानिक को भी बुला रहे हैं जिसकी नजर हर खामी पर चली ही जाती है।
बाकी बातें और क्या कहें? आप आगे सब पोल खोलेंगे ही। आपकी आगे की पोस्टों का इंतजार है ताकि हम वहां हुई और अव्यवस्थाओं से परिचित हो सकें जो वहां रहते हुये मुझे दिख नहीं पायीं काहे से कि हम तो हा हा ही ही करने में लगे रहे।
आपकी सूक्ष्म दृष्टि सचमुच वंदनीय है।
@@ अनूप जी सही कह रहे हैं आप लोग सच में वी आयी पी कक्ष में रोके गए थे -आकर हमारी दशा अभी तो देखे होते ! मैं ,हिमांसु ,हेमंत ,ज़ाकिर ,अरुण और गिरिजेश रात भर मच्छरों के सो नहीं पाए ! सिद्धार्थ जी कहाँ गलत है ,गलत है वह सोच जो नाहक ही ब्लागरों में फक्र करती है -जो फोटो ऊपर लगी है वह हमारे कक्ष की नहीं है -वी आयी पी वाली है जहाँ जाकर यह फोटो खिचवाई ताकि सनद रहे ! अब और बुलवाने पर विवश न करें महाराज ! अब तो लोमडी पूंछ छोड़ कर भाग चली -बस पूंछ देखना बाकी है !
जवाब देंहटाएंजय हो
जवाब देंहटाएंकुंठासुरों के बीच में ब्लागर किये धमाल
न्यूट्रल रहे अनूप जी मिश्रा जी बेहाल
@और हाँ रवि जी ने मासूमियत से सुबह पूछा भी था की क्या हम लोगों के कमरे में जाली नहीं थी? अब हम क्या बताते उन्हें बस उनको भोपाल के एक कार्यक्रम की यद् दिला दिए जहाँ हम और वे साथ थे ! बस ! और हाँ आलोचनाओं को दोषारोपण की द्रष्टि से नहीं बल्कि स्वस्थ मन से लेना चाहिए और तदनुसार सुधार भी होना चाहिए ! नहीं तो हू केयर्स !
जवाब देंहटाएं! अब तो लोमडी पूंछ छोड़ कर भाग चली -बस पूंछ देखना बाकी है !
जवाब देंहटाएंपर सवाल यह उठ गया है कि लोमडी ने पूंछ कहां छोडी? तुरंत ढूंढकर हाजिर किया जाये.
रामराम.
सब को छू कर, गले मिल का देख लिये। सुकून मिला कि सब रीयल हैँ। बहुतों से बहुत देर तक मिलना चाहता था, इस बार नहीं हो पाया। बस!
जवाब देंहटाएं@ताउजी
जवाब देंहटाएंपूछ सुबह से ही फनफना रही है देख सके
तो देख ले
बगैर अव्यवस्था के कोई आयोजन फिर आयोजन कैसा? रपट की अगली कड़ी का इंतजार है।
जवाब देंहटाएंबहुत सही रपट ,आपनें सच को बेबाकी के साथ प्रस्तुत किया है,
जवाब देंहटाएंआयोजन में व्यवस्था और अव्यवस्था में तो चोली दामन का साथ है ,वी .आई .पी लोंगो को तो हर स्थान सुंदर \ लगते दीखते है क्योंकी वे वी .आई .पी जो ठहरे क्योंकी उनकी व्यवस्था जो टाप क्लास की होती है .हम सब का क्या हर जगह जैसे -तैसे गुजरा कर लेतें है हम तो इस तेश की सामान्य -भोली भली जनता जो ठहरे.
बधाई . ,अगली कड़ी की प्रतीक्षा है.
Bloggers ko ALAG ALAG STANDERD ke hotal men tharana nischit hi uchit nahee hai. ALLAHABAD ki WO RAAt kam sw kam main nahee BHOOL sakta.
जवाब देंहटाएंAur haan HOSTEL ke KHANE & NASHTE ka MEENU kaheen se bhee SANTOSHJANAK nahee tha.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@पुनश्च : वैसे तो मूदहु आँख कतऊ कछु नाही -बाबा कह ही गए हैं ! अनूप जी आपने कहा ,"हर हाल में मौज-मजे में रहकर मिलजुलकर खुश हो जाने वालों को बुलाने की " सिद्धार्थ जी मंशा धूल धूसरित हो गयी मेरे सूक्ष्म निरीक्षण से तो मुझे यह कहना की यह किसी का निजी कार्यक्रम नहीं था -न ही कोई चैरिटी शो था -यह टका टका जोड़े गए टैक्स पेयर्स की गाढ़ी कमाई से अर्जित सरकारी राशि का आयोजन था -मौज मस्ती का तो मामला ही नहीं था यह ! इसे तो पूरी तटस्थता और निर्विकार भाव से जिम्मदारी के रूप में लेना था -बहरहाल आप अगली पोस्टों का इंतज़ार करें ! विश्वास कीजिये मति अनुरूप सूक्ष्म विवेचन जारी रहेगा ! और भविष्य के आयोजकों के लिए कुछ मार्ग निर्देश भी शायद लिखूं ! आयोजन निस्पृह भाव से होने चाहिए इन्हें महज निजी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के माध्यम /मंच ही नहीं बन जाने चाहिए !
जवाब देंहटाएंहमको एक बात समझ नही आई की जब सरकारी और टेक्स पेयर्स के मत्थे आयोजन था तो बिना मच्छर और मच्छर वाला कमरा कैसे अलाट हुआ?
जवाब देंहटाएंक्या अनूप शुक्ल जी एंड कंपनी ने वहां धांधली करके अच्छा कमरा हथियाया और आप लोगों को जान बूझ कर मच्छर युक्त कमरा दिया गया.
और आपको और अनूप शुक्ल जी को ही क्यों बुलवाया गया? बाकी सब ब्लागर्स मर खप गये थे क्या?
चूंकि यहा अब जाकिर भाई भी मिश्राजी का समर्थन कर रहे हैं इसलिये हमको बात कुछ षडयंत्र वाली लग रही है.
स्थिति को स्पष्ट किया जाये.
मिश्रा जी मौज मस्ती के चलते ही ये सब हुआ काश सब लोग गंभीरता से रहे होते ,,,,,शायद इन्होने चाय वाले से भी मौज ली थी तभे वो अपने बेटे से कहा कि ये लोग दूकान बंद करवा देगे जैसे अज हम सब यही कह रहे है कि ये लोग ब्लागिंग बंद करवादेगे
जवाब देंहटाएंये तो वही बात हो गई कि ---"गए थे हरि भजन को,औटन लगे कपास"
जवाब देंहटाएंवैसे कुछ लोग तो ये भी कहते भये हैं कि---"जहाँ जहाँ चरण पडे संतन के,तहाँ तहाँ बँटाधार"
:)
ये ऊपर क्या हो रहा है भाई। मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा। आगे थोड़ा डिटेल में समझा-समझा कर बताइएगा। इस ऐतिहासिक वाकये के इतिहास में जाकर।
जवाब देंहटाएंअगली रिपोर्ट नहीं आई अभी तक? :)
जवाब देंहटाएंज़ाकिर जी की बात से पूर्ण सहमति लेकिन जाकिर जी वहाँ कनिष्ठ वरिष्ठ का ध्यान रखा होगा । वो सरकारी तंत्र मे स्केल होता है सो उसी के हिसाब से कमरे दिये गए होगे शायद
जवाब देंहटाएंआपके लेख को पढ़कर लगता है कि ब्लागर्स स्वभावत: अनार्किस्ट होतें हैं :)
जवाब देंहटाएंसाइन्स ब्लाग पर आप सब लोग जो काम कर रहें हैं वो तारीफ के काबिल है. इसका प्रचार और प्रसार दोनों ही जरूरी है. मुझे लगता है कि आपको आगे भी इसके प्रसार का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहिये. वह एक सार्थक कोशिश है.
इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए मुझे भी सौभाग्य मिला था और तकनिकी कारणों से मै प्रतिक्रिया नहीं दे सका था पहले तो मैंने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था क्योंकि जहाँ भी अव्यवस्था होती है तो हम यह मान लेते हैं की जब नाम का पहला वर्ण ही अ से शुरू है तो हर चीज जो अ से मिलाती है उस पर मै साधारणतया प्रतिक्रिया नहीं करता क्योंकि मै उसे नामराशी मान लेता हूँ लेकिन अनूप भाई की चर्चा वह बी मशक चर्चा सुन कर दुःख ही हुआ अछ्छा होता यदि खुलासे न होते प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो , हमने देखि है उन आँखों में महकती खुशबू
जवाब देंहटाएंभाई अरविन्द के लिए एक सलाह अछ्छा लगे तो अपना ले बुरा लगे तो जाने दे
हनुमान चालीसा में सबसे अछ्छी पंक्ति पर ध्यान दे आपन तेज सम्हारो आपे वैसे जो हो गया सो राख डालिए वैसे भी ब्लॉग समेलन से राष्ट्रीय चरित्र की ही पुष्टि ही हुई वरिष्ठ गरिष्ठ हो गए व कनिष्ठ विष्ट
जी बिलकुल। इन त्रिदेवियों की मौजूदगी मात्र ही पर्याप्त नहीं थी। और महिलाओं को वहां होना चाहिए था यह बताने के लिए कि ब्लॉग के भीतर और बाहर जो दुनिया वह देखती हैं, वह दुनिया कैसी है।
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