कल रात देखी वेक अप सिड -सोचा आपसे इस बारे में बतिया लूं ! काफी दिनों बाद एक खूबसूरत फिल्म देखने को मिली है -सहज सरल सी मगर आज की युवा पीढी को एक जोरदार सन्देश देती हुई ! फिल्म के कई कोण हैं ! किस से शुरू करुँ ? हूँ ! अच्छा ये हल्का वाला एंगिल लेते हैं -एक स्वावलंबी विचारधारा की लडकी(आयशा बनर्जी=कोंकन सेन शर्मा ) कोलकाता से मुम्बई (फिल्म में बार बार बम्बई के संबोधन से बवाल मचा है ) जा पहुंचती है अकेले कोई काम ढूँढने !यहाँ पहुचते ही उसकी बड़े बाप के एक मनमौजी मगर दिल से अच्छे बेटे (सिद्धार्थ उर्फ़ सिड =रणबीर कपूर ) से पहली मुलाक़ात होती है -जीवनशैली और विचारों में धुर असमानता के बावजूद दोनों में कुछ ऐसा है जो वे बार बार मिल बैठते हैं ! लडकी को एक पत्रिका के प्रकाशन डिवीजन में काम मिल जाता है -मगर तभी नाटकीय मोड में बेटे की नालायकी से खीज बडे बाप जी बेटे को घर से बाहर निकल देते हैं -महाशय सड़क पर आ जाते हैं ! और उस आयशा के उसी फ्लैट पर जा पहुँचते हैं जिसे सजाने सवारने में उन्होंने काफी मदद की थी ! यहाँ तक तो मुंबई जैसे महानगर में कई ज्ञात और अज्ञात जोखिमों से जूझती एक लडकी के आत्मनिर्भर होने का एंगिल है ! मगर बड़े बाप के लड़कों की अपनी खुद की कोई पहचान न होने और महा नगरों में आज के युवा होते बच्चों की जीवन शैली का एक मार्मिक मगर खबर्दारिया कोण फिल्म में मुख्य रूप से उभरा है !
वह लडकी,आई मीन नायिका (आयशा बनर्जी ) ,सिड की सहजता से प्रभावित तो है मगर उसे अपरिपक्व /बच्चा ही मानती है -एक दिन भावुक क्षणों में सिड को कह भी देती है कि तुम अभी पूरी तरह परिपक्व नहीं हो -मुझे तो अपने पति के रूप मे कोई ऐसा चाहिए जो पूरी तरह परिपक्व हो-माको/माचो हो और जीवन के प्रति स्पष्ट मकसद रखने वाला हो ! और ऐसी झलक उसे अपने एडिटर इन चीफ में दिखती है लेकिन एक दिन अपने उसी एडिटर की झिड़क कि आयशा तुममे अभी भी पूरी मेच्योरिटी नहीं है से उसका मोहभंग होता है और वह फिर सिड की ओर उन्मुख हो जाती है -सिड भी तब तक बहुत बदल गया रहता है -आयशा के सामने अपने को साबित करने में दिन रात लगा रहकर काफी जिम्मेदार भी बन जाता है ,एक नौकरी भी पा जाता है -आखिर मुम्बई की बरसात में वे मरीन ड्राईव पर भींगते हुए जीवन भर के लिए आ मिलते हैं ! कहानी सुखांत है !
फिल्म की कहानी और प्रस्तुतीकरण की सबसे बड़ी खूबी है उसकी यथार्थवादिता का पहलू, मतलब रियलिस्टिक प्रस्तुति ! आज बच्चों में अपने माँ बाप की समृद्धि के चलते भविष्य को गंभीरता से न लेने की मनोवृत्ति बड़े शहरों में बढ़ रही है -फिल्म इसी एंगिल को उभारने में सफल हुई है मगर यथार्थवादी चित्रण के साथ ही निर्देशक की अद्भुत कल्पना शीलता ने फिल्म के वातावरण को रूमानियत से जोड़े भी रखा है ! मानव सम्बन्धों /व्यवहार की कुछ नाजुक गुत्थियों ,पूर्वाग्रहों ,और सम्भ्रमों को भी खूबसूरती से इंगित किया गया है -माता पिता और पुत्र के अंतर्संबंधों और संवादहीनता ने कई बार पूरे हाल के दर्शकों को झकझोरा और बरबस ही आँखों से आंसू टपकवा दिए !
फिल्म करण जौहर ने प्रोड्यूस की है और लाजवाब निर्देशन किया है अयान मुखर्जी ने ! नायक और नायिका और बाप के रोल में अनुपम खेर ने कुछ दृश्यों में बेजोड़ अभिनय किया है !मैं इसे पॉँच में से साढ़े तीन अंक देता हूँ -डेढ़ बचाकर रख लेता हूँ ,आखिर यह कोई सुदामा का चावल तो है नहीं कि पूरा गप कर लूं और सब कुछ न्योछावर कर दूं !
विकीपीडिया पर कुछ और जानकारियां है !
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
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Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
आपने मूवी के प्रति आकर्षण पैदा कर दिया..देखना पड़ेगा...धन्यवाद अरविंद जी
जवाब देंहटाएंदेखनी पड़ेगी ...आपकी सलाह है तो ..!!
जवाब देंहटाएंहम तो दो दिन से स्टेटस मेसेज लगाये घूम रहे है.. वॉच वेक अप सिद..
जवाब देंहटाएंवाकई उम्दा फिल्म है..
कल के अवकाश का फायदा उठाते हैं देख कर आते हैं...
जवाब देंहटाएंregards
to dekhanee hogee ye movie.....shukriya...
जवाब देंहटाएंआप कह रहे हैं तो देखना पड़ेगा।वैसे भी काफ़ी समय हो गया सनीमा देखे हुये।पहले तो बहाना बना कर भागते थे देखने के लिये।
जवाब देंहटाएंमिश्राजी हमारे शहर मे तो सिनेमा घर ही नहीं है आजकल । आअके शहर आना पडेगा तो आप मेहमानवाज़ी के लिये तैयार है? आभार इस पोस्ट के लिये
जवाब देंहटाएं@आईये न निर्मला जी !
जवाब देंहटाएंदेखते है आज शिनिवार है तो रात में देख सकते है
जवाब देंहटाएंइतना अच्छा ब्यान किया है.
जवाब देंहटाएंअब तो देखने की उत्सुकता बढ़ गयी है.
देख ली और पसंद भी बहुत आई गाने भी खूब मन भाये ..:)
जवाब देंहटाएंसुझाव के लिये धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंपर वीकेण्ड कब होता है पण्डिज्जी?
mere bhi dedh sau rupiye khujlaane lage hain...
जवाब देंहटाएंPVR waalon main aa raha hoon !!
हमारे यहाँ लगेगी तब वीकेंड देखते हैं।
जवाब देंहटाएंइस रूमानी कहानी का सुखांत तो होना ही था क्योंकि इस सुखांत के बाद ही असली कहानी शुरू होती है जिसे हम लोग जी रहे हैं । खैर इसे देखकर चलो ज़रा सा रूमानी हो जायें ।
जवाब देंहटाएंचलिये कोई फ़िल्म तो बनी अच्छी, लेकिन हम फ़िर भी नही देखे गे, हमारा समय इन फ़िल्म से ज्यादा किमती है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत ही ख़ूबसूरत फिल्म है....एकदम बासु चटर्जी और हृषिकेश मुख़र्जी की याद आ गयी....कोई नाटकीयता नहीं ..कोई आडम्बर नहीं ....ज़िन्दगी के करीब सारे पात्र...मैंने फिल्म देखते देखते ही कई फ्रेंड्स को SMS किया यह फिल्म देखने के लिए.
जवाब देंहटाएंअब तो dekhni padhegi ये फिल्म .......... बहुत taareef सुन ली है ...........
जवाब देंहटाएंसनेमा हाल में जाकर तो नहीं देखेंगे. पिछले ३० वर्षों से नहीं गए अब क्या ख़ाक जायेंगे. हाँ सीडी मिल गयी तो जरूर देखेंगे. review के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंचलो अच्छा है कि वेक अप सिड सुंदर फिल्म है पर रणवीर टाइट insincere लोगों की फिल्में देख पाने की इच्छा नहीं होती.
जवाब देंहटाएंदेखी नहीं । आपने अनुशंसा की - जरूर देखेंगे ।
जवाब देंहटाएंअच्छी फिल्म है ....कहीं कहीं तो लगता है ...हम सब इस दौर से गुज़रे हैं ..सफल फिल्म है
जवाब देंहटाएंसोचता हूँ कब देख पाऊंगा...।
जवाब देंहटाएंतो आप फिल्मी फैन भी हैं !
जवाब देंहटाएंसुपुत्री जी कई दिनों से कह रही हैं। कल का पिलान करते हैं।
देख कर आते हैं...फिर बताते हैं.
जवाब देंहटाएंआपके इस रोमांचक विवेचना ने तो उत्सुकता को खूब बढा दिया है....अवश्य देखने का प्रयास करुँगी...जानकारी के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंकल देखे आते हैं
जवाब देंहटाएंइतनी पिक्चर कैसे देख लेते हैं आप? हम तो प्रोग्राम बनाते हैं, पर ब्लॉगिंग और पीएचडी के चक्कर में सब छूट जाती हैं।
जवाब देंहटाएंआपके कहने पर मैंने उस दिन लाकर फिल्म देखी। असल में ही एक अच्छी फिल्म थी। बहुत शानदार फिल्म थी।
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