दीपोत्सव -अवकाश के बाद घर से लौटा तो बहुत कुछ साथ लाया हूँ -कुछ पहेलियाँ कुछ पोस्ट सामग्रियां !आपसे साझा करने के लिए ! यह राम उजागिर कथा भी उसी का एक हिस्सा भर है ! आप राम उजागिर को नहीं जानते यद्यपि आज के हमारे ब्लॉग पोस्ट के नायक का यह असली नाम है ! मैं भी कहाँ उसे ठीक से जान पाया ! उसे जानने के पहले उसकी बदनाम शोहरत जो हमेशा उससे पहले ही आ धमकती है ! वह एक कुख्यात अपराधी है . बनारस से लखनऊ की दिशा में राष्ट्रीय राजमार्ग ५६ पर पड़ने वाले बख्शा थाने का हिस्ट्री शीटर है राम उजागिर ! कितनी शर्मिन्दगी होती है जब यह बताना पड़ता है कि वह हमारे गाँव का है ! एक शातिर बदमाश ..जहर खुरान ! न जाने कितनों को उसने ट्रेनों में लूटा है और कितनो के तो नीद की गोली की अधिकता से प्राण पखेरू भी उड़ गए ! मतलब एक हार्ड कोर क्रिमिनल !
मैंने बचपन से उसकी कारस्तानियाँ देखी सुनी है -वह मुझसे कोई १० वर्ष बड़ा होगा -वैसे तो वह ज्यादातर जेल में ही रहता है मगर जब भी मेरा आमना सामना हुआ है मैं उसके रेल मोहकमे -रूट वगैरह की जानकारी से स्तब्ध/इम्प्रेस होता रहा हूँ ! एक बात और भी रही है जिससे मैं चकित ,अचंभित होता रहा हूँ वह है उसका मोहक व्यक्तित्व ! इतनी मीठी आवाज कि कानों में चाशनी घुलना मुहावरा शायद उसी के व्यवहार से ही उपजा हो !उसका यही मोहक व्यक्तित्व भोले भाले और कभी कभार चंट लोगों को भी चूना लगा देता है ! मैंने उससे पूंछा था कि राम उजागिर कुछ ऐसा हिंट दो कि कभी हम लोग तुम्हारी गिरोह के फंदे में न आ जाएँ ! उसने वही घिसी पिटी बात दुहरा दी थी - "भैया ,किस साले में हिम्मत है जो हमारे गाँव के किसी का भी बाल बांका कर दे -आप सब के बारे में मैंने अपने गिरोह में मुनादी जो कर रखी है ! " कैसे लोगों को शिकार बनाते हो उजागिर ? मैं हमेशा उससे यह रहस्य जानकार सावधान हो जाना चाहता था ! बहुत कुरेदने पर यह कहते हुए कि अपना हुनर किसी भी को न बाटने की गुरू की हिदायत है वह कुछ हिंट दे ही देता था ! उसने बताया था कि ट्रेन में यात्रा के दौरान किसी भी अति विनम्र व्यवहार वाले से सजग रहें -पूरी यात्रा बहुत चौकन्ने और मगर रिजर्व रहें ! जहर खुरान गिरोहों की मोडस आपरेन्डी में शिकार से घनिष्ट होना और उसे चाय ,प्रसाद आदि के साथ नीद की गोली दे देना शामिल रहता है ! उनका तंत्र यह आभास लगा लेता है कि कौन मोटा आसामी है और कौन ठन ठन गोपाल ! और गिरोह के लोग बहुरुपिया होते हैं ! राम उजागिर को मैंने खुद बेहद शानदार सूट बूट में देखा है -गले में मोटे सोने की चैन -हांथों में सिटिजन की घडी ,पैरों मे रीबाक के जूते (यह जरूर उसने चुराए होंगें ! ) -पूरा त्रुटिहीन अभिजात्य परिधान !
मैंने इन सैद्धांतिक बातों से अलग हट कर उससे बचाव के लिहाज से कुछ व्यावहारिक जानकारी -उसके खुद के संस्मरण जानने चाहे ! एक आप को भी सचेत होने के लिए - " एक व्यक्ति को मुझे हैंडिल करने को सौंपा गया -ऐ सी २ में -मैंने भी तत्काल उस डिब्बे में किसी तरह जुगाड़ बैठाया -अब मुझे उस व्यक्ति का विश्वास जीतना था मगर वह था बहुत सजग ! मैंने अपने गिरोह से एक स्टेशन पर थर्मस में चाय मंगवा ली थी -रास्ते में उसे यह कहकर सहज ही विश्वास में ले लिया था कि कहीं बाहर का कुछ न तो खाएं और और न ही पियें -यहाँ तक कि ये बैरे भी जहर खुरानों से मिले ही सकते हैं -ज़माना बहुत खराब हो गया है ,इसी लिए मैं अपनी चाय भी घर से थर्मस में ले आता हूँ -लीजिये यह घर की चाय पीजिये ! और मेरा काम बन गया -आसामी ने घर की चाय के नाम पर हाथ बढा दिया था..." उसने फुसफुसाहट के लहजे में यह वाकया सुना दिया था ! मैं अक्सर उसे धिक्कारता ,उसके जमीर को ललकारता ! मगर कुत्ते की पूंछ टेढी ही रही -उसी कानों में शहद घोलने के पेशेवर अंदाज में वह कहता कि यही तो हुनर है उसका और उसकी आजीविका ! और यह जुमला भी कि घोड़ा घास से यारी करके खायेगा क्या !
तो हुआ यह कि जैसे ही घर पहुंचा कि जानकारी मिली - राम उजागिर की दीवाली इस बार उजियारी नहीं रही -नरक चतुर्दशी को ही नरक गामी हो गया वो ! बेटे ने मुम्बई से आकर धूम धाम से तेरही आयोजित की -अभी कल ही तो तेरही थी उसकी ! मेरे मुंह से निकल पडा चलो गाँव का एक काला धब्बा तो मिटा ! उसकी मीठी मीठी बाते और विनम्रता भी याद आई तो कुछ मिश्रित विचार भी मन में आये ! मगर हठात उन्हें रोका ! जो गलत सो गलत ! मुझे जैसे कुछ याद हो आया ! मैंने लोगों से पूंछा कि वह तो लखनऊ जेल में था न ? पुष्टि में लोगों ने सिर हिलाया और याद भी दिलाई कि डायिजेपाम की गोली के नकली निकल जाने से वह अभी कुछ मांह पहले ही तो आजमगढ़ स्टेशन पर यात्री के होश आ जाने से भीड़ द्बारा धर दबोचा गया था ! तब वह मरा कैसे ? शायद जमानत पर छूट गया था -लाश बड़ी ही विकृत अवस्था में सुल्तानपुर में पायी गयी ! भाईयों ने लाश की शिनाख्त करके पंचनामा आदि करा कर बनारस में दाह संस्कार किया पूरे विधि विधान से ! "हूँ " मेरी सक्षिप्त प्रतिक्रिया थी ! एक काले युग का अंत तो हुआ !
मगर मेरे ही नहीं अब स्तब्ध होने की बारी पूरे गाँव की थी -गाँव में दीवाली की ही सुबह जंगल में आग की तरह खबर फैल गयी कि राम उजागिरा जिंदा है -लखनऊ के जेल में ही फर्जी नाम से बंद है -किसी के हाथ चिट्ठी भिजवाई है -उसका बेटा लखनऊ जा चुका है ! .....और आज ही यह पुष्ट हो गया है कि वह नराधम सचमुच जिंदा है -गाँव में विचित्र माहौल है ! हंसने रोने की बीच सा कुछ ! मगर फिर वह लाश किसकी थी जिसे गधों ने बैकुंठ तक पहुँचने का कर्मकांड रच डाला ?
"पुलिस छान बीन कर रही है " -मुझे बताया गया !
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
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Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
राम उजागिर की कथा उजागिर कर दी आप ने। किसी फिलिम वाले को भनक पड़ गई तो फिलिम बना डालेगा।
जवाब देंहटाएंआलेख को पढ़ते पढ़ते ही हमें अंदाजा हो गया था की राम उजागिरा जिंदा होगा. सीखने को बहुत कुछ मिला. आभार
जवाब देंहटाएंआपने इतने रोचक ढंग से राम उजागिर की कथा को प्रस्तुत की है .. उसके सैद्धांतिक और व्यावहारिक ज्ञान से लेकर उसके मरने और तदुपरांत जी उठने की कहानी तक .. ऐसे लोगों की इतनी जल्दी मौत नहीं होती .. न जाने और कितनों को चूना लगाएंगे और कितना खुद भोगेंगे !!
जवाब देंहटाएंमस्त रोचक कथा रही. क्लाइमेक्स में नायक का जिन्दा रहना... सत्य कथा तो हिट है जी. वैसे एक बात तो है आपकी बड़ी जान पहचान है :)
जवाब देंहटाएंभईया आप के लेख ने सिद्ध कर दिया मीठा बोलने वालो से बच कर रहो... लेकिन इन लोगो को क्या मिलता है दुसरो को लुट कर, मार कर, दुसरो की खुशियो मै आग लगा कर??
जवाब देंहटाएंराम, राम
कथा बहुत प्यारी लगी, मजे दार..
बेहतरीन कथा..रामउजागिरा जिन्दा है समझ आ रहा था.. :)
जवाब देंहटाएंराम उजागिर निश्चित ही इन्टेरेस्टिंग व्यक्ति है किन्तु तब तक ही जब वह नेट या समाचार पत्र में हो। यदि गाड़ी में साथ बैठा हो तो बिल्कुल नहीं। सावधान करने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
अरविंद जी.
जवाब देंहटाएंये तो राम उजागिर न हो गया गब्बर हो गया...शोले के क्लाइमेक्स की तरह ही ये भी सस्पेंस बना गया कि मर गया या अब भी जिंदा है...
जय हिंद...
आपके बालसखा की ये जीवनकथा अति सुन्दर लगी :)
जवाब देंहटाएंआभार्!
बहरूपिया मीठी भाषा बोल कर ही लुटते रहे हैं ....रोचक अंदाज में प्रस्तुत कर दिया है आपने ...
जवाब देंहटाएंमगर आप इतने खतरनाक है ...आपकी पहुँच जहरखुरानों तक भी है ...पता नहीं था....ह्म्म्म्म्म... आपकी मीठी बोली से भी बचना होगा अब तो ....
राम उजागिर की ये कथा तो बहुत आशार्य्जनक है , वह तो है ही मजेदार और सबको चुना लगाया यही क्या कम है कि सबको पुडी खिलाया :)
जवाब देंहटाएंराम उजागिर से भी कुछ रहस्य उगलवा ही लिए !
जवाब देंहटाएंधन्य महराज। पंडी जी उसे आप का बालसखा बता रहे हैं इस पर प्रति-टिप्पणी आनी चाहिए - आप की तरफ से।
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सुखरिया और रामउजागिर जैसों को मारना पड़ता है, ये ऐसे नहीं मरते।
रामूजागिरा से सावधान कराया जाना जरुरी है. वैसे अगर किस्मत से साथ बैठ ही गया तो राम ही मालिक है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
रोचकता के साथ ही साथ महत्वपूर्ण जानकारी देने वाला लेख!
जवाब देंहटाएंआश्चर्यजनक किंतु सत्य श्रेणी की रही राम उजागिर की यह कथा. रोचकता के लिए बधाई के पात्र आप है अरविन्द जी.
जवाब देंहटाएंकमबख्त ये जहरखुरान मानव की मूल प्रवृत्तियों का लाभ उठाकर ही उन्हें बेवकूफ बनाते हैं। और मुआ आदमी अपनी मूल प्रवृत्तियों पर अगर काबू ही पाना सीख जाए, तो फिर ये दुनिया ही स्वर्ग न बन जाए, लिहाजा ऐसों का धन्धा चलता ही रहता है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
राम उजागिर ने कहीं यमराज को भी रास्ते में चाय नहीं पिला दी ? :)
जवाब देंहटाएंकथा के माध्यम से पाठकों को ज्ञानवर्धक उपयोगी जानकारी प्राप्त हुयी !
एक शातिर बदमाश ..जहर खुरान ! और नाम राम....:) भई राम का नाम लो॥
जवाब देंहटाएंरोचक कथा रही ...सेमीनार के लिए ट्रेन से इलाहाबाद जाने वालो के लिए शिक्षाप्रद भी !
जवाब देंहटाएंभज मन राम चरण सुखदायी।
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