सोमवार, 19 अक्तूबर 2009

प्रसिद्ध विज्ञान लेखक गुणाकर मुले नहीं रहे ! नमन !

गाँव के पैतृक आवास से दीवाली अवकाश मनाकर लौटा ही हूँ  कि शैशव, बजरिये चिट्ठाचर्चा पर यह स्तब्ध कर देने वाली खबर मिली -प्रसिद्ध विज्ञान लेखक गुणाकर मुले नहीं रहे ! मन क्लांत हो उठा -भारत में आम आदमी के लिए विज्ञान लेखन का शलाका पुरुष नहीं रहा ! स्वतन्त्रता के पश्चात (स्वातंत्र्योत्तर ) भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के चतुर्दिक विकास और उसे आम लोगों के बीच पहुचाने /पहचानने की दिशा में प्रधानमंत्री नेहरू जी के "वैज्ञानिक मनोवृत्ति " (scientific temper ) के आह्वान को अमली जामा पहनाने में मुले जी का अप्रतिम योगदान रहा ! उस समय कोई अपनी बोली भाषा में विज्ञान को आम जन तक ले जाने के गुरुतर दायित्व को उठाने का साहस भी नहीं कर सकता था -सर्वत्र दोयम दर्जे की अंगरेजी का बोलबाला था (जो दुर्भाग्य  से आज भी है )  ऐसे में वे एकला चलो की एकनिष्ठता और कार्य समर्पण की भावना से विज्ञान को जन जन तक, घर घर तक पहुचाने को वे  कृत संकल्पित हुए और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा ! उनकी बदौलत ही वर्तमान पीढी से ठीक पहले  की पीढी  जमीन -आसमान ,सागर -सितारों और चाँद सूरज के बारे में ,वैज्ञानिक प्रतिष्ठानों के विषय में हिन्दी में जानकारी प्राप्त कर पायी !उनकी दृष्टि खोजपरक थी -वे एक गंभीर अध्यता तो रहे ही ,वे एक शोधार्थी भी रहे -पुरा लिपियों पर उनका लेखन आज भी प्रामाणिक माना जाता है !

मगर दुखद यह है कि विगत १३ अक्तूबर को इस सरस्वती पुत्र के अवसान की खबर इतनी देर से मिल रही है ! मुद्रण माध्यमों के लिए यह शायद पहले या किसी भी पन्ने  की खबर नहीं रही ! और दृश्य माध्यमों की तो हालत और भी शोचनीय  है ! यहाँ भी ब्लागजगत ने अपनी तत्क्षण खबरिया प्रकृति और खबर के चयन की उत्कृष्ठता को बरकरार रखते हुए अपने सुधी पाठकों को वंचित नहीं किया  -यह हमें चिट्ठाजगत के उत्तरदायित्वबोध के प्रति भी आश्वस्त करता है !


   आखिर यह फोटो मिल ही गयी ! (साभार : साईंस ब्लॉगर असोशिएसन )

मुले जी आज के अनेक हिन्दी विज्ञान लेखकों की पहली पंक्ति के पुरोधा रहे -हिन्दी विज्ञान लोकप्रियकरण के पितामह ! उनका लेखन  सरल था मगर फिर भी गंभीर परिशीलन की मांग रखता था -अभिव्यक्ति  का छिछोरापन /सतहीपन उनको गवारा  नहीं था ! वे विज्ञान की गरिमा से समझौता न करने वालों मे रहे ! जबकि उनके कुछ बाद के और आज के कई स्वनामधन्य विज्ञान प्रचारकों ने विज्ञान की बखिया  उधेड़ डाली है, उनके नामोल्लेख यहाँ अभिप्रेत नहीं -कहीं अन्यत्र उनके भी अवदान बल्कि प्रति-अवदान चर्चित होगें ही !

मैं मुले जी से १९८८  में इलाहाबाद में आयोजित एक विज्ञान  संगोष्ठी के समय पहली बार मिला था -धीर गंभीर व्यक्तित्व , बहु विज्ञ ,बहु पठित -मैं नत मस्तक था ! उनकी एक अभिलाषा थी साईंस फिक्शन को आगे बढ़ाने की क्योंकि वे खुद इस दिशा में अपरिहार्य कारणों से योगदान नहीं कर पाए -उनकी प्रेरणा ने मुझे इस उपेक्षित विधा की ओर और भी मनोयोग से लग जाने को प्रेरित किया ! उनके अनुगामी   दिल्ली के विज्ञान लेखकों ने उनसे ईर्ष्या भाव भी रखा जबकि वे पूरी तरह निश्च्छल   
थे-यहाँ तक कि कृतघ्न पीढी ने यह तक कहा कि उन्हें आम लोगों में  विज्ञान के संचार की समझ नहीं थी -ऐसी ही कृतघ्न पीढी सरकारी पुरस्कारों से भी नवाजी जाती रही है ! यह देश का दुर्भाग्य है ! गुणाकर मुले जी  74 वर्ष के थे।  पिछले डेढ-दो वर्षो से बीमार चल रहे थे। उन्हें मांसपेशियों की एक दुर्लभ जेनेटिक बीमारी हो गई थी जिससे उनका चलना-फिरना बंद हो गया था। उनका जन्म  महाराष्ट्र के अमरावती जिले के सिंधू बुर्जूग गांव में हुआ था .वे मूलतः   मराठी भाषी थे, पर उन्होंने पचास साल से अधिक समय तक हिन्दी में विज्ञान लेखन किया। उनकी करीब तीन दर्जन  पुस्तकें  छपीं हैं । उनके परिवार में पत्नी, दो बेटियां एवं एक बेटा है।

उनकी सबसे बड़ी विशेषता रही कि उन्होंने  जीवन पर्यन्त एक पूर्णकालिक विज्ञान लेखक के रूप मे आजीविका  चलाई जो एक चुनौती भरा काम था ! उन्होंने सरकारी नौकरी नहीं की और सरकारी इमदादों के पीछे  नहीं रहे -स्पष्ट और खरा बोलने वालों में रहे -शायद यही कारण है कि कई  सरकारी विज्ञान संस्थाओं/तंत्र के पसंद नहीं बने !


मुले का जीवट का व्यक्तित्व किसी के लिए भी अनुकरणीय हो सकता है -वे सही अर्थों में विज्ञानं को आम आदमी तक ले जाने को पूर्णरूपेंन समर्पित रहे और बिना नौकरी और सरकारी टुकडों पर पले पूर्ण कालिक विज्ञान लेखन की अलख जगाते रहे ! मेरा नमन !

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25 टिप्‍पणियां:

  1. gunAkar muley ji kA maiN bhi fan rahA hooN. vAkai aAp ne jo likhA sach hai. ve hindi maiN vigyAn lekhan ke sirmaur the.
    meri shraddhAnjali.

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  2. बहुत दुखद !िस महान विभूति को मेरी विनम्र श्रद्धाँजली।

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  3. कुछ समय पहले, मैंने एक चिट्ठी पहेलियों की पुस्तक पर लिखी थी। इसमें गुणाकर मुले का जिक्र किया था। उस समय भी मैंने इनका चित्र ढूढ़ने का काफी प्रयास किया पर मिला नहीं।

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  4. @उन्मुक्त जी .
    गुणाकर मुले जी आत्म प्रचार के हथकंडों से दूर रहे ! और हम भी ऐसे असावधान और अक्रितग्य की इस पहलू की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया -न तो उन पर लिखा और न उनका कोई फोटो सहेज सके ! मगर फोटो मिल ही जायेगी ! कोशिश करता हूँ !

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  5. "भारत में आम आदमी के लिए विज्ञान लेखन का शलाका पुरुष नहीं रहा !"

    "यहाँ भी ब्लागजगत ने अपनी तत्क्षण खबरिया प्रकृति और खबर के चयन की उत्कृष्ठता को बरकरार रखते हुए अपने सुधी पाठकों को वंचित नहीं किया -यह हमें चिट्ठाजगत के उत्तरदायित्वबोध के प्रति भी आश्वस्त करता है !"

    हाईस्कूल के दिनों से विज्ञान प्रगति पत्रिका पढ़ता रहा हूँ, गुणाकर जी के आलेख सर्वाधिक रूचिकर और ज्ञानवर्धक होते थे. अरविन्द जी, निश्चित ही शलाका पुरुष थे गुणाकर जी ....आपने बिलकुल ठीक फरमाया कि ब्लॉगजगत ने मीडिया जगत के बरक्श अपनी त्वरित व उचित प्रतिबद्धता दिखाई...आपके माध्यम से मै अपनी श्रद्धांजली अर्पित करता हूँ....

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  6. बहुत ही अपूर्णीय क्षति, श्रद्धांजली अर्पित करता हूं.

    रामराम.

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  7. प्रिय अरविन्द जी
    आपकी पोस्ट ह्रदय को व्यथित करने वाली है !
    सोचकर भी अजीब लगता है कि कोई उनके योगदान को...उनके समर्पण को कैसे भुला सकता है !
    सही मायने में अपूर्णनीय क्षति है ! मेरी विनम्र श्रद्धाँजली।

    आपका आभार कि आपके माध्यम से विराट व्यक्तित्व के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त हुयी !

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  8. उनकी कई किताबों से गुजरना हुआ है...
    विनम्र श्रृद्धांजली...

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  9. मैं विद्यार्थी जीवन में ‘विज्ञान प्रगति’ का नियमित पाठक था और मुले जी इस पत्रिका के नियमित लेखक थे। कदाचित्‌ इस प्रकार के जुड़ाव के कारण आज उनके अवसान पर हमें विशेष कष्ट हो रहा है।

    आप द्वारा प्रस्तुत श्रद्धाञ्जलि में हमारी भावनाओं को भी शब्द मिला है। धन्यवाद।

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  10. गुणाकर मूले जी को विज्ञान प्रगति , कादम्बिनी एवं अन्‍य जगहों पर पढने का काफी मौका मिला था .. आज आपके माध्‍यम से उनके व्‍यक्तित्‍व के बारे में जानकारी मिली .. उन्‍हें मेरी ओर से भी विनम्र श्रद्धांजलि !!

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  11. श्रद्धांजलि ! आज ही खबर पढ़ी... दुखद.

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  12. "अभी अभी पढा, बेहद दुखद आदरणीय मुले जी को हमारी भी श्रद्धांजलि"

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  13. विज्ञान लेखन के इस शिखर पुरूष को हार्दिक श्रद्धांजलि।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  14. आप ये पोस्ट नहीं लगाते तो मुझे तो पता भी नहीं चलता। मेरी दीदी विज्ञान कथायें पढ़ने की बड़ी शौकीन हैं। उन्हीं के मुख से कुछेक बार मुले जी का जिक्र सुना था...हिंदी के एच जी वेल्स करके।

    मेरी श्रद्धांजलि।

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  15. मुले जी का 'विज्ञान के 101 प्रयोग' या ऐसा ही कुछ शीर्षक था उस किताब का जिसके सरल वैज्ञानिक प्रयोगों का बचपन में मैने खूब अभ्यास किया था। वह सरल हिन्दी में समझाने में सक्षम थे। सही कहा आप ने, हम लोग अपनी विभूतियों को इज्जत नहीं बख्शते।

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  16. अरे !! सचमुच कहीं किसी अखबार मे यह खबर नही दिखी । होगी भी तो इस प्रमुखता के साथ नही कि नज़र पड़े । क्या कहूँ .. साईंस के इस सिपाही को सलाम ।

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