नाहक ही मुझ पर तोहमत पर तोहमत लगाई जा रही है ...मैंने तो किसी को नहीं कहा ब्लागरा या ब्लॉग वालियां ...हालांकि इन दोनों शब्दों का कापीराईट मेरे पास है मगर अब क्या शब्द -कौतुक भी कोई गुनाह है? वर्ड प्ले तो बच्चों तक का प्रिय शगल है ...और वो कहावत भी तो कितनी जग प्रसिद्ध हुयी है ना -सुवरण को खोजत फिरत कवि व्यभिचारी चोर ... तो मैंने भी ये दो शब्द गढ़ दिए ताकि ब्लॉग शब्द कोश में अपनी इंट्री बना लें और साहित्य कोश की शोभा बढायें -अब यह किसी के प्रति ,किसी को लक्षित करके तो ओरिजिनली कहा नहीं गया था ..शब्द तो कितने ही हवा में तैरते रहते हैं और तब तक किसी के साथ नहीं आ चिपकते जब तक उसका वैसा आचरण न हो जाय -भाषा और शब्द के धनी मेरी इस बात को समझेगें ....और फिर ब्लागरा भी ऐसा कौन सा एलर्जिक शब्द हो गया जो उसे सुनते ही भड़क या चिहुंक उठा जाय ....अरे जैसे शायरा वैसे ब्लागरा..अब कोई बताये क्या शायरा शब्द फूहड़ है? या सम्मान से नहीं लिया जाता? ..अरे मेरे जमाने में तो लोग बाग़ बिना किसी शायरा का नाम सुने मुशायरे में जाते तक नहीं थे ... हाँ अब जमाना जेंडर न्यूट्रल शब्दों का आ गया है ...शायर और एक्टर प्रचलन में है दोनों के लिए मगर तो क्या नए शब्द गढ़ने पर कोई पाबंदी है या फिर शब्दों को डिक्शनरी से निकाल दिया जाय? हम कभी कभी इतना संकीर्ण क्यों हो उठते है? कहीं कोई अपनी कमी कसक तो नहीं है?
अब आईये ब्लॉग वालियां पर ..पढ़ने लिखने वाले जानते हैं कि अमृत लाल नागर जैसे सारस्वत प्रतिभा के धनी विद्वान ने ये कोठेवालियां लिखी थी ..मगर मेरा संबोधन तो कतई इस लिहाज से नहीं था ...अभी उसी दिन कोई चर्चा कर रहा था ....कौन पाबला? जवाब आया अरे वही अपने ब्लॉग वाले पाबला जी ? तो जब ब्लॉग वाले पाबला जी हो सकते हैं तो ब्लॉग वाली फलानी क्यों नहीं हो सकती? आम बोल चाल की भाषा में कई संबोधन ऐसे ही दैनन्दिन जीवन में सहजता से चलते रहते हैं और कई कार्य व्यवहारों को अंजाम देते हैं ...उनका कोई अन्य व्यंजनात्मक अर्थ थोड़े ही होता है ..मगर वो क्या है कि चोर के दाढी में तिनका .. तो वह चिहुंक पड़ता है ..जैसे वज्रपात हो गया हो ....अब क्या इक्केवालियाँ ,ठेलेवालियाँ, नखरेवालियाँ कोई खराब शब्द हैं -भाई ये तो रोजमर्रा के शब्द हैं ....हाँ बहुबचन में हैं ..अब एक वचन और बहुवचन, जैसी जरुरत हो उसी के मुताबिक़ व्यवहृत हो उठते हैं ... इसमें कहाँ कौन सा आक्षेप अन्तर्निहित है? हाँ जब शब्दों का धुर विरोध होता है तो वे नए अर्थ और गाम्भीर्य ग्रहण करते चलते हैं... अब जितना ही विरोध इन नव सृजित शब्दों का होगा वे और भी प्रचलन में आते जायेगें ....लोगों को तो मुझे इन दोनों नए शब्दों के गढ़ने पर शाबाशी देनी चाहिए मगर दे रहे हैं गालियाँ ....हाय रे हिन्दी ब्लागवर्ल्ड :-( ..यह किसी के लिए कहा ही नहीं गया ...अब लोग अपने आचरण से इन शब्दों को अपने से चिपका लें तो बात और है ..अब तक तो तीन चार ने तो चिपका ही लिया है ...अब उनकी अपनी मर्जी ...बेदर्दी तेरी मरजी ....जो चाहे कह लो आखिर पुरुष द्रोह भी कोई चीज है ..
दरअसल यह सब परिणाम है ब्लॉग जगत की उन गोल गिरोह वाले वालियों के सुकर्मों के जिनके चलते यहाँ कई दुरभि संधियाँ चल रही हैं --अब उन मोहतरमा के ब्लाग पोस्ट पर टिप्पणी करिए तो फलानी नाराज़ हो जाती हैं कि मेरे यहाँ तो करते नहीं बार बार वहीं जाते हैं ....अब कोई क्या कहे अरे वे मोहतरमा आपसे लाख गुना अच्छा लिखती हैं आप भी वैसा लिखिए तो हम दौड़े चले आयेगें ..और आपके यहाँ भी पुरुष मित्रों की कोई कम भरमार तो रहती नहीं ...सब दाद खाज देने पहुंचे ही रहते हैं और आपको ब्लॉग विदुषी की खुशफहमी देते रहते हैं ..मगर मेरी दाद? मो सो नको .....बढियां लिखिए आयेगें आपके यहाँ भी आयेगें ....वैसे भी यह अपनी अपनी पसंद की बात है और मैंने खैरात टिप्पणियाँ बंद कर दी है उन सभी के यहाँ जिनके अपने अघोषित एजेंडे हैं और जो दुरभि संधियों में मशगूल हैं ....इनमें मेरे कई पुरुष मित्र भी हैं .....
मेरी नसीब ही अजीब है ..ब्लॉग जगत में आने के पहले नारीवाद शब्द तक मैंने नहीं सुना था मगर एक मुहिम चलाकर मुझे नारी विद्वेषी घोषित करने के प्रयास किये जाते रहे हैं ....और अब तो लगता है मैं हो भी गया हूँ पक्का मीसोजीनिस्ट ....बार बार सही को गलत कहो तो वह गलत ही हो जाता है ....एक देवि हैं जिन्होंने नाक में दम कर रखा है.. कितने अच्छे श्रेष्ठ ब्लागरों को वे पैवेलियन तक पहुंचा चुकी हैं ...गोलबंदी की है ..कितनी दुत्कारों का सामना किया है मगर अवसर की ताक में रहती हैं ....कुछ लोगों को फिर से खेमें में जोड़ रही हैं .....लोग हैं कि अब उनकी सुनते ही नहीं .... कब खतम होगा ये अरण्य विलाप?
मित्रों, ब्लॉग ऐसा ही माध्यम है ...यहाँ कड़वी कड़वी थू और मीठी मीठी गप्प नहीं चलेगा ....दोनों कहने का और सुनने का माद्दा रखिये ...तब यहाँ टिकिए..तनिक टफ माध्यम है यह ...यहाँ ठकुरसुहाती लम्बे दिनों तक नहीं चलती ..प्यारे बोल बोलने वालों को तो एक उन मोहतरमा ने ही चलता कर दिया ...तो डट के ब्लागिंग करिए और ठसक के रहिये ..मुंहदेखी आलाप प्रलाप की जरुरत नहीं है ब्लागिंग में ......अपनी कहिये और एलानियाँ कहिये .....आप अपनी सोशल नेट्वर्किंग के कारण नहीं अपनी लेखनी से ही जाने जायेगें ....टिप्पणी मोह छोडिये ..गणना काउंटर आपको बतायेगा कि आप पढ़े जा रहे हैं और खूब पढ़े जा रहे हैं ..
टिप्पणियों का भी अपना समाजशास्त्र है और राजनीति है -मेरे कई पुरुष मित्र इसलिए भी आपके यहाँ सहज टिप्पणी करने से बचते हैं कि कहीं उनकी वे फलानी नाराज न हो जायं!और वे फलानी आपके यहाँ नहीं आतीं तो मुंह क्या बिसोरना? उन्हें फलाने ने मना कर रखा होगा ....और फिर और भी कितने अच्छे अच्छे ब्लॉग लिखे जा रहे हैं वहां जाईये न ...रोनी सूरत बनाकर मत बैठिये ....और हाँ बन्दर बंदरिया घुड़कियों से मत घबराईये ..आप अपनी पर आ जाईये तो पायेगें आप उनसे लाख गुना अच्छा लिखते हैं ... आप लिखते भी हैं ..मैंने देखा है ..और आगे भी देखते रहेगें बाबा, टिप्पणी भी करेगें ..अब खुश न :-)
"अब खुश न" का अर्थ क्या, ख़तम हो गया दर्प |
जवाब देंहटाएंप्राकृत है फुफकारना, सदा सर्पिणी - सर्प |
सदा सर्पिणी - सर्प, हर्प पर झंझट कर लो |
डसने को तैयार, सामने से ही टर लो |
बिना द्वेष बिन प्यार, करेंगे गुरु ब्लॉगरी |
गरियाये घनघोर, लगा के चले हाजिरी ||
जवाब देंहटाएंलाईट ले यार ...
अगर देवियाँ, इतनी तीखीं ना होती
तो तेरे लिखे में मज़ा भी ना आता
अगर सारी महिलायें, माँ जैसी होती
तो तुमको भी फोटू खिंचाना ना आता
कदम खुद ना बढते, कभी होटलों में
अगर तीखी मिर्चों का झोंका ना आता
अगर ब्लागरा कोई चिट्ठा न लिखतीं
कसम से यहाँ कोई ब्लागर ना होता!
आप तो ऐसे ना थे!
जवाब देंहटाएं:-)
हंसी आती है ऐसी आपत्तियों को देखकर. अगर 'ब्लॉग वाली' गलत है फिर तो शेरांवाली जैसा पवित्र नाम गलत ठहरेगा, और सायेना को 'मेडलवाली' सायेना नहीं कह पायेंगे और मिसेस बाटलीवाला/बाटलीवाली जैसे नाम तो और भी आपत्तिजनक बन जायेंगे. और सीरियल 'रहने वाली' महलों की और 'भागों वाली' पर तो बैंड लग जाएगा.
जवाब देंहटाएंदेखिये मिश्रा.. जी... आप इसमें दुखी मत होईये.. यह यहाँ का एक कॉमन फिनोमिना है. लोग शब्दों पर ही खेलते हैं.. सब दरअसल स्कूलिंग और अपब्रिन्गिंग का सस्र होता है.. आपको बचपन से कैसा माहौल और इम्पौरटेंस मिला है यह ज्यादा मायने रखता है. कुछ लोगों की आदत होती है..बकबकाने की.. बिना मतलब में.. यह वो लोग होते हैं जिन्हें स्कूल से लेकर घर तक... दोस्तों से लेकर आस-पास के लोगों तक में इम्पौरटेंस नहीं मिली होती है.. और सबसे बड़ी इनके पास इतना फ़ालतू टाइम होता यह सब करने के लिए.. बाप रे बाप.. मेरे तो यही समझ में नहीं आता है.. ऐसा लगता है की इनके लाइफ में कोई क्रिएटिव्नेस है ही नहीं... अरे कितना कर लेंगे.. ब्लॉग्गिंग.. और सबसे बड़ी बात की इतना माददा कैसे रहता है की झाँक झाँक कर दूसरों के यहाँ देखें. अगर घरेलु महिला है तो चलो समझ में आता है कि घर के काम के बाद... टाइम ही टाइम है.. काम-काजु के पास तो यह सब नहीं होगा कि इतनी पंचायत कर डालें. अगर पुरुष है तो उनकी भी सायकोलोजी समझ में आती है,.. सारी प्रॉब्लम अटेंशन सीकिंग की है.. यहाँ लोग फौलोवर ज्यादा हैं.. लीडर नहीं... यहाँ लोग भेड़ चाल में चलते हैं.. जिसने जो कह दिया किसी के खिलाफ चल दिए उसी के पीछे.. यह भी नहीं देखते कि हमारे सामने वाले से कैसे सम्बन्ध रहे हैं... आप सिर्फ अपना काम करिए.. यहाँ पढ़े लिखे जाहिल बहुत हैं.. आप सिर्फ इनसे बहस कर सकते हैं... जिसका रिज़ल्ट जीरो ही होगा.. जो आपको पसंद करते हैं वो हर हाल में करेंगे.. जो नहीं.. वो हर हाल में नहीं ही करेंगे.. आप उनको लाख समझा डालिए... वो अपने मूंह में गोबर भर कर ना में ही गर्दन हिलाएंगे.. यहाँ पुरुषों का हाल तो यह है कि इन्हें स्कूल में और कॉलेज में कभी लड़कियों ने भाव नहीं दिया.. हमेशा दूर से देख कर आहें ही भरीं हैं.. और यहाँ भी उन्हें वर्चुयल रूप में महिलाओं से बात करने का मौका मिल जाता है तो उसमें इनर सेल्फ को एक शान्ति मिलती है.. इसीलिए कई पुरुष आपके यहाँ आने से डरते हैं कि फलानी नाराज़ हो जाएगी.. यह वैसे तो कुछ नहीं कर सकते तो वर्चुयाली ही खुश हो जाते हैं.. और यही हाल महिलाओं का भी है.. आपका लेवल बहुत हाई है.. और बहुत कम लोग होते हैं जो दिमाग से प्यार करते हैं.... और लोगों के पास इतना ही दिमाग होता तो खुद में ही सोच समझ कर बात करते..
जवाब देंहटाएंमैं आपके पास गूगल प्लस से आया... यह सब देखा मुझे लगा कि कुछ बोलना चाहिए.. तो बोल दिया.. कहाँ पर किसने क्या कहा है.. इससे मुझे मतलब नहीं है.. ना ही मैं जानना चाहता हूँ.. मुझे ब्लॉग जगत में और यहाँ के लोगों में कोई इंटरेस्ट ही नहीं है.. मैं हमेशा क्वालिटी पसंद जगहों पर ही जाना पसंद करता हूँ.. बाकि अगर आपको मेरी कोई बात खराब लगे तो माफ़ करियेगा. आप बस खुद को देखते हुए.. लोगों को अवोइड करना सीखिए..
You will never reach your destination if you stop and throw stones at every dog that barks.
nice presentation....
जवाब देंहटाएंAabhar!
Mere blog pr padhare.
अब तक ९६ लोग पढ़ कर खिसक लिए हैं :-)
जवाब देंहटाएंअरे आप भी ...
जवाब देंहटाएंबुरा न माने कभी कभी कोई गलत फहमी भी हो जाती है किसी किसी से ...
बहनापा रुदाली शुरू है ....सुबक सुबक ..यहाँ वाचिक अश्लीलता दिखती है उन्हें ..
जवाब देंहटाएंउन दिनों जब वास्तव में उनके साथ वाचिक अश्लीलता हुयी उसे भूल गयीं
क्या क्या तक नहीं कहा गया .....अब संभवत फिर इच्छा हो आयी है ..
वो क्या कहते हैं न ...सीजन भी है ...दस्तूर भी है..मगर मैं क्या करूं
संस्कार इतने नीचे गिरने नहीं देते .....मैंने खुद तो कटही कुतिया कभी न कहा किसी को और न ही खौरही कुतिया ही ....
मगर यह भी सच है कि दोनों के वजूद से इनकार नहीं किया
जा सकता ..इन दिनों भीड़ लिए दोनों किस्में गली गली घर घर विचर रही हैं ....
मगर ये वास्तविक जगत की बात है अंतर्जाल पर भी अगर ऐसा है तो मुझे नहीं पता!
.
जवाब देंहटाएं.
.
सर जी,
फिर एक टाइम-खोटा करती पोस्ट... कैसे 'ब्लॉग वाले' हैं आप ?
इन सब बातों पर परिपक्वता की उम्मीद है सबसे... और इस 'सब' में आप भी शामिल हैं!
आभार!
...
@प्रवीण जी, आप लक्षण(सिम्पटम ) देखते हैं जड़ों(रूट काज ) को नहीं -शिकायत है मुझे! :-)
जवाब देंहटाएंबहरहाल आपने कुछ कहा तो ..शिकायत उनसे हैं जो चोरी से पढ़ भी रहे हैं कुछ कह नहीं रहे हैं :-)
१०४ लोग पढ़ चुके अब तक ...मेरी गलतियाँ तो बताओ यारों!
हाय रे हिन्दी ब्लागवर्ल्ड :)))
जवाब देंहटाएंतकरीबन "२८ जुलाई से लेकर आज" तक , एक व्यक्तिगत शोक/मित्रता के सियापे/अफ़सोस के लम्हों,से गुज़र रहा था सो ब्लॉग्स पर ज्यादा चहलकदमी नहीं कर पाया बस यूँहीं हल्की फुल्की उपस्थिति बनाये रखी! इस दरम्यान आपसे फोन पर चर्चा भी नहीं हुई!
जवाब देंहटाएंइस प्रकरण के डिटेल्स देखता हूं,बहरहाल अभी सिर्फ इतना कि जब आप खुद कह रहे हैं कि आपने किसी पर व्यक्तिगत आक्षेप नहीं किया तो आप पर विश्वास नहीं करने का कोई कारण नहीं बनता! इसके अतिरिक्त प्रवीण शाह जी के अभिमत से हमारी सहमति जानियेगा!
आज फिर से कहाँ से आ गया यह टॉपिक ?
जवाब देंहटाएं'one more feather to your cap'
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआज कई दिनों बाद फुर्सत मिली तो देखा पढ़ा और समझा .
बात का बतंगड़ बनते देखा .
एक अच्छी पोस्ट से ध्यान हट गया .
जवाब देंहटाएं.सब दाद 'खाज' देने पहुंचे....
हा...हा...हा........
मैं भी कहूँ आजकल इतनी खुजली क्यों होने लगी मुझे .....
लाजवाब पोस्ट .....!!
लिए जा रही हूँ .....(पोस्ट)
एक पत्रिका के लिए ....इज़ाज़त है न ....?
वैसे कौन सी मोहतरमा ब्लागरा या ब्लॉग वालियांकहने से नाराज हो गई...?
@Aap bhi n Harkirat ji :-)
जवाब देंहटाएंAap kahen aur ham izajat n den aise to halaat nahin :-)
:)) पता भी दे दें ...फोन न. और ब्लॉग पते के साथ ...
जवाब देंहटाएंतुम भी अहमक के अहमक ही रहोगे अरविन्द
जवाब देंहटाएंतुम्हारे जैसों ने ही इन ब्लॉग चंडियों को सर पर चढ़ा रखा है
इनकी अहमियत खुद ही अकाल म्रत्यु पा सकती है अगर इन्हें भाव देना बंद कर दें तुम्हारे जैसे लोग
हद तो ये भी है कि किसी नासमझ ने अपनी नासमझी दिखाई तो तुम खुद भी उस नासमझी का ढोल पीटने लगे
जवाब देंहटाएंआखिर क्या जरूरत थी यह सब नौटंकी की ? जाने देते उनको अपनी छाती पीटते हुए
एक बात पक्की है
जवाब देंहटाएंना उनको अक्ल आएगी ना तुमको
मिटा दो हटा दो कमेन्ट मेरे और फिर एक पोस्ट लिख मारो बेवकूफों जैसे
जवाब देंहटाएंस्पैम में गया है मेरा एक कमेन्ट ले आओ उसे
जवाब देंहटाएंअब अनारकली डिस्को चली
बड़ी नाखारेवालियाँ, होती हैं तान्गेवालियाँ,
जवाब देंहटाएंकोई तांगेवाली जब रूठ जाती है तो
एक दो तीन हो जाती है!!
/
इग्नोर मारा कीजिये पंडित जी, बेफजूल में टी.आर.पी. बढ़ा दिए आप!!
एक अरसे से आपको जानती हूँ मगर समझा आज ही है। मुझे समझ नही आ रहा किन शब्दों में आपका शुक्रिया कहूं। आपने मेरी आपत्ति पर जरा भी सवाल किये बगैर मेरा नाम अपनी पोस्ट से हटा दिया। शुक्रिया अरविंद जी।
जवाब देंहटाएंयह सब आप के किन्हीं ग्रहों का दोष है..किसी अच्छे पंडित जी को दिखाएँ .
जवाब देंहटाएंहर बार दिव्या मोहतरमा पोस्ट के शीर्षक में आप का नाम ले कर भीड़ इकट्ठा करती रही लेकिन इस बार आप के नाम से भी मजमा जमा नहीं.'शेर आया-शेर आया ' वाली कहानी सिद्ध हो गई.
जवाब देंहटाएंआप का नाम लेना उन्हें भी इतना भाता है या प्रिय है तो उन्हें अपना नाम जपने दिजीए ,आप बस इग्नोर करें.
जो लोग आप को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं और समझते हैं उन्हें आप की किसी सफाई की ज़रूरत नहीं है.
दिव्या स्वयंभू लौह स्त्री लिखती है .
जबकि ब्लॉग जगत में रचना जी के अलावा अन्य कोई भी लौह स्त्री नहीं है .
३० साल पुरानी तस्वीर लगा कर दिव्या किसी को मोहित करना चाहती है तो वंदना गुप्ता पोर्न कविता लिख कर .ये सब अटेंशन सीकर हैं.इन्हें इनके हाल पर छोड़ दें.
जस्ट इग्नोर.
दिव्या के लिए आप एक सोफ्ट टारगेट हैं.ध्यान दें अब वह अमरेन्द्र पर कभी प्रहार नहीं करती.बार-बार आप पर प्रहार करती है क्योंकि आप जवाब देते हैं.उनकी टी आर पी बढ़ती है.
मेरा अनुभव तो यही है कि बतंगडबाजों के यहां मजमा भी ज्यादा लगता है। इसकी का फायदे उठाते हैं तमाम लोग।
जवाब देंहटाएंबाकी इंदिरा गांधी ने भी एक बार कहा था कि जब आपकी आलोचना ज्यादा होने लगे, तो व्यक्ति को यह समझ लेना चाहिए कि वह कुछ कर रहा है।
वैसे इस वक्तव्य को भी निगेटिव एवं पॉजिटिव दोनों रूपों में लिया जा सकता है। :)
............
डायन का तिलिस्म!
हर अदा पर निसार हो जाएँ...
अरे गुरु. काहे नासमझो को समझाने की ट्राई मार रहे हो . उनको तो घर वालियां भी नहीं जमेगा . उनका छोटा सा दिमाग. बहनापा -रूदन से क्या होने वाला है .और भैये उनके यहाँ टिप्पणी दिया करो , नहीं तो किसी दिन , समझ गए ना ? .
जवाब देंहटाएं@स्वागत है और शुक्रिया भी बसन्ती! अब तुम भी इनके गोल में न चली जाना ....ऐसे ही ये लोग भी आयीं थीं शुरू शुरू में आश्रम में ....
जवाब देंहटाएं@अनाम, यद्यपि एक नाम वंदना गुप्ता पर मेरी आपत्ति है क्योकि उनकी रचना में सृजनात्मकता दिखाई देती है ,मगर आपकी टिप्पणी डिलीट नहीं की जा सकती क्योंकि उसमें ऐतिहसिक तथ्य छिपे हैं! :-)....वैसे कहाँ अनुज अमरेन्द्र त्रिपाठी कहाँ मैं? वे तो लक्ष्मण सरीखे हैं मेरे लिए ...बस एक इशारा और सूर्पनखा की नाक कटी थी .... :-)
जवाब देंहटाएं@शानू जी .
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट आपके नाम की जरुरत भी नहीं थी दरअसल .....बिना नामोल्लेख के भी बात पूरी है !
@अल्पना जी: उधर कोई नजूमी मिलेगा क्या ? बात पक्की करिए तो आ ही जायं टिकट कटा कर कुछ दिनों उधर शायद तकदीर बदल जाय! :-)
जवाब देंहटाएं@सलिल जी ,
जवाब देंहटाएंबस आपकी ही याद शिद्दत से आ रही थी ..वैसे आप भी गजब का टिपियाते हैं ! :-)
@सुनो सुनो ब्लागवालियों(वही जो छटांक भर भी नहीं हैं ब्लॉग जगत में !)
जवाब देंहटाएंमुझे मानोपमान की फ़िक्र नहीं है और न ही मैं कोई साफ्ट कार्नर ही हूँ ..और जीवन में जब भी किसी ने कहीं भी
स्त्री या पुरुष ने ब्लैक मेलिंग या डराने धमकाने की कोशिश की मैं स्वभावतः उग्र हो जाता हूँ ....मेरे नियोक्ता, घनिष्ठ मित्र इस बात को जानते हैं ..बेलो द बेल्ट आघात करने वालों को मैं बख्शता नहीं ... और कभी माफ़ भी नहीं करता ...और भले सरल लोगों के लिए पूरा ह्रदय खोल देता हूँ रामभक्त हनुमान की तरह ...मुझे समझने में प्लीज गलतियाँ मत करिए ..रास्ता नापिए ....आगे से बाज आईये इस तरह धृष्टता के लिए .....मेरे विरुद्ध कैम्पेन के लिए ,गुटबंदी के लिए ......गुडी गुडी इमेज नहीं है मेरी ....और न ही सारी एथिक्स का ठीका लिया हूँ और न ही कूटनीति पसंद है ....सहज मनुष्य की तरह मानवीय बनकर रहिये ....अन्यथा जो जीवन पहले से नरक बना है और भी नारकीय बनता जाएगा ....
@महफूज,
जवाब देंहटाएंशुक्रिया बॉस ,तुम्हारे चलते मैं भी महफूज हूँ ....
ब्लॉगरा /ब्लोगवालियाँ सुनने -पढने में अजीब तो लगता है , मगर घोटालों के तले दबी देश की अर्थव्यवस्था , विभिन्न राज्यों से दूसरे राज्य की जनता का पलायन , शोषित होने के बाद गीतिका की आत्महत्या , रिजर्वेशन पर मची मारकाट आदि विषयों पर छोटी- सी प्रतिक्रियां भी ना देने वालों को इन शब्दों पर व्यापक विमर्श करते देखती हूँ तो भी अजीब ही लगता है !
जवाब देंहटाएं@अली भाई,
जवाब देंहटाएंजीवन में हमेशा प्रोफ़ेसर बने रहना ही ठीक नहीं लगता ... :-)
अब इतनी कूटनीति भी ठीक नहीं ,ये सहमत होना क्या होता है ?
मतलब अगर कोई बात गलत भी हो जाय तो वो बंदा जाने जिससे सहमत हुआ गया है ...
अपुन तो तब भी बच ही जायेगें! :-)
@वाणी जी,
जवाब देंहटाएंउसके लिए आप सरीखे संवेदनशील ,उत्तरदायित्व समझने वाले श्रेष्ठ लोग दुनिया में कम हैं क्या ?
हम तो बस ऐसी ही छोटी मोटी बातों में गुजारा कर लेते हैं... :-)
अब साफ़ शफ्फाक टिप्पणी में डिप्लोमेसी नजर आती है तो ये आपके नजरिये की समस्या है , मेरी नहीं !
जवाब देंहटाएंइस शब्द का प्रयोग करने वाले और ऐतराज करने वाले दोनों के लिए ही सन्देश है कि इससे ज़रूरी अन्यान्य और भी विषय है जिनपर चर्चा की जा सकती है .
चिंता मत कीजिये ,डिप्लोमेसी वाली बहुत सी सूचनाओं की पोस्ट प्रतीक्षित है ,साबित हो ही जाएगा कि कौन कितना डिप्लोमेट है . बस समय नहीं मिल रहा है , नेट की समस्या भी है !
जवाब देंहटाएं@करती रहिये वाणी जी युग आपको याद करेगा :-)
जवाब देंहटाएंहम तो क्षणभंगुर प्राणी हैं यह ब्लॉग जगत ही याद नहीं
रख पायेगा ..तो हिसाब किताब भी हमीं को चुकता करना है न?
वैसे आपकी बात अपनी जगहं दुरुस्त है मगर मेरी
मनः स्थिति अभी इन्ही क्षुद्र बातों में लगी है .....इससे उबार जायं तो आपके
उदात्त और सामायिक बातों पर विचार करते हैं ... :-)
इससे पहले वाली टिप्पणी कहा गई?
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंपोस्ट के लेबल्स को देखकर नहीं लगता कि आपको किसी सीरियस टिप्पणी की दरकार होगी :)
मुझे लगा कि आप मेरा हाल चाल / अरे भाई क्या बुरा गुज़रा जैसा सवाल , पूछियेगा :)
प्रवीण शाह जी से सहमत होने को कूटनीति काहे मान रहे हैं !
भाई साहब!देवी और पत्नी सदैव दीर्घ होतीं हैं ह्रस्व नहीं ये "देवि" काहे लिख दिया ,खैर ...लिख दिया सो लिख दिया ...अरे भाई साहब गलत या सही भाषिक प्रयोग नहीं होते स्लेंग से भी भाषा का विकास होता है ,हमारे यहाँ तो मुहावरे हैं ही इस अपभाषा में ,ब्लॉगर शब्द वैसे भी एक संकर नस्ल लिए है हाईब्रीड है ,अब जाट को कुछ लोग जटअंगर भी कह देते हैं ख़ास कर ये यू पी (ऊपी वाले ),जाट तो बुरा नहीं मानते .ध्वनी बढ़िया लगी ब्लोगरा(ब्लोग्रा) शब्द की ,ब्लोगवती लिखिए ब्लॉग वालियों को या फिर लिखिए ब्लोगावती ,भई भाषा है बनारसी. अब इलाहाबादी लोग तो गाली देके हाल पूछते हैं -"कॉ गुरु का हाल बा भौ.... ...ड़ी.के तोसे तो बढ़िया ही है" तो भाई साहब जनपदी है ...तुलसी बुरा न मानिए .....सीते बुरा न मानिए जो तुलसी कह जाए ....कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंram ram bhai
बुधवार, 22 अगस्त 2012
रीढ़ वाला आदमी कहलाइए बिना रीढ़ का नेशनल रोबोट नहीं .
ब्लॉगर करे न चाकरी ,ब्लोगरी करे न काम ,
जवाब देंहटाएंदास ब्लोग्रा कह गए भली करेंगे राम ...कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बुधवार, 22 अगस्त 2012
रीढ़ वाला आदमी कहलाइए बिना रीढ़ का नेशनल रोबोट नहीं .
What Puts The Ache In Headach
वाणी:आपकी कोई भी टिप्पणी अब स्पैम में नहीं है!
जवाब देंहटाएंआप भूल जाने या भूला दिए जाने जैसे कहा है ...आपकी ब्लॉग पोस्ट ही किसको भूलने देगी:)
जवाब देंहटाएंयूँ तो यह पूरी सृष्टि ही क्षणभंगुर है , जो याद रखे जायेंगे , वे सिर्फ हमारे शब्द है , हम किसको कैसी यादें दे , ये तो हम पर निर्भर है !
हर व्यक्ति अपने स्वाभाविक गुणों अवगुणों से ही जाना जाना चाहिए इसलिए मेरी तथाकथित उदात्त और सामयिक टिप्पणियों पर आप समय दे , ऐसी मेरी ना ख्वाहिश है , ना अपेक्षा .
यह आग्रह मेरा खुद से है !
मैं 'ब्लॉगर' बहियन को छोटो ,झगडा केहि विधि निपटाऊं ..|
जवाब देंहटाएंबड़ा सुविधाजनक तरीका हैं पोस्ट लिख दे , सन्दर्भ दे ही ना
जवाब देंहटाएंकमेन्ट था "ये ब्लॉग वालियां ही इतनी हो गयी हैं कि मैनेज करना मुश्किल हो गया है !"
अब सब को देखना चाहिये की किस तरह से ब्लॉग वालियों को मेनज करने की बात की गयी हैं
अब इस पर अगर आपत्ति दर्ज होती हैं तो जिसने की वो "अब लोग अपने आचरण से इन शब्दों को अपने से चिपका लें"
कमाल हैं ना की आप जब चाहे बेहुदे हो जाए और सन्दर्भ ना देकर भ्रम उत्पन्न कर दे
और कुछ महिला bloggar जो केवल कविता किस्सा कहानी लिखती हैं उनकी आड़ ले कर / उनके कंधे पर बन्दूक रख कर आप अपना खेल खेले
अमित जी ने अपना कमेन्ट मिटा दिया
वो आप से फ़ोन नंबर मांग रहे थे उन ब्लॉग वालियों के जिनको आप मैनेज नहीं कर पा रहे थे
हिंदी ब्लॉग लिखने वाले हिंदी कब समझेगे पता नहीं , वाडनेकर जी से कहे वो आकर आप के कमेन्ट को सही करार दे दे हम भी मान जायेगे की आप को हिंदी का ज्ञान हैं
ये कूण से "अमित जी" के बात है जिनने टिपण्णी मिटाई ?????? हमने तो ना मिटाई !!!!
जवाब देंहटाएंअमित श्रीवास्तव
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी ये कैसे पता चल रहा है कि इस वाली पोस्ट पर कितने पाठक आगये है और कितने बिना टिपण्णी किये चले गए है......?
जवाब देंहटाएंबाकि तो खूब चर्चा हो ही ली है...!
कुँवर जी,
@अमित जी,
जवाब देंहटाएंवे अमित जी दूसरे हैं और यह वाद हेतु वहीं से आरम्भ हुआ :-)
यह लिंक- http://amit-nivedit.blogspot.in/2012/08/blog-post_18.html
हाँ उन्होंने अपनी एक टिप्पणी मिटा दी जो उन्हें मिटानी नहीं चाहिए थी .
हर ब्लॉगर का अपना विवेकाधिकार है मगर मैं इस तरह की बन्दर घुड़कियों का
विरोध करता हूँ -अभिव्यक्ति पर टीका टिप्पणी नाकाबिले बर्दाश्त है ...और वह भी उन लोगों द्वारा
जिन्हें भाषा और भाव का ज्ञान भी नहीं है .....जो हिन्दी सेवी नहीं बल्कि हिन्दी पोषित हैं और हिन्दी के नाम पर रोजी रोटी
खाते आये हैं!हम न हिन्दी ज्ञानी होने का दंभ रखते हैं और न ही हिन्दी की रोजी रोटी पर पले बढे हैं !
@कुंवर जी ,
जवाब देंहटाएंब्लॉगर डैशबोर्ड पर जाईये ..'पोस्ट' आप्शन सेलेक्ट कीजिये ....आपके सभी पोस्ट का विवरण वहां हैं कितनी टिप्पणी कितने लोग देखे ...जैसे इस पोस्ट पर अब तक २९५ लोग आ चुके हैं और ५७ टिप्पणियाँ दिख रही हैं !
सियावर राम चन्द्र की जय |
जवाब देंहटाएंनहीं नहीं -
दूसरे तरीके से-
राम बधू सिया चरण में जय -
कथा समाप्त-
प्रसाद लेव लै ||
मुझे लगता है आपकी हालत RSS (संघ) सरीखी हो रही है, बचिए इन सबसे ............ संघ के सारे प्रकल्प दबे से रहते है और मुस्लिम विरोधी छवि ज्यादा उभरकर आती है .
जवाब देंहटाएंअब हम ठहरे जंगल के मनई, हल्ला हुआ कि वहाँ पंगा हुआ है ...सो हम भी दौड़े चले आये ....अरे भाई का हुइ गवा तनिक जानी त सही...ईहै त हमार गँवई सुभाओ हओ। भाव सम्प्रेषण में विविधता ..और इस विविधता में नित नवीनता .....ई हओ सुभाओ है मनई का। तबहिन न नवा-नवा शब्द रचना से भाषा के भण्डार समृद्ध होई। नव शब्द रचना के कुच्छौ प्रेरक कारक बने पर प्रतिबन्ध असम्भव हओ। तथापि इहो ध्यातव्य हओ के कौनो दुर्भावना से प्रेरित होके कौनो नवा शब्द रचना करे से विवाद होय के पूरा-पूरा सम्भावना हओ। भाषा में ओही नवाशब्द प्रचलन में आई जवन निर्विवादित होई अऊ जन सामान्य से स्वीकृत होई।
जवाब देंहटाएंएक बार पहले पढ़ के जाने वालों में मैं भी हूँ..... क्या कहा जाय ? कोई भी विवाद अंतत ब्लॉग्गिंग और इससे जुड़े लोगों की रचनात्मक सोच को ही प्रभावित करते हैं....
जवाब देंहटाएंडॉ.मोनिका शर्मा जी,
जवाब देंहटाएंयह बात आपने पाजिटिव सेन्स में कही है या निगेटिव ... :-)
दरअसल हिन्दी पट्टी के नुमायिन्दों की एक कमजोर नस यह है कि
वे अपना एक गुडी गुडी इमेज बनाए रखना चाहते हैं जबकि होते वैसे नहीं ..
बिचारे इसी डर से अधमरे बने रहते हैं कि कोई उन्हें कभी कुछ कह न दे !
इसलिए वाद विवाद में भी नहीं फसना चाहते -आँख नीची किये खिसक लेते हैं ..
मगर इन्हें कौन समझाए कि इज्जत बचाने में अक्सर इज्जतें चली भी जाती हैं ..
सो बिंदास रहो .....अपने को खुलकर अभिव्यक्त करो ..मन में हो जो कह डालो ....
कौशलेन्द्र,
जवाब देंहटाएंअरे यार तू त भैवा अपने जार जवार का भाषा बोलत हय हो -कहवाँ क हय भाय ?
post padhke tippani na karne-walon ko kabhi-kisi counter-part ne 'chor'
जवाब देंहटाएंkaha tha......aaj aap bhi ginti kar
ke batlete hue ysaich hi kuch jata
diya......
vimarsh-aur-samvad me tippani-prati-tippani sakaratmak mani jati hai. iske viprit vad-vivad me nahle pe dahla 'nakaramak' mani jati hai....
aapke panditya-o-prabudhata pe koi shak nahi.......lekin kai baar shabd ke chayan aapke bhav-o-gyan ke pratikool hota hai..........
wale/waliyan ke dwara hi duniya ek dusre ko sambodhit karta hai....ye to koi mudda hi nahi......lekin mudde ko dhoondhne walon/waliyon ke najar-e-inayat karne ke liye pahle post-phir-tippani ki barsat kar use garm kar rakhna? kya hai??
aapki poori post-cha-tippani me ashamati 'kisi ko kisi se sahmati jatane ko'....."kootniti" kahna "harsh" laga........
hum aapke prashanshak-anugami hain
gar galat lage to 'banaras-ghat pe bula ke kan ke niche 2 kantap laga dena'.......
@ 'aarya'..amitji ke r.s.s wale tippani pe joroor dijiyega.....
pranam.
oh, it appears that the hindi blogwood has gone to the dogs, or is it bitches, mr. mishra?
जवाब देंहटाएं@Both Anom!
जवाब देंहटाएं@संजय, ३७८ लोग आज २३ अगस्त ,पौने दो बजे दोपहर तक पढ़ चुके हैं मगर बिना कुछ कहे बिना चलता बने -आज एक ठो पोस्ट और डाले हैं अपनी व्यथा कथा का मगर उहाँ भी वही हाल है -अब तक आये ३७,टिपियाये केवल ३ ! बड़ी बेइंसाफी है यह :-) न जाने यी ब्लॉग ज़माने को किसकी बद्दुआ लग गयी :-(
@एक ज़माना था ऐसी पोस्टों पर लोग टूट कर टूट पड़ते थे .....सब कुछ ख़त्म हुआ ..अब तो हिन्दी ब्लॉग जगत की अर्थी उठाने का समय आ गया है -विरुदावली और रुदाली दोनों गए... सियापा छाया है यहाँ !
जवाब देंहटाएंमेरे विरुद्ध कैम्पेन के लिए ,गुटबंदी के लिए ......गुडी गुडी इमेज नहीं है मेरी ....और न ही सारी एथिक्स का ठीका लिया हूँ और न ही कूटनीति पसंद है ....सहज मनुष्य की तरह मानवीय बनकर रहिये ....अन्यथा जो जीवन पहले से नरक बना है और भी नारकीय बनता जाएगा ....
जवाब देंहटाएंआपके इस कमेन्ट को पढने के बाद कुछ और प्रतिक्रया मेरे तरफ से बाक़ी शेष नही बचती
इमेज का क्या अचार डालना है कुछ लोग अपने जीवन से इतने कुंठित है कि उसकी भड़ास हर जगह निकालते रहते है जहा तक ब्लागवालिया शब्द का प्रश्न है अपभ्रंश अवश्य है पूर्वांचल के इस शब्द को कही गलती से बगलवाली की तरह तो नहीं ले लिया गया
शांत हो जाइए आप तो जीव विज्ञान के छात्र रहे है प्रतिक्रया देने वाली व उनके समधर्मी लोगो का हो सकता है वयः संधि का हार्मोनलअसंतुलन चल रहा हो यानी केमिकल लोचा हो गया हो इस आभासी दुनिया में किसी का हार्मोनल असंतुलन तो आप चेक नही कर सकते हार्मोनल असंतुलन से इमोशनल व बिहैविअर चेंज तो आते ही है माफ़ कीजिएगा जानबूझ कर चिकित्सकीय शब्दावली का प्रयोग किया बात स्पष्ट करने के लिए अतः इन विवादों पर धूल डालिये क्षमा कर दीजिये ये नही जानते कि ये क्या कर रहे है
वो कहावत भी अच्छी है न - रोने का मन तो आँख में चुभाओ काँटा.. इसलिए जिसको ऐसा करना है , करने दे..चलिए आपने बहुत ही बढ़िया बांटा..
जवाब देंहटाएंवयः संधि का हार्मोनलअसंतुलन
जवाब देंहटाएं@arun prakash
आप सही कह रहे हैं , काश आप ने पहला कमेन्ट दे कर कह दिया होता हैं की ये सब मेल मीनोपौज के लक्ष्ण हैं बाकी लोगो का समय बच जाता
विरोध करने वाले भी अगर आप की बात पढ़ रहे होंगे तो आगे से ध्यान रखेगे