एक अजूबा है. वैज्ञानिकों के एक दल ने ऐसे अकेले व्हेल (नर या मादा पता नहीं) का पता पा लिया है जिसे आज तक कोई संगी साथी नहीं मिला और वह सात समुद्रों तक उनकी तलाश में दर दर भटक रही है ...कारण है उसका प्रणय राग जिसका तरंग दैर्ध्य इतना ज्यादा -५२ हर्टज( ध्वनि की तीव्रता का पैमाना ) है कि कोई भी दीगर व्हेल उसे सुन ही नहीं सकती ....इसलिए वह बिचारी सारी दुनिया के सागरों में अपना संगी साथी ढूंढ रही है ..मीत ना मिला न कोई की तान छेड़े हुए ....वैज्ञानिक भी परेशान कि आखिर उसे किसी साथी से मिलाये तो कैसे ...इतने भारी भरकम जीव के साथ इंतजाम भी भारी भरकम हो तो बात बने मगर ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है -दूसरी मुसीबत यह कि यह अज्ञात प्रजाति की अकेली व्हेल दिखी है -मतलब अब तक इसके प्रजाति की पहचान नहीं हो पायी है .वैज्ञानिक भी चकराए हुए हैं कि आखिर यह आयी कहाँ से?
Photo credit: USGS/National Biological Information
अपने प्रजाति (जिसका अता पता नहीं है अब तक ) से अलग थलग पडी इस व्हेल का मानो जाति निकाला हो गया हो ....और अब तो यह उनसे या किसी अन्य व्हेल प्रजाति से संवाद भी कायम नहीं कर पा रही है -इसके प्रणय राग अब अरण्य रोदन बन बैठे हैं . कोई सुनने वाला नहीं मगर यह भी अपनी धुन की ऐसी पक्की कि अपनी विरह राग छेड़े हुए सागर सागर एक किये हुए है ...कभी तो मिलेगा मन का मीत .....सबसे पहले यह अमेरिकी नेवी के अफसरों को १९८९ में दिखी जब उन्होंने अपने श्रव्य उपकरणों पर एक अजीब सी फ्रीक्वेंसी की आवाजें सुनी.जहां दूसरी व्हेलें १५-२५ हर्ट्ज़ पर ताने छेड़ती हैं इसका इतना ऊंचा तान -तरंग दैर्ध्य होना वैज्ञानिकों को हैरत में डाले हुए है . ब्ल्यू व्हेल तो काफी कम तरंग दैर्ध्य -पियानो के करीब करीब राग छेड़ती है.
वैज्ञानिक वैसे तो इसकी इस बिल्कुल यूनीक आवाज के चलते इसे आराम से सागर सागर ढूंढ ले रहे हैं मगर वे असहाय भी हो चले हैं कि इसका कोई जीवन संगी आखिर कैसे ढूंढ लायें . कैसे इसका चिर अकेलापन दूर करें ....अभी तक उन्हें यही पता नहीं लग पाया है कि इस व्हेल की संवाद और सामुद्रिक संचार में असमर्थता का कारण क्या है? क्या यह कोई आकस्मिक वर्ण संकर उत्पत्ति तो नहीं है जो अपने भिन्न माँ और पिता प्रजाति से बिल्कुल अलग व्यवहार प्रदर्शन कर रही हो जिसमें यह विशिष्ट तरंगदैर्ध्य की तान भी सम्मिलित है ? एक जीव -भाषा विज्ञानी का तो कहना है कि यह शायद उससे भी ज्यादा दुखियारी है जितना हम समझ रहे हैं और अनन्त सागर में टूटा दिल लिए विचर रही है . सागर का कोई कोना शायद अब इसका होना नसीब नहीं है ....आप सामान्य और इस दुखियारी व्हेल का प्रणय राग यहाँ जाकर सुन सकते हैं ....
हम मानव प्रजाति में भी कितनों की व्यथा कथा भी कुछ ऐसी ही है -विस्तृत नभ का कोई कोना मेरा न कभी अपना होना ,उमड़ी कल थी मिट आज चली मैं नीर भरी दुःख की बदली ...मशहूर कवयित्री के उदगार तो ऐसे ही लगते हैं ....आईये हम इस व्हेल के लिए दुआ करें!
ऐसे अकेले व्हेल (नर या मादा पता नहीं) का पता पा लिया है
जवाब देंहटाएंवह सात समुद्रों तक उनकी तलाश में दर दर भटक रही है
उफ़ इतनी त्रुटियाँ
अकेला
पा लिया
भटक रही
साइंस के नाम पर जो चाहे कहले , विषय वही रहेगा , मादा विलाप
@यह पोस्ट जेंडर न्यूट्रल है पाठक गण कृपया नोट कर लें ..
जवाब देंहटाएंकिसी नारी की भावनाओं को आहत करने को लक्षित नहीं ..
दुआ कर रहे हैं जी इस व्हेल\व्हेला\व्हेली whatsoever it is, के लिए|
जवाब देंहटाएंकुछ साल पहले अपनी प्रजाति के एक अकेले ज्ञात कच्छप महाराज के लिए भी वैज्ञानिकों की चिंता डिस्कवरी चैनल पर देखी थी, उनका पता नहीं क्या हुआ| किसी साथी के अभाव में सेक्सुअल संतुष्टि के लिए प्रकृति इन जीवों के लिए भी कुछ रास्ता छोड़ती ही होगी, लेकिन एक species का विलुप्त हो जाना चिंता का विषय तो है ही|
@संजय जी ,
जवाब देंहटाएंयह भी हो सकता है यह विलुप्तप्राय न होकर अभी तक न खोजी जा सकी प्रजाति की पहली प्रतिनिधि हो जो जाति विछोह का शिकार हो भटक गयी हो!
यह बहुत ही आश्चर्य का विषय है कि ऐसी मछली भी है जो असीम-सागर में अपना प्रणय-साथी ढूँढने में विफल रही है.उसके दिल की आवाज़ इतनी मंद है कि कोई सुन नहीं पा रहा है.मैं दावे के साथ कहता हूँ,यदि यह थलचर होती तो बहुत ही समर्पित-प्रेम वाली होती.प्रेम ज़ोर से चिल्लाकर बताने वाला विषय नहीं है,महसूसने वाला है,पर अभी जलचरों ने यह समझ पूर्णतया विकसित नहीं की है.
जवाब देंहटाएं...यह मादा-विलाप या नर-विलाप नहीं बल्कि स्वभावगत या संरचनागत कमी है.हमें उस व्हेल से सहानुभूति है.मेरी सारी दुआएँ उसके साथ हैं.
@संतोष जी,
जवाब देंहटाएंक्या बात है किसी और की याद आ गयी क्या ?
एक बात यह भी बता दूं व्हेल मछली नहीं हमारी ही तरह स्तनपोषी है ....
अपने बच्चों को मानव मादा की तरह चुचूकों से दूध पिलाती है -
और ज़ाहिर है इसलिए हमारी संवेदनाएं उससे कुछ ज्यादा ही घनी होकर जुड़ रही हैं ...
आपकी तो मैं भी महसूस कर रहा हूँ!
यहां... गया सुन नहीं पाया।:(
जवाब देंहटाएंवे आदमी की तरह थोड़े ही गाती हैं देवेन्द्र जी ..जो सुन पाए वही है ..कुछ और लिंक दिए हैं दूसरी व्हेलों के जिनकी पिच नीचे है -उन्हें सुने ..पक्का सुनायी देगा !
जवाब देंहटाएंप्रकृति हमेशा नए-नए विषयों के साथ हमें यूँ ही चौंकाती रहती है और हमारी सीमा भी बताती रहती है कि हम कितना जानते हैं..? वैसे जिसतरह आपने व्हेल का दर्द साझा किया है संवेदनशील होना स्वभाविक है .
जवाब देंहटाएंकहीं मिले तो बोलियेगा -- यूँ अकेले न फिर करो , ज़माना ख़राब है .
जवाब देंहटाएंये जेंडर न्यूट्रल लोग आजकल के अजूबे ही हैं . :)
आपके ब्लॉग पर मुझे पहुचने में देर हुई इसका दुःख है आपकी सारी पोस्ट का नियमित पठन कर इस विलम्ब की भरपाई करूँगा .बेहतरीन ब्लॉग.लिखते रहें
जवाब देंहटाएंप्रकृति के अनोखे खेल का खुबसूरत अंकन बधाई
जवाब देंहटाएंरोचक तथ्य, मजेदार प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंईले ईले पौ पौ
जवाब देंहटाएंनूतन जानकारी मिली.
जवाब देंहटाएंन जाने सागर के गर्भ में कितने और नए जीव और नयी प्रजातियां छुपी हैं.
शीर्षक काव्यात्मक है.पोस्ट भी प्रभावित लगती है.
नगरी नगरी द्वारे द्वारे ढूंढूं रे सांवरिया .......:))
जवाब देंहटाएंबेनामी जी बहुत दिनों बाद आये .....:))
जवाब देंहटाएंआपसे ख़ास लगाव लग रहा है ...:))
हरकीरत जी वैसे आप भी सदियों बाद पधारी हैं -ऊपर अनामी ने उस वेब फ्रीक्वेंसी का जिक्र किया है मगर यह एक नर बिचारा है .... :-)
जवाब देंहटाएंजब ये इतने साल से यूं ही निरर्थक पगलाई घूम रही है तो इस व्हेल को भी एक ब्लॉग खुलवा ही देना चाहिये ...
जवाब देंहटाएंकोई तो होगा मेरा साथी कोई तो साथ में आयेगा ।
जवाब देंहटाएंव्हेल के इस नई प्रजाती के बारे में और जानकारी मिलने से जरूर दीजीयेगा ।
व्हेल की नई प्रजाति की रोचक जानकारी ...
जवाब देंहटाएंइस संसार के बारे में बहुत कुछ जाना जा चुका है , मगर इससे ज्यादा अभी गोपन है , नई खोजें मानव या पशु -पक्षी की प्रजातियों , समुदाय या प्राकृतिक जल अथवा थल स्थानों की खोज अक्सर यही साबित करती है .
"पी कहाँ" के आदि काल से चले आ रहे विलाप के बाद साहित्य में विरह का एक नया अध्याय!!
जवाब देंहटाएंअनूठी जानकारी. आशा है विज्ञान इसके लिए यथाशीघ्र कोई समाधान धुंध पाए...
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी
जवाब देंहटाएंऐसे लेख कम ही पढने को मिलते हैं
लगभग यही तो बिजली की आवृत्ति भी है..
जवाब देंहटाएंप्रकृति के खेल हैं !
जवाब देंहटाएंप्रभु की माया :)