गुरुवार, 30 अगस्त 2012

सम्मान को लेकर छिड़ी जंग


अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मलेन और परिकल्पना सम्मानों को लेकर छिड़ी जंग रोचक हो चली है, जिसके अधिष्ठाता अपने अनूप शुक्ल फ़ुरसतिया जी हैं .उनके अनुसार एक बहुत बड़ा कलयुगी अन्याय घट चुका है ....और कई तरह के पापों जैसे गो हत्या द्विज हत्या सरीखे  दोख परिकल्पना सम्मान के आयोजकों पर लग चुके हैं ....अब चूंकि उस सम्मान में मैं शरीक ही नहीं हुआ बल्कि मंचासीन भी हुआ तो मुझे भी पाप का स्पर्श हो गया सा लगता है जिसके निवारण हेतु यह पोस्ट लिख रहा हूँ -आदि और आद्यांत शक्तियां हमारा कल्याण करें ....और यह पोस्ट पूरी करने में मदद करें ....
किसी भी विधा -उपविधा के तनिक भी पुष्पित -पल्लवित होते ही उनसे जुड़े उत्सव रूपायित होने लगते हैं ....श्रेय कोई ले ले ...मगर यह एक ऐसा ऐतिहासिक /बाजारू दबाव है जो चरितार्थ हो ही जाता है ....रवीन्द्र प्रभात न होते तो कोई और होता और नाम परिकल्पना के बजाय संकल्पना होता ....ऐसे जुटावडे एक विधा से जुड़े समानधर्मा लोगों के मिलने जुलने ,बतकही ,हंगामे  -मौज मस्ती के रूप में तब्दील होते आये हैं -इन्ही के पार्श्व में कई सुकोमल भावनाएं भी आलोड़ित हो लेती  हैं और कुछ जरुरी गैर जरुरी प्रेम कथायें भी जन्म ले लेती हैं दुर्गा पूजा पंडालों ,डानडिया  की ही तर्ज पर   .....और अब तो ऐसे आयोजनों में खूब पुरस्कार सम्मान भी बाटे जाते हैं -जो अपनों के लिए अपनों के द्वारा अपनों के जरिये दिए लिए जाते हैं और यह एक वैश्विक कल्चर बन चुका है -अच्छा या बुरा यह अलग बात है और अगर आप इस वैश्विक ट्रेंड से परिचित हैं तो  मेरी तरह एक विज्ञ उलूक सा मुस्करा कर रह जाते हैं मगर  व्यंग विधा के पुरोधा उसी पर जंग छेड़ देते हैं .....यह हिन्दी ब्लॉग दुनियां में  व्यापक दृष्टि ,सहिष्णुता  और जानकारी के अभाव की भी पोल खोलता है ....अब परिकल्पना सम्मान की सूची पर आप नज़र डालें तो यह आपको भान हो जाएगा कि ये सारे सम्मानित  लोग तो ब्लॉगर ही हैं अपनी बिरादरी के ही हैं ..फिर इतना क्षोभ ,इतनी पीड़ा आखिर क्यों ? इससे तो यही लगता है कि खुद का निगलेक्ट होना ही लोगों को कचोट रहा है ..
इन सम्मानों की अंतर्कथा का एक रोचक पहलू यह भी है कि जब तक नहीं मिला रहता लोग उसकी आलोचना करते रहते हैं ..जब एक दिन उन्हें खुद मिल जाता है तो चुपके से कांख में (धर्मग्रन्थ की)  पोथी की तरह दबाये पतली गली से चल देते हैं ....सारी स्वकीया आलोचनाओं को क्षण भर में विस्मृत कर ..... :-) आलोचनायें तभी तक बुलंद रहती हैं जब तक एक दिन हमें  खुद ही वही सम्मान नहीं मिल जाता  :-) ..मगर कुछ और सत्याग्रही किस्म के लोग भी होते हैं जो पहले तो सम्मान मिलने की लाबीयिंग करायेगें और जब मिल जाएगा तो बहुत बड़ा सार्त्र सरीखा व्यक्तित्व बन उसे ठुकरा देगें ......
चमचमाता परिकल्पना सम्मान मेडल -किसी ने कहा हिन्दी ब्लागिंग का आस्कर 
मैं हमेशा से युवाओं को पुरस्कार/सम्मान  देने के पक्ष में रहता हूँ -मेडल की चमक से  वे उत्साहित होकर कुछ कर जाते हैं ....थकी चुकी प्रतिभाओं को पुरस्कार देना किसी भी लिहाज से न तो सम्बन्धित विधा या समाज के लिए लाभकर होता है -जो वास्तव में ऐसे सम्मान डिजर्व करते हैं उनके लिए तो ये सचमुच बेकार ही होते हैं क्योकि वे पुरस्कार के मुन्तज़िर नहीं होते -ऐसे कई अपने क्षेत्रों के पुरोधा लोगों ने सम्मान और खासकर सरकारी सम्मान तक को वापस कर दिया है ....नोबेल तक वापस हो गए ...नोबेल सम्मान जो १९०१ से शुरू हुए और एक चमकते मेडल के अलावा काफी बड़ी राशि देने को प्रतिबद्ध होते हैं  किसी के द्वारा इन्कारा भी जा सकता है ,हैरत की बात है . और यहाँ एक छोटे से सम्मान को लेकर हाय तोबा मची हुयी है . मगर सच पूछिए तो सम्मान कोई भी छोटा नहीं होता वह लोगों के किंचित (संचित नहीं )  सत्कर्मों की एक अनुशंसा भर ही होते हैं एक टोकेन मात्र  .बच्चे तो मेडल पाकर एक ऊर्जा और संकल्प से भर जाते हैं ...सम्मानों की फेहरिस्त में लोगों की कल्पनाओं में बस जाने वाला बहु-समानित आस्कर आवार्ड है जो १९२७ से अकैडमी आफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड सायिन्सेज के द्वारा दिया जाता रहा है .और फिर उसके बाद तो ग्रैमीज  आदि हैं जो हर वर्ष जलसों में दिए लिए जाते हैं ,विवादित भी होते हैं मगर जो विवाद करते हैं वे भी एक दिन इसे हथिया कर चुप्पी साध  लेते हैं ..और फिर सहसा ही अमुक अवार्ड उनके लिए बहुत प्रतिष्ठित हो जाता है .
अब आईये परिकल्पना सम्मान पर -जो सम्मान ब्लागिंग के पुरोधा सर्वश्री रवि रतलामी जी ,समीर लाल और बी एस पाबला थाम चुके हों वह  अब ऐसे ही हंसी ठट्ठे का विषय नहीं बनाया जा सकता ..अब ज्ञानदत्त पाण्डेय जी भी न सुन रहे हों तो कृपया सादर सुन लें .....क्योकि कहीं उन्होंने यह कहा कि अरे फिर कोई सम्मान समारोह हो गया? अब तो परिकल्पना सम्मान खुद ही समादृत हो गया है ....और रवीन्द्र प्रभात जी की गले की हड्डी बन गया है ...रुष्ट तुष्ट दोनों तरह के लोग अब उनकी जान के दुश्मन बने रहगें --वे  आगे संसाधन कैसे जुटायेगें,इतना बड़ा ताम झाम कैसे सर अंजाम देगें मेरी  संवेदना इसे लेकर है ---हाँ अगली बार एक परिकल्पना सम्मान का जुगाड़ तो विरोधियों ने कर ही लिया है .....अब यह न कह देना कि हम थूकते हैं ऐसे सम्मान पर ....चुप हो बैठिये ..जन स्मृतियाँ बहुत ही अल्पकालिक होती हैं अगले साल किसे याद रहेगा कि आपने विरोध का झंडा बुलंद किया था -हम चुपके से आपको पकड़ा देगें ..और आप दाब कर निकल आयियेगा और घर दुआर के अखबार में धांस के छपवाके पुजवायियेगा :-) है न शुकुल जी :-) 

53 टिप्‍पणियां:



  1. LUCKNOW: Hindi bloggers are now getting their place in the sun. Drawn from India and the rest of the world, they will be honoured in Lucknow on August 27 for popularising the language in cyberspace.

    Parikalpana, a bloggers' organisation, would confer the awards on 51 persons during an international bloggers' conclave at the Rai Umanath Bali auditorium here, said Ravindra Prabhat, the organising committee's convenor.

    The participants, some of whom also blog in English and Urdu, have made Hindi popular in the United States, the United Kingdom, the United Arab Emirates, Canada, Germany and Mauritius.

    "The blogger of the decade prize would be conferred on Bhopal's Ravi Ratlami who has a huge following," added Prabhat, a noted Hindi blogger.

    The NRI bloggers who have confirmed their participation include Dr Poornima Burman, editor of Abhivyakti (an online book in Hindi published from Sharjah) and the Toronto-based Samir Lal 'Samir' who writes blogs in Hindi and English.

    London-based journalist Shikha Varshneya, a regular blogger who has written a book 'Russia in Memory', is also expected to attend the ceremony. The others include Sudha Bhargava (USA), Anita Kapoor (London), Baboosha Kohli (London), Mukesh Kumar Sinha (Jharkhand) and Rae Bareli's Santosh Trivedi, an engineer who left his job with the Uttar Pradesh Power Corporation Ltd, for blogging.

    Avinash Vachaspati, the author of the first book on Hindi blogging in India and DS Pawala (Bokaro), the first to start Hindi blogging in India would also be there as would multi-lingual blogger Ismat Zaidi, who writes in Hindi, Urdu and English. Her Urdu ghazals are a hit on the web.

    Asgar Wajahat and Shesh Narayan Singh are also expected to participate, but a confirmation is awaited.

    The bloggers would discuss the future of the new media, its contribution to the society, especially the future of Hindi blogging and its role in the days to come.

    ---
    this is the news in ht dated 8th august lucknow edition

    santosh trevedi left his job for bloging REALLY ???

    avinash vachaspati wrote the first book on hindi bloging REALLY ??

    DS Pawala (Bokaro), the first to start Hindi blogging in India REALLY ??


    DONT YOU THINK ITS HIGH TIME WE FIRST PUT THE FACTS RIGHT

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  2. @रचना:मुद्रण माध्यमों की ऐसी असावधान गलतियां नयी नहीं हैं और कभी कभार जानबूझ कर भी की जाती हैं ...
    आपने ध्यानार्थ ला ही दिया -धन्यवाद!

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  3. जो इस सम्मलेन को कलियुगी अन्याय मान रहे है वे कोई दूसरा न्यायपूर्ण सम्मलेन अपने खर्चे पर तो करके दिखाए !!

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  4. क्या मंच पर बैठ कर आप में एक बार भी इन बातो की निंदा की , क्या ब्लॉग पुरूस्कार के बहाने आप भी कुछ ब्लोगर का अपमान करने में सहायक नहीं हुए , हिंदी के पहले ब्लोग्गर जो हैं या जिनकी पहली किताब आयी
    अब कृपा कर के ये ना कहे की मुझे वहाँ आकर अपनी बात कहनी चाहिये थी , क्यूंकि जो वहाँ थे क्या महज पुरूस्कार के लिये गए थे या हिंदी ब्लोगिंग को आगे ले जाने के लिये गए थे

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  5. रचना:…अखबार वाले ने यह सब अनाप शनाप छाप दिया है -उस दिन तो ऐसी कोई बात तो मेरे सामने नहीं आई....अब विरोध करता हूँ -
    ख़बरों को जिम्मेदारी से देना और छापना चाहिए ..
    यहाँ मेरी पोस्ट का मुद्दा अलग है!

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  6. भाईश्री, अपन तो इस झमेले से कब के दूर हो चुके है. पुरस्कार वगेरे हमने भी कभी दिये थे. मगर अफसोस होता है जब ब्लॉगिंग की बात करने वाले ब्लॉगरी का इतिहास नहीं जानते.

    और अगर वहाँ ब्लॉगरों को लम्पट कहा गया था तो यह आपका हमारा हम सबका अपमान था.

    ब्लॉगिंग की शरूआत नेट पर अंग्रेजी के समक्ष हिन्दी को खड़ा करने के लिए हुई थी और तब युनिकोड में इतनी आसानी से लिख भी नहीं सकते थे. तब के सच्चे पुरोधा लम्पट तो नहीं रहे होंगे.

    वैसे इस तरह के आयोजन करना हँसी खेल नहीं. प्रयास चलते रहे. आलोचनाओं का अपना स्थान है. इनका भी सम्मान होना चाहिए. :)

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  7. @संजय बेगाणी जी ,
    सहमत हूँ! पर्याप्त है न इतना ही कहना!
    चलिए यह भी जोड़ना है कि
    अभी भी कोई बड़ा गुनाह नहीं हुआ है -जिम्मेदार लोग दूर होते जायेगें ब्लागिंग से जुड़े पहलुओं से तो यह
    कहीं उनका भी दोष है ! आईये हम कुछ ठोस करें

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  8. मिसिरजी,
    मुझे अफ़सोस है कि आपको यह समझा नहीं पाया कि जो मैंने लिखा वह इसलिये नहीं लिखा कि हमको इनाम के काबिल नहीं समझा गया। हम वास्तव में इस काबिल हैं भी नहीं कि मुझे परिकल्पना सम्मान मिले। लेकिन हमें यह सच में चाहिये भी नहीं। चाहते तो कम से कम इस इनाम और उसके आयोजकों के खिलाफ़ न लिखते रहते।

    जो बातें मैंने लिखीं अपनी पोस्ट में उनके आप बिन्दुवार जबाब देते तब मजा आता। अब आपकी इन बातों क्या जबाब दें जो आपके अपने मन की उपज हैं।

    आपने लिखा-हम चुपके से आपको पकड़ा देगें ..और आप दाब कर निकल आयियेगा और घर दुआर के अखबार में धांस के छपवाके पुजवायियेगा :-) है न शुकुल जी :-)
    उसके जबाब में हम वही दोहराना चाहते हैं जो कि हम पहले ही आपको लिख चुके हैं-जरा नेट ऊट खड़खड़ा के देख लीजिये। जब परिकल्पना सम्मान के बतासे बटने भी नहीं शुरु हुये थे तब हमको किसी रायपुर की किसी संस्था ने सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर सम्मान देने की घोषणा की थी। अपन ने रिजर्वेशन भी करा लिया था। लेकिन जब पता लगा कि वहां भी टाफ़ी-कम्पट की तरह ही इनाम बंटने हैं तो रिजर्वेशन कैंसल करवा लिये। पूरे अस्सी रुपये का चूना लगा।
    उस सम्मान की सूचना के लिये ये कड़ी देखिये

    ये इनाम ठुकरा कर हम कोई सात्र नहीं हो गये। लेकिन उस समय लगा कि हम केवल एक जमावड़े का हिस्सा होंगे इसलिये नहीं गये।

    हमारी जो शिकायत है इस तरह के इनामी आयोजनों से वह मैंने अपनी पोस्ट में लिखी भी है- हालांकि ब्लॉगिंग कोई छुई-मुई विधा नहीं है कि कोई इस पर कब्जा कर ले। लेकिन जिस तरह यह सम्मानित करने की पृवत्ति पनप रही है उससे लगता है भाई लोग आने-वाले समय में हिन्दी ब्लॉगिंग की पीठों-गद्दियों पर मंहत बनकर कब्जा करने के इंतजाम में जुट गये हैं। भले-भोले आपस में साथी ब्लॉगरों से रूबरू होने मिलने-मिलाने की सहज मानवीय पृवत्तियों के चलते जमावड़े के रूप में इस्तेमाल किये जाने लगे हैं।

    किसी की बात को यह कहकर खारिज कर देना सबसे आसान काम है कि उसको इनाम नहीं मिला इसलिये बौखलाया घूम रहा है। लेकिन जो सवाल मैंने उठाये हैं बताइये उनमें से क्या गलत है?

    यह हमारी बात है। आप इसे समझ सकें तो बेहतर। न समझें तो और बेहतर।

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  9. इसी विषय से जुड़ी किसी पोस्ट पर पहले कह चुका हूँ फिर वही कहूँगा. ऐसे आयोजनों सम्मेलनों का अपना महत्व है. लोग एक रूचि से जुड़े लोग मिलें-जुलें, सार्थक चर्चा हो जाए इससे अच्छा और क्या हो सकता है.. हाँ ईनाम, पुरस्कार वगैरह के मामले में मैं भी नकारात्मक विचार रखता हूँ. क्योंकि इनमें फिर लफड़ा वही है- चयन प्रक्रिया और एलिजिबिलिटी का.
    ऐसा क्यों कि जो शुद्ध हिन्दी में साहित्य और कडा व्यंग्य और साल में सौ-दो सौ पोस्ट ठेल रहे हों और जिनके दो-चार सौ भक्त हों उन्हें ही महान ब्लॉगर माना जाए.. खाना पकाने की विधि बताने के ब्लॉग हैं, तकनीकी ब्लॉग हैं, और पता नहीं कितने लोग ऐसे ऐसे क्षेत्रों में लिख रहे हैं जिनके बारे में कोई जानता भी नहीं.. मुझे लगता है कि अगर ईनाम पुरस्कार हो ही तो इनका प्रोत्साहन हो न कि जो लोग पहले से स्थापित हैं वो ही आपस में लें-दें करते रहें.
    यह मैं परिकल्पना या किसी अन्य समारोह के बारे में नहीं बोल रहा हूँ. अपनी सामान्य राय रख रहा हूँ.
    बाकी आयोजकों को बधाई और बेगाणी भाई की बात का समर्थन करूँगा कि आलोचनाओं को भी सार्थक रूप में लिया जाना चाहिए...

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  10. संजय बेगाणी जी ,
    वहां किसी ने लम्पट नहीं कहा था ब्लागरों को ..रिपोर्टिंग तोड़ मरोड़ कर हुयी है ..
    यह भ्रान्ति न फैले कृपया !

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  11. नेट से दूर रहा . लेकिन आज सब पढ़कर दोनों पक्षों को समझने की कोशिश कर रहा हूँ .
    शीर्षक में ही सब कुछ अपेक्षित सा दिख रहा है जो स्वाभाविक है .

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  12. किसी ने इस समारोह पर पोस्‍ट न आने की चर्चा की ही है, कुछ ऐसा ही पांच-पचीस आता रहे टिप्‍पणियों के साथ तो लगे कुछ हुआ ब्‍लागर सम्‍मान समारोह जैसा.

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  13. जी मैने यही कहा हैं आप की पोस्ट पर भी और अनूप की पोस्ट पर भी
    हिंदी ब्लॉग्गिंग में मुद्दे पर क्यूँ नहीं बात होती
    पुरूस्कार किस को मिला , कब मिला , किसने दिया , क्यूँ दिया इस पर इतना बवाल मचाने से पोस्ट के बाद पोस्ट के बाद पोस्ट देने क्या बेहतर नहीं होता ही की एक बार ये छान बीन की जाए की ये रिपोर्ट किसने अखबारों को दी हैं
    सब जानते है की रिपोर्टर को जो फीड दी जाती हैं रिपोर्ट उस आधार पर बनती हैं
    किस ने ये फीड तैयार की हैं क्या एक ब्लोग्गर के नाते आप को पहले इस पर बात नहीं करना चाहिये
    हिंदी ब्लॉग में की यही कमजोरी हम सब को कमतर करती हैं जहां हम मुद्दे को देख कर भी महज इस लिये उस पर बात नहीं करना चाहते हैं क्युकी हमारी सोशल नेट्वोर्किंग बिगड़ जायेगी

    template me change kar lae taaki reply kaa option kament mae aayae
    settings me change hotaa haen

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  14. विषय के बारे में ज्ञान बढ़ाकर आते हैं..

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  15. कम से कम परिकल्पना-समारोह ने एक चर्चा को जनम दे ही दिया है हालाँकि अभी भी असल मुद्दे दूर हैं.
    ...सम्मान प्राप्त करने वालों में मैं भी एक था,इसका मतलब यह कतई नहीं कि मैं रातों-रात बड़ा स्टार बन गया.मुझे पुरस्कारों का आयोजन इस मायने में कभी तर्कसंगत नहीं लगा क्योंकि ये समग्रता में किसी को नहीं अंक पाते.बस ,सबसे बड़ी वजह यह है कि इनके आयोजनों के बहाने परिचर्चा और नए लोगों से मिलना-मिलाना हो जाता है.इसलिए यदि किसी को ऐसे कंसेप्ट शुरू से ही नहीं पसंद हैं तो फ़िर केवल उसके होने को लेकर हंगामा या विवाद पैदा करना सिर्फ वैमनस्य उत्पन्न करना है.
    वे लोग ज़्यादा ऐसी अफवाहें उड़ा रहे हैं जो वहाँ थे ही नहीं.ब्लॉगरों को लम्पट कहने जैसा आधा बयान लेकर लोग पिल पड़े हैं.इससे तो यही साबित होता है कि जो अखबार ने कहा है वह सही है.जो लम्पट नहीं हैं,उन्हें खराब क्यों लगेगा ?

    मुझे तो असीम आनंद का अनुभव मिला है.वह मुझसे कोई नहीं ले सकता है.जिनको कुढ़कर आनंद लेना है ,लेते रहें.
    वहाँ नामचीन हस्तियों ने कितना अच्छा विमर्श किया था,उस पर चर्चा शुरू होने से पहले ही कुछ लोगों ने नकारात्मक रपटें चला दीं,भगवान उनका भला करे !

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  16. मिसिर जी, ब्लॉग जगत कोई भेड़ बकरियों का रेवड़ नहीं है जिसे कोई भी हाँक कर जैसे चाहे वैसे चरा ले और कोई दो चार लोग नहीं हैं जिन्हे एकत्र करके संगठन बना कर मठाधीशी कर ली जाए। इस विषय पर लोगों को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। ब्लॉगिंग करके हम कोई सारे दुनिया जहान को बदल नहीं देगें। मै तो मानता हूं कि परिकल्पना सम्मान से बहाने से ब्लॉगर साथियों में आपस में मेल-मिलाप हआ। बड़े कार्यक्रम में कोई भी आयोजक सभी की तरफ़ ध्यान नहीं दे सकता। कुछ त्रुटियाँ हो ही जाती हैं। जिन्हे पसंद नहीं आया इनका तरीका तो वे अपने तरीके से कर लें। रविन्द्र प्रभात जी ने जो कार्यक्रम किया उसके लिए उन्हे साधुवाद देता हूँ। हालांकि मैं कार्यक्रम में व्यस्तता के कारण सम्मिलित नहीं हो पाया। इसका अफ़सोस रहेगा। क्योंकि ब्लॉगर साथि्यों से मुलाकात का अवसर चूक गया। अभी नहीं सही फ़िर कभी मुलाकात हो जाएगी। कोई भी मान सम्मान छोटा या बड़ा नहीं होता। यह ध्यान में रखना चाहिए।

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  17. हम सोच रहे हैं, कि यहाँ दिग्गजों के बीच में क्या लिखें, टेक्नीकल आदमी जो ठहरे ।

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  18. भाई मुझे एक बात समझ मे नही आती कि ब्लाग सम्मेलन या ब्लाग मिलन मे यह ब्‍लागर सम्‍मान,पुरस्कार वगेरा वगेरा कहां से आ गये, सभी ब्लागर एक समान होने चाहिये, नया पुराना, अमीर गरीब, किसी भी ब्लाग सम्मेलन /बलाग मिलन मे हम अपने विचार बांटे प्यार बांटे, एक दुसरे से मिल कर हमे अपनी कमिया खुद ही पता चलती हे... चाहे कम लोग ही आये लेकिन एक याद गार बन जाये... मेरे विचार मे यह सब फ़ार्मेलटिया नही होनी चाहिये...चिक चिक तो हमेशा होती हे हे लेकिन साफ़ माहोल हो, सब एक दुसरे की इज्जत करे, ओर यह सम्मान , पुरुस्कार से दुर रहे तो अच्छा ही होगा... वर्ना इन ब्लाग सम्मेलनो ओर ब्लाग मिलन मे भी कई सारी बुराईया आ जायेगी.... बाकी आप लोगो की मर्जी

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  19. ब्लॉगरों को लम्पट कहा गया, यह बिलकुल सही है लेकिन उसके आगे पीछे क्या कहा गया यह कोई नहीं बता रहा

    अखबारों/ चैनलों का क्या है, जो सबसे सनसनीखेज वाक्य मिला उसी को छाप दिया शीर्षक बना कर! मेरी अधिकतर पोस्ट्स के शीर्षक ऐसे ही रहते हैं लेकिन पोस्ट पढ़ने के बाद कोई आरोप नहीं लगा सकता किसी तरह का

    इसी तरह के अन्य शब्दों, वाक्यों पर नाक भौं सिकोड़ने वाले, चाहे गए संबंधित समय की ऑडियो रिकॉर्डिंग मुझसे प्राप्त कर लें
    लेकिन उसके लिए मेरे द्वारा लखनऊ जाने, आने, रहने, खाने, पीने पर किया गया सारा खर्चा देना होगा. फिर चाहे वह रिकॉर्डिंग एक मिनट की क्यों ना हो

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  20. मंचासीन अधिकतर गैर-ब्लॉगरों ने हलके फुल्के अंदाज़ में कहा ही था कि मंच पर उन्हीं अतिथियों को कुछ कहने के लिए कहा जाता है जो उस कार्यक्रम क्षेत्र के बारे में सबसे कम जानते हो :-)

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  21. बात HT क़ी हो रही

    अंग्रेजी लिखने पढ़ने वाले हिंदी ब्लॉगिंग के बारे में ऐसे ही ऊल-जुलूल लिखते हैं
    चाहे वह पत्रकार हों या ब्लॉगर

    हिंदी अखबारों में ऐसा कुछ लिखा है क्या?

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  22. ऐसे लगभग सभी कार्यक्रमों में औपचारिक प्रेस विज्ञप्ति पहले ही तैयार होती है यह आयोजक भी जानते हैं और पत्रकार भी
    सो समाचारों में किसी का नाम छूटना या जुड़ जाना असामान्य बात नहीं है.
    अगर एक अखबार में किसी तरह क़ी गलती है तो वह सारे अखबारों में दिखेगी, अगर वह रिपोर्ट प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित हो

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  23. इस समारोह पर जिस ब्लॉगर ने मेरे सामने अखबार के लिए रिपोर्ट लिखी उसक़ी चर्चा भी कोई करे कि एक ब्लॉगर क़ी निगाह से वो समारोह कैसा रहा!

    लेकिन जुगुप्सा इजाज़त दे तब ना!

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  24. एक बात जो फेसबुक पर लिख आया था:

    चर्चित संस्था 'कैग' ने वर्धा के अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में अनियमितता और घोटाले का पर्दाफ़ाश किया है

    यह वही हिंदी विश्वविद्यालय है जिसमें उत्तर प्रदेश के एक लेखाधिकारी, जो हिंदी ब्लॉगर भी हैं, प्रतिनियुक्ति पर आए थे लेकिन समय पूर्व ही 'भाग' खड़े हुए!

    इन्हीं के ब्लॉग को सरकारी अनुदान दिया गया और इसी विश्वविद्यालय ने सरकारी खर्चे पर ब्लॉगर बुला कर, ब्लॉगर सम्मेलन भी करवाया गया था
    http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2012-08-29/nagpur/33474958_1_special-audit-audit-report-cag

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  25. अब कोई यह बताए कि हिंदी ब्लॉगिंग में अन्याय कहाँ हुआ और किस किस (गुट) ने किया

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  26. यहीं कहीं हिंदी ब्लाग्स पर ही पढ़ा था:

    "छोटे सम्मान को ठुकराने वाला छोटा हो जाता है और बड़ा सम्मान ठुकराने वाला बड़ा बन जाता है"

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  27. वैसे भी आलोचना और निंदा का फर्क तो स्पष्ट दिखता है

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  28. इस तरह की चर्चाओं से नई बातों का पता चलता है। कुछ बातें स्पष्ट होती जाती हैं, बहुत कुछ अधिक अस्पष्ट।

    जब किसी ने किसी खास शब्द का प्रयोग किया ही नहीं तो उसे (अखबार की कटिंग) इतने जोर शोर से प्रचारित ही क्यों किया गया। कुछ लोग उसे न प्रचारित करते तो बहुत से लोगों को पता भी न चलता।

    जब इतना खर्चा कर ही डाला गया तो उस एक मिनट के टेप को सुना ही दिया जाता, जिसकी क़ीमत ... छोड़िए नहीं सुननी है।

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  29. रचना जी, सतीश चन्द्र सत्यार्थी, अनूप जी और राज भाटिया जी की बात से सहमत हूँ. ब्लॉगर्स को पुरस्कार मिला, चार लोग साथ उठे-बैठे इस बात पर किसको आपत्ति हो सकती है? किसी को भी पुरस्कार मिले तो अच्छा लगता है. इस तरह के सम्मान समारोह और ब्लॉगर मीट होने चाहिए. भले ही मैं स्वयं ब्लॉगिंग में 'पुरस्कारों' और 'सम्मानों' के पक्ष में नहीं हूँ. लेकिन समस्या यह है कि जहाँ बात किसी आयोजन की कमियों या ब्लॉग से सम्बन्धित मुद्दों के विषय में होनी चाहिए, वहीं ये व्यक्तिगत हो जाती है. आलोचना के स्थान पर निन्दा होती है और फिर उसकी प्रतिनिन्दा और व्यक्तिगत आरोपों-प्रत्यारोपों को बढ़ावा मिलता है.
    मैं भी रचना जी की इस बात से सहमत हूँ कि बात मुद्दे की होनी चाहिए. ना ही किसी की आँख मूंदकर आलोचना होनी चाहिए और ना ही आलोचना करने वालों पर ये इल्जाम लगाने चाहिए कि उन्हें पुरस्कार नहीं मिला, इसलिए चिढ रहे हैं. ये गलत प्रवृत्तियाँ हैं. आपलोग वरिष्ठ हैं तो आपलोगों को ही इसे दूर करना चाहिए.

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  30. हे अनूप जी ,

    ई सरकारी आदेश त मत ही दीजिये -बिन्दुवार जवाब ..वह भी देही देगें ,सरकारी मनई हैं मगर ओसे भी का हुई जाए!

    हम केवल यह कहते भये हैं कि जिसे जो करना है करने दीजिये आप या हम उससे बड़े का संयोजन ठान लें ....जो न आप कर पा रहे हैं और न मैं -तो जब तक कुछ और बेहतर विकल्प नहीं आ जाता परिकल्पना की गाडी तो दौड़ ही पडी है ..हाँ यह सब अगर रवीन्द्र जी देख रहे हों तो सजग हो जायं -सावधानियां बरतें .यह ब्लॉगर कम्यूनिटी है यहाँ लोग बाग़ छोड़ने वाले नहीं हैं .. और आप ऊ का बार बार पहले वाले सम्मान बुलावे का जिक्र कर रहे हैं ऐसे तो कितने मिलते ही रहते हैं ..हम भी नहीं जाते ...रिजर्वेशन तक नहीं कराते..... आप तो वह भी करा लिए थे और अब खीझ परिकल्पना सम्मान पर उतर रहे हैं ,,,,

    आपकी टिप्पणी जो थोड़ी बहुत समझ आयी उसी पर जवाब दे दे रहे हैं .....बाकी तो आप खुद विद्वान हैं !

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  31. एंटी ब्‍लॉग भ्रस्‍टाचार संघ31 अगस्त 2012 को 6:18 am बजे

    मा0 शुकुल महाराज से निवेदन है कि पाबला जी द्वारा चर्चा में लाए गये उनके चेले के ब्‍लॉग घोटाले पर भी अपना प्रवचन देने की कृपा करें।


    चर्चित संस्था 'कैग' ने वर्धा के अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में अनियमितता और घोटाले का पर्दाफ़ाश किया है

    यह वही हिंदी विश्वविद्यालय है जिसमें उत्तर प्रदेश के एक लेखाधिकारी, जो हिंदी ब्लॉगर भी हैं, प्रतिनियुक्ति पर आए थे लेकिन समय पूर्व ही 'भाग' खड़े हुए!

    इन्हीं के ब्लॉग को सरकारी अनुदान दिया गया और इसी विश्वविद्यालय ने सरकारी खर्चे पर ब्लॉगर बुला कर, ब्लॉगर सम्मेलन भी करवाया गया था
    http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2012-08-29/nagpur/33474958_1_special-audit-audit-report-cag

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  32. @@रचना:आपकी भी तो कुछ जिम्मेदारी बनती है,जांच पड़ताल की -एक तो आप आयी नहीं अब घर बैठे ये कर लो वो कर लो -लो कर लो बात :-) कुछ आप भी तो किया करिये! :-) अब हम समारोह में भी जायं ,मंच पर बैठने को विवश और अनुशासित रहें, आने जाने का शारीरिक मानसिक कष्ट भी भोगें... आप बस आराम से कमियाँ गिनाती रहें .....
    ......टेम्पलेट बदलना अब आने लगा है मुझे -शुक्रिया -बदल देगें, मगर क्या करें किसी को यह इतना भा गया है, उसने बदलने को मना कर रखा है -हमारे लिए तो अजीब मुसीबतें गले लगी रहती हैं :-) सच है इतना सीधा भी नहीं होना चाहिए मनुष्य को :-)
    @मुक्ति: कमेन्ट के लिए आभार...दूसरों से सहमत हो जाने की प्रवृत्ति ब्लॉग जगत में खतरनाक रुख अख्तियार करती जा रही है और आप एक साथ कई लोगों से सहमत हो गयी हैं -मैंने कहीं इस प्रवृत्ति पर टिप्पणी भी की थी -यह सेफ गेम है अगर कुछ अन्यथा हुआ तो वो मुख्य ब्लॉगर /टिप्पणीकार झेले जिससे सहमत हुआ गया था :-) मैं तो तुरंत टोक देता हूँ -हे हे भाई लुगाई मुझसे सहमत होकर मत खिसकिये -अपने दम ख़म पर जो कहना हो कहिये मुझे बीच में मत घसीटिए :-) आपने उद्धृत लोगों से सहमत होने की अनुमति ले ली थी न? या उनकी सदाशयता और भरोसे को एंजाय कर रही हैं ? काश कोई मुझ पर भी इतना भरोसा किया होता कभी और आज भी :-(

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  33. @"हम केवल एक जमावड़े का हिस्सा होंगे इसलिये नहीं गये।"
    इसी को अहम कहते हैं अनूप जी -वैसे आप कम से कम ब्लागिंग की दुनिया में तो भीड़ का हिस्सा कदापि नहीं होते -आपके रहते तो खुद मैं ही मंच पर न विराजता ..आप ही जाते वहां ...हाँ यह जरुर है कि अच्छे सानिध्य में आपको बैठा देखकर मन ही मन कुढ़ता जरुर रहता :-)

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  34. पंच लोग किसी निर्णय या निष्कर्ष पर पहुँच जाएँ तो बहुतों का भला होगा| महाजनों के एकमत होने की प्रतीक्षा में हम सरीखे कई होंगे, so waiting and still waiting.

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  35. सभी ब्लागर एक समान होने चाहिये

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  36. इंजीनियर राव गिरिजेश कुमार सिंह के आयोजन का विरोध ?

    रवीन्द्र प्रभात के आयोजन का समर्थन ?

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  37. @बेनामी -अच्छा जिक्र किये ..
    राव साहब इंजीनियर साहब की- बोर्ड खटखटाने के अलावा भी कुछ किये हैं आज तक ? :-)
    उनके लंगोटिया यार तो फिर भी किये हैं ;-)

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  38. सम्मान लेना कौन नही चाहता? कौन ऎसा है जिसे यह इच्छा नही रहती कि उसे सम्मान की दृष्टि से देखा जाये। छोटे से छोटा-बड़े से बड़ा, हर इंसान यही चाहता है कि घर, परिवार, दोस्त, समाज चारों तरफ़ उसे सम्मान मिले। मुझे तो ऎसा ही लगता है। हाँ यह भी सच है कि तमाम सम्मानों के हकदार और भी बहुत से लोग थे, लेकिन सच कहिये कितने लोग हैं जो रविंद्र प्रभात जी के इस प्रोग्राम में उनका साथ दे रहे थे। जहाँ तक मेरी बात है मेरा ब्लॉग विशेष है "कुछ विशेष" के नाम से ब्लॉग है भई वैराइटी है तो सम्मान तो मिलना ही था। बाकि खोया कुछ नही इतने सारे वरिष्ठ लोगों से मिलना हुआ। शिखा से, अरविंद जी से, अर्चना चावजी से, रमा जी से और न जाने कितने लोगों से मिलकर मज़ा आ गया। आप सब भी चलते काहे टाँग खिचाई चल रही है? सबसे बड़ी बात ब्लॉगर एकता ज़िंदाबादे कहिये अगला सम्मान मेरे यहाँ होने वाला है बस आप सबको आना ही होगा ध्यान रहे...कोई आनाकानी नही दोस्तों:)

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  39. घड़ा मथा जाए तो माखन निकले और समुद्र मथो तो निकले अमृत.
    मथने के लिए दो पक्ष बहुत ज़रूरी हैं.
    आपका पक्ष जानकर पता चला
    बड़े ब्लॉगर्स के ब्लॉग पर बहती मुख्यधारा का .

    धन्यवाद.

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  40. सम्भवतया इस सम्मान-चर्चा आयोजन से प्रेरणा प्रोत्साहन हुआ होगा। किन्तु चर्चाओं से ब्लॉगिंग के हित में कुछ निदान निष्कर्ष भी नवनीत की तरह आते तो सर्वाधिक सार्थक होता।

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  41. मुझे कोई सेफ गेम खेलने का शौक नहीं है. अगर ऐसा होता तो खुद को नारीवादी घोषित करके अनेक लोगों का कोपभाजन नहीं बनती. मैंने अगर किसी की टिप्पणी से सहमति व्यक्त की है, तो अपने विचार भी दिए हैं.
    शेष, मुझे खुद को महत्त्वपूर्ण सिद्ध करने के लिए कभी किसी मठाधीश की अनुकम्पा की ज़रूरत नहीं पड़ी और ना मुझे पुरस्कारों में कोई रूचि है. ये आप अच्छी तरह जानते हैं क्योंकि मेरे एक पुरस्कार लौटा देने पर आप ही मुझसे असहमत हुए थे.
    और आलोचना को टालने का ये कोई तरीका नहीं होता कि कह दिया जाय कि आप ही करवा लो आयोजन. हम किसी विधायक या मंत्री से प्रश्न करते हैं, तो वो ये कहकर नहीं बच सकता कि आप ही बन जाओ मंत्री. हमने वोट दिया था. इसलिए पूछने का हक है. अगर हमसे वोट लिए बगैर 'परिकल्पना' वाले सम्मान देते तो और बात थी.

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  42. अरविन्द भाई क्या खूब लिखा है...कोई भी आयोजन हो उसके पक्ष या विपक्ष में हमेशा से लोग खड़े होते हैं लेकिन आयोजन फिर भी होते हैं होते रहेंगे...अब सभी तो सम्मानित नहीं हो सकते जो हुए हैं उन्हें बधाई देने में हर्ज़ क्या है...जरा सी बात पर पेट में दर्द होना अच्छे स्वास्थ्य की निशानी नहीं होता...रविन्द्र जी ने ब्लॉग जगत पर जितना लिखा और उसके लिए किया है कोई और करे फिर बोले तो बात भी समझ में आती है...आपके विचारों और लेखनी को नमन

    नीरज

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  43. कोरे कागज की भी कुछ ऐसी ही बेचैनी होती है कि उसपर कुछ भी लिखा जाए और जब कुछ लिखा जाता है तो बेचैनी और बढ़ जाती है कि ऐसा क्यों लिखा गया..अभी तो होड़ की शुरुआत की सिटी ही बजी है . देखना दिलचस्प है .

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  44. @मुक्ति,आपकी सहमतियाँ बहुत से लोगों से रहती हैं बस मुझसे नहीं रहतीं :-) -बहरहाल हर व्यक्ति को अपना अधिकार है वह आपनी बात कहे -इसलिए असहमतियों का भी सम्मान किया जाना चाहिए बशर्ते वे सम्मान योग्य हों ..
    बाकी आप किस पुरस्कार की बात कर रही हैं ? मुझे याद नहीं है -मैं तो सबसे यही कहता हूँ छोटे मोटे पुरस्कार ठुकरा कर आप और भी छोटे बन जाते हैं और बड़े पुरस्कार ठुकरा कर बड़े .....
    और आपकी भी विश्व दृष्टि व्यापक हो रही है .....और संभावनाएं दीखती हैं मुझे! शुभकामना !

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  45. मुद्दा-मंथन अइसइ चलत रहे त 'अमिर्त' सरवा निकलबइ करे. कहाँ जाए?

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  46. पढ़ा और समझने का प्रयास कर रही हूँ बुरा न माने तो एक बात कहूँ .. इस लेख में आपने बोल्ड अक्षरों में लिखा है कि - " जो अपनों के लिए अपनों के द्वारा अपनों के जरिये दिए लिए जाते हैं और यह एक वैश्विक कल्चर बन चुका है"---

    अगर वाकई ऐसा ही है तो देश की संसद क्यों ठप्प है ? क्या गलत किया कांग्रेस ने ?
    --------
    आयोजन पर सब बातों की एक बात यही है कि कोई भी इस तरह का बड़ा आयोजन करेगा तो कुछ न कुछ बातें तो उठेंगी ही !
    हमें आलोचना को स्वस्थ भाव से लेना होगा.
    बल्कि बेहतर तो यह होगा कि खुले दिल से सम्मान समारोह की कमियों को स्वीकार किया जाए और अगली बार बेहतर तरह से आयोजन हो .
    परस्पर टीका-टिपण्णी और खेमेबाजी से क्या हासिल होगा ? वैमनस्य ही बढ़ेगा ,गलतफहमियां पलेंगी और कुछ नहीं.
    राज भाटिया जी की बात बहुत अच्छी और सही लगी.शायद अन्य भी उनके इस सुझाव से सहमत होंगे.

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  47. @अल्पना ,
    "जो अपनों के लिए अपनों के द्वारा अपनों के जरिये दिए लिए जाते हैं और यह एक वैश्विक कल्चर बन चुका है"---" इसे क्या शब्दशः ले लिया? फिर तो मेरा लेखन ही परिपक्व नहीं है :-( अन्तर्निहित पं उजागर नहीं हो सका !
    एक विधा के हुल्लड़बाजों की हरकतों को आपने संसद से जोड़ दिया ..अब इतनी गंभीरता नहीं अपेक्षित थी ..बहारहाल टिप्पणी के लिए आभार !

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  48. @शिव जी,
    अमृत ससुरा फुरसतिया के पास और गरल अपुन के पास -इसमें भी कौनो शक है का? आप झटकने के फेर मैं हैं क्या ? :-) नाट यथा नामो ?

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  49. भई हमें सम्मान नहीं मिला, हम तो रो-पीट नहीं रहे। जिसको मिला अच्छा है, कुल मिलाकर प्रचार तो हिन्दी ब्लॉगिंग का ही हो रहा है न।

    जो आयोजन की आलोचना कर रहे हैं, उन्हें इससे बेहतर आयोजन करके दिखाना चाहिये कि सही आयोजन/चयन कैसे होता है।

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  50. वाह डॉक्टर साहब, मजा आ गया टिप्पणियाँ पढ़कर तो… अब लग रहा है कि "हाँ… कोई ब्लॉगर सम्मान हुआ है…" :) :) :)

    ============
    आपकी आज्ञा के बिना एक धृष्टता करूंगा और इस आग में थोड़ा सा घी डालने की इजाज़त चाहूंगा… :) :)
    मेरा घी के चम्मचनुमा सवाल है कि, जब उज्जैन जैसे दूरस्थ स्थान के ब्लॉगर्स को निमण्त्रण भेजा गया तो लखनऊ के कुछ विशिष्ट स्थानीय ब्लॉगर्स को क्यों छोड़ दिया गया? he he he he

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