रविवार, 3 अप्रैल 2011

रिश्ते जो 'फैंटम लिम्ब ' बन गए!

इस ब्लॉग के कंटेंट और स्कोप में थोडा तब्दीली का मन हो आया है....मगर पंचों की राय हो तभी ...यह ब्लॉग मैंने एक फिलर आईटम के रूप में बनाया   था ताकि जो मामले मेरे  विज्ञान ब्लागों -साईब्लाग और साईंस फिक्शन इन इंडिया  के फलक में न सिमट सकें उन्हें यहाँ अभिव्यक्ति दे सकूं .मगर पंचों ने इसे ज्यादा प्यार दे दिया और यहाँ ट्रैफिक भी ज्यादा उमड़ने लगी ...मूलतः मैं विज्ञान संचार में रूचि रखने वाला मानुष हूँ तो एक सोच यह उभर रही है कि  क्यूं न यहाँ की बढी ट्रैफिक के मद्दे नजर  प्रायः तो नहीं हां नियमित अंतराल पर विज्ञान की सेवा की जाय -वैसे यह कदम अपनी चिता को खुद ही आग लगाने वाला हो सकता है मगर कोशिश कर लेने में क्या हर्ज है? वैसे भी विज्ञान और समाज का रिश्ता दिन ब  दिन गहराता जा रहा है और विज्ञान अब कोई अछूत नहीं रहा -लोगों का नजरिया तेजी से बदल रहा है -हाँ यहाँ की जो भी विज्ञान से जुडी पोस्ट होगी वह समाज और विज्ञान के गहरे नाते वाली ही होगी ..और हाँ लहजा वही होगा जैसे हम आपस में बात चीत करते हैं! तो आईये आज का विषय शुरू करते हैं ..मैंने अपनी पिछले पोस्ट पर रिश्तों के फैंटम लिम्ब हो जाने की बात अपने एक कमेन्ट में लिखी तो सुधी मित्रों ने पूछ लिया ये फैंटम लिम्ब क्या बला (बाला नहीं!)   होती है? आईये जानें!

उन मामलों ने चिकित्सकों को हैरत में डाल रखा  है जिसमें हाथ और पैरों के कट जाने के बाद भी लोगों की यह शिकायत रही कि उन्हें उनके कटे हुए हाथ पैर के स्थान पर दर्द  होता है -है न हैरानी की बात? जिस हाथ और पैर का वजूद ही नहीं दर्द की अनुभूति वहां हो रही है! भला यह कैसे संभव है? इस गुत्थी को सुलझाने में तंत्रिका विज्ञानी जुट गए ....

प्रमस्तिष्क (मस्तिक  का फ्रोंटल  लोब) का मोटर कमांड सेंटर  यह मानने को तैयार ही नहीं होता कि किसी दुर्घटना में हाथ पैर का कोई हिस्सा या फिर नाक, कान, दांत या सर्जरी से निकाले गये पेट के अपेंडिक्स का कोई हिस्सा अब नहीं रहा ...लिहाजा वह उन अंगों तक रीढ़ की हड्डी के जरिये सन्देश -सिग्नल भेजना जारी रखता है . जाहिर है सिग्नल अब वजूद में ही नहीं रहे अंगों तक तो पहुँचता ही नहीं और वहां से वापस आने वाला रूटीन सिग्नल भी दिमाग को नहीं मिलता और वह कन्फ्यूज हो उठता है!दिमाग फिर से कोशिश करता है और खुद के ही उन हिस्सों को जो कटे अंगों से जुड़े होते हैं  "जवाब दो " का जोरदार सिग्नल जारी करता है-यही सिग्नल अब कटे हिस्सों से दर्द की अनुभूति कराते हैं! इसे ही फैंटम लिम्ब पेन के नाम से चिकित्सा जगत में जाना जाता है .

फैंटम लिम्ब पेन की जानकारी १८७० से ही नोटिस में आयी जब युद्ध पीड़ितों ने एक 'तंत्रीय दानव' यानि  सेंसरी घोस्ट से  त्रस्त  रहने की शिकायतें  कीं..इसके इलाज में कई तरह के दर्द निवारक इस्तेमाल में लाये गए हैं मगर वे सभी कारगर नहीं हो पाए ..इस समस्या से निजात दिलाने में एक बड़ी सफलता मिली है कैलिफोर्नियाँ यूनिवर्सिटी सैन डिएगो के वैज्ञानिक वी रामाचंद्रन को जिह्नोने अफगानिस्तान और ईराक में विकलांग  हुए अमरीकी सैनिकों के मामले में गहरी रूचि ली ..रामचन्द्रन कहते हैं कि भले ही कटे अंगों का वजूद बाहरी तौर मिट जाता है लेकिन मस्तिष्क के भीतर उनका नक्शा बना ही रहता है ..रामचंद्रन ने इसी नक़्शे से ही अपने शोध की प्रेरणा लेकर दिमाग को भ्रमित करने की योजना बनाई है -शरीर के दाहिने हिस्सों का नियंत्रण बाईं ओर का मष्तिष्क गोलार्ध करता है और बाएं हिस्से का दायाँ गोलार्ध ...इसलिए बिना किसी दर्द निवारक गोली को दिए उन्होंने ऐसे सैनिकों के उन कटे हिस्सों -हाथ या पैर के विपरीत एक दर्पण रखा जिसमें साबूत अंग का अक्स उभरा और बार बार यह दृश्य कष्ट में पड़े सैनिक को दिखाया गया -जिससे उसके मस्तिष्क को यह भ्रम हुआ कि    हाथ- पैर तो अपनी जगह सही सलामत है ...फिर क्या, दर्द उड़न छू   हो गया --दिमाग को डिसीव करने का यह तरीका कारगर पाया गया -न हर्रे न फिटकरी रंग चोखा -न दवा न दारू मरीज चंगा!  

 रामचंद्रन के इस 'कटे हाथ को आरसी' वाले  इस फार्मूले की जांच पड़ताल और कारणों पर इन दिनों खूब शोध  कार्य हो रहा है... क्या फैंटम लिम्ब बन चुके रिश्तों के लिए भी कोई ऐसा जादुई दर्पण काम में लाया जा सकता है?

30 टिप्‍पणियां:

  1. नेकी और पूछ पूछ , हमारे जैसे पाठक जो बहुत कम ब्लोगस पढ़ पाने का समय जुटा पाते है , अगर विज्ञानं ज्ञान राशि और सामाजिक दायित्वबोध वाले आलेख एक जगह ही उपलब्ध हो तो सोने पर सुहागा ही होगा . फैटम लिम्ब हमारे लिए नई जानकारी थी . आभार इसके लिए .

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  2. फैंटम लिंग के बारे में जानकारी देने के लिए आपका आभार.

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  3. अरविन्द जी , मैं भी एक ही ब्लॉग पर सारी सामग्री डालने के पक्ष में हूँ । क्योंकि पाठकों के पास इतना समय नहीं होता कि वो किसी भी ब्लोगर के एक से ज्यादा ब्लॉग पढ़ सके ।
    फैंटम लिम्ब पेन पर जानकारी अच्छी लगी ।
    रिश्तों पर इसके प्रयोग का इंतजार रहेगा ।

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  4. 'मस्तिष्‍क की कार्य-प्रणाली और उसका मनोविज्ञान' जैसा लाजवाब लेख.
    क्‍या इसे साईब्लाग और साईंस फिक्शन इन इंडिया का फैंटम लिम्‍ब मान सकते हैं.

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  5. फैंटम लिम्ब को सरल शब्दों में विस्तार से समझा ...
    आभार !

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  6. बेहतरीन....
    ऐसे लेख आयें इस पर तो मजा ही आ जाये...
    विज्ञान का विज्ञान भी.. और रोचकता भी बरकरार...
    सच में आनंद आ गया... नया फोर्मेट एकदम मस्त है.. जारी रही...

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  7. फैंटम लिम्ब पेन पर महत्वपूर्ण जानकारी !!

    क्या मानव दिमाग इतना लल्लू कि अंग के कटने के बाद भी भ्रांत!! और उसे पुनः भ्रांत करने पर शान्त???

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  8. फैंटम लिम्ब के बारे में अच्छी जानकारी मिली ..इस पर शोध के लिए वैज्ञानिकों को शुभकामनायें ...

    रिश्ते भी जो कट जाते हैं स्वयं के वजूद से उनकी यादें रह जाती हैं ..क्या ऐसा कोई कारगर उपाय हो सकता है कि वो दर्द न महसूस हो ? रिश्तों के मामले में तो ऐसा नहीं लगता ..

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  9. बढ़िया जानकारी दी आपने , बेहतर यही है कि जो कुछ लिखें एक स्थान पर लिखें !
    शुभकामनायें !!

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  10. अरविन्द जी, पहले मैं जब अपनी कलाई पर लगातार घडी बांधता था तो बहुत बार घडी उतार देने के बाद भी मुझे एसा महसूस होता था की मेरी कलाई में घडी बंधी है. मेरे केरल के मित्र जब तीन दिनों की रेल यात्रा के बाद दिल्ली वापस लौटते हैं तो उन्हें कुछ दिनों तक एसा महसूस होता रहता है जैसे वो रेल में ही हों. मुझे लगता है की यहाँ भी हमारा दिमाग फैंटम लिम्ब वाले केस की तरह ही भ्रमित रहता है. इन मामलों में थोडा समय बिताने के बाद दिमाग को सत्य का पता चल जाता है.



    शायद एसा रिश्तों में भी हो. रिश्ते दो प्रकार के होते हैं. एक पैदायशी रिश्ते और दुसरे वो जो बाद में जुड़ते हैं. पैदायशी रिश्तों के कटने का दर्द तो शायद इलाज मांगे पर बाद वाले रिश्तों के कटने का दर्द थोडा समय बीतने के बाद दूर हो जाना चाहिए.

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  11. शानदार पोस्ट। ज्ञानवर्धक अनूठी जानकारी।
    ..रिश्तों के लिए भी कोई ऐसा जादुई दर्पण काम में लाया जा सकता है?
    ..कितनी सुखद कल्पना है! काश कि ऐसा हो और रिश्तों की कड़वाहट मिठास मे बदल जाय। वैसे इसके लिए जोरदार ठहाका लगाना अच्छा व्यायाम हो सकता है।
    ..एक ब्लॉग पर सारी जानकारी डालना ही अच्छा प्रतीत होता है। शीर्षक से अलगा दिया जाय। जिस पाठक की जो रूची हो पढ़े, ना हो छोड़ दे।

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  12. अनूठी जानकारी है।

    सब कुछ एक ही ब्लॉग पर रखना ज्यादा ठीक रहता है, मेंटेन करने में आसानी तो रहती ही है, लोग केवल ब्लॉग का नाम पढ़ते ही तपाक से लेखक को पहचान जाते हैं।

    वरना तो कई कई ब्लॉग होने पर खुद भी अफनाते रहो कि अरे उस पर लिखे कई दिन हुए....फलां पर लिखना बाकी है...तिस पर पाठक भी कुछ कुछ अनमने से हो जाते हैं.....I Mean...कहें कुछ भले नहीं लेकिन मन ही मन तो कह सकते हैं....कितना पकाता है यार :)

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  13. @ विचार शून्य
    कलाई पर घड़ी बंधी होने का भाव और ट्रेन में बैठे होने का अहसास फैंटम लिम्ब नहीं है. फैंटम लिम्ब स्नायुविक व मनोवैज्ञानिक समस्या है जबकि ये दोनों केवल मनोवैज्ञानिक एवं/या परिस्थितिजन्य हैं.
    डॉ. रामचंद्रन के दर्पण वाले प्रयोग में साबुत अंग का अक्स नहीं उभरता बल्कि साबुत अंग की दर्पण-छवि दिखती है जो मन पर कटे अंग के स्थान पर साबुत अंग होने का भ्रम उत्पन्न करती है. लेकिन यह डिवाइस का उपयोग भी पूर्णरूपेण सफल नहीं होता. यह बहुत श्रमसाध्य है और कई मामलों में असाध्य भी.

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  14. सतीश पंचम से सहमत. मैंने शनैः-शनैः अपने कई ब्लौग डिलीट कर दिए हैं. यहाँ कुछ लोग तो दस से भी ज्यादा ब्लौग चला रहे हैं. उनके जीवट को प्रणाम. मैं परमेश्वर से उनके स्वास्थ्य, परिवार में सुख-शान्ति, और समृद्धि की कामना करता हूँ.

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  15. आपका लिखा जब भी कभी पढ़ती हूँ यहीं पढ़ती हूँ। आभार जो ये पढ़ने मिला...नई जानकारी..

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  16. बढ़िया और रोचक जानकारी रही ये तो.

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  17. निशांत भाई का दूसरा कमेन्ट सही लगा... उन जीवट वालों को मेरा भी प्रणाम :)

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  18. आप विज्ञान से जुडे रहिए पर समाज भी तो आप ही का है तो हमें क्यों काटना चाहते है इस ब्लाग को केवल विज्ञान का बना कर आपके अन्य विचारों से क्यों वंचित रखना चाहते हैं:)

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  19. मैं तो एक ही ब्लॉग के पक्ष में हूँ .आपकी यह वैज्ञानिक पोस्ट रोचक भी और ज्ञानवर्धक भी.तो मेरे ख्याल में तो ऐसी जानकारी जारी रखी जाये.
    हाँ कट कर अलग हो चुके रिश्तों के दर्द का इलाज शायद अभी वैज्ञानिक भी नहीं निकाल पाए.

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  20. achhi jankari mili......apke sadiksha
    ke liye......hum pahle hi agrah kar
    chuke hai......ab aakar apne jataya
    hai......hum iske liye abhar prakat
    karte hain.........

    pranam.

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  21. अगर एक ही जगह सब कुछ मिल जाए तो क्या बात है...
    नयी जानकारी का शुक्रिया....

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  22. मेरे हिसाब से कन्टेन्ट के हिसाब से ब्लॉग बनने चाहियें ।
    पाठक को यह तो पता रहे कि किस पर क्या सामग्री मिल सकती है ।
    खैर... प्रो. रामचन्द्रन का यह नुस्खा हर केस में पूरी तरह कारगर नहीं हैं
    वहाँ पर कार्बामिज़ापीन जैसी दवाओं का सहारा लेना पड़ जाता है ।

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  23. फैंटम लिम्ब के विषय में सहज शैली में विस्तृत जानकारी मिली.

    शायद एक ही ब्लॉग रखना सही है....एक ब्लॉग पर व्यस्तता इतनी बढ़ जाती है कि दूसरा ब्लॉग बैक सीट ले लेता है....दोनों ब्लॉग के साथ न्याय करना सचमुच मुश्किल हो जाता है...

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  24. आज एक नई जानकारी मिली ... फैटम लिम्ब ... रिश्तों पर इसका प्रयोग ... वैसे तो सब कुछ संभव है ...

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  25. रिश्तों की विकलांगता के दर्द निवारणार्थ कोई दर्पण ईजाद हो तो बताइयेगा !

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