यह लेख डाक्टर मछलियों के बारे में है बस जानकारी के लिए -कोई सिफारिश नहीं है ...निर्णय पाठकों को खुद करना (caveat emptor ) है!
दमा दम से जाता है ,इस लोक विश्वास के चलते इस बीमारी से निजात पाने के लिए हैदराबाद में प्रत्येक वर्ष जून माह के शुक्ल पक्ष में एक गौड़ परिवार के यहाँ एक विशाल मेले सा दृश्य होता है जहाँ एक अज्ञात नुस्खे वाली दवा मछली के मुंह में डालकर दमे के मरीज को निगलने को कहा जाता है .दवा के बारे में दावा है कि इससे दमा का जड़ से इलाज हो जाता है!अब तो कई और शहरों में ऐसे मछली इलाज का दावा करते लोग किसी होटल में अपना डेरा जमाये दिख जाते हैं ...मेरी उत्सुकता थी आखिर लोगों के लिए यह वरदान बनी यह अभिशप्त मछली कौन है?
दमा के लिए इस्तेमाल की जा रही सौरी प्रजाति
आन्ध्रप्रदेश को नीली क्रान्ति (मत्स्य उत्पादन क्रान्ति ) का पालना कहा जाता है -व्यावसायिक मछलियों के विभिन्न प्रकार और उत्पादन में आंध्रप्रदेश की कोई सानी नहीं है ....मैंने खोजबीन की तो यह दमा निवारक मछली सौरी(चन्ना ) की एक छोटी प्रजाति निकली ...मगर इसके साथ गुप्त दवा का मेल दमा ठीक कर पाता है मुझे इसमें संशय है! मुझे तो शर्तिया तौर पर आजकल दमा के इलाज में इनहेलर चिकत्सा का कोई जोड़ नहीं दीखता ..भले ही यह जड़ से दमा को उखाड़ न फेके, मगर है बहुत कारगर और एक स्थायी रिलीफ के लिए दमा रोगियों के लिए बहुत मुफीद भी ..जब इनहेलर नहीं थे तो दमा एक कुख्यात रोग बना हुआ था ....तब ऐसे ही मछली आदि जैसे माजूम /अवलेह /खरबिरैया ही दमा के इलाज में इस्तेमाल होते थे....
त्वचा रोगों और घाव के लिए टंच इलाज टेन्च से ...
ऐसी ही एक और मछली है टेंच जिसे डाक्टर फिश का ही नामकरण मिला हुआ है और यह ब्रितानी मूल की है -इसके शरीर से निकलने वाला चिकना लसलसा(slime) पदार्थ कई त्वचा रोगों को दूर करता है ऐसी बड़ी पुरानी मान्यता है ...मुझे लगता है कि इसके स्लायिम में कोई जीवाणु रोधी तत्व है जो त्वचा के घावों /रोगों को पूजने में मददगार है ..
भद्दे खुरदुरे पाँव -तलवों को को साफ़ करा लो गर्रा मछली से
एक मछली गर्रा रुफ़ा इन दिनों और भी चर्चा में है -और इसे भी डाक्टर मछली का दर्जा दे दिया गया है जो पेडीक्योर के लिए खूब इस्तेमाल में लाई जा रही है -पैर /तलवे की फटी बिवाईयों पर यह झुण्ड में टूट पड़ती है और मृत त्वचा को कुतर कुतर कर साफ़ कर देती है ..पैरों का सौन्दर्य निखर उठता है! .
मेरी कोई सिफारिश नहीं है मगर चाहें तो इस्तेमाल में ला सकते हैं इन मछलियों को!
आज आपने लीक से हटकर एक रुचिकर पोस्ट लगायी आपने ....
जवाब देंहटाएंएक दिन अपनी बिटिया के अनुरोध पर "गर्रा रूफा" से सेवा कराई थी , तमाम मछलियाँ आकर पैर पर चिपट गयीं थीं और लगी सफाई करने ! वाकई आनंद आया था....
शुभकामनायें आपको !
डॉक्टर ही कहेंगे।
जवाब देंहटाएंपंडित जी,
जवाब देंहटाएंआज आपने मुझे अपने स्वर्गीय पिताजी की याद दिला दी जो रेलवे में नौकरी करने की पूर्व आपके ही विभाग में थे.. उनसे इन मछलियों की बातें सूनी हैं.. आपका यह लेख उस स्मृति के साथ साथ स्कूल की कक्षा सा लगा.. आभार!!
सलिल
कष्ट में पड़े मरीजों को ऐसे दावे बहुत आकर्षित करते हैं.
जवाब देंहटाएंएक दो साल पहले अमेरिका में इस पैडिक्योर को बैन करने की बात चली थी..अब पता नहीं...एशियाई देशों में तो कई हैरत में डाल देने वाले इलाज अभी भी होते हैं...एक अफ़ग़ानी पठान के अनुसार खास किस्म के ऑक्टोपस को सुखा कर उसके पाउडर को खास तेल में डाल कर मालिश करने से अर्थराइटस की बीमारी दूर होती है...
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी , यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि यहाँ पढ़े लिखे लोग भी चमत्कारों में विश्वास रखते हैं । हालाँकि इसमें निराशा का भी बड़ा हाथ रहता है । दुनिया में चमत्कार नाम की कोई चीज़ नहीं होती ।
जवाब देंहटाएंऋषिकेश में अपने हाथ से दवा खिलाकर एपिलेप्सी का इलाज करने वाला नकली डॉक्टर कब का पकड़ा जा चुका है ।
अस्थमा का कोई इलाज नहीं होता । दवाओं से और इन्हेलर से इसे कंट्रोल किया जा सकता है । आजकल इमरजेंसी में नेबुलाइज़र का इस्तेमाल बहुत काम आता है । नीम हकीमों के चक्कर में पड़कर अक्सर लोग अपना नुकसान करा लेते हैं ।
हमारा फ़र्ज़ तो सही मार्गदर्शन करना है । बाकि तो सब समझदार हैं यहाँ ।
मछलियों पर जानकारी अच्छी लगी ।
डॉक्टर दराल जी मुझे बचपन से अस्थमा ने जकड रखा है। मैंने हर तरह का इलाज लिया है परन्तु मुझे किसी भी इलाज से कोई फायदा नहीं हुआ ।
हटाएंप्लीज आप मेरी कोई मदद कर सकते हैं क्या ?
घनश्याम प्रजापति (अलवर, राजस्थान)
जानकारी प्रद आलेख . मछलियों की बिभिन्न प्रजातियों में डॉक्टर भी है ये नवीन जानकारी रही.
जवाब देंहटाएंमेरी पहचान वाले एक दमा से पीड़ित दंपत्ति थे. वर्षों पहले इस हैदराबादी मछली का सेवन किया था दमा से छुटकारा पाने के लिए पर उनका दमा तो उनके दम के साथ ही गया. अतः मैं तो इस चिकित्सा पर विश्वास नहीं करता पर हाँ मछलियों द्वारा शरीर चुनवाना जरुर आकर्षित करता है. पैरों में गुदगुदी बहुत होती होगी और अगर हम कमर तक पानी में घुस जाएँ तो क्या होगा ? शायद शरीर की ज्यादा गहराई से सफाई हो जाएगी :- ))
जवाब देंहटाएंअजी अगर यह मछली गले मे निगलते समय फ़ंस गई तो हो गया पक्का इलाज, वैसे दमा तो ठंडे इलाको मे होता हे, भारत जैसे गर्म देश मे दमा? चलिये हम तो इन मछलियो के चक्कर मे नही पडने वाले,कही गले मे फ़ंस गई तो....सुंदर जानकारी, डॉ टी एस दराल जी की बात से सहमत हे जी
जवाब देंहटाएंमेरी बड़ी इच्छा हो रही है इन मछलियों को पास से देखने की , रोचक और ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंNo doubt "Fish Spa "is finding place among the elite .
जवाब देंहटाएंNebulization ,puffs ,vaiso -dialators ,all relaxes the tiny air sacks of the lungs ,which in Asthma are filled with liquid and are contarcted ,making breathing shallow and difficult .
When modern medicine ,fails ,the steroids don't yield people rush to "Dr fish ",.
I remember one Panvadi (Paanvaalaa )used to give free medicines (small teblets )for Asthma ,which yielded results in chronic ailments of asthma ,my Nani was one to receive it .
Thanx for the imp post .
veerubhai .
दो-चार और ऐसी ही मछलियाँ ढूँढ ली गयीं तो फोर्टिस और एस्कार्ट की छुट्टी हो जायेगी :-) ...मज़ाक ही समझिए पर जाने क्यों मुझे इन चमत्कारों पर विश्वास ही नहीं होता.
जवाब देंहटाएंmay be the fish with its fillings of active or inactive salts act as a bronchodilator or else it has a placebo effect .Is this fish therapy also available for child below 5years of age as a cure for childhood asthma.
जवाब देंहटाएंVeerubhai .
जी हाँ ; खूब याद दिलाया आपने. जून में खास नक्षत्र आने पर हमारे हैदराबाद पर देश भर के दमाग्रस्तों का ऐसा हमला रहता है कि बाहर निकलते संक्रमित होने का डर सताता रहता है....उन लोगों को अन्य बीमारियाँ भी तो हो सकती हैं!
जवाब देंहटाएंमछली और दवाई के संयुक्त प्रभाव पर वैज्ञानिक और सांख्यिकीय दोनों ही प्रकार के अनुसंधान की आवश्यकता है.
मेरी उत्सुकता थी आखिर लोगों के लिए यह वरदान बनी यह अभिशप्त मछली कौन है?
जवाब देंहटाएंये सब इलाज कितने कारगर हैं यह तो पता नहीं पर हाँ आपका यह वाक्य इंसानी प्रवृति की हकीकत ज़रूर बताता है....
हैदराबाद की इन मछलियों के बारे में सुना था ...बहुत भीड़ होती है ...पढ़ा लिखा इंसान भी जब परेशां होता है , तो उम्मीद की किरण जहाँ नजर आती है , वहीँ दौड़ पड़ता है ...हालाँकि आजतक इस तरह दमे का इलाज़ सफल होने की पुष्टि नहीं हो पायी ..
जवाब देंहटाएंमछलियों की रोचक जानकारी ...!
ऐसी जानकारी प्राप्त करना भी काफी रोचक होता है। यह गर्रा मछली मिलेगी कहाँ ?
जवाब देंहटाएं@Rahul Singh said...
जवाब देंहटाएंकष्ट में पड़े मरीजों को ऐसे दावे बहुत आकर्षित करते हैं.
सत्य वचन। दिल्ली में दमे के एक मरीज़ से भेंट के दौरान यह पता लगा कि वे इस इलाज(?) के भुक्तभोगी थे और इसके बाद उनकी हालत और खराब हो गयी थी।
दमा वाली मछली तो सुनी थी पर डरमेटोलॉजिस्ट भी होती है ये नई जानकारी ।
जवाब देंहटाएं@Veerubhai,
जवाब देंहटाएंIndicated fish cures could be rigorously tested employing methodology of science ...there might be some alkaloid reducing severity of asthmatic attacks!
But yes contemporary allopathic medicines and devises efficiently treat/control asthma.
For children I think the Hyderabadi medicine would be administered in some other way like banana leaf etc and not the fish as it may be difficult for a child to swallow it !
@देवेन्द्र भाई -यह खाने की नहीं लगाने की मछली आपको कितने किलो चाहिए?
जवाब देंहटाएंमांग के आधार पर ही उत्तर और मूल्य निश्चित है!
डा. दराल साहब के शब्द ही मेरे भी हैं..
जवाब देंहटाएंजब आप तक सिफ़ारिश नहीं कर रहे हैं तो कौन लेगा इन डाक्टरों की सेवा?
जवाब देंहटाएंमछलियों की मदद से उपचार के बारे में रोचक जानकारी.
जवाब देंहटाएंहज़ारों लोग हैदराबाद आते है मिरग के दिन और अब तो यह एक बड़ा व्यापार हो गया है और सामाजिक संस्थाओं के लिए अपने बैनर लगाने का समय भी :)
जवाब देंहटाएंउम्दा जानकारी है. शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंपुराने जमाने में यही चिकित्सा थी। मेरे दादा जी चर्म रोग के लिए हर साल जोंक चिपका कर खून निकलवा देते थे।
जवाब देंहटाएंएक और थैरेपी चल रही है.
जवाब देंहटाएंगंजो के सिर पर जोँक चिपका कर नये बाल उगाये जा रहे है.
{---हिन्दुत्व की रक्षा के लिये और देश मे हिन्दुओ के खिलाफ हो रहे भयंकर षडयंत्र को सामने लाने के लिये हिन्दुओ द्वारा बनाये गये साझा ब्लाग पर आप पधारे.
जिसका पता है.
vishvguru.blogspot.com
बढ़िया जानकारी. और अन्ना की वाराणसी यात्रा का रिपोर्ट ?
जवाब देंहटाएंआद. अरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंआपकी तो रोचक जानकारी थी ही टिप्पणियों में भी रोचक जानकारी मिली ....
@ जो पेडीक्योर के लिए खूब इस्तेमाल में लाई जा रही है -पैर /तलवे की फटी बिवाईयों पर यह झुण्ड में टूट पड़ती है और मृत त्वचा को कुतर कुतर कर साफ़ कर देती है ..पैरों का सौन्दर्य निखर उठता है! .
अगर कुछ और गहरे कुतर गई तो .....?
वैसे फटी बिवाईयों के लिए बकरे की चर्बी में मोम डाल पिघला कर लगाई जाती है .....
@ मेरे दादा जी चर्म रोग के लिए हर साल जोंक चिपका कर खून निकलवा देते थे।
ये खतरनाक इलाज पहली बार सूना .....;)
@ एक और थैरेपी चल रही है.
गंजो के सिर पर जोँक चिपका कर नये बाल उगाये जा रहे है.
रोहित जी जोंक तो खून चूसती है बाल नहीं खींचती .....:)
@ खास किस्म के ऑक्टोपस को सुखा कर उसके पाउडर को खास तेल में डाल कर मालिश करने से अर्थराइटस की बीमारी दूर होती है...
@ एक दिन अपनी बिटिया के अनुरोध पर "गर्रा रूफा" से सेवा कराई थी , तमाम मछलियाँ आकर पैर पर चिपट गयीं थीं
satish जी आप भी .....?????????????
सिर्फ हेदराबाद में दमे के इलाज वाली मछली के बारे में सुना था. बाकी सारी जानकारी एकदम नई रही
जवाब देंहटाएंबढ़िया ज्ञानवर्धक पोस्ट.
हरकीरत हीर जी आपने सही कहा
जवाब देंहटाएंजोक खून चूसती है.
इस थैरेपी मे गंजो के सर पर जब जोक खून चूसती है. तो गंजो के सर के रोम छिद्र (जो कि बंद हो चुके होते है) वो खुल जाते है. जिससे नये बाल आना शुरु हो जाते है.
इस थैरेपी से बहुत लोग फायदा उठा रहे है और अभी ये थैरेपी बनारस मे ही उपलब्ध है.
रोचक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएं........
इन मछलियों के अतिरिक्त भी क्या कोई अन्य जीव वैद्य या हकीम ज्ञात है ?
........
एक सवाल था कि जब कौवे अपशकुनी या निम्न कोटि के पक्षी माने जाते हैं तो श्राद्ध के दिनों में उन्हें खाना खिला कर ये मान लिया क्यूँ जाता है कि पुरखे उन के द्वारा हमारा दिया खाना खाते हैं?.कौवे ही क्यूँ ?कोई और उच्च कोटि वाला पक्षी क्यूँ नहीं ??क्या तला हुआ खाना [पूरी आदि]खाने से कौवे बीमार नहीं पड़ते होंगे?[जिज्ञासावश ये सवाल किये हैं किसी की आस्था को ठेस नहीं पहुँचाना चाहती.]
@अल्पना जी ,
जवाब देंहटाएंकुछ अन्य जीवों का उल्लेख तो इसी पोस्ट में ही हुआ है -
हूक वोर्म की एक प्रजाति रोग प्रतिरोधन क्षमता बढाती है
अंतर्जाल पर ऐसे जीवों का विस्तृत वर्णनं भी मिल जाएगा ?
कौआ तो अपावन से पावन बन गया है -काक भुशुंडी का नामा तो सुना ही है आपने?
@हरकीरत हीर जी
जवाब देंहटाएं@अल्पना जी
http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2010-10-22/varanasi/28247559_1_leech-therapy-chronic-wounds-biochemical-analysis
जीव जंतुओं से चिकित्सा कार्य करने की प्राचीन परंपरा है। आधुनिक विग्यान ने उसकी जगह ज्यादा सुलभ रास्ते दिखाये, इस दृष्टि से गोली-दवाई लेकर झंझट से बचना भी साबित हुआ।
जवाब देंहटाएंसर्जरी तक में यह मान्यता रही कि चीरे पर जंगली चीटे के मुख-कंटक लगा दिये जाते थे, फिर चीटे को मार दिया जाता था, इस प्रकार घाव को टाँका जाता था।
डाकटर मछलियों पर इस जानकारी को देने के लिये शुक्रिया!!