अंग्रेजी में एक कहावत है ,बर्ड्स आफ सेम फेदर फ्लाक टुगेदर -मतलब एक जैसी अभिरुचियों और पसंद नापसंद के लोग एक साथ रहते हैं ...सहज दोस्ती मित्रता और घनिष्ठ सम्बन्ध तक ऐसी अभिरुचि साम्य की बदौलत ही होती है .कहते हैं की फला फला में दांत काटी रोटी है या फला फला एक आत्मा दो शरीर हैं ....कभी कभी यह रूचि साम्यता तो एक नजर में ही दिल में गहरे पैठ बना लेती है और कभी कभी अपना पूरा समय भी लेती है --अनुभूति की गहनता कभी कभी सम्बन्धों में किसी किसी को एक दूजे के लिए बने होने की परिणति तक ले जाती है ......एक सहज बोध सा हो जाता है कि फला अच्छा है और फला बुरा ....
आधुनिक युग की प्रेमियों की डेटिंग भी इसलिए ही लम्बी खिचती है ताकि जोड़े एक दूसरे की पसंद नापसंद को भली भाति समझ बूझ लें जिससे आगे साथ साथ निर्वाह कर सकें यद्यपि यहाँ भी कुछ धोखे हो जाते हैं और बाद में साथ रहना झेलने सरीखा होने लगता है...हमारे पूर्वजों ने हजारों सालों के प्रेक्षण के दौरान इन बातों को बहुत अच्छी तरह से समझ लिया था ...और इन कटु यथार्थों के बावजूद भी जीवन की गाडी खिचती रहे इसलिए कई सुनहले सामजिक नियम आदि बना कर मनुष्य की आदिम भावनाओं पर अंकुश लागना शुरू किया था ..दाम्पत्य में एक निष्ठता के देवत्व का आरोपण .उनमे से एक था ..लेकिन मूल भाव तो वही है आज भी -.जो जेहिं भाव नीक तेहि सोई....मतलब जो जिसे सुहाता है वही तो उसे पसंद है ....तुलसी यह भी कहते हैं कि मूलतः भले बुरे सभी ब्रह्मा के ही तो पैदा किये हुए हैं -पर गुण दोष का विचारण कर शास्त्रों ने उन्हें अलग अलग कर दिया है ...यह विधि (ब्रह्मा ) प्रपंच (सृष्टि ) गुण अवगुणों से सनी हुयी है .....यहाँ अच्छे बुरे ही नहीं ...पूरा चराचर ही जैसे परस्पर विरोधी द्वैत में सृजित हुआ है ...
दुःख सुख पाप पुण्य दिन राती . साधू असाधु सुजाति कुजाती
दानव देव उंच अरु नीचू . अमिय सुजीवनु माहुर मीचू
माया ब्रह्म जीव जगदीसा .लच्छि अलच्छि रंक अवनीसा
कासी मग सुरसरि क्रमनासा .मरू मारव महिदेव गवासा
सरग नरग अनुराग विरागा. निगमागम गुण दोष बिभागा
[बालकाण्ड (५)]
दुःख -सुख ,पाप पुण्य, दिन रात, साधु(भले) -असाधु(बुरे ) , सुजाति -कुजाति ,दानव -देवता ,उंच -नीच ,अमृत विष ,सुजीवन यानि सुन्दर जीवन या मृत्यु ,माया- ब्रह्म ,जीव- ईश्वर ,संपत्ति -दरिद्रता ,रंक -राजा ,काशी- मगध,गंगा -कर्मनाशा ,मारवाड़ -मालवा ,ब्राहमण -कसाई ,स्वर्ग -नरक ,अनुराग -वैराग्य ,ये सभी तो ब्रह्मा के ही बनाए हुए हैं मगर शास्त्रों ने इनके गुण दोष अलग किये हैं -प्रकारांतर से सृजन/सृजित का कोई दोष नहीं ,सब चूकि अलग अलग प्रकृति के हैं इसलिए इनमे मेल संभव नहीं है ....जो जेहि भाव नीक सोई तेही ...हाँ कुछ क्षद्म वेशी इस समूह से उस समूह में आवाजाही लगाये रहते हैं -चेहरे पर मुखौटे लगाये मगर कौन कैसा है यह भी बहुत दिनों तक छुपा नहीं रहता -उघरहि अंत न होई निबाहू कालनेमि जिमी रावण राहू ....अन्ततोगत्वा तो सब उघर ही जाता है ,अनावृत्त हो जाता है कि कौन क्या है ,रावण, कालनेमि, राहू --कब तक छुपे रह सकते हैं ये ....एक दिन तो .....
हम तो खुद को बुरा ही मानते हैं अगर अपनी कमियों को देखते हैं .....जो दिल देखू आपना मुझसा बुरा न कोय -खुशदीप ने ठीक उद्धृत किया ......यह कोई नया चिंतन नहीं है सदियों से मनुष्य इन पर विचार विमर्श करता आया है ......आप अच्छे बने रहिये ,तब तक तो हम स्वतः बुरे रहेगें ही .......