इसी बारह सितम्बर को अपुन की नौकरी के तीस वर्ष पूरे हो रहे हैं, पूरे तीन दशक। इसके बाद चार वर्ष और बचेगें। तेरह सितम्बर 1 9 8 3 का दिन यानि नौकरी का पहला दिन तो आज भी साफ़ शफ्फाक याद है, बाकी के लम्बे सफ़र की कुछ उजली कुछ धुंधली यादें ही अब शेष हैं . जिस राजपत्रित पद पर उत्तर प्रदेश के सेवा आयोग ने नियुक्ति दी थी वह काफी आकर्षक था -"व्याख्याता, मत्स्य विज्ञान और प्रबंध " लखनऊ में स्थित मोहकमाये मछलियान के हेड आफिस ने नियुक्ति के पूरे छह माह बाद नियुक्ति पत्र हाथ में थमाया तो लगा कि जैसे एक बड़ी सौगात मिल गयी हो . जबकि मेरे एक होस्टल सहवासी ने चेताया था कि "मिश्रा जी कहाँ इस मछली वछली विभाग में जा रहे हैं ,अरे महराज आप जैसे बहुमुखी प्रतिभा के आदमी को प्रशासनिक पद पर जाना चाहिए ..लोग तब कहेगें कि देखिये कलेक्टर साहब कितने साहित्यिक और सुरुचि संपन्न व्यक्तित्व के धनी हैं" -मुझे याद है मैंने उसके चेहरे को ध्यान से देखा था जहाँ तनिक भी तंज का भाव नहीं था-बस एक विवशता भरा आग्रह था वहां -मगर मैं भी विवश था और अपनी काबिलियत जानता था -प्रशासनिक सेवाओं के लिए जैसा मैं तब भी चुटकी लेता था और आज भी संजीदगी के साथ कहता हूँ -"पैशाचिक अध्ययन'' मेरे जैसे बिखरे हुए मानुष के बस की बात नहीं थी . इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मेरे तत्कालीन हेड आफ डिपार्टमेंट ने मेरे पिता जी से कहा था कि आपका लड़का "बहुत वाईड" अभिरुचियों वाला है, उसे फोकस करना होगा . मगर मैं खुद अपनी मदद करने में नाकामयाब था . लिहाजा यह नौकरी मुझे वरदान सी लगी और मैं इसे न स्वीकार करने का रिस्क मोल नहीं ले सकता था . तब का भावुक मन ऐसे मौकों और फैसलों के लिए ढेर सारी कहावतों और शेरों -शायरी का भी सहारा ले लेता था -मुझे याद है तब मन में यह शेर कौंधा था -मंजिल मिले न मिले मुझे इसका ग़म नहीं ,ज़िंदगी की जुस्तजू में मेरा कारवाँ तो है! विवाह हुए भी एक वर्ष बीत रहा था और मुझे जीवन की जिम्मेदारी संभालनी थी ..अपना न सही किसी और की जिन्दगी संभालनी थी -यह बार बार असहज करता ख्याल भी आता रहता था.
प्रशिक्षण संस्थान के प्रिंसिपल का पुराना किन्तु अब चाक चौबंद आवास
बहरहाल मत्स्य निदेशालय से नियुक्ति पत्र लपक कर मैं लखनऊ से करीब पंद्रह किमी दूर बाराबंकी रोड पर चिनहट स्थित मत्स्य प्रशिक्षण संस्थान की ओर बढ़ चला . बस ने चिनहट बाजार में उतार दिया और मैंने लोगों से बड़े गर्व भाव से मत्स्य प्रशिक्षण संस्थान का पता पूछा -लोगों ने कुछ ऐसे ढंग से मुझे देखा जैसे मैं कोई सिरफिरा हूँ -उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि उधर कोई संस्थान जैसा कुछ भी नहीं है। आखिरकार एक थोडा भद्र से दिखने वाले मानुष को यह लग गया कि मैं कहीं मछली ट्रेनिंग सेंटर की बात तो नहीं कर रहा -लोगों ने स्पष्टीकरण दिया नहीं ये तो कोई मतस्य (आज भी यह उच्चारण सुनने को मिलता रहता है ) संस्थान पूछ रहे थे ...मुझे थोड़ी निराशा सी हो चली थी ....उस सज्जन ने और अब तो सभी यह बताने लगे थे कि आगे से पतली रोड पर तीन किलोमीटर पर है टरेनिंग सेंटर -मैंने पूछा कोई सवारी -जवाब मिला कोई नहीं,पैदल जाईये नहीं तो इंतज़ार कीजिये कोई "खड़खड़ा" शायद उधर जाने वाला मिल जाए -अब तक मैंने ऐसे किसी वाहन का नाम नहीं सुना था -राग दरबारी में भी इसका जिक्र नहीं था . आखिर जल्दी ही एक एक्का -तांगा जो कुछ अलग सा दिख रहा था आ पहुंचा -समवेत आवाज गूंजी लीजिये खड़खड़ा आ गया . और मैं इस वाहन और अब तक जाने पहचाने तांगे का अंतर समझने लगा मगर यह निरीक्षण प्रक्रिया खडखड़े वाले की पुकार से रुक गई -मल्हौर जाना है साहब तो बैठिये ..बाद में मल्हौर रेलवे स्टेशन से भी परिचय हुआ .
मेरा पुराना किन्तु अब परित्यक्त आवास
प्रशिक्षण संस्थान पर पहुंचते ही मेरा अभूतपूर्व स्वागत हुआ -एक छात्र के रूप में ऐसे स्वागत का मैं अभ्यस्त नहीं था तो कुछ अजीब सा लगा ...कुछ अप्रस्तुत और असहज सा हो गया -यह तो बाद में मालूम हुआ कि वहां ट्रांसफर पर कोई आना नहीं चाहता था -जिसके कई कारण थे :-) ... कुछ ने कहा पूरी तरह ड्राई पोस्टिंग है,तब मैं समझा था जैसे गुजरात ड्राई स्टेट है ,वैसे ही प्रशिक्षण संस्थान में पूर्ण नशाबंदी है! बहरहाल ड्राई और वेट जैसी पारिभाषिक शब्दावलियों का अर्थबोध काफी बाद चलकर हुआ . नौकरी पाते ही उस निर्जन क्षेत्र में जल्दी ही पत्नी को भी इसलिए ले जा पाया क्योंकि वहां एक बात बहुत अच्छी थी - आवासीय व्यवस्था थी . व्याख्याता के लिए एक छोटा मगर अच्छा सा आवास उपलब्ध था . लखनऊ वहां से पंद्रह किमी दूर था मगर बिना नागा हर सन्डे गंजिंग (लखनऊ के मुख्य पाश बाज़ार हजरत गंज घूमना) और सिनेमा देखने शादी में मिले नए स्कूटर चेतक पर पत्नी को बिठा कर ले जाना होता था ... बड़े रोमांटिक दिन थे वो ..बस एक सप्ताह में दो लेक्चर लेने थे.
इतने समय बाद -पूरे दशक बाद मैं अभी पिछले माह फिर चिनहट गया -व्याख्यान देने .सब कुछ बदल गया था . आँखें जो देख रही थी उस पर भरोसा नहीं हो रहा था -जहाँ खडखड़े चलते थे अब फर्राटे से मोटर गाड़ियाँ दौड़ रही थीं .लखनऊ महानगर अब यहाँ तक के अक्षत परिवेश को अपने आगोश में ले चुका था -कंक्रीट का विशाल जंगल कभी नीरव और शांत रहे इस स्थान पर उग आया था . मैं आग्रहपूर्वक अपने आवास को देखने गया -हम लोगों के जाने के बाद उसमें कोई नहीं आया था ..पहले भी हमने ही उसमें गृह प्रवेश किया था .क्योकि लोगों का यह दावा था कि उसकी छत पर भूत और चुडैलें नाचती हैं .सहसा मुझे लगा कि यह परित्यक्त आवास जैसे मुझसे कह रहा हो कि आईये हमें एक बार फिर आबाद करिए .......जारी ......
यह श्रृंखला मेरे बच्चों, कौस्तुभ और प्रियेषा को समर्पित है जिन्होंने मेरे सेवाकाल का बहुत कुछ न देखा है न जाना है.
सर,,, बारह सितंबर को आपकी नौकरी के तीस वर्ष पूरे हो रहे वहीँ, 11 सितंबर को हम 19 वर्ष के हो रहे हैं!! आपकी नौकरी के तीस वर्ष पूरे होने पर बधाई स्वीकार करें। आभार।
जवाब देंहटाएंनये लेख : भारत से गायब हो रहे है ऐतिहासिक स्मारक और समाचार NEWS की पहली वर्षगाँठ।
"शिक्षक दिवस" पर विशेष : भारत रत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के महत्वपूर्ण विचार और कथन
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनौकरी के तीस वर्ष पूरे होने पर हार्दिक बधाई ,,,
RECENT POST : समझ में आया बापू .
आपको हार्दिक बधाई ! हमारा कामकाज भी 1 सितम्बर 1981 से जोड़ लें :)
जवाब देंहटाएंजीवन के किसी भी आरंभ में हमें अन्दाज तक नहीं होता कि हम वास्तव में पहुँचेंगे कहाँ।
जवाब देंहटाएं“प्रशिक्षण संस्थान के प्रिंसिपल का पुराना किन्तु अब चाक चौबंद आवास”
जवाब देंहटाएंउत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों के लिए टाइप-4 आवास का यह नक्शा सभी जिलों में दिखायी देता है। आप भी देवरिया में ऐसे आवास में रहे होंगे जो शायद अगली कड़ियों में पता चलेगा।
ब्लॉगरी न होती तो आप यह सब कहाँ बाँट पाते...!
आपसे प्रेरित हो हर स्थानान्तरणीय जीवों को भी कुछ लिखना चाहिये।
जवाब देंहटाएंतीस साल नौकरी के पूरे हुये/होंने वाले हैं -बधाई हो!
जवाब देंहटाएंक्रमश: के इंतजार में।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. हिंदी लेखक मंच पर आप को सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपके लिए यह हिंदी लेखक मंच तैयार है। हम आपका सह्य दिल से स्वागत करते है। कृपया आप भी पधारें, आपका योगदान हमारे लिए "अमोल" होगा | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा |
जवाब देंहटाएंमैं रह गया अकेला ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः003
आप तो नोस्टालजिक हो लिए !
जवाब देंहटाएंसेवाकाल के तीस वर्ष पूरे करने की बधाई ! रोचक संस्मरण .
जवाब देंहटाएंबहुत दिलचस्प संस्मरण।
जवाब देंहटाएंअपने पुराने निवास पर जाकर कैसा महसूस होता है , यह हम समझते हैं.
बरसों बीत गए पता नहीं चला ...
जवाब देंहटाएंअभी आपको काफी समय और रहना है !
रोचक शुरूआत
जवाब देंहटाएंइस श्रृंखला का शुभारंभ बहुत रोचक है, अवश्य ही अगली कडि़याँ और भी मनोरंजक होंगी।
जवाब देंहटाएंसाक्षी भाव से लिखा गया बड़ा जीवंत संस्मरण पढ़ वाया आपने। अब कोर्ट कचहरी को न्यायालय कहोगे तो लोग सिरफिरा तो समझेंगे ही। मछली ट्रेडिंग और ट्रेनिंग तो आज तक संसद में भी होवे है।
जवाब देंहटाएंसरकारी नौकरी के 30 साल जोशो-खरोश से काटने की बधाई हो मिश्र जी।
जवाब देंहटाएंinteresting :) waiting for the next
जवाब देंहटाएंप्राञ्जल प्रस्तुति । जीवन के उत्तरार्ध्द में अतीत,आँखों में शरारत भर कर पुकारता रहता है और हम हर बार उसे तरज़ीह देते हैं जबकि जीवन के पूर्वार्ध्द में भविष्य, सरगम के सुर में पुकारता है और इन्सान गिल्ली की तरह उछलता रहता है ।
जवाब देंहटाएंपुराने सुहाने दिन.. गजब होते हैं.. वे कभी लौटकर नहीं आते.. और उनसे ही विकास / प्रगति नजर आती है..
जवाब देंहटाएंतीस साल पूरे करने की बधाई. आपके जीवन के बहुमूल्य तीस सालों का लेखा जोखा पढना अच्छा लगेगा, इंतजार करेंगे.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपके एचओडी गहरी समझ रखते थे, आपकी दृष्टि बहुत विस्तृत है
जवाब देंहटाएंजीवन कितनी सुखद स्मृतियाँ और जीवन के उतार चढाव लिए होता है जब मुड़कर देखो ...ढेरों शुभकामनाएं आपको
जवाब देंहटाएंsukhad smritiyan...
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen..
बीता हुआ भारी समय भी साझा करते हुए बहुत ही हल्का हो जाता है.. शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंquite interesting :)
जवाब देंहटाएंबधाई तीस वर्ष पूरे होने की ... इस लंबे सफर की यादें उससे भी लंबी होंगी ... पुरानी जगहों पे दुबारा जाने का मन हमेशा करता है ... रोचक शुरुआत है ये ...
जवाब देंहटाएंरोचक !
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर जी
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम |
आपका तीसवाँ वर्ष मुबारक हों ,आपके तीस वर्षों के इस सफर का अनुभव हमे बहुत कुछ सीखएंगा ,कृपया शेयर किजियेंगा |
बहुत ही रोचक लेखनी ,अदभुत ब्लॉग |
- “अजेय-असीम "
बढ़िया :)
जवाब देंहटाएंथोडा और पहले से शुरू करना था ... कॉलेज के दिन तो छुट ही गये.
इसके बाद वो श्रृंखला आनी चहिये - बचपन से नौकरी तक।
तीन दशक काफी लम्बा वक़्त होता है. बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंनौकरी के तीस वर्ष पूरे करने पर बधाई!
जवाब देंहटाएंऔर यह पोस्ट संस्मरण से अधिक कथा सरीखी रुचिकर लगी.
मंजिल मिले न मिले मुझे इसका ग़म नहीं ,ज़िंदगी की जुस्तजू में मेरा कारवाँ तो है!''
बहुत खूब सोचा था आप ने !
शृंखला की अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी.
I'm going to love this series.. :)
जवाब देंहटाएंsundar........jari rahe .....
जवाब देंहटाएंpranam.