शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

वक्ष सुदर्शनाएँ!

भारत के एक मशहूर मीडिया हाउस ने अपनी एक प्रमुख पत्रिका के अंगरेजी हिन्दी दोनों संस्करणों के ताजे अंक की कवर स्टोरी को नारी वक्षों में  उभार के प्रति आयी नयी चेतना को समर्पित  किया है और कवर पृष्ठ पर जाहिर है स्टोरी के अनुरूप एक नयनाभिराम चित्र भी लगाया है -अब चिल्ल पों शुरू हो गयी है ...और पत्रिका द्वारा सौन्दर्य सर्जरी पर प्रचुर सामग्री को दरकिनार कर पत्रिका ग्रुप के व्यावसायिक हथकंडों ,नीयत , शुचिता आदि पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं -लानत मलामत किया जा रहा है .पता नहीं ये भारतीय जेंटलमैन कब परिपक्व होंगें?  ....और अपने तमाम पूर्वाग्रहों ,वर्जनाओं से मुक्त हो खुली हवा में सांसे ले पायेगें .
किसी ने सच कहा था कि एक आम भारतीय जीवन भर कई तरह के परस्पर विरोधी विचारों, आईडीओलोजी ,वर्जनाओं के द्वंद्व में जीवन काट देता है ...जितना एक आम भारतीय गलत- सही के भंवर में डूबता उतराता रहता है उतना शायद ही कोई अन्य देशवासी .उसे माडर्न बनने दिखने  की ललक भी होती  है तो वह अपने कितने अप्रासंगिक हो रहे रीति रिवाजों में  भी आसक्ति बनाए चलता है . लिहाजा उसका सारा जीवन ही एक तरह की उहा पोह और किंकर्तव्यविमूढ़ता में बीत जाता है .मुझे याद है मेरे एक परिजन केवल इसलिए नसबंदी नहीं करा पाए कि समाज के सामने सकुचाते रहे और अब कई लड़कियों की शादी में सब कुछ बेंच   बांच  भिखारी जीवन जी रहे हैं .....कई लोग अभी भी इसी तरह दूकान पर कंडोम मांगने में बला का संकोच करते हैं..किस युग में जी रहे हो भाई लोग :) 
बहरहाल मुद्दे की चर्चा की जाय ...दुनियां  में ब्रेस्ट सर्जरी इम्प्लांट की अर्धशती मनाई जा रही है ....१९६२ में टिमी जीन लिंडसे नामकी टेक्सास की महिला  ने अपने वक्षों को सुन्दर लुक देने के लिए सर्जरी के जरिये सिलिकन राड्स का इम्प्लांट कराया था ..और तबसे तो यह मानो नारी सौन्दर्य के अनेक जुगतों की फेहरिश्त का एक फैशनबल ट्रेंड ही बनता गया है .पश्चिमी दुनियाँ, हालीवुड की तो छोडिये अपने भारत में भी अब सौन्दर्य सर्जरी का व्यवसाय फलफूल रहा है .दक्षिणी अफ्रीका में तो हर वर्ष राष्ट्रीय क्लीवेज दिवस  विगत २००२ से मनाया जा रहा है ..जहां वक्ष सुदर्शना नारियों का जमघट लगता है! भला सुन्दर दिखने की चाह किसे नहीं होती ..नारी या पुरुष ...नारी जहां अब ज्यादा विवर जागृत (क्लीवेज कान्सस) हो गयी है मर्द अपनी छाती की  अनावश्यक चर्बी (मूब =मेल बूब =गायिन्कोमेस्टीया को हटाने के  लिए सर्जरी का  सहारा  ले रहे हैं . मेट्रो भारत में सौन्दर्य सर्जरी का धंधा फल फूल रहा है .सौन्दर्य सर्जनों के पास हीरोईनें ही नहीं ,साईज जीरो गर्ल्स ,भावी दुलहनों,महत्वाकांक्षी प्रोफेसनल ,समृद्ध चालीस प्लस युवतियों का ताँता लग रहा है .सभी को अन्यान्य कारणों से सुन्दर सहज दिखने की चाह है ..कैंसर जैसे महारोग से अभिशापित मरीज भी इसी सर्जरी के भरोसे हैं ... 
हलांकि ऐसी सर्जरी पूरी तरह निरापद नहीं हैं ,कहीं कहीं से सिलिकान राड/जेल के इम्प्लांट से कैंसर होने की भी रपट है मगर इन मामलों का अनुपात अभी भी बहुत कम है .सिल्कान इम्प्लांट से हमेशा दर्द बने रहने की शिकायत भी मिलती रहती है मगर सर्जरी में निरंतर सुधार होने से इन समस्याओं पर उत्तरोत्तर अंकुश लगता आया है . दिल्ली के गुडगाँव की  मेदान्ता मेडिसिटी में कास्मेटिक सर्जरी की यह सुविधा उपलब्ध है -हालांकि यहाँ चिकित्सक सौन्दर्य सर्जरी के इच्छुक लोग लुगायियों के कई भ्रमों का भी निवारण करते हैं...वक्षों की आयिडियल शेप साईज को लेकर भी कई तरह की दुर्निवार शंकाएं लोगों को रहती है -चिकत्सक कहते हैं कि 'आंसू सदृश ' आकार ही नारी वक्ष का सबसे नैसर्गिक शेप है . न ही एकदम गोलाकार और  न उन्नत जैसा कि प्रायः  लोगों के मन का फितूर होता है .
भारत में वक्ष सौन्दर्य सर्जरी की शुरुआत मुम्बई में १९७३ में शुरू हुयी थी जब एक मुंहढकी नाम छुपी महिला का ऐसा आपरेशन डॉ. नरेंद्र पांड्या ने आधीरात के सन्नाटे में किया था मगर अब तो उनके पास ऐसे आग्रहों की खुलेआम भीड़ लगी होती है ... प्लास्टिक सर्जन्स असोसिएशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ सौन्दर्य वक्ष सर्जरी के मामले पिछले पांच वर्ष में काफी बढ़ गए हैं .अकेले वर्ष २०१० -२०११ में ५१००० ब्रेस्ट इम्प्लांट सर्जरी हुई है जबकि पूरी दुनियाँ का यह आकंडा डेढ़ लाख तक जा पहुंचा . सौन्दर्य की इस चाहना में कोई बुराई तो नहीं दिखती ....राखी सावंत को भी नहीं दिखती जो इस सर्जरी के बाद  वक्ष गर्विता बनी कहर ढा रही है और इस सर्जरी की प्रशंसा करते नहीं अघातीं ....
इसी परिप्रेक्ष्य में, इस नए ट्रेंड को कवर करती  चर्चित पत्रिका के हिन्दी- अंगरेजी संस्करणों को लिया जाना चाहिए ....

40 टिप्‍पणियां:

  1. महाराज....आखिर आप उस मीडिया-हाउस की एक तरह से वकालत ही कर रहे हैं जिसने मुद्दे के बजाय विशुद्ध व्यावसायिकता को तरजीह दी है.
    मेरा विरोध कंटेंट को लेकर नहीं बल्कि एक अश्लील चित्र के बहाने पत्रिका की नकली चिंताओं को लेकर था.

    ..राखी सावंत,पूनम पांडे या मल्लिका सहरावत किसी भी तरह हमारे समाज की आदर्श हैं क्या ? यह पत्रिका 'साप्ताहिक हिंदुस्तान' व 'धर्मयुग' के विकल्प के रूप में उभरी है और इसलिए यह सब अखरता है,वर्ना दूसरी फैशन-पत्रिकाओं पर इससे ज़्यादा आपत्तिजनक चित्र आते हैं.यह जन-सामान्य की पत्रिका रही है अगर अंदर के पन्नों पर ऐसा किया जाता तो शायद इतनी आपत्ति न होती !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
  2. "जिसकी रही भावना जैसी,
    ........ तिन्ह देखी तैसी" वाली बात है | वरना बिना बात का विवाद खड़ा करना तो हिन्दी ब्लागिंग का शगल है |
    ज़रा गंभीर होकर अश्लीलता की बात करें तो,
    कुछ फिल्मों में जहाँ दो प्रेमियों अथवा जीवनसाथियों के मध्य शारीरिक सम्बन्ध भी उतनी सहजता से दिखाए जाते हैं कि कोई असामान्य उत्तेजना नहीं होती, वहीँ कुछ फिल्मों में केवल बारिश में भीगते हुए पूरे कपड़ों में ऐसे द्रश्य दिखाए जाते हैं कि असहज हुए बिना रहा नहीं जाता | अश्लीलता कहाँ है, आप खुद तय करें |

    जवाब देंहटाएं
  3. @बहुत आभार नीरज!
    आप सरीखे मित्र न हों तो नादान दोस्त ले ही डूबें! :)
    दरअसल नज़रिए का ही फर्क है !

    जवाब देंहटाएं
  4. दिल और दिमाग में द्वंद्ध हमेशा ही रहता है . दिल कहता है -- यह नहीं होना चाहिए . दिमाग कहता है -- कब तक बचोगे बच्चू . पर्दानशीं अब बेपर्दा होने लगे हैं . कोई कैसे रोक सकता है भला . समय के साथ चलना ही पड़ेगा .

    जवाब देंहटाएं
  5. सोच अपनी अपनी, नजरिया अपना अपना और वर्जनाएं भी अपनी अपनी.

    जवाब देंहटाएं
  6. थोड़ा मन चंगा कर लें तो इन सबकी आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

    जवाब देंहटाएं
  7. मैं प्रवीन जी से बिलकुल सहमत हूं... अगर मन सुंदर हो तो इन सब चीज़ों की आवश्यकता नहीं होती ... मेरे नयी पोस्ट पर आपकी कीमती टिपण्णी का इंतज़ार रहेगा ...

    जवाब देंहटाएं
  8. @क्षितिजा जी
    आपके पोस्ट पर मुझे कमेन्ट आप्शन ही नहीं दिख रहा

    जवाब देंहटाएं
  9. हम भी यही सवाल पूछ रहे हैं- पता नहीं ये भारतीय जेंटलमैन कब परिपक्व होंगें?

    जवाब देंहटाएं
  10. अपना अपना नजरिया है, खूबसूरती की तारीफ को ख़राब नहीं कहा जा सकता , हाँ कुछ लोग ईमानदारी का नाटक अधिक करते हैं !
    शुभकामनायें आपको !

    जवाब देंहटाएं
  11. हम कब मानसिक रूप से परिपक्व होंगे, ये तो हमारी संस्कृति में बहुत पहले से है, बस अब सबको खुल्ले में होना जायज नहीं लग रहा, वैसे तो सबके मन और दिल में उमंगें होती हैं, अच्छॆ से अच्छॆ फ़िसल लेते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  12. नज़रिया अपना अपना है .... बात है इस सर्जरी के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष में पत्रिका का आवरण पृष्ठ ...

    जवाब देंहटाएं
  13. और वक्ष के कुसुम कुञ्ज ,सुरभित विश्राम भवन ये ,



    जहां मृत्यु के पथिक बैठ कर श्रान्ति दूर करतें हैं .



    ये वक्ष प्रदेश ही है जिसे देख कवि कह उठता है -



    सत्य ही रहता नहीं ये ध्यान तुम कविता ,कुसुम या कामिनी हो .



    पीन -स्तनियों का संस्कृत साहित्य में ज़मके ज़िक्र किया गया है .



    अधुनातन भाषा अंग्रेजी में कह देते हैं वक्षस्थल को 'असेट्स ऑफ़ ऐ वोमेन '

    प्राथमिक स्रोत हैं ये अन्न का .नवजात का टीका होती है पहली फीड जो उसे ताउम्र इम्युनिटी प्रदान करती है .

    इसीलिए वक्ष का अपना आकर्षण लावण्य है .क्या रख्खा है साइज़ जीरो में ?साइज़ जीरो वाली जाने .अब तो सौन्दर्य प्रतियोगिताओं से भी इन्हें बेदखल किया जा रहा है .कई मुल्कों ने यह कर दिखाया है .

    कृपया यहाँ भी पधारें -
    अवसाद से छुटकारे के लिए कंप्यूटर थिरेपी

    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
    आरोग्य की खिड़की

    आरोग्य की खिड़की
    एक असामान्य प्रसव :जब मुरगी ने सीधे- सीधे चूजा पैदा किया
    http://veerubhai1947.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  14. इस तरह के तमाम बदलाव भी तो मन को स्थिर नहीं कर पा रहे हैं.... अपनी सोच को स्थायित्व दिए बिना कुछ मुमकिन नहीं

    जवाब देंहटाएं
  15. कैंसर के मरीजों में इस प्रकार की सर्जरी उनके आत्मविश्वास को बनाये रखने के लिए की जाती है , जबकि ये तथाकथित नारीवादी सुदर्षनाएँ खुद को प्रोडक्ट बनाने के लिए ! अब इससे किसका क्या भला होता है , बताने में क्या रखा है !

    जवाब देंहटाएं
  16. दिक्कत ये है कि यहां हर बंदा डिक्टेट करने पे उतारू है उसे अपने इशारों पे नाचती हुई धरती चाहिये :)

    पर धरती को क्या चाहिये इसकी चिंता नहीं है उसे !

    जवाब देंहटाएं
  17. अकेले वर्ष २०१० -२०११ में ५१००० ब्रेस्ट इम्प्लांट सर्जरी हुई है जबकि पूरी दुनियाँ का यह आकंडा डेढ़ लाख तक जा पहुंचा - हो रहा भारत उत्थान, हो रहा भारत उत्थान|

    कल दीपक बाबाजी की पोस्ट पर एक कमेन्ट किया था, मुझे तो वो यहाँ भी मौजूं लग रहा है
    एक बहुत पुराना पंजाबी गाना है, 'जिसने आप तली ते रख ली जान, उसनूं कौन बचा लऊगा' याद आया|
    फिर त्वाडी पोस्ट ते साड्डा ओरिजिनल कमेन्ट पेश है, जिस विच चोरी दा शेर है
    'किस किसको याद कीजिये, किस किस को रोइए,
    आराम बड़ी चीज है, मुंह ढांककर सोइए'

    जवाब देंहटाएं
  18. " आँसू के आकार के वक्ष " शोध का नया विषय मुहैय्या करा दिया आपने |

    जवाब देंहटाएं
  19. वाकई, पता नहीं ये भारतीय जेंटलमैन कब परिपक्व होंगें?
    किंतु परिपक्वता है किस बात में?

    आमोद-प्रमोद के चिंतन में रत रहना परिपक्वता है या जीवन संघर्ष में पुरूषार्थ करना परिपक्वता है।

    मनमौज,सौन्दर्यपान,मनोरंजन, प्रतिक्षण स्पन्दन चिंतन को परिपक्वता का प्रमुख आधार माना जाय। या सामान्य व्यवहार, गम्भीर चरित्र, व्यक्तित्व निर्माण, सार्थक लक्ष्य प्राप्ति में संघर्ष को परिपक्वता का प्रधान आधार मानें?

    जवाब देंहटाएं
  20. @सुज्ञ ,एक बात प्रवीण जी ऊपर कह गए हैं कि जब मन चंगा हो तो जरुरत नहीं है इसकी ...
    मगर चंगा कैसे हो इस पर कोई प्रकाश नहीं डाला -क्या गंगा में नहाने से मन चंगा होगा ..
    मगर अब तो गंगा भी मैली हो गयी --
    हम तो भाई ऐसी ही सोच का जीवन दर्शन रखते हैं -विलासिताभरा विचार और साधारण जीवन ! :)

    जवाब देंहटाएं
  21. ---पर मन के चंगा होने की परिभाषा क्या है..हर नयी चीज़ को स्वीकर कर लेना, विना विचारे..बस मीडिया की सलाह-सोच पर... चाहे आवश्यकता हो या न हो... यह बात कोऊ राजा होय हमें का हानी- वाली मानसिकता है ...वही बात नीरज जैसे लोगों, व डा दराल के समय के साथ चलने के बारे में लागू होती है..
    ---सही कहा सन्तोष त्रिवेदी ने...पत्रिकाओं का नकली चिन्तन..अश्लीलता का व्यवसाय....और न राखी...पूनम ...मल्लिका कोई समाज की आदर्श हैं...ये तो डिर्टी-पिक्चर की सिल्क की राह भेजने वाली हैं समाज को...
    --- सही कहा वाणी जी ने.. तुलना ही असंगत है..कहां केन्सर की सर्जरी कहां खुद को प्रोडक्ट बनाकर बेचने की ललक..
    ---और वीरू भाई जी साहित्य में यह बात सामान्य..प्राक्रतिक, सहज़ प्रदत्त सुडौलता के लिये है...इम्प्लान्ट के लिये नहीं...जो शूर्पणखा ने कराये थे..

    जवाब देंहटाएं
  22. मान्यवर अरविन्द जी,
    मेरा कथन आपके व्यक्तित्व पर नहीं है, आपके आलेखों को विशेष रूप से पढ़ता हूँ। और उसी माध्यम से परिचित भी हूँ। कृपया व्यक्तिगत न लें।

    बात सौन्दर्य के अश्लील रूप को सहजता से न ले पाने पर 'परिपक्वता'पर है। आपके विचार थे, मैने उन्ही विचारों पर चर्चा के लिए प्रश्न किया था कि परिपक्वता किसे कहें?
    @एक बात प्रवीण जी ऊपर कह गए हैं कि जब मन चंगा हो तो जरुरत नहीं है इसकी ...
    मगर चंगा कैसे हो इस पर कोई प्रकाश नहीं डाला -क्या गंगा में नहाने से मन चंगा होगा ..
    मगर अब तो गंगा भी मैली हो गयी --
    -गंगा नहाने से न तो मन चंगा होता है न परिपक्वता आती है। हां विचारों का शुद्धिकरण एक प्रक्रिया हो सकती है। कि अनवरत हम अपने मस्तिष्क को अच्छे विचारों के संदेश भेजते रहें। सार्थक निष्कर्ष ग्रहण करें और सकारात्मक सोचें, प्रभावो पर चिंतन करें और दुष्प्रभावों से बचें।
    शुद्धिकरण पर ऐसा मात्र मेरा मानना है, मैनें अभी तक प्रयास किया नहीं पर अनुमान है ऐसे हो सकता है।

    जवाब देंहटाएं
  23. '' यत्र सुदर्श्नाएं दृशयंते ( पूज्यन्ते ) , तत्र दक्ष लोचनाय ( देवता ) रमन्ते... ''

    जवाब देंहटाएं
  24. एक आम भारतीय जीवन भर कई तरह के परस्पर विरोधी विचारों, आईडीओलोजी ,वर्जनाओं के द्वंद्व में जीवन काट देता है ...जितना एक आम भारतीय गलत- सही के भंवर में डूबता उतराता रहता है उतना शायद ही कोई अन्य देशवासी .उसे माडर्न बनने दिखने की ललक भी होती है तो वह अपने कितने अप्रासंगिक हो रहे रीति रिवाजों में भी आसक्ति बनाए चलता है . लिहाजा उसका सारा जीवन ही एक तरह की उहा पोह और किंकर्तव्यविमूढ़ता में बीत जाता है।

    ...एकदम सही है। लेकिन पहचानिये। उसकी मजबूरी को समझने का प्रयास कीजए। यह आम भारतीय वह मध्यम वर्गीय है जो अपने आर्थिक, सामाजिक विवशताओं के कारणों से इससे ऊपर नहीं उठ पाता। वह जीवन भर दंश सहता रहता है। उसकी गरीबी और इस किंकर्तव्यविमूढ़ता के दंश का ऐसे ही उपहास उड़ाया जाता है। वह आगे बढ़े तो सबसे पहले उसके परिवार वाले ही उसका पैर पकड़कर खींचने लगते हैं। वर्जनाएं त्यागे तो थप्पड़, वर्जनाओं में रहे तो रूढ़िवादी होने का आरोप! समाज के जितने भी धार्मिक कायदे हैं, सबको मानने के लिए अभिशप्त!

    सब कानून गरीबन बदे हौ। धनिक जौन करें बौद्धिकता, गरीब आह भरे तौ बेवकूफी।

    गरीब कहे ई अश्लील हौ.. ई त हमरे घरे न चली त होई गये बंटाधार। ऐसन ऐसन तरक की बिचारा मारे शरम के भुइंया लोटे लागे। अब ऊ जाये त कहां जाये? अरे हमहूँ त देखे रहे पोरन वाला भीडियो! हमहूँ त हई अपराधी! अब ऊ कैसे कहे कि हम त देखे रहे लेकिन लइकन के न दिखाब। जब लइका बड़ा होइयें त मन करे देखियें, मन नाही करी ना देखियें..अबहिन त न दिखाब। जे दिखाय रहा है ऊ गलत है।

    जवाब देंहटाएं
  25. देवेन्द्र जी मैं आपकी पीड़ा समझ रहा हूँ -मगर यही वह क्लैव्यता भी है जिसके चलते इसी वर्ग का शोषण भी लोग इसी तरह की
    मुंह दुबरई के कारण कर देते हैं और विचारे चुपचाप बर्दाश्त भी कर लेते हैं ....
    अब कुछ तेज तर्रार बनने का वक्त है -छुई मुई होकर शोषण कराने का नहीं .....

    जवाब देंहटाएं
  26. @सुज्ञ जी ,
    मैं सहजता ,नैसर्गिकता को सबसे सहज जीवनचर्या मानता हूँ ...हाँ हर समाज के नैतिक मानदंड होते हैं ...
    मनुष्य को उनका पालन अपने विवेक के साथ करना चाहिए ...विपरीत सेक्स आकर्षित करता है मगर यहाँ भी
    परिवार, स्वजन,रक्त सम्बन्धों में अगम्यागम्य का ख्याल किसी भी विवेकवान को करना चाहिए ....आदि आदि ...
    हाँ ब्रह्मचर्य के प्रयोग कोई जरुरी नहीं है -इस पर समय जाया करना मेरी दृष्टि से उचित नहीं है ..आदि आदि ...
    हम लोग किसी मध्य बिंदु पर पहुँच सकते हैं -और इस समेकन की जरुरत भी है !

    जवाब देंहटाएं
  27. @अमृता: आपकी संस्कृत अच्छी है :) ..क्या लोचनाय की जगहं लोफराय हो सकता है :)

    जवाब देंहटाएं
  28. @डॉ.श्याम गुप्त ,
    अहो भाग्य आप पधारे ...
    तनिक ये तो बताईयेगा कि सूर्पनखा ने कौन कौन से इम्प्लांट कराये थे बंधुवर -यह तो बड़ी सूझ -शोध है !

    जवाब देंहटाएं
  29. जिसे हम भारतीय सज्जन की द्वैध दुविधा समझ रहे है वस्तुतः वह दुविधाग्रस्त है नहीं। अमुमन भारतीय सज्जन चारित्रिक संस्कृति के बचाव और सार्थक आधुनिक विकास का समन्वय करने के लिए संघर्षरत है। वह सभी तरह के खुल्लेपन को आधुनिक विकास नहीं मानता, वह मानव जीवन के लिए शान्तिप्रिय संतुष्टिप्रदाता विकास को सार्थक आधुनिक विकास मानता है। चरित्र और जीवनमूल्यों की गुणवत्ता उस आधुनिक विकास में योगदान देगी न कि द्वैध या विरोधाभास पैदा करेगी। भारतीय संस्कृति उस समय का इन्तजार कर रही है जब विश्व की विकसित सभ्यता तृष्णाओं के भंवरजाल से थक हार कर चरित्र और नैतिक जीवनमूल्यों के ट्रेंड पर आ जाए और भारत उन आधुनिक विचार या फैशन के नाम से उस ट्रेंड को अपनाए। तब तक भारतीय मूल सांस्कृतिक सिद्धांत अगर बचे रह जाय तो भारतीयों के लिए सर्वाधिक सफल मार्ग होगा। और अगर निर्थक पम्परा या रूढ़ियाँ मानकर त्याग दिया तो तब विकास के मार्ग को पश्चिम से ही शतप्रतिशत आयात करना होगा। ऐसी दशा में हो सकता है मानवीय विकास की अवधारणा भी हम तक अशुद्ध रूप में पहुँचे। और उसे परिशुद्ध करने के साधन और सिद्धांत हम पूरी तरह भूल चुके हों। इसलिए यह द्वैध नहीं समन्वय का संघर्ष है। आशा करें कि हम भारतीय इसमें सफल हो।

    जवाब देंहटाएं
  30. काफ़ी इन्फ़ॉर्मेटिव पोस्ट है। हमें इस पत्रिका के तौर तरीक़ों से क्या लेना-देना।

    जवाब देंहटाएं
  31. अगर कल्पना के धरातल पर थोड़ी देर के लिए हम इसे बिकना मान लें तो क्या यह बिकने योग्य के विरुद्ध बिकने अयोग्य का हाहाकार / प्रलाप नहीं है :)

    जवाब देंहटाएं
  32. स्वाभाविक है सौंदर्य के प्रति यह सजगता (?)
    पर नैसर्गिकता तो नैसर्गिक में ही है ...

    जवाब देंहटाएं
  33. क्षमा चाहती हूँ पर ऐसे cover page को लगाना और स्वीकार करना बड़ी मानसिकता नहीं छोटी मानसिकता का परिचायक है जिसमे नारी को सिर्फ sex object और marketing का साधन मात्र मान लिया गया है और बाहरी सौंदर्य को इतना ज्यादा महत्त्व देना कि उसके आगे नारी के बाकी सारे गुण गौण होने लगे ये भी बड़ी नहीं छोटी मानसिकता ही कही जाएगी.
    मत भेद न बने मन भेद

    जवाब देंहटाएं
  34. इंडिया टुडे का स्तर गिरता ही जा रहा है । बिक्री बढाने के लिये सस्ते हथकंडे अपनाये जा रहे हैं . कभी इंडिया टुडे पूरे इंडिया की पत्रिका हुआ करती थी अब बस इंडिया शाइनिंग के लिये हो गई है ।

    जवाब देंहटाएं
  35. अरविन्द जी पोस्ट ज्ञानवर्धक है और उसी परिपेक्ष में लेना चाहिए ...
    आप किसी महिला डॉक्टर से पूछें उन्हें ये विवाद का विषय लगेगा ही नहीं ...!बात वहीँ आती है ....अपनी अपनी सोच ....अपना अपना नजरिया ....

    जवाब देंहटाएं
  36. मन चंगा कठौती में गंगा

    जवाब देंहटाएं

यदि आपको लगता है कि आपको इस पोस्ट पर कुछ कहना है तो बहुमूल्य विचारों से अवश्य अवगत कराएं-आपकी प्रतिक्रिया का सदैव स्वागत है !

मेरी ब्लॉग सूची

ब्लॉग आर्काइव