बुधवार, 14 दिसंबर 2011

एक काफी कथा......

अभी उसी दिन इस फिलम को देखने अपने एक हैण्ड इन ग्लव  मित्र एम एल गुप्ता जी के साथ जब टिकट विंडों पर पहुंचा तो सारी व्यग्रता धरी रह गयी ..कारण फिल्म साढ़े बारह के बजाय  डेढ़ बजे शुरू होनी थी ..पहले से हमें मालूम  समय बदल चुका था ....पूरा एक घंटा व्यग्रता के साथ काटना पहाड़ सरीखा लगा तो मैंने मित्रवर को काफी पीने का आमंत्रण दिया और जे एच वी मॉल के आधार तल पर अभी हाल ही में खुले कैफे काफी डे   तक हम जा पहुंचे ..यहाँ पूर्णतः सेल्फ सर्विस है ....हमने मीनू मंगवाया और मित्र से अपनी रूचि के मुताबिक़ आर्डर देने का अनुरोध किया ..उन्होंने  कहा बस एस्प्रेसो काफी पीते हैं ....मीनू /मेन्यू  कार्ड  में एस्प्रेसो काफी के साथ दिए चित्र में काफी फोम -झाग का दृश्य आमंत्रण भरा था .... मुझे याद है आर्डर  लेते समय काउंटर ब्वाय ने कुछ जिरह करने की भी हिमाकत की थी जिसे हमने कैफे काफी डे की सौजन्यता में एक माईनस प्वायंट के रूप में देखा था ....हमने एक न सुनी और निश्चयात्मक आवाज में जो आर्डर दिया गया है उसी को सर्व करने को कहा ...काश हमने उसकी बात  ध्यान से सुन ली होती ...मगर इसके बजाय  इन नए नए खुल रहे प्रतिष्ठानों  में प्रोफेसनलिज्म की कमी क्यों है इस मुद्दे पर हम बौद्धिक मंत्रणा करने लगे और इसी बीच काफी सर्व हो गयी ..कप में काफी की अत्यल्प मात्रा देख हम भौचक से रह गए .. लगभग ८० एम एल के काफी के मिनिएचर मगों में बस २५ एम एल काफी? एम एल गुप्ता मेरे मित्र भड़क उठे ....  बस इत्ती सी काफी और पूरा खाली पड़ा कप ... जैसे किसी कुएं में हम झुक कर देख रहे हों  की पानी कितना नीचे है :)  इत्ती तो लोग चाय के कपों में नफासत से छोड़ देते हैं ..और इतनी हमें सर्व हो रही थी ...यह हमारी तौहीन सी लग रही थी हमें! ..


यह क्या मजाक है मित्र बिफर पड़े ..कम से कम पूरे कप को भर कर काफी देनी थी ....कहीं इस तरह से खाली कप भी सर्व किया जाता है? यह तो अशिष्टता है मित्र ने कहा और मेरा भी उनसे इत्तिफाक था कि पांच सितारा होटेलों तक में इस तरह से तो काफी सर्व नहीं होती -क्या  कैफे काफी डे की  यह कोई नयी काफी संस्कृति  विकसित हुयी थी? ..मित्र कह रहें थे कि काफी की एस्प्रेसो मशीन पर भी झागदार काफी पीने को मिलती है और यह थी बिलकुल काली काफी और फिर हल्का सा सिप करके बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा ओहो यह तो बड़ी कडवी भी है ..हम तो न पी पायेगें उन्होंने काउंटर की ओर देखकर  किसी को आने का इशारा किया ..
काफी में पानी मिलाकर सिप करते करते मुझे अचानक   याद आयी की यह फोटो ले लूं ताकि बता सकूं  इत्ती सी ही काफी सर्व हुयी थी हमें ! 

मैं हालात को समझने और उस पर नियंत्रण का प्रयास कर रहा था ..कहीं कोई शिष्टाचार से जुडी सामाजिक असहजता (faux pas)  न उत्पन्न हो जाय ..एकाध अगल बगल बैठे लोग कनखियों से अब देखने लगे थे....बहरहाल उत्पन्न संवादहीनता को भांप काउंटर से एक जिम्मेदार कैफे काफी डे बंदा आया और पूरी विनम्रता से अपनी बात समझाने लगा ..उसकी बात का लुब्बे लुआब यह कि एस्प्रेसो काफी ऐसी ही नीट/ सान्द्र होती है ..इसमें दूध नहीं मिलाया  जाता ..मगर वह मेरे मित्र की इस बात का वह माकूल जवाब नहीं दे पा रहा था कि फिर  मीनू में एस्प्रेस्सो काफी के कप का काफी से भरे झागदार चित्र क्या  कस्टमर को बरगलाने  के लिए हैं  ....बहरहाल मैंने हस्तक्षेप किया और कहा कि थोडा गरम पानी लाओ ...अब इतना सीन क्रियेट हो जाने पर उसके पास भी कोई चारा नहीं था ..

काफी कैफे डे के एक कोने को सुशोभित करते मेरे मित्र 
कुछ पलों में छोटे छोटे से क्यूट से सर्विंग कपों में गरम पानी आ गया ..हमने उसे काफी में मिलाया ..मेरे मित्र ने चीनी का एक और शैसे  मंगाया ,मिलाया और किसी तरह रह रह कर काफी को हलक के नीचे उतार पाए ...और फिर कभी काफी कैफे डे की और रुख न करने की कसम खायी....यह एक संवादहीनता थी जो सी सी डे और उपभोक्ता /कस्टमर की बीच हुयी थी ... मगर इसका जिम्मेदार कौन था? ...क्या  विज्ञापन संस्कृति या हमारी अज्ञानता? मुझे लगता है दोनों!मगर आज के उपभोक्ता जागरूकता  के महौल में यह सी सी डे सरीखे नए नए उभर रहे प्रतिष्ठानों की भी जिम्मेदारी बनती है कि उनका कस्टमर ठगा सा न महसूस करे ..क्योकि इसमें तो नुक्सान उनका ही है ....

हमने वापस आकर काफी साहित्य पर  काफी शोध संधान किया जिसका एक विस्तृत व्योरा आप यहाँ देख सकते हैं मगर फिलवक्त इतना कह दूं कि एस्प्रेसो काफी वह नहीं है जैसा कि अक्सर जनता, हम और आप समझते हैं -यह दूध वाली झागदार /फेनवाली काफी तो बिलकुल नहीं है ....यह काफी के बारीक दानों में से बड़े दबाव पर उबलते पानी को गुजार कर बस कुछ औंस सर्व कर दी जाने वाली काफी कंसंट्रेट है ...और इसका    काफी कल्चर के दीवाने ही लुत्फ़ उठाते हैं ...हमारी सरीखी जनता जब सी सी डे सरीखे उपक्रम में जाय तो उसे एस्प्रेसो के बजाय कैप्यूचिनो या कैफे मोचा या फिर एस्प्रेस्सो मैकियाटो का आर्डर देना चाहिए जिनमें  दूध मिला होता है और वे इतनी कड़वी नहीं होतीं या फिर ब्लैक काफी का आनंद  उठा सकते हैं ....मगर भूलकर यहाँ एस्प्रेसो का आर्डर न दें या आर्डर देने के पहले खूब दरियाफ्त कर लें ....जिससे आप ठगा हुआ सा महसूस न करें .....

काश यह पोस्ट लहरे फेम की पूजा उपाध्याय जी पढ़तीं जो जैसा कि इसी काफी काण्ड के समापन/अध्ययन  पर ज्ञात हुआ  वे सी सी डे में ही बंगलूरु में सीनियर ईक्झेक्यूटिव हैं..क्या बात है :)....  तो ब्लॉगर उपभोक्ताओं की बात उन तक पहुँचती और हमारा भी ज्ञानार्जन,मार्गदर्शन  होता .....

बहरहाल शो  का वक्त  हो गया था और  हम ऊपरी  मंजिल की ओर बढ़ चले थे.....

46 टिप्‍पणियां:

  1. विज्ञापन तो होते ही लुभाने के लिये हैं, और इसमें यह CCD सबसे आगे है।

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  2. चित्र दिखाकर झांसे में लेना अब कई लोगों का व्यापर है.यह काम कई स्तरों पर हो रहा है.
    आप सस्ते में छूट गए ,यही क्या कम है ?

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  3. काउंटर ब्वाय ने कुछ जिरह करने की भी हिमाकत की
    उस नादान बालक को मिसिरजी के बारे में पता नहीं होगा। पता होता तो देखते ही कहता- सुन्दर प्रस्तुति। :)

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  4. अनूप जी - सुन्दर प्रस्तुति आपको भी सुनने को मिलता होगा :D

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  5. डाक्टर मिश्रा साहब
    आपकी प्रत्येक पोस्ट पर जिरह करने की हिमाकत यहां भी दिखती है ! क्या इस जिरही भैय्ये को काउंटर ब्लागर कहें :)

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  6. सर हमको एक बार भी काफी पीने को नहीं मिली फिर भी पोस्ट को अच्छा लिख रहे हैं ,इस उम्मीद से कि नए साल में शायद आप मुझे भी एक कप काफी किसी मॉल में पीला ही दें |

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  7. ये काफी कथा आगाह करने के लिए काफी है पर ठगने वाले ज्यादा झाग की तरह ही होते हैं..

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  8. आपकी इस पोस्ट की लिंक जरूर CCD तक पहुँचना चाहिये। हम भी बहुत सारे ऐसे ही लोगों से परेशान हैं, सोच रहे हैं कि उनके ऊपर लिख ही दिया जाये ।

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  9. चलो बढ़िया ...कम से कम इस बहाने काफी पर रिसर्च तो कर ली आपने ....
    अब आगे गलती नहीं करोगे :-)

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  10. हम तो भैया अब कभी काफी पीयेंगे तो कहेंगे...

    दूध वाली, झाग वाली, मीठी वाली काफी देना। बिना दूध की अड़वी-कड़वी दी तो पैसे नहीं मिलेंगे।

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  11. मीनू में दिए चित्र तो सभी को लुभाते हैं...... आपने सचेत कर दिया ,ख्याल रखेंगें

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  12. कोफी वही जो पीया मन भाये| आपके नए कैफे वाले अगर यह सीधी बात नहीं समझे तो गए काम से|

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  13. जैसे कॉफी पीने ने आपको झटका दिया वैसे ही इस पोस्ट ने तैयार होने के पहले ही 'पब्लिश' होके हमें झटकाया...हम सोचे आप कुएं में झाँक कर ही रुक गए का ?

    वैसे आपके साथ यह 'दुर्घटना' यूँ ही नहीं हुई,सूरत देखकर फंस जाने की कमजोरी है आपकी !इस बार वाली तो फिर भी कम नुकसान पहुंचा गई !

    हालाँकि,बरिस्ता में एक बार आर्डर सर्व करने की देरी पर उन्होंने उसके पैसे चार्ज नहीं किये थे !अधिकतर लोग इन बातों का बहुत ध्यान देते हैं !

    आप एस्प्रेसो कॉफी तो बाहर छोटी दुकानों से पिया करें,मज़ा आएगा !

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  14. लगता है आईडिया नहीं रहा होगा आपका, जैसा अनूप जी ने लिखा...पर जैसा भी था वो हमें एक मजेदार पोस्ट पढ़ने को मिली..शुक्रिया सी सी डे का :)

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  15. हम तो घरवाली के हाथ की ही काफी पीते हैं नहीं तो शादी ब्याह में मुफ़्त वाली। ये बड़ी दुकान वाले अक्सर फीका और महंगा ही पिलाते हैं।

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  16. कैफे कॉफी डे छोड़े हुये काफी वक़्त हो गया है...लगभग डेढ़ साल।
    बहरहाल...कॉफी की बात करते हैं।
    एक्स्प्रेसो मैं भी कभी कभार शौक से पीती हूँ...आपने सही लिखा है की एसप्रेसो सिर्फ कॉफी के बेतरह शौकीन/दीवाने लोग पीते हैं या फिर जब बहुत नींद आती रहे और जागे रहना मजबूरी हो तब पीते हैं। एसप्रेसो अक्सर वही लोग ऑर्डर भी करते हैं जिन्हें पता हो कि वो क्या ऑर्डर कर रहे हैं।

    मेरा कॉफी डे का अपना अनुभव रहा है की एसप्रेसो मांगने पर अक्सर बताते हैं कि एक्स्प्रेसो बिना चीनी, बिना दूध के concentrated कॉफी होती है कि कहीं मैं गलती से capuccino की जगह तो ऑर्डर नहीं की...शायद आपको भी वही समझने की कोशिश कर रहा होगा।

    मेनू में कई सारी चीज़ें फिट करने की भी अपनी मजबूरी होती है, मगर ऐसा मेनू बनाने की कोशिश की जाती है जो गुमराह न करे एसप्रेसो की जगह कपचिनो की फोटो न हो...बहरहाल...आप बताएं कि ऐसा किस सीसीडी में हुआ तो मैं उनकी टीम तक आपकी बात पहुंचा दूँगी।

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  17. अरे मिश्र जी , कॉफ़ी पीने के लिए किसी नई उम्र के नौज़वान को भी साथ ले जाते तो यह हाल न होता ।
    खैर , अब आगे से नियम बना लीजिये कि ऑर्डर देने से पहले वेटर से सारी जानकारी प्राप्त किया करेंगे ।
    सच , इस मामले में खुद को बुद्धू कहने में श्रम कैसी । :)

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  18. @पूजा जी ,आभार!
    आपने सुसंदर्भित जानकारी दी ,यह वाकया जे एच वी माल वाराणसी का है ..
    मगर आपत्ति केवल विज्ञापन के भ्रामक फोटो पर है जहां एस्प्रेसो को मीनू पर सही ढंग से दर्शित नहीं किया गया है!\
    क्या यह लाईफ टाइम सीख जेब ढीली होने के बाद ही मिल सकती है ? :)

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  19. मुंबई के 'बरिस्ता' में कॉफ़ी पीने का अनुभव तो अच्छा ही रहा था. आईंदा आपके अनुभव को भी ध्यान में रखूँगा.

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  20. इस मँहगाई में कम से कम पेट भर काफी तो नसीब हो हम गरीबों को।

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  21. मीनू पढ़ा था आपने
    मेन्यु कार्ड पढना चाहिये था

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  22. :):)समझ में यह आया कि कोफ्फी तो आपको वाही सर्व की गई जो कि आप्पने ऑर्डर की थी हाँ मेन्यू में तस्वीर गलत लगाने के दोषी वे जरुर हैं.
    सही कहा आपने भारतीय स्टाइल की एस्प्रेसो अगर पीनी हो तो कपाचीनो ही बेस्ट है.या फिर लाटे, जिसमें दूध और चीनी दोनों ही दिलेरी से होते हैं:)

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  23. @डॉ दराल साहब ,
    तनिक भी शरम होती तो YAH POST LIKHTA ? :)

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  24. वैसे मैंने सुना है एक टर्किश काफी भी होती है ...जो बहुत ही ज्यादा कड़वी होती है ... वैसे ये काफी रिसर्च भी लाजवाब रही ... दिलचस्प ...

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  25. अरविन्द जी ,
    कहीं पढ़ रहा था प्रेम...'नीट व्हिस्की' सा हलक को चीरता हुआ और अब पढ़ रहा हूं 'सान्द्र काफी' नींद में ना खो जायें इसलिये... :)

    हे ईश्वर कैसी कैसी 'अरदास' करता इंसान...गर मुहब्बत में मुब्तिला हो तो... :)

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  26. जी अरविन्द जी । बस अब एक बार आजमा कर भी देख लीजिये कॉफ़ी हाउस में ।
    वैसे शर्म की तो श्रम करना पड़ सकता है ।

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  27. हा हा . कॉफ़ी तो अपने पसंद की ही अच्छी होती है. सीसीडी से पुरानी यादें जुडी हैं उसकी बुराई तो मैं नहीं करूँगा... वैसे पटना के मोना सिनेमा के पास बैरीकूल के साथ पी गयी कॉफ़ी वाली पोस्ट अभी आनी बाकी है. कुछ ऐसा ही किस्सा है :)

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  28. Arvind bhai...

    Hum tabhi aisi dukanon se door hi rahte hain...aisi jagahon main hamesha 'naam bade, darshan chhote' hote hai.... menu main lubhavne naam likhne ke baad ja table par order serve hota hai tab pata chalta hai ki napkin paper main parathe main sabji lapetkar di gayi hai.....yun bhi purani kahavat hai......'oonchi dukan, feeka pakwan...' ab coffee pite to hamesha aapki ye Espresso coffee yaad aayegi...

    Deepak Shukla..

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  29. विज्ञापन पर न जाएँ ,आपका काफी आलेख बढ़िया लगा ,....बढ़िया पोस्ट ...


    मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....

    जहर इन्हीं का बोया है, प्रेम-भाव परिपाटी में
    घोल दिया बारूद इन्होने, हँसते गाते माटी में,
    मस्ती में बौराये नेता, चमचे लगे दलाली में
    रख छूरी जनता के,अफसर मस्ती के लाली में,

    पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे

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  30. कॉफी हमें सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने हाथ से फेंटी हुयी खांटी देसी किस्म की अच्छी लगती है. या फिर साऊथ इन्डियन कॉफी विद क्रीम.
    खाने-पीने के मामले में हम आज तक कस्बाई मानसिकता पर अटके हैं और आज तक सी.सी.डी. में घुसने की हिम्मत नहीं कर सके हैं :)
    कभी-कभी ऐसा होता है कि हमारे आस-पास की बहुत सी बातों के बारे में हमें सही जानकारी नहीं होती और पता चलने पर बड़ा आश्चर्य होता है और कभी-कभी झेंप भी.

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  31. Full cup of coffee is served only at home :P

    I always prefer to have coffee at home, I can take as much as I want :)

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  32. @Jyoti,
    Let me clarify i would always long for outside coffee cuppas however little amount there be but they are always intense..:P

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  33. एसप्रेसो कॉफी बाबत ज्ञानवर्धन का अनेक आभार ।

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  34. "कथा 'कैफे कॉफ़ी डे' की काली कॉफ़ी की .... "

    एकता कपूर जी आपकी यह पोस्ट पढ़ लेंगी - तो एक नए सीरियल का आगाज़ हो जाएगा :) :) :)

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  35. बस इतनी सी काफी और इतनी सी काफी से इतनी अच्छी पोस्ट.

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  36. sir in khatte meethe anubhavo se hi to zindgi ruchikar banti hai...agar ye anubhav na hota to hame itni achchi post kahan padhne ko milti :)

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  37. प्याले की जो तस्वीर दिखाई उसपर हलक तक चिपका हुआ निशाँ कमबख्त झाग का है... असंभव!! दोस्त का गुस्सा जायज़ था.. ! और पोस्ट का स्वाद कड़क!!

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  38. सी.सी.डे. में कॉफ़ी किसी अपने "खास" के साथ पीने जायें तब आप मग की गहराई की जगह "उनकी" आंखों की गहराई देखने मॆं तल्लीन रहेंगे और दुनिया का सारा कड़वापन भी आपस में मिलकर आपके होठों से मिठास नही हटा पायेगा ।

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  39. मित्र ‘एम एल’ गुप्ता के साथ गए हैं तो एम एल काफ़ी ही मिलेगी ना :)

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