रविवार, 14 मार्च 2010

टिप्पणी प्रसंग -पंचों का फैसला

जी हाँ ,टिप्पणी प्रसंग पर पंचो का फैसला आ गया है.जिसका सार संक्षेप और संकलन जरूरी लगता है . किसी भी ब्लॉग-पोस्ट पर की गयी टिप्पणियाँ उस ब्लॉग मालिक के हवाले हो जाती हैं और वह उनके साथ दुर्भाग्यवश "मार दिया जाय या छोड़ दिया जाय'' की ही तर्ज पर  छाप दिया जाय या छोड़ दिया(रिजेक्ट) जाय जैसा जो भी सलूक करना चाहे स्वविवेकानुसार कर सकता है -आशय यह कि किसी भी ब्लॉग पोस्ट पर टिप्पणी करने के बाद टिप्पणीकर्ता का न तो कोई अधिकार रह जाता है और न ही कोई भूमिका ,टिप्पणी करने के बाद टिप्पणी पर उसका कोई बस नहीं है .दिक्कत उन ब्लागों पर है जहां माडरेशन लगा है -आपने  टिप्पणी की और बाद में ब्लॉग स्वामी इनकार कर दे कि पकी टिप्पणी तो मिली ही नहीं थी .....  तो आप बस अपना सा मुंह लेकर रह जायेगें (प्रशान्त प्रियदर्शी ठीक कहते हैं कि अब नैतिकता की बात तो उठाना ही नहीं चाहिए ) ...और चूंकि उसे आपने  सेव /सुरक्षित नहीं किया है तो फिर वह विचार ,शब्द चयन -संयोजन और वाक्य रचना गयी काम से! याददाश्त  कभी भी अच्छी साथी नहीं होती ऐन  वक्त पर साथ छोड़  सकती है - ऐसे ही स्थिति से विगत दिनों मैं गुजरा जब सबसे पहले एक ब्लॉग पर मेरे विचार से  सटीक टिप्पणी करने के बाद भी वह नहीं छापी गयी क्योकि वह ब्लॉग ओनर के पोस्ट की प्रस्तुति  के प्रतिकूल थी -लोग यह तो बहुत कहते हैं कि असहमति की भी सहमति होनी  चाहिए -मगर यह  ज्यादतर लोगों के लिए एक रेटरिक ,एक लफ्फाजी के सिवा कुछ नहीं है -मैंने सम्बन्धित ब्लोगर को मेल करके पूरी शिष्टता से अपनी अप्रसन्नता दर्ज की कि आखिर मेरी टिप्पणी को इतने लम्बे समय तक माडरेशन में क्यूं रखा जा रहा है तो मुझे यह मौलिक सुझाव् दे दिया गया कि मैं चाहूं तो अपने ब्लॉग पर एक पूरी पोस्ट लिख कर उनके ब्लॉग की अंतर्वस्तु का विरोध कर सकता हूँ .लीजिये जनाब अब आपका ब्लॉगर की पोस्ट को ध्यान से पढना (सौजन्यता  को तो मारिये गोली ),फिर   ध्यान केन्द्रित करके टिप्पणी लिखना ,विचार ,शब्द चयन ,वाक्य विन्यास सब गया काम से ....अब भई गजल के शेर कहाँ रोज रोज होते हैं ? 

एक समर्पित टिप्पणीकार के लिए उसके अल्फाज और भाव किसी भी तरह कमतर नहीं होते -टिप्पणी करने के पीछे के श्रम ,समय और समर्पण  को भी समझना चाहिए!और ब्लॉग स्वामी का यह शिष्टाचार ,औदार्य तो होना ही चाहिए कि वह टिप्पणीकर्ता को यदि उसकी टिप्पणी प्रकाशित नहीं कर पा रहा है तो उसे एक विनम्र औपचारिक जवाब के साथ वापस कर दे -जैसे कि पुराने ज़माने के संपादकों द्वारा अस्वीकृत रचनाएँ कतिपय औपचारिक रिजेक्शन स्लिप के साथ वापस  कर दी जाती थीं .यह सौजन्यता अपने टिप्पणीकार के प्रति आपकी सदाशयता भी तो इंगित करेगी.देखिये अंतर्जाल युग के कितने ही  सुनहले नियम कायदे अभी भी बनने शेष हैं या तो अनंतिम दौर में हैं -आईये हम उन्हें अंतिम रूप देने में पहल करें! हिन्दी ब्लॉग जगत अब सक्षम है कि कुछ सुनहले नियमों को अपनाए और आने वालों के लिए भी एक आदर्श आचार संहिता को मूर्तमान करे -हम टिप्पणी के मामले में आईये एक ऐसी ही शुरुआत करें .

टिप्पणियाँ चिट्ठाकार को भी नियमित और मर्यादित करने/रखने /रहने  की क्षमता रखती हैं -कहीं  अंकुश  बनती हैं तो कहीं सचेतक भी लगती हैं .नहीं तो कई चिट्ठाकार निरंकुश ही न होते  जायं? मेरी दो टिप्पणियाँ ब्लॉग मालिको पर इतनी भारी पड़ गयीं कि उन्हें अपनी पूरी पोस्ट ही डिलीट करनी पड़ गयी -अब पुनः संदर्भ देकर मैं कोई वितंडावाद नहीं शुरू करना चाहता मगर मुझे इस बात का अफ़सोस जरूर हैं  कि मेरे पास अब वे ऐतिहासिक  टिप्पणियाँ(बात रखने के लिए निर्लज्ज आत्मप्रशंसा ही सही )  सुरक्षित नहीं हैं,याद कर भी उन्हें वापस लाना मुश्किल हैं - गेहूं के साथ घुन बन पिस गयीं वें ! मगर हाँ इसी विमर्श से उन्मुक्त जी द्वारा यह एक साईट सुझा दी गयी है जिसे मैंने अपना भी लिया है और जोरदार सिफारिश है कि जो भी अपनी टिप्पणियों पर जान  छिडकते हैं उन्हें इस साईट पर जाकर पंजीकरण करा लेना चाहिए! समीर भाई तो संत हैं! नेकी कर दरिया में डाल और परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर वाली परम्परा के सचमुच !

अब आईये पंचों के कुछ प्रमुख अंगुलि निर्देशों की एक पुनश्चर्या कर ली जाय ,विस्तार से देखने के लिए विगत पोस्ट की टिप्पणियों का  कृपया संदर्भ लें -वैसे पूरी बतकही ही संदर्भणीय है -वादे वादे जायते तत्वबोधः की ही परम्परा में ....

बेचैन   आत्मा ने जैसे मेरे मुंह की बात  छीन ली हो - 
"टिप्पणियाँ अमूल्य होती हैं. किसी कहानी, कविता, लेख या दर्शन को पढ़कर तत्क्षण उठाने वाले विचार हैं जिसे पढ़ने वाले ने उसी वक्त अभिव्यक्ति दी है..वह दूसरे दिन, दूसरे मूड में पढ़े, तो जरूरी नहीं कि वही लिख पायेगा जो उसने पहले लिखा था. इसलिए इसे मिटाना नहीं चाहिए . हाँ, लेखक को लगे कि उसने गलत लिखा है तो वह स्वयं मिटा सकता है."

"मोडरेशन की दशा में आप ब्लॉग पोस्ट के कंटेंट पर अपने विचार रखते हुए उसे लिंक कर अपने ब्लॉग पर अपनी आपतियां रखें वह अधिक उचित होगा."

"कई ब्‍लाग पर यह लिखा होता है कि आफ्‍टर अप्रूवल आपकी टिप्‍पणी पोस्‍ट की जाएगी। तब मुझे लगता है कि ऐसी स्थिति में वो टिप्‍पणी उस टिप्‍पणीकार के पास वापस भेज देनी चाहिए ना कि उसे डिलिट कर देना चाहिए।"
"....हालांकि हटाई गई टिप्पणी को उसी समयकाल में पुन: रोपे जाने का तकनीकी इलाज़ है, किन्तु सोचता हूँ कहीं यह गलत तो नहीं!"

'Be careful before falling for someone!'(किसी पर मर मिटने के पहले सावधानी बरतिए!अर्थात ....ऐसे ही मत जान /टिप्पणियाँ छिड़कते  रहिये चहुँ ओर )

"अगर टिप्पणीकार को लगता है कि उसका लिखा इतना ही महत्वपूर्ण है तो वह भी इसे सेव करके रख सकता है.. अगर टिपण्णी लिखने वाले ही उसे लेकर इतना परवाह नहीं कर रहे हैं तो पोस्ट लेखक भला क्यों करे?"

"टिप्पणियों की प्रति रखने का आइडिया जोरदार है। इसपर विचार किया जा सकता है।"

"टिप्पणियाँ साहित्यिक सृजन है । उन्हें सहेज कर रखना चाहिये । कोई विधि हो जिससे आपके द्वारा की गयी टिप्पणियाँ एक जगह एकत्रित रह सकें।"

"...मगर यहां मैं इस बात से इत्तेफ़ाक नहीं रखता कि टिप्पणियां सिर्फ़ हमारी होती हैं ....मेरे ख्याल से तो यदि एक बार हमने उसे प्रकाशित कर दिया तो फ़िर गया वो मालिकाना हक ...."

"अरे भाई इसपर क्या कहें , ये तो ब्लॉग स्वामी की मर्जी !
पर अगर कोई इसकदर दिल से लिखा हो , तो दुःख होगा ही "

"-बस, टिप्पणी कर, गंगा में डाल- और भूल जाओ. "

१- जिस भी ब्लॉग में टिप्पणी का विकल्प है, ब्लॉग मालिक उसमें पोस्ट लगाने व टिप्पणी पाने के बाद उसे न हटाये, यदि ऐसा करता है तो अगली पोस्ट में कारण जानने का हक तो हो ही पाठकों को।
२- दूसरा अहम मुद्दा है पोस्ट को एडिट करने का, अगर आप बारीकी से देखें तो कुछ लोग क्या कर रहे हैं कि पोस्ट लिखी एक मुद्दे पर...स्टैंड लिया...और फिर कुछ समय बाद उसे इतना एडिट कर दिया कि नया मतलब पहले का बिल्कुल उलटा हो गया...फंस गया न बेचारा पाठक टिप्पणीकार!...ऐसा नहीं होना चाहिये!
३- और उन लोगों का क्या किया जाये जो दूसरों की पोस्टों पर पहले तो टिप्पणी देते हैं...फिर कुछ समय बाद उसे वहाँ से हटा देते हैं... क्योंकि या तो मामला सुलझा लिया बात करके या उन्हें लगता है कि दी गई टिप्पणी से उनकी इमेज को नुकसान पहुंच सकता है।... ऐसा भी कतई न हो!

१ - टिप्पणी का स्वामी, टिप्पणी करने वाल होता है। यह उसी का कॉपीराइट है।
२ - किसी चिट्ठी में कौन सी टिप्पणी प्रकाशित हो यह वह चिट्ठी रहे या मिटा दी जाय यह अधिकार चिट्टा स्वामी का ही है। इस पर कोई अन्य आपत्ति नहीं कर सकता है। हां यह जरूर है कि वह उस विषय पर अपने चिट्टे पर लिख दे।
.....टिप्पणी का स्वामी तो टिप्पणीकर्ता है पर यदि किसी चिट्ठी पर कोई टिप्पणी प्रकाशित हो जाती है तो उस टिप्पणी का दायित्व चिट्ठा मालिक का भी है। यानि कि, यदि कोई किसी चिट्ठी पर टिप्पणी द्वारा किसी की निन्दा करता है और वह टिप्पणी किसी के चिट्ठे पर प्रकाशित हो जाती है। तो निन्दा का दायित्व न केवल उस टिप्पणी कर्ता का है पर उस चिट्टा स्वामी का भी है।

"बॉई दॅ वे, मुझको इसे पोस्ट-लेखक का भूल सुधार मान लेने में कोई बुराई नहीं दिखती । ....
पर.. उन पोस्ट और ब्लॉगमालिकों का क्या, जो कईयों की टिप्पणी गड़प कर जाते हैं, डकार भी नहीं लेते ।"

"जब पोस्ट ही नहीं रही..तो कमेन्ट कि क्या बिसात."

"उन्मुक्त जी की टिप्पणी सबसे सटीक लगी और आपका ये कहना कि "टिप्पणीकार की मानस पुत्र और पुत्रियाँ है टिप्पणियाँ"...
 अन्य जिन सभी महानुभावों ने इस चर्चा /टिप्पणी विमर्श में भाग लिया मैं उन सभी का ह्रदय से कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ .









26 टिप्‍पणियां:

  1. अरविन्द जी , पोस्ट पढना और टिप्पणी करना , एक स्वैच्छिक प्रक्रिया है। असहमति ज़रूर हो सकती है , लेकिन इसे अप्रिय होने से बचाना चिहिए । आखिर हर लेखक के अपने विचार होते हैं, जो किसी को आहत करने के लिए नहीं लिखे जाते । ऐसे में यदि शालीन तरीके से अपनी असहमति ज़ाहिर की जाये तो आक्रमणात्मक नहीं लगता । लेकिन अक्सर ऐसा होता नहीं है। इसीलिए लेखक टिप्पणी को हटा देता है। मेरे विचार से इस हालात में आत्म चिंतन करना चाहिए की कहीं हमने दूसरे को आहत तो नहीं किया अपनी टिप्पणी से ।

    ये मेरे अपने विचार हैं, ज़रूरी नहीं कि आप सहमत हों।

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  2. ओह क्या मैं इतने दिन से सोई रही आपकी विगत पोस्ट भी आज पढी। वैसे मै भी उदन तश्तरी जी की तरह ही टिप्पणी करती हूँ। न ही माडरेशन लगा रखा है जो होगा देखा जायेगा की तर्ज पर। मगर अब समझ आ रहा है कि पंचों के फैसले का आदर करना ही पडेगा। तो अपनी ये टिप्पणे सुरक्षत समझूँ?? धन्यवाद।

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  3. उन्मुक्त जी ने सब कुछ स्पष्ट कर दिया है। जहाँ टिप्पणी पर कॉपीराइट टिप्पणीकार का है। वहीं ब्लाग जिस पर वह की गई है उस का स्वामी उस का प्रकाशक है। किसी आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए वह भी जिम्मेदार हो सकता है इसी कारण वह उसे हटा सकता है, मॉडरेट कर सकता है। टिप्पणी करने के पहले उसे सुरक्षित किया जाना ही अपने कृतित्व को बचाने का एक मात्र तरीका है।

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  4. Mr.Mishra
    its good that you and mr pabla are talking about morality.
    do u know what is morality by the way?
    i have seen you so many times using abusive language esp regarding women issue .its for your sake that mrs ada remove your comment .i saw one of your typical male comment on vani geet post also.and even after that you said to lovely iam what i am .
    you are a typical Indian old male who thinks he is right any one who is disagree with you is always wrong.thats permanently FIX UP IN YOUR MIND.
    YOU ARE NOT FIGHTING WITH THE ISSUE YOU ARE AGAINST INDIVIDUAL .
    YOU NEVER SEE POST YOU SEE WRITER.

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  5. इस मामले मे हम तो यह कहेंगे कि...."खाता ना बही द्विवेदी जी कहें वो सही". कारण की इस मामले मे कोर्ट का भी शायद यही जजमैंट था कि अभद्र टिप्पणि के लिये ब्लाग स्वामी भी जिम्मेदार होगा.

    हां, टिप्पणी भी किसी भी हालत मे कै बार किसी अच्छी भली रचना से कम अन्ही होती तो उसे स्वयम ही संभालना होगा.

    ब्लाग स्वामी आपको कौन से तरीके से लौटायेगा? यह थोडा ज्यादा कंपलिकेटेड होगा.

    रामराम.

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  6. सही कहा मिश्र जी आपने कि ग़ज़ल के शेर रोज-रोज कहाँ होते हैं...कई-कई बार कुछ पोस्टों पर अपनी लिखी टिप्पणियां इतनी भा जाती हैं खुद को कि हम बार जाकर देखना चाहते हैं कि अन्य को कैसी लगी।

    ..और ये कहना तो उचित होगा ही कि या तो कोई मौडेरेशन ही न लगाये और यदि लगाये तो किसी टिप्पणी को न प्रकाशित करने के इरादे पर उस टिप्पणी-विशेष को टिप्पणीकर्ता तक खेद असहित लौटाये। इतना सैद्धांतिक तो होना ही पड़ेगा एक ब्लौगर को...

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  7. सुश्री तरन्नुम (अज्ञात )
    मेरा कमेन्ट ही नहीं अदा ने अपनी वह पोस्ट ही उडा दी ,इसके जस्ट पहले की भी एक पोस्ट उन्होंने उडा दिया था और उसमें भी मेरा कमेन्ट था -यदि किसी का कमेन्ट आपको किन्ही भी कारणों से उचित नहीं लग रहा है तो उसे डिलीट कर दीजिये बात ख़त्म! लेकिन बात इतनी भर ही थोड़े ही थी .बहरहाल मैं पहले ही कह चुका हूँ इस अब फिर कोई वितंडा नहीं!मैं अदा जी का उनके गुणों के कारण आज भी बहुत सम्मान करता हूँ यद्यपि वे इसकी मुहताज नहीं है .यह भी एक सोची समझी साजिश है जिसमे बार बार कहा जा रहा है कि मैं गाली गलौज की भाषा पर उतर आता हूँ -इसके लिए स्पेसफिक उदाहरण प्रस्तुत किये जाने चाहिए -कब किसके खिलाफ मैंने कौन सी गाली गलौज की भाषा इस्तेमाल की और वह भी किसी महिला के विरुद्ध ? इसका प्रमाण दिया जाय अन्यथा इस तरह किसी के इमेज को खराब करने का प्रायोजित प्रलाप बंद किया जाना चाहिए -बार बार तर्जनी दिखाना शोभनीय नहीं है -

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  8. सहमति ...या ...असहमति... का अधिकार तो जानवरों को भी होता है...
    लेकिन विचार व्यक्त केवल मनुष्य ही कर सकते हैं...
    अगर किसी टिप्पणी से किसी को असुविधा महसूस होती है तो उसके ये निष्कर्ष निकले जा सकते हैं....१)आप के पास तर्क नहीं हैं.
    २)आप को अपने विचार बदलने के लिए सोचना होगा.
    ३)आपका दिमाग खुला नहीं है.
    ४)अपने विचार में आप खुद ही दोष देख रहे हैं.
    ५)आप सोच नहीं पा रहें हैं, आपको वक्त चाहिए.
    ६)आप अपने विचार दुसरे पर थोपने की कोशिश में हैं.
    ....और हाँ, अगर टिप्पणी विषय के ऊपर नहीं होकर व्यक्ति पर है तो उसे हटा देना चाहिए...
    ....लड्डू बोलता है...इंजीनियर के दिल से...
    http://laddoospeaks.blogspot.com

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  9. कई ब्लांग पर हम इस लिये नही जाते कि वो या तो उन टिपण्णियो को प्रकाशित नही करते जो उन के लेख से सहमति ना रखती हो या, जबाब मै ठेरो अनामी टिपण्णियां भेज देते/देती है, तो मिश्रा जी इतना फ़ालतू समय हमारे पास तो नही कि बेकार की खींचा तानी मै लगे, ओर अपना समय बर्वाद करे, इस लिये इन सब झगडो से दुरी ही भली

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  10. उन्मुक्त सही कह रहे हैं.

    अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ब्लॉगर को भी यह अधिकार देती है की वह जिन बातों को पसंद न करता हो उन्हें अपने मंच पर प्रकाशित न होने दे. टिप्पणी वापस करना, मोडरेशन की स्थिति में ईमेल पर बताना, टिप्पणी का जवाब देना नैतिक दायित्व हो सकता है, पर इन सबके लिए किसी को मजबूर नहीं किया जा सकता.

    ऐसी स्थिति में आसान यही होगा की हम गूगल डोक्स जैसी कोई आप्लीकेशन एक टैब में तैयार रखें. और जब भी कहीं टिप्पणी करें; उस पोस्ट और अपनी टिप्पणी को वहां कॉपी पेस्ट कर दें.

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  11. 'ब्लॉग स्वामी का यह शिष्टाचार ,औदार्य तो होना ही चाहिए कि वह टिप्पणीकर्ता को यदि उसकी टिप्पणी प्रकाशित नहीं कर पा रहा है तो उसे एक विनम्र औपचारिक जवाब के साथ वापस कर दे'

    यह एक शिष्ट-शालीन सी राह हो सकती है जो मिश्रजी सुझा रहे हैं।

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  12. Good translation and explanation of my comment.
    I like it!

    Moral of the day-
    It pays heavy not to be choosy!So Be choosy.

    I hope you understand.
    So,Do not waste your [mental]energy and precious time for 'Jay walkers'!
    Good Luck!

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  13. Thanks!Kritika,
    But who to choose that is the dilemma!Any more help?
    That would be greatly appreciated!

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  14. चलिए इत्ता तो कंफ़र्म हुआ कि आपकी किसी भी पोस्ट पर अपनी टीप सुरक्षित रहेगी ..हा हा हा ...और जैसा कि मैंने कल ही कहा था कि अधिकार का प्रयोग सिर्फ़ मिटाने के लिए किया जाना .....कमाल लगता है ..
    अजय कुमार झा

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  15. ab jaane dijiye arvind ji...

    ji haan...
    arvind ji....


    aapko SAA kahne ko mana kiyaa hai kisi ne....


    uski baat maan lete hain...
    beshak..wo jaane ghazal naa ho...
    par jaane-zigar to hai hi...

    kabhgi aapko SAA nahi kahenge.....



    ''manu''

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  16. सारे विचार उत्तम हैं लेकिन सबसे सही विचार द्विवेदी जी का है । यह एक महत्वपूर्ण चर्चा थी , इसके लिये आपको धन्यवाद ।

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  17. अच्छी जानकारी मिल रही है..पाठकों के अच्छे विचार पोस्ट को समृद्ध करते हैं और अशोभनीय टिप्पणियाँ पोस्ट को खराब कर देती हैं इसलिए ब्लाग मालिक को कमेन्ट माडरेशन का पूरा अधिकार है.

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  18. Thnx Kritika,
    good suggestion ,so for I acted on trail and error method -it looks different!

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  19. इंटरनेट कभी नहीं भूलता :)
    मिटाए गए पोस्ट और टिप्पणियाँ भी सैकड़ों हजारों सर्वरों पर इधर उधर घूम कर कहीं न कहीं आर्काइव में भंडारित रहती हैं. अदा जी की पोस्ट गूगल कैच पर अभी तो दिख रही है (शायद कुछ दिन और दिखे) - (अलबत्ता आपकी टिप्पणी नहीं दिख रही, पर ज्यादा ढूंढा-ढांढी से वो भी निकल सकती है :)) - देखें -

    http://74.125.153.132/search?q=cache:swapnamanjusha.blogspot.com/2010/03/blog-post_8459.html

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  20. @रवि जी शुक्रिया मेरी टिप्पणी भी खोज दे न प्लीज!

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  21. बहुत ही बढ़िया और महत्वपूर्ण चर्चा रहा! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई!

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  22. आपके बहाने ही सही, हम भी चिट्ठाचर्चा में आ गये।

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