ऐसे नहीं घर में घुसने दूगीं ,पहले बताओ यह सब क्या करके आ रहे हो ?
"रात बीत बीत गयी अपलक प्रिय की प्रतीक्षा में ...वे नहीं आये और अब सुबह लौटे भी हैं तो यह क्या हालत बना रखी है - होठो पर काजल और गालों पर किसी के होठों की लाली और माथे पर पैरों का आलता ? आँखें भी उनीदीं ! ओह समझ गयी मैं ,अभी मैं इनकी गत बनाती हूँ ! " ( नायक ने बीती रात अपनी दूसरी प्रेयसी के साथ गुजारी है ,प्रणय संसर्ग के चिह्न शेष सब गोपन उजागर कर दे रहे हैं -क्या क्या गुल नहीं खिले हैं ... दोनों जन में पारस्परिक प्रेम व्यापार का खूब आदान प्रदान हुआ है -होठो पर काजल होने का अर्थ है सौत की आँखों का चुम्बन ,गाल पर लिपस्टिक प्रत्युत्तर है उस चुम्बन का ,हद है धोखेबाज ने सौत के पैरों पर शायद उसकी मान मनौअल में सर भी रख दिया है ,तभी तो पैरों का आलता माथे पर तिलक सरीखा जा लगा है ! और फिर यह होने में रात यूं ही बीत गयीं -उनीदीं आँखों का यही सबब है. ) .
जीवन शैली बदली मगर क्या जीवन भी ?
आखिर कैसे बर्दाश्त हो नायिका को साजन की यह सब ज्यादतियां -खण्डिता नायिका अब मानवती बन बैठती है ! उलाहना -भाव प्रबल हो उठता है -"तुम जाओ जाओ मोसे न बोलो सौतन के संग रहो ....अब होत प्रात आये हो द्वारे यह दुःख कौन सहे ...या फिर... कहवाँ बिताई सारी रतिया ....साँच कहो मोसे बतिया ....पिया रे साच कहो मोसे बतिया ! (यादगार ठुमरियों के अमर बोल हैं ये ) मानवती नायिका, नायिका का एक उपभेद है जिकी चर्चा हम आगे करेगें !
चित्र सौजन्य :स्वप्न मंजूषा शैल
चल रहा है यह नायिका भेद । नायक भी अजब - इतने सारे सबूत लेकर प्रवेश करे, तो क्या हो ? नायिका का सीधा वार देखिये (स्वाभाविक ही है ) -
जवाब देंहटाएं"क्यों छिपा रहे तन के नव-नख-व्रण अनगिन
किस भाँति चिह्न, रद-दंशित अपने अधर दुराओगे
परनारि संग-सूचक नवीन परिमल सुगंध
दिशि-दिशि फैली है, बोलो कहाँ छिपाओगे !"
विल्सन के साथ सात सालों से रिश्ते में होने के बाद, मैंने सबकुछ संभव किया, मैं उसे हर तरह से प्राप्त करना चाहता था, मैंने वादे किए कि मैंने ऑनलाइन किसी को अपनी समस्या समझाई और उसने सुझाव दिया कि मुझे एक जादू कैस्टर से संपर्क करना चाहिए जो मुझे एक कास्ट करने में मदद कर सकता है मेरे लिए जादू करो, लेकिन मैं वह प्रकार हूं जो जादू में विश्वास नहीं करता था, मेरे पास कोशिश करने से कोई विकल्प नहीं था, मेरा मतलब है कि डॉ। अखेर नामक एक जादू कास्टर और मैंने उसे ईमेल किया, और उसने मुझे बताया कि कोई समस्या नहीं है कि सब कुछ ठीक रहेगा तीन दिन पहले, कि मेरा पूर्व तीन दिनों से पहले मेरे पास वापस आ जाएगा, उसने दूसरे दिन में जादू और आश्चर्यजनक रूप से डाला, यह लगभग 4 बजे था, मुझे बहुत पहले आश्चर्य हुआ, मैं बहुत हैरान था, मैंने फोन का जवाब दिया और उसने कहा कि वह जो कुछ हुआ उसके लिए खेद है, कि वह मुझे इतना प्यार करता है। मैं बहुत खुश था और तब से उसके पास गया, मैंने वादा किया है कि किसी को पता है कि रिश्ते की समस्या है, मैं उसे एकमात्र असली और शक्तिशाली जादू कैस्टर बनने में मदद करना चाहता हूं जिसने मुझे अपनी समस्या से मदद की और कौन है वहां सभी नकली लोगों से अलग किसी को भी जादू कैस्टर की मदद की आवश्यकता हो सकती है, उसका ईमेल: AKHERETEMPLE@gmail.com
हटाएंया
कॉल / व्हाट्सएप: +2349057261346 अगर आपको अपने रिश्ते या कुछ भी मदद की ज़रूरत है तो आप उसे ईमेल कर सकते हैं। अब तक अपनी सभी समस्याओं के समाधान के लिए संपर्क करें
AKHERETEMPLE@gmail.com
या
कॉल / व्हाट्सएप: +2349057261346
बहुत बडिया । धन्यवाद अगली कडी का इन्तज़ार्
जवाब देंहटाएंहिमांशु जी ठीक कहते हैं साबूत लेकर नहीं आना चाहिए...:):)
जवाब देंहटाएंवास्तव में 'खण्डिता' नाम इस भाव को चरितार्थ करता है...
बहुत सुन्दर.....आभार....
मैंने तो एक ही चित्र ढूँढा था ...पहला चित्र बहुत सही है....
जीवन शैली बदली मगर क्या जीवन भी बिलकुल नहीं मान्यवर...तुलना रोचक..
जवाब देंहटाएंकल्पना में पुरुषों को इतना मूर्ख दिखाया
जवाब देंहटाएंगया है , परन्तु यथार्थ तो कुछ और कहता है !
चालाक-शिरोमणि बेवफाई का चिन्ह लेकर घूमेगा ...! ...
जब अचानक यह प्रामाणिक तौर पर मालूम हो जाता है कि उसके प्रेमी /पति ने उससे बेवफाई कर किसी और से प्रणय सम्बन्ध स्थापित कर लिए हैं - उसकी घोर व्यथा ,संताप/प्राण पीड़ा और तद्जनित आक्रोश की मनोदशा उसे जो भाव भंगिमा प्रदान करती है वह साहित्यकारों की दृष्टि में खण्डिता नायिका की है!
जवाब देंहटाएंyeh bahut hi common hai....
agli kadi ka intezaar...
"वह नायिका खण्डिता हो रहती है जब अचानक यह प्रामाणिक तौर पर मालूम हो जाता है कि उसके प्रेमी /पति ने उससे बेवफाई कर किसी और से प्रणय सम्बन्ध स्थापित कर लिए हैं -"
जवाब देंहटाएंपर आज का कानून तो सौत को ही सरकारी अनुकम्पा नियुक्ति देने की सिफ़ारिश कर रहा है! :)
नायिकाओं के वर्णन के साथ समकालीन समाज का चित्र और उसका कैप्शन लाजवाब कर गया।
जवाब देंहटाएंनायिका का यह रूप भेद बहुत ही सुंदर है। जो भावनाओं के साथ बदलता है।
जवाब देंहटाएंक्या बात है, वेसे हम ऎसे नही अब क्या कहे.....
जवाब देंहटाएंम्हारी चन्द्र गोरजा ...रतनारो खम्भों दिखा दूर स ...मन आव अचंभो ..सौतन र महला सजन क्यूँ गया ... ?? (राजस्थानी लोक गीत )
जवाब देंहटाएंसौतन के महल से छन कर आने वाली चांदनी में अपनी सखी से सवाल करती हुई नायिका भी खण्डिता ही तो है ....!!
behtreen tarike se prastut kiya hai.
जवाब देंहटाएंकही नयिका भेद के बहाने खन्डिता की विवेचना कर आप दागी पुरुषो को सतर्क तो नही कर रहे है कि भैया सबूत ले कर मत आओ ताकि प्रेमिका को शंका ना हो सके
जवाब देंहटाएंलेकिन ये बात समझ नही आई कि खन्डिता नायिका कैसे हो गयी क्योंकि खन्डित तो पुरुष हुआ खन्डिता नाम से ऐसा लगता है कि नायिका का ही खन्डन मन्ड्न हो गया पुरुष समाज के लिये शिक्षात्मक आलेख
खण्डिता नायिका के विषय में आचार्य धनंजय कहते हैं-"ज्ञातेऽन्यासङ्गविकृते खण्डितेर्ष्याकषायिता" अर्थात् " जब नायिका को किसी दूसरी स्त्री से सम्बन्ध स्थापित करने का नायक का अपराध पता हो जाय, तथा इस अपराध के कारण वह ईर्ष्या से कलुषित हो उठे तो वह खण्डिता कहलाती है." इस नायिका-भेद के उद्धरण में धनंजय ने जो पद्य दिया है, उसमें भी "प्रमाण" महत्त्वपूर्ण हैं, जो कि आपने कोष्ठक में गिनाये हैं.
जवाब देंहटाएंइस लेख की टिप्पणियाँ भी बहुत रोचक हैं. हिमांशु की कविता भी प्रासंगिक है. एक बात कहना चाहुँगी कि पुरुष का अपराध पता चलने पर नायिका तो आज भी रो-धोकर चुप हो जाती है, पर यही अपराध यदि स्त्री करे तो नायक, खलनायक बनकर ... जाने क्या-क्या अनर्थ कर बैठता है.
आधुनिक नायक-नायिका के चित्र भी अत्यधिक रोचक हैं, प्राचीन के तो कहने ही क्या?
@mukti,आपकी इस टिप्पणी ने प्रस्तुत विषय को आधुनिक परिप्रेक्ष्य भी दे दिया है ,इंगित बिंदु निश्चय ही समीचीन एवं विचारणीय है ! शुक्रिया !
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