बावजूद कुछ बदइन्तजामियों और बदतमीजियों के विचार स्पंदन की लिहाज से संगोष्ठी जीवंत बनी ! कई विचार बिंदु ऐसे आये कि बकौल मीनू खरे जी की "बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी " कुछ चिंतनशील ब्लागरों की आवाज थी कि एक 'इलाहाबाद घोषणा जैसा कुछ दस्तावेज जारी किया जाय ..मगर मैं चूंकि पहले निकल आया इसलिए पता नहीं कि ऐसी कुछ घोषणा हुई भी या नहीं ! खूंटे से बधे लोग बताएगें ही ! लेकिन मैं मुतमईन हूँ कि इलाहाबाद संगोष्ठी ब्लागजगत के इतिहास में याद जरूर की जायेगी -कई कारण हैं ! अराजकता और खुद को आडीयेंश पर लादने की प्रवृत्ति के बावजूद भी ब्लागरों ने बेलौस कई बातें ऐसी कीं जो आगे के विमर्शों की पूर्व पीठिका बन गए हैं !
युवा ऊर्जा से लबरेज और सुदर्शन
यशवंत अपनी भडास यहाँ सायास रोक लिए और अकस्मात स्वीकारोक्ति कर पड़े -"हाँ मैं मानता हूँ कि सीमाओं का अतिक्रमण हुआ है ..मगर तब तक उनकी युवा चेतना फिर मुखरित हो आई ,रिबेलियन उबल पडा ,'कभी कभार सीमाओं का अतिक्रमण भी होते रहना चाहिए यह अभिवयक्ति की समग्रता के लिए जरूरी है "
मीनू खरे जी ने पूरे जिम्मेदारी के बोध के साथ हमें अभिवयक्ति की आजादी की सीमा रेखाओं से परिचित कराया -संविधान गत प्राविधानों से अवगत कराया -कुछ सदाचार और नैतिकता के जरूरी पाठ पढाये ! क्योंकि हम अपनी जमीन के कानून को जो नहीं तोड़ सकते ! उन्होंने कहा कि भड़काऊ बातें ,व्यक्तिगत प्रतिष्ठा ,मर्यादा और किसी के सम्मान को ठेस नहीं पहुचनी चाहिए! उन्होंने स्वनियमन की भी वकालत की !
बोधिसत्व ने कहा कि हिन्दी बलाग जगत 'खाए पीये अघाए लोगों की अभिव्यक्ति का माध्यम है ! और जिनके पास जाया करने को इफरात समय है ! उन्होंने यह भी कहा कि ब्लॉग बहस के उपयुक्त मंच नहीं हैं -वे बहस के लिए ब्लॉग मंच की जरूरत को सिरे से नकार गए !
अविनाश के व्यक्ति + तत्व को देख स्तब्ध रह गया -अगर किसी ने संचालक की ऐसी की तैसी की तो इसी महनीय काया ने -पीछे बैठ कर बार बार पोडियम हथियाने को चिग्घाड़ते रहे -पोडियम पाए तो कुछ ख़ास बोल नहीं पाए ! अप्रस्त्तुत हो उठे मगर अनामियों का समर्थन करते गए !
विनीत ने ब्लॉग को वैकल्पिक मीडिया कहा मगर यह भी जोड़ा कि यहाँ माहौल खराब न किया जाय और यह भी कि बहसों की कोई निष्पत्ति नहीं हो पाती !
भूपेन्द्र ने बहुत ही सधे सहज और जोरदार तरीके से अपनी बात रखी -और चिट्ठों के नियमन के निहितार्थों की ओर भी संकेत किया ! और यह सवाल भी उठाया कि क्या सचमुच ब्लॉग जगत "पीपुल्स मीडिया " है ? आभा जी ने ब्लागजगत की गुटबंदी ,खेमेबाजी को आड़े हाथो लिया और यह भी स्वीकार किया कि यहाँ सचमुच स्वस्थ बहस की कोई गुन्जायिश नहीं है !
मनीषा पांडे ने कंटेंट (अंतर्वस्तु ) की सुरुचिपूर्णता की वकालत की ! सृजनात्मकता की गुहार लगायी ! अब तक कुछ बातें उभर चुकी थीं जो आगे भी विमर्श का एजेंडा बनेगीं .नोट किया जाय -
अभिव्यक्ति की आजादी पर पहरेदार न बैठाये जायं मगर इस आजादी की भी आचार संहिता तय की जाय
बेनामी की विवशता के पीछे के कारणों को भी जाना समझा जाय ! आखिर उनके लिए मुखौटा क्यों जरूरी हो जाता है !
बहुत लोगों ने यह भी माना कि वे भगेडू लोग हैं और स्थतियों से पलायन कर चुके हैं -समाज को फेस नहीं कर सकते तो इन्हें क्यों अहमियत दी जाय ! जबकि दूसरे लोगों ने ब्लागजगत में अनामियों के योगदानों की भी चर्चा की !
ब्लॉग विश्व के पीछे की एक न्यस्त अर्थव्यवस्था की ओर भी संकेत कर आगाह किया गया -हम जिस स्पेस का इस्तेमाल इतना बढ़ चढ़ कर कर रहे हैं उसपर हमारा सचमुच कितना हक़ है ?
ज़ाकिर अली रजनीश ने बेनामी खुरापतियों की जम कर खबर ली और ब्लागजगत से
ढोल की पोल के खुल जाने की कथा सुनायी ! कुछ जुमले भी उठे -"
ब्लॉग इंडीविजुअलिटी के उत्सवीकरण का षड्यंत्र है " मैंने तुंरत इसे ट्विटर पर ट्वीटियाया भी ! अब इसका भाष्य आप करते रहिये मेरा माथा तो गरम हो चुका ! और यह भी कि
सरलीकरण के मेले /उत्सव ठीक नहीं हैं -इस जुमले को ठीक से याद है तो इरफान ने उछाला ! इरफान का गुबार इस पर भी फूटा कि हम किसी भी मुद्दे पर आर्गनाईज नहीं हो पा रहे हैं और यह ठीक बात नहीं है (अटल जी की स्टाईल ) उन्होंने विगत एक महीने के सबसे ज्यादा पढ़े और पसंद किये गए दस चिट्ठों की चर्चा की और उसमें आखिर में यानि दसवां यह ब्लॉग भी रहा -मगर मेरी सारी खुशफहमी काफूर हो गयी जब रवि रतलामी जी अनाहूत माईक पर आ धमके और कहा कि
ब्लागवाणी का आंकडा विश्वसनीय नहीं है -फिर भारत में कौन से और किसके आंकडे विश्वसनीय हैं रवि जी ?
कुछ और जुमले /नारे -
जो रचेगा वही बचेगा और
बेनामी आभासी जगत के ठलुए हैं यथार्थ जगत के भगेडू ,फिर उनकी परवाह क्यों ? गरिमा से तार तार हो चुके मंच पर अफलातून जे ने अपनी भारी भरकम उपस्थिति दर्ज कराई ! माहौल को कुछ थामा उन्होंने ,कहा आत्ममुग्धता के शिकार हैं ब्लागर !
सच ही सब कुछ नहीं है उसकी सकारात्मकता भी तो हो ! उन्होंने भी बेनामियों की विवशता भी महसूस मगर टिप्पनी में पोर्नोग्राफी डालने वालों की खबर ली ! पोर्नो शब्द का उच्चारण होते ही अब तक पार्श्व में जा बैठी युवा ब्लागर टीम समवेत स्वरों में चिल्लाई -
वंस मोर वंस मोर ! अफलातून जी शायद छुपे श्लेष को समझ नहीं पाए और दुगुने उत्साह से उस पोर्नोग्राफी की टिप्पणी -घटना का बयान करने लगे ! एक बात दिखी ,अफलातून जी के सहजता से उनकी एक मासूम युवा
चेल्हआई भी वजूद में है ! अब मैं भी उसमें सम्मिलित हो गया हूँ ! उनसे युवा जो ठहरा ! पहले दिवस का अवसान पर चलते चलाते
प्रियंकर जी भी आये जिन्होंने दुहराया कि बेनामियों को लेकर चिंतायें तो वाजिब मगर इस सिद्धान्त के वे पक्षधर आन्ही है कि उनको प्रतिबंधित किया जाए ! आभासी जगत निजता का भी सम्मान करे ! ब्लॉग जगत और वास्तविक जगत के मुद्दों के घालमेल से बचने की भी हिदायत उन्होंने दी ! पहला दिन बीत चुका था ! और हाँ चाय पानी की समय समय पर मिलती रही ,हाल भले न सभा के अनुकूल रहा हो !