शनिवार, 26 मई 2012

.... जो आपको न जाने ताके बाप को न जानिए ... :)


इन दिनों मन काफी उद्विग्न है .और उद्विग्नता का कारण भी 'मानवीय' है . कुछ तो ब्लॉग जगत से जुडा है  बाकी दीगर दुनिया के मानवी कमियों से ...वैसे तो मैं मूढ़ता की हद तक आशावादी हूँ मगर कभी कभी लगता है यह दुनिया सचमुच एक जालिम दुनिया ही है -यहाँ परले दर्जे की स्वार्थपरता है,आत्मकेंद्रिकता है ,अपने पराये की सोच है ,कृतघ्नता है ,धोखाधड़ी और छल है,अहमन्यता है ,हिंसा  है ,दुःख दर्द के सिवा और कुछ नहीं है -गरज यह कि यह दुनिया रहने लायक नहीं है ..हमीं लोगों ने इसे रहने लायक नहीं छोड़ा है ..भले ही हमारा चिर उद्घोष सत्यमेव जयते का है मगर अभी इसी बैनर से चल रहे दूरदर्शन कार्यक्रम ने  हमारे अपने समाज के घिनौने चेहरे की परतें उघाड़नी शुरू कर दी हैं -अब तक के केवल तीन इपीसोड़ ने ही बता दिया है कि हमरा समाज दरअसल लुच्चों कमीनों से भरा हुआ है ....गैर पढ़े लिखे नहीं, पढ़े लिखे ज्यादा खूंखार हैं ,संवेदनाओं से रहित हैं ...जयशंकर प्रसाद की ये पंक्तियाँ इन दिनों काफी शिद्दत से याद आ रही हैं -
प्रकृति है सुन्दर परम उदार 

नर ह्रदय परमिति पूरित स्वार्थ 

जहां सुख मिला न उसको तृप्ति 
स्वप्न सी आशा मिली सुषुप्ति 


मगर एक ऐसे समाज के सामने तो अभी अपना ब्लागजगत लाख गुना अच्छा है ..हाँ यह भी अपने समान्तर दुनिया से मिलने की राह पर ही है.

ब्लॉग जगत का भी वह पुराना सहज उत्साह ,मासूमियत भरी उछाह जाती रही...यहाँ भी अब घाघों और घुघूतों का बसेरा है (घुघूती जी माफ़ करेगीं यह उनके घुघूत के लिए नहीं है बल्कि यहाँ  यह उल्लुओं की एक प्रजाति के नाम के रूप में उद्धृत है) ...अब घुघूती जी बीच में आ रही हैं नहीं तो यह शब्द अपने सार्वजनीकरण में कतिपय स्त्रीलिंगों को भी लपेटता ,उनके लिए धन्यभाग, घुघूती जी रक्षा कवच बन गयी हैं :) यहाँ भी दिन ब दिन अजीब अहमन्यता तारी होती जा रही है ..केवल अपनी गाते रहना दूसरों की न सुनना ....दिक्कत यही हुयी कि यहाँ हर कोई ब्लॉगर  है यहाँ दरअसल कोई पाठक है ही नहीं ...जो पाठकीय वृत्ति रखते थे वे भी अब काम भर के ब्लॉगर हो गए हैं .....ब्लॉगर तो एक अलग कौम ही है -उसे साहित्य आदि से कुछ लेना देना भी नहीं है ....बस जबरदस्ती ब्लागरी ( बलागीरी)  करते जाना है ...कोई शिष्टाचार भी उसके लिए मायने नहीं रखता क्योकि वह ब्लॉगर है -केवल अपनी पढना अपनी गुनना ...अपनी ढपली अपना राग ....

तेजी से लोग दूसरे ब्लागों को पढना बंद कर रहे हैं -काहें कि अपने सिवा दूसरे के ब्लाग पढना  ब्लागीय आचार संहिता में नहीं आता ..हाँ टिप्पणियों की लालच में दूसरे  ब्लागों के पढने का स्वांग भर करते हैं -अगर टिप्पणियों पर एक ठीक ठाक नज़र डाल दी जाय तो अक्सर यही दिखता है कि ब्लॉगर बिचारे ने निष्पत्ति कुछ दी है ..टिप्पणी उससे तनिक भी मेल नहीं खाती ..यही चलता रहा तो जल्दी ही टिप्पणी भाष्यकारों की मांग भी होने लगेगी ..मैं तो पहले ही रिजायिन कर रहा हूँ -खुद अपने ब्लॉग पोस्ट पर की गयी टिप्पणियाँ जब समझ नहीं पा  रहा हूँ ,दीगर ब्लागरों की क्या ख़ाक मदद कर पाऊंगा?यह भी एक अजीब सी अहमन्यता है दूसरे ब्लागों को झाँकने तक नहीं जायेगें और ख्वाहिश यह रहेगी कि उनके यहाँ राग दरबारी बजती रहे ... अब कोई आप के यहाँ आया आपको पढ़ा और एवज में एक स्मारिका /टिप्पणी छोड़ गया तो आपका भी यह दायित्व बनता है कि कभी कभार ही सही वहां जाकर कृतज्ञता दिखायें -यह शिष्टाचार का तकाजा भी है . मगर यहाँ अपना विशिष्ट बोध ,अपनी दिखावटी व्यस्तता आड़े हाथ आती हैं ... मुझे यह कतई पसंद नहीं है इसलिए मैंने भी अब निर्णय लिया है कि ब्लॉग पोस्ट अगर पढने लायक रही तो पढ़ जरुर लूँगा मगर टिप्पणी तो वहीं करना है जो हमारे यहाँ भी भले ही भूले भटके आता रहे ....नहीं तो हम भी इतने दरिया दिल काहें  बने .....शठे शाठ्यम समाचरेत ...यह संस्कृत उक्ति तो है ही मार्ग दिखाने  को :) 

उत्तर प्रदेश में नगर निकाय का चुनावी बिगुल बज चुका है ..अब अगले डेढ़  माह तक मेरे पास भी फुर्सत भरा समय नहीं है ..इसलिए नए संकल्प को अपनाने में सहूलियत ही होगी ...वैसे मेरी अपील यही है कि चाहे जो भी हो ब्लॉग लिखना आप कोई भी बंद न करें और दूसरी पोस्टों पर भी अगर आपने उन्हें पढने के बाद पाया है कि वे टिप्पणी डिजर्व करती हैं अपना पत्रं पुष्पं जरुर छोड़ आयें ....हाँ अगर वह बन्दा इतना अहमन्यता पाले बैठा है कि वह कहीं और टिप्पणी करता ही नहीं और कभी भी भूल से भी आपके यहाँ नहीं आता और आप उसके नियमित टिप्पणीकार हैं तो वक्त आ गया है उसकी अहमन्यता को बढ़ावा तो न ही दें .... वह आपके ही उदारता से और भी अहम पालता चला गया है  ...अगर उसके पास वक्त नहीं है तो आपके पास वक्त कहाँ है? -हाँ ऐसे लोग अपवाद हैं जिन्होंने इन्ही बातों के मद्दे नज़र अपना दरवाजा /खिड़की/टिप्पणी खांचा बंद  कर रखा है -मतलब लेने देने का व्यवहार बंद -मगर जो दोनों कपाट खोले जूकियो की तरह कांपा लगाये बैठे  टिप्पणी की ओर टकटकी लगाये रहते हैं और खुद कहीं टिप्पणी नहीं करते हैं -उन्हें सबक सिखाया जाना चाहिए ... वे आपकी सदाशयता और सहिष्णुता के पात्र नहीं हैं .... जो आपको न जाने ताके बाप को न जानिए ... :) 

मैं जानता हूँ मेरे कुछ मित्र भी जो इसी कटेगरी के हैं यह पढ़कर मुझ पर  सठियाने का आरोप लगायेगें उनके लिए बता दूं कि ब्लॉगर पुंगव (श्रेष्ठ ) अनूप शुक्ल जी मुझे पहले ही चिर युवा की संज्ञा/विशेषण दे चुके हैं ....और अभी तो मैं पचपन का भी नहीं हुआ ...पचपन मानें बचपन ! :) 

41 टिप्‍पणियां:

  1. लेखन में मेरी रूचि है पर बतौर पाठक पोस्ट्स पढना और अपनी प्रतिक्रिया देना भी बहुत संतुष्टि देता है , मैं तो मानती हूँ कि ब्लॉगजगत में पढने गुनने को बहुत कुछ है |
    कभी कभी लम्बे समय तक कोई पोस्ट नहीं लिख पाती, पर जिन ब्लोग्स को पढना पसंद करती हूँ वहां जाने और अपने विचार देने की हमेशा कोशिश रहती है....

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  2. या तो आप समय के हिसाब से नहीं चल रहे या आप अपना समय केवल समय देखने में ही, उसे समझने-बूझने में ही निकाल दे रहे हैं :)

    यहां समय से चलने का तात्पर्य तकनीकी है......पहले लोग कम्प्यूटर के अलावा कहीं ब्लॉग नहीं पढ़ते थे इस कारण कम्प्यूटर केन्द्रित था ब्लॉगिंग लेकिन अब लोग मोबाइल पर भी ब्लॉग पढ़ते हैं और न सिर्फ पढ़ते हैं बल्कि पोस्टें भी लिखते हैं।
    लेकिन यहीं एक पेंच भी है।

    मोबाईल से लोग मल्टीपल अकाउंट हैंडल नहीं करना चाहते क्योंकि सिक्योरिटी कारण है। अब भी ज्यादातर मोबाईल किसी तगड़े फायरवाल या किसी विश्वसनीय स्कैनिंग सिस्टम से नहीं जुड़े हैं जिससे लोग किसी एक ही अकाउंट से लॉगिन होते हैं जो उन्हें निजी तौर पर जरूरी लगता है, बाकि और साइटों के लिये कहीं कमेंट या कुछ करने के लिये लॉगिन चेंज करना होगा और यह जहमत कम ही लोग उठाना चाहेंगे। खुद मैं भी जल्दी लॉगिन चेंज नहीं करता और यही कारण है कि पोस्ट भले मोबाईल पर पढ़ी जाय लेकिन कमेंट नहीं किया जाता।

    सबसे जरूरी बात, जमाना अब केवल मानवीय शिष्टाचार का नहीं तकनीकी शिष्टाचार का भी है। लोगों को अब कम्प्यूटर मैनर सीखने होंगे। चैट बॉक्स में जवाब नहीं आ रहा का मतलब यह नहीं कि सामने वाला नाराज होकर बोलना नहीं चाहता बल्कि हो सकता है सामने का नेटवर्क अनप्लग हुआ हो या बंदा किसी दूसरी विंडो में काम कर रहा हो।

    इसी तरह किसी मेल का रिप्लाय देर से आने का मतलब यह नहीं कि इग्नोर किया गया है.....हो सकता है स्पैम में मेल चला गया हो।

    इस पर बहुत कुछ विस्तृत ढंग से लिखा जा सकता है लेकिन संक्षेप में इतना ही कहूंगा कि जैसे मानवीय तौर पर मैनर तय होते हैं वैसे ही टेक्निकल मैनर भी होते हैं जिसे सीखने की उतनी ही आवश्यकता है जितनी मानवीय शिष्टाचार की। नाहक इगो, अहम, अलां फलां भावनायें और व्यवहारिकता आदि का घालमेल तकनीक से करने पर फालतूयापा तय हैं :)

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  3. ...महाराज ! कहाँ से शुरू किया था और कहाँ खतम किया,फिर भी आपकी कई बातों से हमारी सहमति है !
    पहले बात करते हैं मन की उद्विग्नता की तो यह हमारे आस-पास से ही उपजती है.इसको रोक तो नहीं सकते हाँ,कम ज़रूर कर सकते हैं.जब भी ऐसा लगे,अपने परम मित्र से ,जिससे बात करना आपको सहज और सुखद लगता हो,बात कर लें,मन हल्का हो जायेगा !

    ब्लॉग-जगत बड़ा निष्ठुर है साहब ! जब आपको सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है,ठीक तभी लोग दायें-बाएं या सेफ-साइड देखकर निकल जाते हैं.मैं भी अब अनुभव कर रहा हूँ और काफ़ी हद तक टीपों के प्रति मोह कम कर दिया है.
    ..लेकिन सभी ब्लॉगर ऐसे नहीं हैं.कुछ ज़रूर हैं जो आपके विचारों को थपकी देते हैं,आसरा देते हैं और बस इन्हें ही पहचानने की ज़रूरत है.

    यह पहले भी कई मौकों पर अप कह चुके हैं कि कुछ लोग ज़्यादा वरिष्ठ हैं और इसका अहसास वो टीप न देकर करवाते हैं पर इससे निराश न हों,कुछ सीख भी लें.ब्लॉगिंग केवल और केवल दुतरफा माध्यम है.इसमें एकतरफा काम होता ही नहीं.आप भी दस-बीस अच्छे लोगों को पकड लें और उन्हीं से संवाद का आदान-प्रदान करें !

    ...मेरी टीप यदि आपके मन को कुछ सांत्वना दे पाई हो तभी इसकी सार्थकता मानिये !

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  4. आप क्या करते हैं, वह सादर आपकी मर्ज़ी! हम तो जहाँ मन करेगा वहाँ टिपियायेंगे, ब्लॉगर को पसन्द न आये तो वह भले ही उसे न छापे। इसी तरह जो अच्छा लिखेगा उसे पढेंगे ज़रूर भले ही वह हमारे लिखे पर काणी नज़र भी न डाले। लिखना और पढना दो अलग-अलग बातें हैं। हम इन दोनों की खिचड़ी बनाने वाले नहीं मगर सलाह देने का कोई शौक नहीं है (ऊपर से आप उद्विग्न भी हैं, उद्विग्नता अक्सर दुश्मन पहचानने के बजाय शुभाकांक्षियों को ही कटा देती है - ऐसा हिन्दी ब्लॉगिंग में कई बार देखा है, देख रहे हैं) इसलिये आपको कोई सलाह देने की ग़लती भी नहीं करेंगे इसलिये उस बात पर - हम्बली नो कमेंट्स। चार-पाँच ब्लॉग तो ऐसे हैं जिनके लेखक चाहे हमें कभी न पढें, हम उन्हें ज़रूर पढते हैं और कम से कम 20-30 तो ऐसे हैं ही जिन्हें पढने से हमें कुछ नया सीखने को मिलता है। टिप्पणी पाने के लालच में वह मुफ़्त मिलने वाला ज्ञान गंवाने वालों में नहीं हैं हम।

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  5. @सतीश पंचम ,
    इतना एक सामान्य जानकारी वाला भी व्यक्ति जानता है कि ब्लॉग पढने और टिप्पणी करने के लिए साफ्ट वेयर इंजीनियर होने की कौनो जरुरत नहीं है -मैं अपने मोबाईल खुद भी जिस ब्लॉग को चाहता हूँ पढ़ लेता हूँ -हाँ हिन्दी में टिप्पणी करने में असुविधा है तो दो शब्द अंगरेजी में ही पोस्ट कर देता हूँ -अब तकनीकी का आड़ मत लीजिये !

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  6. @स्मार्ट इन्डियन,
    मैं अपवाद जनों और अपवाद भावुक निर्णयों की बात नहीं कर रहा है -आप सरीखा होना एनी धरतीवासियों मृतकों के लिए आसान नहीं है !

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  7. @संतोष त्रिवेदी : काश आपकी टिप्पणियाँ ही राहत दे पातीं :)

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  8. aapne apne sad-vichar diye
    aanshik sahmati cha abhar...

    @ आप क्या करते हैं, वह सादर .........

    se poorn sahmat......


    pranam.

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  9. ब्लॉग जगत का भी वह पुराना सहज उत्साह ,मासूमियत भरी उछाह जाती रही...यहाँ भी अब घाघों और घुघूतों का बसेरा है (घुघूती जी माफ़ करेगीं यह उनके घुघूत के लिए नहीं है बल्कि यहाँ यह उल्लुओं की एक प्रजाति के नाम के रूप में उद्धृत है) ...अब घुघूती जी बीच में आ रही हैं नहीं तो यह शब्द अपने सार्वजनीकरण में कतिपय स्त्रीलिंगों को भी लपेटता ,उनके लिए धन्यभाग, घुघूती जी रक्षा कवच बन गयी हैं :) यहाँ भी दिन ब दिन अजीब अहमन्यता तारी होती जा रही है ..केवल अपनी गाते रहना दूसरों की न सुनना ....दिक्कत यही हुयी कि यहाँ हर कोई ब्लॉगर है यहाँ दरअसल कोई पाठक है ही नहीं ...जो पाठकीय वृत्ति रखते थे वे भी अब काम भर के ब्लॉगर हो गए हैं .....ब्लॉगर तो एक अलग कौम ही है -उसे साहित्य आदि से कुछ लेना देना भी नहीं है ....बस जबरदस्ती ब्लागरी ( बलागीरी) करते जाना है ...कोई शिष्टाचार भी उसके लिए मायने नहीं रखता क्योकि वह ब्लॉगर है -केवल अपनी पढना अपनी गुनना ...अपनी ढपली अपना राग ...
    आपने सह्रदयता के साथ अच्छे मुद्दे उठाए हैं मैं तो ऐसे लोगों के नाम गिना सकता हूँ जहां मैं दर्जनों बार पहुंचा हूँ आगे भी पहुंचूंगा .मगर ये लोग कूप मंडूक बने खुद को समुन्दर की मछली (वेळ )समझ रहें हैं.ये लोग अपनी वृत्ति छोड़ने से रहे ,हम भी क्यों छोड़ें .कॉफ़ी कुछ अच्छा भी लिखा जा रहा है चिठ्ठों पर भी .हम उससे वंचित क्यों रहें ,हमें अपना शब्द और सीमित ज्ञान कोष दोनों बढ़ाना बढाते जाना है .
    भाई साहब एकाधिक विषय आ जातें हैं हमारी एक ही पोस्ट में , माल ज्यादा तैयार हो जाता है .विज्ञान में नवीनतर अपनी और आकृष्ठ करता है पल प्रति -पल .हाँ इससे एक साथ एक पोस्ट में कई पोस्ट पढने का एक फायदा भी है अटेंशन स्पेन बढ़ता है एक रिसर्च रिपोर्ट का यही सन्देश है .आप बताएं हम इतनी रिपोर्ट का करें तो क्या करें .जब अखबारों के लिए लिखते थे एक ही दिन में अलग अलग अखबारों में अलग अलग राज्यों के अलग अलग लेख होते थे .यही हाल राष्ट्रीय अखबारों का भी था .

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  10. इसलिये मैंने पहले ही लिख दिया था कि या तो आप समय के साथ नहीं चल रहे या समय को समझने बूझने में समय निकाल रहे हैं :)

    ब्लॉगिंग के जिस उछाह और उमंग की बात की जा रही है क्या वह माहौल अब है ? तब से लेकर अब तक क्या तकनीकी फेरबदल नहीं हुआ है ? तमाम लोग फेसबुक ट्वीटर और लिंकडिन पर फैल रहे हैं वहां की दुनिया से सांमजस्य बना रहे हैं, अपने लेखकीय कौशल को मांज रहे हैं, कॉमर्शियलाइज्ड हो रहे हैं और आप अब भी पुरानी घिसी-पिटी बातों को लेकर हलकान हैं कि फलां टिप्पणी नहीं देता तो ये बात,अलां का अहम है तो वो बात

    इस बात को लेकर बहुत पहले न जाने कितनी पोस्टें लिखी गईं हैं कि टिप्पणी आने के क्या कारण हैं, किस वजह से टिप्पणियां थोथी होती हैं कहां केवल वाह वाह होती है। इन सब बातों का जमाना कब का उठ चुका है। अब लोग अपने मन से लिखते हैं, मन होता है तो टीपते हैं वरना नहीं। इसे एक तरह की वर्चुअल संसार की परिपक्वता कहना ज्यादा ठीक रहेगा।

    और बदले माहौल में परेशान वही दिखेंगे जिनको खेमेबाजी का नॉस्टाल्जिया सताता हो,वे उम्मीद करते हों कि ग्रुपबाजी करके हीहीफीफी की जाय लेकिन बदले जमाने में जहां लोग अपनी अपनी दुनिया में रमें हों वहां ऐसे 'बुढ़ऊ तत्वों' को कौन भाव दे......जाहिर है संताप होगा ही.....जमाने को ऐसे लोग कोसेंगे ही लेकिन बदले समय के साथ खुद की समझ को नहीं बदलेंगे......इतने पर भी कहलाना चाहेंगे युवा / चिरयुवा तो ऐसा थोड़ी होता है :)

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  11. अरविन्द जी , ब्लॉगिंग में इस तरह की फीलिंग्स अक्सर सभी को कभी न कभी आती हैं . बेशक यहाँ सभी लेखक हैं , शुद्ध पाठक कोई नहीं . टिप्पणियों का मामला भी पेचीदा है . यदि कोई एक दो बार न आए तो लगता है या तो नाराज़ है या उपेक्षा कर रहा है .
    लेकिन अनुभव के साथ कुछ बातें सीखना ज़रूरी है . जैसे :
    * सप्ताह में एक या दो से ज्यादा पोस्ट लिख कर हम दूसरों पर अत्याचार ही करते हैं .
    * टिप्पणी तभी देनी चाहिए जब आप पोस्ट में दिलचस्पी रखते हों .
    * बिना पोस्ट पढ़े एक दो शब्द की टिप्पणी देकर हाज़िरी लगाना एक लेखक को शर्मिंदा करता है .
    * लेखों और पोस्ट्स में विविधता ज़रूरी है ताकि आप टाइप्ड न हों और नीरसता न आये .
    * यह ज़रूरी नहीं की आप हमेशा किसी से सहमत हों , या असहमत हों .
    * जो लोग ब्लॉग पर कभी नहीं आते , उन्हें हम नहीं पढ़ते भले ही इ मेल करें या कोई और अनुरोध . ऐसे लोगों की कमी नहीं है . कईयों को तो हमने फोलो करना भी बंद कर दिया है .
    * सामूहिक ब्लॉग्स हमें कभी पसंद नहीं आये .

    अंत में यही कहूँगा की पसंद अपनी अपनी -- जो सही लगे , वही करना चाहिए .

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  12. @सतीश पंचम :
    अच्छी तरुणाई तारी है ,ब्लाग लेखन केवल तकनीकी क ख ग सीखना नहीं है !

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  13. डॉ.दराल,
    आपके सभी बिन्दुओं से सहमति है !

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  14. स्मार्ट इंडियन की टिप्पणी बेहतरीन है, मेरा भी यही विचार है भाई जी !

    यह सच है कि यहाँ सब लेखक हैं, पाठक कोई नहीं , यहाँ कोई किसी को पढना नहीं चाहता सब अपना लिखा पढाना चाहते हैं और यह प्रवृत्ति अन्दर तक बैठ चुकी है जो कि अक्सर खुल जाती है !

    दिल पर अगर हाथ रख कर देखे तो कितने ब्लॉग हम मन से पढ़ पाते हैं ? अधिकतर ब्लॉग पर बिना ध्यान से पढ़े टिप्पणी देना, इसी मनोदशा का परिचायक है ! यह सच है कि ब्लॉग पर अपनी रूचि के ब्लॉग ढूंढना बहुत मुश्किल हैं ...

    गिने चुने ब्लॉग जहाँ मन लगता है वे अब भी पढ़ते हैं और भविष्य में भी पढ़ते रहेंगे चाहे उनसे टिप्पणी मिले या न मिले ....

    और उसमें आप भी शामिल हैं :)

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  15. ब्लॉगिंग को सीमाओं से बंधे तालाब की जगह ऐसी उफनती नदी की तरह होना चाहिए जो पहाड़ों को भी काटते हुए अपना रास्ता खुद बनाती चले..इसलिए हर ब्लॉगर विशिष्ट है, और उसे अपने हिसाब से ब्लॉगिंग की छूट होनी चाहिए...​

    ​जय हिंद...

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  16. टिप्पणी के बारे में हमारे बयान- टिप्पणी_ करी करी न करी
    टिप्पणी से किसी की नाराजगी /खुशी न तौले। मित्रों के कमेंट न करने को उनकी नाराजगी से जोड़ना अच्छी बात नहीं है। मित्रों के साथ और तमाम तरह के अन्याय करने के लिये होते हैं। फ़िर यह नया अन्याय किस अर्थ अहो? :)

    हमारे लिये टिप्पणी तो मन की मौज है। जब मन , मौका, मूड होगा -निकलगी। टिप्पणी का तो ऐसा है- टिप्पणी करी करी न करी। :)

    डा.अरविंद मिश्र को हम चिरयुवा ही नहीं वैज्ञानिक चेतना संपन्न भी कहते हैं। :)

    बाकी अपने एक और मित्र को हम चिरयुवा कहते हैं। उनके साथ हमारे हंसी-मजाक का चैनल भी चलता है। एक दिन उनको चिरयुवा कहते हुये उसकी व्याख्या भी की- चिरयुवा माने चिर+युवा
    माने चिरा हुआ युवा।

    लेकिन यह बात अपने मित्र से ही कही जा सकती है जिसके साथ हंसी-मजाक कर सकते हैं। आप तो आदरणीय विद्वान हैं। आपके लिये तो वही सही है-चिर युवा ,वैज्ञानिक चेतना संपन्न।

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  17. लगता है टिपण्णी टिपण्णी करते करते ही सारे bloggers की जिंदगी निकल जाएगी. बड़े लोग कब बड़े होंगे ? अगर मैं अपनी बात करूँ तो शुरू में टिप्पणियों की आशा में मैं भी सभी ब्लोग्स को पढ़ती थी उन पर टिप्पणियां करती थी पर धीरे धीरे जब ब्लॉग जगत की असलियत पता चलने लगी तो इस टिपण्णी के खेल से मन उब सा गया.Bloggers निष्पक्ष पाठक नहीं बन सकते कुछ अपवादों को छोड़कर. इसलिए मुझे अब टिप्पणियों की कोई चाह नहीं रहती. मैं बस ये कोशिश करती हूँ की ज्यादा से ज्यादा पाठको तक पहुँच सकूँ. मेरा ब्लॉग प्रतिदिन 150-160 व्यक्ति पढ़ते है 300-400 pageviews होते है पर टिप्पणियां सिर्फ एक या दो आती है कारण ज्यादातर non bloggers है. कई बार टिप्पणियां mail पर मिलती है कभी message में तो कभी facebook पर... पर मुझे प्रोत्साहित करने के लिए ये काफी है.सभी ब्लोग्गेर्स को सलाह है google analytics पर अपना अकाउंट बना ले..आपको पता चल जायेगा कितने लोगो ने आपका ब्लॉग पढ़ा. ब्लोग्स अभी भी पढ़ती हूँ पर टिपण्णी तभी करती हूँ जब पोस्ट अच्छी तरह से समझ आ जाये और मैं निष्पक्ष टिपण्णी दे पाऊं.यही वजह है कि आपके ब्लॉग पर भी बहुत दिनों बाद टिपण्णी कर रही हूँ :)

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  18. ''पचपन का भी नहीं हुआ ...पचपन मानें बचपन!''
    आप पचपन के भी नहीं, ... माने बचपन आने में वक्‍त है अभी.

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  19. ये टिप्पणी स्मार्ट इंडियन से उधार -

    आप क्या करते हैं, वह सादर आपकी मर्ज़ी! हम तो जहाँ मन करेगा वहाँ टिपियायेंगे, ब्लॉगर को पसन्द न आये तो वह भले ही उसे न छापे। इसी तरह जो अच्छा लिखेगा उसे पढेंगे ज़रूर भले ही वह हमारे लिखे पर काणी नज़र भी न डाले। लिखना और पढना दो अलग-अलग बातें हैं। हम इन दोनों की खिचड़ी बनाने वाले नहीं मगर सलाह देने का कोई शौक नहीं है (ऊपर से आप उद्विग्न भी हैं, उद्विग्नता अक्सर दुश्मन पहचानने के बजाय शुभाकांक्षियों को ही कटा देती है - ऐसा हिन्दी ब्लॉगिंग में कई बार देखा है, देख रहे हैं) इसलिये आपको कोई सलाह देने की ग़लती भी नहीं करेंगे इसलिये उस बात पर - हम्बली नो कमेंट्स। चार-पाँच ब्लॉग तो ऐसे हैं जिनके लेखक चाहे हमें कभी न पढें, हम उन्हें ज़रूर पढते हैं और कम से कम 20-30 तो ऐसे हैं ही जिन्हें पढने से हमें कुछ नया सीखने को मिलता है। टिप्पणी पाने के लालच में वह मुफ़्त मिलने वाला ज्ञान गंवाने वालों में नहीं हैं हम।

    और, जब से हमने ब्लॉगिंग शुरू की, तो बमुश्किल दर्जन भर ब्लॉग थे. अब तो अद्भुत विविधता है, प्रचुरता है, तथा मेरे परिप्रेक्ष्य में तो आपकी कही गई एक भी बात सही नहीं बैठती है!

    नजर नजर का फेर?

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  20. यही बातें 'वे सब' भी कहते हैं तो फिर इसका क्या अर्थ निकला जाये ?

    बहरहाल मुझे ग़ालिब क्यों पसंद है बस ये ही ना पूछियेगा , मौक़ा ठीक लगा सो उनको आपकी नज़र कर रहा हूं ...

    बाज़ी-च-ए-अत्फाल है दुनिया मेरे आगे
    होता है शब-ओ-रोज तमाशा मेरे आगे !


    एक लिंक दे रहा हूं वहां शब्द , अनुवाद सहित पढ़ पायेंगे...
    http://ghazalsagar.blogspot.in/2010/12/blog-post.html

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  21. @अनूप शुक्ल,
    जब आपके शब्दों में ' चिरा हुआ युवा' हो सकता है तो चिरी हुयी युवतियां भी होंगी ?
    क्यों ?

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  22. 'पत्रं पुष्पं..'
    यह नाम सही दिया.

    आप का गुस्सा जायज़ है.
    ऐसा कई बार लगता है ही.

    जिन पोस्ट्स पर कोई राय न मांगी गयी हो वहाँ शायद टिप्पणी का विकल्प बंद कर देना अच्छा है.
    न लेना न देना !बस निफ्राम लिखे जाएँ!
    याँ फिर प्रवीण शाह जी की तरह डिस्क्लेमर लिखा जाए टिप्पणी के बदले टिप्पणी की उम्मीद न रखें.

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  23. अच्छा मान लीजिए कि दस-बारह टिप्पणी बेसी मिल भी जाये तो क्या हो जायेगा? जिसको इच्छा होगी वह टिप्पणी करेगा, जिसे नहीं होगी वह नहीं करेगा। इसमें क्या आनी-जानी है? ब्लागिंग में टिप्पणियां इतनी महत्वपूर्ण क्यों है? खासकर तब जब ब्लागिंग के नाम पर लोग रात-दिन पुरस्कार बांट रहे हैं और खेमेबाजी कर रहे हैं?

    ब्लागिंग करके अमरत्व पाने की लालसा से कब उबरेंगे लोग? और ये भाई-चारा और आछो आछो की बातों वाली पोस्ट लिखकर कितने दिन ब्लागिंग करेंगे? आप खुद ही देखिए। आपने ब्लाग पोस्ट लिखकर जिनको भी महान बतलाया उनमें से कई लोगों के साथ आपका झगड़ा हुआ। अगर इतना ही भाई-चारा है तो सब झगड़ा क्यों करते हैं?

    ब्लाग लेखन को भविष्य का निवेश मानेंगे तो दुख होगा और फिर ऐसी पोस्ट लिखते रहेंगे।

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  24. प्रवाह बनेगा तो गन्दगी बह जायेगी..आशा रखिये..

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  25. मेरी टिप्पणी कहाँ गयी?!!!!
    कहीं स्पैम में तो नहीं?

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  26. @मित्रों ने पूरे पोस्ट को मात्र टिप्पणी के संदर्भ में देख लिया ..मैं फिर से यह कह रहा हूँ कि यह एक उस अहमन्यता और चालबाजी के विरोध में है कि मेरा तो समय बहुत महत्वपूर्ण है ,मैं विशिष्ट क्लास का ब्लॉगर हूँ मैं आपकी पोस्ट पर जाना और समय बर्बाद करना ,टिप्पणी करना अपने शान के खिलाफ मानता हूँ ....
    यह अहमन्यता भी हिन्दी ब्लागिंग को किनारे करती जा रही हैं ..
    शिव जी झगड़े मैं किसी से नहीं करता लोग मुझे झेल नहीं पाते :)
    आपके दिमाग में जो नाम हैं वे सभी आज भी मुझे प्रिय हैं बस समझ फेर है ..
    मैं तो सभी का शुभाकांक्षी ही हूँ ....अब जैसे आप भी मुझे आज तक नहीं समझ पाए और न मैं आपको
    यह स्वाभाविक है -ऐसे ही विवाह के पूर्व गन्ने नहीं बैठाये जाते ....
    लुब्बे लुआब इतना ही समझ लीजिये कि कुछ लोगों के कुछ लोगों से गन्ने नहीं बैठ पाते ,,और वे
    अलग अलग चल पड़ते हैं !

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  27. हमें तो जो अच्छा लगता है देर-सवेर जाकर पढ़ते हैं। कभी टिपियाते हैं कभी नहीं। लेकिन जिनको पढ़ते हैं... पढ़ते ही हैं :)
    जिनको नहीं पढ़ते... बड़ी मुश्किल से उधर जाते हैं :)

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  28. मुझे तो एक पोस्ट और उस पर आये अनेक कमेंट पढ़ने में ही काफी देर हो जाती है। मुश्किल से दो घंटे मिल पाते हैं। कभी-कभी लगता है कि जो मैं कहना चाहता हूँ वह तो पिछले कमेंट में आ ही गया है, अब क्या लिखूँ ? कभी 'बहुत खूब' भी लिखता हूँ कभी बहुत ज्यादा लिख जाता हूँ। कभी एक ब्लॉग की पिछली सभी पोस्टें पढ़ने में ही पूरा समय बीत जाता है। कभी गुणा गणित भी नहीं कर पाता कि कौन आया था, किसने कहां क्या लिखा था। कभी खूब गुणा गणित करता हूँ और मौज लेता हूँ। कभी कोई बात अटपटी लगती है तो खिंचाई करके चला आता हूँ। कभी बेकार सी पोस्ट में कुछ अच्छा ढूँढ लेता हूँ।

    कुल मिलाकर यह कि मैं तो ब्लॉगिंग का भरपूर आनंद उठाता हूँ..किसी की परवाह नहीं करता। सत्यमेव जयते शुरू हो गया..चलता हूँ...

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  29. ये महलों - ये तख्तों - ये ताजों की दुनिया ....
    ..........
    ये टिप्पणियां अगर मिल भी जाए तो क्या है ?

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  30. सुन्दर,उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  31. अरविंद जी, मैं अभी फॉलोअप में टिप्पणियां देख रहा था तो फिर से इस पोस्ट को पढ़ने की इच्छा हुई और सब पढ़ लेने के बाद जब आपकी टिप्पणी पढ़ी कि झगड़े मैं किसी से नही करता लोग मुझे झेल नहीं पाते......ऐसे ही विवाह पूर्व गन्ने नहीं बैठाये जाते bla bla तो लगा कि आपको तनिक बता ही दूं कि आपकी इस पोस्ट का निहितार्थ क्या है और क्यों आपने यह पोस्ट लिखी है. जानते तो आप भी होंगे लेकिन एक बार बता ही देता हूं.

    जैसा कि और सभी लोग ब्लॉगिंग करते हैं, मैं भी ब्लॉगिंग करता हूं.(शायद आपकी जानकारी के लिये बताना जरूरी है) जैसे सभी लोग अन्य सोशल साइटों से जुड़ रहे हैं, मैं भी जुड़ता रहा हूं और बाकी सब कामों के अलावा अपने रोजगार से वैसे ही जुड़ा हूं जैसा कि बाकी सभी लोग जुड़े हैं. ऐसे में ब्लॉगिंग कैसे करनी है, कहां क्या निर्धारित करना है, कैसे समय निकालकर टिप्पणी देनी है लेनी है सो अपने हिसाब से मैनेज करता हूं. इसमें बात अहमन्यता और शिष्टाचार की नहीं है.

    और जिस टिप्पणी शिष्टाचार की बात आप कर रहे हैं वह तो एक बहाना भर है अपनी भड़ास निकालते हुए यह पोस्ट ठेलने का. इसके मूल में वह फेसबुक स्टेटस मैसेज है जिससे आप उद्विग्न हुए हैं. औरों की जानकारी के लिये बता दूं कि कुछ दिन पहले ही मैने मुंबई में लंगड़ा आम से संबंधित स्टेटस मैसेज लिखा था जिस पर अरविंद जी की प्रतिक्रिया थी कि - 'लूले को लंगड़ा मिला' मैंने पढ़ा औऱ इग्नोर किया कि जाने किस मन:स्थिति में लिखे होंगे, छोड़ो. उसके बाद फिर उसी पोस्ट पर उन्होंने कमेंट किया कि - जो लोग आम नहीं पहचान पाते वे निश्चय ही सौन्दर्य के भी पारखी नहीं हैं -कारण यह कि भारत में आम की जितनी शेप और सयिजें हैं उतनी ही उस सौन्दर्य अंग की भी हैं ..सौन्दर्य प्रेमी जिनके दीवाने हैं !

    उसके बाद यही कमेंट अपने स्टेटस मैसेज में भी सजाकर पेश किये. तो मेरा भी मन मौज लेने के लिये लहक गया और मैंने उसी दिन खेंची गई किंग सर्कल के महंगे केले ( पन्द्रह रूपये का एक) की तस्वीर लगा दी कि निहारिये जितना सौंदर्य निहारना है. जाहिर है मेरे मौज लेने से अरविंद जी को बिदकना ही था. वे यह नहीं सोचते कि जब सामने वाले को कोचेंगे तो जाहिर है अगला भी कुछ न कुछ मौज लेगा ही, लेकिन उन्हें अपना तो सब ओके लगता है लेकिन जब दूसरा कहे तो पसंद नहीं. जाहिर है उनके अंदर खुन्नस थी और यहां वहां से रास्ते तलाश रही थी कि कहां लिखूं कैसे लिखूं तो लेदेकर यही पोस्ट लिखी कि - टिप्पणीयों का शिष्टाचार और bla bla....

    और लिखते वक्त लिखा भी तो क्या -

    @हमरा समाज दरअसल लुच्चों कमीनों से भरा हुआ है ....गैर पढ़े लिखे नहीं, पढ़े लिखे ज्यादा खूंखार हैं ,संवेदनाओं से रहित हैं
    @यहाँ भी अब घाघों और घुघूतों का बसेरा है
    @कोई शिष्टाचार भी उसके लिए मायने नहीं रखता क्योकि वह ब्लॉगर है -केवल अपनी पढना अपनी गुनना ...अपनी ढपली अपना राग ....
    @टिप्पणी छोड़ गया तो आपका भी यह दायित्व बनता है कि कभी कभार ही सही वहां जाकर कृतज्ञता दिखायें -यह शिष्टाचार का तकाजा भी है
    @झगड़े मैं किसी से नहीं करता लोग मुझे झेल नहीं पाते :)
    @-ऐसे ही विवाह के पूर्व गन्ने नहीं बैठाये जाते

    और भी बहुत कुछ है लेकिन मगजमारी करना ठीक नहीं.

    टिप्पणी अब ज्यादा लंबी हो रही है, लेकिन अंत में इतना ही कहूंगा कि टिप्पणियों का शिष्टाचार आदि का मुलम्मा चढ़ाकर अपनी पोस्टें हिडन मंतव्य से मत लिखिये, खुलकर कहिये कि आप को आपके ही शैली में दिया गया सौंदर्य निहारने वाला प्रत्युत्तर पसंद न आया और वहीं से मरोड़ उठनी शुरू हुई जिसकी परिणति है यह टिप्पणी शिष्टाचार का बहाना बनाती पोस्ट :)

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  32. सर, समझने की जहाँ तक बात है, ब्लॉग पोस्ट समझने से काम चल जाएगा. मैं मानता हूँ कि ब्लागिंग में ब्लॉग पोस्ट समझना और उसपर टिपण्णी लिखना काफी है. वैसे आपकी यह अदा बड़ी मस्त है जिसमें आप सामने वाले को फट से यह बता देते हैं कि; "आप तो मुझे समझे ही नहीं."

    मेरी टिप्पणी तो केवल टिप्पणियों या इस बात को लेकर थी कि लोग ब्लॉग पर आना-जाना नहीं करते. उससे आगे समझने-समझाने की बातें गूढ़ हैं और उन्हें समझने-समझाने का काम विद्वानों का है. अब विद्वत्ता की बात पर मैं तो फट से भाग जाने वालों में से हूँ:-)

    सतीश जी की टिप्पणी से संदर्भ जान पाया. इस ब्लॉग पोस्ट पर वापस आना सुफल रहा.

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  33. बाप रे ..देखा टिप्पणियों की संख्या :):)..मेरी टिप्पणी सिर्फ पोस्ट पर -
    इतना क्या सोचना..अपना काम है लिखना , पढ़ना और पढ़े हुए पर अपनी राय देना. बस काफी है बाकियों की वो जाने.सबका अपना अपना तरीका होता है.

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  34. @सतीश पंचम,
    आपके बारे में मैं खैर मुगालते में तो मैं हमेशा ही रहा मगर आपकी हालत इतनी पतली है कभी सोचा न था ..
    बहरहाल मेरे मुगालते तो दूर हुए मगर आप अपने बारे में मुगालते कब दूर करेगें?
    वो कहते हैं न कि गिल्टी माईंड इज आलवेज इन सस्पिसन -चोर की दाढी में तिनका
    वही चरितार्थ हुआ है -
    पोस्ट का आपसे कुछ लेना देना नहीं है रत्ती माशा भी नहीं ....
    आप खुद किसी खुशफहमी के शिकार हुए हैं ...
    लूले को लंगड़ा यहाँ बनारस में लोग लंगड़ा आम को लेकर ऐसे ही तुकबंदी करते हैं -
    और जो सौन्दर्यबोध की बात थी वह पहले भी मैं उद्धृत कर चुका हूँ मगर वो है क्या है कि
    इन दिनों आप भदेस गाली गलौज में आकंठ डूबे हुए हैं और गा** ला** का खुल्लमखुल्ला प्रयोग अपनी पोस्टों पर
    कर रहे हैं तो महीन सौन्दर्यबोध आपके बूते की बात नहीं ...
    बातें तो आपके बूते की और भी नहीं है मगर चूंकि टिप्पणी लम्बी हो रही है और जरा विस्तरेण हो जायेगी तो आपकी नींद गायब हो जायेगी इसलिए अपने सफ़ेद घर और उस क्या नाम है वो लेंस ..में डूबे रहिये ..आमीन !

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  35. गजब.....शब्दश: वही कमेंट जिसका मुझे अंदाजा था कि यही लिखा जायगा लीपापोतीकरण करते हुए कि - चोर की दाढ़ी में तिनका...अलां फलां ढेकां....और देखिये वही लिखा गया.

    ब्लॉगिंग में चार साल से हूं, नस नस न सही, लेखों की फितरत और उनमें छिपे मंतव्य अच्छे से पहचानता हूँ .....और मैंने सही पकड़ा....अब गाते रहिये हम चले :-)

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  36. @शिव जी,
    आपको भी मुझसे असहमतियों का बहाना भर चाहिए ....
    मगर यह प्रजातंत्र में जायज है ..हाँ आप भी गलत समझ गए ..
    आलोच्य पोस्ट किसी भी ख़ास व्यक्ति घटना पर आधारित नहीं है!
    कुछ लोग कभी कभी खुद को इतना उल्लेखनीय समझ बैठते हैं और सोचते हैं
    सारी कायनात बस उन्ही की चर्चा कर रही है ...यह भी सेल्फ अवेयरनेस की कोई विकृति होगी

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  37. मज़े की बात है कि समानता का दंभ भर कर भी श्रेष्ठता दिखाने के लोभ को जाहिर कर ही दिया जाता है . ज्ञान के लिए और भी कई विकल्प है केवल ब्लॉग जगत ही नहीं..तो फिर केवल अपनी पसंद ही सर्वोपरि है..

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  38. समाज के घिनौने चेहरे हमारे आस पास ही हैं ..... और यह कहना भी पूर्णतया सत्य है कि पढ़े लिखे लोग ही ज्यादा ऐसा दुष्कर्म कर रहे हैं .....

    ब्लॉगजगत अभी लाख गुना अच्छा है . पर सच तो यह है कि पहले जैसी बात नहीं रही ....

    रही टिप्पणियों की बात तो यह हर पाठक का अपना अलग नजरिया है ....

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