भारत में तो नहीं, अमेरिका में मानव अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता ने प्रत्येक व्यक्ति के सार्वजनिक जीवन में भी निजता के प्रति सम्मान का पूरा ध्यान रखा है .कुछ दिनों पहले महिला पत्रकारों ने भारत में सुरक्षा कारणों से पुलिस की तलाशी के तरीकों पर कड़ी आपत्ति जतायी थी ..उनके साथ कथित तौर पर जांच और तलाशी के नाम पर निजता का उल्लंघन किया गया था और बदसलूकी की गयी थी ...न्यूयार्क शहर में आज से ही नहीं सन १०४९ से ही भीड़ में और सड़क पर चहलकदमी करते लोगों को भी 'निजता का उपहार' प्रदत्त था ...यद्यपि वहां भी सुरक्षा कारणों को लेकर नित नयी मुसीबतें अब शुरू हो गयी हैं .
अभी २३ जनवरी २०१२ के अपने एक फैसले में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वहां की जासूसी संस्था एफ बी आई ने अमेरिका के निजता के सम्मान के अधीन अनुचित तलाशी और जब्ती के संविधान के 'चौथे संशोधन ' का उल्लंघन किया जब उनके द्वारा मादक द्रव्य के एक संदेहास्पद व्यवसायी के आवागमन को 'ग्लोबल पोजिसनिंग' प्रणाली के जरिये ट्रैक किया . अधिकारियों के पास जांच का वैध वारंट नहीं था ....सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने अमेरिका में लोगों के सार्वजनिक जीवन के रहन सहन में अनावश्यक हस्तक्षेप ,उनके निजी जीवन में ताकझांक पर पाबंदी लगाई है .लोगों को अपनी निजता को बनाए रखने के मौलिक आधिकार बरकरार हैं .
यह विचार ही नया है कि लोग सार्वजनिक जीवन में भी निजता बनाए रख सकते हैं . यह अमेरिका में संविधान के चौथे संशोधन से मिली एक सुरक्षा है जो लोगों के आम जीवन में भी उनकी निजता का सम्मान करता है . किन्तु आज के युग में जबकि मोबायिल फोन,जी पी एस की जुगतें ,अंतर्जाल लोगों के बारे में सूचनाओं का विशाल भण्डार इकट्ठा कर रही हैं निजता को बनाए रखना संभव नहीं रह गया है . अंतर्जाल पर तो निजता को बचाए रखना असंभव ही है ..
यहाँ हमारी हर गतिविधि कई सेवा प्रदाताओं के पास एकत्रित होती जा रही है .गूगल पर हमारी हर दिन की कितनी ही अंतर्जाल गतिविधियाँ दर्ज होती चल रही हैं .फेसबुक जैसी सोशल साईट हमारी दैनन्दिन जानकारियाँ इकठ्ठा करता जा रहा है -कौन कौन से दोस्त हैं ,कैसी अभिरुचियाँ हैं ,पसंद क्या क्या है आदि आदि ,इन जानकारियों के व्यावसायिक उपयोग भी हमारे जाने अनजाने हो रहे हैं -ऐसे विज्ञापन हमारी आँखों के सामने लाये जा रहे हैं जो हमें बरबस और अनजाने ही अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं . कई कम्पनियों ,अनुष्ठानों की व्यावसायिक लाभ इन जानकारियों में निहित हैं . आशंका यह है कि हम जिन साईट पर जा रहे हैं कहीं वे इन जानकारियों को व्यावसायिक लाभ के लिए सम्बन्धित फार्मों ,कम्पनियों तक तो नहीं पहुंचा रही हैं ? यह हमारी निजता में सीधे सीधे घुसपैठ ही तो है .
वैसे निजता के पक्षधर भी आज सुरक्षा कारणों से ,बढ़ती आतंकवादी गतिविधियों के चलते खुद की छानबीन ,तलाशी और जांच आदि के मुद्दे पर जांच एजेंसियों /पुलिस से सहयोग कर रहे हैं .किन्तु अभी जब हाल में एफ बी आई ने १४ करोड़ देशवासियों से जुडी जानकारियाँ, जैसे वे कहाँ कहाँ जाते हैं ,किस फोन का इस्तेमाल किन कामों के लिए करते हैं करियर आई क्यू नामकी कंपनी से माँगी तो इसका विरोध हुआ . यही नहीं एफ बी आई ने एक ऐसे साफ्टवेयर को भी विकसित किये जाने के बारे में तकनीकी कम्पनियों से राय मांगी थी जो यह बता सके कि कितने और कौन कौन लोग ट्विटर,फेसबुक ,माईस्पेस और ऐसी ही अन्य सोशल नेटवर्क साईट तथा वेबसाईट के ग्राहक हैं .
इन तमाम गतिविधियों के बावजूद भी मनुष्य की निजता को बनाये/बचाए रखने की सोच ,आम जीवन में भी उसके निजता के अधिकार की रक्षा विषयक संविधान की प्रतिबद्धता अमेरिका सरीखे लोकतंत्र के रहनुमा देश में मानव अधिकारों के प्रति उसकी संवेदनशीलता को दर्शाती है -भारत जैसे अन्य देशों को भी ऐसी परिष्कृत सोच और उसे अमली जामा पहनाने की कवायद करनी चाहिए या नहीं, यह बहस का मुद्दा बनना चाहिए ...
सचमुच ||
जवाब देंहटाएंनिजता
सार्वजनिक हो रही है अंतरजाल पर-
vicharneey lekh...
जवाब देंहटाएंहम अमेरिका जैसे देश का कहाँ मुकाबला कर पाएंगे । यहाँ तो एक यू आई डी बनाने में ही झटकम झटका हो रहे हैं । लेकिन फेसबुक आदि पर सारी जानकारी लोग खुद ही डाल रहे हैं । उसका मिसयूज तो हो ही सकता है ।
जवाब देंहटाएंनिजता को जब कोई खुद सार्वजनिक करे तो कोई क्या कर सकता है.
जवाब देंहटाएंहमारा तो यह मानना है कि अगर आपकी कोई बात आपके अलावा कोई दूसरा जानता है तो समझिये कि वह सार्वजनिक हो गयी। :)
जवाब देंहटाएंबाकी आप/हम जो किस्से-कहानी, फ़ोटो-सोटो खुद नेट पर डालते हैं उनको अगर कोई देखकर आपके/हमारे में जानकारी इकट्ठा करता है तो इसमें कौन सी निजता जी!
ज़रूर होनी चाहिए ...पर भारत में तो टीवी से लेकर इन्टरनेट तक हर जगह लोग अपनी निजता स्वयं ही साझा कर रहे हैं .... कारण कहीं लालच है तो कहीं जागरूकता की कमी ....
जवाब देंहटाएंतलाशी और ज़ब्ती आदि तो निजता का बहुत छोटा पक्ष हैं। निजता की बात होने पर यह तय करना ज़रूरी है कि किसके पास कितनी जानकारी की पहुँच है। सच यह है कि अमेरिका में एक आम नागरिक की लगभग हर बात जानकारी संस्थाओं के पास है। यदि जानकारी बताने की ज़रूरत पड़े तो उन्होने किस तारीख की शाम को क्या खाया, कौन सी शराब पी, किस दिन वे कहाँ थे, उन्हें क्या-क्या बीमारियाँ हैं, कौन डॉक्टर इलाज कर रहा है, कब किसे कितनी देर फ़ोन किया, किन संस्थाओं के कितने कर्ज़े हैं, कितनी कारें खरीदीं, किस नस्ल के कितने कुत्ते पाले, कितने घर बदले, कितने में खरीदे, बेचे आदि सब कुछ उपलब्ध है।
जवाब देंहटाएंसवाल यह है कि क्या यह जानकारी सही हाथों में है? और यदि कोई इसका दुरुपयोग करता है तो उसे रोकने के क्या प्रावधान हैं।
अंतर्जाल पर आ जाने का मतलब ही है कि आप खुले स्नान-घर में आ गए हैं.यदि आप सीधे-सीधे किसी सोशल-साईट से नहीं भी जुड़े हैं तब भी बैंक या कार्यालय के रिकॉर्ड से आप 'गूगल' किये जा सकते हैं.
जवाब देंहटाएंअब निजता का बचना तो संभव नहीं,हाँ कुछ सावधानी ज़रूर बरत सकते हैं.
हमारे यहां अच्छा है.... कहीं का भी किसी भी फ़ील्ड का ठुल्ला आता है, डंडा बघारता है, जो चाहता है करता है, चलता बनता है, अब कर लो जो करना है उसका, उसके ऊपर के बाउ सुनेंगे नहीं, अदालतें बूते से बाहर हैं...
जवाब देंहटाएंसूचना क्रांति के इस दौर में निजता की बात ही व्यर्थ लगती है .इन्टरनेट पर तो खैर यह असंभव है ही. सोशल साईट्स पर डाली गयी जानकारियों के प्रसार को आप निजता का उल्लंघन मान भी लें तो भी सुरक्षा कारणों से यह ज़रूरी है , लेकिन इनके व्यावसायिक उपयोग को प्रतिबंधित करने के लिए कड़े कानून होने ही चाहिए !
जवाब देंहटाएंदैनिक जीवन में भी आप हर समय सुरक्षा कारणों से ही लगाये गये कैमरों की नजर में हैं जो आपकी हर गतिविधि को नोट करते हैं, ऐसे में निजता ??.
न जाने कितने यन्त्रों के माध्यम से हम खुद ही फँस गये हैं, क्या करें, निकलना संभव ही नहीं है। कानून तो तब काम करेगा, जब कोई कानून का पालन करेगा।
जवाब देंहटाएंजब सब ही अब खुले विचारों को साझा कर रहे हैं तो निजता की शिकायत ही कहाँ कौन करे ...:) दूसरे लफ़्ज़ों में सब बोल्ड हो गए हैं :)
जवाब देंहटाएंइन तमाम गतिविधियों के बावजूद भी मनुष्य की निजता को बनाये/बचाए रखने की सोच ,आम जीवन में भी उसके निजता के अधिकार की रक्षा विषयक संविधान की प्रतिबद्धता अमेरिका सरीखे लोकतंत्र के रहनुमा देश में मानव अधिकारों के प्रति उसकी संवेदनशीलता को दर्शाती है ॥
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी दी है .... पर यहाँ तो अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की मांग उठती रही है .... अपने निजी जीवन को खुद ही सबके साथ बंता जाता है तो कोई भी उसका लाभ उठा सकता है ...
फिर भी यह ज़रूरी है कि जिस तरह कोई किसी के भी आई डी को हैक कर उनको नुकसान पहुंचाए उन पर लगाम कसनी ही चाहिए
सबसे पहले तो ये कि अमेरिकन्स और भारतीय समाज में निजता का प्रश्न एक जैसा है भी क्या ?
जवाब देंहटाएंअमेरिकन्स और उनकी संस्थागत नातेदारियों का बयान अनुराग जी ने कर ही दिया है ! वहां शराबखोरी तक का हिसाब है किन्तु यहां संपत्तियों / आय / कमाई तक बेहिसाब हैं :)
यह सिर्फ एक उदाहरण है व्यक्ति और संस्थागत नातेदारियों का ! बकौल अनुराग शर्मा सही हाथों का :)
अमेरिकन्स के लिए सार्वजनिकता में निजता का प्रश्न , सामाजिक तौर पर , यहां से कितना भिन्न है , इसका अंदाज़ इसी बात से लगाइए कि अमेरिका के किसी पार्क में किसी सुन्दर बच्चे की फोटो अगर आप लेना चाहें तो आपको उसके अभिभावकों से अनुमति लेना होगी ! लेकिन अपने यहां डाक्टर दराल साहब दिल्ली की सड़क पर एक दूसरे को चूमते हुए लड़के लड़की के प्रेम को "नोटिस" भी कर लेते हैं और सड़क पर बैठे हुए जोड़े की फोटो भी खींच लेते हैं , वो भी उनकी अनुमति लिए बिना ! यह एक उदाहरण है निजता और निजता के सम्मान को लेकर हमारे और अमेरिकन के दृष्टिकोण का ! इसलिए मैं यह मान कर चल रहा हूं कि आलेख में आपने अमेरिकन्स की तुलना भारतीयों से नहीं करनी चाही होगी !
अब मूल प्रश्न ये है कि अंतरजाल से जुड़ते हुए हम भारतीयों की निजता पर कोई संकट है भी या कि नहीं ? मेरे लिए इसके दो जबाब होंगे ! अगर हैकरों की ओर इशारा करें तो आपके सवाल का जबाब सौ फीसदी हां में है लेकिन , सेवा प्रदाता कंपनियों की इशारा करें तो मामला फिफ्टी फिफ्टी हो जायेगा जहां कंपनियों के जिम्मेदार कर्मचारी आपकी निजता का फायदा उठा भी सकते हैं और नहीं भी :)
मेरा ख्याल है कि सेवा प्रदाता कंपनियों को हम जो भी जानकारी देते हैं ! वो सोच समझ कर निजता के दायरे से बाहर करते हुए देते हैं ! तो फिर अपने ही विवेक / निर्णय से उजागर की गई कथित निजता के खोने का भय कैसा :)
काजल कुमार जी की टिप्पणी भी ध्यान देने योग्य है और अनूप जी की टिप्पणी संक्षिप्त होकर भी मुकम्मल है !
अन्य देशों की तो कह नहीं सकती किन्तु मुझे नहीं लगता कि भारत में निजता कोई बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा माना जाता है। हमारे समाज में जहाँ ट्रेन में बगल में बैठे व्यक्ति से हम उसकी भाषा, जाति, विवाह हुआ या नहीं, कितने बच्चे हैं आदि आदि पूछ लेते हैं, जहाँ बन्द दरवाजों के पीछे रहना अजूबा माना जाता है, वहाँ निजता का प्रश्न कम ही उठता है।
जवाब देंहटाएंफिर अन्तर्जाल और भारतीय मिल जाएँ तो नीम चढ़ा करेला! हमें अपनी फोटो सबको दिखानी है, हो सके तो पूरे खानदान की भी!
मुझे नहीं लगता आम भारतीय निजता को लेकर परेशान है।
घुघूती बासूती
निजता बचाना तो हमारे ही हाथो में है ! अब पूनम पाण्डेय जैसे लोग अपनी निजी फोटो विडिओ तक अंतरजाल पर डाल रहे है . हम-आप जैसे लोग अपनी छोटी-छोटी बाते अंतरजाल पर शेयर करते है .
जवाब देंहटाएंविचारणीय पोस्ट के लिए आभार !
भारत जैसे अन्य देशों को भी ऐसी परिष्कृत सोच और उसे अमली जामा पहनाने की कवायद करनी चाहिए या नहीं, यह बहस का मुद्दा बनना चाहिए ...
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख ......इस दिशा में आम लोगो की जागरूकता बहुत कम है ...!
मैं अली जी की बात से सहमत हूँ. हमारे यहाँ वास्तविक जीवन में भी निजता का सम्मान नहीं होता और सोशल वेबसाईट के आ जाने से और भी मुश्किल. निजता का कांसेप्ट हमारे यहाँ बड़ा धुंधला सा है.
जवाब देंहटाएंलेकिन मैं ये नहीं मानती कि सोशल वेबसाईट पर अपना प्रोफाइल बना लेने से आप अपनी निजता खो देते हैं. यहाँ आप उतनी ही जानकारी प्रदान कर सकते हैं, जितनी देना चाहते हैं. हाँ, हैकर्स एक समस्या हैं, पर उससे बचने के उपाय भी हैं. थोड़ा सजग और सावधान रहने की ज़रूरत है बस. बहुत से लोग बहुत कम जानकारी साझी करते हैं. मैं कभी भी फोन नंबर, पता और ई-मेल अड्रेस प्रोफाइल में नहीं डालती. बेहद निजी तस्वीरें भी नहीं. मेरी बहुत सी हॉस्टल सीनियर्स को इस बात से परहेज था कि मेरी इतनी विशाल मित्र-मंडली के अनजाने लोग उनकी प्रोफाइल में तांक-झाँक कर सकते हैं, इसलिए मैंने मित्र-मंडली को छिपा दिया. बहुत सी बातें फेसबुक पर सिर्फ़ अपनी हॉस्टल गैंग के साथ शेयर करती हूँ, जो और लोग नहीं देख पाते.
कुल मिलाकर कम से कम फेसबुक की गोपनीयता सेटिंग ज़बरदस्त है और इसमें अपनी निजता को बहुत सीमा तक बचाए रखा जा सकता है.
जहां विचारों की ऊँची ऊँची बोली लगती है और सब बिकने का लिए तत्पर हैं..वहां कैसी निजता.. मतलब खुले बाजार में मुँह ढक कर घूमना..
जवाब देंहटाएंकृपया मेरी रचना भी देखे अच्छी लगे तो जुड़े
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