विकी डोनर फिल्म की जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है .पहली बार एक ऐसी बालीवुड मूवी देखने का सौभाग्य मिला है जो भारत की सांस्कृतिक समृद्धता वाले परिवेश में एक वैज्ञानिक नज़रिए को स्थापित करने की जद्दोजेहद करती नज़र आयी और अपने मकसद में सफल होती हुयी भी लगी और वह भी बिना दर्शकों को मिलने वाले फ़िल्मी मनोरंजन से समझौते किये हुए . मुझे लगता है यह इस नए दशक के शुरुआत की एक बहुत अच्छी मनोरंजक ,समाजोपयोगी फिल्म है जिसकी चर्चा लम्बे समय तक होती रहेगी .
नियोग के जरिये गर्भधारण की एक प्राचीन पद्धति रही है जिसे कतिपय दिखावटी अनुष्ठानों की आड़ में वीर्यदान के जरिये ऋषि मुनि संपादित करते रहे .हमारे रामायण काल और महाभारत काल के कई चरित्र /पात्र इसी विधि से जन्में थे .आज वैज्ञानिकों ने उसी तकनीक को इन विट्रो फर्टीलायिजेशन के रूप में आम जन के उपयोगार्थ ला दिया है . और उन दम्पत्तियों के लिए जो निःसंतान हैं के लिए यह तकनीक वरदान है .मगर इसकी सामाजिक स्वीकार्यता को लेकर अभी भी कई तरह के संकोच और अवरोध हैं .अब इन क्लीनिकों को चलाने के लिए वीर्य चाहिए -और चाहिए वीर्य डोनर ... मगर वीर्यदान आज भी हमारे समाज में कहाँ प्रचलन में है? . नेत्रदान ,रक्तदान आदि तो फिर भी ठीक है मगर वीर्यदान ....न बाबा न यह तो घृणित कार्य है ,फिल्म इसी सोच को बदलने के लिए उद्यत है .
हम आपको कहानी नहीं बताने जा रहे .बस इतना बता दें कि एक नवयुवा किस तरह स्पर्म डोनर बनता है -विकी डोनर ....और कैसे उसका परिवार सामाजिक निंदा का दंश झेलता है -कैसे वैवाहिक जीवन भी संकट में आ जाता है और फिर कैसे वह इन सभी स्थितियों से उबरता है- यह सब देखते हुए दर्शक अपने को फिल्म से पूरी तरह बंधा हुआ पाता है.एक ऐसी ही दिल्ली स्थित क्लिनिक के संचालक डॉ. चड्ढा किस तरह से वीर्यदान से जुडी सामाजिक असहमतियों को पूरे संकल्प के साथ दूर करते नज़र आते हैं यह फ़िल्म का एक प्रभावपूर्ण पक्ष है .
विकी डोनर की सद्य परिणीता पत्नी भी जब अपने पति के स्पर्म डोनर की बात पता लगते ही उससे विमुख हो जाती है तो कहानी एक संवेदनशील मोड़ पर पहुँच जाती है ..एक पढी लिखी माडर्न औरत के भी ख़याल आधुनिक नहीं है -उसके बंगाली पिता उसे सही तरह से शिक्षित करते हैं ,जानकारी देते हैं .फिल्म काफी इमोशनली चार्ज्ड भी है ..विकी डोनर की पत्नी खुद गर्भधारण न कर पाने की अक्षमता की जानकारी होने पर आहत हो जाती है,और तभी उसे पता लगता है कि उसका पति तो स्पर्म डोनर रहा है और कितने ही कोखों को वह आबाद कर चुका है -छिः यह काम ? और इससे भी बढ़कर उसके अहम को चोट भी कि एक वह है जो बच्चे पैदा नहीं कर सकती और दूसरी ओर उसका पति कितनी कोखों को भर चुका है .वह प्रत्यक्ष रूप से यह कहकर कि उसके पति द्वारा यह बात छुपाने के कारण वह उसका साथ छोड़ रही है ,वापस अपने पिता के घर आ जाती है -मगर उसका पिता यह पूछता है कि -" तुम्हे बुरा क्या लगा ...उसका स्पर्म डोनर होना या यह बात छुपाना या उसमें कमीं न होकर कमी तुम्हारे में होना " .यह सीन बहुत टची है.
फिल्म का अंत सुखद है क्योकि विकी डोनर के ही स्पर्म से उत्पन्न एक बच्ची के माता पिता के एक्सीडेंट में मर जाने के कारण उसे ही यह नायक -नायिका दंपत्ति गोद लेता है . सभी ने बेमिसाल अभिनय किया है . फिल्म भारत के सांस्कृतिक दूरियों, टकराहटों को भी हंसी मजाक के जरिये इंगित करती है ...कैसे एक पंजाबी अपनी संस्कृति को श्रेष्ठ समझता है तो कैसे एक बंगाली अपने सामने किसी को कुछ आंकता नहीं ...मगर तमाम सांस्कृतिक असहमतियों , अलगावों और बेमेलता के बाद भी आम भारतीय किस तरह हैपी इंडिंग तक जा पहुँचता है यह देखने इस हंसी मजाक की किन्तु वैज्ञानिक भावना से भरी फिल्म को जरुर देखें -एकाध दृश्य थोडा अनुचित से हैं मगर फिर भी यह परिवार के साथ देखी जा सकती है -मैंने पत्नी और मां के साथ यह फिल्म देखी.....पूरे पांच स्टार ...
...बहुत शुरू में ही पता लग गया था कि यह फिल्म बहुत अच्छा कर रही है.साधारण बजट से बनी है पर एक अछूते-से विषय को लेकर निस्संदेह सराहनीय कार्य है.
जवाब देंहटाएंआज के समय में स्पर्म-डोनर की ज़रूरत है समाज को ,पर यह पूरी तरह चिकित्सीय-आधार पर होना चाहिए,यह नहीं कि कोई अपनी शारीरिक-भूख शांत करने का उपाय इसमें खोजे !
नवयुवा शब्द पर आपत्ति है,युवा क्यों नहीं ?
आपकी सलाह पर जाकर देख आते हैं..
जवाब देंहटाएंmalik, bahut hee achhe film hai ye, maine dekhee hai aur ek baar phir dekh saktaa hoon, waise movies ke maamle mein mein bahut picky hoon aur Vicky Donor mujhe bahut hee achhee alag soch ki movie lagee!
जवाब देंहटाएंदेखते हैं।
जवाब देंहटाएंहमने भी सुना है कि फ़िल्म अच्छी है लेकिन बदकिस्मती से अभी तक देख नहीं पाए . अब जल्द ही देखने की सोच रहा हूँ .
जवाब देंहटाएं@संतोष महराज: एक तो वैसे ही स्पर्म डोनर को लेकर कई आपत्तियां हैं और अब आप को नवयुवा को लेकर भी है ...
जवाब देंहटाएंAapka ye aalekh padhke film dekhneka man ho raha hai!
जवाब देंहटाएंसुन्दर समीक्षा. टोरेंट्स के सहारे एक प्रति प्राप्त करने का प्रयास होगा.
जवाब देंहटाएंसुना बहुत है इस फिल्म के बारे में |अभी तक देख नहीं पायी हूँ |ये आलेख पढ़ कर अब शीघ्र ही देखती हूँ |
जवाब देंहटाएंआभार |
देखेंगे आपकी सलाह पर ..
जवाब देंहटाएंकम फिल्मे देखता हूँ
नए विषयों की जानकारी आवश्यक है ...
जवाब देंहटाएंहमारे समाज की बहुत बड़ी बीमारी, अशिक्षित होना और जानकारी का अभाव है, आप अच्छा कार्य कर रहे हैं भाई जी !
अच्छी जानकारी फिल्म की ....
शुभकामनायें आपको !
देखनी है फिल्म..तारीफें काफी सुनी हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन रहे हैं इसके बारे में ... लगता है अब जाना ही पड़ेगा देखने ...
जवाब देंहटाएंजब आपने फिल्म को पाँच स्टार दे ही दिया तो फिर इस समीक्षा को भी इतना ही मिलना चाहिए..या इससे ज्यादा भी दिया जाना चाहिए..
जवाब देंहटाएंआपने इतनी तारीफ कर दी है कि इसे देख लूं तो बात करूँ !
जवाब देंहटाएंआजकल बॉलीवुड में नए विषयों पर सिनेमा बनाने का प्रयोग बखूबी हो रहा है होना भी चाहिए । एक सहकर्मी ने पहले ही दिन देख कर कहा था अच्छी पिक्चर है देखनी चाहिए । अब आपहु अनुमोदन कर दिए हैं , देखते हैं कब लंबर आता है देखने का । बकिया विश्लेषण कमाल किए हैं आप
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी यह फिल्म । विषय एकदम अछूता है । और सार्थक भी । IVF एक क्रन्तिकारी तकनीक है चिकित्सा के क्षेत्र में । हालाँकि नायिका की मेडिकल रिपोर्ट में खामियां लगी । सरोगेसी भी एक स्वीकार्य विकल्प है ।
जवाब देंहटाएंलेकिन एक बात पर हैरान हूँ कि यदि आपने वीर्य दान किया और किसी की सूरत आपसे मिलती हो तो ! हालाँकि यह गुप्त रखा जाता है , लेकिन फिर भी ! ! जाने कैसा लगेगा ?
अभी तक नहीं देखी फिल्म .... अब देखने का मन है.... इस फिल्म समीक्षा के ज़रिये भी कितना कुछ समेट लिया आपने ....वैचारिक लगी पोस्ट
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - जस्ट वन लाइनर जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा फिल्म समीक्षा |
जवाब देंहटाएंनया विषय है ...अच्छी समीक्षा !
जवाब देंहटाएंपिक्चर बढिया है देखने लायक।
जवाब देंहटाएंपांच स्टार कित्ते में दिये?
नवयुवा माने संतोष त्रिवेदी!
(चिर)युवा माने अरविन्द मिश्र! :)
बेहद रोचक कथानक की प्रस्तुति वैज्ञानिक शब्दावली और साहित्य के मिश्र से आपने की है .रहा सवाल इस महा ढेड (महा -देश )देश भारत का का इसे अभी अंग दान क्या बादे मर्ग (मृत्यु के बाद )शरीर दान को समझने में भी सौ साल लगेंगें .यहाँ तो कडावर (शव )के अंग भी लावारिश लाशों से ही मिल पातें हैं चिकित्सा छात्रों को एनातोमिकल स्टडीज़ को समझने के लिए .
जवाब देंहटाएंकृपया यहाँ भी पधारें -
शनिवार, 12 मई 2012
क्यों और कैसे हो जाता है कोई ट्रांस -जेंडर ?
क्यों और कैसे हो जाता है कोई ट्रांस -जेंडर ?
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