सोमवार, 9 अप्रैल 2012

निर्मल बाबा: एक नजरिया यह भी !

मुझे एक पत्रिका के सम्पादक ने आग्रह किया मैं निर्मल बाबा सरीखे ढोगीं व्यक्ति के बारे में उन्हें एक लेख  लिख कर भेजूं .उन्होंने मुझे  उकसाया भी कि अंधविश्वास के प्रति मुहिम चलाने वाले व्यक्ति यानी मुझे ऐसे ढोगी बाबाओं के खिलाफ मैदान में उतर आना चाहिए .... उन्हें पता नहीं शायद कि मैं (उकसावों के) बहकावों में अब नहीं आता ....वो दिन बीत गए जब ..... हाँ, मैंने जब इस विषय की अहमियत के चलते कुछ लिखने को सोचा तो जो लिखा गया वो बिलकुल अलग था ..मैं भी हैरान कि यह क्या लिख डाला मैंने ..सहज लेखन शायद ऐसा ही होता हो ...सामग्री थोड़ी बासी है क्योंकि मेरे फेसबुकिये मित्र इसे पहले ही चख चुके हैं मगर मुझे मालूम है मेरे कई सुधी पाठक और मित्र फेसबुक पर नहीं हैं -यह उनके लिए है ! 

 

निर्मल बाबा के प्रकरण को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखना होगा .अपने देश में चमत्कार के प्रति लोगों में एक ऐसा ही जुनूनी लगाव है .गैर पढ़े लिखे लोग ही नहीं अच्छे ओहदों पर बैठे प्रशासक ,न्यायविद जब फलित ज्योतिष के मुरीद हैं ,अपनी दसों उँगलियों में अंगूठियाँ पहनते हैं तब एक निर्मल बाबा पर हल्ला बोल से क्या होगा ? 



यह एक बड़ा व्यापार है .निर्मल बाबा ने कितनों की झोली भर दी  है .एक भरा पूरा व्यवसाय उठ खड़ा हुआ है .बैंक ,परिवहन, ईवेंट प्रबंध आदि आदि ..सभी के पौ बारह हैं ...लोगों का व्यवसाय चमक उठा है . मीडिया अथाह धन हलोर रहा है ..बाबा अरबपति हो गए हैं ..एक निर्मल बाबा बे इतने चमत्कार क्या कम किये हैं ? और दीगर बाबाओं से सचमुच साफ़ सुथरे भी हैं ...कोई अंतर्कथा, कोई रासलीला भी नहीं सामने नहीं आई है ...बातें भी तार्किक करते लगते हैं ...कोई ख़ास अनुष्ठान भी नहीं ..अब लोग वहां उमड़ पड़ रहे हैं तो क्या किया जा सकता है ..लोकतंत्र है.... लोगों की इच्छाओं का सम्मान करना ही होगा ....बजा कहे जिसे आलम उसे बजा समझो .....

देश में जिस तरह आस्था और विश्वास का संकट है ,हमारे सामने ऐसे उदाहरण नहीं हैं जिनका अनुसरण किया जाय ,समाज की अगुआई करने वाले नेता भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हैं ,न्याय और कार्य प्रणाली इतनी सुस्त है तो लोग आखिर जाएँ तो जाएँ कहाँ ? ऐसे में एक बाबा उन्हें उनके दुखों से निजात दिलाने का विश्वास देता है ,जीने का सहारा देता है ...हमारे पास फिलवक्त कोई विकल्प नहीं जो हम इन निराश लोगों के जीवन में आशा और विश्वास का संचार कर सकें ....



समाज में चहुँ ओर बेईमानी भ्रष्टाचार व्याप्त है ...ऐसे में केवल एक बाबा पर निशाना क्यों? आशाराम बापू ,जय गुरुदेव आदि सभी तो ऐसा ही कुछ कर रहे हैं .....निर्मल बाबा ने कोई अलग कार्य नहीं किया बल्कि इस देश के हजारो करोड़ों लोगों को जीने का एक आसरा दिया है ...और जनता की जेब ढीली हो रही है तो उनकी मर्जी से ..किसी ने डाका तो नहीं डाला ,कोई चोरी तो नहीं की ...इंतज़ार कीजिये उस वक्त का जब रामराज्य आएगा और जब ऐसे बाबाओं की कोई जरुरत ही नहीं होगी ....आज शायद हमारे समाज को बाबाओं की ही जरुरत है ....भारत का विज्ञानी भी इतना समर्थ नहीं हो पाया कि महज दस लोगों को भी अपना अनुयायी बना सके ...बाबाओं पर निशाना साधने के बजाय उन कारणों पर गौर किया जाना चाहिए जिनके चलते इन बाबाओं की चान्दी ही चान्दी है.


यहाँ ज्यादातर तो गरीबों के ही बाबा हुए हैं ...केवल एक को छोड़कर -रजनीश! और रजनीश का अध्ययन बहुत व्यापक था और वे एक बड़े ही कुशल वक्ता थे ....बुद्धिवादी थे ,तार्किक प्रज्ञा से लबरेज मगर यहाँ की जनता जनार्दन ने उन्हें नकार दिया ...वे कहते थे .."आय एम अ रिच मैंन गुरु ...." उन्होंने धर्म के नाम पर अनेक अनीतियों ,दुराचारों का जमकर विरोध किया मगर खुद के इतने विरोधी भी बना लिए कि देशांतरण करना पड़ा -अमेरिका में भी उनके साथ षड्यंत्र हुआ -उन्हें असमय ही देह त्याग करना पडा ....रजनीश के ही उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाएगा कि यहाँ की जनता में ही कुछ ऐसा है जो उन्हें ज्ञानमार्गी बाबा पसंद नहीं है उनकी पहली पसंद ढोंगी बाबा है जो उन्हें इहलोक और परलोक का बेडा पार करने के सपने दिखाते हैं ....


मगर फिर बात वहीं आकर अटकती है -हमारे पास क्या कोई और भरोसा है ? विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने मनुष्य के जीवन को काफी आरामदायक बनाया है मगर विज्ञान की और आम जनों की इतनी अरुचि क्यों ? क्यों हमारा विज्ञान और प्राविधि लोगों में  भरोसा नहीं कायम कर पा  रहा है ? हमारे देश में बाबाओं की बजाय विज्ञान संचारकों की फ़ौज क्यों नहीं जगहं ले पा रही है ? विज्ञान प्रचारकों की क्या जरुरत नहीं है हमें ? 


बाबाओं के बहाने इन बिन्दुओं पर विचार जरुरी है !


30 टिप्‍पणियां:

  1. बाबा के चरणों में सादर अर्पित |
    बढ़िया मुद्दा |
    आभार |

    इ'स्टेटस सिम्बल बना, नवधनाढ्य का एक ।
    मस्त दुकानें चल रहीं, बाबा बैठ अनेक ।

    बाबा बैठ अनेक, दलाली करते आधे ।
    फँसते ग्राहक नए, सभी को बाबा साधे ।

    सपना मिडिल क्लास, देखता कैसे कैसे ।
    चाहत बने अमीर, लुटा के अपने पैसे ।।

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  2. एक 'ज्यादा गलत' है इसलिये उसके सामने दूसरा 'कम गलत' सही होगा यह मानना ठीक नहीं। गलत हमेशा गलत ही रहेगा चाहे कैसा भी हो।

    इस शख्स को टीवी पर दरबार लगाये देख कर चिढ़ होती है, गुस्सा आता है। खुलेआम लूट का साक्षात नमूना है इसका दरबार।

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  3. सपने सपने सपने ...यथार्थ से दूर ....चकाचौंध .....चमक के पीछे भागता इंसान .....हर चीज़ का छोटा मार्ग ....देने कि वृत्ति से दूर .....
    बस पैसा ही सब कुछ .....अपने आप पर विश्वास ही नहीं .....कर्म करना नहीं पर फल तो चाहिए ही .......कलयुग है ...इन बाबाओं की चांदी तो होगी ही ....

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  4. सही निरीक्षण है अरविन्द जी,
    यह युग ही तनावों और दुखों से बोझिल है। प्रतिस्पृदात्मक जीवन से विषाद के बादल गहरे और गहरे होते जा रहे है। दुखी लोगों के समक्ष सार्थक विकल्प उपलब्ध ही नहीं है।
    दुख ग्रस्त लोग पाखण्डी बाबाओं में निजात का आसरा ढ़ूंढ़ते है।
    दूसरी ओर तृष्णाएं इतनी बलवान हो चुकी है,कि उन्हें एन-केन पूरा करना लोगों का लक्ष्य बन जाता है। और यह सच्चाई है कि लोभिए हों वहाँ धूर्त कभी भूखे नहीं मरते।

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  5. बाबाओं पर निशाना साधने के बजाय उन कारणों पर गौर किया जाना चाहिए जिनके चलते इन बाबाओं की चान्दी ही चान्दी है.
    Ye baat bhee gaurtalab hai!

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  6. बाबा हों या राजनेता आमजन ही उन्हें पूज्य बनाते हैं...... दोषी जनता भी है....

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  7. पंडित जी!
    सबसे बड़ा सुख यह है कि मैंने इतना सुनने के बाद भी यह कार्यक्रम नहीं देखा.. सुना है सुबह आता है, जो मेरी किस्मत में नहीं.. या फिर रात में आता है जब हम नेट पर अपना ज्ञान बांट रहे होते हैं..
    मेरे मित्रों ने बताया कि यह कार्यक्रम वास्तव में टीवी चैनलों के नियमित कार्यक्रमों की श्रेणी में नहीं है.. इसे विज्ञापन की श्रेणी में प्रदर्शित किया जाता है.. चैनलों की कमाई और एक चक्र के तहत बाबा की कमाई का अंदाजा लगाया जा सकता है..
    बाबाओं के अतिरिक्त, बहुत सारे यन्त्र भी बिकते हैं, जो यन्त्र आज से सालों पहले सड़क किनारे मजमा लगाकर कोई मदारी बेचा करता था, आजकल टीवी के रिटायर्ड कलाकार बेच रहे हैं.. ये सारे कार्यक्रम विज्ञापन की श्रेणी में हैं..
    और पंडित जी, फेसबुक या ब्लॉग पर इनके विषय में विरोधादि लिखकर भी हम उनके विज्ञापन में सहायक बन रहे हैं!!

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  8. यही बाबा लोग देश की समस्‍या की जड़ हैं।

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  9. ऐसे में एक बाबा उन्हें उनके दुखों से निजात दिलाने का विश्वास देता है ,जीने का सहारा देता है ...हमारे पास फिलवक्त कोई विकल्प नहीं जो हम इन निराश लोगों के जीवन में आशा और विश्वास का संचार कर सकें ॥

    खुद पर विश्वास नहीं इसी लिए बाबा जैसे लोग पूजे जाते हैं ...

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  10. ये तो शुरु भी नहीं हुआ और खतम हो गया। जरा इसे एक बार फ़िर से लिखा जाये। :)

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  11. http://www.mediadarbar.com/5523/nirmal-doing-wrong-says-namdhari/

    इसमें देखिये कई लेख हैं निर्मल बाबा के बारे में।

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  12. मैं सोचता हूँ मैं भी हेल्थ मिनिस्टर बन जाऊं .
    बाबा गाथा पढ़कर मुन्ना भाई वाली फिल्म का यह डायलोग याद आता है .
    टी वी चैनल्स की टी आर पी और कमाई , भारतीय जनता की धर्म भीरुता और कर्मों को छोड़ कर चमत्कारों में विश्वास , भ्रष्ट लोगों की धूर्त सोच और अंधों में काना राजा वाले हालात --यह सब जिम्मेदार हैं इन बाबाओं के पनपने के .

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  13. Oh darling u wrote absolutely right..I agree with u...but who is this guy ...अनूप शुक्ल ??? why he is leaving links here and there?

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  14. सब ऐसे हैं यह सोच कर, हर किसी को जुर्म करने का लाईसेन्स मिल जाये यह तो ठीक नहीं.
    हाँ बाबाओं के खेल में जनता भी दोषी है.

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  15. ये निर्मल बाबा कौन है? ये मुन्नी बदनाम कौन है?

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  16. बाबाओं के नाम पर एक पूरा उद्योग फल-फूल रहा है,जिस पर चैनल वाले भी मलाई काट रहे हैं.
    ...जो बात तार्किक ढंग से उचित नहीं है,उसको विकल्पहीनता की स्थिति में भी उचित नहीं ठहराया जा सकता.नेता,अफसर जब मौज काट रहे हैं तो इस तरह की वारदातों को कौन देखेगा ?

    मेरे लिए ऐसे सभी बाबा त्याज्य हैं !

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  17. आइये मिलकर प्रार्थना करें ...

    इतनी शक्ति हमें देना दाता
    मन का विश्वास कमज़ोर हो ना
    नेक रस्ते पे मिल के चलें हम
    भूल कर भी कोई भूल हो ना

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  18. जहाँ जाइएगा इन्हें पाइयेगा ...
    शुभकामनायें भाई जी !

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  19. बाज़ार को आधार भी वही देते हैं, जो उस पर प्श्न उठाते हैं। दोनों ही समाज में साथ साथ रहते हैं।

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  20. kabhi kabhi channel surf karte huye dekh leta hoon....mujhe to ye samagam kamm aur comedy program zyada lagta hai!

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  21. भारत अध्यात्मिकों और अंधश्रद्धा का देश है !!
    आध्यात्मिकता कब अंधेपन में बदल जाती है ,पता नहीं चलता और इसका फायदा कुछ असाधु टाईप लोंग उठाते हैं !

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  22. निराशा और हताशा के वातावरण में ठगों की चान्दी होती है। ऐसे बाबाओं का उद्भव न्याय, सुरक्षा और प्रशासन में गिरावट के समानुपाती होता है। सफलता का शॉर्टकट ढूंढते गिद्ध ऐसे खर-पतवार के लिये खाद का काम करते हैं।

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  23. हताश निराश अनपढ़ बुद्धिहीन भारतीय समाज के प्रति विचार शक्ति के धनी बुद्धिमानों का भी कुछ फ़र्ज़ होता है, अगर वे उन्हें आगे बढ़कर सहारा दे दें तो भला इन ढोगियों की आवश्यकता ही क्या बनें?

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  24. मुझे ऐसे आस्था के प्रति दीवाने लोगों को करीब से देखने का मौका मिलता ही रहता है जो अपनी हर छोटी-बड़ी कामनाओं की पूर्ति का कारण अपने 'माने गए ऐसे बाबा' को ही मान लेते हैं . और हर अच्छी घटना का श्रेय उनकी कृपा को देते हैं . बुरी घटनाओं को नियति के हवाले कर देते हैं . ये भयभीत लोगों की वो जमात है जो अपनी वर्तमान स्थिति से थोड़ी देर के लिए ही भाग कर किसी और दुनिया में जी लेते हैं . तो भला बाबाओं की चांदी क्यों न हो..?

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  25. आप की बात सही है...बाबा के साथ बहुतों की दुकानदारी चल रही है!...विचारणीय लेख!.....आभार!

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  26. विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने मनुष्य के जीवन को काफी आरामदायक बनाया है मगर विज्ञान की और आम जनों की इतनी अरुचि क्यों ? क्यों हमारा विज्ञान और प्राविधि लोगों में भरोसा नहीं कायम कर पा रहा है ? हमारे देश में बाबाओं की बजाय विज्ञान संचारकों की फ़ौज क्यों नहीं जगहं ले पा रही है ? विज्ञान प्रचारकों की क्या जरुरत नहीं है हमें ?
    धर्म और धार्मिक अनुष्ठान ,प्रार्थना सभाएं ,मॉस ही दुनिया भर में लोक प्रिय हैं .अमरीका में राष्ट्रपति का अगला चुनाव एक चर्च वादी भी लड़ रहा है .वह भी ओबामा की ही पार्टी का है .वहां दस में से नौ लोग चर्च जातें हैं .विज्ञान की सीमाएं हैं .विज्ञान भी भारत जैसे देश में मंदिर मस्जिद गिरजों से ही बिकेगा वोट की तरह .शाही इमाम से अपील ज़ारी करवाओ -ये मंदिरों का देश है ये मस्जिदों की सरज़मीं ,मेरा वतन मेरा वतन मेरे वतन में क्या कमी .

    यहाँ तो गंगा पर भी साधुओं का कब्जा रहता है .ये ही लोग पहली डुबकी लगातें हैं कुम्भ पर .एक लात मार बाबा थे -उनसे लात खाके नेता गौवान्वित होते थे ,आखिर नेता भी आदमी है ,कमसे कम दिखना तो चाहता ही है आदमी सा .यथा 'तंत्र' तथा 'प्रजा' ..बाबाओं में कोई बुराई नहीं बा -शर्ते वह नेताओं की तरह मोबाइल काबुरा - स्तेमाल न करें .शर्तिया लड़का/संतान पैदा करवाने का ठेका न लें . देश में आश्था की कमी है इसलिए उसका व्यापार हो रहा है .बिक रही है आस्था और प्रवचन .लोगों को वह विज्ञान नहीं चाहिए जो गणेश जी की प्रतिमाओं को दूध पीने से रोके .उसे मानस की चौपाइयों में कबीर ग्रंथावली में मिलाना होगा .मिश्र तैयार करना होगा विज्ञान का एक टेलर मेड ख़ास भारतीयों के लिए .यहाँ घर गली में लोक चिकित्सक हैं .फोक -मेडिसन है ,लोक विज्ञानी हैं .मांजरा उतना आसान नहीं है .इन आश्थाओं के केंद्र का विश्थापन या स्थानापन्न .

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  27. ...भारत का विज्ञानी भी इतना समर्थ नहीं हो पाया कि महज दस लोगों को भी अपना अनुयायी बना सके ...बाबाओं पर निशाना साधने के बजाय उन कारणों पर गौर किया जाना चाहिए जिनके चलते इन बाबाओं की चान्दी ही चान्दी है.
    आज के विकास की अंधी दौड में हर कोई शामिल नहीं हो पा रहा .. जिन प्रश्‍नों के जबाब विज्ञान नहीं ढूंढ सका है .. उसका जबाब लेने अंधविश्‍वासी लोग बाबा के पास पहुंच जाते हैं .. जैसे ही लोगों को इसका जबाब मिल जाएगा .. अंधविश्‍वास बिल्‍कुल दूर हो जाएगा !!

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