बात यहाँ से शुरू हई यानि रावेन मिथ पर कौए पर संपन्न चर्चा से.... यह एक कनाडियन विदुषी और मेरी नयी नयी बनी फेसबुक मित्र का ब्लॉग है ...उन्हें मिथकों में जीवन्तता दिखती है और मुझे भी ....समान रुचियों वाले और समान धर्मा लोगों के बीच मेल जोल सहज ही हो जाता है ...इसी ब्लॉग पोस्ट पर काक मिथक की सर्व व्यापकता को लेकर विस्तृत जानकारी के साथ ही टिप्पणियों में कौए के बारे में चाणक्य की एक उक्ति का उल्लेख भी हुआ है ....चाणक्य ने कहा है कि मनुष्य को तमाम पशु पक्षियों से कुछ न कुछ सीखना चाहिए और कौए से यह सीखना चाहिए कि यौन संसर्ग सबकी नजरों से अलग थलग बिलकुल एकांत में करना चाहिए - ...और यह एक आश्चर्यजनक सत्य है कि कौए की प्रणय लीलाएं और संसर्ग आम नज़रों से ओझल रहती हैं ....यह एक विचित्र पक्षी व्यवहार है .
जंगली कौआ
खुद ग्राम्य परिवेश का होने के बावजूद मैंने आज तक कौए की इस निजी जिन्दगी का अवलोकन नहीं किया जबकि पक्षी व्यवहार में मेरी रूचि भी रही है ...कहीं इधर उधर घूमते हुए भी मेरी नज़रे बरबस ही आस पास के पेड़ों और पक्षी बसाहटों की ओर उठती रहती हैं -मुझे अक्सर लोगों की यह टोका टोकी भी सुनने को मिलती है कि मैं चलते समय नीचे क्यों नहीं देख कर चलता ..मगर यह विहगावलोकन जैसे मेरा सीखा हुआ सहज बोध सा है . गरज यह कि अपने परिवेश के पक्षी और पक्षी व्यवहार पर पैनी नज़र के बावजूद भी मैंने आज तक कौए के नितांत निजी व्यवहार को देखने में सफलता नहीं पायी है ...मगर बड़े बुजुर्गों की राय में यह मेरा सौभाग्य है ..
अब मेरा सौभाग्य क्यों? इसलिए कि लोक जीवन में 'काक -संभोग' देखना बहुत ही अशुभ माना गया है . अंतर्जाल पर भी कुछ चित्र और वीडियो हैं मगर मैथुन का दृश्य नहीं है ....एक तो कतई काक मैथुन नहीं लगता बल्कि काक युद्ध सरीखा है ... और मैं उन्हें यहाँ लगाकर मित्रों के लिए किसी भी प्रकार का अशुभ नहीं करना चाहता क्योकि लोक मान्यता यह भी है कि ऐसा देखना मृत्यु सूचक है ..एक बड़ा अपशकुन है,दुर्भाग्य है .
पक्षी विशेषज्ञों का कहना है कि कौए खुले में मैथुन नहीं करते ...और इसलिए उनका यह जैवीय कृत्य लोगों की आँखों से प्रायः ओझल रहता है ....मगर वे ऐसा क्यों करते हैं ..उन्हें किससे लज्जा आती है? और क्या उनका दिमाग लज्जा जैसी अनुभूतियों तक विकसित हो चुका है -ऐसे प्रश्न आज भी पक्षी विशेषज्ञों के लिए पहेली बने हुए हैं -यह खुद की मेरी जिज्ञासा रही है इसलिए इस रोचक पक्षी व्यवहार को आज आपसे साझा कर रहा हूँ ....कौए बाकी पक्षियों से बहुत बुद्धिमान हैं ..एक प्यासे कौए का घड़े से पानी निकालने के लिए उसमें कंकड़ डालते रहने की काक कथा केवल कपोल कल्पित ही नहीं लगती -क्योंकि काक व्यवहार पर नए अनुसन्धान कई ऐसे दृष्टान्तों को सामने रखते हैं जिसमें कौए ने औजारों का प्रयोग किया और उन्हें मानों यह युक्ति कि " बिना उल्टी उंगली घी नहीं निकलता " भी मालूम है और वे जरुरत के मुताबिक़ औजारों का आकार प्रकार चोंच और पैरों की मदद से बदल देते हैं -तारों को मोड़ कर ,गोला बनाकर खाने का समान खींच लेते हैं ....वे कुछ गिनतियाँ भी कर लेते हैं ....जैसे अमुक घर में कितने लोग रहते हैं ये वो जान जाते हैं और सभी के बाहर जाने के बाद वहां आ धमकते हैं..पक्के चोर भी होते हैं ..घर से चमकीली चीजें उठा उठा कर ये अपने घोसले को अलंकृत करते रहते हैं ...मुम्बई में एक बार एक कौए के घोसले से कई सुनहली चेन वाली घड़ियाँ बरामद हुयी थीं ....
घरेलू कौआ (दोनों चित्र विकीपीडिया )
लोक कथाओं के रानी के नौ लखे हार को कौए ने चुराया था -यह भी कथा बिल्कुल निर्मूल नहीं लगती ....मतलब यह कि काक महाशय बड़े शाणा किस्म के प्राणी हैं -अपने आस पास कोई काक दम्पति देखें तो भले ही आप उनसे बेखबर रह जायं वे आपको लेकर पूरा बाखबर और खबरदार रहते हैं ... :) और तो और पक्षी विज्ञानी बताते हैं कि इनका एकनिष्ठ दाम्पत्य होता है मतलब जीवन भर एक ही जोड़ा रहता है इनका .....अब इतनी खूबियों और कुशाग्रता के बाद हो न हो इन्हें खुले में यौनाचार करने में शर्मिन्दगी आती हो, कौन जाने? आश्चर्यजनक है अभी तक इस आश्चर्यजनक काक -व्यवहार की व्याख्या पर मैंने किसी भी पक्षी विज्ञानी को कुछ लिखते पढ़ते नहीं सुना है ...आखिर वे आड़ में मैथुन क्यों करते हैं?
कौए के व्यवहार के और भी बड़े रोचक पहलू हैं ..राजेश्वर प्रसाद नारायण सिंह ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'भारत के पक्षी " (प्रकाशन विभाग ) में लिखा है कि भारत में चित्रकूट और कोडैकैनाल (दक्षिण भारत ) में कौए नहीं पाए जाते ..मुझे यह बात पता नहीं थी ..नहीं तो चित्रकूट तो कई बार जाना हुआ है ..ध्यान से देखते !....अब चित्रकूट में वे क्यों नहीं मिलते इसकी एक मिथक -कथा है . वनवास के समय सीता की सुन्दरता से व्यामोहित इंद्र के बेटे जयंत ने कौए का रूप धर उनके वक्ष स्थल पर चोंच मारी थी. कुपित राम ने उसे शापित किया था -लोग आज भी कहते हैं इसी कारण कौए चित्रकूट में नहीं मिलते --मगर इसका वैज्ञानिक कारण क्या हो सकता है समझ में नहीं आता क्योंकि चित्रकूट तो एक वनाच्छादित क्षेत्र रहा है ....वहां से भला कौए क्यों पलायित हो गए?
कौए की कोई छः प्रजातियाँ भारत में मिलती हैं ..सालिम अली ने हैन्डबुक में दो का ही जिक्र किया है -एक जंगली कौआ(कोर्वस मैक्रोरिन्कोस ) तथा दूसरा घरेलू कौआ( कोर्वस स्प्लेन्ड़ेंस)...पहला तो पूरा काला कलूटा किस्म वाला है दूसरा गले में एक भूरी पट्टी लिए होता है -शायद इसी को देखकर तुलसीदास ने काग भुशुंडि नामके अमर मानस पात्र की संकल्पना की हो ... जिसके गले में कंठी माला सी पडी है ....यह काक प्रसंग अनंत है -फिर कभी अगले अध्याय की चर्चा की जायेगी ....
पुनश्च:
गिरिजेश जी ने एक काग साहचर्य का अनुपम उदाहरण फोटू यहाँ दिया है ....
पुनश्च:
गिरिजेश जी ने एक काग साहचर्य का अनुपम उदाहरण फोटू यहाँ दिया है ....