पैतृक आवास मेघदूत जो वाराणसी लखनऊ मार्ग एन एच 56 (जौनपुर) पर है.
कल जौनपुर स्थित अपने पैतृक आवास से दीवाली मना कर लौटा -मगर यहाँ तो बिजली गायब ,फोन का डायल टोन गायब ,ब्राडबैंड कनेक्शन नदारद ..लगा कहीं सुदूर अतीत में आ पहुंचे हों ...बिना अंतर्जाल के जुड़ाव से यह दुनियाँ सहसा कितना बदरंग हो जाती है इसका अनुमान आपको होगा ही ...जैसे तैसे रात कटी ..आज का पहला काम बी एस एन यल आफिस में शिकायत और फिर कहीं से आप सब से जुड़ने की जुगाड़ .... .अब इसमें सफल हुआ हूँ...
बाल रामलीला टीम
..सोचा था विस्तार से ग्राम्य दीवाली की चर्चा करूँगा मगर अब यह संभव नहीं दीखता ...हाँ कुछ चित्रों और उनके विवरणों को जरुर साझा करना चाहता हूँ -हमारा कोई भी त्यौहार सच पूछिए तो बच्चों का ही होता है ..उनका उत्साह देखते बनता है ....घर पहुँचते ही बिटिया प्रियेषा और बेटे कौस्तुभ तथा अनुज मनोज के बेटे आयुष्मान और बिटिया स्वस्तिका ने गाँव भर के बच्चों की दिवाली की टीमें तैयार की -कोई कंदीले बनाने में जुटा तो कोई दीयों और मोमबत्तियों को संभालने में तो कोई आतिशबाजी संजोने में .....
सीता(आस्था ) श्रृंगार में जुटी प्रियेषा
लेत उठावत खैंचत गाढे काहूँ न लखा रहे सब ठाढ़े ...धनुषभंग बाल राम (आयुष्मान ) द्वारा
मैंने एक नयी शुरुआत कराई .बाल रामलीला की ....और बाललीला टीम का आडिशन,पात्र चयन ,संवाद अदायगी आदि का काम दीवाली के दिन ही रिकार्ड ४ घंटे में पूरा किया गया ..मेरी मदद में आयीं गाँव की ही होनहार छात्रा कीर्ति मिश्र ..उन्होंने निर्देशन का काम संभाला ..शाम को बाल रामलीला की एक नयी परम्परा ही शुरू हो गयी ...दृश्य था सीता स्वयम्बर का ..बच्चों ने ऐसी अभिनय प्रतिभा दिखाई कि लोग बाग़ बाग़ हो उठे और वाह वाह कर उठे ....बच्चों में अपनी संस्कृति और संस्कारों के प्रति प्रेम -झुकाव आज के इस विघटन के युग में बनाए रखना भी एक बड़ी जिम्मेदारी है ....पश्चिम की आंधी में हमारा बहुत कुछ बेहद अपना भी दूर होता जा रहा है ....अंगरेजी में कहा ही जाता है "कैच देम यंग " मतलब जिन संस्कारों की नीवें गहरी करनी हो उसके लिए बच्चों से ही शुरुआत होनी चाहिए ..अभी तो यह हमारी यह विनम्र शुरुआत ही है आगे इसके विस्तृत स्वरुप की संभावनाएं हैं .....
मनोज ने विधिवत संपन्न कराई लक्ष्मी पूजा
आतिशबाजी हमारी एक सुन्दर सी प्राचीन कला है जिसमें विज्ञान के साथ ही कलात्मकता का अद्भुत मिश्रण है..हम तो आतिशबाजी के बड़े वाले पंखे(फैन) हैं ..सो एक आतिशबाज को ही पिछले साल से पड़ोस में बसा लिया गया है और उसे इस अवसर पर आर्डर देकर आतिशबाजी का प्रदर्शन करने को बुलाते हैं ..हम आतिशबाजी पर लिखने लगेगें तो यह पोस्ट कम पड़ जायेगी....बस इतना ही कि बड़े आईटमों से बच्चों को दूर रखते हैं और तेज आवाज के पटाखे हम नहीं छुडाते ....बाकी तो स्वर्गबान ,चरखी ,राकेट ,अनार आदि का तो प्रदर्शन होता ही है -हमने इस बार भी आतिशबाजी का खूब आनन्द लिया ..बच्चों ने खूब तालियाँ ठोंकी और गला फाड़ कर चिल्लाए ...बड़ा आनंद आया ....
दीवाली पर दुल्हन की तरह सजा हमारा पैतृक आवास मेघदूत
दीवाली का एक मुख्य कार्यक्रम है देवी लक्ष्मी की पूजा से जुड़ा अनुष्ठान जिसकी जिम्मेदारी मनोज ने निभाई ....और उन्होंने सभी को प्रसाद का वितरण किया ..हम लोगों के यहाँ एक मान्यता यह भी है कि हर हुनर और क्षेत्र के लोगों को दीवाली के दिन अपना काम भले ही अंशतः लेकिन करना जरुर पड़ता है ..जिससे साल भर उसमें कोई विघ्न बाधा न उत्पन्न हो ..बच्चों को किताब खोलना ही पड़ता है .अकादमियां का आदमी कुछ जरुर पढ़ लिख लेता है ... हम सभी ने कुछ न कुछ बतौर शुभ करने को अपना अपना इंगित काम किया ....इसी मान्यता के अंतर्गत रात में चोर लोग कही हाथ भी साफ़ करते हैं -इसलिए दीवाली की रात इधर चोरियां भी बहुत होती हैं .....हमने तो कुछ सामान जानबूझ कर मैदान में छोड़ भी दिया था मगर दुःख यह हुआ कि किसी ने उन्हें छुआ तक नहीं ..जाहिर है लोग दीवाली जगाने में भी अब लापरवाही बरत रहे हैं :)
आतिशबाजी आसमानी
घर को सजाने में भी बाल टीम जुटी रही ...और बाल रामलीला के कलाकारों के मेकअप को बेहद कम समय के बावजूद प्रियेषा ने निपटाया......मेरे शंखनाद से बाल रामलीला शुरू हुई..मैंने मुख्य दृश्यों के समय रामचरित मानस के सुसंगत अंशों का सस्वर पाठ भी किया ...काफी ग्राम्य जन जुट आये थे इस नए अचरज को देखने सुनने ...अगले वर्ष से इस कार्यक्रम को व्यवस्थित रूप देना है ....प्रियेषा को दिल्ली जल्दी लौटना था इसलिए हम दीवाली के दूसरे दिन जिसे यहाँ जरता परता कहा जाता है और जिसमें कहीं आना जाना निषेध भी है ..यहाँ लौट आये हैं ....और झेल भी रहे हैं ..
और यह रही इस बार की रंगोली जो प्रियेषा और स्वस्तिका ने मिल बैठ बनाई