शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

एक चैट चयनिका !

इन दिनों लगता है मैं राइटर्स ब्लाक जैसी स्थिति से गुजर रहा हूँ और यह   इसी ब्लॉग जीवन की देन है जो   जुमा जुमा कुल तीन साल की ही तो है -मगर इसी में कई वे गहन अनुभव हो गए जो बीते जीवन में हुए नहीं ..प्रेम, घृणा, प्रतिशोध, कृतज्ञता के अनेक शेड्स दिख गए इस अल्पावधि में ...रह रह कर जब भी उनकी यादें तारी  होती हैं तो लगता है जैसे लिखना विखना सब कुछ बेमानी सा है ...बहरहाल आज कुछ शरारत सी सूझ रही है ...

आज दिन में कुछ विभूतियों से हुए हुए चैट का तनिक नाट्य -रूपांतरित अंश आपसे साझा करना चाहता हूँ ....क्या आप भी ऐसे ही चैट करते हैं या आपके चैट विषय अलग होते हैं (कृपया ध्यान दें अंतर्जाल चूंकि वैश्चिक भौगोलिकता का प्रतिनिधित्व करता है इसलिए इसे केवल भारतीय सांस्कृतिक सोच और संकोच के दायरे में न देखें ..इसमें कुछ अमेरिका वासियों    के भी विचार हैं)..
सबसे पहले मेरी एक परिचिता  ने चैट पर पूछा ..
"brahmand   क्या है ? " 
गलती से मैं समझ बैठा ब्रहमानंद ....
जब मैंने उन्हें इस विषय पर कुछ जानकारी देनी चाही तो वे खीझ गयीं और बाई कहकर चल दीं ....बाद में मुझे अहसास हुआ कि वे ब्रह्माण्ड के बारे में पूछ रही थीं.. मैं मन  मसोस कर ,हाथ मल मल कर रह गया ...लगता है वे नाराज हो गयीं ....लेकिन मुझे लगता है यह ठीक ही हुआ नहीं तो अगर मैं अपनी अल्प समझ से ब्रह्माण्ड शब्द की व्युत्पत्ति समझाता तो शायद वे और नाराज हो गयी होतीं ...

फिर एक मित्र आये ...उन्होंने पूछा ,मतलब  चैट किया कि क्या मुझे अपने सबसे पहले 'किस'  की याद है ..मैंने कहा हाँ मगर वह तो सोते समय लिया गया था ..क्योंकि मैंने बचपन में ही यह पढ़ लिया था कि " स्टोलेन किसेज आर आलवेज स्वीटेस्ट .'' ....और यह लल्लू मार्का सवाल काहें पूंछ रहे हैं सीधे असली बात ही पूछ लीजिये न वह भी बता दूंगा ..जब आप इसी पर उतारू हैं ...वे भी नाराज हो गए और चैट आफ कर गए ...
अब आईये तीसरे चैट पर ,
" डॉ. मिश्रा क्या आपको कभी मिस्टीक अनुभव (रहस्यात्मक अनुभूतियाँ ) हुई हैं .." 
" हाँ कई बार बल्कि सहस्र बार ...अगर आप चरमानंद को मिस्टीक माने तो .." (तब तक मुझे ब्रह्मांनंद की भी सुधि हो आई ..यह दिमाग भी क्या क्या नेटवर्किंग करता रहता है....बहरहाल ..)
" लेकिन वह तो बहुत अल्पावधि का होता है .." 
"आप तो जानते हैं औरतों में यह एक ही शुरुआत में कई बार और लम्बी अवधि का भी हो सकता है -यू नो मल्टिपल टाईप वन ..." 
" हाँ हाँ ..तो ?" 
" मस्तिष्क का वह क्षेत्र जो ऐसी अनुभूतियाँ करता है ......स्त्री पुरुष या योगियों में एक ही है ..." 
" ईंटेरेस्टिंग ..... " 
"कुछ मादक द्रव्यों या मानसिक कसरतों से इस अवधि को पुरुषों में भी प्रोलांग किया जा सकता है ...."
" ग्रेट .." 
" शायद कुछ योगी मस्तिष्क के इसी हिस्से को उद्दीपित करने का कोई फार्मूला जानते हों और शाश्वत आनंद की दशा में चले जाते हों ...और अपने अनुभवों को तरह तरह के शब्द दे देते हों ....अनिर्वचनीय ....ध्यानातीत ....सत चित आनंद ...." 
" यह तो बहुत जोरदार बात है ...कुछ और बताईये न इस मुद्दे पर ...." 
" यह प्राच्य ज्ञान ऐसे ही नहीं मिलता सैम बाबू ..मैं चला .... " 
"प्लीज प्लीज डॉ मिश्रा ....." 
और मैंने चैट आफ कर दिया ! 
ब्रह्माण्ड /ब्रह्मानंद से शुरू हुई बात वही दिन भर अटकी रही ...

यह रही आज की चैट चयनिका!पसंद आई या आप भी सटक लिए ....




 








17 टिप्‍पणियां:

  1. धीरे से सटक ही रहे थे कि ये चैट चयनिका अच्छी लगी, प्लीज बोलती रही और डॉक्टर मिश्र जी लॉगऑफ़ हो लिये। :)

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  2. आज तो --सुबह से लेकर --शाम तक --शाम से सुबह तक --यही सिलसिला चलता नज़र आ रहा है । :)

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  3. अच्छा लग रहा है ये देख कर कि चयनिका में ब्रम्हांड और ब्रम्हानंद में रूचि लेने वाले लोग शामिल किये गये हैं ! मुश्किल तो तब होती जब इसी बात को दीगर शक्ल में पूछने वाले भी जोड़ दिए जाते जैसे मिश्र जी काम क्या है ?
    मसला भौगोलिक भिन्नता का है कह कर टाला नहीं जा सकता यहां भौगोलिक भिन्नता और शाब्दिक भिन्नता ऊपरी सतह पर हैं जबकि अंदर सब जग एक :)

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  4. चैट चयनिका से पोस्ट भी लिखी जा सकती है ...
    इस आईडिया पर विचार करना होगा ...!

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  5. हमने भी एक बार चटिआया था किसी से: :) http://ojha-uwaach.blogspot.com/2009/01/blog-post_21.html

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  6. चैट तो बहुत अच्छी थी पर विषयों के निष्कर्ष पर पोस्टें ढेली जा सकती हैं ।

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  7. @no conclusions as yet Pravin ji ,just inviting loose ends! yes you are right ,posts could be written on the mentioned topic/topics .

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  8. अद्भुत रही यह चैट-चयिनिका.................. कई बार ऐसी स्थिति में पड़े है......... बाकि किसी को हिंदी में ही पड़ना हो तो कम्पोज मेल में जा जा कर कट पेस्ट करना पड़ता है और उस जल्दबाजी में कई बार अर्थ का सत्यानाश हो जाता है......................... किसी बात को टालने के लिए किसी को कहा "अमां छो....... अब आगे बताने की हिम्मत नहीं है की रोमन में टाईप करके हिंदी में कन्वर्ट किया तो बिना देखें कट-पेस्ट करने पर क्या शब्द बना और सामने वालो सामने मेरी क्या हालत हुयी......................

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  9. कितने लोग "ब्रह्मानंद" या परमहंसत्व को प्राप्त हैं अरविन्द भाई ? मंच पर बैठे लोगों का नजरिया कुछ भी हो पर "हमें" सुनाई क्या पड़ रहा है और हमने क्या समझा है , उसका क्या करोगे !

    उन्मुक्त आनंद को महसूस करने की समझ, सीधे सीधे व्यक्तित्व से जुडी होती है मगर यहाँ तो द्विअर्थी ही समझने का खतरा अधिक है !
    हर शिष्य ने यह अर्थ सीखा हुआ है मगर वह गुरु पर प्रश्न चिन्ह अवश्य लगा देगा !
    सो ये भाई जरा देख के चलो ....

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  10. "इसे केवल भारतीय सांस्कृतिक सोच और संकोच के दायरे में न देखें .."

    कितने लोग "ब्रह्मानंद" या परमहंसत्व को प्राप्त हैं अरविन्द भाई ? मंच पर बैठे लोगों का नजरिया कुछ भी हो पर "हमें" सुनाई क्या पड़ रहा है और हमने क्या समझा है , उसका क्या करोगे !

    उन्मुक्त आनंद को महसूस करने की समझ, सीधे सीधे व्यक्तित्व से जुडी होती है मगर यहाँ तो द्विअर्थी ही समझने का खतरा अधिक है !

    हर शिष्य ने यह अर्थ सीखा हुआ है मगर वह गुरु पर प्रश्न चिन्ह अवश्य लगा देगा !

    सो ये भाई जरा देख के चलो ....

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  11. "इसे केवल भारतीय सांस्कृतिक सोच और संकोच के दायरे में न देखें .."

    कितने लोग "ब्रह्मानंद" या परमहंसत्व को प्राप्त हैं अरविन्द भाई ? मंच पर बैठे लोगों का नजरिया कुछ भी हो पर "हमें" सुनाई क्या पड़ रहा है और हमने क्या समझा है , उसका क्या करोगे !

    उन्मुक्त आनंद को महसूस करने की समझ, सीधे सीधे व्यक्तित्व से जुडी होती है मगर यहाँ तो द्विअर्थी ही समझने का खतरा अधिक है !

    हर शिष्य ने यह अर्थ सीखा हुआ है मगर वह गुरु पर प्रश्न चिन्ह अवश्य लगा देगा !

    सो ये भाई जरा देख के चलो ....

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  12. आनन्द ही इन्सान की परम अभिलाषा रही है..बात चाहे ब्रह्मानन्द की हो या विषयानन्द की, दोनों के मूल में तो आनन्द ही है :)

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