आईये आपको सोलह नायिकाओं में से पहली नायिका से मिलवायें ! जरा इस विवरण/दृष्टांत को पढ़ लें -
प्रिय से सहसा यह सुनकर कि वे विदेश जा रहे हैं प्रियतमा सिहर उठी ,चेहरा म्लान हो उठा .उसकी यह स्थिति देख प्रिय ने ढाढस बंधाया , उसे बाहों में भर बोल उठा -
" प्रिये धीरज रखो ,मैं जल्दी ही लौट आऊंगा ''
"प्रिये कहते हुए आपको तनिक भी लज्जा नहीं आती ,मुझे जब मधु ऋतु में यूं छोड़ के जा रहे हैं तो मुझे प्रिये नहीं दुष्टा या वन्या कहिये !"
क्षोभ से भरी प्रियतमा बोल उठी ! .
उपर्युक्त नायिका प्रवत्स्यत्वल्लभा है ! मतलब प्रिय के आसन्न विदेश गमन के समाचार से दुखी नायिका !इस श्रेणी की नायिका में अनूढा ,स्वकीया और परकीया सभी सम्मिलित हैं!(पारिभाषिक शब्दावली याद हैं न ?) कठिन नामकरण है ना ? पर क्या करें जो है सो है -अब अगली नायिका की आतुरता से प्रतीक्षा करें !
चित्र सौजन्य :
"मोहक और यौवन प्राप्त रमणी ही नायिका कहलाती है "
जवाब देंहटाएंडॉक्टर साहब, इस परिभाषा में तो खलनायिका भी आती है जो नायक का ध्यान नायिका से हटाने के लिए अपने मोहक और यौवन शरीर का उपयोग करती है:)
achcha laga.......... ab aage ka intezaar hai..........
जवाब देंहटाएंबहुत खूब! फिर छक्का जड़ा है।
जवाब देंहटाएंप्रतीक्षा है !!
जवाब देंहटाएंमरुस्थल में पानी की दो (सॉरी एक) बूंद डालना अच्छी बात नहीं है. थोडी लम्बी-लम्बी पोस्ट की जाय इस विषय पर :)
जवाब देंहटाएंबाप रे।
जवाब देंहटाएंअभी भी शुद्ध उच्चारण करने का प्रयास कर रहा हूँ। अगला थोड़ा हल्का रखियेगा। पहले स्नातक तो हो लें फिर पी.एच.डी. करेंगे..
तभी तो... हम अपनी प्रियतमा को साथ ले आये.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा.
धन्यवाद
आचार्य भरतमुनि ने नायिकाओं के तीन प्रकृतियाँ तथा आठ प्रभेद बताये हैं तथा दशरूपककार ने बारह भेद बताये हैं. उनमें से प्रस्तुत नायिका से मिलती-जुलती कोई नायिका नहीं है. मेरे विचार से नायिका-भेद का उद्गम भले ही आचार्य भरत का नाट्यशास्त्र हो परन्तु हिन्दी साहित्य (अवधी,ब्रज आदि सहित) इस विषय में अधिक समृद्ध है. मैंने संस्कृत में नायिका-भेद पढ़ा है. आपकी लेखमाला के माध्यम से हिन्दी साहित्य के नायिका-भेद के विषय में पता चलेगा. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंअच्छा ज्ञान दे रहे हैं
जवाब देंहटाएंपीढी कृतार्थ हो जायेगी
ग्यानारविन्दम् नमो नमः ...
यह अनुमान न था कि नायिका भी सिर के ऊपर से गुजरजाने वाली चीज होती है! :)
जवाब देंहटाएं@मुक्ति जी,आप सही कह रही हैं पुराणों(विशेषतः अग्निपुराण) शास्त्रों में नायिका के इतने भेद प्रभेद दिए गएँ हैं की दिमाग चकराने लगता है -एक कारण यह भी है इस श्रृंखला के वजूद में आने के . क्या आप नायिकाओं के कठिन संस्कृत नामो का कोई सरल हिन्दी रुप्यान्तरण कर सकती /सुझा सकती हैं ? विधा समृद्ध होगी !
जवाब देंहटाएं@सी एम् जी ,
जवाब देंहटाएंएक बात गौर करियेगा नायिका का प्रेम सदैव निह्छल ,सात्विक होता है
मगर खलनायिका का ?
प्रवत्स्यत्वल्लभा....रोचक जानकारी प्राप्त हुई ...!!
जवाब देंहटाएंनायिका भेद !!
जवाब देंहटाएंये विस्तृत चर्चा रहेगी
- लावण्या
मिल लिये भाई..क्या सटीक दिया है कि ज्ञान जी ज्ञान प्राप्त कर गये...हा हा!!
जवाब देंहटाएंरोचक विषय !!
जवाब देंहटाएंbahut hi adbhut jankari mili.......shukriya.
जवाब देंहटाएंहम भी जानकारी प्रात कर रहे हैं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
नायिका भेद का पहला चरण रोचक ही नहीं पाठक बटोरू भी है। इस श्रृंखला की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंवैसे ज्ञानदत्त जी कमेंट मजेदार है।
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परा मनोविज्ञान- यानि की अलौकिक बातों का विज्ञान।
ओबामा जी, 75 अरब डालर नहीं, सिर्फ 70 डॉलर में लादेन से निपटिए।
अब आप दे डालिए पहले सारे भेदों की जानकारी, फिर हम जुटेंगे. आजकल कई नए भेद पैदा हो गए हैं. उनकी जानकारी केवल हमारे और श्री शिवकुमार मिश्र जैसे निठल्लुओं को है. आप वाली जानकारी पूरी हो जाएगी, तब हम अपनी वाली शुरू करेंगे.
जवाब देंहटाएं@ ज्ञानदत्त भैया : भ्राताश्री नायिका तो सिर के ऊपर से गुज़र जाने वाली चीज़ होती ही है, इतना भी नहीं जानते आप. बल्कि आजकल की नायिका तो सिर के ऊपर नाचने वाली चीज़ होती है. जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि आपके बाल ऐसे ही सफ़ेद हो गए. हमारे पूरे सफ़ेद नहीं हुए, तब भी हम जान गए.
बहुत रोचक श्रृखला रही यह ...बहुत कुछ जाना और समझा ..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंकुछ इसी प्रकार की नायिका को इंगित करता एक टर्म “प्रोषितपतिका” भी है । साकेत में उर्मिला के संदर्भ में प्रयोग हुआ है ।
जवाब देंहटाएं“प्रोषितपतिकायें हो जिनती भी सखि, उन्हें निमन्त्रण दे आ ,”
समदुःखिनी मिले तो दुख बटे जा , प्रणयपुरस्सर ले आ !
@आर्जव ,आपका विवरण सही है और वह अब हमारी अगली नायिका है !
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंप्रवत्स्यत्वल्लभा !!!
बहुत ही रोचक जानकारी है....और अब हम सोच रहे हैं कि इस वक्त हमारी श्रेणी क्या हैं :-):-)
@रंजू जी ,अभी तो श्रृंखला शुरू ही हुयी है !
जवाब देंहटाएंकैसे कैसे 25 लोग आ धमके? जरा टिप्पणी दाताओं के समूह की समीक्षा करें - सांख्यिकी और ब्लॉगरी दृष्टि से।
जवाब देंहटाएं... हम तो झूठे लंठई भेस बनाय बैठे हैं।
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आर्जव, कार्तिकेय मिश्र और अभिषेक ओझा पर विशेष ध्यान दिया जाय। उनकी अभिरुचियों का ख्याल रखा जाय। ढेर सारे इनपुट तो यही लोग दे देंगे। तीनों पक्के शैतान हैं, तैरते हिमखंड।
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ये बताइए कि परबतिया के माई जैसियों के लिए कुछ मिला कि नहीं ? रमरतिया वगैरह भी कवर होनी चाहिए।
फिर नायक भेद में बाउ, सुद्धन वगैरह . . .अहा ग्राम्य जीवन !
सम्बंधित विषय के पिछले तीनो लेख पढ़ लिए थे--यह भी पढ़ा..रोचक श्रृंखला है.
जवाब देंहटाएं-नायिका के भेद तो बता रहे हैं...नायक के भेद भी बताएं..
-और यहाँ नायिका के 'इस स्वभाव से उसका भेद निश्चित कर रहे हैं....जबकि -स्वभाव तो समय और नायक के स्वभाव के अनुसार नायिका को बदलना भी पड़ सकता है..फिर? kya उसकी श्रेणी बदल जायेगी?
@@अल्पना जी ,
जवाब देंहटाएंमैं पहले ही कह चुका हूँ की नायक भेद भी कवर करूंगा
और हाँ ,यह थोडा मुश्किल सवाल है मेरे लिए क्योंकि मैं
श्रृगार शास्त्र का कोई विशिष्ट ज्ञाता नहीं हूँ -मगर हाँ एक निजी राय है की
इंगित स्थितियों में नायिका का वर्गीकरण भी बदल ही जाएगा !
प्रश्न jhakjhor देने वाला रहा -शुक्रिया !
आपने नायिका भेद मे रमणी का उल्लेख कर परेशानी मे डाल दिया है रमणी तो नायक की निगाहो के अनुसार तय होगी कि रमणीयतापूर्ण युवती किसे माने जिसकी तरफ़ गिरिजेश जी ने इशारा कर दिया है ये हक़ीक़त तो निगाहो से बया होती है वैसे गिरिजेश की चिन्ता समाजवादियो से मिलती जुलती है जो परकटी को असली नायिका मानने से इन्कार करते है भले ही इन्ही रमणियो के सपने देखते हो
जवाब देंहटाएंप्रवत्स्यत्वल्लभा
जवाब देंहटाएं“नायक (पति/प्रेमी) के आसन्न प्रवास से जिसका मन भारी हो।”
इस टाइप का अन्वय करके विद्वान लोग ऐसे गरिष्ट शब्दों को सुगम बना दें तो ‘नेवचा जवान’ भी प्रमुदित हो लें। मेरा अन्वय शुद्ध हो ऐसा गुमान मुझे नहीं है। बस मुझे जैसा लगा उसे उदाहरण के रूप में रख दिया।
हमें आनन्द आ रहा है। धन्यवाद।
नायिकाओं के इतने भेद बताने के बाद मैं कल्पना कर रहा हूं कि आपके आसपास का नज़ारा क्या होगा। आपकी वेशभूषा और व्यवहार पर इसका क्या असर दिखेगा।
जवाब देंहटाएंएक पोस्ट बनती है।
कुछ-कुछ अमरेन्द्र जी और वडनेरकर जी जैसा कहना चाहता हूँ, समझ लेवें महामहिम....
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