सोमवार, 31 दिसंबर 2012

जिस वाहन में थे वे नरपिशाच वही उनकी चलती फिरती टेरिटरी थी!


किसी एक की पीड़ा जब पूरी कायनात की पीड़ा बन जाय ,करोड़ों आँखें नम हो उठें ,लगे कि कोई अपना ही बीच से उठ चला गया हो,जन जन के मन संवेदित हो उठे हों और ह्रदय क्लांत हो तो कैसे कह सकते हैं इंसानियत मर गयी -यही संवेदनशीलता ही तो मनुष्य को पशुओं से पृथक करती है -आज मानवीय संवेदना के उमड़े घहराते समुद्र ने हमें एक अदृश्य बंधन से जोड़ दिया है -जब तक यह मानवीय संवेदना जीवित है मनुष्य को कोई खतरा नहीं है -चंद नराधम कैसे इंसानियत को दागदार कर सकते हैं?

नराधमों के वहशियाना कृत्य के बाद हमने एक इतिहास को आँखों के सामने से गुजरते देखा है। बर्बरता के विरुद्ध जन सैलाब सड़कों पर उतरा -यह दुष्कृत्य मनुष्य की उसी पशुवीय हिंस्र वृत्ति की परिचायक है जो हमारे पशु -अतीत को बयान करती है और रेखांकित करती है कि बिना उचित संस्कार और नैतिकता के आग्रह के कैसे मनुष्य के भेष में आज भी कुछ आदमखोर हमारे साथ ही रह रहे हैं। इसलिए संस्कारयुक्त शिक्षा, आरम्भिक सही सीख,उचित अनुचित का बोध हर बच्चे को दिया जाना हमारी और राज्य की साझा जिम्मेदारी है . हमारे इसी समाज में कितने नर पिशाच रहते आये हैं, इसके हेतु को संस्कृत का कवि पहले ही स्पष्ट कर गया है -

येषाम न विद्या न तपो न दानम ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः
......ते मृत्युलोके भुविभारभूता मनुष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति! 
(जो विद्या, तप , दान ज्ञान शील और गुण धर्म से रहित है वह इस मृत्युलोक में धरती पर भार स्वरुप है और मनुष्य के रूप में पशु ही है!)
ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती ही गयी है -ये संस्कारित लोग नहीं है -हिंस्र पशु है बस मनुष्य होने का धोखा हैं -इनसे सावधान रहने की जरुरत है!और यही आत्मरक्षा (सेफ्टी फर्स्ट) के प्रति सतर्क रहने की जरुरत है ,घोर जंगल में बिना होशियारी निर्द्वन्द्व विचरण कोई बुद्धिमानी नहीं है -सहज विश्वास ही विश्वासघात के मूल में है . आज बड़े बड़े शहर भी जंगल सरीखे हैं क्योंकि किसी का किसी से कोई वास्ता नहीं है -सब अजनबी हैं-इम्पर्सनल! अजनबीपन पशुओं में कबीलाई मानसिकता ,आक्रामकता को पोषित करता है . टेरिटोरियलिज्म को बढ़ावा देता है . हिंस्र पशुओं का मनुष्य रूपी झुण्ड बेख़ौफ़ बड़े शहरों में विचरण कर रहा है -हमारे बच्चे इस बात को क्यों नहीं समझ पा रहे हैं? घृणित घटना में वे नरभक्षी जिस वाहन में थे वही उनकी चलती फिरती  टेरिटरी थी -नहीं लिफ्ट लेना था उन बच्चों को उसमें! माना कि सहज विश्वास और भरोसा मानवीय गुण हैं मगर हमारे पास एक तर्कशील दिमाग भी तो है . बहरहाल आगे हमारे बच्चे सीख लें। 
एक बात और -इस घटना से उमड़े जन आक्रोश में क्या पुरुष क्या नारी सभी समवेत रूप से सम्मिलित थे -जे एन यू के बच्चों ने  इस बड़े जन आन्दोलन की अगुयायी की -उन्हें सलाम! युवाओं के उस भीड़ के आर्तनाद में लड़कियों के साथ लड़कों का भी स्वर बुलंद था। लडके भी उतने ही मर्माहत थे। इसे नारी पुरुष के चश्में से देखा जाना मनुष्यता का अपमान है . दिवंगत हुयी दामिनी एक लडकी ही नहीं बेटी, बहन ,मित्र थी हम सभी की -घोर कष्ट सभी को है . ये घटनाएँ हमारी समूची संवेदना को झकझोरती हैं . मनुष्य की संवेदना को नारी पुरुष के खांचे में बाटने का मतलब है हम अपने अभियान को कमजोर कर रहे हैं। इन दोषियों को तो कैपिटल दंड मिलेगा ही -आगे ऐसे क़ानून बनने का रास्ता भी दिख रहा है जिससे ऐसी भर्त्सनीय प्रवृत्तियों पर प्रभावी अंकुश लग सके . अपराध की गहनता को देखते हुए उम्र कैद या फांसी का प्रावधान ही समीचीन लगता है-रंगा बिल्ला काण्ड में ऐसा ही हुआ था . रासायनिक बंध्याकरण आदि के प्रस्ताव हास्यास्पद हैं-इनकी सफलता संदिग्ध है -आपराधिक प्रवृत्तियाँ कई बार जीनिक होती हैं -अतः अंग विशेष के निर्मूलन से कोई फर्क नहीं पड़ेगा बल्कि रिडाईरेक्टड हिंसकता और भी प्रबल हो सकती है -ऐसे अपराधिक वृत्ति वाले समाज में विचरण न करें तभी बेहतर!
भारत में उमड़े जन सैलाब ने समूचे विश्व में साबित कर दिया है कि मानवीयता जिन्दा है और मनुष्य की कौम सर्वोपरि है -आज साझा सरोकार की हमारी यही खासियत हमें आश्वस्त कर रही है और नए वर्ष में नए आशा और विश्वास के साथ हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है -युवाओं निराश न हो -नया वर्ष आप सभी के स्वागत में बाहें पसारे आ पहुंचा है -जीवन भले ही हार गया हो हमारी जिजीविषा बरकरार है -उत्तिष्ठ, जागृत, प्राप्य वरान्निबोधत।' 'उठो, जागो और अपना लक्ष्य प्राप्त करो।' 
स्वाभिमान और शौर्य की प्रतिमूर्ति बन गयी दामिनी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि! 
आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं -नया वर्ष  हमें जीवन के प्रति नयी आशा और विश्वास से भरे, यही कामना है! 


35 टिप्‍पणियां:

  1. .
    .
    .
    भारत में उमड़े जन सैलाब ने समूचे विश्व में साबित कर दिया है कि मानवीयता जिन्दा है और मनुष्य की कौम सर्वोपरि है -आज साझा सरोकार की हमारी यही खासियत हमें आश्वस्त कर रही है और नए वर्ष में नए आशा और विश्वास के साथ हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है -युवाओं निराश न हो -नया वर्ष आप सभी के स्वागत में बाहें पसारे आ पहुंचा है -जीवन भले ही हार गया हो हमारी जिजीविषा बरकरार है -उत्तिष्ठ, जागृत, प्राप्य वरान्निबोधत।' 'उठो, जागो और अपना लक्ष्य प्राप्त करो।'

    हाँ, इस टैस्ट में हमारा पूरा समाज फ्लाईंग कलर्स के साथ पास हुआ है... आशा बंधाता है यह... नये वर्ष में हम सभी जीवन के प्रति नयी आशा और विश्वास से भरें, हम में स्थितियों को सुधारने का हौसला व क्षमता जगे, दुनिया और सुन्दर बने... इसी कामना के साथ...


    ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. क्या आपको तत्काल ऋण की आवश्यकता है? जानकारी के लिए ईमेल के माध्यम से हमसे संपर्क करें
      हमारी ऋण सेवा के बारे में। ईमेल: financial_creditloan@outlook.com








      क्या आपको ऋण की आवश्यकता है? क्या आप वित्तीय संकट में हैं या पैसे की जरूरत है
      अपना व्यापार शुरू करें? क्या आपको अपने कर्ज या भुगतान को व्यवस्थित करने के लिए ऋण की आवश्यकता है
      आपके बिल या एक अच्छा व्यवसाय शुरू करें? आपके पास कम क्रेडिट स्कोर है और
      आपको स्थानीय बैंकों से पूंजी ऋण प्राप्त करना मुश्किल लगता है
      अन्य वित्तीय संस्थानों? यहां से ऋण प्राप्त करने का आपका मौका है
      हमारा संगठन हम निम्नलिखित के लिए व्यक्तियों को ऋण प्रदान करते हैं
      उद्देश्यों और बहुत कुछ। व्यक्तिगत ऋण, व्यापार विस्तार, व्यापार
      स्टार्ट-अप, शिक्षा, ऋण समेकन, हार्ड मनी लोन। हम प्रदान करते हैं
      3% की कम ब्याज दर पर ऋण। ईमेल के माध्यम से आज हमसे संपर्क करें:
      financial_creditloan@outlook.com

      हटाएं
  2. .
    .
    .
    "मनुष्यता पर विश्वास को हमें दृढ करना होगा ही अन्यथा हम कहीं के न रहेगें -इस रिअफ़र्मेशन के लिए,इस दिशा में शुरुआत के लिए आपके इस आलेख की वाकई जरुरत थी ... "

    देव,

    शब्द आप ही के हैं... पर यहाँ लगाने के लिये इनसे बेहतर कुछ नहीं सूझ रहा अभी... इसलिये चेपे दे रहा हूँ... :)



    ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रवीण जी यह सहज अभिव्यक्ति आपकी यादगार कविता पर थी,उस संदर्भ से हटकर यह यहाँ उतनी प्रभावपूर्ण नहें रह गयी है -अपनी कविता भी यहाँ डालिए !

      हटाएं
    2. .
      .
      .
      अपने छोटे से गाँव से
      उम्मीद की पोटली बाँध
      चली आयीं थी जब तुम
      मुल्क की राजधानी में
      पढ़ने और भविष्य बनाने
      तुम आशावान थी, लड़की


      जहाँ रहा करती थी तुम
      वहाँ बहुत कम लड़कियाँ
      दिखा पाती हैं हौसला
      इस तरह बाहर जाने का
      पर तुम फिर भी गयी
      तुम हिम्मती थी, लड़की


      उस काली रात तक
      सब कुछ ठीक ही था
      आकर रूकी वह बस
      थी जा रही गंतव्य को
      और तुम उसमें चढ़ गयी
      तुम विश्वासी थी, लड़की


      बस में वह छह दरिंदे
      निकले थे जो मौज लेने
      टूट पड़े जब तुम पर
      जम कर प्रतिरोध किया
      जान की परवाह न कर
      तुम अदम्य थी, लड़की


      घायल, क्षत-विक्षत हुई
      हालत बहुत खराब थी
      पर तुम ने हार नहीं मानी
      रही जीने के लिये जूझती
      उम्मीद का दामन छोड़े बिन
      तुम बेहद बहादुर थी, लड़की


      आज तुम हो चली गयी
      शोकाकुल सबको छोड़ कर
      है सर सभी का झुका हुआ
      अपराधबोध पूरे देश को है
      तेरा भरोसा था जो टूट गया
      हमें माफ कर देना, लड़की


      तुझ पर जो बर्बरता हुई
      अपवाद था, नियम नहीं
      माना कि लुच्चे हैं, दरिंदे भी
      पर अपने इसी समाज में
      बाप बेटे भाई हैं, प्रेमी-पति भी
      जो तस्वीर बदलेंगे , लड़की


      तंद्रा से झकझोर कर अब
      सब को जगा गयी है तू
      तेरे जाने का दुख तो है
      पर है यह दॄढ़ निश्चय भी
      आगे ऐसा नहीं होने देंगे
      कर हम पर भरोसा, लड़की



      आज तुम हो चली गयी
      नाम तुम्हारा नहीं जानता
      कुछ अगर कह सकता तुम्हें
      तो बार बार यही कहता मैं
      माना कि तुम हो छली गयी
      पर दुनिया इतनी बुरी नहीं, लड़की


      ...



      आपके आदेश का पालन हुआ, सर !


      ...

      हटाएं
    3. इस पोस्ट के साथ तादाम्य बनाती एक यादगार कविता -आभार!

      हटाएं
  3. सही है..हमें निराश करने वाले घटनाक्रम से ही आशा की किरण तलाशनी है। संवेदना का यह उमड़ता ज्वार मनुष्यता पर आ रहे खतरे को दूर करने में सफल होगा, ऐसा विश्वास किया जाना चाहिए।

    जवाब देंहटाएं
  4. ...आपके लिखे का इंतजार था । आपने इस संवेदनशील मुद्दे को एक आम नागरिक की नज़र से देखा है । ऐसी हृदयविदारक घटनाएँ समाजविरोधी के अलावा कुछ नहीं हैं । इस घटना को स्त्री - विरोधी कहकर हम उन प्रवृत्तियों को ही बढ़ावा देंगे जो समाज में किसी न किसी बहाने लिंगभेद बरकरार रखना चाहते हैं ।
    .
    .जो बिटिया गई है,उसके जाने में माँ- बाप के दु: ख के साथ हम सब एकाकार हैं । यह दु: ख पूरे समाज और देश का है ।

    जवाब देंहटाएं
  5. दामिनी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि!

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत अच्छा लेख लिखा है मिश्र जी आपने. इंसानियत जिंदा है उसकी मिसाल सबने देखा इस बार ये बिलकुल सही कहा है आपने. मनुष्य के पाशविक आचरण का बिना लगाम के आसानी से दिख जाने की बात बिलकुल सच्ची है. शहरों में फैले जंगलीपन का ये वीभत्स रूप ह्रदयविदारक है. आशा का दीपक जल रहा है नए साल में हर तरह की बेहतरी के लिए.

    जवाब देंहटाएं
  7. इन हिंसक पशुओं के लिए सजा का भय जरूरी, साथ ही परिवार और समाज को भी अपनी जिम्मेवारी निभानी होगी।

    जवाब देंहटाएं
  8. जब समूह की चेतना राष्ट्रीय चेतना ,जन चेतना बन जाती है तब उन निजामों और सरकारों को जागना पड़ता है जो पुलिस का इस्तेमाल वेतन के अलावा मिलने वाली विशेष सुविधा ,Perks की तरह

    करती

    है .तब उसकी गति और नियति वही होती है जो इस समय दिल्ली दरबार की है .

    सरकार इतना डरी हुई थी निर्भया के जीर्ण शीर्ण निष्प्राण शरीर को दिल्ली लाना ही नहीं चाहती थी पडोसी राज्यों को खंगाला गया कहीं से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया न मिली ,इस दरमियान शाम

    पांच बजे से रात दस बजे तक निष्प्राण शरीर सिंगापुर हवाई अड्डे पर बना रहा .जबकि एयर इंडिया के विशेष विमान AI Flight 380 A को प्राथमिकता के आधार पर उड़ने की अनुमति काफी पहले

    मिल

    चुकी थी .एक ऊहापोह की स्थिति बनी हुई थी दिल्ली का कोई ज़िक्र नहीं था ,संभावना तलाशी जा रही थी कलकत्ता /लखनऊ अन्यत्र विमान को हांक के ले जाने की .

    (Body kept waiting 3 hrs in S'pore as govt wanted to avoid chaos in Delhi ./MumbaiMirror/Monday,December 31,2012)

    सरकार शव को दिल्ली लाना ही नहीं चाहती थी .हौसला ही नहीं था .

    निर्भया के माँ बाप अन्यत्र जाने को राजी न हुए .

    निर्भया अकेली नहीं है प्रतीक है आधी आबादी की ताकत की अब .

    एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :

    क्वचिदन्यतोSपि...
    अर्थात मेरे साईंस ब्लागों से अन्य,अन्यत्र से भी ....

    सोमवार, 31 दिसम्बर 2012

    जवाब देंहटाएं
  9. जब समूह की चेतना राष्ट्रीय चेतना ,जन चेतना बन जाती है तब उन निजामों और सरकारों को जागना पड़ता है जो पुलिस का इस्तेमाल वेतन के अलावा मिलने वाली विशेष सुविधा ,Perks की तरह

    करती

    है .तब उसकी गति और नियति वही होती है जो इस समय दिल्ली दरबार की है .

    सरकार इतना डरी हुई थी निर्भया के जीर्ण शीर्ण निष्प्राण शरीर को दिल्ली लाना ही नहीं चाहती थी पडोसी राज्यों को खंगाला गया कहीं से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया न मिली ,इस दरमियान शाम

    पांच बजे से रात दस बजे तक निष्प्राण शरीर सिंगापुर हवाई अड्डे पर बना रहा .जबकि एयर इंडिया के विशेष विमान AI Flight 380 A को प्राथमिकता के आधार पर उड़ने की अनुमति काफी पहले

    मिल

    चुकी थी .एक ऊहापोह की स्थिति बनी हुई थी दिल्ली का कोई ज़िक्र नहीं था ,संभावना तलाशी जा रही थी कलकत्ता /लखनऊ अन्यत्र विमान को हांक के ले जाने की .

    (Body kept waiting 3 hrs in S'pore as govt wanted to avoid chaos in Delhi ./MumbaiMirror/Monday,December 31,2012)

    सरकार शव को दिल्ली लाना ही नहीं चाहती थी .हौसला ही नहीं था .

    निर्भया के माँ बाप अन्यत्र जाने को राजी न हुए .

    निर्भया अकेली नहीं है प्रतीक है आधी आबादी की ताकत की अब .

    एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :

    जवाब देंहटाएं
  10. हर किसी के लिए आत्ममंथन की आवश्यकता बढ़ गई है.
    कहाँ चूक होती है इस समाज से, यह जानकार समाधान ढूंढने होंगे .
    दामिनी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि .
    ------

    जवाब देंहटाएं
  11. ऐसी ही सजगता के साथ नैतिक जीवन-मूल्यों के प्रति समाज की आस्था दृढ्भूत होने की आशा भी है।

    जवाब देंहटाएं
  12. वे 6 दरिन्दे , किन्ही 6 परिवारों से समबन्ध रखते हैं , इन परिवारों में महिलायें अवश्य होंगी, जहाँ यह पैदा हुए ! एक 23 वर्षीय कमजोर लड़की को मारते हुए, इनमें से किसी को दया क्यों नहीं आई ?
    क्या इसी संस्कृति पर हमें गर्व है !
    यह 6 लोग किस माहौल में बड़े हुए हैं , उसी माहौल में हम सब भी पलें हैं, अतः आवश्यकता अपना गिरेवान झाँकने की अधिक है !
    हम सब गुनाहगार हैं ...वह बेटी हमारे ही किसी घर की थी !
    हमें अपनी व अपने मित्रों की गन्दी सोंच बदलनी चाहिए !
    आज आवश्यकता समाज की सफाई करने की है इस सफाई को हमें अपने घर से शुरू करना चाहिए !
    आज चारो तरफ रक्षक कम और दरिन्दे अधिक नज़र आ रहे हैं !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सतीश जी, क्षमा चाहूंगी आपकी बात काट रही हूँ, लेकिन लुछ कहना चाहूंगी अवश्य । यह बात सिर्फ आप ही से नहीं, अनेक जगह अनेक लोगों द्वारा यही बातें कही जा रही हैं, इसलिए कह रही हूँ । it is NOT personal, hope you do not take it personally satish saksena sir

      @वे 6 दरिन्दे , किन्ही 6 परिवारों से समबन्ध रखते हैं , इन परिवारों में महिलायें अवश्य होंगी, जहाँ यह पैदा हुए !

      ऐसे दरिन्दे अपने घर की महिलाओं के साथ क्या इंसानों जैसा व्यवहार करते होंगे, आपको लगता है ? अपनी ही माता और बहन, पत्नी और बेटी पर अत्याचार ही करते हैं ऐसे लोग । दुखद है कि पुरुष के किये व्यभिचार के छींटे आज भी उसके परिवार की स्त्री पर उडाये जाते हैं, वह भी हम जैसे "बुद्धिजीवियों द्वारा ... :(

      @ एक 23 वर्षीय कमजोर लड़की को मारते हुए, इनमें से किसी को दया क्यों नहीं आई ?

      कमज़ोर ? नहीं - वह लड़की कमज़ोर नहीं थी, वह तो वीरांगना थी, अभिमन्यु की तरह उन पिशाचों से लड़ी, उस पर दया की बात शायद उसकी वीरता का अपमान होगा । और इन लोगों के मन में दया आने की बात, तो ऐसे लोग दया शब्द का अर्थ भी नहीं जानते होंगे ।

      @@क्या इसी संस्कृति पर हमें गर्व है !

      सतीश जी - संस्कृति ? इसमें संस्कृति की क्या गलती है ? क्या उन लोगों को हमारी संस्कृति ने यह करना सिखाया था ? यह बात कई ब्लोग्स पर पढ़ चुकी हूँ - संस्कृति पर दोष मध् देने की प्रथा सी चल पड़ी है । हमारी संस्कृति तो वह है जिसमे सीता के मान पर हुए हमले के लिए राम रावण से युद्ध छेड़ देते हैं । उन दरिंदों के कर्म से इस महान संस्कृति को ऐसा लेबल करना (सिर्फ आप ही नहीं, यह बात कई जगह कही जा रही है) ठीक है क्या ?

      @ यह 6 लोग किस माहौल में बड़े हुए हैं , उसी माहौल में हम सब भी पलें हैं, अतः आवश्यकता अपना गिरेवान झाँकने की अधिक है !
      नहीं, मुझे नहीं लगता । यह बात उन परिवारों को अपशब्द हैं जो "हम सभी" में आ जाते हैं । अधिकतर माता पिता अपने बस में जितना हो, अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने के प्रयास तो करते ही है ।
      i think, यह अपराध ऐसे परिवारों से नहीं होते जहां माता पिता तनिक भी संस्कार देने के प्रयास करें । शायद हमें याद रखना होगा कि हम उन लगों की बात कर रहे हैं जिनके पास हमारी तरह समय की लग्ज़री नहीं है कि वे अपने 4 से आठ बच्चों की रोटी भी जुगाड़ सकें और उन्हें अच्छा माहौल भी दे सकें । हमारे देश में statistics बने तब शायद यह पता चले कि ऐसे अपराध कैसे माहौल से अधिक हो रहे हैं । सभी को गलत माहौल देने वाला होने का आरोप दे देना मुझे निजी तौर पर ठीक नहीं लगता ।

      @ हम सब गुनाहगार हैं ...वह बेटी हमारे ही किसी घर की थी !
      बिलकुल - गुनाहगार तो हम हैं ही एक समाज के रूप में । वह हमारी ही बेटी थी ।

      @ हमें अपनी व अपने मित्रों की गन्दी सोंच बदलनी चाहिए !
      यदि सोच गन्दी है तो अवश्य बदलनी होगी । लेकिन हर एक की सोच गन्दी है ही ऐसा सोच कर चलना अन्यायपूर्ण लगता है मुझे ।

      @आज आवश्यकता समाज की सफाई करने की है इस सफाई को हमें अपने घर से शुरू करना चाहिए !
      वह तो है ।

      @ आज चारो तरफ रक्षक कम और दरिन्दे अधिक नज़र आ रहे हैं !
      नहीं - मुझे ऐसा नहीं लगता । हजारों बच्चे जो सडको पर लाठियां खा रहे थे - वे दरिन्दे नहीं थे । उन्हें भेजने वाले उनके परिवार जन दरिन्दे नहीं थे । दरिन्दे कम हैं, लेकिन कर्म वे इतने कुत्सित करते हैं कि सारा समाज कटघरे में आ जाता है । कहते हैं न - घडा भार अमृत सा शुद्ध दूध भी हो, चुटकी भर ज़हर मिल जाने से सारा दूध ही ज़हर नाम से पुकारा जाता है, जबकि बेचारे दूध का कोई गुनाह नहीं होता :(

      हटाएं
  13. भारत में उमड़े जन सैलाब ने समूचे विश्व में साबित कर दिया है कि मानवीयता जिन्दा है और मनुष्य की कौम सर्वोपरि है -आज साझा सरोकार की हमारी यही खासियत हमें आश्वस्त कर रही है और नए वर्ष में नए आशा और विश्वास के साथ हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है -युवाओं निराश न हो -नया वर्ष आप सभी के स्वागत में बाहें पसारे आ पहुंचा है -जीवन भले ही हार गया हो हमारी जिजीविषा बरकरार है -उत्तिष्ठ, जागृत, प्राप्य वरान्निबोधत।' 'उठो, जागो और अपना लक्ष्य प्राप्त करो।'
    स्वाभिमान और शौर्य की प्रतिमूर्ति बन गयी दामिनी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि!

    अरविन्द भाई साहब आपको प्रणाम.आपने जिस सच्चाई से जिदंगी को बयान किया है ह्रदय से आभार ....

    जवाब देंहटाएं
  14. सच है. जंतर मंतर और इंडिया गेट पर इकट्ठे युवाओं में लड़के और लडकियां दोनों थे. इसे जेंडर वायस होकर नहीं देखा जाना चाहिए. यह सामाजिक समस्या है. और एक आशा की किरण भी. उम्मीद कहीं तो बाकी है जिसपर यह दुनिया टिकी है.

    जवाब देंहटाएं
  15. मानवीय संवेदना तो निश्चित ही जिन्दा है। लेकिन कहते हैं एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है। इसी तरह एक अमानुष सारे समाज को दूषित कर सकता है। कठोर कानून द्वारा ही इन अमानुषों से छुटकारा पाया जा सकता है। आम जनता का आक्रोश देखकर नेताओं को भी कुछ समझना चाहिए।

    जवाब देंहटाएं
  16. भावुकता में बहने के खतरे आपने बिल्कुल सही चिन्हित किए, हमें सावधान रहना होगा, सोच समझ कर रास्ता निकालना होगा। आपने सच कहा सड़कों में उतरे लड़कों में भी उतना ही गुस्सा था, उनकी आँखें भी उतनी ही नम थीं। दरअसल फर्क पुरुष और स्त्री का नहीं, फर्क इंसानियत और हैवानियत का है।

    जवाब देंहटाएं

  17. कुछ भी कहा जाय , कितना भी सोचा जाय लेकिन इस प्रश्न का क्या उत्तर है कि आखिर ऐसा हुआ क्यों ....हो क्यों रहा है ....!!!
    "ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती ही गयी है
    बड़े बड़े शहर भी जंगल सरीखे हैं क्योंकि किसी का किसी से कोई वास्ता नहीं है
    हिंस्र पशुओं का मनुष्य रूपी झुण्ड बेख़ौफ़ बड़े शहरों में विचरण कर रहा है"

    जवाब देंहटाएं
  18. गहनतम दुःख के क्षणों में युवा एक मिसाल बन गए !
    कानून तो कठोर दंड देगा ही मगर हर परिवार और समाज को स्त्रियों के सम्मान और सुरक्षा को सुनिश्चित करना होगा!
    नए वर्ष की शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  19. ’संस्कारयुक्त शिक्षा, आरम्भिक सही सीख,उचित अनुचित का बोध हर बच्चे को दिया जाना हमारी और राज्य की साझा जिम्मेदारी है’ - मेरी सहमति।
    आपकी इस पोस्ट के अधिकांश भाग को एक बहुत संतुलित प्रतिक्रिया के रूप में महसूस कर रहा हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  20. Fight will go on.. and should go on... Till the time root problems r solved.. n this going to be a long and arduous journey !!

    A very Happy New Year to u too :)

    जवाब देंहटाएं
  21. हमारे समाज का दोग़लापन कैसे दूर हो ?
    आपने जिस बात को उठाया है, उस पर वाक़ई विचार किया जाना चाहिए। इससे आगे बढ़कर यह भी सोचा जाना चाहिए कि बलात्कार या हत्या के जिन मुजरिमों के लिए कोर्ट सज़ा ए मौत मुक़र्रर करता है। उन्हें राष्ट्रपति द्वारा माफ़ कर दिया जाता है। इसी के साथ समाज को ख़ुद अपने बारे में भी सोचना होगा क्योंकि ये सारे बलात्कारी और हत्यारे इसी समाज में रहते हैं।
    ऐसी धारणा बन गई है कि सामूहिक नरसंहार और बलात्कार के बाद भी सज़ा से बचना मुश्किल नहीं है अगर यह काम योजनाबद्ध ढंग से किया गया हो। पहले किसी विशेष समुदाय के खि़लाफ़ नफ़रत फैलाई गई हो और उस पर ज़ुल्म करना राष्ट्र के हित में प्रचारित किया गया हो और इसका लाभ किसी राजनीतिक पार्टी को पहुंचना निश्चित हो। ऐसा करने वालों को उनका वर्ग हृदय सम्राट घोषित कर देता है। वे चुनाव जीतते हैं और सरकारें बनाते हैं और बार बार बनाते हैं। देश के बहुत से दंगों के मुल्ज़िम इस बात का सुबूत हैं। राजनैतिक चिंतन, लक्ष्य और संरक्षण के बिना अगर अपराध स्वतः स्फूर्त ढंग से किया गया हो तो एक लड़की से रेप के बाद भी मुजरिम जेल पहुंच जाते हैं जैसा कि दामिनी के केस में देखा जा रहा है।
    दामिनी पर ज़ुल्म करने वालों के खि़लाफ़ देश और दिल्ली के लोग एकजुट हो गए जबकि सन 1984 के दंगों में ज़िंदा जला दिए गए सिखों के लिए यही लोग कभी एकजुट न हुए। इसी तरह दूसरी और भी बहुत सी घटनाएं हैं। यह इस समाज का दोग़लापन है। इसी वजह से इसका अब तक भला नहीं हो पाया। दूसरों से सुधार और कार्यवाही की अपेक्षा करने वाला समाज अपने आप को ख़ुद कितना और कैसे सुधारता है, असल चुनौती यह है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. DR. ANWER JAMAL
      यह घटना इतनी वीभत्स और नृशंस है और सहज मानवीय विश्वास को तार तार करने वाली है कि इसकी तुलना अन्य किसी घटना या कौम से करना महज वैचारिक बहकावा है ......और यह भी ध्यान रहे अब सूचना और संवाद का तकनीकी सहूलियत का युग है जो मानवीय भावनाओं की नेटवर्किंग में एक बड़ा योगदान दे रही हैं -पहले ये स्थितियां नहीं थी ....

      हटाएं
    2. इसकी तुलना अन्य किसी घटना या कौम से करना महज वैचारिक बहकावा है ...... agreee -

      yah bahkaava hi nahi saajish aur inhuman bhi hai ...

      jis raajneeti ka doosron par ilzaam lagaa rahe hain dr jamaal, usee raajneetikaran se mudde ko chhota banaane ka prayas kar rahe hain |

      हटाएं
  22. द्रुत निपटान भी हो मामलों का . खाली पद भरे जाएं . कचहरी में .केंद्रीकृत युव शक्ति के समेकित प्रयास सिरे चढ़ेंगे हम आशावान हैं .

    जवाब देंहटाएं
  23. डॉ अनवर ज़माल की टिपण्णी मुद्दे से हटकर है इसका यहाँ होना एक दम से बे -मानी है .ये नेताओं की तरह एक संवेदन हीन तार्किक जुगाली है जिसका कमसे कम यहाँ कोई मतलब नहीं है .हम तो

    इन्हें ज़हीन समझतें हैं .जहानातदार भी ,पढ़ी लिखी ज़मात भी .

    शुक्रिया भाई साहब आपकी सद्य टिप्पणियाँ हमारी अन्यतम धरोहर हैं .

    जवाब देंहटाएं

  24. शुक्रिया भाई साहब आपकी सद्य टिप्पणियाँ हमारी अन्यतम धरोहर हैं .

    डॉ अनवर ज़माल साहब बात को घुमाने के हम नहीं कायल जो बोलेगा बिंदास बोलेगा -अगर मुलायम -अली मुसलामानों के मसीहा हो सकतें हैं तो नरेन्द्र मोदी हिन्दू हृदय सम्राट क्यों नहीं हो सकते ?

    योरोप और अमरीका में भारत की पहचान गुजरात है गुजरात बोले तो आर्थिक तरक्की का शिखर ,गुजरात बोले तो मोदी .ये सेकुलर मुखौटे राहुल -सोनिया -मुलायम -लालू मुसलमानों के हितेषी नहीं

    है हिन्दू हृदय सम्राट ही सबको बराबर हिफाज़त दे सकते हैं .आजमा के देखें तो सही .

    जवाब देंहटाएं
  25. निश्चय हम सबके शब्द उठें, अब पुण्य शेष प्रारब्ध उठें,
    अनुशासित, करुणामय जग, जो भाव हुये स्तब्ध, उठें।

    जवाब देंहटाएं
  26. क्या आपको तत्काल ऋण की आवश्यकता है? जानकारी के लिए ईमेल के माध्यम से हमसे संपर्क करें
    हमारी ऋण सेवा के बारे में। ईमेल: financial_creditloan@outlook.com








    क्या आपको ऋण की आवश्यकता है? क्या आप वित्तीय संकट में हैं या पैसे की जरूरत है
    अपना व्यापार शुरू करें? क्या आपको अपने कर्ज या भुगतान को व्यवस्थित करने के लिए ऋण की आवश्यकता है
    आपके बिल या एक अच्छा व्यवसाय शुरू करें? आपके पास कम क्रेडिट स्कोर है और
    आपको स्थानीय बैंकों से पूंजी ऋण प्राप्त करना मुश्किल लगता है
    अन्य वित्तीय संस्थानों? यहां से ऋण प्राप्त करने का आपका मौका है
    हमारा संगठन हम निम्नलिखित के लिए व्यक्तियों को ऋण प्रदान करते हैं
    उद्देश्यों और बहुत कुछ। व्यक्तिगत ऋण, व्यापार विस्तार, व्यापार
    स्टार्ट-अप, शिक्षा, ऋण समेकन, हार्ड मनी लोन। हम प्रदान करते हैं
    3% की कम ब्याज दर पर ऋण। ईमेल के माध्यम से आज हमसे संपर्क करें:
    financial_creditloan@outlook.com

    जवाब देंहटाएं

यदि आपको लगता है कि आपको इस पोस्ट पर कुछ कहना है तो बहुमूल्य विचारों से अवश्य अवगत कराएं-आपकी प्रतिक्रिया का सदैव स्वागत है !

मेरी ब्लॉग सूची

ब्लॉग आर्काइव