ब्लॉग अपनी पर्सनल डायरी है न ? हाँ भाई हाँ! हाँ, यह बात अलग है लिखने वाला चाहे तो इसे सार्वजनिक कर दे या ना भी करे,मगर ब्लॉग तो अब ज्यादातर सार्वजनिक ही हो चले हैं। वैसे ज्यादातर होते ये ब्लॉगर के खुद अपने बारे में ,उसकी सनकों के बारे में, उसके स्वभाव और उपलब्धियों के बारे में यानि बहुत कुछ खुद अपने ही बारे में -मैं ऐसा हूँ ,ऐसा ही हूँ, मैं ऐसा क्यों हूँ? मैं वैसा क्यों नहीं हूँ -हम सभी छुपे ,प्रत्यक्ष या बेशर्मी के साथ सेल्फ प्रमोशन भी करते फिरते हैं -देखो देखो मैंने ये बड़ा तीर मार लिया है। मैंने फला को पटा लिया है ,फला को धूल चटा दिया है आदि आदि।
आज मैं भी अपनी एक वह बड़ी महारत जो हासिल कर रखी है बताना चाहता हूँ , मैंने अब तक के अपने जीवन में कभी किसी से उधार नहीं माँगा है,भले ही बड़ी ही विषम स्थितियां रही हों मैं उधार मांग ही नहीं सकता -उधार मुझे व्यक्ति की गरिमा को गिराने वाली बात लगती है -मेरा कान्सेंस अलाऊ ही नहीं करता . मैं बचपन से ही ऐसा हूँ . पैसा नहीं मांग सकता किसी से ..नहीं नहीं मैं बोस्ट नहीं कर रहा अपनी एक आदत बता रहा हूँ और उस परम शक्ति का आभार भी कि अभी तक तो ऐसे ही निर्वाह होता गया है . मुझे याद है जब नयी नयी नौकरी मिली थी पगार बड़ी कम थी। पत्नी को नौकरी के शुरू शुरू से ही साथ में रखता रहा हूँ। लखनऊ की पहली पोस्टिंग थी ,,बस हैण्ड टू माउथ मामला था ...एक बार घर (जौनपुर ) आना था तो किराए के पैसे ही कम पड़ने की नौबत आ गयी,हमारी आदत शुरू से ही फुटकर पैसे गुल्लक में डालने की है। कोई रास्ता न निकलते देख गुल्लक से फुटकर पैसे गिनने की नौबत आ गयी -तब पांच और दस पैसे भी चलते ही नहीं दौड़ते थे ....गिना गया कुल पच्चीस रुपये निकल गए ....पचास तो पहले से ही था ..अब हम अचानक रईस हो गए थे .शान से बस पकड़ी और कुल पचहतर रुपये में दोनों जने जौनपुर कुछ मुंह भी हिलाते डुलाते आ पहुंचे।एक दो रुपये बचे भी थे।
हम भले ही किसी से उधार न मांगते हों मगर मैंने उधार मांगने वालों की एक लम्बी भीड़ अपने आज तक के जीवन में देखी है . एक सज्जन तो मुझे ऐसे मिले जो उधार मांगने के कई गुर में निष्णात थे ,मुझे बताते भी थे और मेरे किसी काम के न होने के बावजूद भी मैं उनके तौर तरीके को हिकारत से सुनता था . एक तो यही कि उधार कभी भी भूमिका बाँध कर नहीं माँगना चाहिए नहीं तो सामने वाला सावधान हो जाता है , उधार हमेशा अचानक ,हडबडी और औचक -बेलौस माँगना चाहिए जिससे अगले को सेकेंड थाट का मौका ही न मिले और वह इनकार न कर पाए .मतलब यह कि उधार माँगना एक कला है और कुछ लोग इसमें पारंगत होते हैं -वे आपकी मानवता तक को ललकार सकते हैं .और यह भी अहसास दिला सकते हैं कि एक दुखिया की मदद न करके आप परले दर्जे के कमीने बन गए हैं . मेरे पिता जी जी उधार दे देकर थक पक गए थे,दुनिया छोड़ गए उनके दिए उधार वापस नहीं हुए . मैं उनको कभी कभी बड़ा विवश देखता था -मेरे ही तरह सरल ह्रदय :-) थे और इसका फायदा उठाकर उनसे उधार मांगने वालो का तांता लगा रहता ..लेकिन उन्हें धक्का तब पहुंचता जब ज्यादातर उन्हें उधार वापस न करते, बार बार मांगने के बावजूद . मैं उन्हें बड़ा अपसेट देखता था . और उनके अनुभवों ने मुझे अपना एक सिद्धांत बनाने और उस पर कायम रखने को मजबूर किया ,
चार्वाक नाम के एक दार्शनिक हुए हैं जिन्होंने उधारी को प्रोत्साहित करके एक परम्परा की नींव ही डाल दी मानो -मगर वह समय सूदखोरों महाजनों का था -लोग सुतही (आन इंटरेस्ट ) पैसे बाटते थे और अनाप शनाप व्याज लगा कर वसूली करते थे -इस काम में तब के पुरोहित पंडित भी ऐसे महाजन के मददगार होते थे -जो पैसा वसूलने के नाम पर तरह तरह के हथकंडे -स्वर्ग नरग और अगले जन्म तक की देनदारी के भय दिखाते थे ...चार्वाक ने ऐसे समय लोगों को सीख दी-यावत्जीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्वा घृतं पीबेत , भस्मा विभूतस्य शरीरस्य पुनरागमनम कुतः -अरे, शान से उधार लेकर देशी घी पियो यानि मौज मस्ती करो ..कहाँ पैसे वापस करोगे और यह भी न घबराओ कि अगले जन्म में देना पड़ सकता है-यह शरीर एक बार भस्म हुआ तो फिर कहाँ लौटना? लगता है उधार मानने वाले इन्ही चार्वाक महाभागा के ही अनुयायी हैं जो आज संदर्भ प्रसंग बदल जाने के बाद भी बेशर्म होकर कारज अकारज उधार मागंते फिरते हैं .
मैं किसी को उधार नहीं देता बल्कि यथाशक्ति मदद करता हूँ . और वह भी अपवादों को छोड़कर केवल पहली बार की ही मदद .लोग मुझसे उधार मांगते हैं तो मैं उन्हें उधार नहीं देता मदद कर देता हूँ जो कर सकता हूँ मगर इस हिदायत के साथ कि मैं जो पैसे दे रहा हूँ वापस नहीं लूँगा और दुबारा दूंगा भी नहीं . मैंने कुछ दिलदार लोगों को भी देखा है वे इस शर्त के बाद उधार, जो वस्तुतः उधार नहीं रह जाता लेते ही नहीं ....(किसी और से ले लेते होंगे) ..अंतर्जाल के अनुभव भी कुछ अलग नहीं है . एक उधार का ऐसा मामला आया कि उन्हें कुत्ते का पिल्ला /पिल्ली लेना था उधार माँगा दे दिया .....उन्होंने बाद में वापसी की पेशकश की तो मैंने ठुकरा दिया ...कहा अब मत मांगिएगा , आप भी अपने अनुभवों से मुझे धन्य करियेगा तो मैं इस विषय पर एक ठोस और संतुलित दृष्टिकोण अपना सकूंगा . कुछ तो हुआ है आज जो यह पोस्ट सहज ही लिखा उठी ....
यह पोस्ट इस लिए भी लिख दी ताकि सनद रहे और हर बार मुझे यह सब तफसील से इक्स्प्लेंन न करना पडा करे -लोग बाग़ यह समझने लगते हैं कि मैं बहाने बना रहा हूँ -मैं उधार नहीं देता ......
मैं किसी को उधार नहीं देता बल्कि यथाशक्ति मदद करता हूँ . और वह भी अपवादों को छोड़कर केवल पहली बार की ही मदद .लोग मुझसे उधार मांगते हैं तो मैं उन्हें उधार नहीं देता मदद कर देता हूँ जो कर सकता हूँ मगर इस हिदायत के साथ कि मैं जो पैसे दे रहा हूँ वापस नहीं लूँगा और दुबारा दूंगा भी नहीं . मैंने कुछ दिलदार लोगों को भी देखा है वे इस शर्त के बाद उधार, जो वस्तुतः उधार नहीं रह जाता लेते ही नहीं ....(किसी और से ले लेते होंगे) ..अंतर्जाल के अनुभव भी कुछ अलग नहीं है . एक उधार का ऐसा मामला आया कि उन्हें कुत्ते का पिल्ला /पिल्ली लेना था उधार माँगा दे दिया .....उन्होंने बाद में वापसी की पेशकश की तो मैंने ठुकरा दिया ...कहा अब मत मांगिएगा , आप भी अपने अनुभवों से मुझे धन्य करियेगा तो मैं इस विषय पर एक ठोस और संतुलित दृष्टिकोण अपना सकूंगा . कुछ तो हुआ है आज जो यह पोस्ट सहज ही लिखा उठी ....
यह पोस्ट इस लिए भी लिख दी ताकि सनद रहे और हर बार मुझे यह सब तफसील से इक्स्प्लेंन न करना पडा करे -लोग बाग़ यह समझने लगते हैं कि मैं बहाने बना रहा हूँ -मैं उधार नहीं देता ......
अपने जानकार एक संपादक हैं, सिंह साहेब,
जवाब देंहटाएंउधार के मामले में वो एक ही बात बोलते हैं, उधार ते ले जा, पर तू वापिस आ जाईं
उनका कहना ये है कि उधार के पैसे के साथ साथ व्यक्ति का 'लोस' हॉट है, जो इंसान नित्यप्रति मिलता था, पैसा उधार लेने के बाद वो मिलना भी बंद हो जाता है... और उस व्यक्ति की संगत से जो लाभ मिलता था वो भी खत्म हो जाता है.
बाकि ज्ञानीजन कह गए है - पैसा हाथ की मेल है, कुछ अभी और आएंगे, वो भी कुछ मेल कि जगह कुछ न कुछ जरूर बताएँगे.
पर अपना एक मानना है, गर किसी से ले लो तो तुरंत लौटाओ....
और दूसरा कोई मांगे तो तुरंत दे दो... ३-४ बार तकाज़ा जरूर करो ताकि उसे 'मदद' में शुमार कर सको.
जहाँ मालूम है कि पैसा वापिस नहीं आयेगा... उसे भी जरूर दो.. श्याद पिछले जन्म का कर्जा हो - उसमे भी राम जी का शुक्र है कि अभी भुगत गया. श्याद ये जन्म उसी के कर्जे उतारने के लिए लिया था..:)
डॉ साहेब, मुद्दा शानदार उठाये हैं.
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मैने इस विषय में कभी दो दोहे लिखे थे..यहाँ लगा रहा हूँ..जानता हूँ ये आपके काम के नहीं लेकिन जो उधार लेते हैं उनके लिए तो बड़े काम के हैं..
जवाब देंहटाएंकर्जा इतना लीजिए, सब कर्जा चुक जाय।
दर्जा झूठे शख्स का, कभी न मिलने पाय।।
चमड़ी से चाँदी झरे, दमड़ी एक न जाय।
मीठी वाणी बोलिये, देनदार फंसि जाय।।
..............................
अब जमाना बदल गया है सर जी...
उधार न होगा, घर द्वार न होगा
शादी न होगी, प्यार न होगा।
उधार न होगा, घर द्वार न होगा
हटाएंशादी न होगी, प्यार न होगा।
बचिए देवेन्द्र जी कोई अंतर्जाली यह देख रही होगी ! :-)
...पहले यह स्पष्ट हो जाय कि यह उधारी लैंगिक-भेदभाव के बिना दी गई है या लैंगिकता को ध्यान में रखते हुए ,तभी इस पर अपनी कुछ राय बनती है !
जवाब देंहटाएं.
.वैसे आपके अलावा हमारे एक और परम मित्र हैं जो केवल ब्लागराओं के जाल में फंसे हैं और यदि जल्द उधारी चुकता नहीं हुई तो खुलासा करने का मन बनाए हैं !हमारी तो ऐसे लोगों से सहानुभूति भी नहीं है जो केवल अंतरजाल के क्षणिक संबंधों के दम पर लेन-देन जैसे अति संवेदनशील काम अंजाम कर डालते हैं.
...आपको पैसा-वापसी की चाह नहीं,सुनकर अचरज होता है !बाकी हमने भी उधार नहीं लिया है और न जल्द देता हूँ !
.
यह भी उम्मीद कर्ता हूँ कि आपका उधारी इस पोस्ट को पढ़कर वापसी कर देगा/देगी !
संतोष जी ,कहा न दिए पैसे मैं वापस लेता नहीं और दुबारा देता नहीं! अपना ईमान इसी में एडजस्ट कर लेता हूँ!
हटाएंThe Two Races of Men
जवाब देंहटाएंअद्भुत आलेख हिमांशु -आभार
हटाएंअरविन्द भाई,,,आप तो अपनी विरादरी के निकले,,न लेना न देना,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: वजूद,
उधार के बदले मदद का आपका विकल्प अनुकरणीय है।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
.
सही भी है... 'नेकी कर, दरिया में डाल'...
...
एक हरियाणवी रागनी है - ’लेणा एक न देणा दो, दिलदार बनया हाण्डै सै’
जवाब देंहटाएंसब रिश्तों को तोड़ता, होता ऐसा उधार |
जवाब देंहटाएंआदत जिसको लग जाती, करता बारम्बार ||
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (19-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | अवश्य पधारें |
सूचनार्थ |
मै अभिषेक मिश्र से पूर्ण सहमत हू की उधार के बदले मदद का आपका विकल्प अनुकरणीय एओम उत्तम है..
जवाब देंहटाएंUdhar maangne walon kee to kamee nahee !
जवाब देंहटाएंअरविन्द भाई साहब शुभ प्रभात संग प्रणाम .आपका संस्मरण कहूँ या जीवन दर्शन सचमुच आनददायी है . ज़रा मेरी दृष्टि से सोचिये क्या आज के चलन की मुद्रा तक ही उधार को सिमित किया जाये? मात्री, पित्री, गुरु. और श्रृष्टि ऋण से आप कैसे मुक्त अपने आपको मानते हैं? भाई साहब आपने गुरु ऋण से मुक्त होने के लिए ये पोस्ट लिखा .पित्री ऋण से कुक्त होने के लिए बाबूजी का उल्लेख किया और सामजिक ऋण से आप उरिन होने का प्रयास कर रहे हैं . आप ब्राह्मण हैं आप समाज को दिशा देने के पैदा हुए हैं यह भी आप के पूर्व ऋण का द्योतक है. ऐसा मेरे जैसे अज्ञानी का मानना है .आपका दृष्टिकोण इस जन्म का है मैं पूर्व जन्म और लेनदेन को भी मनाता हूँ .प्रणाम स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंक ने ख से उधार लिया। कुछ दिन बाद ख ने तगादा किया तो क ने ग से उधार लेकर ख का चुकता कर दिया। फिर कुछ दिन बाद ग ने तगादा किया तो दुबारा ख से उधार लेकर ग का चुकता कर दिया। इसी प्रकार बारी-बारी से एक दूसरे से लेकर चुकता करते रहे। एक दिन दोनो को बुलाया कि आपलोग आपस में लेते-देते रहिए। जब मेरे पास हो जाएगा तो दोनो से पूछकर दे दूंगा। :)
जवाब देंहटाएंये तो सीधे उधार की बात हुई। उस उधार का क्या होगा जो देश के बहाने चढ़ा हुआ है। प्रति व्यक्ति न जाने कित्ते हजार का कर्जा चढ़ा हुआ नागरिकों पर।
जवाब देंहटाएंउधार न अपन देते हैं और न लेते हैं.. शुरू से ही उसूल बना रखा है.. कई बार न देने का दुख भी होता है.. पर बाद में पता चलता है कि फ़र्जी उधार लेने वाले ज्यादा हैं तो अपने आप पर खुशी भी होती है..
जवाब देंहटाएंऔर आजकल तो जीवन की शुरूआत ही उधार से होती है.. Home Loan, Car Loan, Marriage Loan.. etc.
उधार न देने का फैसला करे अच्छा किया, जब भी किसी की मदद करें स्नेह व सम्मान के साथ करें तभी मदद का अर्थ सार्थक रहता है !
जवाब देंहटाएंबढ़िया लेख है ...
गुल्लक वाली बात अच्छी लगी ...मेरी भी अभी तक आदत है . पहले एक रूपये के सिक्के और अब पांच या दस के ....मुसीबत में बहुत काम आ जाती है ये छोटी रकम भी ! कई बार मुश्किल घडी में गुल्लक , घर में इकट्ठी रद्दी या कबाड़ बेच कर काम निकाल है .
जवाब देंहटाएंमगर मध्यमवर्गीय परिवारों में उधार खाते के बिना काम कम ही चलता है, किसी व्यक्ति से नहीं तो सरकार से ही सही , लेना ही पड़ता है लोन , जल्द से जल्द चुकाने के इरादे से ही !
mujhe apni kalaa kuchh dino ke liye udhaar de sakte hain aap?
जवाब देंहटाएंमदद करने में हमें भी अच्छा लगता है, उधार देने में कष्ट होता है।
जवाब देंहटाएंकुछ घरों में मिस- मेनेजमेंट रहता है कितने ही कमाने वाले हों बरकत नहीं होती उन्हें उधारी पैसा देना हिंदमहासागर में पैसा फैंकने जैसा है .रिश्तेदारी में उधारी देने का मतलब है पैसा वापस नहीं
जवाब देंहटाएंआयेगा गुंजाइश है तो जरूर देवें .
मांगने वाले की इस बात का यकीन न करे कि वह बताई गई अवधि के बाद रकम लौटा देगा .जिससे पैसा वसूल न सकें उसे न दें .
यह नुस्खा एक उधारी लाल ने ही समझाया था .
उधार प्रेम की कैंची है .
आज नकद कल उधार .
आज कल उधारी को अनुदान कहा जाता है .
विदेश नीति को अर्थ नीति को असर ग्रस्त करता है अनुदान .
अमरीकी अर्थ व्यवस्था सारी की सारी बाहर के पैसे से चल रही है अमरीकी दिमाग से चल रही है .
मांगन मरण समान .
उन ते पहले वे मुए जिन मुख निकसत नाय .
यह भी सच का अंश लिए है ऐयाशी के लिए हर कोई उधार नहीं लेता .चार्वाक दर्शन वाले हैं ज़रूर .
(ज़ारी )
उधार - हम तो न लेते , न देते।
जवाब देंहटाएंउधार- न कभी लिया, न दिया ..तो नो आइडिया ..
जवाब देंहटाएंचार्वाक के आगे का भी जुमला आज काफी प्रयोग में है - अमेरिका/ इंडिया भी भारी कर्ज में डूबें है . तो...
जवाब देंहटाएं"यावत्जीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्वा घृतं पीबेत,भस्मा विभूतस्य शरीरस्य पुनरागमनम कुतः"
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है कि ये डायलाग चार्वाकों/लोकायतियों के मत्थे जबरिया मढ़ा / आरोपित किया गया है खासकर उन लोगों के द्वारा जो बहस / शास्त्रार्थ /तर्कों में उनके आगे टिक नहीं पाये !
कृपया स्पाम चेक करें ...
जवाब देंहटाएंउधार देने वाले ने उधार वापस न करने पर लेने वाले को दो झापड़ रसीद किया, मैंने पूछा आखिर मामला कितने रुपयों का था, उन्होंने बताया एक हजार का, मैंने कहा फिर क्या हुआ, उन्होंने बताया एक झापड़ पांच सौ का पड़ा, हिसाब साफ हो गया.
जवाब देंहटाएंसर रहीम दास ने तो कहा ही है रहिमन वे नर मर चुके जे कहूँ मांगन जाँय /उनसे पहले वे मुए जिन मुख निकसत नांय |काश अपना मुल्क भी आपकी तरह हो जाता |आभार सत्य और निजी बातों को शेयर करने हेतु |
जवाब देंहटाएंयाद नहीं की कभी उधार दिया हो ... लिया तो है ही नहीं कभी ... वैसे भी कहा गया है उधार मित्रता की कैंची होता है ।
जवाब देंहटाएंहठधर्मिता तो यही रहती है अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही अपनी आवश्यकताएं रहें ...... पर औरों की मदद करने की सामर्थ्य रहे ये जरुर चाहती हूँ ...
जवाब देंहटाएंकर्मनाशा नदी के बारे में और अधिक जानने की उत्सुकता है.कब लिखेंगे उस पर पोस्ट?
जवाब देंहटाएंकोशिश है जल्दी ही,अब आपकी फरमाईश है तो मुझे यह बात धुन सरीखी याद है !
हटाएंहम भी बाट जोहेंगे! आपकी कहनी से कर्मनाशा कुछ और चमत्कृत करने योग्य होकर सम्मुख होगी!
हटाएंउधार देने गुंजाइश नहीं है या आपके उसूलों के खिलाफ है साफ़ मना करें .झूठ न बोलें ,आप कोई अपराध नहीं कर रहें हैं .एक सच को छिपाने के लिए हजार झूठ बोलने पडतें हैं सच को न छिपायें .लोग झूठ को छिपाने के लिए ऐसा करतें हैं .आप सच को छिपाने के लिए झूठ न बोलें .साफ़ कहें नहीं .
जवाब देंहटाएंउधार मांगने लेने वाले उधार लेके ही उधार चुकता करते हैं इससे ले उसको दे उससे ले इसको दे .
सुबह ही सुबह उधारिलाल के दर्शन ,खुदा खैर करे .
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंटिपण्णी भाई साहब रात को भी की थी स्पेम खा गया चाव से .
उधार देते तो हैं पर हम मदद ही समझते हैं वापिस आया तो ठीक न आया तो ठीक । लेना भी पडता है एकाद बार पर शीघ्राति शीघ्र लौटा देते हैं ।
जवाब देंहटाएंआपने राबर्ट लीण्ड के एक लेख की याद दिला दी ......मनी लेंडर्स .....
जवाब देंहटाएंचार्वाक महाभागा के ही अनुयायी !
जवाब देंहटाएंinteresting post.
kai shop keeper takhtee laga kar rakhte hai cash counter ke pass AAJ NAGAD KAL UDHAAR ...:)
niswarth bhavna se madad karna sukhdayee hota hai....
अच्छी बात है!
जवाब देंहटाएंभगवान् की कृपा लेना तो नहीं पड़ा अब तक। पर देकर बहुत फंसे हैं :( मना नहीं कर पाते !
जवाब देंहटाएंहाय, किम मोर्स, एक निजी धन उधारदाता। (कोड 360)
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