बुधवार, 29 अगस्त 2012

अन्तराष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मलेन और परिकल्पना सम्मान: आँखों देखी!

मुझे पता था कि एक ब्लॉग मंडली (खल मंडली नहीं कह रहा इसलिए यह  मन में भी न लाईयेगा )   एक दिन पहले ही लखनऊ  पहुँच रही है और मुझसे भी अपेक्षा थी कि मैं पहले ही पहुँच जाऊं मगर कोई मोटिवेशन ही न था सो सबेरे वाली गाडी (बनारस) से पकड़ी और लखनऊ पौने दस बजे पहुँच गया ...मैं टुकड़ों टुकड़ों फेसबुक पर कुछ अपडेट डालता जा रहा था .और दूसरों के पढता जा रहा था ..चेला चीनी  संतोष त्रिवेदी  (गुरु गुड रह गए चेला चीनी हो गए ) भी फेसबुक पर कुछ लिख पढ़ रहे थे ...मैंने रास्ते में ही नोटबुक पर कुछ लिख पढ़ लिया था कि कहीं कुछ बोलना ही न पड़ जाय ..अब मुझ जैसा वरिष्ठ गरिष्ठ ब्लॉगर यह कह कर कैसे छूट सकता है कि अगर बोलवाना था तो पहले बताना  था न....और मेरी आशंका भी सच निकली ...कोई आदरणीय अतिथि नहीं आये तो मुझे भी  अचानक  ऐन वक्त उदघाटन सत्र के विशिष्ट डायस पर स्थानापन्न तौर पर बुला लिया गया और मैंने कुछ औपचारिक ना  नुकर करके यह सुअवसर हाथ से जाने न दिया ....हालांकि मंच पहले से ही सुशोभित था और शिखा वार्ष्णेय जी की उपस्थिति उसे एक अंतर्राष्ट्रीय गरिमा भी प्रदान कर रही थी ..वे जितना सुन्दर फोटुओं में लगती हैं वास्तविक रूप में उससे अधिक सुन्दर और सौम्य हैं ....और उनके बगल में बैठना भी मेरे लिए कोई कम  सौभाग्य नहीं था  ..हालांकि मैं हिचकिचा रहा था और मंच तक पहुंचते ही जैसे ही एक आख़िरी कुर्सी पर पसरा  था कि संचालक दिल्लीवासी ब्लॉगर डॉ .हरीश अरोड़ा ने घुड़क दिया कि संचालक की सीट रिक्त रखी जाय (अब संचालक को बैठने को का काम?) ..

बाएं से सुभाष राय ,शिखा वार्ष्णेय ,मैं सत्राध्यक्ष शैलेन्द्र सागर ,मुख्य अतिथि उद्भ्रांत जी 
बहरहाल बेआबरू होकर कुर्सी छोड़ा तो उससे बेहतर जगहं मिल गयी -शिखा जी के बगल और बिलकुल डायस-मध्य की जगहं ..हालांकि शिखा जी ने तनिक भी लिफ्ट  नहीं दी और अपनी तटस्थ गरिमामयी उपस्थिति बनाए रखने में सफल होती रहीं... यह कुछ वैसा ही है जैसा कि प्लेन के सफ़र में बगल के यात्री भी अक्सर  पूरी यात्रा तक कुछ नहीं बोलते -यह एक वह परिप्रेक्ष्य है जो  हाई सोशल आर्डर के निरंतर इम्पेर्सोनल होते जाने की कहानी कहता है ...मैंने अपनी एक विज्ञान कथा मोहभंग में इस पूरे भाव चित्र को काफी पहले ही शब्द दिए हैं ....आज मंच के  डिग्नैटेरीज भी इसी संस्कृति का निर्वहन करने लगे हैं ....और अपनी धीर गंभीर उपस्थिति बनाए रखने को विवश होकर रह गए हैं ..दूसरी ओर अपने संतोष त्रिवेदी जैसी जीवंत शख्सियत है जिनकी  निजी स्पेस में बार बार घुसपैठ  असहज सी तो करती है मगर यह भी याद दिलाती रहती है हम अभी मशीन नहीं हुए, हाड़ मांस के ही प्राणी हैं -और मुझे मंच पर जाने का मौका मिलते ही यह भी लगा कि चलो कुछ देर तो चेले चीनी के नोच खरोंच  से पीछा छूटा..मगर उनकी यह लागी ऐसी है कि छूटती नहीं अपने नौके कैमरे के साथ मंच पर भी आ पहुंचे और हे भगवान कैसी कैसी तस्वीरें खिंचवाई हैं तूने उनसे, यह तो बाद में पता चलेगा ....उनका कैमरा और वे खुद पूरे हाल और मंच तक चक्कर घिन्नी की तरह घूमते रहे और कोई आश्चर्य नहीं कि महराज के कैमरे से कुछ चित्र ब्लैकमेलिंग वालों की चान्दी न  बन जायं -खबरदार चेले राम ऐसी कोई हिमाकत करोगे तो ठीक नहीं होगा ....
सचमुच यह एक सम्मान समारोह ही था,सम्मलेन या विमर्श सत्र आदि कहना सटीक नहीं है  -बिल्कुल परिकल्पना ब्लॉगर सम्मान !..किसी ने कहा ब्लागर कम्युनिटी का आस्कर -ठीक भी है -ईश्वर ऐसा ही करें!और इसमें किंचित भी कोई असंगति नहीं ..कोई भी नयी विधा जब पुष्पित पल्लवित होने लगती है तो ऐसे समारोह उत्सव आनुसंगिक हो उठते हैं ..जो इनसे मुंह बिचका रहे हैं वे अपरिपक्व अनुभवहीन लोग हैं,गुड का स्वाद नहीं लिए हैं :-)  और इनमें किसी भी कारण से सम्मिलित न हो पाने की खीज मिटा रहे हैं ... 
बहरहाल  मैं जब ठीक दस बजे पहुंचा तो ज़ाकिर  जी काफी ऊपर दीवाल पर स्पाईडर मैंन सरीखा चढ़ कर बैनर टांग रहे थे ..वो तो जब वे कूद कर सम्मुख हुए तो मैंने सहसा पहचाना, अरे ये तो अपने ज़ाकिर मियाँ हैं ...अब हलके फुल्के लोगों से रश्क होता है दन से कहीं भी चढ़ और उतनी ही फुर्ती से उतर भी लेते हैं ..मैंने उन्हें प्यार  की झिड़की दी ये स्पाट ब्याय का भी काम? बोले ब्लागिंग के लिए कुछ भी,कभी भी कहीं भी  :-) अब ऐसा जज्बा हो तो भला क्या मुश्किल है? :-) हाल में घुसा तो रवि रतलामी जी ,सिद्धेश्वर जी ,अमित श्रीवास्तव जी ,डॉ रूपचन्द्र शास्त्री जी ,अपने आशु काव्य प्रतिभा के धनी और टिप्पणीकार रविकर जी कुछ उन पहलों में से थे जिनसे भर अंकवार मुलाक़ात हुयी .....चेले चीनी तो खैर थे ही ...फिर तो लोग आते गए और हम गलबहियां मिलते गए ..किसी और को भी गलबहियां -घेरे में लेने को मन था और निगाहें हाल में बार बार उसे ढूंढ रही थीं  ,बहरहाल  उसकी भी उपस्थिति हो आयी तो राहत रूह की अनुभूति हुई . ..मगर तब तक कार्यक्रम शुरू हो गया और हम मंच पर धर दिए गए .....
अब  मंच  से देखा देखी मंचीय गरिमा के अनुकूल नहीं थी सो हम तटस्थ और प्रत्यक्षतः निर्विकार भी हो लिए ..अडोस पड़ोस के गुरुतर गाम्भीर्य का भी तो हमें ध्यान  रखना था ..वामभागी  अध्यक्ष जी फिर भी मुझसे डिस्टर्ब होते रहे और बार बार मेरे फोन काल आने पर बुदबुदाते रहे और संतोष त्रिवेदी पर भी काफी कुपित होते रहे कि वे आखिर मेरी ही इतनी  फोटो क्यों उतारते जा रहे -चेला हैं न गुरु का ध्यान तो रखेगा ही ..मगर वे गुरु के साथ क्या क्या  गुल कैमरे में खिलाये हैं यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा ..हम मंच से ही उन्हें घुड्कियाते भी रहे ..मगर बन्दर बालक एक सुभाऊ ...पूरे चिबिल्ले हैं संतोष त्रिवेदी! अब उन्होंने क्या क्या कैमरे के फोकस में रखा और उसके हवाले किये हम आपसे बता भी नहीं सकते ;-) ....
बाहर कुदरत मेहबान थी -फुहारें थीं ..और भीतर सभागार में भी सम्मान बरस रहा था ...झोलियाँ खुलती गयीं और सम्मान भरते रहे... मैं उदघाटन सत्र का स्थानापन्न डायस अतिथि बना था  और पहली बार भाग्य ने साथ दिया अंत तक डटे रहे ...... :-) अच्छा पास पड़ोस -सानिध्य हो तो हटना भी कौन कम्बख्त चाहता है :-) ..मगर मेरे लिए और भी आमंत्रण थे और मुझे उन्हें अटेंड करना ही था ...जैसी कि आशंका थी संचालक महोदय ने मेरी प्रशस्त काया और भारी भरकम मंचीय उपस्थिति को भी नज़र अंदाज कर मुझे वैसे ही पहले बोलने को बुला लिया जैसे कवि सम्मेलनों में सबसे  पहले जूनियर कवि को कविता पाठ के लिए बुलाया जाता है . ..
 कुछ विषय प्रवर्तन सा  करने के  मुगालते में मैं रहा ...मूड बना तो वह भी लिखेगें यहीं ....हाँ  मुझे पता नहीं क्यों रह रह कर अहसास होता रहा कि मैं ब्लागरों के सम्मलेन के बजाय किसी कवि सम्मलेन में आ फंसा हूँ ... :-) अखंड सम्मान का जो सिलसिला चला तो लंच का समय हो आया और उद्घाटन सत्र ही चलता रहा ... समय कम पडा तो एक चर्चा सत्र ही निरस्त हो गया -कई ब्लॉगर कुछ न कह पाने के कारण मायूस हुए ..कुछ उचित ही नाराज हो गए ....खिसियाये और चलता बने ..बाबा रे कहाँ कहाँ से आये थे लोग -कोई गोआ तो कोई हैदराबाद! आडियेंस सुश्री रचना सिंह जी, यशस्वी ब्लागर (नारी ) की प्रतीक्षा करते रहे,उन्हें भी सम्मानित होना था -वर्षों से ब्लागिंग क्रीज पर बिना हिट विकेट बनी हुई हैं वे  -मैं खुद उत्सुकता से उनकी प्रतीक्षा कर रहा था . उनका नाम  एक विमर्श सत्र में भी था -मगर वे नहीं आयीं!अपराह्न सत्र में कवितायें भी मंच पर सस्वरित हुईं ...मैं चौका .... कवि सम्मलेन और ब्लॉगर सम्मलेन में फर्क रखना होगा --एक कवयित्री ग़ज़ल सुनाईं और मैं हाल में उसे तरन्नुम में गुनगुनाता रहा और चेले को पकड़ के सुनाता रहा और चेले भी गज़ब ..गज़लकारा ब्लॉगर को ही बोल उठे  कि आपसे अच्छा तो मिसिर जी गा रहे थे ..हद हो संतोष .... .
सम्मानित कुछ शिष्ट विशिष्ट 
रवीन्द्र प्रभात ने इस समारोह को सफल बनाने में अतिशय / भयंकर मानसिक और शारीरिक श्रम किया और ज़ाकिर ने भी -उन्हें साधुवाद! अब सम्मान पर भी कुछ कह  लूं ....सम्मान मिलना अच्छी बात है मगर उसका अतिशय विज्ञापन बौद्धिक जनों में आत्म प्रचार का सन्देश ले जाता है ..आत्मप्रचार निरी बेशर्मी  मानी जाती है पढ़े लिखे गुनीजनों में   ...
कई सिद्ध प्रसिद्ध ब्लॉगर लखनऊ ब्लागर मीट में आये मगर जितना आये उनसे भी मुलाक़ात वहीं रहकर भी नहीं हो पायी :-( .....कारण हम उनके ब्लॉग से परिचित हैं उनसे जुड़े चेहरों से नहीं... और मजे की बात यह कि जिनके चेहरों से परिचित हैं उनके ब्लॉग से परिचित नहीं .. काश एक परिचय सत्र होता! हाँ बहुत से जो ब्लागर किन्ही भी कारणों से नहीं आये उनकी दबी साध उन्हें रह रह कचोट रही है और वे अपने विचारों से दूसरों को फेसबुक पर चिकोट रहे हैं ..कोई भी एक दिवसी और वह भी बिना सरकारी इमदाद का ब्लॉगर जलसा सारे ब्लागरों को समेट नहीं सकता..मगर एक दिन में ही जितना कुछ  अटाया/समाया गया इस समारोह  में वह दो दिन का काम था...सूत्रतः यही कह सकता हूँ जो नहीं आये भले रहे ..... और वे सम्मान तोषी नहीं हैं -वैसे भी अब बाकी अगले में सिमट ही जायेगें ...मनवा धीर धर... :-) मगर रवीन्द्र जी, पुरखों बूढों को सम्मान के बजाय क्या ही अच्छा होता हम कोई ऐसी प्रणाली विकसित करें जिससे नयी प्रतिभाएं सम्मानित हों और प्रोत्साहित हों -आने वाल कल उनका है .....बाकी तो मूड बना तो फिर कुछ लिखेगें ....हाँ युगों बाद बहुत संतृप्त होकर लौटने (लुटने न पढ़ें कृपया )की अनुभूति है -देखिये कब तक कायम रहती है :-)
 अधिकृत विवरण ,सम्मान सूची आदि आदि के लिए यहाँ जाएँ !

46 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ज़बरदस्त है,टिप्पणी बाद में करूँगा !

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  2. मंच पर बैठ कर यह जन-दृष्टि खो जाती है अक्‍सर.

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  3. कल पता चला कि आप सोनभद्र प्रयाण कर चुके है क्या यह पोस्ट सोनभद्र की प्रथम प्रस्तुति है अब ब्लॉगर (महिला) लिखने की शुरुआत की आपने चुहुलबाजी से बाज नही आते यह ब्रेकेट में (महिला) शब्द लिखना कही स्टेशनों पर लिखी इबारत प्रशाधन (महिला)की याद नही दिलाता जिसे मै बचपन में यह समझता था कि महिलाओं के सजाने सवारने का कोई कक्ष है
    धन्य है प्रभु आप मंचासीन हो कर भी नारी के चुम्बकीय आकर्षण का प्रतिकार नहीं कर सके भले ही वहा से मेग्नेटिक फील्ड आपकी ओर नही आ रहा था शमा परवाने वाली बात लग रही है आपको फोटू में देख कर परवाने की जिद की वह शमा के पास रहेगा भले ही उसके ठन्डे बदन पर शमा की गरमी कुछ असर न दिखाए लेकिन परवाना तपिश की खामख्वाह चर्चा करेगा ही
    प्रस्तुति अच्छी है तथा आप ने अपने मनोभावों को बेबाकी से रखा है इसके लिए आभार

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  4. मेरा तो उद्देश्य सभी से मुहं-दर-मुंह मिलने का ही था | वह पूरा हुआ | आप से अंकवार मिलना हुआ , हम धन्य हुए | विडम्बना देखिये हम पति पत्नी लगभग दो वर्षों से अधिक से ब्लागिंग कर रहे हैं , दोनों की २००-२०० से अधिक पोस्ट्स अब तक लग चुकी हैं पर आयोजकों ने मंच से 'डाक बाबू' की भूरि भूरि प्रशंसा यह कर की, कि ब्लॉग जगत में वे अकेले दंपत्ति हैं जो ब्लागिंग करते हैं | अच्छा है जो पुराने मंजे हुए लोग अपना योगदान ब्लॉग जगत को दे रहे हैं और 'राखियाँ' समय से अपने गंतव्य पर पहुँच रही हैं पर तनिक नए नौसिखिये हम सरीखों की भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए |

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  5. अपरिपक्व अनुभवहीन :) ;-)

    गिन रहे हैं... :(

    खैर रिपोर्ट बहुत अच्छी थी, मजा आ गया ।

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  6. अच्छी रपट है, मंचासीन न होते तो और अच्छी होती (?)। मैं पहले ही कह चुका हूँ कि इतने सम्मानों वाला सम्मेलन तीन दिन का होना चाहिए। सुबह शाम का वक्त कहीं घूमने घुमाने का भी होना चाहिए। कुछ अनौपचारिक सत्र भी होने चाहिए, सभागार के बाहर लॉन में चाय-पान-भोजन की व्यवस्था हो और उस के लिए एक-दो घंटे इंतजार करना पड़े। तब गप्प लड़ाई जाए। मुझे तो ऐसे सम्मेलनो में बैठने के बजाय लॉबी में रहना अच्छा लगता है वहाँ बीच बीच में सभागार से निकल कर आने वालों से जो बातचीत होती है उस का मजा कुछ और है।

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  7. बहुत ही उम्दा विवेचन |ब्लागिंग भी पालिटिक्स की तरह एकोहं द्वितीयोनास्ति की भावना से ग्रस्त हैं |घनघोर चमचागिरी चर्चा मंचों और पुरस्कारों में व्याप्त है |साहित्य का ए० बी० सी० डी० भी जिन्हें नहीं पता है महान ब्लागर तय करते हैं |मुश्किल से बीस प्रतिशत ब्लोगर होंगे जो किसी भी विषय के विद्वान हैं और साहित्यिक ब्लागिंग तो दस प्रतिशत भी नहीं है |आपके लेख से बहुत सुकून मिला |आभार सर

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  8. @ गुरु गुड रह गए चेला चीनी हो गए...

    चेले में विशिष्ट आकर्षण है...

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  9. ...हालांकि मंच पहले से ही सुशोभित था और शिखा वार्ष्णेय जी की उपस्थिति उसे एक अंतर्राष्ट्रीय गरिमा भी प्रदान कर रही थी ..वे जितना सुन्दर फोटुओं में लगती हैं वास्तविक रूप में उससे अधिक सुन्दर और सौम्य हैं ....और उनके बगल में बैठना भी मेरे लिए कोई कम सौभाग्य नहीं था ..हालांकि मैं हिचकिचा रहा था और मंच तक पहुंचते ही जैसे ही एक आख़िरी कुर्सी पर पसरा था कि संचालक दिल्लीवासी ब्लॉगर डॉ .हरीश अरोड़ा ने घुड़क दिया कि संचालक की सीट रिक्त रखी जाय (अब संचालक को बैठने को का काम?) ..लखनऊ सम्मान मुबारक !ब्लोगर धर्म मुबारक !का गुरु ये का खुशवंत जी की आत्मा प्रवेश कर रही है आपमें .हम भी आपके संतोष त्रिवेदी हैं लेकिन इतने मसखरे तो गुरु हम भी नहीं हैं .हाँ वैकल्पिक और उठाऊ अध्यक्ष मौन सिंह की तरह बड़ा टिकाऊ साबित होता है .सो बधाई अध्यक्षी के लिए .वामांगी और दक्षिणअंगी अपनी तो कोई भी नहीं है .बहर सूरत आपने लखनौ आलमी बैठक की पैमाइश पुर जोर और बढिया की है सो गुरु बधाई .डॉ .भाई जाकिर का शब्द चित्र(भैया ये शब्द चित्र था शब चित्र नहीं ) बहुत बढ़िया खींचा है -ब्लोगर एक निजी संस्था है वह पैकर भी होता मेनेजर भी ,मालिक भी खुद और नौकर भी बोले तो -ब्लोगिंग के लिए कुछ भी करेगा .क्या बात है भाषिक प्रवाह की .बिंदास बोलेगा जो भी बोलेगा अपना मिसिरजी .
    ब्लोगर सम्मान मुबारक !कैंटन (मिशगन )के शतश :प्रणाम !नेहा एवं आदर सेवीरुभाई .
    बुधवार, 29 अगस्त 201
    मिलिए डॉ .क्रैनबरी से
    मिलिए डॉ .क्रैनबरी से

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  10. मजेदार, बेबाक और चौचक बनारसी अंदाज में लिखी गई यह रिपोर्टिंग गुदगुदाने वाले अंदाज में समरोह का हाल बयान करती है।

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  11. अंतर्राष्टीय सम्मेलन के नाम पर शायद दो नाम, मै तो सोच रहा था कि कुछ फिरंगी और फिरंगन भी हिन्दी ब्लागिंग का गुणगान करने पहुचेगे. वैसे ये कार्यक्रम ब्लागजगत का था या परिकल्पना वालो का विमर्श होना बाकी है बहरहाल मै अपने कबीले की बात करू तो कानपुर से आदरणीय फुरसतिया जी और रेखा जी का वहा ना होना मेरे अनुसार् कार्यक्रम का एकांगी और बेडौल होना है.पिछले दिनो वोटिंग करायी गयी थी उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिये. जो लोग सम्मान नही लेने आये उन पर सम्मान न लेने पहुचने का अभियोग दर्ज हो आखिर इत्ती मेहनत के साथ रवीन्द्र जी ने नामावली तैयार की थी फूल पत्तो मेमोरंडम खानखर्च जोडकर मामला बनाना चाहिये. एक बात और अपने यदुकुल शिरोमणि ने जो अप्रतिम योगदान इस ब्लागजगत को दिया है उसकी बधाई . बाकी त बडकू जौन लिखिन तौन सही.

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  12. मनोभावों और मनोकामनाओं के चिंतन का यथार्थ अभिव्यक्त हुआ है। :)

    आँखों देखी ? डायस से मन की आँखों देखी!" :)

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  13. बात यह कि जिनके चेहरों से परिचित हैं उनके ब्लॉग से परिचित नहीं .. काश एक परिचय सत्र होता!

    बस इस बात की कमी मुझे भी महसूस हुई. मुझे भी सभी तमाम साथी ब्लॉगरों से भली प्रकार परिचित होना था. परंतु एकदिवसीय सत्र में समयाभाव के कारण शायद यह संभव नहीं हो पाया.

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  14. कभी भी किसी आयोजन या कार्य में पूर्णता नहीं हो सकती,उस से यह आयोजन भी वंचित कैसे रह सकता है पर यदि हम इसके पीछे की भावना समझें और सकारात्मक नज़रिए से देखें तो यह अपने आप में कहीं अधिक सफल रहा !

    सम्मान-पुरस्कार अपनों के द्वारा ही अपनों का होता है तो इसे सहज भाव से ही लेना चाहिए.अगर पुरस्कार पाने वाले सोच लें कि उन्हें 'नोबेल' मिल गया है तो यह उनकी खुशफहमी हो सकती है.जो बात सबसे बड़ी है वह ऐसे आयोजनों के ज़रिये एक-दूसरे को जानने-समझने में ज़्यादा सहायक होता है,हमको इसी नज़रिए से देखना चाहिए.
    कई चेहरे जिनके बारे में उम्मीद होती है कि खुशदिल होंगे,मिलने पर उबाऊ सिद्ध होते हैं और कई उबाऊ-टाइप के खुशदिल .हमें निजी तौर पर यह लाभ हुआ कि कई भ्रांतियां टूटीं,गिले-शिकवे दूर हुए और प्यार के नए अध्याय रचने के पाठ मिले.
    हमारी गुरूजी से कुछ मामलों पर असहमति चल रही थी,संवाद तक बंद हो गया था,पर वहाँ पहुँचने पर मैंने भरपूर कसर निकाली और वे निर्विकार भाव से ,सब घटित से अनजान बस सुनते रहे,मुस्कुराते रहे,बस मैं भी पिघल गया,क्योंकि पत्थर नहीं बन सका हूँ अभी तक !

    और गुरूजी आपसे,आभार आपने हमें चीनी समझा अब भविष्य में उसे नमक मत समझ लेना.चश्में की साफ़-सफाई कराते रहिएगा .
    मुझको 'उदीयमान -ब्लॉगर' तब माना गया जब कि हम मोह-मुक्त से हो रहे हैं.
    आपकी 'प्रायवेसी' की हर हाल में रक्षा की जायेगी और चीनी की मिठास भी बरक़रार रखने की कोशिश !
    अंत में रवीन्द्र प्रभात जी को तहे-दिल से आभार !

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  15. अपनी बात कहने में सक्षम पोस्ट .... काफी संतुलन रखा है इस रिपोर्ट में ....

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  16. इस रिपोर्टिंग को किस अंदाज़ में पढ़ा जाय ...
    मंच पे तो आप खुद विराजे थे तो व्यंग तो हो नहीं सकता ... हां बेबाक रिपोर्ट जरूर है ... आशा है अगले साल इन बातों का ख्याल रखा जायगा ...

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  17. आपकी इस रोचक शैली ने मन मोह लिया।

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  18. बिलकुल सजीव सी रिपोर्ट प्रस्तुत की है सर!
    मेरा भी यही सुझाव है कि यदि इस तरह के आयोजनों मे परिचय सत्र भी आयोजित किया जाए तो बहुत अच्छा होगा।


    सादर

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  19. हिन्दी ब्लॉगिंग का प्रख्यात वैज्ञानिक चेतना संपन्न ब्लॉगर युगों के बाद संतृप्त होकर वापस लौटा। इससे बेहतर और क्या उपलब्धि हो सकती किसी सम्मेलन की।
    बधाई हो!

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  20. Mai to blog jagat se kat-si gayee hun...achha laga is post ko padhna.

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  21. आँखों देखी !?

    जिन आँखों ने हमारे जैसी विशालकाय दो-पाया आकृति ना देखी हो ऎसी अच्छी खासी लेकिन जेंडर बायस्ड रिपोर्ट को खारिज किया जाता है :-)

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  22. हम अपने गुरु श्री पाबला जी से सहमत है !

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  23. पंडित जी, हमें नहीं पता था कि हमारा अनुरोध आप इस प्रकार स्वीकारेंगे.. भले टुकड़े फेसबुक से जोडकर बनायी यह पोस्ट.. मगर कम्प्लीट लगी!!
    बस दो दिन और.. शुभकामनाओं सहित!!

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  24. भोजनोपरांत यदि 'परिचय सत्र' होता तो सबको सबसे परिचय मिल जाता। 'परिचय सत्र ' की मांग उचित ही है।

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  25. ब्लॉग को चाहिए एक उम्र असर होने तक
    कोई जानेगा नहीं खुसर फुसर होने तक ... :)

    बाकी आप सब से न मिल पाने की कसक है ॥

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  26. आदरणीय प्रणाम . सबसे पहले आप अपने चरण आगे करें दंडवत प्रणाम आपके कहे अनकहे ज़ज्बे के लिए . आपके कथन से मेरे दिमाग के खिड़की, दरवाजे, वेंटिलेटर खुल गए . भैया जी आपको पढ़कर पूरा दृश्य घूम गया .

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  27. परिचय सत्र की बात सही लगी .जिनके चेहरे वहां दिखे ..नाम से परिचत नहीं हो पाए ..अगले दिन घूमते हुए उनसे मुलाकात हुई तो नाम जान पाए ..:)

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  28. पुरस्कार वितरण समारोह चलता रहे...आप अध्यक्ष बनते रहें, यही कामना है.

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  29. खट्टी-मीठी बातों से सुन्दर भविष्य का संकेत दिया है आपने . देखना है कि ब्लोगिंग किस खम्भे का रूप लेता है ..

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  30. अन्तराष्ट्रीय हिंदी ब्लॉग सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए बधाई । कृपया मेरे ब्लॉग पर भी अपनी नज़र रखे -http://gyaan-sansaar.blogspot.com/

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  31. आज ही विदेश से लौटा हूँ . आपकी आँखों देखी पढ़ी . आनंद आया . आपसे सहानुभूति भी हुई . :)
    ऐसा लगता है -- इस सम्मेलन में गुरु चेला छाये रहे . वैसे हमें तो मंच पर आप ही आप नज़र आ रहे हैं .
    हालाँकि कई और मित्रों को भी नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता . :) :)

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  32. आयोजकों ने खुद को सम्मानित होने के लिए ही यह प्रपंच रचा था!
    मंच भी उनका, सम्मानपत्र छपवाने वाले भी वही और अग्रणी बन कर सम्मान लेने वाले भी वही।
    रही बात खर्चे की तो प्रायोजक तो मिल ही जाते हैं।

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  33. ram ram bhai
    बृहस्पतिवार, 30 अगस्त 2012
    लम्पटता के मानी क्या हैं ?


    कई मर्तबा व्यक्ति जो कहना चाहता है वह नहीं कह पाता उसे उपयुक्त शब्द नहीं मिलतें हैं .अब कोई भले किसी अखबार का सम्पादक हो उसके लिए यह ज़रूरी नहीं है वह भाषा का सही ज्ञाता भी हो हर शब्द की ध्वनी और संस्कार से वाकिफ हो ही .लखनऊ सम्मलेन में एक अखबार से लम्पट शब्द प्रयोग में यही गडबडी हुई है .

    हो सकता है अखबार कहना यह चाहता हों ,ब्लोगर छपास लोलुप ,छपास के लिए उतावले रहतें हैं बिना विषय की गहराई में जाए छाप देतें हैं पोस्ट .

    बेशक लम्पट शब्द इच्छा और लालसा के रूप में कभी प्रयोग होता था अब इसका अर्थ रूढ़ हो चुका है :

    "कामुकता में जो बारहा डुबकी लगाता है वह लम्पट कहलाता है "

    अखबार के उस लिखाड़ी को क्षमा इसलिए किया जा सकता है ,उसे उपयुक्त शब्द नहीं मिला ,पटरी से उतरा हुआ शब्द मिला .जब सम्पादक बंधू को इस शब्द का मतलब समझ आया होगा वह भी खुश नहीं हुए होंगें .

    यूं अखबार वालों की स्वतंत्र सत्ता नहीं होती है.अखबार श्रेष्ठ नहीं होता है औरों से ,अन्य माध्यमों से ,अखबार की एक नियत बंधी बंधाई भाषा होती है उसी के तहत काम करना होता है हमारे मित्र बाबू लाल शर्मा (पूर्व सम्पादक ,माया ,दैनिक भास्कर ,अब स्वर्गीय ) बतलाया करते थे वीरू भाई कुल २२,००० शब्द होतें हैं जिनके गिर्द अखबार छपता है .अखबार की एक व्यावहारिक सी भाषा होती है जिसमें कोई ताजगी नहीं होती .

    ब्लॉग ताज़ी हवा का झोंका है भाषा प्रयोग के मामले में .ब्लोगर जब लिखता है उसमें ताजगी होती है .आतुरता होती है मैं और ब्लोगरों से अच्छा लिखूं .आगे बढूँ .

    सही शब्द था "आतुरता "सम्पादक का यह वक्तव्य ज़रूर लम्पटता है जिसे अखबार ने शीर्षक बनाया है .अभिव्यक्ति की जल्दी में अखबार ऐसा कर गया अब अगर उसे पलट कर कोई लम्पट कहे तो यह उपयुक्त नहीं होगा .

    अब लोभ और लोभी शब्द एक ही धातु "लभ" से बनें हैं लेकिन लोभी शब्द अच्छे अर्थ में नहीं जाएगा .

    लौंडा लौंडिया का अर्थ वैसे तो लडका लडकी ही होता है लेकिन लखनऊ की नवाबी ने इसके अर्थ बदल दिए यह शब्द सामाजिक रूप से वर्जित हो गया .हरियाणा में तो इसे बहुत ही गर्हित मानते हैं ,सोडोटौमी से जोड़ देते हैं .

    इसी तरह लम्पट शब्द अब एक ख़ास चरित्र के मामले में आ गया है .यह चरित्र नीति का शब्द है ब्लोगर के लिए यह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता .

    वीरुभाई ,४३ ,३०९ ,सिल्वरवुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन

    ००१ -७३४ -४४६ -५४५१

    सन्दर्भ :
    क्या हममें से अधिकांश लंपट हैं???
    आज अख़बार में छपे एक रपट पर नज़र पड़ी, जिसका शीर्षक है –
    “ब्लॉग की दुनिया में लंपटों की कमी नहीं”

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  34. भाई साहब !आजकल इनाम देना और लेना बड़ा जोखिम का काम हो गया है कौन जाने कब किस पे भीड़ टूट पड़े .यहाँ तो पद्म सम्मान भी आलोचकों के निशाने पे रहतें हैं बेशक आलोचना में सार तत्व भी कुछ न कुछ रहता हो या न रहता हो एक बात साफ़ है हम एक अ -सहिष्णु क्लेशवादी समाज बनते जा रहें हैं किसी की ख़ुशी देख के नांच नहीं सकते ,आँगन को ही टेढा बताने की सुविधा ले लेते हैं .
    कृपया यहाँ भी पधारें -

    ram ram bhai
    बृहस्पतिवार, 30 अगस्त 2012
    लम्पटता के मानी क्या हैं ?

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  35. बधाई कि यह आँखों देखी आपके पुराने संस्मरणों की तरह किसी बुरी याद से नहीं जुडी रही :)
    रचना जी को दयास पर देखने की बड़ी इच्छा थी , यह जानने की उत्सुकता भी कि उन्होंने ब्लॉगिंग की दशा और दिशा पर क्या कहा ... .वे वहां थी ही नहीं , जानकर अच्छा नहीं लगा !
    बाकी तो हर कार्यक्रम में कुछ न कुछ कमियां रह जाती है , मगर श्रम और परिश्रम की दृष्टि से आयोजक साधुवाद के हकदार हैं !

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  36. @वाणी जी: सच मानिए मेरी भी इच्छा यही थी

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  37. आपने कार्यक्रम ओके कर दिया, अब क्या शक रह गया। बधाई सभी आयोजकों को।

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  38. ''मंच पर बैठ कर दृष्टि खो जाती है अक्‍सर''

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