भारत के एक मशहूर मीडिया हाउस ने अपनी एक प्रमुख पत्रिका के अंगरेजी हिन्दी दोनों संस्करणों के ताजे अंक की कवर स्टोरी को नारी वक्षों में उभार के प्रति आयी नयी चेतना को समर्पित किया है और कवर पृष्ठ पर जाहिर है स्टोरी के अनुरूप एक नयनाभिराम चित्र भी लगाया है -अब चिल्ल पों शुरू हो गयी है ...और पत्रिका द्वारा सौन्दर्य सर्जरी पर प्रचुर सामग्री को दरकिनार कर पत्रिका ग्रुप के व्यावसायिक हथकंडों ,नीयत , शुचिता आदि पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं -लानत मलामत किया जा रहा है .पता नहीं ये भारतीय जेंटलमैन कब परिपक्व होंगें? ....और अपने तमाम पूर्वाग्रहों ,वर्जनाओं से मुक्त हो खुली हवा में सांसे ले पायेगें .
किसी ने सच कहा था कि एक आम भारतीय जीवन भर कई तरह के परस्पर विरोधी विचारों, आईडीओलोजी ,वर्जनाओं के द्वंद्व में जीवन काट देता है ...जितना एक आम भारतीय गलत- सही के भंवर में डूबता उतराता रहता है उतना शायद ही कोई अन्य देशवासी .उसे माडर्न बनने दिखने की ललक भी होती है तो वह अपने कितने अप्रासंगिक हो रहे रीति रिवाजों में भी आसक्ति बनाए चलता है . लिहाजा उसका सारा जीवन ही एक तरह की उहा पोह और किंकर्तव्यविमूढ़ता में बीत जाता है .मुझे याद है मेरे एक परिजन केवल इसलिए नसबंदी नहीं करा पाए कि समाज के सामने सकुचाते रहे और अब कई लड़कियों की शादी में सब कुछ बेंच बांच भिखारी जीवन जी रहे हैं .....कई लोग अभी भी इसी तरह दूकान पर कंडोम मांगने में बला का संकोच करते हैं..किस युग में जी रहे हो भाई लोग :)
बहरहाल मुद्दे की चर्चा की जाय ...दुनियां में ब्रेस्ट सर्जरी इम्प्लांट की अर्धशती मनाई जा रही है ....१९६२ में टिमी जीन लिंडसे नामकी टेक्सास की महिला ने अपने वक्षों को सुन्दर लुक देने के लिए सर्जरी के जरिये सिलिकन राड्स का इम्प्लांट कराया था ..और तबसे तो यह मानो नारी सौन्दर्य के अनेक जुगतों की फेहरिश्त का एक फैशनबल ट्रेंड ही बनता गया है .पश्चिमी दुनियाँ, हालीवुड की तो छोडिये अपने भारत में भी अब सौन्दर्य सर्जरी का व्यवसाय फलफूल रहा है .दक्षिणी अफ्रीका में तो हर वर्ष राष्ट्रीय क्लीवेज दिवस विगत २००२ से मनाया जा रहा है ..जहां वक्ष सुदर्शना नारियों का जमघट लगता है! भला सुन्दर दिखने की चाह किसे नहीं होती ..नारी या पुरुष ...नारी जहां अब ज्यादा विवर जागृत (क्लीवेज कान्सस) हो गयी है मर्द अपनी छाती की अनावश्यक चर्बी (मूब =मेल बूब =गायिन्कोमेस्टीया ) को हटाने के लिए सर्जरी का सहारा ले रहे हैं . मेट्रो भारत में सौन्दर्य सर्जरी का धंधा फल फूल रहा है .सौन्दर्य सर्जनों के पास हीरोईनें ही नहीं ,साईज जीरो गर्ल्स ,भावी दुलहनों,महत्वाकांक्षी प्रोफेसनल ,समृद्ध चालीस प्लस युवतियों का ताँता लग रहा है .सभी को अन्यान्य कारणों से सुन्दर सहज दिखने की चाह है ..कैंसर जैसे महारोग से अभिशापित मरीज भी इसी सर्जरी के भरोसे हैं ...
बहरहाल मुद्दे की चर्चा की जाय ...दुनियां में ब्रेस्ट सर्जरी इम्प्लांट की अर्धशती मनाई जा रही है ....१९६२ में टिमी जीन लिंडसे नामकी टेक्सास की महिला ने अपने वक्षों को सुन्दर लुक देने के लिए सर्जरी के जरिये सिलिकन राड्स का इम्प्लांट कराया था ..और तबसे तो यह मानो नारी सौन्दर्य के अनेक जुगतों की फेहरिश्त का एक फैशनबल ट्रेंड ही बनता गया है .पश्चिमी दुनियाँ, हालीवुड की तो छोडिये अपने भारत में भी अब सौन्दर्य सर्जरी का व्यवसाय फलफूल रहा है .दक्षिणी अफ्रीका में तो हर वर्ष राष्ट्रीय क्लीवेज दिवस विगत २००२ से मनाया जा रहा है ..जहां वक्ष सुदर्शना नारियों का जमघट लगता है! भला सुन्दर दिखने की चाह किसे नहीं होती ..नारी या पुरुष ...नारी जहां अब ज्यादा विवर जागृत (क्लीवेज कान्सस) हो गयी है मर्द अपनी छाती की अनावश्यक चर्बी (मूब =मेल बूब =गायिन्कोमेस्टीया ) को हटाने के लिए सर्जरी का सहारा ले रहे हैं . मेट्रो भारत में सौन्दर्य सर्जरी का धंधा फल फूल रहा है .सौन्दर्य सर्जनों के पास हीरोईनें ही नहीं ,साईज जीरो गर्ल्स ,भावी दुलहनों,महत्वाकांक्षी प्रोफेसनल ,समृद्ध चालीस प्लस युवतियों का ताँता लग रहा है .सभी को अन्यान्य कारणों से सुन्दर सहज दिखने की चाह है ..कैंसर जैसे महारोग से अभिशापित मरीज भी इसी सर्जरी के भरोसे हैं ...
हलांकि ऐसी सर्जरी पूरी तरह निरापद नहीं हैं ,कहीं कहीं से सिलिकान राड/जेल के इम्प्लांट से कैंसर होने की भी रपट है मगर इन मामलों का अनुपात अभी भी बहुत कम है .सिल्कान इम्प्लांट से हमेशा दर्द बने रहने की शिकायत भी मिलती रहती है मगर सर्जरी में निरंतर सुधार होने से इन समस्याओं पर उत्तरोत्तर अंकुश लगता आया है . दिल्ली के गुडगाँव की मेदान्ता मेडिसिटी में कास्मेटिक सर्जरी की यह सुविधा उपलब्ध है -हालांकि यहाँ चिकित्सक सौन्दर्य सर्जरी के इच्छुक लोग लुगायियों के कई भ्रमों का भी निवारण करते हैं...वक्षों की आयिडियल शेप साईज को लेकर भी कई तरह की दुर्निवार शंकाएं लोगों को रहती है -चिकत्सक कहते हैं कि 'आंसू सदृश ' आकार ही नारी वक्ष का सबसे नैसर्गिक शेप है . न ही एकदम गोलाकार और न उन्नत जैसा कि प्रायः लोगों के मन का फितूर होता है .
भारत में वक्ष सौन्दर्य सर्जरी की शुरुआत मुम्बई में १९७३ में शुरू हुयी थी जब एक मुंहढकी नाम छुपी महिला का ऐसा आपरेशन डॉ. नरेंद्र पांड्या ने आधीरात के सन्नाटे में किया था मगर अब तो उनके पास ऐसे आग्रहों की खुलेआम भीड़ लगी होती है ... प्लास्टिक सर्जन्स असोसिएशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ सौन्दर्य वक्ष सर्जरी के मामले पिछले पांच वर्ष में काफी बढ़ गए हैं .अकेले वर्ष २०१० -२०११ में ५१००० ब्रेस्ट इम्प्लांट सर्जरी हुई है जबकि पूरी दुनियाँ का यह आकंडा डेढ़ लाख तक जा पहुंचा . सौन्दर्य की इस चाहना में कोई बुराई तो नहीं दिखती ....राखी सावंत को भी नहीं दिखती जो इस सर्जरी के बाद वक्ष गर्विता बनी कहर ढा रही है और इस सर्जरी की प्रशंसा करते नहीं अघातीं ....
इसी परिप्रेक्ष्य में, इस नए ट्रेंड को कवर करती चर्चित पत्रिका के हिन्दी- अंगरेजी संस्करणों को लिया जाना चाहिए ....