मंगलवार, 28 सितंबर 2010

आ पहुँची है फैसले की घड़ी!

बस कुछ प्रहर का इंतज़ार और ,माननीय सुप्रीम कोर्ट अयोध्या फैसले को रोकने सुनाने पर अपना फैसला सुना देगी  ...और एक बार फिर पूरे परिवेश में उहापोह और आशंकाओं का ज्वार उफनाता जायेगा ...इस मुद्दे पर ब्लागजगत में खूब लिखा गया है और अनवरत लिखा भी जा रहा है -जिससे यह इंगित होता है कि भारतीय जनमानस इस मुद्दे पर कितना आंदोलित है ...अब जिस मोड पर यह समूचा मामला पहुँच चुका है उसके कुछ निहितार्थ स्पष्ट होने लगे है ....

कट्टर मुस्लिम और हिन्दू इस मामले पर कोई आम सुलह नहीं चाहते ,वे कोर्ट का ही फैसला चाहते हैं ...क्योकि माननीय हाईकोर्ट का फैसला तो अंतिम होता नहीं ,यह मामला देर सबेर सुप्रीम कोर्ट में जाएगा ही ....और इस तरह कानूनी दांव पेंच में फंस कर रह जाएगा ....अयोध्या में राम का मंदिर नहीं बन सकेगा ....मुल्लाओं का कहना है कि शरीयत उन्हें मस्जिद जो अल्लाह की मिलकियत है को गैर मुस्लिमों को देने की इजाजत नहीं देती ..हिन्दू अपनी इस बात पर अटल हैं कि अयोध्या में हम राम मंदिर नहीं बनायेगें तो फिर कहाँ बनायेगें ....अब यह आस्था का मिलियन डालर सवाल मुंह बाये खड़ा है ...हाशिये पर पहुँच चुकी बी जे पी को इससे एक मुद्दा मिलने की उम्मीद जग गयी है ...हाईकोर्ट का फैसला अगर मस्जिद के मालिकाना हक़ में आता है तो वह तुरंत सुप्रीम कोर्ट जाने का फिजा तैयार करेगी और इससे भी आगे बढ़कर मांग करेगी कि संसद  में क़ानून बनाकर मंदिर अयोध्या में ही बनाया जाय और इसी बैसाखी के सहारे आगामी लोकसभा में प्रचंड बहुमत लेने की अपील बहुसंख्यकों से की जा सके ....यह मामला अब केवल राजनीतिक निहितार्थों की ओर बढ रहा है...

मगर इतना तय है कि जो भी फैसला होगा उससे जन भावनाएं तो आहत होंगी ही ,हाँ अब इतनी समझदारी लोगों में आ गयी है कि वे अपने आक्रोश को आक्रामक तरीके से व्यक्त करने में संयम बरतेगें -समय का यही तकाजा भी है ....यह मामला अब लम्बे कानूनी दांवपेंच में ही पड़ा रह जाय वही शायद  देशहित में है ....आपकी क्या राय है ?

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

आप किस नहाने के साबुन का इस्तेमाल करते हैं?(यह विज्ञापन नहीं है)


आप भी सोच रहे होंगे अजीब खब्ती आदमी है ,जब लोग बाग़ फैसले की आख़िरी घड़ी का दम साधे इंतज़ार कर रहे हैं तो इसे साबुन जैसी तुच्छ चीज सूझ रही है ...मैं समझता हूँ (अपनी अल्प बुद्धि से ) कि बड़े बड़े मसलों/मसायल  को बड़े लोगों के लिए छोड़ देना चाहिए -जिस काम के लिए पूरा तंत्र सक्रिय हो ,मशीनरी चुस्त दुरुस्त हो फिर हम छुटभैये क्या खाकर कुछ बना बिगाड़ लेगें ..तो आईये कुछ साबुन वाबुन जैसी रोजमर्रा की छोटी बात पर ही समय जाया कर लिया जाय ..

इस पोस्ट को लिखने की जहमत क्यूं आन  पडी यह तो मैं आखीर में बताऊंगा मगर अभी आपसे अपने कुछ सोप -अनुभवों को बाँटना चाहता हूँ ...बचपन के दिन याद आते हैं तो नहाने के साबुन की वो लाल वाली बड़ी लाईफबाय की  बट्टी बरबस ही याद हो उठती है ..उस समय कपडा धोने के लिए सनलाईट की सफ़ेद बट्टी और यही लाईफबाय ही देखने को मिलता था ..बाद में तो धोने के साबुन के अलावा डिटर्जेंट की एक बड़ी रेंज ही आ गयी ....तब भी हाट बाजार की  दुकानों पर लोग  "सनलाईट  सोप साबुन" ही मांगते  नजर आते थे .  नहाने वालो साबुनों में लाईफबाय की मोनोपोली को दूसरे कई साबुन ब्रैंड ने चुनौती दी ...उनमें एक तो मोती था जो गोल गोल बड़ा सुडौल सा था और दूसरा भीनी सुगंध वाला खस साबुन था ..पियर्स भी तभी आ गया था जो अभिजात्य लोगों की पसंद था ,तब भी इसका दाम तनिक अधिक ही था -आम लोगों के लिए  लक्स जब सिने तारिकाओं के फोटो के साथ  बाजार में आया तो  गाँव गाँव में लक्स की धूम मच गयी ..लोग नहाते भी थे और रैपर पर स्वप्न सुन्दरी की मोहक अदाओं का आकंठ पान भी करते थे- लगभग यही समय हमाम का भी था ...और बाद में नीम, डेटाल,डव ,और अब तो न जाने कौन कौन नए देशी ब्रैंड तथा अंतरराष्ट्रीय ब्रैंड केमी वगैरह भी बाजारों में अपनी पैठ बना चुके हैं ..कुछ नाम भूले भटके  छूटे होंगे  तो आप बताएगें ही ...

मैं इन सभी साबुनों की बात नहीं कर रहा ...वैसे भी नहाने के मामले में मैं बहुत कोसे जाने वाला प्राणी हूँ ....ज़रा भी मौका मिला तो एकाध दिन नहाने से नागा भी कर जाता हूँ ..साबुन तो एक हप्ते में एक बार ही लगाता  हूँ -एक जीवशास्त्री होने के नाते मेरे अपने तर्क हैं ..रोज रोज साबुन लगाने से देह का  मित्र जीवाणु फ्लोरा तो विलुप्तप्राय होता ही है ,साथ ही देह की कुदरती मानुष गंध -फेरोमोंन का भी सफाया हो जाता है ....जो लोगों में परस्पर जैव रासायनिक संचार का एक बहुत ही महत्वपूर्ण जरिया होता है -मनुष्य के पारस्परिक व्यवहार ,आक्रामकता ,प्रेम  सबंध आदि के निर्धारण /नियमन में फेरोमोंन की बड़ी भूमिका है -मगर यहाँ विषयांतर न करके मैं अपने सोप चर्चा पर वापस आता हूँ ...  हाँ तो मुझे एक दूसरा ही साबुन किशोरावस्था से ही बेहद पसंद है ...वह है लिरिल ..लगता है मेरी कोई कंडीशनिंग इसके साथ हो गयी थी जो आज भी अवचेतन में कायम है -मुझे याद है जब मैंने पहले इसे देखा था तो इसके रैपर पर  एक सद्यस्नाता अर्ध वसना नवयौवना का चित्र था ....मुझे सेलिब्रिटी सौन्दर्य नहीं लुभाते ..सौन्दर्य की मेरी अपनी धारणा है ,पैरामीटर और इंडायिसेज हैं -लोग बाग़ हेमा मालिनी पर लहा लोट हो रहे थे और मैंने अपना समस्त सौन्दर्यबोध उसी नवयौवना पर केन्द्रित कर दिया -लिरिल मेरी पहली पसंद बन गया था ....

अब इतना उल जुलूल पढने के बाद आईये इस पोस्ट की हेतु पर -आज ही मैंने लिरिल का नया स्वरुप देखा ..लिरिल २००० जिसमें वह नवयौवना तो नहीं है मगर  एक प्यारा सा परिवार है -पति पत्नी और एक प्यारी सी चुलबुली बिटिया का ..जैसे यह मेरे साथ ही बड़ा होता गया हो बाल बच्चेदार .सोने में सुहागा यह कि इसमें टी ट्री आयल(Tea tree oil, or melaleuca oil,)  मिला हुआ है जो एक जाना माना जर्म रोधी है और यह मुझे किसी और साबुन में नहीं दिखा ..टी ट्री आयल न्यू साउथ वेल्स आस्ट्रेलिया के उत्तरी पूर्वी खाड़ी के क्षेत्रों में पाए जाने वाले देशज पौधे Melaleuca alternifolia,की पत्तियों से प्राप्त होता है और इसमें अद्भुत एंटीसेप्टिक और जर्म रोधी चिकित्सीय  गुण हैं ...इसमें त्वचा सौन्दर्य को टोन अप किये रहने के भी गुणों के दावे होते रहे हैं और अब वैज्ञानिक अध्ययनों से इसके कई त्वचा रोगों में कारगर होने के प्रमाण भी मिल रहे हैं ...यह कई तरह के त्वचा के विषाणु ,जीवाणु गत रोगों ,फफूंद और माईट-स्केबीज (खुजली ) जनित रोगों में प्रभावकारी  पाया गया है ... त्वचा के कुछ विकारों को दूर करने में यह चमत्कारी असर  वाला पाया गया है ...आम के आम गुठलियों के दाम -सौन्दर्य प्रसाधन भी और त्वचा की मुकम्मल सुरक्षा भी ..मैंने एक साथ चार  लिरिल 2000 ले लिया (तीन के साथ एक मुफ्त ) ..आप भी एक ट्राई कर सकते हैं ....


गुरुवार, 16 सितंबर 2010

बदनाम नहीं ,झंडू बाम लगी मुन्नी -पैसे वसूल !

अभी अभी लौटा हूँ मुन्नी बदनाम अर्रर दबंग को देखकर -धर्मपत्नी की जिद पर और कुछ अपनी क्यूरियासिटी के चलते ..मुझे आज तक नहीं पता कि पत्नी जी ने कभी भी किसी फिल्म को देखने की इतनी इच्छा दिखायी हो -मुझे भी यह लक्ष्मी --इच्छा  देखकर पता नहीं कुछ कुछ स्ट्रेंज सा लग रहा था तो आज टिकिट मंगा ही लिए मुन्नी बदनाम के दीदार के लिए ...आखिर गृह मंत्रालय की उपेक्षा की भी तो नहीं जा सकती ...मैंने जब यह खबर उन्हें सुनायी तो दोपहर के खाने की चिंता छोड़ तुरंत तैयार हो गयीं सिनेमा गृह आने के लिए ...मैंने भी आज अपना लंच मुन्नी पर कुर्बान  कर दिया -दोपहर का शो था और लंच करने का मतलब फिल्म छूटती - मुन्नी की बदनामी का चश्मदीद  बनने की ललक ने लंच छुडवा ही दिया ....वह तो हम रोज ही करते हैं ..मुन्नी बार बार कहाँ बदनाम होते दिखती है -कुछ मत पूछिए बस इसी एक गाने से फिल्मबाजों की बोलचाल में कहें तो पैसा वसूल हो गया ...मैंने शायद   पहली बार शिद्दत से महसूस किया कि आखिर पैसा वसूल होना किसे कहते हैं -पहले ऐसी शब्दावली बोलने वालों को मैं हेय  नजर से देखता था ...अनकल्चर्ड भदेस लोग - -जो ऐसा बोलते हैं- -लेकिन आज सचमुच लगा कि पैसा वसूल होने का अर्थ क्या  है -अब मुझसे भाष्य मत कराईये खुद देख आईये न ! 

 मुन्नी बदनाम ....
मुन्नी ने आते आते देर तो बहुत की मगर इंटरवल के बाद आते ही छा ही गयी - सारा हाल जो पहले से ही 'हाउस फुल' था लगा कि एक हुजूम का हिस्सा हो गया है ...फिराक ने अपनी माशूका को कहा था -वो जुलूसे जिन्दगी होके निकलती है ..सच मानिए परदे पर अचानक  ही अवतरित हुई मलाईका जूलूसे जिन्दगी ही बनकर ही जलवा फरोस हुईं -और अपने टैलेंट और मेहनत का लोहा मनवा दिया ...आम पब्लिक अपने जीवन के बिम्बों ,रोजमर्रा के लटको झटकों में ही मनोरंजन को ढूंढती है ....और इस आईटम डांस में इन सभी पहलुओं का समुच्चय  कर  निर्देशक /कोरियोग्राफर ने समाँ  बाँध दिया ...कनखियों से देखा श्रीमती जी अनिर्वचनीय आनंद  में किलक रही थीं -बरबस ही होठों पर मुस्कराहट तिर आई -पैसा सामने वसूल होता दिख रहा था .....और हाय रे तभी दबंग -सलमान खान ने मुन्नी को परे ढकेल कर कमान फिर अपने हाथों में ले लिया -जो शुरू से उन्ही की हाथ में थी -बस मुन्नी ने थोड़ी देर के लिए मानो  उनसे झपट लिया था ...अमिया से आम हुई सुनते ही मुझे सतीश भाई और किसी और की भी याद भी हो आई -क्यों ? यह जानने के लिए सतीश भाई का प्रोफाईल फुरसत में पढ़ लीजियेगा .

.... और दो दबंग 
अब देखिये हम कौनो पेड़ या पेशेवर फिल्म समीक्षक नहीं हैं बस इतना बता देते हैं  कि थोड़ी देर लाईट मूड में होने और केवल मनोरंजन के लिहाज से दबंग देख आईयेगा तो पैसे वसूल हो जायेगें ....यह पूरी फिल्म ही सलमान खान एंड फैमिली के टैलेंट प्रदर्शन का एक शो था और इसमें वे सफल हुए हैं -बाकी के कलाकार भी अच्छे हैं -हिरोईन प्रधान फिल्म न होने के कारण इसमें उसका कोई ख़ास रोल न होने के बावजूद वह सुन्दर लगती है ...अब उसका नाम क्या है मैंने ध्यान नहीं दिया -किसी ने कहा कि शत्रुघ्न सिन्हा की पुत्री है ...अरे हाँ, सोनाक्षी सिन्हा , उसमें टैलेंट तो लगा लेकिन सलमान खान को ही फिल्म फोकस करती रही .बाकी  अपने जमाने के एक से एक बड़े कलाकार इसमें दिखते हैं -अनुपम खेर ,ओमपुरी ,विनोद खन्ना,डिम्पल कपाडिया  आदि मगर लगता है जैसे उनसे हाथ जोड जोड कर  पहले ही विनती कर ली गयी हो कि भैया यह सल्लू मियाँ की फिलम है तनिक  अपना टैलेंटवा दबाकर रखियेगा ...बस विलेन की छोड़ दी जाय तो किसी भी दूसरे अभिनता को फिल्म में उभरने नहीं दिया गया है -क्योंकि शायद  यह पक्का विश्वास था कि सल्लू अकेले इसकी नैया पार लगा देगें और उन्होंने खूब जम के नाव खेई भी है -बोरियत तो फटकी ही नहीं भले ही सल्लू मियाँ की देह यष्टि और उनकी अजीब गरीब हरकतें बकवास सी (केवल मुझे ) लगती रही हों !

तो मन मसोस कर बैठे न रहिये ,जाईये दबंग और मुन्नी का बदनाम हुलिया देख आईये ...झंडू बाम की सी राहत  देती हैं मलाईका ! गाने भी अच्छे है -जुबान पर सहज ही चढ़ जाते हैं ....तेरे मस्त मस्त दो नैंन ....और एक तो बच्चों से ठिठोली करने के लिए हुड हुड  दबंग जैसा कुछ है ...पूरा एन्टरमेंट का इंतजाम है ...हाँ बौद्धिक बन के मत जाईयेगा देखने इसे -उसे हाल के बाहर ही छोड़ दीजियेगा तभी असली आनंद उठा पाईयेगा  पब्लिक के साथ ....

दबंग -
मुख्य कलाकार : सलमान खान, सोनाक्षी सिन्हा, सोनू सूद, अरबाज खान, माही गिल, विनोद खन्ना, डिंपल कपाडि़या, महेश मांजरेकर आदि।
निर्देशक : अभिनव सिंह कश्यप
तकनीकी टीम : निर्माता-अरबाज खान, मलाइका अरोरा खान, ढिल्लन मेहता, कथा-पटकथा-अभिनव सिंह कश्यप, दिलीप शुक्ला, गीत-फैज अनवर, जलीस शरवानी, ललित पंडित, संगीत-साजिद-वाजिद



आईये अपनी अपनी जातियों का गौरव गान करें !

हिन्दू समाज का जिन बातों ने सबसे ज्यादा अहित किया है उनमें जाति पाति की भावना एक है .आज जाति पाति की भावना सभ्य समाज का एक सबसे बड़ा कोढ़ है और दुःख की बात यह है कि यह भावना कथित ऊंची जातियों में ज्यादा बलवती दिखती है .मैंने एक ब्लॉग  आलेख पढ़ा जिसमें जाति बोध से प्रेरित होने के कारण  यह बताने का प्रयास किया गया कि भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद, महान धर्मवेत्ता और दार्शनिक विवेकानन्द आदि महापुरुष कायस्थ थे...मैंने वहां यह टिप्पणी की -

"महापुरुषों को किसी जाति की श्रेणी में रखना उचित नहीं है .जातियां महापुरुषों से हो सकती हैं मगर महापुरुष किसी जाति के नहीं ....." (स्मृति के आधार पर )..मुझे दुःख हुआ कि मेरी टिप्पणी प्रकाशित न कर मुझे पूर्वाग्रही माना गया ..हाँ कई दूसरे सुधी टिप्पणीकारों ने जब इस ओर संकेत किया तो मुझे अपनी धारणा पर स्थिर रहने का बल मिला ..."

वैसे तो ब्लॉग लेखन ब्लॉग स्वामी को अपने मन  का कुछ भी लिखने का छूट प्रदान करता है मगर सार्वजनिक लेखन में कुछ सामाजिक सरोकारों को ध्यान में रखना होगा ...आज हिन्दी  ब्लॉग लेखन धर्म ,सम्प्रदाय और अब जाति आह्वान की ओर उन्मुख होता दिख रहा है -इसके अंतर्निहित कारण हो सकते हैं -चलो स्वजाति -प्रेरण से और कुछ नहीं तो कुछ टिप्पणियाँ ,कुछ सहानुभूति और कुछ जाति  समर्थित  दबदबा भी कायम  हो ही जायेगा ....यह सचमुच दुखद है कि समाज में आज भी कई ऐसे आर्थोडाक्स बुद्धिजीवी मिल जायेगें जो अपने जाति बोध से निकल नहीं पाए हैं -मैं राजनीति के घिनौनेपन की तो बात ही नहीं कर रहा -मैं कुछ और लोगों की बात कर रहा हूँ जो जिम्मेदार पदों पर हैं ,अच्छा ख़ासा पढ़े लिखे हैं मगर अपनी जाति व्यामोह से उबर नहीं पा रहे हैं ..वे कहते हैं कि चाणक्य ब्राह्मण था ..फला फला ऋषि मुनि जिनकी हम संतानें हैं और जिनसे हमारे गोत्र बने हैं ब्राह्मण थे......मैं उनसे पूछता हूँ महाकाव्यों, पुराणों के संकलनकर्ता वाल्मीकि -वेदव्यास क्या थे? तो वे बगले झाँकने लगते हैं! हरिवंश राय बच्चन भले ही कायस्थ के घर पैदा हुए थे मगर उनके 'आचरण' तो ब्राहमण के रहे (ब्राह्मण का अर्थ है जो लोगों के मोहजनित अज्ञान को दूर करे ) ....उन्होंने पंजाबी भद्र महिला से शादी की और परिवार को एक ऐसा संस्कार दिया कि आज अमिताभ बच्चन यह नहीं मानते कि वे किसी जाति से सम्बन्धित हैं -उनका पूरा परिवार एक आदर्श भारतीय परिवार है ...

ब्लॉग जगत में जाति आह्वान और जाति वंशावली /विरुदावली यहाँ पहले से ही बढ रहे अलगाववाद और वैषम्य को और बढ़ा देगी -शायद ही कोई कथित जाति हो जिनमें महापुरुषों ने आँखे न खोली हो ..राजा राम तो ठाकुर ही थे,कृष्ण यादव और कितने ही हमारे महान आर्ष ग्रन्थों के रचनाकार शूद्र! फिर क्या बात बनी ? हम इससे क्या साबित करेगें ? मुझे दुःख है कि कई महानुभावों ने ब्लॉग लेखिका को किन्ही निहित कारणों से यह आश्वश्त किया कि उस पोस्ट से जाति की बिल्कुल बू नहीं आ रही है ..मैं सोचता हूँ जो व्यक्ति जाति पाति से ऊपर उठ कर अपने समाजिक सरोकारों को नहीं निभाता वह एक अच्छा नागरिक नहीं है .और उस पर मुगालता यह कि वे समाज की सेवा करने को तत्पर हैं ... आज तक के मेरे लम्बे सामाजिक जीवन में कई लोगों ने मुझसे ब्राहमण होने की दुहाई देकर  छोटे मोटे लाभ अर्जित करना चाहा है मैंने उन्हें खूब लताड़ा है -मुझे कितने ब्राह्मणों को कहना पड़ा है कि मात्र ब्राह्मण के यहाँ जन्म लेने से कोई ब्राहमण नहीं हो जाता न तो केवल जनेऊ धारण  करने और लम्बी  चुटिया  रख लेने से ..चुटिया रखने वाले विद्वानों को मैं हंसी मजाक में चोटी का विद्वान् कहता हूँ -

हमें जाति पाति को नहीं बल्कि व्यक्ति को महत्व /सम्मान देने का संस्कार बच्चों को देना चाहिए ....मुझे गर्व है कि मैं और मेरा परिवार जाति पाति में विश्वास नहीं रखता यद्यपि इस भावना से हमेशा पीड़ित प्रताड़ित भी होता आया है ...जाति से ऊपर उठिए मित्रों ......

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

प्रति टिप्पणी रूपये दस दान !

मेरे लिए तो हर दिन हर रात 'हिदी दिवस ' होता है और इसलिए मैं इस पर कोई न तो कर्मकांड आयोजित करता हूँ और न ही ऐसे किसी अनुष्ठान में भाग लेता हूँ -हाँ ,आज हा हिन्दी हा  हिन्दी हहाती  अनेक पोस्ट पढ़  ली हैं और कुछ उम्दा कवितायेँ भी ...लेकिन इस बीच सतीश पंचम जी के सत्याग्रह ने बहुत विचलित कर रखा है -उन्होंने टिप्पणी बाक्स न खोलने की कसम खा ली है और आज यह ताना भी दिया है कि उन्हें प्रति टिप्पणी रूपये सात की दरकार है -उनके इस आग्रह पर कसके  चुटकीबाजी भी हो रही है ....लेकिन इस पूरे मसले ने एक बहुत जरुरी बहस का आमंत्रण दे दिया है ....मुझे याद है कि  कई नामी गिरामी ब्लॉगर भी अंतर्जाल या ब्लागिंग से कैसे कमाया जाय इसकी जोड तोड़ करते रहते थे/हैं -वे भी जिन्हें गुरुकुल के हिसाब से तो वानप्रस्थ आश्रम में चला जाना चहिए था/है -
हम लोगों में से अधिकाँश उम्रदराज लोग जिन्हें इस गरीब देश के लिहाज से एक अच्छी जिन्दगी की सहूलियतें मिल चुकी हैं जब खुद का अच्छा ख़ासा बैंक बलेंस हो चुकने के बाद भी पैसे के पीछे जीभ  लपलपाते देखे जाते हैं तो मुझे बहुत नागवार लगता है .मैं यह सतीश पंचम जी के लिए नहीं कह रहा हूँ -मैं अमिताभ बच्चन के लिए कह रहा हूँ -एक उस शख्स  जिसके पास आज क्या नहीं है -बंगला गाडी मोटर सब मगर खेती किसानी के लिए उत्तर प्रदेश में गरीब किसानों की जमीन अपने नाम लिखवा रहा है -अभिनय बेचने ,आवाज बेचने और माडलों में अपनी अदायें  बेचने और क्या क्या और बेचने  से भी इस मानुष का मन  नहीं भरा तो अब यह आनाज बेचने पर भी उतारू है ..मुझे आश्चर्य होता है कि ऐसे करोडपति को भी आर्थिक सुरक्षा का भय सताए रहता है ....ऐसे ही अंतर्जाल में कई महानुभाव हैं!  मेरा इशारा  केवल ४०- ५० के ऊपर के लोगों पर है -जो अब सब कुछ किरिया करम करने के बाद अंतर्जाल को अगोर कर बैठ रहे हैं कि ईहाँ से भी पैसे का जुगाड़ हो सकता है .

अब सतीश पंचम जी की तरह   वो युवा तबका जो ब्लॉग जगत में है और उसे जीवन यापन का कोई स्थाई आधार नहीं मिला है ऐसे शगल अपनाता है तो कोई  बात नहीं -उन्हें पैसे की जरूरत भी है और अपनी अर्थकरी बुद्धि को वे निखारना चाहते हैं या ब्लागिंग में अधिक समय न देकर वे अपनी आर्थिक स्वछंदता का उपाय  कर लेना चाहते हैं  तो ठीक बात है -मगर  सतीश जी की आज की पोस्ट जिसमें वे वे प्रति टिप्पणी सात रूपये मांग कर एक इशारा कर रहे हैं कुछ और भी सोचने पर विवश करती है मगर उनसे और उन जैसे अनेक युवा और नव युवा ब्लॉगर (इनर्ट जेंडर ) से मैं बार बार  एक अपील करना चाहता हूँ -हम जानवर नहीं हैं जो धरा पर केवल पेट पूजा और प्रजनन के लिए आये हैं -हम एक सामाजिक प्राणी हैं ,हमारे समाज के प्रति भी उत्तरदायित्व हैं -कुछ काम हमें निस्वार्थ भाव से करने चहिए -अपनी मानसिक संतुष्टि और समाज को कुछ देते रहने की नीयत से भी -ब्लागिंग भी एक ऐसा ही क्षेत्र हो सकता है और हम और आप में से बहुतों के लिए यह है भी .....कम से कम यहाँ से तो उम्र दराज लोग कुछ खाने  कमाने की बगुल दृष्टि से बाज आयें ...

एक उम्रदराज मित्र ने मुझसे कहा कि यार भागते भूत की लंगोटी ही सही -जो कुछ भी झटक उठेगा तो इसमें हर्ज ही क्या है ? मैंने पूछा ..... तो क्या आप इसलिए ही ब्लागिंग में हैं ? -उन्होंने ईमानदारी से कहा कि और क्या ,यहाँ हरिभजन के लिए तो आये नहीं..इसलिए आपने देखा कि मैं किसी भी विवाद में नहीं पड़ता -मेरा लक्ष्य बस अर्जुन  की चिड़िया की आँख हैं -मैंने कपार पीट लिया ...अब ऐसे लोगों के लिए क्या किया जाय -धरती माँ इनके बोझ से चीत्कार तो कर ही रही है -मेरे जैसा अदना आदमी भी ऐसे लोग और नीयत देखकर व्यथित मन  हो उठता है ..

क्या हम ब्लागिंग को केवल ब्लागिंग के मकसद से नहीं कर सकते -ब्लागिंग फार ब्लागिंग सेक ....अब इससे क्या पैसा कमाने की नीयत रखना ...क्या पैसा बनाने के दूसरे वैध अवैध तरीके खारिज हो चुके ...? शेयर ,स्मगलिंग ,वैश्यावृत्ति ,आदि अनादि ..
..मैं अब अगर यह लिख दूं कि मैं आज की पोस्ट पर प्रति टिप्पणी रूपये दस दान  दूंगा तो क्या ऐसे भलमानस यहाँ   टिप्पणियों को संख्या बढ़ा  देगें ? आईये आज यही देखते हैं ? अपनी टिप्पणी में यह जरूर जिक्र कर दें कि आप इस टिप्पणी दान आह्वान से प्रेरित हैं ....मैं पैसे की जुगाड़ करता हूँ -हाँ बिना इस आह्वान का हिस्सा बने भी आपकी टिप्पणियों का स्वागत है ....उन पर टिप्पणी दान शब्द न लिखें :)

शनिवार, 11 सितंबर 2010

ये क्या हुआ ? कब हुआ ?? जब हुआ तब हुआ ?? कुछ न पूछो!

आज सतीश पंचम ने टिप्पणियों का आप्शन बंद  कर दिया .बीते दिनों एक धुंआधार  ब्लॉगर मोहतरमा ने टिप्पणी के दरवाजे धडाम से बंद कर लिए -मनुहार करने वालों की कतार में मैं भी था ....बहरहाल वे मान  गयीं ..जैसे मानने के लिए  ही टिप्पणी बक्सा बंद कर रखा था -प्रत्यक्ष मान मनौअल और अप्रत्यक्ष किरिया कसम जो भी हुआ हो जैसे भड़ाक से दरवाजे बंद कर दिए थे वैसे ही कपाटों को अनावृत कर दिया -ब्लॉग कालिदासों के चीत्कार -अनावृतम कपाटम द्वारं देहि पर आखिर किसी पाषाण हृदया का ही दिल न पसीजता ....फिर ये घटनाएं बीच बीच में दुहराई जाने लगीं जैसे लोग बाग़ अपने फैन बिरादरी की टोह ले रहे हों कि वह कितनी मजबूत है ,मौका बेमौका काम भी आयेगी या नहीं ..

इसी बीच एक दिन ज्ञानदत्त जी ने टिप्पणी बाक्स पर ताला लटका दिया .... -मैंने उन्हें लिखा ,यह भी खूब रही जबरा मारे और रोवे न दे ....बहरहाल उन्होंने भी टिप्पणी आप्शन बहाल कर दिया -पिछले दिनों अनुज गिरिजेश जी ने भी ऐसी ही एक घुडकी दे डाली कि टिप्पणी मत करियेगा टिप्पणीकारों ! और मजे की बात कि खुला टिप्पणी बक्सा ललचा  ललचा कर कह रहा था टिप्पणी करने को -वहां हम भी टीप आये ...हम तो ई बड्कों बडको की बात कर रहे हैं -इस बीच बिचारे कितने नए ब्लॉगर आये और टिप्पणी रूपी  प्रोत्साहन के अभाव में दम तोड़ गए -कोई मर्सिया भी नहीं हुआ और यहाँ टिप्पणी दान न लेने का आह्वान हो रहा है ...

कानून जानने पढने वाले एक जुमला अक्सर उछालते रहते हैं ....अल्टेरियर मोटिव का ..मतलब जो बात प्रत्यक्ष  कही जा रही है या दिख रही है उसका हेतु  कुछ और है -उन मोहतरमा ,ज्ञान जी या अब मेरे अभिन्न मित्र सतीश जी वह बात नहीं बोल रहे थे  /हैं जो असली बात थी /है बल्कि उसकी जगह लेप लपेट कर जाहिराना तौर पर कोई और बात सामने लाये थे /हैं . कम से कम इसी बहाने अपनी वक्तृता क्षमता का भी आकलन हो जाता है .... ज्ञान जी अभी भी स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं उनकी बात समझी जा सकती हैं मगर इन युवाओं को क्या हो गया है -वह कौन सी बात है जो इन्हें बर्र की डंक की तरह बेंध गयी है या टिप्पणियों से इनका मोहभंग कर रही है ? कारणों को तलाशा जांना  चाहिए ..

मुझे भी इन दिनों कुछ ऐसा लगा बल्कि आज ही ..कि लोग या तो ब्लॉग पढना कम कर रहे हैं या फिर ईमानदारी से टिप्पणियाँ न देकर पक्षपात कर रहे हैं -जिसके कई कारण हो सकते हैं -टिप्पणीकार समदर्शी नहीं रहे ....ब्लॉगर तो खैर समदर्शी होता ही नहीं -होता तो फिर ब्लॉग क्यों लिखता ...शायद  हम सभी कुछ बातों  को जान समझ रहे हैं मगर कहना नहीं चाहते ..अब कहना हम भी नहीं चाहते ..कोई शहीद होने का इरादा अब नहीं मेरा ..काफी कुछ मोहभंग मेरा  भी हुआ है ..मगर एक बात जरूर कहूँगा जीवन में कुछ संतुलन और उत्तरदायित्व बोध तो रखना ही होगा नहीं तो यह जीवन कितना निरर्थक ,निस्तेज सा ही नहीं हो जाएगा ...?

मुझे लगता है कि जब आपसे  कोई ब्लाग खुद को पूरा पढवा ले ..तब वह टिप्पणी डिजर्व कर जाता है ..फिर अपने कर्तव्य से आप च्युत क्यों हों ..मैंने वहां टिप्पणियाँ बंद कर दीं जहां वे कम से कम तीन बार माडरेट कर रोक ली गयीं ....जाहिर है ब्लॉग स्वामी नहीं चाहता कि मैं वहां अपनी टिप्पणी करुँ -और उसके निर्णय के सम्मान में मैंने टिप्पणी बंद कर दी ..मगर ध्यान रहे ब्लॉग विचार विमर्श के माध्यम हैं ,चर्चा परिचर्चा के फोरम हैं -यह ब्लागों  की मूल प्रकृति है -यदि हम इस मुक्त चिंतन प्रवाह और उसकी विचार सरणियों को बंद कर रहे हैं तो समझिये सरस्वती का अपमान सा कुछ कर रहे हैं - सिर धुन गिरा लाग पछताना जैसा ही ...

ब्लॉग पर लिखते जाना और टिप्पणी का आप्शन बंद कर देना किसी तानाशाही से कम नहीं है ..संवाद का गला घोटना है ...उस देश में जहाँ संवादों का एक भरा पूरा इतिहास पुराण रहा है ...गिनाऊ क्या ? परशुराम -लक्ष्मण संवाद ,अंगद -रावण संवाद ,हनुमान रावण संवाद ----संवादों पर पहरा मत लगाओ हे  मित्रों .....इतिहास को जानो पहचानो ......


शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

नार्सिसस की दर्दीली दास्तान और नर्गिस का फूल !

फेसबुक पर आज मेरी एक पूर्व परिचिता डॉ .तरलिका त्रिवेदी जो मूलतः  गुजराती भद्र महिला और विज्ञान कथाओं की प्रेमी हैं ने नार्सिसस की दुखद दास्तान का जिक्र किया है -नार्सिसस  एक सुन्दर यूनानी युवक  की मिथक कथा है. वह बहुत सुन्दर है  किन्तु खुद पर सहज ही मोहित होने वाली कन्याओं का तिरस्कार उपेक्षा करता रहता है .आखिर प्रतिशोध की देवी नेमेसिस  ने उसे  सबक सिखाने का मन बनाया -उसे प्रेरित किया गया कि वह सघन जंगल के एक मनोरम झील  की ओर जाय ,वहां पहुँच कर नार्सिसस  ने अपना मुंह उस झील  में निहारा तो अपना चेहरा देख उसे खुद अपने से ही प्रेम -आत्मासक्ति हो गयी ,वह फिर बार बार उसी झील  में अपना मुंह देखने को आतुर रहने लगा और एक दिन दुर्घटना का शिकार होकर उसी में गिरकर जांन  गँवा बैठा -वह जिस जगह गिरा था वहीं मानो  सरोवर की वेदना एक फूल के रूप में मूर्तिमान हो उठी -  नार्सिसस का फूल!  .इस कथा के कई और प्रतिरूप हैं -मगर आज जो उद्धरण तरलिका  जी ने दिया है वह बहुत रोचक है -
कहानी यूं आगे बढ़ती है -नार्सिसस  की अकाल  मौत से दुखी वनदेवी झील के पास आयीं और उन्होंने पाया कि  कभी मीठे जल की स्रोत रही झील अब आंसुओं के  खारे पानी में तब्दील हो गयी है -
"तुम क्यों रो  रही हो? " झील से वनदेवी ने पूछा.
"ओह उसी नार्सिसस  की याद में ..." झील का जवाब आया .
"आखिर तुम्हे दुःख क्यूं न हो ..वह सब कुछ छोड़ केवल तुम्हारे  पास ही तो आता था  ..एक तुम्ही तो थी जो उसकी अतुलनीय सुन्दरता का सामीप्य पा सकी  थी ...आखिर तुम्हे फिर दुःख क्यों न हो ..." वनदेवी ने सांत्वना  भरे शब्द कहे ..
"..लेकिन .....क्या नार्सिसस सुन्दर था ? झील के स्वर में किंचित विस्मय था ..
"आखिर यह तुमसे बेहतर और कौन जान सकता है ? " ... अब चौकने की बारी थी बनदेवी की ..
कुछ क्षण नीरवता छाई रही ..झील चुप थी ..आखिर  कह ही पडी ...
"मैं नार्सिसस  के लिए रो जरूर रही हूँ मगर मैंने कभी यह ध्यान ही नहीं दिया  कि वह सुन्दर था ...मैं तो इसलिए उसकी याद कर रो रही हूँ कि जब भी वह नीचे झुक कर मुझमें अपना चेहरा निकट से निहारता था तो उसकी आँखों की गहराई  में मैं खुद अपना छवि देख देख कर निहाल हो जाती थी ...
.....................................
कितनी अजीब सी और दुखांत कथा है न ...जो यह भी इंगित करती है कि सुन्दरता तो देखने वाले की निगाह में कैद हो रहती है -झील का दुर्भाग्य (या सौभाग्य यह आप निर्णीत करें ) कि वह निकटस्थ नार्सिसस  का सौन्दर्यपान नहीं कर सकी -इतना आत्मकेंद्रित थी वह और वैसा ही हतभाग्य था नार्सिसस  जो  खुद के अलावा किसी और का सौन्दर्य नहीं सराहता था  -इस बेरुखी और अनमनेपन से एक दुखांत कथा जनम  गयी ...कहीं कहीं हम भी इसी तरह के  आत्मकेंद्रण का शिकार हो समूचा जीवन निष्फल कर जाते हैं ..खैर .....

बात केवल इतनी ही नहीं थी जो मेरी इस पोस्ट का हेतु बनी -पूरी कहानी  पढ़ते पढ़ते मुझे नर्गिस के फूल की याद आई और मुझे लगा कि कहीं न कहीं नार्सिसस  का   नर्गिस के फूल से कोई सम्बन्ध जरूर है ..और यह बात सच है ....अपनी इस खोज पर मैं अभिभूत हूँ ..कोई गलत तो नहीं .....! अल्लामा मुहम्मद इकबाल ने   यह पूरी दास्तान जरूर पढी होगी -और उनके मन  में नर्गिस के अभिशप्त फूल (नार्सिसस की अंतिम परिणति ) की याद रही होगी -
 नर्गिसी सौन्दर्य :अभिशप्त या प्रशंसित ? (इस लिंक पर कुछ और नर्गिसी सौन्दर्य का पान करें )

जिसे शायद  अपने पूर्व जीवन में   सौन्दर्य के प्रति बेरुखी और आत्मरति का चिरन्तन पश्चाताप है -

"हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा'' 

(सौजन्य :बेनामी )
यह शायद उसे प्रतिशोध की देवी का शाप है -ज्यादातर लोगों द्वारा न देखे जाने का -प्रशंसित न किये जाने का ..मैंने  भी नर्गिस का फूल नहीं देखा मगर यह होता खूबसूरत है ...मगर प्रशंसक  बाहुल्यता  से वंचित है .....मैं यह कथा तब नहीं जानता था जब मैंने पहली बार इस शेर की  व्याख्या के लिए ब्लॉगजगत को क्लांत किया  था -खूब चर्चा हुई थी तब  यहाँ वहां ..और वहां यहाँ आज उसी चर्चा का एक और पहलू जुड़ रहा है और मेरा दिल बाग़ बाग है ..समय मिले तो पूरी चर्चा का आनन्द उठायें और फिर आज की इस पोस्ट को दुबारा पढ़ें :) 

बुधवार, 8 सितंबर 2010

आखिर कौन हैं शिव ?

मर्यादा पुरुषोत्तम राम पर लिखी पोस्ट पर डॉ.दिनेश राय द्विवेदी जी ने अनुरोध किया था कि मैं आदि देव शिव पर कुछ लिखूं -अब बनारस में रहकर अगर भोले बाबा पर कुछ नहीं लिखा तो शायद मेरा बनारस प्रवास निष्फल ही चला जाएगा -बनारस वासी का जीवन तो पूरी तरह  शिवमय और शिव आश्रित है -पुराण कहते हैं कि बनारस नगरी शिव के त्रिशूल पर बसी है .मैं शिव या रूद्र या शंकर पर कुछ भी अकादमीय स्तर का लिखने का अधिकारी नहीं हूँ ..इसलिए विद्वानों को इस लेख ,बल्कि छोटी सी पोस्ट से ज्यादा अपेक्षा नहीं करनी चाहिए -यह विनम्र अनुरोध है.

भारतीय लोकजीवन में जितना शंकर लोकप्रिय हैं उतना कोई भी देवता प्रिय नहीं है .इन्हें आदि देव माना जाता है -अगर हम मिथकों पुराणों से अलग हट कर बात करें तो इस चमत्कारी व्यक्तित्व के उदगम का पता लगाना और भी टेढ़ी खीर हो जाता है .महादेव से जुड़े इतने वृत्तांत ,इतनी जन श्रुतियां हैं कि उनके बीच से इनके असली रूप को निकाल पाना असम्भव सा है .कौन थे शिव -क्या द्रविण मूल का  कोई बहुत प्रभावी ,शक्तिशाली नेतृत्त्व/कोई मसीहा -मगर जन श्रुतियों में तो वे कपूर सरीखे शुभ्र हैं -कर्पूर गौरम .....और रावण जो शिव का अनन्य भक्त है -महा विराट कज्जल गिरि ,काले रंग का  है ...किरातार्जुनीयम के शिव कोई मंगोल से लगते हैं ....जो किरात  भेष में अर्जुन से युद्ध कर उनका दंभ भंग करते हैं ..तो क्या वे आर्य हैं ? गौरवर्ण हैं ,कैलाश वासी हैं मगर फिर वे रावण का साथ क्यों देते हैं -उनके पुत्र कार्तिकेय राम के विरुद्ध रावण की ओर से लड़ने जाते हैं .फिर आखिर कौन हैं शिव ..?

रूद्र आर्यों के प्रमुख सृजन ऋगवेद  के भी कोई प्रमुख देवता नहीं हैं ...सैन्धव सभ्यता में लिंग पूजा की परम्परा थी और इसलिए आर्य लिंग देवो भव कहकर सैन्धव परम्परा का उपहास उड़ाते हैं ...मुझे तो लगता है कि शिव एक सैन्धव हैं -एक लोकनायक ,चक्रवर्ती सैन्धव जिन्होंने पहली बार दक्षिण से लेकर उत्तर तक एक विशाल साम्राज्य तैयार किया और बाहरी यायावरों को रोकने में हिमालय सरीखी  दृढ़ता दिखाई -बिना उनसे सामंजस्य किये तत्कालीन भारत  /सिन्धु प्रदेश /हिंद प्रदेश के किसी भी भू भाग पर कोई अधिपत्य नहीं कर सका -उनके अनुयायी सैन्धव उनकी विजय  ध्वजा आगे भी फहराते रहे - कालांतर में आर्यों /वैष्णवों (?) का प्रवेश हुआ,घोर संघर्ष ,मेल मिलौवल  से  एक मिश्र संस्कृति विकसित हुई -कुछ विचार स्फुलिंग ऐसे भी हैं जो संकेत करते हैं कि तत्कालीन आक्रान्ता  वैष्णव बहुत आक्रामक रहे होंगें और उन्होंने भीषण जन संहार में सैन्धव पुरुषों का समूल नाश ही कर डाला -वे ढूंढ ढूंढ  कर मारे गएँ -उनकी श्याम वर्णी औरतों को वैष्णवों /आर्यों ने अपनाया -मगर उन औरतों की शिव भक्ति -पूजा पद्धतियाँ सब अपरिवर्तित रहीं बल्कि अगली वंशावलियों में उन्होंने सैन्धव संस्कार ही डाले -शिव तिरोहित नहीं हो सके -जनन   प्रजनन के भी उपास्य बने रहे -आज भी भारत में लिंग पूजा  खासकर औरतों में जितनी प्रिय है विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं है -ललही छठ के पर्व पर  लाल कंद को लिंग प्रतीक के तौर पर पूजा जाता है और शिव पार्वती की रति लीला का सांगोपांग  वर्णन औरते करती हैं जहाँ पुरुष प्रवेश वर्जित रहता है ....

चूंकि शिव बहुत प्राचीन देवता हैं इसलिए अत्यंत पुरानी किंवदंतियों /मिथकों के चर्चित चरित्र शिव ही हैं ...वे पुरुष पुरातन हैं . समूचा उत्तर भारत मूलतः शैव है -इसलिए तुलसी को राम की प्रतिष्ठापना में बहुत बुद्धि चातुर्य दिखाना पड़ा ....आज भी जहाँ आधुनिक जीवन शैली /विधि विधानों का संस्पर्श  तक नहीं है शिव का प्रभाव बदस्तूर कायम है ..जन मानस में वे बड़े भोले देवता के रूप में जाने जाते हैं -पूरे बौड़म हैं ,सहज है ,कृपालु हैं ..मगर मजे की बात है कि वे सहसा दूसरा रूप भी धारण  कर लेते  हैं -रौद्र रूप ,तीसरा नेत्र खोल  तांडव नृत्य कर सारी सृष्टि का लय करने पर उद्धत हो जाते हैं  -सुन्दर हैं तो कुरूप भी कम नहीं हैं ... भोगी हैं तो बड़े त्यागी भी हैं -सती तक का परित्याग कर दिया .....लगता है एक लम्बे काल ,कालांतर में शिव के  प्रेमी जन  जो कुछ उच्चतम स्तर का मानव  व्यवहार प्रतिरूप था उनमें आरोपित करते गए अन्य देवता गण से उनकी श्रेष्टता दिखाने के लिए ....हिन्दू त्रिदेवों में वे सृष्टि संहारक है ,विष्णु पालनकर्ता हैं और ब्रह्मा सर्जक हैं -लेकिन जो संहार करता है उसी को पुनर्सृजन का भी श्रेय मिलता है .

शिव  का सबसे प्रिय रूप उनका लोक मंगलकारी रूप है -कहते हैं वे अपने नंदी बैल पर पार्वती के साथ बैठ मृत्युलोक की  सैर करते रहते हैं और जहां भी कोई  दुखिया मिलता है उसकी फ़ौरन मदद करते हैं -पार्वती भी कम दयावान नहीं हैं!इस दम्पति की छवि घर घर के आदर्श दम्पति की छवि है -लोग भोले जैसा वर चाहते हैं और पार्वती जैसी बिटिया ..जरा भोले बाबा के परिवार का एक चित्र देखिये -बैल को पार्वती का सिंह डरा रहा है ..गणेश के चूहे पर सापों की पैनी नजर है ...और सापों पर कार्तिकेय के वाहन  मोर की गृद्ध दृष्टि लगी है -अजीब माहौल है -आपा धापी ,चिल्ल पों और इस बीच निर्विकार भोले बैठे हैं - एक भारतीय परिवार के मुखिया को इससे बढियां सीख कहाँ मिलेगी .


शिव पर जितनी स्तुतियाँ ,स्तवन -प्रार्थनाएं कही लिखी गयी हैं  किसी और देवता पर नहीं -वे कोई साधारण  देवता तो नहीं -महादेव हैं ...देवताओं तक के भी तारण हार ,उनके कष्ट का हलाहल खुद पी लेने वाले महादेव  -एक चुनिन्दा  श्लोक जो शिव आराधना में बचपन से ही याद है लिख कर यह शिवांक आप सब को समर्पित करता हूँ -
                       कल्पान्तक क्रूर  केलिः क्रतु कदनकरःकुंद कर्पूर कांति                      
 कैलाश कूटे कलित कुमुदनी  कामुकः कान्तकायः  
कंकालक्रीडनोंत्कः कलित कलकलः कालकाली कलत्रह 
कालिंदी कालकण्ठः कलयतु कुशलं कोपि कापालिकः कौ

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

अयोध्या में राम को कहाँ खोजें ..

वैसे यह खुद में ही एक बड़ा दुर्भाग्य है कि जन जन के जीवन राम को खुदाई के जरिये साबित करने का राजनीतिक उपक्रम चल रहा है -ज्ञात मानव सभ्यता की महा मूर्खताओं में एक और अध्याय  जुड़ने जा रहा है ...मगर अगर कुंठित और सायास तर्क की भी बात की जाय तो भी हजारों वर्ष पहले जन्में राम के वजूद के अवशेषों को खोजने खोदने के लिए हम सटीक स्थल का निर्धारण   कैसे कर रहे हैं -या प्रश्नगत संरचना के सौ गज तक की जमीन के नीचे ताक झाँक कर हम कैसे कोई निर्णय कर सकते हैं -क्या हम यह कह कर पल्ला झाड सकते हैं कि राम /या राम मंदिर का कोई अवशेष वहां नहीं मिलता ...मुग़ल आक्रान्ता इस देश में कब आये ? राम का वजूद उनसे कितना पुराना है -क्या इन तथ्यों पर सरकारी गैरसरकारी और विधायिका नहीं सोचेगी  ? और क्या हम वहां राम से जुड़े अवशेषों के न होने की बात कहकर अपने दायित्व की इतिश्री कर लेगें तो कोटि कोटि जनता  यह मान  जायेगी ? 

चलिए हम थोड़ी देर के लिए पुरा इतिहास और पुरातत्व की कार्यविधि की भी बात कर लें ....पश्चिमी शिक्षा की पद्धति में शिक्षित भारतीय मनीषा एक कथित वस्तुनिष्ठ तरीके से अपना काम करने को निष्णात है -वह लोक एवं अंतर्साक्ष्यों पर ध्यान ही नहीं देती ..महाकाव्यों में अयोध्या के नगर वासियों के राम के साथ ही जलसमाधि लेने का उल्लेख है -कोई नहीं बचा था ....जब मैंने  पहली बार अयोध्या जाकर गुप्तार घाट से सरयू का विशाल पाट और जलस्तर देखा तो स्तब्ध रह गया -दूसरी ओर का तट/किनारा  ही दृश्य सीमा में नहीं आ रहा था -बताया गया कि सरयू अपना स्थान परिवर्तन करते रहने के कारण कुख्यात हैं ...और विगत की कई  स्मृतियाँ हैं जब सरयू ने अपार जन धन की  हानि की है -तभी मेरे दिमाग में एक विचार स्फुलिंग निर्गमित हुआ था कि राम की अयोध्या को तो सरजू ही लील गयीं होंगी -अब बात भगवान राम की थी तो यह कैसे माना भी जा सकता है कि  चौदहों भुवनो के स्वामी सरयू को नियंत्रित नहीं कर सके -भक्तजनों/कवियों को अपने उपास्य का यह पराभव भला कैसे स्वीकार होता ... लिहाजा राम और उनकी प्रजा के जल समाधि का कथानक बुना गया और जन स्मृतियों में आज वही शेष है -वाल्मीकि रामायण में और राम चरित मानस में भी राम के इस अनुपम चरित की चर्चा है .
 क्या यही है पुराणोक्त अयोध्या  ??

मेरी यह अन्तश्चेतना (गट फीलिंग ) / 'हायिपोथेसिस ' है कि सरयू की विकराल बाढ़ में समूची अयोध्या डूब गयी थी और कालांतर में उसे बदले स्थान पर -तत्स्थाने नहीं ,बसाया गया ...और पुरानी अयोध्या पर 'पुरातत्व' की परते चढ़ती गयीं और आज वह अदृश्य है -उसकी खोज होनी चाहिए ..और वही राम की नागर संस्कृति के अवशेष मिलेगें -आज की अयोध्या जहाँ है वहां कोई भी ठोस साक्ष्य नहीं मिलने वाला -जितना भी जोर लगा ले ....अगर मिलता भी है तो विवादपूर्ण ही होगा ,पर्याप्त नहीं होगा ...

महान देश के बुद्धिजीवियों कभी तो सहज बुद्धि से काम निकाला कीजिये ...

रविवार, 5 सितंबर 2010

मानस का बोनस -श्रृंखला का समापन!

अन्यान्य सांसारिक कारणों से यह श्रृंखला अधूरी  रह गयी थी -सो वन्दे  वाणी विनायकौ के आह्वान से इसे पूरी करने का संकल्प ले रहा हूँ ...मानस में तुलसी दास जी ने बालकाण्ड के पहले श्लोक में ही ..मंगलानाम च कर्तारौ वन्दे वाणी विनायकौ कहकर एक नई परम्परा का सूत्रपात कर दिया  - लोक जीवन में गणेश ही प्रथम पूजा के अधिकारी रहे हैं -आज भी किसी भी शुभ काम के लिए श्री गणेशाय नमः लिखने की आम परम्परा है .अब तुलसी का बुद्धि चातुर्य देखिये कि उन्होंने वन्दे विनायकौ ही न कहकर वन्दे वाणी विनायकौ कहा और बुद्धि विद्या की अधिष्टात्री  माँ सरस्वती के प्रति अपना समर्पण व्यक्त किया -तुलसी की कृतज्ञता और विनम्रता की सानी कवि जगत में  कहीं और नहीं मिलती ...सकल कला सब विद्या हीनू  कहने वाला कवि एक कालजयी कृति की रचना  कर बैठता है ..

.अब गुरु के प्रति ही उनकी विनम्रता देखिये ..बंदऊं  गुरु पद पदुम परागा सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ...वे गुरु की चरण धूलि के प्रति भी सहज अनुरागी  हैं ...उसे पराग कणों का दर्जा देते हैं ....वे गुरु का दर्जा सब लोकों से ऊपर रखते हैं ,अलौकिक मानते हैं ...और जब धरती पर उतरते हैं तो कहते हैं -बंदऊं प्रथम महीसुर चरना मतलब धरती के देवताओं में सर्वप्रथम ब्राह्मणों की वंदना करते हैं .मगर कौन ब्राह्मण ? कहते हैं -मोह जनित संशय सब हरना -ब्राह्मण की इतनी सुन्दर और सुस्पष्ट परिभाषा मुझे कही और नहीं मिलती -मतलब हम जब तक खुद ही नहीं वरन दूसरों के  मोह से उत्पन्न शंकाओं का  समाधान करने में समर्थ न हो जायं ब्राह्मण कहलाने के योग्य नहीं है ..अर्थात ब्राह्मण जन्म से नहीं मोह जनित संशय सब हरना-  इस क्षमता से युक्त होने पर होता है ...कर्म से होता है ....यही  ब्राह्मण होने की कसौटी है ...मैं सोचता हूँ कि यह कितना बड़ा मानदंड रख गए बाबा -इस पर कितने ब्राह्मण   खरे उतरते हैं आज? मेरी तरह  कितने ही  जन्मना ब्राह्मण  धरा पर  आये और गए ..मगर 'तुलसी के ब्राहमण' नहीं हो पाए ...केवल बाबा स्वयं ही उस पर खरे उतरते दीखते हैं ....

तुलसी के मानस का पारायण जीवन को सार्थकता देने का एक सहज उपाय है मगर इसमें सहज रूचि ही नहीं हो पाती लोगों की ..इसका रोचक वर्णन तुलसी ने बालकाण्ड में  किया है -मानस पाठ पारायण की कई बाधाएं हैं और जिन्हें इसमें रूचि नहीं है वे इसके पाठारंभ से ही नीद के वश हो जाते हैं ..कोई अद्भुत प्रेरणा ही है जो लोगों में मानस के प्रति प्रेम जगाती है ...बहुतेरे जीवन भर इस महान ग्रन्थ से कन्नी ही काटते रह जाते हैं ...और जीवन की  एक सार्थक सच्चिदानंद  अनुभूति से वंचित रह जाते हैं ...

मानस की प्रस्तावना चकित भी करती है और गहरे  प्रभावित भी ...तुलसी बाबा ने शुरू में ही संदर्भ ,कथा का हेतु,कृतज्ञता  ज्ञापन  आदि पर विस्तार से लेखनी चलाई है -चकित इस लिए होना पढता है कि उन्होंने इस ग्रन्थ की रचना के पूर्व समग्र उपलब्ध साहित्य का बहुत विशद अध्ययन किया है ,संत समागम किया है ....खल वंदना तो बालकाण्ड का एक अद्भुत आकर्षण है ...खल वह जो बिना ही प्रयोजन के अपने हित करने वाले के भी प्रतिकूल आचरण करता है ..उन्होंने ऐसे लोगों की वंदना की है ...मगर यह भी जोड़ने से नहीं हिचके .बायस पलिहीं  अति अनुरागा होहिं निरामिष कबहूँ न कागा -अब सोने के पिजड़े में बड़े ही प्यार से पाला गया कौआ साथी चिड़ियों का  भक्षण थोड़े ही छोड़ देगा...संत असंत की तुलना करते हुए वे कहते हैं -बिछुरत एक प्राण हरि लेहीं मिळत एक दुःख दारुण देहीं ...लेकिन वे इन लोगों को दोष से बरी भी कर देते हैं -विधि प्रपंचु गुन अवगुण साना ..मतलब विधाता ने ही इस संसार को गुन अवगुण दोनों को साथ मिलाकर रचा है -भलो भलायिहिं पै लहईं लहईं निचाहहीं नीचु -भले भलों की ओर आकर्षित होते हैं ..नीच, नीच/नीचता  की ही ओर ..मगर अंततः सभी को राममय जानकर उनकी बंदना करते हैं ..कैसी उदार और व्यापक दृष्टि है तुलसी की ...जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि,बंदऊँ सबके पद कमल सदा जोर जुग पानि ..

उनकी अतिशय विनम्रता के पग पग पर दर्शन होते हैं -कबि न होऊँ नहि बचन प्रवीनू सकल कला सब विद्या हीनू .....एक संशय उनके मन में बना ही रहता है जैसे असहाय होकर कहते हैं पैहहिं सुख सुन सुजन सब खल करिहैं उपहास ....उन्होंने दुष्ट अच्छे लोग ,संत असंत के इतने पहचान के चिह्न दे दिए हैं कि आज भी समाज में उनके जरिये आसानी से इनकी पहचान हो सकती है ...मानस के प्रणयन को यद्यपि उन्होंने स्वान्तः सुखाय बताया है - रचना की सोदेश्यता की बहस पर अपनी छीछालेदर करवाने का निवारण  कर दिया यह घोषित करके .....मगर मानस प्रेमी यह जानता है कि राम कथा जग मंगल हेतू और कीरति भनिति भूति भल सोई सुरसरि सम सब कर हित होई -मतलब रचना तो समाज के हित के लिए ही होनी चाहिए ...

एक पोस्ट के इस छोटे से आलेख में मानस समुद्र की कुछ रस बूंदे ही यहाँ टपक पाई हैं ...अब केवल इस ग्रन्थ के नामकरण पर प्रकाश डाल कर आज विदा लूँगा ! तुलसी कहते हैं राम चरित मानस यहिं नामा ..जिसे रचि महेश निज मानस(ह्रदय)  राखा ..और सुसमय पाकर पार्वती के समक्ष  इस कथा को वे प्रगट करते हैं ..ताते रामचरित मानस बर  ....इसका रूपक मानस सरोवर (मान  सरोवर ) का है जिसकी सात सुन्दर सीढियां(काण्ड )  है जिससे उतर कर ही फिर मानस अवगाहन का सुअवसर मिल पाता है ...मानस के पात्रों ,परिवार समाज के आदर्श ,राजा प्रजा के आत्मीय सम्बन्ध ,राम का सर्वस्व  त्याग, राम भारत के भातृत्व प्रेम /सेवक धर्म की मिसाल - राम को वापस लाने के लिए भरत का यह कहना -सिर बलि जाऊं उचित अस मोरा सबते सेवक धर्म कठोरा ... कई प्रसंग है जिसे हम समय समय पर चर्चा में लायेगें ..और कुछ बेहद उत्कृष्ट चिंतन जैसे कि राम का भारद्वाज से पूछना कि वे कहाँ रुकें और फिर भारद्वाज का जवाब कि चराचर जगत तो आपका है मगर आपने पूछा है तो सुनिए राम आप कहाँ कहाँ रुक सकते हैं ....राम की सौम्यता और बड़ों का सम्मान -वेद पुराण वशिष्ट सुनावहीं राम सुनहिं यद्यपि सब जानहिं और रावण रथी विरथ रघुबीरा की विभीषण की चिंता और राम का जवाब कि रथ किसे कहते हैं -रावण के रथ से धर्म के रथ का विभेद -जिसने गांधी जी को अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने को प्रतिबद्ध कर दिया और वैकल्पिक ब्रह्मांडों में काक भुशुण्डी का भ्रमण और राम न देखेऊ आंन का सत्य बोध कितना कुछ तो है जिसे  आपसे साझा करना है ...मैं यह संकल्प पूरा ही करके विश्राम लूँगा मित्रों -राम काज कीन्हे बिना मोहिं कहाँ विश्राम ....
 

कबीर तुलसी श्रीराम त्रयी और मानस का बोनस -1

तुलसी जयन्ती पर युगद्रष्टा कवि को श्रद्धा सुमन: कबीर तुलसी श्रीराम त्रयी और मानस का बोनस -2

बोलो सियावर रामचंद्र की जय .....कबीर तुलसी श्रीराम त्रयी और मानस का बोनस -3

शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

सूर्पनखा का वध क्यों नहीं,केवल नाक कान ही क्यों काटा गया?

मर्यादा पुरुषोत्तम राम पर जो कुछ धब्बे हैं उनमें एक नारी के नाक कान काटने वाला प्रसंग भी है ? क्या नारी के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम का यह आचरण उचित था .? वे सर्वशक्तिमान थे,फिर भी उन्हें ऐसे स्तर तक उतरना पडा ? विचारकों ने इस प्रश्न पर समय समय पर बहुत सोचा बिचारा है -आईये उनकी बातों से आपसे साझा करें .

सूर्पनखा ने भेष बदला ,अपने को सर्वांग सुन्दर रूप में राम के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया -कहा कि तुम्हारे सरीखा पुरुष और मेरी जैसी सुन्दर नारी की जोड़ी अच्छी रहेगी ....अब राम के सामने स्वांग ? पर राम की सौम्यता देखिये ,उन्होंने मुस्कुराते हुए यही कहा कि देखो मैं तो शादी शुदा हूँ तुम अपने योग्य कोई और वर ढूंढ लो -फिर उनके मन में भी थोड़ी चुहल /मौज मस्ती समाई (नर लीला हम आप जैसी ) कहा मेरा भाई कुंवारा है उससे पूछ लो ...अगर वह चाहे तो उससे विवाह कर सकती हो -वह लक्षमण  के पास चली गयी -लक्षमण पर सेवा भाव हावी था -बोले मैं तुमसे विवाह करूं या प्रभु चरणों में विनयावत रहूँ ....मुझे फुरसत कहाँ तुमसे आमोद प्रमोद का ..प्रभु सर्व समर्थ है वही तुम्हे सदगति देगें ...काम पिपासु सूर्पनखा अब राम और लक्ष्मण के बीच शटल काक बनी रही .....

यहाँ तक की लीला   तो ठीक थी .... मगर अचानक उसने एक अनहोनी कर दी -उसने सोचा सीता को ही खत्म कर दूं तो बात बन जाय -वह भयानक बनी सीता की ओर झपटी ....और फिर अपने धर्म से च्युत न होने वाले राम ने उसे सांकेतिक दंड देने का इशारा लक्ष्मण को किया - -लक्ष्मण ने नाक कान काट कर उसे अपमानित कर दिया -उसकी नाक कट गयी -माने अपमानित हो गयी .मगर उसे अब भी चैन नहीं था ....वह और भी भयंकर प्रतिशोध के लिए रावण के पास पहुँच कर अनाप शनाप बकने लगी -प्रलाप करने लगी -झूंठ सत्य नमक मिर्च मिला रावण को भड़काने लगी -उसने रावण को एक आमंत्रण  भी दिया =राम की पत्नी बहुत खूबसूरत हैं ...वह रावण की रुचियों को समझती थी -बहन जो थी ...और फिर सीता का हरण युद्ध  की पूर्व पीठिका रच गया ..

राम के पास कोई विकल्प नहीं था  बन्दर तक के चित्रों से भय खाने वाली सीता एक राक्षिसी का रौद्र रूप देख वैसे ही अधमरी हो रही थीं -और राम सीता की मृत्यु  तटस्थ होकर कैसे देख सकते थे -लिहाजा कोई विकल्प नहीं था सिवाय सूर्पनखा को दण्डित करने का ....वे उसका वध भी कर सकते थे ..ताड़का का वध किया ही था  ...लेकिन   बस नाक कान काट के छोड़ दिया ...मानो भविष्य की सूर्प नखाओं को सन्देश देना चाहते हों -पर पुरुष के पास आमंत्रण लेकर मत जाओ -नारी पर प्रहार मत करो ...
अन्यथा तुम्हारा भी नाक कान काटना तय है -अपमान तय है ....

अफ़सोस है लोग फिर भी इतिहास पुराण से शिक्षा नहीं लेते ...
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जय श्रीराम ....

गुरुवार, 2 सितंबर 2010

अब कहाँ है वह कृष्ण और राधा का उदात्त प्रेम ?

...कृष्ण भारतीय लोकमानस के नायक हैं उन्होंने सब कुछ ईमानदारी से किया,राधा से प्रेम ,गोपियों से प्रेम -वह व्यभिचार नहीं था -शुद्ध सात्विक प्रेम था ...लोकमानस आज भी राधा कृष्ण कथा को दिल से लगाये हुए है .    भागवत में रसिया  कृष्ण.... छलिया कृष्ण .....मनबसिया कृष्ण की छबियाँ उभरती हैं .....अब कहाँ है वह कृष्ण और राधा का उदात्त प्रेम ? सच मानिए प्रेम सच्चे निर्विकार दिल के लोग कर सकते हैं जिनके दिल में टुच्चई भरी हो प्रेम उनके वजूद को स्पर्श नहीं करता ..कभी भूले कर भी जाता है तो फिर उच्चाटन भी शीघ्र हो जाता है ..मैंने आपने सभी ने प्रेम किया है परिणतियाँ जो भी हुई हों ...जो अभागा है प्रेम उसे रिक्त कर गया ...हम तो इसी कृष्ण रस में ही सराबोर हैं -यही जीवन्तता की उर्जा है यही इस कलि काल में  जीवन का अवलंबन हैं .मूरख नहीं समझते ...जीवन की बढ़ती  विभीषिकाओं के इस दौर में जीवन के प्रति यह प्रेम  ही आशा जगाता है ,जिलाए चलता है ..हमारे हरि हारिल की लकड़ी ...अभागे हैं वे लोग जो इस अनुभूति से वंचित रह जाते हैं ...प्रेम मन और ह्रदय की उदात्तता है ....कलुष नहीं ....प्रेम को जब भी कटघरे में रखा जाएगा वह निर्दोषता को उजागर करने खुद नैसर्गिक मदद के रूप में आ  जायेगा ...

 मुझे तो राधा कृष्ण का यह रूप ही जंचता है -और तुम्हे ?

जीवन में  खुद  और अपने रिश्तों के प्रति ईमानदार रहो ..कोई किसी से जबरदस्ती प्रेम नहीं करता ..कर भी नहीं सकता .....यह हो ही जाता है ...इससे बड़े ऋषि मुनि नहीं बचे तो हम साधारण मार्टल्स की क्या औकात -चीयर अप    कि आप किसी से प्रेम करते हैं और कोई आपको प्रेम करता है   -यह गहरे मन की अनुभूति है ,चौराहे पर टंटा करने की नही.वे बदनसीब हैं जिनसे कोई प्रेम नहीं करता ..हैं न ? 

कृष्ण जन्माष्टमी पर आपको शुभकामनाएं .!
पुनश्च :
इस पोस्ट के एक टिप्पणीकार और अप्रतिम मेधा के धनी युवा कवि  राजेन्द्र स्वर्णकार जी जिनके  भाव -शब्द मन में गहरे उतरे हैं   और देर तक अपनी मौजूदगी बनाए रखने में समर्थ हैं को महाकवि देव की एक प्रसंगगत कविता समर्पित कर रहा हूँ आप भी आन्नद लें :
कोउ कहो कुलटा कुलीन अकुलीन कहौ
कोउ कहो रंकिनी कुलंकिनी कुनारी हौ
कैसो परलोक नर लोक वर लोकन में
लीन्हों मैं अशोक लोक लोकन ते न्यारिहौं
तन जाऊ मन जाऊ देव गुरु जन जाऊ
जीव क्यों न जाऊ टेक टरत  न टारिहौं
वृंदा वनवारी वनवारी की मुकुट वारी
पीत पट वारी वाहि मूरत पे वारिहौं
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बुधवार, 1 सितंबर 2010

आप सभी को कृष्ण जो स्वयं भगवान हैं ,के जन्म पर बधाई और शुभकामनाएं !

मित्रों इस पोस्ट के मूल कंटेंट को हटा रहा हूँ -अनूप शुक्ल ने देर रात फोन कर आग्रह किया और कहा कि दिव्या श्रीवास्तव ने उनके अनुरोध पर अपनी आपत्तिजनक पोस्ट हटा ली है .अब चिट्ठा -भातृत्व का और किसी भी सद्कार्य का प्रतिफल तो होना ही चाहिए न  -दिव्या ने मुझसे फोन के बजाय मेल कर ही कह दिया होता तो मैं कभी क्या इतना असहिष्णु हुआ कि किसी महिला का अनुरोध न सुनूँ :) ? मगर अब वे बडकी अदालत में चली गयीं ....छोटी अदालत के मामले बड़ी अदालतों में ले जाना ..अब कौन बताये ? बड़ी अदालतें यही तो चाहती हैं और बाद में केस दुत्कार कर ख़ारिज कर देती हैं ....  इसलिए उनका समय जाया नहीं करना चाहिए ...उनके मसौदे और मसले अलग  हुआ करते हैं ....मसलन बड़का ब्लॉगर जो सबसे अधिक टिप्पणियाँ बटोर रहा है ,फलां  ब्लॉगर जो इत्ते समय से टिका हुआ है आदि आदि ...मैंने दिव्या जी को सलाह दी है कि वे पतिदेव समीर जी के साथ वीकेंड कर आयें -वे उन महान मोहतरमा का कैप्टिव बनने से भी बच गयीं -यही राहत है ......किसी के चरित्र हनन से खुद को प्रोमोट करने का कुटिल चातुर्य धराशायी हुआ...यह पब्लिक है यह सब जानती है !


 मित्रों 'बी ट्रू टू योरसेल्फ . " फिर कौनो नौबत नहीं ...प्यार कोई गुनाह नहीं है ..उसे डिफेंड मत करो -स्वीकार कर लो ...कृष्ण भारतीय लोकमानस के नायक हैं उन्होंने सब कुछ ईमानदारी से किया,राधा से प्रेम ,गोपियों से प्रेम -वह व्यभिचार नहीं था -शुद्ध सात्विक प्रेम था ...लोकमानस आज भी राधा कृष्ण कथा को दिल से लगाये हुए है .    भागवत में रसिया  कृष्ण.... छलिया कृष्ण .....मनबसिया कृष्ण की छबियाँ उभरती हैं .....अब कहाँ है वह कृष्ण और राधा का उदात्त प्रेम ? सच मानिए प्रेम सच्चे निर्विकार दिल के लोग कर सकते हैं जिनके दिल में टुच्चई भरी हो प्रेम उनके वजूद को स्पर्श नहीं करता ..कभी भूले कर भी जाता है तो फिर उच्चाटन भी शीघ्र हो जाता है ..मैंने आपने सभी ने प्रेम किया है परिणतियाँ जो भी हुई हों ...जो अभागा है प्रेम उसे रिक्त कर गया ...हम तो इसी कृष्ण रस में ही सराबोर हैं -यही जीवन्तता की उर्जा है यही इस कलि काल में  जीवन का अवलंबन हैं .मूरख नहीं समझते ...जीवन की बढ़ती  विभीषिकाओं के इस दौर में जीवन के प्रति यह प्रेम  ही आशा जगाता है ,जिलाए चलता है ..हमारे हरि हारिल की लकड़ी ...अभागे हैं वे लोग जो इस अनुभूति से वंचित रह जाते हैं ...प्रेम मन और ह्रदय की उदात्तता है ....कलुष नहीं ....प्रेम को जब भी कटघरे में रखा जाएगा वह निर्दोषता को उजागर करने खुद नैसर्गिक मदद के रूप में आ  जायेगा ...
 राधाकृष्ण -यह उन्हें  समर्पित जो जांन  कर अनजान हैं !
पूरे प्रकरण से एक यही सकारात्मक सीख मिलती है कि जीवन में  खुद  और अपने रिश्तों के प्रति ईमानदार रहो ..कोई किसी से जबरदस्ती प्रेम नहीं करता ..यह हो ही जाता है ...इससे बड़े ऋषि मुनि नहीं बचे तो हम साधारण मार्टल्स की क्या औकात -चीयर अप  कि आप किसी से प्रेम करते हैं और कोई आपको प्रेम करता है   -यह गहरे मन की अनुभूति है ,चौराहे पर टंटा करने की नही.वे बदनसीब हैं जिनसे कोई प्रेम नहीं करता ..हैं न ?


इस पोस्ट पर मित्रों की सहमति /असहमति  बेशकीमती है इसलिए वे एक स्मृति दंश /पुष्प के रूप में यहाँ रहेगीं ....एक बार फिर कृष्ण जन्माष्टमी पर आपको शुभकामनाएं ..
 

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