मर्यादा पुरुषोत्तम राम पर लिखी
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डॉ.दिनेश राय द्विवेदी जी ने अनुरोध किया था कि मैं आदि देव शिव पर कुछ लिखूं -अब बनारस में रहकर अगर भोले बाबा पर कुछ नहीं लिखा तो शायद मेरा बनारस प्रवास निष्फल ही चला जाएगा -बनारस वासी का जीवन तो पूरी तरह शिवमय और शिव आश्रित है -पुराण कहते हैं कि बनारस नगरी शिव के त्रिशूल पर बसी है .मैं शिव या रूद्र या शंकर पर कुछ भी अकादमीय स्तर का लिखने का अधिकारी नहीं हूँ ..इसलिए विद्वानों को इस लेख ,बल्कि छोटी सी पोस्ट से ज्यादा अपेक्षा नहीं करनी चाहिए -यह विनम्र अनुरोध है.
भारतीय लोकजीवन में जितना शंकर लोकप्रिय हैं उतना कोई भी देवता प्रिय नहीं है .इन्हें आदि देव माना जाता है -अगर हम मिथकों पुराणों से अलग हट कर बात करें तो इस चमत्कारी व्यक्तित्व के उदगम का पता लगाना और भी टेढ़ी खीर हो जाता है .महादेव से जुड़े इतने वृत्तांत ,इतनी जन श्रुतियां हैं कि उनके बीच से इनके असली रूप को निकाल पाना असम्भव सा है .कौन थे शिव -क्या द्रविण मूल का कोई बहुत प्रभावी ,शक्तिशाली नेतृत्त्व/कोई मसीहा -मगर जन श्रुतियों में तो वे कपूर सरीखे शुभ्र हैं -कर्पूर गौरम .....और रावण जो शिव का अनन्य भक्त है -महा विराट कज्जल गिरि ,काले रंग का है ...किरातार्जुनीयम के शिव कोई मंगोल से लगते हैं ....जो किरात भेष में अर्जुन से युद्ध कर उनका दंभ भंग करते हैं ..तो क्या वे आर्य हैं ? गौरवर्ण हैं ,कैलाश वासी हैं मगर फिर वे रावण का साथ क्यों देते हैं -उनके पुत्र कार्तिकेय राम के विरुद्ध रावण की ओर से लड़ने जाते हैं .फिर आखिर कौन हैं शिव ..?
रूद्र आर्यों के प्रमुख सृजन ऋगवेद के भी कोई प्रमुख देवता नहीं हैं ...सैन्धव सभ्यता में लिंग पूजा की परम्परा थी और इसलिए आर्य लिंग देवो भव कहकर सैन्धव परम्परा का उपहास उड़ाते हैं ...मुझे तो लगता है कि शिव एक सैन्धव हैं -एक लोकनायक ,चक्रवर्ती सैन्धव जिन्होंने पहली बार दक्षिण से लेकर उत्तर तक एक विशाल साम्राज्य तैयार किया और बाहरी यायावरों को रोकने में हिमालय सरीखी दृढ़ता दिखाई -बिना उनसे सामंजस्य किये तत्कालीन भारत /सिन्धु प्रदेश /हिंद प्रदेश के किसी भी भू भाग पर कोई अधिपत्य नहीं कर सका -उनके अनुयायी सैन्धव उनकी विजय ध्वजा आगे भी फहराते रहे - कालांतर में आर्यों /वैष्णवों (?) का प्रवेश हुआ,घोर संघर्ष ,मेल मिलौवल से एक मिश्र संस्कृति विकसित हुई -कुछ विचार स्फुलिंग ऐसे भी हैं जो संकेत करते हैं कि तत्कालीन आक्रान्ता वैष्णव बहुत आक्रामक रहे होंगें और उन्होंने भीषण जन संहार में सैन्धव पुरुषों का समूल नाश ही कर डाला -वे ढूंढ ढूंढ कर मारे गएँ -उनकी श्याम वर्णी औरतों को वैष्णवों /आर्यों ने अपनाया -मगर उन औरतों की शिव भक्ति -पूजा पद्धतियाँ सब अपरिवर्तित रहीं बल्कि अगली वंशावलियों में उन्होंने सैन्धव संस्कार ही डाले -शिव तिरोहित नहीं हो सके -जनन प्रजनन के भी उपास्य बने रहे -आज भी भारत में लिंग पूजा खासकर औरतों में जितनी प्रिय है विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं है -ललही छठ के पर्व पर लाल कंद को लिंग प्रतीक के तौर पर पूजा जाता है और शिव पार्वती की रति लीला का सांगोपांग वर्णन औरते करती हैं जहाँ पुरुष प्रवेश वर्जित रहता है ....
चूंकि शिव बहुत प्राचीन देवता हैं इसलिए अत्यंत पुरानी किंवदंतियों /मिथकों के चर्चित चरित्र शिव ही हैं ...वे पुरुष पुरातन हैं . समूचा उत्तर भारत मूलतः शैव है -इसलिए तुलसी को राम की प्रतिष्ठापना में बहुत बुद्धि चातुर्य दिखाना पड़ा ....आज भी जहाँ आधुनिक जीवन शैली /विधि विधानों का संस्पर्श तक नहीं है शिव का प्रभाव बदस्तूर कायम है ..जन मानस में वे बड़े भोले देवता के रूप में जाने जाते हैं -पूरे बौड़म हैं ,सहज है ,कृपालु हैं ..मगर मजे की बात है कि वे सहसा दूसरा रूप भी धारण कर लेते हैं -रौद्र रूप ,तीसरा नेत्र खोल तांडव नृत्य कर सारी सृष्टि का लय करने पर उद्धत हो जाते हैं -सुन्दर हैं तो कुरूप भी कम नहीं हैं ... भोगी हैं तो बड़े त्यागी भी हैं -सती तक का परित्याग कर दिया .....लगता है एक लम्बे काल ,कालांतर में शिव के प्रेमी जन जो कुछ उच्चतम स्तर का मानव व्यवहार प्रतिरूप था उनमें आरोपित करते गए अन्य देवता गण से उनकी श्रेष्टता दिखाने के लिए ....हिन्दू त्रिदेवों में वे सृष्टि संहारक है ,विष्णु पालनकर्ता हैं और ब्रह्मा सर्जक हैं -लेकिन जो संहार करता है उसी को पुनर्सृजन का भी श्रेय मिलता है .
शिव का सबसे प्रिय रूप उनका लोक मंगलकारी रूप है -कहते हैं वे अपने नंदी बैल पर पार्वती के साथ बैठ मृत्युलोक की सैर करते रहते हैं और जहां भी कोई दुखिया मिलता है उसकी फ़ौरन मदद करते हैं -पार्वती भी कम दयावान नहीं हैं!इस दम्पति की छवि घर घर के आदर्श दम्पति की छवि है -लोग भोले जैसा वर चाहते हैं और पार्वती जैसी बिटिया ..जरा भोले बाबा के परिवार का एक चित्र देखिये -बैल को पार्वती का सिंह डरा रहा है ..गणेश के चूहे पर सापों की पैनी नजर है ...और सापों पर कार्तिकेय के वाहन मोर की गृद्ध दृष्टि लगी है -अजीब माहौल है -आपा धापी ,चिल्ल पों और इस बीच निर्विकार भोले बैठे हैं - एक भारतीय परिवार के मुखिया को इससे बढियां सीख कहाँ मिलेगी .
शिव पर जितनी स्तुतियाँ ,स्तवन -प्रार्थनाएं कही लिखी गयी हैं किसी और देवता पर नहीं -वे कोई साधारण देवता तो नहीं -महादेव हैं ...देवताओं तक के भी तारण हार ,उनके कष्ट का हलाहल खुद पी लेने वाले महादेव -एक चुनिन्दा श्लोक जो शिव आराधना में बचपन से ही याद है लिख कर यह शिवांक आप सब को समर्पित करता हूँ -
कल्पान्तक क्रूर केलिः क्रतु कदनकरःकुंद कर्पूर कांति
कैलाश कूटे कलित कुमुदनी कामुकः कान्तकायः
कंकालक्रीडनोंत्कः कलित कलकलः कालकाली कलत्रह
कालिंदी कालकण्ठः कलयतु कुशलं कोपि कापालिकः कौ