मनुष्य की अनेक प्रतिभाओं में एक है चमचागीरी/चापलूसी। वैसे तो इस क्षमता में दक्ष लोगों में यह प्रकृति प्रदत्त यानी जन्मजात है मगर कुछ लोग इस कला को सीखकर भी पारंगत हो लेते हैं। चारण और चमचागीरी में बारीक फर्क है।चारण एक पेशागत कार्य रहा है जिसमें भांटगण मध्ययुगीन राजा महराजाओं की विरुदावली गाते रहते थे -उनका गुणगान करते रहना एक पेशा था। मगर मध्ययुगीन भांट लड़ाईयों में भी राजाओं के साथ साथ रणक्षेत्र में जाते थे और इसलिए भट्ट कहलाते थे -भट्ट अर्थात वीर! लगता है भट्ट से ही भांट शब्द वजूद में आया हो। आज भी जो ज्यादा भोजन उदरस्थ करने का प्रताप दिखाता है भोजन भट्ट कहा जाता है।
अब वैसे तो चारण का हुनर एक पेशागत कर्म नहीं रहा मगर आज भी लोग बेमिसाल उदाहरण अपने स्वामी/ आका को खुश करने के लिए देते ही रहते हैं. ताजा उदाहरण एक राजनेता का है जिसमें उन्होंने पार्टी अध्यक्ष को सारे राष्ट्र की माता का अयाचित, अनाहूत दर्जा दे दिया। लोगबाग़ विस्मित और उल्लसित भी हो गए चलो चिर प्रतीक्षित राष्ट्रपिता की कोई जोड़ी तो बनी।
चापलूसी थोडा अधिक बारीक काम है। यह प्रत्युत्पन्न बुद्धि, हाजिरजवाबी या वाग विदग्धता(एलोक्वेन्स ) की मांग करता है।वक्तृत्व क्षमता (रेटरिक ) के धनी ही बढियां चापलूस हो सकते हैं। परवर्ती भारत में बीरबल को इस विधा का पितामह कह सकते हैं। वे अपने इसी वक्तृता के बल पर बादशाह को खुश करते रहते थे। पूर्ववर्ती भारत में तो यह विधा सिखायी जाती थी। महाभारत में ऐसे संकेत हैं।आज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में चापलूसी के उदाहरण मिलते ही रहते हैं मगर उनका स्तर घटिया सा हो चला है।
चापलूसी थोडा अधिक बारीक काम है। यह प्रत्युत्पन्न बुद्धि, हाजिरजवाबी या वाग विदग्धता(एलोक्वेन्स ) की मांग करता है।वक्तृत्व क्षमता (रेटरिक ) के धनी ही बढियां चापलूस हो सकते हैं। परवर्ती भारत में बीरबल को इस विधा का पितामह कह सकते हैं। वे अपने इसी वक्तृता के बल पर बादशाह को खुश करते रहते थे। पूर्ववर्ती भारत में तो यह विधा सिखायी जाती थी। महाभारत में ऐसे संकेत हैं।आज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में चापलूसी के उदाहरण मिलते ही रहते हैं मगर उनका स्तर घटिया सा हो चला है।
बॉस को खुश करने के लिए ऐसे बेशर्मी से भरे खुले जुमले इस्तेमाल में आते हैं कि आस पास सुनने वाले को भी शर्मिदगी उठानी पड़ जाती है -अब चापलूसी में वक्तृता का पूरा अभाव हो गया है। और वैसे ही आज के बॉस हैं, जो चाहे राजनीति में हों या प्रशासनिक सेवा में बिना दिमाग के इस्तेमाल के कहे गए "सर आप बहुत बुद्धिमान हैं " जैसे वाक्य पर भी लहालोट हो जाते हैं. मतलब गिरावट दोनों ओर है -चापलूसी करने वाले और चापलूसी सुनने वाले दोनों का स्तर काफी गिर गया है।
वैसे शायद ही कोई होगा जिसे अपनी प्रशंसा अच्छी न लगती हो। मगर वह सलीके से की तो जाय। बेशर्म होकर केवल चापलूसी के लिए चापलूसी तो कोई बात नहीं हुयी। यह एक कला है तो कला का कुछ स्तर तो बना रहना चाहिए। कभी कभी मुझे कुछ लोग कह बैठते हैं 'मिश्रा जी आप बहुत विद्वान् आदमी हैं' मैं तुरंत आगाह हो उठता हूँ कि ऐसी निर्लज्ज प्रशंसा का आखिर असली मकसद क्या है? कोई न कोई स्वार्थ जरुर छिपा होता है इस तरह की स्तरहीन चापलूसी में। मगर मैं हैरान हो रहता हूँ जब मैं पाता हूँ कि कई ऐसे सहकर्मी अधिकारी हैं जिन्हे अपने मातहत से चापलूसी सुने बिना खाना ही हजम नहीं होता। उन्हें चापलूसी करवाते रहने की आदत सी पडी हुयी हैं। कुछ तो चापलूसी करने वाले स्टाफ को अपने साथ ही लगाए रहते हैं और उसे अवकाश पर भी जाने देने में हीला हवाली करते हैं। बिना चापलूसी के दो शब्द सुने उनका दिन ही नहीं कटता।
वैसे शायद ही कोई होगा जिसे अपनी प्रशंसा अच्छी न लगती हो। मगर वह सलीके से की तो जाय। बेशर्म होकर केवल चापलूसी के लिए चापलूसी तो कोई बात नहीं हुयी। यह एक कला है तो कला का कुछ स्तर तो बना रहना चाहिए। कभी कभी मुझे कुछ लोग कह बैठते हैं 'मिश्रा जी आप बहुत विद्वान् आदमी हैं' मैं तुरंत आगाह हो उठता हूँ कि ऐसी निर्लज्ज प्रशंसा का आखिर असली मकसद क्या है? कोई न कोई स्वार्थ जरुर छिपा होता है इस तरह की स्तरहीन चापलूसी में। मगर मैं हैरान हो रहता हूँ जब मैं पाता हूँ कि कई ऐसे सहकर्मी अधिकारी हैं जिन्हे अपने मातहत से चापलूसी सुने बिना खाना ही हजम नहीं होता। उन्हें चापलूसी करवाते रहने की आदत सी पडी हुयी हैं। कुछ तो चापलूसी करने वाले स्टाफ को अपने साथ ही लगाए रहते हैं और उसे अवकाश पर भी जाने देने में हीला हवाली करते हैं। बिना चापलूसी के दो शब्द सुने उनका दिन ही नहीं कटता।
चापलूसी सुनने का ऐसा व्यसन भी तो ठीक नहीं !
फिर भी आप बहुत अच्छे हैं गुरुदेव !
जवाब देंहटाएंदेखा ....
हटाएंयदि आप चापलूसी सुनना पसंद करते हैं तो मेरी टिप्पणी -
जवाब देंहटाएं"क्या ग़जब का लिखा है आपने. बिलकुल यथार्थवादी. कैसे लिख लेते हैं आप इतना अच्छा? सचमुच सुन्दर प्रस्तुति."
और यदि आप चापलूसी सुनना पसंद नहीं करते हैं तो मेरी टिप्पणी-
"बहुत सतही लेख है. आपसे इस विषय पर कुछ अधिक मीमांसा की आशा थी. यह तो स्कूल का बच्चा भी कह देगा कि चापलूसी करना और करवाना गलत बात है फिर आपने कौन सी नयी स्थापना दी है यहाँ ?"
अब आप पर है कि आप मेरी किस टिप्पणी को स्वीकार करते हैं... :)
यह टिप्प्णी न तो पसंद की जा सकती है और न ही नापसंद -क्या किया जाय इसका :-)
हटाएंमतलब आपको ग्रे शेड की टिप्पणी चाहिए... :-) वैसे आप कहें तो इसे हटा देता हूँ.
हटाएंआप सजग रहते हैं इसलिये चापलूसी और प्रशंसा में फ़र्क एकदम से समझ जाते हैं। आपको कोई बना नहीं सकता।
जवाब देंहटाएंअब इसे चापलूसी तो न समझ लीजियेगा? :)
सावधानी से जवाब देना अरविन्द सर !!
हटाएंहम जब किसी की प्रशंसा करते हैं तो वह प्रसन्न होता ही है और यदि उस प्रशंसा में अतिश्योक्ति भी हुई तो प्रशंसा सुनने वाले को ऐसा लगता है कि -" मेरे व्यक्तित्व का सही मूल्यॉकन इसी ने किया है ।" जबकि अन्य को यह चाटुकारिता लगती है, इसीलिए 'यह' कभी समाप्त नहीं हो सकती क्योंकि सबको अच्छी लगती है, हम सब इसके मुरीद हैं। प्रशंसनीय प्रस्तुति। मज़ा आ गया ।
जवाब देंहटाएंआपके चेले ने कभी भी आपको 'ब्लाग पिता' नही कहा इसलिए आपको , आपकी चापलूसी नहीं करने वाले आपके चेले पर गर्व करना चाहिए :)
जवाब देंहटाएंका महराज इत्ते दिन बाद हम पिता ही सूझे ? पति नहीं किसी ब्लॉग प्रिया के ?
हटाएंकमाल की दुलत्ती चली है :)
हटाएंप्रशंसा हमेशा उस व्यक्ति के पीठ पीछे होती है लेकिन जो उसके सामने होती है वह चाटुकारिता/चापलूसी ही होती है। कभी-कभी चापलूसी भी अच्छी लगती है, करनी चाहिए.. :)
जवाब देंहटाएंजरूर उसे मछली की खाने का मन हो गया होगा:)
इस पर जितना कम कहा जाये, उतना कम है। हमने बहुत देखा है, पूरी पुस्तक लिखी जा सकती है।
जवाब देंहटाएंमनुष्य के कुछ अन्य स्थायी गुणों की तरह यह भी तो एक स्थायी गुण ही है.....जब तब जीवन है तब तक चापलूसी.
जवाब देंहटाएंअथ श्री चापलूसी कथा :)
जवाब देंहटाएंचापलूसी भरे शब्दों से लिजलिजापन झलकता है , पता नहीं लोगों को पसंद कैसे आती है !
जवाब देंहटाएं:)
हटाएंचापलूसी करना और करवाना दोनों ही ग्लानी भर देते हैं मन में ... ऐसी दोनों प्रक्रियाएं ठीक नहीं ...
जवाब देंहटाएंसच में विद्वता झलक रही है इस चापलूसी पोस्ट में .
जवाब देंहटाएंकुछ लोग अपनी ही चापलूसी करते रहतें हैं इसे आत्मश्लाघा कहा जाता है। हमारे एक मित्र इस कला
जवाब देंहटाएंमें बहुत माहिर हैं। कांग्रेस पार्टी एक चापलूस प्रधान पार्टी है। अब यही देखो शहज़ादा कुछ नहीं कर
रहा
है और चिदंबरम सरीखे लोग उसके बगल बच्चे बने खड़े हैं रात दिन। एक महानुभाव ने कहा था -
इंडिआ इज़ इंदिरा इंदिरा इज़ इंडिआ। सन्दर्भ बदला है अर्थ वही है। इंदिराजी तो फिर भी एक
राजनीतिक परम्परा की वारिश थीं ,पढ़ी लिखी महिला थीं। राजनीति में प्रवीण।सोनिया जी को तो
यही
चिंता रहती है जिस पर्चे से पढ़के बोल रहीं हैं वह उड़ गया तब क्या होगा। चेहरे पे हवाइयां उडी रहतीं
हैं। भारतमाता का अवमूल्यन करने में पैसे खर्च होनें लगें तो ये मूढ़ -धन्य लोग सौ बार सोचें
बोलने
से पहले तौलें।
मैंने तीन-चार पोस्ट लिखी हैं इस विषय पर.. लेकिन चापलूसी की परम्परा में सबसे बड़ा उदाहरण एक पान खाने वाले स्वामी/अधिकारी के चापलूस अधीनस्थ का मिला जहाँ वह कहता है कि साहब पान खाकर कहाँ जायेंगे आप थूकने, मेरे मुँह में थूक दीजिये मैं थूककर आता हूँ बाहर!!
जवाब देंहटाएंआउर अपने लालू जी के भाषण के दौरान उनका हाथ स्वत: पीछे की ओर बढ़ जाता था और मंच पर आसीन भा.प्र.से. अधिकारियों की टोली उनके लिये खैनी बनाकर उनके हथेली पर रख देती थी!!
मेरे ख्याल से अगर व्यक्ति व्यवहारकुशल है तो उसकी निगाह से चापलूसी करने वाले फ़ौरन पकडे जाते हैं ,बिना बात के चापलूसी करने वाले सच बहुत बुरे लगते हैं.
जवाब देंहटाएंअब इसका भी कोई स्तर होता है क्या?जो आजकल गिर गया ?