गुरुवार, 3 मार्च 2011

इलाहाबाद की एक शाम- लक्ष्मी टाकीज ,विवाह मंडप और किसिम किसिम के पकवान

पिछले बाईस फरवरी की शाम इलाहाबाद के नाम करते हुए मैंने यह नहीं सोचा था कि वह भावनाओं की  एक विविधता भरी  सौगात मुझे सौंप देगी ...अपने पुरनिया मित्र आर एन चतुर्वेदी जी की बिटिया पारुल का व्याह था और हमें कन्या पक्ष की तरफ से बरात की अगवानी करनी थी -परिस्थितियाँ बहुत विपरीत थीं मगर मैं जाने से मुक्त  नहीं हो सकता था ..मित्रता और मौके की पुकार थी, लिहाजा शाम तक पहुंच ही गया इलाहाबाद ...अपने अल्मा मैटर की नगरी में ...रास्ते में मोबाईल से फेसबुक में टिपियाया भी -इन सिटी आफ त्रिवेणी इन सर्च ऑफ़ विजडम -यह एक चुग्गा  था अगर कोई नया पुराना  ब्लागराना प्रेमी आ फंसेगा तो साथ बोल बतिया भी लेगें ...और बाद के  उन  रस्मी उलाहनों से भी बच लेगें कि आप मेरे शहर आये और मुझे बताये भी नहीं -ऐसे रस्मी मनुहारों की काट मैंने अब इस रूप में निकाल ली है कि भैया मैंने तो पहले ही घोषित कर दिया था ..बहरहाल ....कहने वाले तो यह कह गए /कहेगें कि वो मेसेज तो मैंने बहुत बाद में देखा! एक ने कहा भी ...

निमंत्रण कार्ड में उपस्थिति का समय ७ बजे लिखा था और मैं  घड़ी की सुई के सात पर पहुँचते ही विवाह स्थल पर पहुँच गया -भव्य पंडाल की इन्द्रधनुषी तैयारियां जोरो पर थीं जिसे देखते ही लगा कि अभी काफी समय लगने वाला है और मित्र भी बरात के आवाभगत की जरुरी तैयारियों में अन्यत्र व्यस्त थे तो मैंने सोचा कि चलो उन गलियों को ही तनिक निहार लिया जाय जहां जीवन के कितने ही बसंत रीत गए थे ....विवाह मंडप रायल गार्डेन के निकट ही एक स्मारक अपनी और ललचा रहा था -लक्ष्मी टाकीज ...कितनी ही  निरुदेश्य शामें यहाँ बीतीं थीं हमारी -मैं यादों के वातायन में खो गया ....

अपने पोस्ट ग्रेजुएट के दिनों की कितनी ही बातें -बगल के काफी हॉउस में जीवन के सपने और हसरतों को लिए काफी की चुस्कियां ,दोस्तों ( मेरे क्लास में ७ छात्र और २३ लडकियां थीं ) के साथ लक्ष्मी टाकीज में देखी रूमानी फिल्मे, पहला क्रश .... सब बेसाख्ता  याद आये ....मगर लक्ष्मी टाकीज बंद था -पता लगा कि यह कुछ  वर्षों से  विवादों के कारण बंद हो गया है ..बगल की  मैगजीन की दुकान बंद थी ..पूछा यह क्यों बंद है तो बताया गया कि यह तो मंगल को बंद ही रहती है ....और मुझे भी यह याद हो आया..बुजुर्ग सेल्स मैंन गुजर चुके थे यह भी पता लगा -पान की दुकान अलबता  खुली मिली और वही  पान वाला भी.... मैं पहचान गया -उम्र उसके सर चढ़ बोल रही थी ....मैंने जब उसके समय की बातें छेड़ी तो वह भावुक सा हो उठा -आश्चर्य है कोई तीस वर्षों बाद भी उसकी आर्थिकी स्टैटिक थी .....यह सब देख मन बहुत विरही विरही सा  उठा .....एक पान लेकर मुंह में घुलाया और वो  जुमला कुछ उल्टा सा लगने लगा कि वे गलियाँ आज  भी जवान हैं जहाँ मैंने अपनी जवानी लुटा दी :)..यहाँ तो मामला ही बिलकुल उलट था वे गलियाँ उजाड़ सी हो गयीं थीं और मैं मेरी ख्वाहिशें आज भी बलन्द थीं ...

यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ तो फिर रायल गार्डेन आया ..बारात का आना तो अभी भी विलम्बित था ..मगर मित्र अंकवार भर मिले और विगत दो दशकों के कई और भी यार दोस्त मिल गए -गप बाजी  का  दौर शुरू हुआ और उधर विविध व्यंजनों का डिस्प्ले भी शुरू हो गया ....अभी कुछ ही वर्ष पहले तक मैं बेटी  की शादी यानि लडकी की और से निमंत्रित होने पर  कुछ नहीं खाता था ....यह एक परम्परा रही है मगर अब सब गडड मड्ड हो गया है..मित्रों ने जबरदस्ती खींच कर पकवानों के सामने ला खड़ा किया ..शादी व्याह के अवसर पर व्यंजनों की श्रृखला निरंतर कल्पनापूर्ण ,सुरुचिपूर्ण और वैविध्यपूर्ण होती जा रही है ...इस क्षेत्र में तो पांच सितारा होटलों के मीनू भी फेल समझिये -जबरदस्त इम्प्रोवायिज़ेशन .....क्या कहने!
नहीं नहीं  यह डोसा नहीं चिल्ला है ......
अभी तो स्टार्टर आईटमों का ही दौर था ..एक से एक नए व्यंजन.कुछ तो मुझे याद भी हैं -पनीर सौटे (saute ) ,मशरूम आलू और अरवी भाजी ,पाव भाजी ,फ्राईड राईस और मंचूरियन ,चिल्ला -चटनी ,आलू टिकिया ,गोलगप्पा, एक ख़ास बेसन की पपड़ी जिसे इलाहाबाद में करेला कहते हैं ,मठरी और सबसे बढ़कर लाजवाब इटालियन पास्टा -इधर की व्याह शादियों का नया रंगरूट ....
 और  यह रहा इटालियन पास्टा बनाने की सामग्री -क्या क्या नहीं, आलिव फ्रूट ,ब्रोकली और आप खुद पहचानिए

मैने इन सभी आईटमों को चखा और कुछ के फोटो भी लिए ...इन सब के अलावा कई तरह के पेय -सुगन्धित दूध ,माकटेल ,आईसक्रीम, सूप आदि तो बैरे लेकर टहल ही रहे थे ..बैरे कुछ और भी पनीर आदि के प्रेपरेशन ट्रे में लिये सर्व कर रहे थे ....

 और तुम क्या लिए हो भाई ?
मुझे वापस बनारस पहुचना था ...इसलिए मुख्य खाने का मीनू नहीं देख सका ....बिटिया पारुल को अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद देकर ११ बजे लौट पड़ा .. पूरी सज धज और नाच गाने के साथ बारात अब  मंडप में प्रवेश कर रही थी ....

40 टिप्‍पणियां:

  1. वे गलियाँ आज भी जवान हैं जहाँ मैंने अपनी जवानी लुटा दी :).

    behtareen jumla

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  2. @दीपक साहब यहाँ तो यह जुमला उल्टा पड गया

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  3. लगता है हम भी बारात में थे और खूब आनंद लिया ! शुभकामनायें !

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  4. श्रीमान मिश्रा जी नमस्ते वाह!क्या खूब प्रस्तुत किया है आपने।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

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  5. लार टपकवाने वाले चित्र लगाने की मनाही हो।

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  6. पोस्ट ग्रेजुएशन में पहला क्रश???....आश्चर्य :)

    और शायद...चिल्ला को चीला ...और पास्टा को पास्ता कहते हैं.

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  7. चलो अब यादगारों की अँधेरी कोठरी खोलें,
    कम-अज़-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा।

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  8. मजा आ गया आज का विवरण पढ कर.... मै भी जब कभी उन जगह पर जाता हुं तो अपने बचपन ओर जवानी के वो दिन ढुढतां हूं जो उस जगह बीताए थे, साथी तो नही मिले लेकिन हमे भी पनबाडी मिल गया था,क बहुत खुब

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  9. चित्र देखकर मुंह में पानी आरहा है. भोजन बडा सुस्वादु दिख रहा है, जाता हूं कुछ जुगाड करने.:)

    रामराम

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  10. पोस्‍ट का प्रवाह और शैली दोनों सुस्‍वादु.

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  11. अपने उस शहर में जाना जहाँ अपनी जवानी की शामें बीती थीं काफ़ी सुखद होता है और सारे खट्टे मीठे अनुभव याद आते हैं।

    आजकल मेन मैनू तक जाते जाते ही पेट भर जाता है।

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  12. शादियों के मेनू के बारे में कब से लिखना चाह रही थी ...होंच पॉच सा होता है सब कुछ ...देश के अलग -अलग प्रात के व्यंजनों से बढ़कर बात कांटिनेंटल फ़ूड तक पहुँच गयी है ...

    राजस्थान में खास परम्परिक खाना दाना मेथी, केर सांगरी , बाजरे मक्के की रोटी , सरसों का साग के साथ एक शादी में हमने आलू का पराठा और दही ,पास्ता , चाउमीन , डोसा , चिला, पानी पतासी सब साथ भी देखा ..
    खाने में तो किसको बुरा लगता है ...

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  13. @रश्मि जी,
    क्रश पहले के होंगें तो याद नहीं -भूल गया सब कुछ याद नहीं अब कुछ ..बस केवल ...
    नामों के सुधार के लिए शुक्रिया ...पास्ता श्याद हिन्दीकरण होगा क्योकि इटली में त का उच्चारण तो होगा नहीं!
    @वाणी जी ,
    अपने लेख के केंद्र बिंदु को लक्ष्य किया है ..

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  14. @रश्मि जी,
    क्रश पहले के होंगें तो याद नहीं -भूल गया सब कुछ याद नहीं अब कुछ ..बस केवल ...
    नामों के सुधार के लिए शुक्रिया ...पास्ता श्याद हिन्दीकरण होगा क्योकि इटली में त का उच्चारण तो होगा नहीं!
    @वाणी जी ,
    अपने लेख के केंद्र बिंदु को लक्ष्य किया है ..

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  15. एकाध फोटो मित्र आर एन चतुर्वेदी जी, बिटिया पारुल व द्वार पूजा का भी लगाना था न..!

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  16. लक्ष्मी टाकीज के बंद होने की खबर मायूस कर गयी.

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  17. hum late se aaye.....sayad barat lout
    bhi chuki ho........

    ek photo var-vadhu ke dalne the na
    bhaijee........


    pranam.

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  18. मुझे भी इलाहाबाद की गालियाँ याद आयीं . आजकल शादियों में मेनू में इजाफा जबरदस्त है . आज हम भी जायेंगे ऐसी जगह लेकिन बिना कैमरे के .

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  19. मजेदार स्वदिष्ट पोस्ट ..और खूबसूरत यादें हैं इस में ...

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  20. इटैलियन भाषा का तो पक्का पता नहीं...पर फ्रेंच में 'ट' और 'ड' नहीं हैं...'त और 'द' ही हैं...एक बार एक फ्रेंच शेफ का एक कुकरी शो देखा था...जिसमे उसका कहना .'.नाउ एद अ लितिल बित ऑफ बतर '..बहुत ही रोचक लगा था.

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  21. इस शहर के साथ तो तीस साल का संबंध रहा हमारा.. अब भी पटना जाते हुए और वहाँ से दिल्ली लौटते हुए जब गाड़ी आधी रात के बाद भी इलाहाबाद से गुज़रती है तो शीशे से स्टेशन देखना नॉस्टैल्जिक कर जाता है!!
    बिटिया के अखण्ड सौभाग्य की कामना हम भी करते हैं!!

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  22. ब्लोगिरी में एक आदत तो यह पड़ गई है कि जहाँ भी जाएँ , तुरंत फोटो खींच लेते हैं । हा हा हा ! हम भी यही करते हैं । बल्कि यूँ कहिये कि बस यही करते हैं ।

    बढ़िया यादों भरा संस्मरण ।

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  23. बहुत रोचक विवरण है...

    आपने पहले ही लिख दिया तो अच्छा हुआ नहीं तो चिल्ला को तो मैं डोसा ही समझ बैठा था :-)

    आजकल बारातों में कटहल के रसेदार लगता है कम चलते हैं...कांटिनेंटल खाने शायद पैठ बना चुके हैं :)

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  24. क्या हम इन कार्यक्रमों को सादा ढंग से नहीं कर सकते। माना कि लोगों के पास पर्याप्त धन है, पर उसका सदुपयोग तो किया ही जा सकता है। शायद आप जैसे लोगों को आगे आना चाहिए:)

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  25. बहुत खूब मिश्रा जी ... लगा मानो हम भी शादी में शामिल थे ... वैसे जब मैं कोई ऐसे शादी में जाती हूँ तो मेरा ध्यान सिर्फ मीठे पर ही होते हैं .. :)

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  26. अब समझ में आया कि आपकी लेखनी स्त्री तत्व प्रचुर , भोजनोंमुखी , सिनेमा रसलीन क्यों है :)

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  27. यह भी समझा दीजिये ऐसा कैसे समझ में आया -
    अब इतनी सारभूत टिप्पणी में तो कुछ समझ नहीं आता !

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  28. यह तो हाल ट्रेलर का है..न जाने मेन मेनु क्या रहा होगा...

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  29. @ यहाँ तो मामला ही बिलकुल उलट था वे गलियाँ उजाड़ सी हो गयीं थीं ...

    लगभग ऐसी ही भावना मुझे इस बार की बरेली-बदायूँ यात्रा में हुई।

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  30. बढ़िया यादों भरा संस्मरण| धन्यवाद|

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  31. मेरे क्लास में ७ छात्र और २३ लडकियां थीं ) के साथ लक्ष्मी टाकीज में देखी रूमानी फिल्मे, पहला क्रश ....
    ओये होए अरविन्द जी यादें ताजा होने की बधाई ....
    कुछ और भी बताते न ....

    मैंने जब उसके समय की बातें छेड़ी तो वह भावुक सा हो उठा -आश्चर्य है कोई तीस वर्षों बाद भी उसकी आर्थिकी स्टैटिक थी .....
    कितने सुखद होंगे ये पल .....

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  32. महंगाई के इस दौर में,कई आइटमों का स्वाद लेने के लिए शादी-ब्याह जैसे अवसर ही रह गए हैं। आपके साथ-साथ हमारा आस्वादन भी हुआ।

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  33. @हरकीरत ' हीर'
    मैं लिख दूं तो मगर तब आप ही कहेगीं यह सब नहीं लिखना चाहिए था :)

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  34. इलाहाबाद तो हम भी घूम आए हैं..अच्छी जगह है.
    _______________
    पाखी बनी परी...आसमां की सैर करने चलेंगें क्या !!

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