Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
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Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
कोई मेरे लिए भी कभी विरह-गीत गाएगा ?
जवाब देंहटाएंदिल से निकली तड़प :)
जवाब देंहटाएंये तो बहुत ही प्यारा विरह गीत है
जवाब देंहटाएंविरह में उद्दीप्त आशा को विज्ञ जन क्यों नहीं देख पा रहे :-)
हटाएं'मौन हैं वसंत के स्वर न उजास कोई''
जवाब देंहटाएंवाह !बढ़िया .
यह विरह गीत अच्छा लिखा है.
पण्डित जी! आपका यह रूप...!! किंतु विरह गीत पसन्द आया.. थोड़ी प्रांजलता का कमी दिखी, किंतु भावों के सम्प्रेषण में कविता सफल रही है... आपका यह विरह-गीत एक मिलन यामिनी की पहली सीढ़ी बने यही आशा है!!
जवाब देंहटाएंबिहारी बाबू का हम मनई नहीं हैं का
हटाएं.
जवाब देंहटाएंयह कौन है प्रीति यहाँ, जिसके लिए कविता बनी
उम्मीद का दामन लिए , इस उम्र में कविता रची !
आई थी शायद मुस्कराकर, बिन कहे ही खो गयी !
है कौन निष्ठुर यह यहाँ, इस कदर जो दिल में बसी !
वह कौन सी फिरदौस,जो दिलदार इतनी है यहाँ !
जवाब देंहटाएंआ जायेगी बेझिझक हो,यारों के इस दरबार में !
मानसिकताएँ सभी की , रोकती इज़हार को !
वरना दिलदारों की किल्लत है नहीं संसार में !
क्या बात है सतीश भाई -क्या खूब !
हटाएंवाह वाह!
हटाएंशब्दों में ढली वेदना ....
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह, आपकी अभिव्यक्ति और उस पर सतीश भाईजी का दहला।
जवाब देंहटाएंबाई द वे, मीत अगर जेंडरनिरपेक्ष शब्द है तो सही है वरना धारा 377 का ध्यान रखियेगा:)
अरे!!!! आप के यहाँ यह कविता चौंका रही है।
जवाब देंहटाएंवैसे - इतनी उदासी क्यों ? सर जी , आप कि मैडम कहीं बाहर गयी हुई हैं क्या ? :)
शिल्पा मैडम ,
हटाएंकभी मैडम और हबी की परिधि से बाहर भी आईये :p
:) :) :)
हटाएंham to aa hi nahi sakte :) ham to apne hubby ji kee meera bhi hain aur raadha bhi rukmini bhi - so ham baahar aa hi nahi sakte aur doosron kaa baahar aana samajh bhi nahi paate :) :)
Good to finally make your stand clear! :-)
हटाएं:)
हटाएंतालियाँ !!! इंजीनियर शिल्पा के जवाब पर !!
हटाएंजय हो :)
हटाएंसंयोग होगा न ऐसी अब आस कोई
मौन हैं वसंत के स्वर न उजास कोई
उसी की टेर में अब क्यों वक्त खोना
ह्रदय का रिक्त है फिर एक कोना
स्वप्न में सब मिलेगा एक दिन ,
हृदय का फिर भरेगा हर कौना। स्वप्न देखना ज़ारी रहे।वासना मुक्त करते हैं स्वप्न
कल 26/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
:p ग़जब.. आशावादी कविता :)
जवाब देंहटाएंकोयल मौन तुम्हें रहना है तुम्हें देख सब भाव पढेंगे ।
जवाब देंहटाएंवाणी की है शक्ति अपरिमित विग्रह निज अनुरूप गढेंगे।
शब्द -बेचारे पडते बौने भावों के हैं अनगिन छौने ।
तेरी मदिर-मधुर ध्वनि सुनकर प्रियजन सुधी प्रतीक्षा करते
कोयल तुम रहना पास हमारे बडे प्रेम से तुमसे कहते ।
प्रेम प्यास में ही पलता है तप ही तो जीवन गढता है ।
क्या बात है -असली कवि हैं आप ही...... हम तो पल्लवग्राही हैं -हर ओर निर्लज्ज हाथ आजमा लेते हैं!
हटाएंप्राञ्जल-प्रवाह-पूर्ण प्रशंसनीय प्रस्तुति । सुन्दर एवम् सम्यक शब्द-विन्यास । बधाई ।
जवाब देंहटाएंआभार ,प्रोत्साहन के लिए :-)
हटाएंवाह ... फिर आह ... दिल के ऐसे कोने खाली नहीं होने चाहियें ... विरह और मिलन .... बहुत कम है दूरी ...
जवाब देंहटाएंसभी के भीतर एक कवि होता है। मुझे लगता है.. बड़ा से बड़ा उपन्यासकार हो या आलोचक उसके हृदय में सर्वप्रथम कविता ही फूटी होगी। कवि हृदय हुए बिना साहित्यकार होना संभव नहीं। आप भी कवि हैं।
जवाब देंहटाएंकभी-कभी मिलन के क्षणों में भी ओने-कोने विरह-वेदना की यादें पहाड़ी झरनों-सी झरने लगती हैं और उनमें डुबकी लगाना सुखकर प्रतीत होता है। मित्र चिंतित न हों.. प्रस्तुत कविता भी कुछ ऐसी ही यादों की खिड़की लगती है। :)
वाह !यह तो सुखद सरप्राइज़ !!बधाई
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट मेरे सपनो के रामराज्य (भाग तीन -अन्तिम भाग)
नई पोस्ट ईशु का जन्म !
आपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ कड़ियाँ (25 दिसंबर, 2013) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,,सादर …. आभार।।
जवाब देंहटाएंकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
आशा का संचार करती
जवाब देंहटाएंबढ़िया विरह गीत है जिसे पढते पढते किसी शायर की दो पंक्तियाँ याद आ गयी,
जवाब देंहटाएंकब ठहरेगा दर्द ऐ दिल, कब रात बसर होगी
सुनते थे वह आयेंगे, सुनते थे सहर होगी !
@ है प्रतीक्षा अब नए इक मीत की
फिर वही छलना छलाना
बड़ा अजीब है यह प्रेम और विरह :)
अतिसुन्दर!
जवाब देंहटाएंमेंटल एज अपना असर छोड़ रहा है..:)
कवि युवा या बूढा हो सकता है, कविता नहीं! :-)
हटाएं" जयन्ति ते सुकृतिनो रससिध्दा: कवीश्वरा: ।
हटाएंनास्ति येषां यशः काये जरामरणजं भयम् ॥"
भर्तृहरि कहते हैं कि उन रससिध्द कवियों की जय हो जिनके यशः शरीर को बुढापा एवम् मृत्यु का भय नहीं होता ।
कमाल है ! चढ़ती ज़वानी की कविता ढलती ज़वानी मे !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंवाह! सुंदर सरल भावभीनी प्रभावमयी कविता पढ़कर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएं'नए इक मीत की प्रतीक्षा' इस कविता( विरह) में प्राण का संचार कर रही है..शुभकामनाएं..
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