शनिवार, 19 अक्तूबर 2013

' क्या सर, पैसा ही सब कुछ होता है जीवन में? " - सेवाकाल के तीन दशक (संस्मरण -6)

मेरे मीडिया मित्र ने अशोक मार्ग के अमर उजाला दफ्तर के सामने रुकने का इशारा किया और स्कूटर से उतरते ही मुझे गेट पर रोकते हुए खुद तीर की तरह अंदर घुस गए . माजरा मेरे समझ में ही नहीं आ रहा था . बहरहाल कुछ पलों के ही बाद वे एक विजेता की मुद्रा में बाहर निकले और हाथ में लिए कागज़ के टुकड़ों को श्रेडर मशीन से भी अधिक बारीक फाड़ते रहे -बुदबुदाए, लीजिये आपकी रिपोर्ट का काम तमाम ! मैंने प्रश्नवाचक की निगाह से देखा। मुझे समझाते हुए बोले कि ये वही कागज़ थे जिन्हें मैंने उन्हें सौंपा था . "..रिकार्ड रूम से जाकर निकाल लाया हूँ और इसके महीन टुकडे मेरी हाथ में हैं और कूड़े में चले जायेगें . अब आप बेफिक्र होकर जाईये और अपने निदेशक से कहिये कि जो खबर छपी उससे आपका कुछ लेना देना नहीं है . मैं इसलिए घबरा रहा था कि आपकी हैण्डराइटिंग में पूरी रिपोर्ट अखबार के रिकार्ड रूम में थी और अब मामला तूल पकड़ता जा रहा है तो आपका नुकसान हो सकता था .अब कोई चिंता की बात नहीं बेफिक्र होकर जाईये . " मैं अब जाकर उनकी बात के मर्म को समझ रहा था . बहरहाल मैंने उने शुक्रिया कहा और निदेशक मत्स्य से मिलने के पहले मैं उनसे नीचे के अधिकारी उप निदेशक मत्स्य आर एन वहल के पास पहुंचा . आर एन वहल साहब ने देखते ही पूछा कि अखबार में छपी रिपोर्ट का मसला क्या है और क्या तुमने वह खबर छपवाई है ? मैंने उनसे ऊपर की दास्तान सच सच बता दी और अनुरोध किया कि सर यह तो मैंने आपसे अनौपचारिक रूप से सच सच बता दिया मगर आप लिखित मांगेंगे तो मेरा जवाब यही रहेगा कि कथित खबर से मेरा कोई सरोकार नहीं है . वे किंचित दुविधा में दिखे मगर फिर मुझे अभयदान दे दिया और कहा कि अब किसी से भी यही कहना कि तुमसे उस खबर का कोई सम्बन्ध नहीं है .उन्होंने ऐसा ही तत्कालीन निदेशक से भी सम्भवतः बता दिया था क्योंकि फिर मुझसे कोई पूछताछ नहीं हुयी . ..
हाँ उस खबर से लीज डीड को फाईनल कराने की गतिविधियाँ तेज हो गयीं . मगर केन्द्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान मुम्बई के पदाधिकारी कुछ मीन मेख निकालते जाते और लीज डीड को अंतिम रूप देना टलता रहा . उन्ही दिनों जैसा कि मुझे याद है बलराम जाखड जी कृषि के केन्द्रीय मंत्री थे और उन्हें केन्द्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान मुम्बई वालों ने पकड़ा और जो कुछ भी कहा हो उनके द्वारा उत्तर प्रदेश में मत्स्य विकास की एक भव्य गोष्ठी रखवाई गयी और उस समय के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी जी से उदघाटन करवाया गया -अपने लिखित भाषण में मुख्यमंत्री जी ने चिनहट मत्स्य प्रक्षेत्र को केन्द्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान मुम्बई के रीजनल सेंटर को देने की उद्घोषणा कर दी . तब तो नहीं, नौकरी के कई वर्षों बाद मुझे मुख्यमंत्री जी द्वारा की गयी घोषणाओं के महत्व का पता चला .उनका उच्च स्तर पर बाकायदा अनुश्रवण किया जाता है और अनुपालन सर्वोच्च प्राथमिकता पर सुनिश्चित किया जाता है .
लोग मुझे बधाईयाँ दे रहे थे कि चलिए मेरा पिंड राज्य सरकार से छूटा और मैं अब केन्द्रीय सरकार का कर्मी बन जाऊँगा . मुख्यालय के मेरे अधिकारी के डी पाण्डेय जी जिनका जिक्र पहले आ गया है ने भी कहा चलो तुम्हारा वेतन भी अब बढ़ जायेगा। मुझे अच्छी तरह याद है मैंने इस बात पर अपनी अप्रसन्नता को छुपाते हुए उनसे एक मासूम सा सवाल कर डाला था, ' क्या सर पैसा ही सब कुछ होता है जीवन में " मुझे याद है उनके चेहरे पर एक खिसियाहट उभर आयी थी और तिक्त स्वरों में उनका जवाब था 'हां पैसा ही होता है, यह तुम आज नहीं तो कभी समझ जाओगे " .सच कहिये तो मैं आज तक श्री पाण्डेय जी की बात के मर्म को समझने में लगा हुआ हूँ और कोई फैसला नहीं कर पाया हूँ ,. कभी लगता है हाँ पैसा ही सब कुछ है मगर तभी कुछ ऐसा घट जाता है कि पैसा एकदम से महत्वहीन लगने लगता है . हाँ, अब तक के जीवन में इस द्वंद्व ने मुझमें पैसे के प्रति एक विक्षोभ सा उत्पन्न कर रखा है .और यह स्थाई भाव मेरे जीवन को कई तरह से प्रभावित करता रहा है . मुझे अतिशय मुद्रा प्रेमी मनुष्य होमो सेपियेंस से कोई हेय प्रजाति के से लगते हैं . संभव है यह लक्ष्मी कृपा से चिर वंचित होने का मेरा छुपा नैराश्य भी हो सकता है . कह नहीं सकता!
मैं सच कहता हूँ मुझे केन्द्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान में जाने की बिल्कुल इच्छा नहीं थी और इसका एक बड़ा कारण था मेरी होम सिकनेस . अपने पैतृक प्रदेश में नौकरी और मूल वास स्थान तक छठे छमासे होते रहना मुझे बेहतर लगता था न कि केन्द्रीय सेवा में जाकर भारत के किसी कोने में दुबक जाना . एक केन्द्रीय सेवा के इंटरव्यू काल में मैं एक अन्य कारण से भी नहीं गया था . इसकी चर्चा अगली बार ......

21 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अच्छा लगता है इस प्रकार संस्मरण लिखते हुए उन बीते हुए पलों को पुनः जीना और ईमानदारी से रिकॉर्ड करना.. एक खीरे की तरह की पूरा खा लेने के बाद आखिर में कडवा होने के कारण मेरी इच्छा मर गयी है!!

    जवाब देंहटाएं
  2. मैं तो कहता हूँ कि आपके मुताबिक ही विभाग मिला,मछली पकड़ने वाला:-)

    जवाब देंहटाएं
  3. अतिशय मुद्रा प्रेमी मनुष्य.... :-)बड़ी संख्या में मिलते हैं ऐसे लोग भी, आप ईमानदारी से सहेज रहे हैं खट्टी मीठी स्मृतियाँ

    जवाब देंहटाएं
  4. aisi smrutiyan vakt gujarne ke baad bhi bahut khuchh sikha jati hai ..sajha karne ka shukriya ..

    जवाब देंहटाएं
  5. पैसा बहुत कुछ है सब कुछ नहीं । पैसा साधन है साध्य नहीं । अनुभूत अभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सामान्य व्यक्तियों के लिए पैसा बहुत कुछ है , सब कुछ नहीं ….
    आपकी स्मृतियों में कितने रहस्योद्घाटन अभी बाकी हैं !!

    जवाब देंहटाएं
  7. ' क्या सर पैसा ही सब कुछ होता है जीवन में "
    यह कहते हुये कित्ते तो क्यूट लग रहे होंगे आप। :)


    रोचक संस्मरण!

    जवाब देंहटाएं
  8. संस्मरण पढ़ते हुए इसकी रोचकता पाठक को बांधे रखती है। अच्छा लग रहा है पढ़ना।

    जवाब देंहटाएं
  9. लक्ष्मी का वाहन उलूक है। सरस्वती का वाहन हंस है।जिसमें ज्ञान प्राप्त करने की चाहना बनी रहे वही ब्राह्मण है। आपके साथ ईश्वर ने सर्वॊत्तम किया है।पैसा हाथ का मैल है। बढ़िया श्रृंखला चल रही है।

    जवाब देंहटाएं
  10. पिछले अंक की उत्कंठा की बैंड बज़ गई मैंने सोचा था कि रहस्य रोमांच और भी ज्यादा निखरेगा !

    जवाब देंहटाएं
  11. चलिए, आपने बता भी दिया और छिपा भी लिया। गजब।

    जवाब देंहटाएं
  12. इस पोस्ट की चर्चा, मंगलवार, दिनांक :-22/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -32 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा

    जवाब देंहटाएं
  13. पत्रकारों से घनिष्ठता के मिश्रित परिणाम होते हैं। पैसों को लेकर आपकी राय से सहमति रखता हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुधा सच कहने से हानि नहीं होती है।

    जवाब देंहटाएं
  15. चलिए जारी रखिये संस्मरण को ...
    नई पोस्ट मैं

    जवाब देंहटाएं
  16. मैंने उनसे ऊपर की दास्तान सच सच बता दी और अनुरोध किया कि सर यह तो मैंने आपसे अनौपचारिक रूप से सच सच बता दिया मगर आप लिखित मांगेंगे तो मेरा जवाब यही रहेगा कि कथित खबर से मेरा कोई सरोकार नहीं है . :) recording karni chahiye thi :p
    उनसे एक मासूम सा सवाल कर डाला था, ' क्या सर पैसा ही सब कुछ होता है जीवन में " sach mein masoom sa :)

    जवाब देंहटाएं
  17. एकल व्यक्तित्व के अनुसार जो सरस्वती के सच्चे उपासक होते हैं उनका लक्ष्मी से कुछ ऐसा ही सम्बन्ध बन जाता है..

    जवाब देंहटाएं
  18. मुझे तो लगा था खबर के भूकंप ने बहुत उप्तात मचाया होगा. शायद आपके वरिष्ठ ये ना सोच बैठे हों के अगर ज्यदा कारवाई की तो कहीं उसकी भी खबर ना आ जाए.

    जवाब देंहटाएं
  19. sahamat hun ki jeevan men paisa hi sab kuchh nahin hai ... rochak abhivyakti...abhaar

    जवाब देंहटाएं

यदि आपको लगता है कि आपको इस पोस्ट पर कुछ कहना है तो बहुमूल्य विचारों से अवश्य अवगत कराएं-आपकी प्रतिक्रिया का सदैव स्वागत है !

मेरी ब्लॉग सूची

ब्लॉग आर्काइव