मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

नौकरी के तीन दशक -संस्मरण श्रृंखला

विश्वविद्यालय से तुरंत निकलने वाले को पढ़ने पढ़ाने का काम मिल जाय तो क्या कहने . वैसे भी मेरी अकादमीय रूचि भी थी तो जब प्रशिक्षण संस्थान के छात्रों को मत्स्य विज्ञान पढ़ाने का मौका मिला तो मन रम गया . उन्हें पढ़ाने के पहले मैं भी विषयों का गहन अध्ययन करता और फिर यथा संभव विषय को रोचक और सरल बनाने का प्रयत्न करता . फिर भी मैं देखता था कि कुछ प्रशिक्षार्थी पढने में तनिक भी रूचि नहीं लेते थे और वे ऐसे लोग थे जिन्हें विभागीय प्रशिक्षण के लिए तब भेजा गया था जब वे रिटायर्मेंट के करीब पहुँच चुके थे . मुझे नहीं लगता कि ऐसे उम्र वाले विभागीय लोगों को प्रशिक्षण देने का कोई लाभ भी है . 
बहरहाल सप्ताह में तीन व्याख्यान का मेरा कार्य समुचित तरीके से चल रहा था . एक दिन प्राचार्य ऐ .के . राय ने बुलाया और जो कुछ भी कहा उससे मैं स्तब्ध रह गया . उन्होंने कहा कि संस्थान को केन्द्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान मुम्बई जो आयी सी ऐ आर का उपक्रम है के द्वारा अधिगृहीत किया जाने वाला है . मैंने छूटते ही पूछा फिर यहाँ के स्टाफ का क्या होगा? उन्होंने कहा कि हम लोगों की तैनाती तो फील्ड में कर दी जायेगी मगर आपकी तो कोई पोस्ट ही मैदान में नहीं है आपकी सेवाएँ समाप्त भी हो सकती हैं . मेरा दिल धक से रह गया .
मैं यह समझ नहीं पा रहा था कि कमीशन से नियुक्ति पाए व्यक्ति को इतनी आसानी से सेवा मुक्त कैसे किया जा सकता है .
 लोगों ने कहा कि अपना नियुक्ति पत्र देखिये। हाँ, मेरे नियुक्ति पत्र में यह था कि उभयपक्ष (मैं या सरकार) तीन महीने की नोटिस देकर नौकरी से अलग हो सकते हैं . बैठे बिठाये एक मुसीबत आ खडी हुई थी . मैंने इस बिंदु पर विद्वानों और वकीलों की राय लेना शुरू कर दिया और अपने विभाग के तत्कालीन सचिव को संभावित स्थिति में मुझे भी केंद्र सरकार में आमेलित कर लेने की प्रार्थना आवेदित की और अपने तत्कालीन निदेशक ऐ के सिंह से मिला . उन्हें मेरी नौकरी छिनने की समस्या का अहसास था . उन्होंने कहा कि केन्द्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान मुम्बई के निदेशक से वे बात करेगें .
एक नौकरी  मिली भी तो दुनिया भर की फजीहत शुरू हो गयी थी . और  नौकरी भी ऐसे ही मिल गयी थी .  कोई संघर्ष तो किया नहीं था मैंने. मगर नौकरी जाने की सोच मन दुखी हो जाता . पढ़ने पढ़ाने की मेरे मन की नौकरी थी .और वैसे भी मेरी हाबी थी आम आदमी के लिए /लायक विज्ञान विषयक लेख लिखना . तो इस नौकरी से जो कुछ भी मिलता  वह मंजूर था . मुझे अपनी हाबी बनाए / बचाए रखने का भी यहाँ मौका था . लोकप्रिय विज्ञान लेखन में उस समय मेरा नाम लोग जानने लग गए थे . सोचा तो यह था कि एक अदद नौकरी  होगी और मेरी हाबी भी चलती रहेगी। मगर अब ये सारे हवाई किले ध्वस्त होने जा रहे थे . 
ऐसे ही उहापोह के  दिन कट रहे थे तभी एक दिन मुझे निदेशक मत्स्य का सन्देश मिला कि तुरंत मिलो । लगा कि फैसले की घड़ी आ गयी। दुश्चिन्ताग्रस्त मैं भागा भागा निदेशालय पहुंचा। निदेशक के कक्ष में पहुंचते ही उन्होंने मुझे कहा कि अमुक तारीख को मुम्बई के केन्द्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान में मेरे समतुल्य एक पद का इंटरव्यू है और उनकी बात संस्थान के निदेशक श्री एस एन द्विवेदी से हो गयी है और वे तुम्हे साक्षात्कार में शामिल कर लेगें . मैंने कहा कि उक्त पद के लिए मैंने तो अप्लाई ही नहीं किया है , उन्होंने घुड़कते हुए कहा कि कह तो दिया कि उनसे मेरी बात हो गयी है .
कोई आशा की किरण तो दिखी .मैंने मुबई(तब बम्बई) जाने का फैसला किया . किसी महानगर में जाने का यह मेरा पहला अवसर था . और वह भी मुम्बई . मैं रोमांचित भी था और आशंकित भी कि पता नहीं क्या होगा . उस समय मेरे डिप्टी डाइरेक्टर थे श्री आर एन वहल . उन्होंने मुझे मुम्बई जाने की पूरी ट्रेनिंग दी -दादर माने जानते हो? दादर माने सीढी . तुम दादर में ही उतर कर सीढी से बिल्कुल विपरीत दिशा में लौटना और तब तुम्हे अंधेरी के लिए लोकल ट्रेन मिलेगी -लोकल ट्रेनें दनादन छूटती हैं इसलिए कोई छूट जाय तो परेशान मत होना दूसरी आ जायेगी मगर वहां ट्रेने एक मिनट भी नहीं रुकतीं इसलिए फुर्ती मगर सावधानी से चढ़ना . अंधेरी उतर कर ऑटो कर सेवेन बंगलो पहुंचना जो वर्सोवा में है और वहीं केन्द्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान पूछ लेना . एक अभिवावक की तरह उन्होंने मुझे यह पाठ अच्छी तरह पढ़ा दिया . ट्रेन में ही मेरे डिब्बे में एक और आवेदक उसी पद के लिए मिल गए .एक से भले भले दो! यहाँ मैं मुम्बई की अपनी पहली यात्रा की दास्तान को मुलतवी कर आगे बढ़ता हूँ .
संस्थान में पहुँचने में कोई दिक्कत नहीं हुयी . मैं उसी दिन पहुंचा जब इंटरव्यू था . मैंने निदेशक को अर्जी दी . थोड़ी देर में उन्होंने बुलाया . आने का हेतु पूछा . मैंने तन कर जवाब दिया , आपकी निदेशक मत्स्य उत्तर प्रदेश से बात हुयी थी उसी सिलसिले में आया हुआ हूँ . उन्होंने चेहरे को भावशून्य रख फिर पूछा कि मकसद क्या है . मैंने चिनहट के प्रादेशिक संस्थान के टेक ओवर की स्थिति में खुद को आमेलित करने की बात का हवाला दिया और कहा कि आपने आज होने वाले इंटरव्यू में मुझे निदेशक मत्स्य उत्तर प्रदेश से कहकर बुलवाया है . इतना सुनते ही वे आग बबूला हो उठे-कहा कि क्या मैंने  इस पद के लिए अप्लाई किया है? . मैंने कहा नहीं, मगर निदेशक से आपकी बात .....वे फिर झुझलाये - बिना आवेदन के आपका साक्षात्कार कैसे हो सकता है . मैंने स्पष्ट जवाब दिया यह आप जानें और मेरे निदेशक।। मुझे क्रोध आ रहा था (मेरी कमजोरी) -कि इतनी दूर बुलवा लिया और अब यह कन्फ्यूजन . मेरे निदेशक और इनमें कोई न कोई फाऊल प्ले तो कर रहा था . उन्होंने कहा वेटिंग लाउंज में जाकर बैठिये .
आश्चर्य, इंटरव्यू के लिए मेरा नाम पुकारा गया . इंटरव्यू में सरल सरल सवाल पूछे गए . मसलन मुम्बई में कौन सागर है अदि आदि . मुझे याद है मैं अपने तमाम रिश्तेदारों के आग्रह के बाद भी वहां रुका नहीं था . हाँ चौपाटी, जुहू घूमा . तारापोरवाला  का विशाल ऐक्वेरियम देखा और रात की गाडी से घर वापस हो चला . मेरे साथ इंटरव्यू देने वाले सहयात्री भी बिना रिजर्वेशन मेरे भरोसे साथ हो लिए थे . और रास्ते भर दायाँ बाजू बायाँ बाजू बोलते आ रहे थे -हद है केवल एक दिन में ही वे बंबईया बोली बोलने लगे थे . हममें से ज्यादातर लोगों के सांस्कृतिक संस्कार ऐसे ही हैं -अपनी भाषा बोली भी चमक दमक के आगे फीकी पड़ जाती है . मैंने उन्हें बम्बईया बोलने से टोका भी मगर उनका दायाँ बाजू बायाँ बाजू बदस्तूर जारी रहा जैसे यह उनकी जुबान पर चढ़ गया हो ...
जारी .....

17 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा लगा क्योंकि मै भी प्रशिक्षण संस्थान में ६ वर्ष गुजार चुका हूँ इस लिए सहमत हूँ " विभागीय प्रशिक्षण के लिए तब भेजा गया था जब वे रिटायर्मेंट के करीब पहुँच चुके थे . मुझे नहीं लगता कि ऐसे उम्र वाले विभागीय लोगों को प्रशिक्षण देने का कोई लाभ भी है" .

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  2. यह तो जीवन का कटु एवं कठोर दौर रहा..

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  3. बरोबर सरजी वहां जब सरकारी द्युटी लगती है सिपहिया कहते हैं आज बंदोबस्त में हैं। उनसे आप

    पूछिएगा -भाई साहब ये ठीक है -"बरोबर "-ज़वाब मिलेगा।

    ऐसा ही इच है मुंबई। क्या करने का साहब ?

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  4. इंटरव्यू का रेजल्ट बताये बिना ‘जारी’ की तख्ती लगाकर चल दिये ब्रेक पर...। गजब करते हैं आप भी।

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  5. सरपट साक्षात्कार हुआ ये तो। उस समय तक वैज्ञानिक चेतना का हल्ला हो गया था कि नहीं?

    अगली कड़ी का झक मारकर इंतजार है! :)

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  6. कमीशन से पाए सरकारी नौकरी में इस तरह का मकड़जाल भी होता है पहली बार पता चला. आप उसी विभाग की सेवा में हैं तो यह तो तय है कि पूरे प्रकरण का सुखद अंत हुआ होगा.

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  7. जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव चल - चित्र की तरह ऑंखों के सामने आ जाते हैं । मैं जब पहली बार 1972 में मुँबई गई थी तब मुझे एलीफेन्टा में बहुत मज़ा आया था । मैंने " मराठा मन्दिर " में एक मूवी भी देखी थी " गुड्डी।" प्रवाह-पूर्ण प्राञ्जल प्रस्तुति ।

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  8. रोचक ...हाँ, नौकरी के नाम सभी थोड़े चिंतित हो जाते हैं, इंटरव्यू के समय तो और भी ..... वैसे मुंबई और मुंबईवासियों के रंग भी बड़े अलग हैं

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  9. कभी-कभी गुस्सा दिलाने में सफल हो जाता है इंटरव्यू बोर्ड ! आपके संस्मरण हममें से कईयों के लिए प्रासंगिकता रखते हैं...

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  10. बड़े बड़े मानसिक झटके तो आप प्रारम्भ में ही खा लिये, अब देखते हैं कि आगे क्या होता है।

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  11. हिट आटोबायोग्राफ़ी के सब मसाले लिये हैं आपके संस्मरण।
    हम अगस्त में मुंबई गये थे तब भी हिन्दी से ही काम चलाया और बखूबी चलाया, कम से कम इस मामले में ’चढ़े न दूजो रंग’ वाले हैं :)

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