गुरुवार, 5 सितंबर 2013

हाय रे हिंदी ब्लॉगर पट्टी!

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा में हिंदी ब्लॉगिंग और सोशल मीडिया पर दो दिवसीय सेमिनार एवं कार्यशाला (20 और 21 सितंबर 2013 को ) का निमंत्रण  आज मिल गया . आपको मिला या नहीं? आपने अगर प्रस्ताव भेजा होगा तो आपको भी निमंत्रण मिल गया होगा .अपना मेल या स्पैम भी खंगाल लीजियेगा . निमंत्रण पत्र में कहा गया है कि "आपको अधिकतम 3-एसी में आने जाने का यात्रा भत्ता दिया जाएगा एवं आपके यहाँ ठहरने और भोजन आदि का भी प्रबंध हैं। आप आगमन की तिथि और स्टेशन की जानकारी हमें जल्दी दे देंगे तो इसमें सुविधा होगी। आप वर्धा या सेवाग्राम किस गाड़ी से किस समय उतरेंगे, इसका स्पष्ट उल्ले़ख प्रेषित करें। हम आपके मेल का इंतजार कर रहे हैं। " 
ज़ाहिर है आयोजन समिति बहुत ध्यानपूर्वक आयोजन के बारीक पहलुओं को भी देख रही है। अन्यथा कई आयोजक यह कहते हुए झेले गए हैं कि स्टेशन से उतर एक रिक्शा पकड़ कर पूछते पाछते चले आईयेगा -फला सिनेमा टाकीज के आगे से पतली सड़क पर मुड़ कर फिर बाएं चल कर गली से होते हुए नीम के पेड़ से दायें हाते के बाएं किनारे से अंदर की मस्जिद की दीवार से ही सटे संस्थान पर उतर जाईयेगा -पहली मंजिल  के बरामदे में पोस्टर दिख जाएगा ..... :-) मुझे उम्मीद है इस सेमीनार को एक सुखद और आत्मीय अकादमीय परिवेश में आयोजित करने में समिति आगे भी सचेष्ट रहेगी . मशरूम की तरह सरकारी धन पर उगने पलने और बढ़ने वाली तमाम समितियों जैसा आचरण -व्यवहार यहाँ देखने को नहीं मिलेगा!
मगर आयोजक ही नहीं हिन्दी के ब्लॉगर/ विद्वान भी कम नखरे नहीं दिखाते जबकि अंग्रेजी के ब्लॉगर बहुत संजीदे सुलझे और साफ़ दृष्टि वाले होते हैं -यह बात मैं कम से कम अपने तीन दशक के अनुभव पर कह रहा हूँ .कमोबेस स्थिति जैसे पहले थी अब भी वही है, हाँ ब्लॉगर भी अब इसी सूची में आ गए हैं . कई लोगों को आज भी इस सेमीनार की घोषणा का  पता ही नहीं है -मैंने एक से कहा कि क्या आप सत्यार्थ मित्र ब्लॉग नहीं पढ़ते तो उनका जवाब था पढता तो हूँ .फिर मेरा प्रश्न था वर्धा सेमीनार पर उनकी एक पोस्ट भी तो थी? -कुछ याद करते हुए वे बोले हाँ कुछ कुछ याद आ रहा है। "फिर तो आपको पूरी जानकारी हो गयी होगी? " इस सारे पूछताछ का रिजल्ट यह निकला कि इतनी फुर्सत कहाँ  है, पोस्ट की एक एक लाईन ध्यान से पढी जाय . जितने समय में एक पढ़ेगें उतने में तो दर्जन भर से ऊपर में जा टिपिया आयेगें? 
हद है! यह गंभीरता है हिन्दी ब्लॉगर पट्टी की . जबकि अंग्रेजी के ब्लागर पूरी जिम्मेदारी से पोस्ट पढ़ते हैं ,आवश्यक पृच्छायें करते हैं और आयोजनों में पूरे जोश खरोश के साथ शरीक होते हैं और अपने अकादमीय सरोकारों को पूरा कर एक किस्म का आत्मगौरव महसूस करते हैं . मैं यह सब इस आधार पर लिख रहा हूँ कि मैंने इन दोनों ही संस्कृतियों को करीब से देखा है .
हिन्दी के ब्लॉगर में एक तो आत्मविश्वास की भी कमी दिखती है . मैंने एक से इस सेमीनार में जाने का अनुरोध किया तो जवाब था अब मैं कहाँ इस योग्य हूँ सर कि ऐसे बड्डे बड्डे लोगों के बीच जाकर कुछ कह सकूं -मैं तो बस यहीं ठीक हूँ! अब यह सुनकर एक तरह की असहजता जो होती है (बड्डे बड्डे सुनकर ) सो अलग, एक किस्म  की बेबसी भी हो आती है कि अगले को कैसे समझाया जाय . एक ने ज्यादा चर्चा ही इस पर नहीं होने दी और छूटते ही जवाब आया "आई एम नाट इंट्रेस्टेड " लो जी ..डिजिटल मीडिया से  मन नहीं भरा तो मुद्रण माध्यम तक पहुँच कर छपास तो मिटायी जा रही है मगर सेमिनार के सरोकार पर टका सा जवाब .

एक और जवाब तो हतप्रभ करने वाला था -मुझे पता है इन सम्मेलनों सेमिनारों में क्या होता है? व्यभिचार के अड्डे हैं हैं ये ..लो जी कल्लो बात ... हा हा। और कोढ़ में खाज यह भी-  अब हम ठहरे खानदानी इज्जत आबरू वाले लोग -कैसे जा सकते हैं इन सेमीनार सम्मेलनों में? अरे उन्हें/ मेरे  उनको पता लग जाय बस! मेरा तो काम तमाम! अब घर में ब्लॉग लिख लेना ,अखबारों में छपने के लिए मेल से रचनाएं भेज देना, छपने पर फेसबुक पर टांक आना इज्जत के साथ यह सब बढियां है -ना बाबा ना मुझे सेमीनार में नहीं जाना! अब आप खुद ही फैसला ले लीजिये कि हिन्दी ब्लॉगर किस युग में जी रहे हैं?

लोगों के तरह तरह के आग्रह हैं . पूर्वाग्रह हैं . हाँ रचनात्मक प्रतिभायें  है मगर ऐसी प्रवृत्तियाँ ? अरे हम तो अब इसलिए वेबिनार की वकालत करते हैं कि उम्र अधिक हो रही है तो आने जाने में असुविधा होने लगी है . मगर नयी पीढी को ये क्या हो गया है? अकादमीय सरोकारों से यह कैसा मुंह मोड़ना या पलायन? मुझे तो इस प्रवृत्ति पर बहुत क्षोभ है! चलिए, जो वर्धा चल रहे हैं उनसे वहीं मुलाक़ात होगी . सिद्धार्थ जी कृपया आमंत्रित लोगों की एक सूची अपने ब्लॉग पर और वर्धा विश्वविद्यालय के वेबसाईट पर प्रकाशित करें ताकि हम सभी हिन्दी ब्लागिरी के ध्वजावाहकों को जान सकें और  सेमीनार पूर्व संवाद भी स्थापित कर सकें!

34 टिप्‍पणियां:

  1. वेबनर और वेब -नारी होना एक बात है सम्मेलनी होना दूसरी। जैसे हर कवि मंचीय नहीं होता वैसे ही हर ब्लोगर सम्मेलनीय नहीं होता है। अरविन्द भाई साहब की तारीफ़ करनी पड़ेगी-सबको आगे लाते हैं सबकी ख़ुशी में नांचते हैं सतो गुण बढ़ा रहता है इनमें इसीलिए दूसरे की प्रशंसा भी कर लेते हैं। हम एक मर्तबा जब मुंबई में थे इन्होनें ने हमें भी नै दिल्ली आने के लिए न्योता था अंतर -राष्ट्रीय ब्लागरी बैठक में। हमारे अन्दर वराह भगवान् का अंश ज्यादा रहता है (बोले तो तमोगुण जो आलस्य और प्रमाद का अधिष्ठाता है ),मन का आलस्य छाया रहा हम नहीं गए सो नहीं गए। वैसे तन से भी थोड़ा विकलांगई हैं। दस टंटे हैं अमरीका आते हैं तो हमेशा वील चेयर लेते हैं। अंग्रेजी संडास चाहिए हर जगह। बस कई किस्म के अवरोध आ जाते हैं। यात्रा कई मर्तबा दुष्कर लगती है जहाज हवाई में भी तन जुड़ जाता है २० घंटा उड़ान तौबा तौबा।

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  2. हम वहां होते तो अवश्य कोशिश करते शामिल होने की.
    आपको बधाई और शुभकामनाएं.सेमीनार सार्थक रहे.

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  3. ऐसे ही खबर लेने से हम सबका आलस्य टूट सकता है।

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  4. पिछले कार्यक्रमों के बारे में और आयोजन में शामिल लोगों के बारे में रुचिकर और अरुचिकर बातें विस्तार से पढ़ने को मिली अब उन गलतियों की पुनरावृत्ति न हो तो मिठास बनी रहेगी हम तो आपके कार्यक्रम में शामिल होंगे दीर्घा में ताकि अच्छे लोगों से मुलाक़ात कर सकें शुभकामनाओं सहित

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  5. आपने लिखा....हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 07/089/2013 को
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!

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  6. अपने छोटे से अनुभव में मैंने कोई आयोजन अभी तक नहीं देखा जिसमे इस तरह के शिकायत भरे स्वर नहीं उठे हों. पर जिसको कुछ अच्छा करना होता है उसे आगे बढ़ना ही होता है. समय का काम है दूध और पानी को अलग करना. सम्मलेन के लिए शुभकामनायें. अगर विडियो रिकॉर्डिंग हो पाए तो अच्छा रहेगा.

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  7. वर्धा विश्वविद्यालय द्वारा आमंत्रण के लिए जो ई-मेल भेजी गयी है वह एक साथ सभी प्रतिभागियों को भेजी गयी है। इसलिए उनकी सूची ये सभी प्रतिभागी अपने मेलबॉक्स से ही तैयार कर सकते हैं और संवाद/ संपर्क कायम कर सकते हैं। जब ये 20-21 को वर्धा में मिलेंगे तो सभी के लिए इनका नाम और काम स्वयं उजागर हो जाएगा। सबके कैमरे सक्रिय रहेंगे तो लाइव ब्लॉगिंग से लेकर पॉडकास्ट तक होगा। मैं तो “उंगलिया फँसाकर” इन्तजार कर ही रहा हूँ। :)

    एक पोस्ट तैयारी के सिलसिले में बहुत जल्द डालता हूँ।

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    1. आपको शुभकामनाएं। आपके प्रयास सफल हों।
      :)

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    2. यह तो वर्धा विश्वविद्यालय का दायित्व होना चाहिए कि इस आयोजन को प्रमुखता से अपने वेबसाईट पर प्रदर्शित करना चाहिए

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  8. बहुत अच्छी पहलहै यह संगोष्ठी।

    लेकिन यह प्रेशराइएशन कि जो नही जा सकते वे या तो घमंडी हैं /या उनमे आत्मविश्वास की कमी है /या वे संजीदा नही हैं /आदि आदि मुझे ठीक नही लगता।

    यदि किसिमे क्रियेटिविटी है और वह ब्लॉग लिख रहा / रही है तो यह उसका अपना निर्णय है। यदि वह संगोष्ठी में भाग ले सकता / सकती / भाग लेना चाहता / चाहती है / नहीं ले सकता / सकती.... यह हर व्यक्ति का व्यक्तिगत निर्णय है। हम में से अधिकाँश यहाँ या तो होबी के रूप में लिखते हैं या फिर वे महसूस करते हैं कि उनके पास कुछ है जिसे साझा करना उन्हें पसंद है। फिर कुछ लोग अपने राजनैतिक उद्देश्यों या अपनी महत्वाकांक्षाओं से। इनमे से किसी पर भी दबाव डालना कि उन्हें संगोष्ठी (यों) में सम्मिलित होना ही चाहिए / यह उनका कर्त्तव्य जैसा है - यह उचित नहीं।

    मेरे विचार में सिद्धार्थ जी के प्रयास प्रशंसनीय हैं ।लेकिन दबाव नहीं होना चाहिए किसी पर भी। सबकी अपनी जिंदगी और अपनी व्यस्तताएं होती हैं। कोई अपने आप को व्यस्त कह कर आपका अपमान नही करना चाहता हो और modestlyअपने आप को कम और आपको बड़ा कह कर सम्मान पूर्वक आपको मना किया हो तो उसे यहाँ सार्वजनिक मंच पर उस बात को लेकर व्यंग्य मुझे उचित नहीं लगता।

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    1. सहम्त हूँ आपसे। लेकिन मुझे नहीं लगता कि कोई जबरिया दबाव बना रहा है। :)
      इसे आप यूँ समझिए कि हम जैसे लोग कुछ ज्यादा उत्साही हो गये हैं इस माध्यम के प्रति तो उन्हें दूसरों की ‘साधारण रुचि’ या अन्यमनस्कता देखकर थोड़ी झुँझलाहट हो सकती है। मैं इसमें घमंड या आत्मविश्वास की कमी जैसी बात नहीं देखता। आदरणीय अरविंद जी थोड़ा भावुकतावश सेंटियाकर ऐसा कह गये होंगे वर्ना िस आभासी दुनिया में किसी का क्या अख्तियार है।
      मुझे तो एल.आई.सी. की टैग लाइन याद आती है- “बीमा आग्रह की विषय वस्तु है” बावजूद इसके कि बीमा कराने में आपका ही लाभ होगा कंपनी आपसे बार-बार आग्रह करती है। :)
      अब ये मत कहिएगा कि इसमें कंपनी का लाभ ज्यादा है क्योंकि ब्लॉगगोष्ठी से किसी को कोई निजी लाभ नहीं है।

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    2. @शिल्पा जी की टिप्पणियाँ मुझे जवाब देने को बाध्य करते हैं -
      मैंने महज हिन्दी अंग्रेजी ब्लागरों की तुलना की थी बस :-)
      सारी मजबूरियाँ , छद्म आत्मसम्मान,गलदश्रु और घरघुसपना केवल हिन्दी ब्लागरों के साथ क्यों ?

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    3. :)
      :)
      @@ सिद्धार्थ जी - मैं यह नहीं कह रही कि इसमें आयोजकों का कोई भी फायदा है - लेकिन यह कह रही हूँ कि आवश्यक नहीं कि हर व्यक्ति जो ब्लॉग्गिंग कर रहा हो वह संगोष्ठी में शामिल होने को अपना कर्त्तव्य माने - भले ही यह उसके लिए फायदेमंद हो तब भी :)

      @@ मिश्र सर - बिलकुल ऐसा नहीं है कि यह सब सिर्फ हिंदी ब्लोग्गेर्स के साथ ही होता हो - लेकिन डिग्री अधिक हो सकती है । जैसे मैं अपना ही उदाहरण लूं तो मैं ब्लोगिंग एक हॉबी की तरह करती हूँ - ब्लॉग पर भी जितना लिखना चाहती हूँ जितना पढना चाहती हूँ - उतने के लिए भी समय नहीं पूरा पड़ता - संगोष्ठी में जाना तो खैर मेरे लिए संभव ही नहीं। और ऐसी ही स्थिति कई और लोगों के साथ हो सकती है। इस तरह के दबाव मुझे अनुचित लगते हैं।

      हटाएं
  9. जो लिखा गया है उसे हम अपने ऊपर घटित होता क्यों देखें। कमंडल आपका है आप ग्रहण मत करो।मान सम्मान अपमान और चिठ्ठा विषय अंतरण है। अरविन्द जी के प्रयास उत्प्रेरक हैं अवमानना परक नहीं हैं।

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  10. अब खुशवंत सिंह जी हर महिला को ताउम्र अपनी दोस्त बतलाते रहे। "वह बहुत बिंदास लग रहीं थीं उनसे मेरी पहली मुलाकत तब हुई थी जब मैं फलाने फोर्ड में स्विमंग पूल तैर रहा था। वह उनका पैरहन। ………"अब आप या कोई और इसमें खुशवंत जी से चिढने लगे तो उसकी मर्जी। उनका काम ही संस्मरण लिखना रहा है बिंदास दो टूक।

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  11. बहुत सुन्दर पोस्ट |लाजवाब टिप्पणियों के साथ |आभार सर जी |

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  12. प्रशंसनीय पोस्ट । वस्तुत: बात यह है कि हर विधा में क्लासेस होती हैं । ये कक्षायें नर्सरी से शुरु होती हैं और पी एच डी / डी लिट तक चलती हैं,हम सबकी अपनी-अपनी श्रेणी है । हम सब अलग-अलग जगह पर खडे हैं इसलिए विचारों में भिन्नता बहुत स्वभाविक है पर हमारी मन्ज़िल एक ही है और इसीलिए हम साथ-साथ हैं ।

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  13. सबकी अपनी - अपनी प्राथमिकतायें हैं।
    घरघुस्सूओं में सिर्फ महिलाओं को ही लपेटा है आपने जैसे सारे कामकाजी ब्लॉगर्स सम्मलेन / गोष्ठियों में जाते ही हैं!!

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  14. भाषा के आधार पर अहमन्यता अगर है तो वह अंग्रेजीदां लोगों में अधिक पाई जाती है। वस्तुतः मैं व्यक्तिगत रूप से भाषा को आधार मानते ही नहीं।
    किसी बात को कम समझना या आधा-अधूरा समझना उसकी व्यक्तिगत क्षमता है।
    सम्मेलन में हम तो जा रहे हैं,जो नहीं जा रहे उनकी भी अपनी च्वाइस है। इसमें गलत क्या है ?

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  15. भाषा के आधार पर अहमन्यता अगर है तो वह अंग्रेजीदां लोगों में अधिक पाई जाती है। वस्तुतः मैं व्यक्तिगत रूप से भाषा को आधार मानते ही नहीं।
    किसी बात को कम समझना या आधा-अधूरा समझना उसकी व्यक्तिगत क्षमता है।
    सम्मेलन में हम तो जा रहे हैं,जो नहीं जा रहे उनकी भी अपनी च्वाइस है। इसमें गलत क्या है ?

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  16. पोस्ट अच्छा लगा, पर जो इस तरह के आयोजनों में नहीं जाना चाहें, उनकी इच्छा का हमें सम्मान करना चाहिए.

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  17. हो आइए.
    फि‍र आकर बतरइएगा

    आपसे ही आंखों देखा हाल सुन कर काम चला लेंगे जी

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  18. पट्टी चौड़ी हो रही है, चौड़ा भी रही है।

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