आज जब मैंने सुबह सुबह फेसबुक पर सोनभद्र के गरम मौसम के बारे में एक अपडेट किया तो मित्रों ने अपने अपने सूबे के मौसम के हालात बयां करना शुरू किया, दिनेश राय द्विवेदी जी की तुरत फुरत यह टिप्पणी आयी-" वर्षा विदाई ले रही है, सूर्य पूरे तेज के साथ अपनी किरणें बिखेर रहा है। फिर से गर्मी महसूस होने लगी है। संतोष की बात ये है कि अब सूरज की ड्यूटी 12 घंटों से कम की रह गई है। कुछ दिनों बाद आतप बिखेरने वाला यही सूरज सुबह सुबह प्राण फूंकने वाला लगने लगेगा।"यह टिप्पणी पढ़ कर मुझे मानस के शरद ऋतु वर्णन की याद आ गयी. मेरा शरद पूर्व मानस पारायण तो पूरा हो चुका है और समय समय पर मैं यहाँ भी मानस प्रवचन यथा बुद्धि करता रहा हूँ मगर बनारस से स्थानान्तरण के बाद जीवन चर्या काफी बदल गयी है . अंतर्जाल समय में भारी कटौती हुयी है . मैंने ढूँढा तो यहाँ मानस वर्णित शरद ऋतु का मूल पाठ भावार्थ सहित मिल गया,कुछ चुनिन्दा चौपाईयां यहाँ भावार्थ सहित साभार उधृत कर रहा हूँ -
बरषा बिगत सरद रितु आई। लछमन देखहु परम सुहाई
फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई
हे लक्ष्मण! देखो, वर्षा बीत गई और परम सुंदर शरद् ऋतु आ गई। फूले हुए कास से सारी पृथ्वी छा गई। मानो वर्षा ऋतु ने (कास रूपी सफेद बालों के रूप में) अपना बुढ़ापा प्रकट किया है. ( मैं सोनभद्र के पिपरी क्षेत्र में कुछ दिनों पहले गया था वहां इन दिनों कास खूब फूले हुए हैं और एक बहुत बड़ा इलाका ऐसा लगता है जैसे जमीन पर सफ़ेद बादलो के झुण्ड आ बसे हों .कास पर गिरिजेश राव का यह लेख पठनीय है.
शरद ऋतु में कास, (Saccharum spontaneum)
उदित अगस्ति पंथ जल सोषा। जिमि लोभहिं सोषइ संतोषा
सरिता सर निर्मल जल सोहा। संत हृदय जस गत मद मोहा
अगस्त्य के तारे ने उदय होकर मार्ग के जल को सोख लिया, जैसे संतोष लोभ को सोख लेता है। नदियों और तालाबों का निर्मल जल ऐसी शोभा पा रहा है जैसे मद और मोह से रहित संतों का हृदय!
रस रस सूख सरित सर पानी। ममता त्याग करहिं जिमि ग्यानी
जानि सरद रितु खंजन आए। पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए
नदी और तालाबों का जल धीरे-धीरे सूख रहा है। जैसे ज्ञानी (विवेकी) पुरुष ममता का त्याग करते हैं। शरद ऋतु जानकर खंजन पक्षी आ गए। जैसे समय पाकर सुंदर सुकृत आ सकते हैं। (पुण्य प्रकट हो जाते हैं).
पंक न रेनु सोह असि धरनी। नीति निपुन नृप कै जसि करनी॥
जल संकोच बिकल भइँ मीना। अबुध कुटुंबी जिमि धनहीना
न कीचड़ है न धूल? इससे धरती (निर्मल होकर) ऐसी शोभा दे रही है जैसे नीतिनिपुण राजा की करनी! जल के कम हो जाने से मछलियाँ व्याकुल हो रही हैं, जैसे मूर्ख (विवेक शून्य) कुटुम्बी (गृहस्थ) धन के बिना व्याकुल होता है
बिनु घन निर्मल सोह अकासा। हरिजन इव परिहरि सब आसा॥
कहुँ कहुँ बृष्टि सारदी थोरी। कोउ एक भाव भगति जिमि मोरी
बिना बादलों का निर्मल आकाश ऐसा शोभित हो रहा है जैसे भगवद्भक्त सब आशाओं को छोड़कर सुशोभित होते हैं। कहीं-कहीं (विरले ही स्थानों में) शरद् ऋतु की थोड़ी-थोड़ी वर्षा हो रही है। जैसे कोई विरले ही मेरी भक्ति पाते हैं.
सुखी मीन जहं नीर अगाधा।जिमि हरि सरन न एकऊ बाधा
फूलें कमल सोह सर कैसा। निर्गुन ब्रह्म सगुन भएँ जैसा
जो मछलियाँ अथाह जल में हैं, वे सुखी हैं, जैसे श्री हरि के शरण में चले जाने पर एक भी बाधा नहीं रहती। कमलों के फूलने से तालाब कैसी शोभा दे रहा है, जैसे निर्गुण ब्रह्म सगुण होने पर शोभित होता है.
गुंजत मधुकर मुखर अनूपा। सुंदर खग रव नाना रूपा
चक्रबाक मन दुख निसि पेखी। जिमि दुर्जन पर संपति देखी
भौंरे अनुपम शब्द करते हुए गूँज रहे हैं तथा पक्षियों के नाना प्रकार के सुंदर शब्द हो रहे हैं। रात्रि देखकर चकवे के मन में वैसे ही दुःख हो रहा है, जैसे दूसरे की संपत्ति देखकर दुष्ट को होता है.
चातक रटत तृषा अति ओही। जिमि सुख लहइ न संकर द्रोही
सरदातप निसि ससि अपहरई। संत दरस जिमि पातक टरई
पपीहा रट लगाए है, उसको बड़ी प्यास है, जैसे श्री शंकरजी का द्रोही सुख नहीं पाता (सुख के लिए झीखता रहता है) शरद् ऋतु के ताप को रात के समय चंद्रमा हर लेता है, जैसे संतों के दर्शन से पाप दूर हो जाते हैं.
जय श्रीराम!
मानस का यह प्रसंग बहुत प्रिय है मुझे...कंठस्थ भी है यह कांड ।तुलसी की उपमाएँ गज़ब की हैं ।
जवाब देंहटाएंफूले कास दिखते हैं। कमल अभी खिले नहीं हैं। मौसम सुहाना हो रहा है। कहीं-कहीं धान की बालियाँ फूट रही हैं। आपकी इस पोस्ट को पढ़कर फिर खेतों में घूमने और फोटोग्राफी करने का मन हो रहा है। बेहतरीन लिंक्स पढ़ाये आपने। गिरिजेश जी की पोस्ट हद उम्दा है। उसमे आए कमेंट्स भी बेहतरीन हैं। मानस का यह प्रसंग तो है ही सुंदर। कुल मिलाकर कहूँ तो मन आनंद से भर गया।..आभार।
जवाब देंहटाएंमानस का खूब शूरत प्रसंग पढकर आनंद आ गया,,,,,आभार
जवाब देंहटाएंRECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता,
सावन म साँवाँ फूले भांदों म कांसी
जवाब देंहटाएंटेटका ल जुड़ धरे बेंगवा ल खांसी यह छत्तीसगढ़ की कहावत आपके शरद वर्णन को समर्पित
मन-भावन मानस-प्रसंग .संदर्भित -सूत्र भी पठनीय है . सच! आनंद से भर गया मन..
जवाब देंहटाएंमानस का हंस सामने से बह गया मानो..
जवाब देंहटाएंमानस का हर प्रसंग रोचक है, और मानस में हर रोचक बातों के लिए प्रसंग है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पोस्ट ..... जीवन से जुड़े लगते हैं मानस के प्रसंग ....
जवाब देंहटाएंप्रकृति के इतने करीब हैं आप | वाह |
जवाब देंहटाएंये प्रसंग और इसमें वर्णित उपमाएं ....... आनन्द आ गया !!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा पोस्ट सर |रामचरित मानस का जिक्र आते ही मन मिश्री की मिठास से भर उठता है |आभार
जवाब देंहटाएंशरद ऋतु का सुन्दर वर्णन ...
जवाब देंहटाएंरामचरितमानस में क्या नहीं है !!
। शरद ऋतु जानकर खंजन पक्षी आ गए। जैसे समय पाकर सुंदर सुकृत आ सकते हैं (पुण्य प्रकट हो जाते हैं) वाह आनंद आ गया शरद का वर्णन पढ कर । शरद पूर्णिमा का चांद मुझे सबसे प्रिय है । कुछ ज्यादा बडा चांदी सा चमकता एक अलग सी ्अमृती ठंडक लिये हुए । मानस का आनंद तो है ही अपूर्व ।
जवाब देंहटाएंपंडीजी, कालिदास का आवाहन भी कीजिये एक बार.
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