पिछले दिनों बहुत कुछ पार्श्व में मेरे साथ जो घटित हो रहा था उससे अलग यहाँ दिख रहा था ....ब्लागर सम्मलेन के चमक धमक के पीछे मेरे ट्रांसफर की भी अंतर्कथा चालू थी -और अंततः मैंने कल सोनभद्र जनपद में योगदान दे दिया जिसे भारत की ऊर्जा राजधानी होने का गौरव प्राप्त है -यह बात दीगर है कि वहां ऐसा कोई अहसास नहीं हुआ -एक नागरिक ने कहा कि चिराग तले अँधेरे की कहावत नहीं सुनी आपने साहब? सो आज रविवार मनाने फिर काशी में हैं ..और अब जल्दी ही बैग बैगेज वहां शिफ्ट हो जाना है -और नए जगह पर जहाँ पर्याप्त बिजली न हो, कनेक्टिविटी की समस्यायें हों तो फिर मेरे ब्लागिंग का वानप्रस्थ या ब्रह्मचर्य जो भी मान लें आप, आना तो स्वाभाविक है .महज आशंकाएं है ये और वैसे भी नयी जगह पर दैनन्दिनी सेट होने में समय तो लग ही जाता है ....
काशी (बनारस ) भला कौन छोड़ना चाहता है .जब तक खुद भोले बाबा न छोड़ दें -ऐसी बनारसियों की मान्यता है ....कहा भी गया है काश्याम मरणात मुक्तिः ...फिर अन्यत्र मरने कौन जायेगा? ....एक कहावत और भी है -चना चबैना गंगजल जो पुरवे करतार काशी कबहूँ न छोडिये विश्वनाथ दरबार....कौन कम्बख्त छोड़ना ही चाहता था मगर सरकारी सेवाओं में स्थानान्तरण एक अनिवार्य और अपरिहार्य शर्त है ....जहां आदेश हो जाए मुंडी वहीं टेकनी होगी ..भले ही मत्था बाबा के दरबार में टिका रहे .... मगर एक बात जो अच्छी नहीं हुयी वह गंगा के सामीप्य से सोनभद्र की कर्मनाशा तक का प्रवास! -गंगा जो आह्लाददायिनी हैं और जिनके बारे में कहा ही जाता है कि गंगा तव दर्शनात मुक्तिः .....गंगा जो मोक्षदायिनी हैं उनका दामन छोड़कर कर्मनाशा जो संचित पुण्यों -कर्मों का नाश करने वाली मानी गयीं है का सानिध्य बड़ा अजीब सा लग रहा है -
मनुष्य का स्वाध्याय अर्जित ज्ञान यहीं पाप तुल्य हो जाता है -न मालूम होता मुझे यह सब तो कितना अच्छा होता -ऐसे निगेटिव विचार तो न आते ....मगर कर्मनाशा का यह पुराण पता है तो मन तनिक संतप्त होगा ही भले ही हम विज्ञान के मनई ठहरे .. :-) गंगा जहाँ विष्णु पद से स्रवित, ब्रह्मा के कमंडल से होकर शिव की जटाओं से छूटती धरावतरित होती हैं -कर्मनाशा के बारे में पुराकथा है कि वे मुंह के बल आकाश में उलटे लटके त्रिशंकु के लार से बनी हैं और सारे पुण्य कर्म इसके सानिध्य सम्पर्क से नष्ट हो जाते हैं -मुझे बस यही राहत है कि मेरी झोली में कोई पुण्य कर्म संचित नहीं है . :-)
कर्मनाशा की कथा पर अभी उसी दिन सिद्धेश्वर जी से फोन पर बातें हो रही थी -क्या कारण है कि एक पूरी नदी ही अभिशप्त हो गयी? मैंने उन्हें आमंत्रित किया है कि चलिए कर्मनाशा : एक पुनरान्वेषण यात्रा हम वहां बसने पर आयोजित करेगें और यह शोध करेगें कि यह नदी क्यों अभिशप्त मान ली गयी -कोई पर्यावरण दोष? या फिर जलीय संघटन का विकार?? क्या कर्मनाशा के अभिशप्त पुराण कथा से उसे अब मुक्त किया जाना संभव है?यानि कर्मनाशा उद्धार? जब पाषाणवत अहल्या का उद्धार संभव है तो वेगवती तरल कर्मनाशा का क्यों नहीं ? क्या पता उसे भी कलयुगी किसी राम की प्रतीक्षा हो?
हम आते है कर्मनाशा तनिक तू धीरज रख और साथ में कुछ सिद्ध प्रसिद्ध सिद्धेश्वर सरीखे जनों को भी ले आयेगें -तुम्हारा जनम जनम का आतप अब शायद अब मिट जाए! जो पाठक कर्मनाशा के बारे में और जिज्ञासु हों वे यहाँ जा सकते हैं और इस अभिशप्त नदी की कथा पढ़ सकते हैं(यहाँ भी देखें!) -गरुण पुराण में जीव की मोक्ष यात्रा में इसे बड़ा बाधक माना गया है और मनुष्य देही (आत्मा ) के त्रयोदश (तेहरवीं ) संस्कार में इसे पार कराने के तरह तरह के अनुष्ठान पंडित- महापात्र करते हैं -गोदान और फिर उसी गैया की पूछ पकड़ कर कर्मनाशा को पार कराने का हास्यास्पद उपक्रम होता है ....निष्कर्षतः गंगा लोक परलोक तक महिमा मंडित हैं और कर्मनाशा शापित ......यह सनातनियों का कुचक्र तो है मगर क्यों?
अरे मैं तो कर्मनाशा में ही उलझ गया ....यह कहना था कि क्या पता नयी जगहं पर मेरी ब्लागिंग को भी ग्रहण न लग जाए और यह विलंबित होने लगे तो यही मान लीजियेगा कि मेरी ब्लागिंग के ब्रह्मचर्य या वानप्रस्थ जो भी कह लें आप, समय आ गया है -अब हम टंकी वंकी जैसी शब्दावली का प्रयोग तो करने से रहे यह मेरे स्तर के अनुरूप नहीं है :-) -इसलिए यह तो नहीं कहूँगा कि अब तो टंकी पर चढ़ने का वक्त आ गया! वैसे भी ऊँचाई पर या कोई भी चढ़ान अब दिन ब दिन मुश्किल होती जा रही है :-) ......ज्ञानी जन यह व्यथा सहज ही समझ जायेगें! पता नहीं अगली पोस्ट कब आयेगी तब तक मेरा तसव्वुर ब्लागिंग के ब्रह्मचर्य में रमे एक सम्मानित ब्लॉगर के रूप में होनी चाहिए :-) नादान दोस्तों और दानेदार दुश्मनों से बस यही इल्तिजा है :-) हाँ सोनभद्र पर अगली पोस्ट का इंतज़ार भी करते रहें!
स्थानान्तरण ही हुआ है या मिसाल के तौर पर कोई पदोन्नति वगैरा भी है? वह हो तो लगे हाथ बधाई दे दें। वर्ना शुभकामनाएँ तो सदैव हमारी आप के साथ हैं ही।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभ कामनाएँ सर!
जवाब देंहटाएंसादर
Dr. Bhai...
जवाब देंहटाएंVyarth grasit na hi rahen...
Lekar ke kuvichaar...
'Karmnasha' bhi hai bahe...
Jyon 'Ganga' ki dhaar.....
Bhole baba ka raha...
Jis par aashirvaad...
Punya karm ke punya ka...
Hota nahi vinash....
Taj den man se aap bhi...
Man ke sabhi vikaar...
Sonbhadra main aapko...
Milega nit satkaar....
Vanprasth ki raah main..
Blogging ka na kaam....
Brhmchaya bhi hai nahi...
Bhai eska naam...
Nitdin beshaq na chale...
Antarjaal vishaal....
Par na chhutega kabhi....
Moh ka ye janjaal...
Chinta chita saman hai..
Harti sukh aur chain...
Chinta tajke hon sukhi...
Sukh ke ye din-rain...
..........:)...........
Sadar..
Deepak Shukla...
काशी से कोई छूट सकता है, लेकिन काशी दिल से कैसे छूट सकता है...
जवाब देंहटाएं
नई जगह, नई चुनौतियों के लिए असीम शुभकामनाएं...
जय हिंद...
नया पृष्ठ जुड़े, नया अध्याय बने.
जवाब देंहटाएंकाशी को आप भले छोड़ दे काशी आपको कहाँ छोड़ने वाली है |कुछ दिन का वनवास है सोनभद्र ,लेकिन वनवास में भी कई बार महत्वपूर्ण कार्य होते हैं |मेरी तो शुभकामना है आप इलाहाबाद आ जाएँ |
जवाब देंहटाएं...यानी अब लंगोट की असली परीक्षा होगी.वो है ना कि ब्रह्मचर्य साधने का यही सबसे मुफीद यंत्र है |
जवाब देंहटाएंकाशी को कबीर ने छोड़ दिया था,मगहर के लिए और आपने 'कर्मनाशा' के लिए !
...मैं सोच रहा हूँ,अब मेरा क्या होगा ...?
@चेले चीनी:
जवाब देंहटाएंवो पुरानी लंगोट वाली पोस्ट धो कचार कर जल्दी आयेगी तब बच्चू तुम्हारी पोल खुलेगी ! :-)
क्या पता वानप्रस्थ के दौरान ही कोई नई सिद्धि कर लें आप। शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंनई जगह के लिए शुभकामनाए,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST,परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,
सिद्धि कर लें या सिद्धि को प्राप्त होलें? :-)
जवाब देंहटाएंवानप्रस्थ तो जीवन के लिए वरदान होता है विशेष रूप से उनके लिए जिन्हें परमात्मा ने सृजन के लिए चुना है . महान काव्य या ग्रंथों की रचना इसी काल में हुई है . हमें भी प्रतीक्षा है ...
जवाब देंहटाएं@Amrita:महान ग्रन्थ सहयोग और साहचर्य में लिखे गए -गणेश और वेदव्यास -भास्कर लीलावती ....आदि आदि
जवाब देंहटाएंमगर वहां तो निपट अकेलें होंगे हम :-(
स्थान बदलने पर पोस्टों का स्वरूप भी बदलेगा, बहुत कुछ नया मिलेगा।
जवाब देंहटाएं"...नए जगह पर जहाँ पर्याप्त बिजली न हो, कनेक्टिविटी की समस्यायें हों तो फिर मेरे ब्लागिंग का वानप्रस्थ ..."
जवाब देंहटाएंऐसे में आपके लिए सुझाव है - या तो दमदार इनवर्टर लगवाएं - या फिर 10-12 घंटे से अधिक बैकअप देने वाला लैपटॉप (बहुत हैं) लें. और कनेक्टिविटी के लिए रिलायंस / टाटा डोकोमो का सीडीएमए (यदि 3 जी वहां हो तो क्या कहने!) यूएसबी डाटा कार्ड ले लें.
शुभकामनायें....... नयी पोस्ट का इंतजार करेंगें .... भोले बाबा की कृपा वहां भी बनी रहे आप पर...
जवाब देंहटाएंपूर्वाग्रह से सम्बन्धित लेख पढ़ रहे हैं. इसलिए पूर्वाग्रहों से मुक्त रहें :) ये पौराणिक कथाएं भी बहुत सीमा तक पूर्वाग्रहों का निर्माण करती हैं.
जवाब देंहटाएं"...क्या पता उसे भी कलयुगी किसी राम की प्रतीक्षा हो?" क्या पता वो राम आप ही हों और सिद्ध कर दें कि 'कर्मनाशा' भी वैसी ही पवित्र है, जैसे अन्य नदियाँ. नवोन्मेष तो वैज्ञानिक चेतना का अभिन्न अंग है.
शेष, मुझे दुःख इस बात का है हम आपसे मिलने काशी आते-आते रह गए :(
और एक बात, आपके मुख से 'ब्रह्मचर्य' की बात नहीं सुहाती :)
नौकरी में स्थानान्तरण से कहाँ तक बचेंगे? कनेक्टिविटी समस्या का समाधान तो बहुत सरल है, यू एस बी डाटा कार्ड | दूसरे अन्य कारण जरूर कुछ रुकावट डाल सकते हैं लेकिन 'जहां चाह वहां राह' उम्मीद है कि आप प्रेरणा तलाश ही लेंगे:) बिंदास जाईये, जंगल है तो मंगल करिए और पहले से ही मंगल है तो शुक्र कीजिये| शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंनए सफर की शुभकामनायें ... जीवन है तो सफर तो तय है ...
जवाब देंहटाएंगंगा और कर्मनाशा की अच्छी तुलना की है आपने.
जवाब देंहटाएंबनारस से बिछड़ने का अफ़सोस तो रहता ही है. मेरे साथ भी कभी ऐसा ही हुआ था, मगर यही सोच तसल्ली कर ली कि " कल मैं बनारस में था, आज बनारस मुझमें है..."
सोनभद्र प्रवास की शुभकामनाएं. आशा है ब्लौगिंग में व्यवधान नहीं आएगा. मुलाकात होगी वहाँ भी...
गंगा और कर्मनाशा की अच्छी तुलना की है आपने.
जवाब देंहटाएंबनारस से बिछड़ने का अफ़सोस तो रहता ही है. मेरे साथ भी कभी ऐसा ही हुआ था, मगर यही सोच तसल्ली कर ली कि " कल मैं बनारस में था, आज बनारस मुझमें है..."
सोनभद्र प्रवास की शुभकामनाएं. आशा है ब्लौगिंग में व्यवधान नहीं आएगा. मुलाकात होगी वहाँ भी...
नयी जगह वाले भी आपके अनुभव से लाभ पाएंगे .... अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा
जवाब देंहटाएंजाने भी दो यारो
जवाब देंहटाएंलगता है आप और हम -- हम उम्र हैं . :)
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें | नया स्थान आपको suit करे - all the best :)
जवाब देंहटाएंवैसे आजकल Internet जी तो सब जगह हैं - और कहीं नहीं तो मोबाइल/datacard पर तो connectivity मिल ही जाएगी | तो blogging तो मुझे नहीं लगता कि छूटेगी , हाँ छोटा intermission भले ही आय |
कर्मनाशा के विषय में गहन शोध होना ही चाहिए.
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक है यह जानकारी.
---
अयोध्या भी अभिशप्त है सीता मैय्या के शाप से.वह कहानी सुनी थी उस विषय में भी कभी विस्तार से बताएँ.
---
पुण्य और पाप की बातें कलयुग में ?कलयुग में तो सब उल्टा होता है.
किसी भी घटना के विषय में[यहाँ आप का स्थान परिवर्तन है] मेरा मानना है कि जो होता है नकारात्मक और सकारात्मक ,उस सब में कुछ न कुछ हमारा ही हित छुपा होता है.
ब्लॉग्गिंग से ब्रेक ले कर आप को अपने लिए समय अधिक मिलेगा जो अच्छी बात होगी,इतनी सुन्दर जगहें और विषय सोनभद्र में हैं ,देर-सबेर जब भी आप उन पर लिखेंगे तो हमारा भी ज्ञान बढ़ेगा.
नए स्थान में जल्दी ही आप का मन लग जाए .शुभकामनाएँ.
मेरी टिप्पणी स्पैम में गई.
जवाब देंहटाएंमुझे पूरा विश्वास है ब्लागिंग को भी ग्रहण नहीं लगेगा ....
जवाब देंहटाएंकर्मनाशा के उद्धार की प्रतीक्षा रहेगी ....:))
रविशंकर श्रीवास्तव जी की सलाह मानें , इस जुगाड से नेट से और मित्रों से जुड़े रहेंगे ! फिर टेलीफोन तो है ही ..
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
काशी छूटना दुखद है लेकिन कर्मनाशा को लोकर इतनी भयानक-भयानक बात काहे सोच रहे हैं! गंगा वासी कौन रोज गंगा में डुबकी लगाते हैं और कर्मनाशा सबके पास पुन्य नाश करने जाती हैं। मैं तो कहता हूँ अभी काशी छोड़िये ही मत। आवश्यकतानुसार वहाँ रूकिये और मौका निकालकर चले आइये। 90 किमी की दूरी ही तो है। जब आवास, नेट सब दुरुस्त हो जाय तभी वहाँ स्थाई ठिकाना बनाइये।
जवाब देंहटाएंजहां ब्लॉगर न हों
जवाब देंहटाएंवहां पर ब्लॉगरों को दे दें जन्म
वहां जाना हो जाएगा आपका सफल
साथ भी मिल जाएगा
चेले भी बन जाएंगे
ऐसे सुनहरे दिन
भला और कब अब आएंगे
शुभकामनाएं
ज्ञानी जन यह व्यथा सहज ही समझ जायेगें! पता नहीं अगली पोस्ट कब आयेगी तब तक मेरा तसव्वुर ब्लागिंग के ब्रह्मचर्य में रमे एक सम्मानित ब्लॉगर के रूप में होनी चाहिए :-) नादान दोस्तों और दानेदार दुश्मनों से बस यही इल्तिजा है :-) हाँ सोनभद्र पर अगली पोस्ट का इंतज़ार भी करते रहें!
जवाब देंहटाएंऐसा भला क्यों ? आप सदैव क्रियाशील रहें .
नई जगह पर सुखी, संतुष्ट और सुरक्षित जीवन के लिये शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंइस बहाने कर्मनाशा की जानकारी मिली ...
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग आपसे छूटने वाली नहीं है , कोई जरिया मिल ही जायेगा .
यह प्रवास आपके लिए सुखद हो ...
शुभकामनायें !
:):):)
जवाब देंहटाएंpranam.
nayi jankari...shubhkamnaye :)
जवाब देंहटाएंमुक्त करती है डेली पेसिंजरी/यायावरी आप भी कर देखो .हमने तीन बरस तक भिवानी -रोहतक -भिवानी फरक्का एक्सप्रेस (गंगा जमुना एक्सप्रेस )की गर्दी -आवारा की है .बेहद रचनात्मकता का दौर था ,छहुक छुक करती गाडी और अपनी गर्दी आवारा कहीं भी बैठ मसखरी कर लेते थे .अब तें में आपका कौन जानता है .जो जी चाहे करो .
जवाब देंहटाएंram ram bhai
सोमवार, 10 सितम्बर 2012
ग्लोबल हो चुकी है रहीमा की तपेदिक व्यथा -कथा (गतांक से आगे ...)
कर्मनाशा न होती तो गंगा की महानता फीकी पड़ जाती न .
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
.
अपना आकलन यह है कि आप सोनभद्र शिफ्ट नहीं होने वाले... बनारस से अप-डाउन करते रहेंगे... :)
...
रब ही राखे।
जवाब देंहटाएंवैसे रवि रतलामी जी की सलाह अवश्य काम आ सकती है।
............
हिन्दी की सबसे दुर्भाग्यशाली पुस्तक!
यह काफ़ी रोचक पोस्ट थी परन्तु न जाने कैसे छूट गई.
जवाब देंहटाएं