शनिवार, 15 सितंबर 2012

अंत में आखिर हर किसी को दो गज जमीन ही तो चाहिए!


हाँ, अगर वो आख़िरी मुगलिया सम्राट और शायर बहादुर शाह जफ़र सरीखा दुर्भाग्य वाला न हुआ तो वह दो गज जमीन अपने मादरे वतन में ही मुहैया हो सकती है . मगर ये दो गज जमीन का मसला भी अजीबोगरीब है -हर देश और  संस्कृति में ये मसला अलग अलग तरीकों से निपटाया जाता है .आखिर यह मामला ,सभ्य  और सामाजिक -सांस्कृतिक मनुष्य का है न तो वह जानवरों की तरह तो अपने स्वजनों के शवों को इधर उधर छोड़ कर उनका निपटारा कुदरती तौर पर  कर नहीं सकता . मगर तिब्बतियों और पारसियों का एक अनूठा अनुष्ठान आयोजन इस मामले में काबिले गौर है जो शवों का निपटान बिलकुल कुदरती तरीके से करते हैं -वहां शवों को गिद्द्धों की मर्जी पर रख दिया जाता है और वे उन्हें खाकर उनका निपटान कुदरती तरीके से कर देते हैं ...
आधुनिक तरीका विद्युत् शव दाह गृह है जहां बहुत अधिक तापक्रम में शवों को ख़ाक कर दिया जाता है .और एक तरीका ताबूत का है जिसमें मुर्दा जिस्म जमीन के  नीचे दफ़न हो जाता है और बाकी का काम जीवाणुओं का समूह निपटाता है -मृत शरीर की कोशिकाएं उनमें मौजूद एन्जायेम के जरिये खुद का आत्मघात करती हैं और इस काम में जीवाणुओं की फ़ौज मदद करती है . मगर यही प्रक्रिया अगर खुले वातावरण में शवों के लावारिस होने पर घटती है तो जीवाणुओं के सक्रियता के चलते शव पहले फूलता है फिर दो रसायन यौगिकों -Putrescine and Cadaverine  की सडांध -तीव्र बदबू निकलती है .यही वे रसायन हैं जो मुख की दुर्गन्ध के भी कारण होते  हैं . 
जहाँ शवों को सीधे नदी में बहा देने की परिपाटी है वह स्वच्छ जल को दूषित कर देता है -गंगा में कचरा ,मल जल आदि की तरह ही एक गलत परम्परा है शवों को प्रवाहित कर देने की ...कहते हैं सांप आदि जंतुओं के काटे मृत व्यक्ति को बहा देने से उसके जीवित होकर पुनः वापस लौटने की एक क्षीण सी आशंका बनी रहती है . कई बार कई तरह के हादसों ,महामारियों के समय काफी तादाद में शवों का सामूहिक निपटान भी करना होता है जिनके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बाकायदा गाईड लाईन  जारी की हुयी हैं . 
आज आख़िरी संस्कार के कई विकल्प हैं -लोग बाग़ अपनी पसंद का भी चुन सकते हैं . हिरण्यकश्यप ने तो यहाँ तक वरदान  मांग लिया था कि जमीन आसमान और जल कहीं भी उसको मारा -दफनाया न जा सके ....और उसे ऐसी जगहं भी मयस्सर हो ही गयी .... मगर यह एक अलग कथा है -कहने का आशय केवल इतना कि आज बस यह (अंतिम ) इच्छा करने भर की देरी है आख़िरी संस्कार के कई विकल्प मौजूद हैं -हिन्दुओं का प्रचलित तरीका दाह -संस्कार का है और फिर 'पवित्र -राख " का पवित्र स्थलों ,नदियों में बिखराव का है -पंडित जवाहर लाल नेहरु ने अपनी राख को यथा संभव सारे हिन्दुस्तान की नदियों ,वादियों वनों उपवनों तक बिखेर देने की अंतिम इच्छा व्यक्त की थी.....यह पर्यावरण के लिहाज से अपेक्षाकृत एक कम प्रदूषण वाला  तरीका है मगर पूरी तरह से निरापद नहीं -यहाँ  ऊर्जा चाहे वह ईधन के रूप में हो या फिर विद्युत् के रूप में, की भारी मांग है और कार्बन डाई आक्साईड की बड़ी मात्रा  निःसृत होती है . और जिनके दाँतों में पारे की फिलिंग हुयी रहती है उन शवों से वाष्पीकृत पारे का प्रदूषण   भी फैलता है . 
आज एक और नया तरीका अमेरिका में लोगों की पसंद बन रहा है -द्रवीय निस्तारण (alkaline hydrolysis ) का. इसके अंतर्गत पोटैशियम हायिड्राक्सायिड द्रव में हलके तापक्रम पर शव को द्रव और दबाव के सहारे विघटन के लिए छोड़ दिया जाता है . शव द्रव में पूरी तरह  घुल जाता है और पर्यावरण के लिए हानिकारक भी नहीं रहता जिसका निस्तारण निरापद तरीके से कर दिया जाता है . अमेरिका में ही एक हरित शव निस्तारण की पद्धति भी प्रचलित हो रही है जिसमें शव को जैव विघट्नीय डब्बों में जमीन के अन्दर पूरी तरह कुदरती अवयवों में तब्दील होने के लिए छोड़ दिया जाता है . प्रोमेसा नाम की स्वीडिश कम्पनी ने फ्रीज ड्राईंग विधि का ईजाद किया है जिसमें लिक्विड नायिटरोजन  में शरीर से द्रव का शोषण कर लिया जाता है और शरीर पाउडर में तब्दील हो जाता है जिसे जमीन के भीतर गहरे दबा दिया जाता है.हाँ ऐसे स्थानों पर कोई स्मृति -वृक्ष उगाया जा सकता है जिसका पोषण शव अवयवों से होगा . यह एक आकर्षक तरीका है . 
चाँद की धरती पर पहला कदम रखने वाले नील आर्मस्ट्रांग अपनी अंतिम इच्छा के मुताबिक़ सागर की तलहटी में दो गज जमीन पा गए हैं ..अन्तरिक्ष में पवित्र राख के छोटे छोटे कैप्सूल भी बिखरने का ताम झाम चल रहा है जो अनंत काल  तक धरती की परिक्रमा करते रहेगें  बिना मोक्ष पाए!शीत प्रशीतन के तरीके भी सुझाव में हैं . मगर सबसे अच्छा तरीका कौन सा है यह तो बताना मुश्किल है -तरीके ही तरीके हैं कोई भी चुन लें! 

28 टिप्‍पणियां:

  1. एफडीआई की स्वीक़ति भारतीय सरकार ने दे दी है, तो लगता है ये तरीके जल्द ही भारत में भी मिलने लगेंगे. ये हरित वाला तरीका मुझे पसंद आया. अग्रिम आरक्षण (यहाँ भी आरक्षण?) करवाना चाहूंगा. :)

    बढ़िया जानकारी.

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  2. मैं तो चाहूँगा बस मरते समय 'उनके' आगोश में रहूं | फिर गोश्त मेरा चाहे जले, चाहे गले या मिटटी में मिले |

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  3. अच्छा है कि भारत में आदमी को अपने दफनाने की व्यवस्था खुद नही करना पडती अमरीका की तरह जहां जमीन का प्लॉट, मेमोरियल होम में बामिंग और सरविसेज वगैरह के लिये स्वयं ही अग्रिम तैयारी करना पडती है ।
    अपने लिये तो कोई भी करे कैसे भी करे । आप मरे जग डूबा ।
    वैसे आपने ऑप्शन्स तो बहुत दिये हैं धन्यवाद ।

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  4. एक और तरीका भी है - आज - फुल बॉडी डोनेशन फॉर मेडिकल रेसर्च / ओरगन दोनेशन ..

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  5. अरविन्द भैया जी आपके स्वीकार्य लेख के लिए प्रणाम . मृत्यु के बाद कोई नहीं देखता फिर भी सब जन कल्याण में सोचें तो धरती स्वर्ग है यह स्वर्ग से भी बेहतर बन जाएगी .

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  6. अनूठी जानकारियों से समृद्ध, रोचक पोस्ट के लिए आभार। जहाँ तक अपनी इच्छा की बात है तो मरने के बाद क्या फर्क पड़ता है? चाहे जला दो, चाहे गिद्धों को खिला दो। पर्यावरण की रक्षा की दृष्टि से तो हरित वाला तरीका ही अच्छा लग रहा है।

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  7. अद्भुत जानकारी मिली .... वैसे प्रदूषण को देखते हुये हरित वाला तरीका बढ़िया है ।

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  8. तरीके ही तरीके हैं कोई भी चुन लें....

    काफी नई जानकारियां भी मिली आपकी पोस्ट से.....

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  9. नयी जानकारियां मिलीं.

    मौत एक सच है लेकिन उस का ख्याल ही भयावह...और उस पर मृत्यु के बाद देह की कैसी गति हो...यह सोचना और भी भयावह.

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  10. अगर पोस्‍ट के द्वारा यह भी पता चलता कि आपने कौन सा तरीका चुना है, तो शायद उससे और लोग भी कुछ प्रेरणा हासिल करते। :)

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  11. बड़े मालों में जाकर बुकिंग कराई जा सकती है।

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  12. .
    .
    .
    यहाँ जीते जी तो फिक्र कर नहीं पाता देह की... तो मरने के बाद का क्या सोचना...

    जिसके सामने पड़ी होगी देह मेरी... वह जैसे मर्जी निपटाये... 'अपुन को क्या' भी नहीं कहा जा सकता तब क्योंकि अपन तो तब होंगे ही नहीं... :)



    ...

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  13. ताजमहल से भी ख़ूबसूरत महल बनाने का आईडिया भी बुरा नहीं है . वैसे पर्यावरण के लिए सबों को सोचना ही चाहिए ..

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  14. रोचक पोस्ट ...
    सदियों से चली आ रही अनेक मान्यताओं को बदलना मुश्किल है ... पर यदि मौका मिले तो पर्यावरण के अच्छे अनुसार जो भी प्रक्रिया हो वही सबसे उत्तान होनी चाहिए ...

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  15. हमें तो अपना हिन्दू तरीका पसंद है, पांच तत्वों से बने इस मानुष देह को अंततः जल, अग्नि, वायु, भूमि, आकाश इन्हीं पांच महाभूतों को लौटा देना बेस्ट अवेलेबल ऑप्शन लगता है|


    होगा क्या, ये राम जाने!!

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  16. पढ़ कर लगा भाग जाऊं यहाँ से....

    हां मगर देहदान का ओप्शन सबसे बेहतर...मगर परवार वालों को समझाना (हमारे देश में तो )बड़ा कठिन काम है....
    सादर
    अनु

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  17. अच्छी जानकारी है , पर अपने यहाँ इनमे से कोई भी लगाना आसान कहाँ है !!! इतने तो लफड़े-लोचे हैं !!!!

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  18. अंतिम संस्कार को भी अंतिम छोर तक पहुंचा दिया ....मुझे तो लगता है जाते-जाते चिकित्सकीय शोध के लिए शरीर दान कर देना चाहये .....

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  19. मेडिकल रिसर्च के लिए देहदान अच्छा लगा.

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  20. हाँ, अंतिम संस्कार (अग्नि) ही सही है... इसके इतर नहीं सोचा जा सकता.

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  21. इतने तरीके मुझे तो अभी तक ३ ही पता थे..
    आभार...

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  22. Who cares :) ... “To himself every one is an immortal: he may know that he is going to die, but he can never know that he is dead.” — Samuel Butler

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