जी हाँ ,बात "हिन्दी ब्लागिंग :अभिव्यक्ति की नई क्रान्ति " की हो रही है जो अभी हाल में ही प्रकाशित और विमोचित हुई है -पुस्तक मुझे खैरात में नहीं मिली है और न ही प्रकाशक ने मुझे समीक्षा के लिए एक प्रति भेजी है .मैंने अपनी प्रति खुद खरीदी है . किताब खरीद कर पढने का भी अपना एक आनंद या पछतावा होता है -आनंद तब जब पैसा वसूल हो जाए और पछतावा तब जब पैसा बर्बाद हो -राहत की बात यह है कि इस पुस्तक में लगा मेरा पैसा डूबने से बचा है .पुस्तक हिन्दी ब्लागिंग के इन्द्रधनुषी छटाओं को बिखेरने में कामयाब हुई है ...कई ख्यातिलब्ध नाम छूटे भी हैं मगर हर प्रयास की अपनी सीमाएं जो होती हैं और शायद ऐसे प्रयासों की कोई इति तो होती नहीं ..जो कुछ सारवान छूटा है आगे आएगा ही ....
हिन्दी ब्लागिंग के कई पहलू आज उजागर हैं -उसका तकनीकी पक्ष ,विषयगत फलक ,सामजिक मीडिया के रूप में उसकी प्रासंगिकता ,इतिहास आदि आदि ....यह देखकर अच्छा लगा कि पुस्तक इन सभी पहलुओं को समाहित करती है ....तकनीकी खंड में ब्लागिंग के इस पक्ष पर धुरंधर ब्लागरों जैसे पंडित श्रीश शर्मा ,रवि रतलामी ,शैलेश भारतवासी ,बी एस पाबला ,विनय प्रजापति आदि खुद श्रीमुख हुए हैं ...हिन्दी ब्लागिंग की साहित्यिकता का विवादित मुद्दा भी इस पुस्तक में गहन रूप से विवेचित हुआ है .सिद्धेश्वर सिंह का लेख 'हिन्दी ब्लॉग :सृजन ,संकट और कुछ उम्मीदें' बहुत प्रभावित करता है -लगा कि कोई ललित निबन्ध सा पढ़ रहे हों ...यह एकमात्र लेख ही पुस्तक को संग्रहणीय बनाने की कूवत रखता है . इस लेख को पढ़ते वक्त सहज ही कई लाईनों को मैं रेखांकित करने से रोक नहीं पाया -यद्यपि पूरा आलेख ही उद्धरण योग्य है .यह पढ़कर होठों पर मुस्कराहट तिर आई-" यह आरोप खारिज होता दिखाई नहीं दे रहा है कि अभी तक हिन्दी -ब्लागिंग के एक बहुत बड़े अंश पर आत्मलीन ,आत्ममुग्ध और आत्म केन्द्रित मानसिकता का कब्जा है ...." अरे यही आरोप तो कुछ ऐठूं दोस्त मुझ पर भी लगाते रहे हैं :)
'रचनात्मक अभिव्यक्ति के विविध आयाम' पर लिखते हुए केवल राम यह आश्वस्त करते हैं कि,'हिन्दी ब्लागिंग आज व्यक्तिगत बातों के दौर से गुजरकर विमर्श के दौर में प्रवेश कर चुकी है '..मगर निश्चय ही ब्लागिंग की यह मूल प्रवृत्ति नहीं थी ..यह एक बेहद निजी अभिव्यक्ति थी मगर जब वह सार्वजनिक मंच पर मुखरित होती गयी तो समाज के सर्वागीण, सार्वजनीन हितों और सरोकारों से इसका पृथक रह पाना शायद संभव भी नहीं था .. भले ही रचना जैसी ख्यात ब्लागर इस बात के पक्ष में पूरी दृढ़ता से खड़ी दिखायी दें कि यह विधा केवल और केवल आत्म केन्द्रित अभिव्यक्ति का ही माध्यम है ..समय ने ब्लागिंग के इस मिथ को तोड़ दिया है ..आज अनेक विषयगत ब्लॉग मनुष्य के अनेक क्षेत्रों की क्षमताओं और उपलब्धियों को बयां कर रहे हैं ...सच है मनुष्य को एक सीमित दायरें में बाधा भी नहीं जा सकता ...उसकी उपलब्धियां अपरिमित ,अनन्त हो चली हैं ...
हर व्यक्ति की अपनी दृष्टि सीमाएं हैं ....और यह भी सही है कि दृष्टि भेद से दृश्य भेद हो जाते हैं ...तथापि रवीन्द्र प्रभात के हिन्दी ब्लागिंग के समीक्षक और इतिहासकार के रूप का स्वागत है ...उन्होंने माना है कि इस विधा के लिए वर्ष २००७ धमाल का था (मैं जो इसी वर्ष पदार्पित हुआ था :) ...निश्चय ही इस धमाल के पीछे यूनीकोड जैसी तकनीकी का सहयोग था ...गिरीश पंकज का यह कहना भाया कि ब्लागिंग मानवीय सर्जना का नवोन्मेष है ...प्रमोद ताम्बट का यह वक्तव्य 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधकचरे अपरिपक्व रूप से स्वच्छंद उपयोग करने का कोई ऐतिहासिक लाभ नहीं है ' सोचने पर विवश करता है ...अजित राय का 'वैकल्पिक मीडिया का नया अवतार 'शीर्षक लेख विचारोत्तेजक है .ब्लागिंग के शुरुआती दौर में कुछ नामचीन ब्लॉगर भी इसके आर्थिक पहलू से काफी आस लगा बैठे थे-प्रतीक पांडेय ने इस पहलू को भी लिया है .शास्त्री जे सी फिलिप हिन्दी ब्लागिंग का एक बड़ा नाम रहा है मगर हिन्दी ब्लागिंग में विज्ञान लेखन की संभावनाओं पर उनका लेख अति संक्षिप्त और अपूर्ण सा है ....उनसे जाहिर है हमारी अपेक्षायें बड़ी और विषद हैं ....
हिन्दी ब्लागों की संख्या कितनी है -इस पुस्तक के विभिन्न लेख इस प्रश्न को लाल बुझकडी लहजा दे देते हैं ..कोई कहे यह एक लाख है तो कोई तीस हजार .....खुशदीप सहगल इसे अस्सी हजार मानते हैं तो सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी तीस हजार से ही संतोष करते हैं ....स्पष्ट है ये आकंडे बस ऐसे ही बूझे गए हैं ...रवि रतलामी शायद इसे सही बता पायें ..वैसे इसी पुस्तक में कहीं एक लाख की संख्या शायद उन्ही की बतायी हुई है ...बालेन्दु शर्मा दाधीच अपने आलेख में इसकी संख्या मात्र एक हजार बताते हैं ..निश्चय ही उनके पुराने लेख के इस अंश को काबिल सम्पादक द्वय संशोधित नहीं कर पाए ....
आलोच्य पुस्तक में ब्लागिंग की कई उप विधाओं -कविता ,कार्टून ,गाली गलौज :) पर विमर्श को भी उचित स्थान मिला हुआ है ...और इसके नागरिक पत्रकारिता ,वैकल्पिक पत्रकारिता के पहलुओं को ख़ास तौर पर उभारा गया है. पुस्तक के अंत में सक्रिय ब्लॉग लेखकों और उनके ब्लागों का परिचय / निर्देशिका अतिरिक्त आकर्षण है . पुस्तक संग्रहणीय है ...और ब्लागिंग में रूचि रखने वालों के शेल्फ की एक जरुरत भी है ...
हिन्दी ब्लागिंग :अभिव्यक्ति की नई क्रान्ति
सम्पादन:अविनाश वाचस्पति ,रवीन्द्र प्रभात
प्रकाशक :हिन्दी साहित्य निकेतन
संस्करण प्रथम -२०११
पृष्ठ संख्या:376
पृष्ठ संख्या:376
मूल्य :४९५ रूपये(कांट्रीब्यूटरों को धेला भर नहीं )
.आपकी समीक्षा पर टिप्पणी करने का कोई औचित्य नहीं,
जवाब देंहटाएंक्योंकि यह पुस्तक अभी मेरे हाथ नहीं लग पायी है ।
पढ़ने के बाद जरा इधर तो सरकाइयेगा ।
मैं देखना चाहता हूँ कि एक समर्पित ब्लॉगर होने के क्या लाभ हो सकते हैं,
क्या हम अपने और समाज के लिये दिशा निर्धारित कर पा रहे हैं,
या ऎंवेंई गालबजाऊ खुशफ़हमियों में डोल रहे हैं ?
ई कितबिया क्या कहती है ?
जरा इधर सरकाइयेगा !
आपकी तरफ अरविन्द जी को कितबिया सरकाने की कवनो जरुरत नाही डाक्टर साहब, आप तो मेरे पड़ोस में है बस मेरे मेल पर अपना पता सरका दीजिये, हम अपनी प्रति आपकी ओर सरका देंगे......वैसे अरविन्द जी ने पूरी निष्पक्षता के साथ समीक्षा कर्म को अंजाम दिया है और इसके लिए उनका मेरी ओर से पूरे मन से आभार !
जवाब देंहटाएंकोई पौने चार सौ पृष्ठों की इस किताब में हिंदी ब्लॉगिंग के तमाम छुए-अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है. किताब वस्तुतः हिंदी ब्लॉगिंग के विविध आयामों में जमे और डटे ब्लॉगरों की लिखी सामग्री को लेकर संपादित व संयोजित किया गया है. एक तरह से यह ब्लॉग, खासकर हिंदी ब्लॉग के लिए रेफरेंस बुक की तरह है, जहाँ आपको हिंदी ब्लॉगिंग के तकनीकी पहलुओं से लेकर इसकी सर्जनात्मकता और आर्थिकता आदि तमाम दीगर पहलुओं पर विस्तृत आलेख मिलेंगे.रवि रतलामी जी का मानना है कि प्रत्येक ब्लॉगर को रिफरेन्स के तौर पर इस पुस्तक को अपने पास रखना चाहिए ! आज आपने भी इसकी पुष्टि कर दी, एक सुखद एहसास हुआ !
मैं देखना चाहता हूँ कि एक समर्पित ब्लॉगर होने के क्या लाभ हो सकते हैं,क्या हम अपने और समाज के लिये दिशा निर्धारित कर पा रहे हैं,या ऎंवेंई गालबजाऊ खुशफ़हमियों में डोल रहे हैं ?
जवाब देंहटाएंडॉ अमर कुमार जी की इस बात से हम भी इत्तेफाक रखते हैं ।
वैसे अभी तक तो यही देखा है कि हिंदी ब्लोगर पानी के रेले की तरह हैं , जो आते जाते रहते हैं ।
आखिर और भी ग़म हैं ज़माने में ।
निवेदन हैं की ज़रा सरल हिंदी में इस क्लिष्ट वाक्य को समझा दे
जवाब देंहटाएंभले ही रचना सिंह जैसी ख्यात ब्लागर इस बात के पक्ष में पूरी दृढ़ता से खड़ी दिखायी दें कि यह विधा केवल और केवल आत्म केन्द्रित अभिव्यक्ति का ही माध्यम है
समझ लूँ तो पता चले मै किस पक्ष में हूँ
आप की हिंदी "लोह पथ गामिनी आवत जावत सूचक पट्टिका" की तरह हैं , सिग्नल पर रुकना पड़ ही जाता हैं
हिंदी से इंग्लिश में भी लिख दे तो समझ सकने में समर्थ हो जाउंगी
उत्तर की प्रतीक्षा मे
पुस्तक खरीद तो हमने भी ली है .अभी हाथ नहीं लगी पढकर बताते हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया समीक्षा की है ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर पुस्तक!
जवाब देंहटाएंबधाई.
पढनी पड़ेगी ४७५ पेज
जवाब देंहटाएं@रचना,
जवाब देंहटाएंआप क्लिष्ट शब्द जो स्वयं में क्लिष्ट है समझ सकती हैं मगर एक साधारण से वाक्य को नहीं समझ पा रहीं ..
मेरी हिन्दी और अंगरेजी दोनों ही इसी स्तर की हैं किसी भाष्यकार की सलाह ले लें :)
....notwithstanding Rachana singh's oft repeated stand that blogging as a genre is medium of only individualistic and self centered expressions. Is it okay Mam or still need help of an interpreter?
still trying to figure it out because those who read and referd it to me understood it, as if my blog writing is individualistic and self centered
जवाब देंहटाएंso their question was that since i was the moderator of naari blog which deals with woman oriented issues of society how can I be called as individualistic and self centered
so i passed the question for furthur explaining
did you mean i was individualistic and self centered or that i am of the opinion that in hindi bloging most people write individualistic and self centered posts ??
in any case i am not in the book so its your assumption and by the way with all the tech help available for the writers of the book they still cant make out when i started to blog !!!!!!
Don't worry Rachna,an apt and ample entry nevertheless finds a place in the book about you on pages 118 to 119 but there also it has not been clarified since when you adorned the Hindi blogging world?Is it 2006 or 2007?
जवाब देंहटाएंNow don't you often say that blogging is a medium of self expression only and not a place of social networking or any other agenda ?
I would also request you to please write in Hindi as there are many bloggers who are not well versed with English and may wish to participate in discussion.
And I am ready even to edit with due apology the part of my post which have a passing reference of yours if it is so obnoxious and irrelevant and out of the context in your assessment.Or else you feel that you have been wrongly quoted and do not posses the said attitude towards blogging!
आपने तो पढ़ने की ललक जगा दी।
जवाब देंहटाएंकभी पढ़ी जायेगी. वैसे हम अभी तक अपने आपको एक टाइम-पास ब्लॉगर ही मानते हैं. अभी उस लेवल के ब्लॉगर नहीं हो पाए हैं कि ब्लॉग मीट और पुस्तक-उस्तक के चक्कर में पड़े :)
जवाब देंहटाएंयदि हम आप न हों इसमें तब तो यह पुस्तक छपते ही आउट डेट हो गई. (चाहें तो इस सचाई को आत्ममुग्धताॽ मान लें.)
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें रविन्द्र प्रभात जी को !
जवाब देंहटाएंपढ़ने की ललक जाग गई है। दाम झन्नाटे दार है! 495/-
जवाब देंहटाएंनहीं..अधिक है नहीं कह रहा...झन्नाटेदार है। मतलब जब मै बाटा के जूते खरीदने जाता था तो उसके दाम पर खीझता था। हर जूते-चप्पल के दाम ...95/- होते थे । कोई 195/- तो कोई 495/- मैं सोचता था कि क्या बनियई है..सीधे-सीधे 200- या 500- रख लेते तो क्या जाता? फिर सोचता कि यह व्यापार है। व्यापार में ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए ऐसा दाम रखते हैं कि देखने में कम लगे और जेब से पैसा भी पूरा खींच लें। इस अर्थ में कहा कि झन्नाटेदार।
पुस्तक का प्रयोग अच्छा है, लेकिन हम तो अभिषेक ओझा भाई के पीछे पीछे चलेंगे |
जवाब देंहटाएं@देवेद्र जी आप हमसे उधार ले सकते हैं -लेकिन उसके लिए घर आकर कम से कम एक कप चाय फुर्सत से पीनी पड़ेगी
जवाब देंहटाएंकिताब उधार मिले तो हम पैदल भी आ सकते हैं। ऊपर से चाय! वाह!
जवाब देंहटाएंसस्ती मिल रही है
जवाब देंहटाएंसुना है सच है
कितनी सस्ती के लिए
यहां पर देखिए
हिंदी ब्लॉगिंग पर पुस्तक, अभी खरीदना मत, जब सारी बिक जाए, तब दोष हमें दे देना http://www.nukkadh.com/2011/05/blog-post_6949.html
हमारे यहां तो मिलना असम्भव हे, ओर हम हे भी फ़ालतू समय बिताने वाले ब्लागर, इस लिये कभी समय मिला तो जरुर पढेगे इस पुस्तक को, अभी तो आप की इस सुंदर समीक्षा से ही काम चला ले...
जवाब देंहटाएंएक संतुलित समीक्षा जो पुस्तक पढ़ने की रुचि जगाती है और साथ ही इसके लेखकों / योगदानकर्ता के प्रति सम्मान का भाव भी।
जवाब देंहटाएंहम भी पढ़ेगें :)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमैं देखने आया था कि अंत में हिंदी ब्लागरों की संख्या पर कोई सहमति हो पाई या नहीं? मैं भी अभिषेक और नीरज की तरह टाइम पास घराने का ब्लॉगर हूँ.
जवाब देंहटाएंपुस्तक का मूल्य बहुत ज्यादा है इसलिए खरीद कर पढ़ने का सवाल नहीं उठता. कभी बनारस जाना हुआ तो आपसे उधार ले लिया जाएगा:-)
सुन्दर पुस्तक के लिए बधाई तो पहले ही दे चुका हूँ. एक बार फिर से बधाई.
मैं भी पुस्तक की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। रवीन्द्र जी ने वादा कर रखा है। अब लखनऊ आया हुआ हूँ तो उम्मीद है जल्दी ही अपना लिखा देखने और बाकी लोगों का लिखा पढ़ने का सुअवसर मिलेगा।
जवाब देंहटाएंहिंदी के सक्रिय ब्लॉगों की सही संख्या गिनने का कोई औंजार बना है क्या? यदि हाँ तो बताया जाय। यदि नहीं तो हम अनुमान लगाने का धर्म निभाते रहेंगे। अपने-अपने तरीके से।
पुस्तक संग्रहणीय तो है , कोई शक नहीं ...व्यक्तिगत कारण भिन्न हो सकते हैं !
जवाब देंहटाएंDon't worry Rachna,an apt and ample entry nevertheless finds a place in the book about you on pages 118 to 119 but there also it has not been clarified since when you adorned the Hindi blogging world?Is it 2006 or 2007?
जवाब देंहटाएंjii mae jaantee hun aur karan bhi jaantee hun
lekin afsos haen ki shodh karnae vaalae nahin jantey
2006 sae likh rahee hun profile badlna jarurii thaa kyuki naari blog ko agar profile naa badaltee to apnae naam sae hi apnivani , hamarivani ityadi mae dena padtaa
aap khud zakir ko is baat ko laekar keh chukae haen science blogger association ki ek post par maene wahaan bhi nayee email ki baat kahin thee uskae baad hi science bloggar association kaa panjikarn duabara hua thaa aur zakir ji ki photo hatii thee
taknik kae jaankar jab kisi par ungli uthatey haen to afsos hotaa haen kyuki wo agyani nahin haen wo apna account settle kartey haen
kisi kae profile par koi bhi date of is sae koi farak nahin padtaa
social networking social causes kae liyae ho to hi bloging ka faydaa haen
बड़ी देर लगा दी पढ़ने में :)
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक समीक्षा है भाई साहब .एन्ठूंदोस्त प्रयोग बहुत अच्छा रहा .ऐन्ठू हुआ तो क्या हुआ है तो अपना दोश्त,दूसरी लाइन आप पूरी करो ...भाई साहब !
जवाब देंहटाएंपांडे जी पढ़ लेंगे तो पांडे जी से उधार ले कर हम भी देख लेंगे :-) ! बाकी हम भी ओझा-बसलियाल-मिसिर(टीप वाले) की तरह टाईमपास मदरसे से ताल्लुक रखते हैं , ....कहाँ सीकरी सो काम !!
जवाब देंहटाएंवो जिसे पढ़ रहे हैं, सब उसे पढ़ रहे हैं,
जवाब देंहटाएंहम तो बस पढ़ने वालों की नज़र देख रहे हैं...
जय हिंद...
किताब तो अच्छी लग रही है... लेकिन अपना भी वही है.. ढीला-ढाला ब्लोगर हूँ.. फिर भी पढ़ने की इच्छा तो है... कोई आता है भारत से तो मंगवाता हूँ...
जवाब देंहटाएंaapne muhar laga di.....ya
जवाब देंहटाएंvalue addition kar di.....
kya firk parta hai........
lekin sameeksha achhi lagi...dil se..
pranam.
बढिया समीक्षा .... But please dont belittle most of the bloggers by saying that they are not well versed in English. We write in Hindi because we claim to be HINDI BLOGGERS AND NOT ENGLISH BEGGARS :)
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !आप भी !
जवाब देंहटाएंप्रायोजित पुस्तक की अप्रयोजित समीक्षा?
जवाब देंहटाएंसच कहें तो जिस आयोजन में खुशदीप एवं रश्मि प्रभा जैसी दम्भी और स्वार्थी विभूतियाँ होंगी वहाँ निष्पक्षता का प्रश्न ही नहीं उठता.
यह पुस्तक भी भाई -भतीजावाद,गुटबाजी से अछूती नहीं है. आलोचना पुस्तक की बिक्री बढाने के लिए नहीं की जा रही बल्कि पुस्तक को सोचसमझ कर ही रेफेर करनी चाहिए इसलिए की जा रही है.
सुझाव -५०० रूपये किसी अच्छे काम में लगाएं .
ज़रूरतमंदों का आशीष मिलेगा.
HINDI BLOGGERS AND NOT ENGLISH BEGGARS :)
जवाब देंहटाएंall those who blog in english suddenly become patriotic when they come to hindi blog
how leo becomes lev in hindi
बढिया समीक्षा
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बधाई ब्लॉगजगत को ....अब टी.आर.पी बढ़ रहा है न...
जवाब देंहटाएंटिप्पणियाँ पढ़कर टिपियाने से एक समस्या खड़ी हो जाती है। मूल टिप्पणी भूल हर दो तीन टिप्पणी के बाद एक नई टिप्पणी बनती जाती है। मूल गायब हो जाती है।
जवाब देंहटाएंतो मूल कुछ ऐसी थी कि आपकी समीक्षा पढ़ने के बाद लगता है पुस्तक पढ़ी जाए।
पढ़नी है तो खरीदनी भी होगी। टिप्पणियाँ पढ़ने पर पता चला कि आपसे उधार लेने को तो काशी से कन्याकुमारी और काशी से कश्मीर तक की लाइन लगी दिखती है। और यदि सब उधार लेकर पढ़ेंगे तो लेखक लिखेगा ही क्यों?
घुघूती बासूती
बहुत देर से देख पाया इस समीक्षा को। बहुत बढ़िया।मेरे लेख को इतना मान दे रहे हैं आप। आभार , दिल से।
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