यह एक सीख थी जो काफी पहले एक बड़े बुजुर्ग से मिली थी.और यह इसलिए दी गयी थी कि कम उम्र वालों से ज्यादा मेल मिलाप घुलना मिलना एक सीमा तक ही ठीक है इस बात का हमेशा ध्यान रखा जाय .मतलब अपने समान वयी लोगों से घनिष्ठता तो ठीक है मगर ज्यादा उम्र के अंतर वालों से दोस्ती में थोड़ा विवेक जरुर बरतना चाहिए अन्यथा वही हो रहता है जो मेरे साथ तो कई बार हुआ है और अभी हाल में एक ट्यूशन पढ़ाने वाले गुरु जी के साथ हो गया ...पहले गुरु जी की बात ..
गुरु जी गाँव के एक रईस/खानदानी अभिजात्य परिवार में बच्चों का ट्यूशन करते हैं .अब बच्चे रईस परिवार के हैं तो गाँव के बच्चों /स्ट्रीट अर्चिंस से उनका मेल जोल न के बराबर है .लेकिन उनका ट्यूशन कर रहे मास्टर साहब पहले तो गाँव के बच्चो से आते जाते हिल मिल गए मगर उनकी शरारतों से ऊब कर उनसे दूरी बढाने लगे या यूं कहिये थोड़ी अभिजात्यता उनमें भी आ गयी ....गवईं बच्चों ने यह भांप लिया और उनका आक्रोश इतना बढ़ा कि एक दिन ट्यूशन से वापस लौटते वक्त बच्चों ने हंसी हंसी में पहले तो उनका नजर का चश्मा उतारा और फिर उन्हें एक सड़क के किनारे गड्ढे में धकेल कर ढेलों की बौछार कर दी ....सड़क से गुजरते कुछ यात्रियों की नजर इस वाकये पर गयी तो मास्टर साहब की समझिये जान बची ...जैसे ही मैंने इस पूरे वाकये को सुना जी धक् से रह गया सो अलग, वो सीख भी याद हो आयी -लौंडों की दोस्ती ढेलों की सनसनाहट!
बच्चे, नव युवा मुझे भी आकर्षित करते हैं -कारण स्पष्ट है वे अपेक्षया निश्छल होते हैं और भविष्य की अनन्त संभावनाओं की आहट लिए होते हैं -उनका दिमाग दुनियादारी से कम प्रदूषित होता है ...सहज होते हैं ,मित्रवत भी ....मगर उनका जो सबसे नकारात्मक पहलू होता है वह है उनकी नादानी -कहते भी हैं नादान दोस्त से दानेदार दुश्मन अच्छे होते हैं ....मुझे यह पता है बल्कि शिद्दत से इस मर्म से गुजरा भी हूँ . मगर उनकी मासूमियत ,आखों में भविष्य की चमक मुझे खींचती है ...ब्लागजगत में मेरे कितने ही युवा मित्र हैं मगर उनकी नादानी मुझे गाहे बगाहे दुखी करती रहती है ....एक मेरे नादान मित्र ने मेरे पिछले पच्चीस सालों के श्रमपूर्वक लिखे डार्विन के मेरे आलेखों को नेशनल बुक ट्रस्ट से अपने नाम से छपवा लिया ....एक दूसरे कम वयी मित्र मुझे एक उस संस्था के अध्यक्ष पद से बेदखल करने की धमकी दे चुके हैं जो मैंने ही उन्हें प्रेरित कर और उनके ही इमेज बूस्टिंग के लिए वजूद में लाई है ....ये घटनाएं बड़े बुजुर्गों के सुदीर्घ अनुभव से दी गयी सीखों पर ही मुहर लगाती हैं-कम उम्र वालों से दोस्ती तो करें मगर विवेक के साथ और एक दूरी बनाकर ही ....एक जगह मेरे अनवरत रचनात्मक योगदान को ही परे धकेलते हुए जनहित के एक बहुत ही महत्वपूर्ण ब्लॉग को हमेशा के लिए डिलीट कर दिया गया ....शायद उम्र के इस बेमेल मित्रवत सम्बन्ध के बारे में यह अंगरेजी की कहावत ज्यादा मौजू है -फैमेलियारिटी ब्रीड्स कन्टेम्प्ट!...ज्यादा घुलना मिलना भी अपमान की स्थितियों को बढ़ावा दे सकता है ..इसलिए ही अनुभवी लोग रिश्तों में एक मर्यादित दूरी बनाए रखने की वकालत करते हैं ..
अब छोटों को केवल यह मानकर कि वे उम्र में छोटे हैं नजरअंदाज भी तो नहीं किया जा सकता -कई तो बड़ों के कान काटने में खूब अभ्यस्त होते हैं -बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ छोटे मियाँ सुभान अल्लाह..और यह भी कि 'देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर .." मगर एक समन्वयवादी दृष्टि अपनानी ही पड़ जाती है क्योंकि यह भी आगाह किया जा चुका है कि 'रहिमन देख बडेंन को लघु न दीजिये डार जहाँ काम सुई करे कहाँ करे तलवार!
अब छोटों को केवल यह मानकर कि वे उम्र में छोटे हैं नजरअंदाज भी तो नहीं किया जा सकता -कई तो बड़ों के कान काटने में खूब अभ्यस्त होते हैं -बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ छोटे मियाँ सुभान अल्लाह..और यह भी कि 'देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर .." मगर एक समन्वयवादी दृष्टि अपनानी ही पड़ जाती है क्योंकि यह भी आगाह किया जा चुका है कि 'रहिमन देख बडेंन को लघु न दीजिये डार जहाँ काम सुई करे कहाँ करे तलवार!
मगर जब आप किसी को ज्यादा प्रोत्साहित करते हैं और अगर वह पर्याप्त विवेक वाला नहीं हुआ जैसा कि अक्सर होता ही है तो आपके दिए सम्मान/संपत्ति को वह 'टेक फार ग्रांटेड' ले लेता है ...और आपके किन्ही कारणों से दूरी बनाते ही वह आक्रामक और डिमांडिंग होने लगता है -बढ़त बढ़त सम्पति सलिल मन सरोज बढ़ जाय ,घटत घटत पुनि न घटे बरु समूह कुम्हलाय वाली स्थति प्रगट हो उठती है ..नव युवाओं में अमूमन बहुत सी सकारामक बातें तो होती हैं मगर उनका बहुत जल्दी नेम फेम पा जाने ,जल्दी ही धनाढ्य और पूज्यनीय होने की प्रवृत्ति जो इन दिनों उफान पर है ,उन्हें काफी धक्के भी देती है -स्थायी सफलता का कोई शार्ट कट रास्ता नहीं होता ...इसे बार बार कहने की जरुरत नहीं है ...मुझे तो लगता है अपने लक्ष्य के प्रति निरंतर प्रयासरत रहना ,अपने से योग्य बड़ों का बिना संशय सम्मान ,विनम्रता और कार्य आचरण की इमानदारी आज के युग में भी सफलता के सूत्र हैं ...
ये विचार कई दिनों से मन में उमड़ घुमड़ रहे थे मगर आज ज्यादा प्रबल होकर आपके सामने प्रस्तुत हो गए ..निश्चय ही आपका मंतव्य पहले की ही तरह मुझे इस मुद्दे पर लाभान्वित करेगा..