पहले ही मुआफी मांग लूं यह पोस्ट कौनू तैयारी के साथ नहीं लिख रहा हूँ -यी त अपने शिव भैया आज आके टोक दिए कि बार बार दरवज्जे पर आकर लौट जा रहे हैं और हमरा दीदार ऊ कर नहीं पा रहे हैं लिहाजा ई पोस्ट उनही के समर्पित कर रहे हैं -नामालूम काहें शिव भैया को देख के बाहुत माख आ जाती है -अपने जार जवार क मनई कलकत्ता में जाके कहाँ फंस गए हैं -पूर्वांचल के विरह साहित्य में कलकत्ता प्रवास का बड़ा भारी जिकर है ...लेकिन यी बात नहीं है आज की पोस्ट लिखै के खातिर ...हम आज शिव भइया के कुछ पूर्वांचल का याद दिलाई चाहत हैं -ई हमें नइखे पता कि शिव भइया खाई पियई के शौक़ीन हैं या नाही मगर हम उन्हें आज पूर्वांचल के कुछ पांच सितारा व्यंजनों की याद दिला कर गृह विरही बनाये बिना नहीं छोड़ेगें ..
हमारे पूर्वांचल में एक से एक ऐसे व्यंजन हजारो नहीं तो सैकड़ों सालों से बनते आ रहे हैं जो किसी का भी दिल जीत लेने की खूबी रखते हैं ...मतलब पेट से दिल के रास्ते का रोडमैप यहाँ बहुत पहले ही तैयार हो चुका था ...इन दिनों गाँव से माता जी पधारी हुई हैं सो हम अतीतजीवी होने का सुख भोग रहे हैं ...रोज कुछ न कुछ पुराने जमाने के कम खर्च बालानशी व्यंजन का लुत्फ़ उठा रहे हैं ...वैसे इनके पाक शास्त्र में टिटिम्मा (जहमत ) कम नहीं है और इसलिए रसोईं घर संभालने वालों की नई पीढियां इन्हें बाय बाय कहती जा रही हैं ...मगर मुझे पक्का लगता है कि इनका वैल्यू एडीशन करके अगर पॉँच सितारा होटलों में उतार दिया जाय तो कई अंतर महाद्वीपीय व्यंजन सी सी कर पानी मांग उठेगें .इस बीच इधर खाए गए कुछ व्यंजन का ब्यौरा दे रहा हूँ -अगर आप पूर्वांचल के भाई हैं तो अपने व्यंजनों के नाम इसमें जरूर जोड दीजियेगा ..
पहले तो सगपईता जो अरहर/उरद की दाल में अरवी की पत्ती,करेमुआ का साग आदि एक साथ पका कर हींग ,लहसुन, मर्चा का तड़का देकर बनाते हैं ..कहते हैं इसमें देशी घी मिलाकर खाने पर सीधे स्वर्ग का द्वार दिख जाता है ....( वहां जाने की नौबत ही नहीं पड़ती ....यह मतलब है इसका ) ..इसी तरह का दूसरा प्रेपेरेशन है ...नकदावा या लगदावा जिसमें कटहल के टुकड़ों या लौकी/ .कुम्हड़ा के टुकड़े डालकर, कोहडौरी (मसाला चंक्स ) की छौंक के साथ बनाते हैं ...यह भी यम यम .....और एक व्यंजन है रिकवच जिसमें अरवी की पत्ती को उर्द की दालों के साथ तेल में फ्राई करके चंक्स तैयार करते हैं फिर पकौड़े /सगौडे के नाम से मिलने वाले चाट जैसा सूप तैयार करके उसमें डाल कर परोसते हैं -सचमुच क्या स्वाद है!बथुआ का साग एक और आकर्षण है मगर यह जाड़े में शुरू होगा -यहाँ मक्के की रोटी और बथुए के साग जिसमें सरसों का तेल मिला हो का खूब प्रचलन है ...एक बनता है दाल का दूल्हा -सामान्य दाल में आंटे के विभिन्न आकार की डिजाईनों में छोटे छोटे टुकडे पकाए जाते हैं ....बच्चे इन पर लहालोट हो जाते हैं. और एक चावल या मक्के के आटे के मिश्रण की लोई बनाकर उसमें मसालेदार पीठी -उड़दऔर चना की दाल का पेस्ट स्टफ किया जाता है -इधर गोइंठा/फरा बोलते हैं -इसके छोटे छोटे स्लाईस तलकर खाने पर बैकुंठ की प्राप्ति यहीं धरती पर ही हो जाती है ऐसा भोजन पंडित लोग कहते आये हैं ....
काश इनमें से किसी का चित्र हम लगा पाते -इसलिए ही कहा न कि यह पोस्ट तैयारी के साथ नहीं लिख पाया -बस यारी में शुरू हो गए ...और हाँ एक बात और कहे देते हैं -मैंने महज कुछ पूर्वांचल के व्यंजनों का मात्र परिचयात्मक विवरण ही यहाँ दिया है ..रेसिपी /पाक विधि नहीं बतायी है -इसलिए इसे अपने रिस्क पर ही ट्राई करें ...या फिर इंतजार करें अगली किसी पोस्ट का या किसी ख़ास व्यंजन में इंटेरेस्ट हो तो बतायें माता जी से रेसिपी पूछ कर मेल कर देगें ....