प्रायः लोगों की उत्कंठा होती है युवावस्था कब तक होती है?
बुजुर्ग लोग प्रायः सीधा उत्तर न देकर यह कह देते हैं कि जब तक उत्साह उमंग कायम है युवावस्था है? वैसे शारीरिक क्षमता और काम क्रिया की सक्रियता (उर्वरता नहीं) युवावस्था का प्रमुख मानदंड है।पुरुष के शुक्राणु तो जीवन के अंत तक सक्रिय रहते हैं। तो क्या वह मृत्युपर्यन्त युवा है? निश्चित ही नहीं? लेकिन पुरुषार्थ के सनातनी उद्देश्यों में 'काम' भी है।कहा गया है कि मनुष्य के सार्थक जीवन के चार उद्देश्यों में धर्म,अर्थ और मोक्ष के साथ काम भी है।
क्या है यहाँ 'काम' का अर्थ?
'काम' के अधीन -इच्छा ,दीवानगी ,भावविह्वलता, ऐन्द्रिय सुख ,सौंदर्यबोधयुक्त जीवन का निर्वाह ,लगाव ,सेक्स सहित या रहित प्रेम का भाव है.जीवन के चार प्रमुख उद्देश्य यानि पुरुषार्थ माने गये हैं।पहले नंबर पर धर्म, फ़िर अर्थ , काम और मोक्ष। वैसे सर्वोच्च उद्देश्य तो मोक्ष ही है और उसके बाद धर्म है। नैतिक आग्रहों के साथ जीवन जीना धर्म है।धनार्जन दूसरा किन्तु गौण लक्ष्य है. हिन्दू धर्म में जीवन की चार अवस्थाएं भी निर्धारित हैं -ब्रह्मचर्य ,गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास!
अब तनिक इन चार अवस्थाओं (आश्रम ) को पुरुषार्थ की अवधारणा के साथ जोड़िये। एक सामंजस्य दीखता है। छात्र के लिए धर्म या नैतिक आचरण प्रमुख है ,गृहस्थ के लिए धर्म के साथ ही अर्थ और काम तथा वानप्रस्थ/ सन्यास के लिए धर्म और मोक्ष।
अब आईये इस प्राचीन व्यवस्था के अनुसार मनुष्य के उम्र का कालक्रम देखें -
यह है -शैशव-0 -2 वर्ष,बाल्य -3 -12 वर्ष,फिर कौमार्य -(यहां दो वर्ग हैं )-अ -किशोर -13–15 वर्ष,ब -तरुण -16–19 वर्ष,अब इसके बाद आता है -यौवन, और रोचक बात यह कि इसके भी दो काल वर्ग हैं-यौबन -1 (तारुण्य यौवन )- 20–29 वर्ष,यौवन -2 (प्रौढ़ यौवन ) 30–59 वर्ष,अर्थात यौवन का विस्तार 20 से 59 वर्ष का हैऔर फिर ६० से वार्धक्य।यह वर्गीकरण कितना विज्ञान सम्मत है! अर्थात गृहस्थ(५९ वर्ष तक) युवा है -और धर्म अर्थ के साथ काम उसका प्राप्य अभीष्ट है!
बाटम लाईन: मनुष्य की युवावस्था 59 वर्ष तक है ! ६०+ वार्धक्य -वृद्धावस्था का आरम्भ।जिसमें वानप्रस्थ फिर सन्यास है। वानप्रस्थ दरअसल यौवन और सन्यास का संक्रमण काल है। किन्तु यह भी सोचिये यह वर्गीकरण हजारो वर्ष पुराना है। तब मेडिकल साइंस इतना उन्नत नहीं था। इसलिए अमिताभ का बहु प्रचारित डायलॉग "बुड्ढा होगा तेरा बाप " कोई अतिशयोक्ति तो नहीं!
पुनश्च: चूँकि नारी की उम्र चर्चा पर सभ्य जगत में निषेध है अतः मुखर रूप में नारी का उल्लेख यहाँ नहीं है मगर विद्वानों का कहना है कि यह प्राचीन वर्गीकरण नर नारी दोनों के लिए था।
बुजुर्ग लोग प्रायः सीधा उत्तर न देकर यह कह देते हैं कि जब तक उत्साह उमंग कायम है युवावस्था है? वैसे शारीरिक क्षमता और काम क्रिया की सक्रियता (उर्वरता नहीं) युवावस्था का प्रमुख मानदंड है।पुरुष के शुक्राणु तो जीवन के अंत तक सक्रिय रहते हैं। तो क्या वह मृत्युपर्यन्त युवा है? निश्चित ही नहीं? लेकिन पुरुषार्थ के सनातनी उद्देश्यों में 'काम' भी है।कहा गया है कि मनुष्य के सार्थक जीवन के चार उद्देश्यों में धर्म,अर्थ और मोक्ष के साथ काम भी है।
क्या है यहाँ 'काम' का अर्थ?
'काम' के अधीन -इच्छा ,दीवानगी ,भावविह्वलता, ऐन्द्रिय सुख ,सौंदर्यबोधयुक्त जीवन का निर्वाह ,लगाव ,सेक्स सहित या रहित प्रेम का भाव है.जीवन के चार प्रमुख उद्देश्य यानि पुरुषार्थ माने गये हैं।पहले नंबर पर धर्म, फ़िर अर्थ , काम और मोक्ष। वैसे सर्वोच्च उद्देश्य तो मोक्ष ही है और उसके बाद धर्म है। नैतिक आग्रहों के साथ जीवन जीना धर्म है।धनार्जन दूसरा किन्तु गौण लक्ष्य है. हिन्दू धर्म में जीवन की चार अवस्थाएं भी निर्धारित हैं -ब्रह्मचर्य ,गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास!
अब तनिक इन चार अवस्थाओं (आश्रम ) को पुरुषार्थ की अवधारणा के साथ जोड़िये। एक सामंजस्य दीखता है। छात्र के लिए धर्म या नैतिक आचरण प्रमुख है ,गृहस्थ के लिए धर्म के साथ ही अर्थ और काम तथा वानप्रस्थ/ सन्यास के लिए धर्म और मोक्ष।
अब आईये इस प्राचीन व्यवस्था के अनुसार मनुष्य के उम्र का कालक्रम देखें -
यह है -शैशव-0 -2 वर्ष,बाल्य -3 -12 वर्ष,फिर कौमार्य -(यहां दो वर्ग हैं )-अ -किशोर -13–15 वर्ष,ब -तरुण -16–19 वर्ष,अब इसके बाद आता है -यौवन, और रोचक बात यह कि इसके भी दो काल वर्ग हैं-यौबन -1 (तारुण्य यौवन )- 20–29 वर्ष,यौवन -2 (प्रौढ़ यौवन ) 30–59 वर्ष,अर्थात यौवन का विस्तार 20 से 59 वर्ष का हैऔर फिर ६० से वार्धक्य।यह वर्गीकरण कितना विज्ञान सम्मत है! अर्थात गृहस्थ(५९ वर्ष तक) युवा है -और धर्म अर्थ के साथ काम उसका प्राप्य अभीष्ट है!
बाटम लाईन: मनुष्य की युवावस्था 59 वर्ष तक है ! ६०+ वार्धक्य -वृद्धावस्था का आरम्भ।जिसमें वानप्रस्थ फिर सन्यास है। वानप्रस्थ दरअसल यौवन और सन्यास का संक्रमण काल है। किन्तु यह भी सोचिये यह वर्गीकरण हजारो वर्ष पुराना है। तब मेडिकल साइंस इतना उन्नत नहीं था। इसलिए अमिताभ का बहु प्रचारित डायलॉग "बुड्ढा होगा तेरा बाप " कोई अतिशयोक्ति तो नहीं!
पुनश्च: चूँकि नारी की उम्र चर्चा पर सभ्य जगत में निषेध है अतः मुखर रूप में नारी का उल्लेख यहाँ नहीं है मगर विद्वानों का कहना है कि यह प्राचीन वर्गीकरण नर नारी दोनों के लिए था।
अनेक शास्त्रों में ' काम ' को स्वाभाविक रूप से स्वीकार नहीं किया गया है , जबकि " ऋग्वेद " ने इसे सहज रूप में स्वीकार किया है आज - कल मैं " ऋग्वेद " का अनुवाद कर रही हूँ , कहीं - कहीं उसमें ऐसे शब्द - चित्र हैं , जिसे मैं देख - कर भी हिचकिचा रही थी और जैसा देखी वैसा नहीं लिख पाई , एक हल्का सा आवरण डाल - कर मैंने अपने दायित्व का निर्वाह किया । वस्तुतः काम एक ऊर्जा है , इसे बहुत सहजता से स्वीकार कर लेना चाहिए पर इसे स्वीकार करने के लिए हिम्मत चाहिए , ओशो ने यह हिम्मत की परिणाम हमारे सामने है ।
जवाब देंहटाएंकिन्तु काम इतना गर्हित, उपेक्ष्य क्यों होता गया यहाँ यह शोध का विषय है -
हटाएंहाँ यहाँ चर्चा यौवन काल की थी :-)
यहाँ तो टी. वी. पर प्राइमटाइम के १० में ४-५ विज्ञापन तो इसी के होते हैं कि कैसे आप अपनी युवावस्था (५९ के आगे ) बड़ी आसानी से ले जा सकते हैं. विज्ञान ने काफी मदद दे ही दी है युवावस्था बढ़ाने के लिए.
जवाब देंहटाएंशिकस्ते-दिल को शिकस्ते-हयात क्यों समझे ?
जवाब देंहटाएंहै मैकदा तो सलामत हजार पैमाने .
क्या बात है :-)
हटाएंसार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (01-02-2015) को "जिन्दगी की जंग में" (चर्चा-1876) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
यह वर्गीकरण आज उपयुक्त नहीं लगता, मेडिकल साइंस ने ८० साल के बूढ़े को भी जवान बना दिया l
जवाब देंहटाएंनेता और भ्रष्टाचार!
लेकिन प्राचीन हिंदू धर्म् ग्रंथों ने मनुष्य की शतकीय पारी का उल्लेख करते हुए चार प्रमुख आश्रमों को 25-25 वर्ष के वर्ग में विभाजित किया था.इसलिए कहा भी जाता है- जीवेम् शरदः शतम्.
जवाब देंहटाएंआपके सवाल के बाद ढ़ूँढ़ते हुए कुछ मिला था, अब खैर लिंक भी उपलब्ध नहीं है, पर अगर वह लिख दूँ तो नर नारी में हंगामा हो जाये
जवाब देंहटाएंराजा दशरथ ने सोलह वर्षीय कैकई से वृद्ध अवस्था में विवाह किया। राजा ययाति ने अपनी वर्धयक अवस्था में अपने पुत्र पुरू से यौवन उधार में लिया, यह बखान भी हमारे पुराणों का ही है।सम्भोग की इच्छा नैसर्गिक है,इस नियम पर सय्यम ना रखा जाये,तो पतन कारन बन जाता है।
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