इस बार भी दीपावली पैतृक आवास(चूडामणिपुर, बख्शा -नौपेडवा,जौनपुर ,उत्तर प्रदेश ) पर मनाने का मौका मिला .सालाना त्यौहार अपने पैतृक आवास पर मनाना मुझे अच्छा लगता है . बड़े मिश्रित अनुभव रहे . पिछले वर्ष से शुरू हुयी बाल रामलीला इस वर्ष बच्चों के और भी उल्लास के चलते अविस्मरणीय बनी . इस बार का प्रसंग था लंका दहन का . इस प्रसंग में बच्चों ने हनुमान के लंका में प्रवेश, लंकिनी से वार्ता और उसकी मुक्ति ,विभीषण से भेंट ,सीता को रावण द्वारा धमकाना ,हनुमान द्वारा श्रीराम की मुद्रिका गिराना ,उनके द्वारा अशोक वाटिका का उजाड़ना ,अक्षयकुमार का वध ,मेघनाथ द्वारा हनुमान को ब्रह्मपाश में बाँधना ,हनुमान रावण संवाद ,लंकादहन और माँ सीता से कोई स्मृति चिह्न माँगना और लौट कर उसे श्रीराम को सौंपना आदि दृश्य बहुत ही बढियां ढंग से अभिनीत किया .
मातु मुझे दीजे कछु चीन्हा जैसे रघुनायक मोहि दीन्हा
हनुमान की सर्वश्रेष्ठ भूमिका कर सरिता मिश्र ने प्रथम पुरस्कार जीता
इस कार्यक्रम के पीछे की सोच यह है कि समाज में श्रेष्ठ सांस्कृतिक और पारम्परिक मूल्यों को अक्षुण बनाने की दिशा में बच्चों से ही इसकी शुरुआत करनी चाहिए -कैच देम यंग। इस दिशा में बाल रामलीला की शुरुआत एक विनम्र प्रयास भर है . कुछ चित्रों का आप भी दृश्य लाभ उठायें . जागरण ने भी चित्र के साथ खबर छापी .
बाल कलाकार टीम
निर्देशक कीर्ति मिश्र,दृश्य समन्वयक प्रियेषा मिश्र,पार्श्व ध्वनि - स्वस्तिका, सोनी आदि
प्रियेषा ने गाँव के बच्चों से घुलमिल कर रावण का पुतला भी बनाया और मुझसे पुतले के साथ अपना फोटो लेने का आग्रह किया . पुतला दहन के बाद पैतृक आवास मेघदूत को सजाने संवारने का काम शुरू हुआ . इस बार हमसभी ने पटाखे से दूरी बनायी मगर चयनित फुलझडियों -अनार ,चरखियां ,स्वर्गबाण अदि आईटमों का मर्यादित प्रदर्शन किया गया -यह काम बच्चों को देने के बजाय आउटसोर्स कर एक प्रोफेसनल आतिशबाज को दिया गया . खूब मजा आया .
आतिशबाजी
जाप ध्यान भी हुआ,प्रसाद बांटे गए। एक लोक परम्परा के अनुसार दिवाली के दिन अपने व्यवसाय या जो भी काम आप करते हों अवश्य करना चाहिए जिसे 'दिवाली जगाना' कहते हैं कि वह काम आप अगली दिवाली तक निर्विघ्न करते रहें. इस लिहाज से तो मुझे जो कुछ काम करने थे वे एक भी नहीं हो पाए,ब्लागिंग भी नहीं :-) सबसे बुरी बात यह हुयी कि मेरे फेसबुक अकाउंट से करीब दो दर्जन मोबाईल फोटो अपलोड आश्चर्यजनक रूप से गायब हो गए और मुझे विचलित कर गए .कारण अभी तक समझ में नहीं आया ,फेसबुक को प्राब्लम रिपोर्ट किया मगर अभी तक जवाब नहीं आया है , मतलब मेरी दिवाली नहीं जगी . माता जी ने आँख में काजल इस बार भी घुड़क कर लगा ही दिया यह डरा कर कि अगर नहीं लगवाता तो अगले जन्म में छंछून्दर हो जाऊंगा . मुझे सहसा डार्विन की याद आयी और होठों पर बरबस मुस्कराहट आ गयी . रिवर्स एवोलूशन :-)
....देर से सोये ही थे कि अल्लसुबह नींद कुछ धप्प धप्प ढब ढब की आवाज से खुल गयी .गृहिणी एक प्राचीनतम परम्परा का निर्वहन कर रही थीं हँसियाँ से सूप पीट पीट कर घर के अतरे कोने से दरिद्दर को भागा रही थीं . अब दीवाली की आराध्य देवी लक्ष्मी के आने पर दरिद्दर को घर से बाहर हो जाने की यह प्रतीकात्मक प्रस्तुति कहाँ से अनुचित है! मनुष्य उत्सव- अनुष्ठान प्रेमी है -वह कोई भी अनुष्ठान का मौका ऐसे ही गवाना नहीं चाहता . दरिद्दर भगाने का यह उपक्रम यहाँ पूर्वांचल में बहुत प्रचलित है . गाँव घर की लक्ष्मियाँ सूप पीट पीट कर गृह दारिद्र्य को गाँव से बाहर खदेड़ आती हैं . कहीं कहीं यह उपक्रम एकादशी की रात में करते हैं।
दिवाली की अगली रात से कार्तिक का शुक्ल पक्ष आरंभ हो रहा था सो कार्तिक महात्म्य की एक पर्म्पारा के मुताबिक़ हम सब ने आवला के पेड़ के नीचे सामूहिक भोज भात -आहारा का आयोजन भी किया . बारबीक्यू की तर्ज पर ....
आप सभी के यहाँ से दुःख -दारिद्र्य भाग जाए दीपोत्सव की यही सर्वतोभद्र कामना है ........
पूरा आयोजन का विस्तृत विवरण बहुत अच्छा लगा !
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
यह तो बहुत सारी घटनाओं का संक्षिप्त विवरण हुआ। रामलीला की विस्तृत जानकारी प्राप्त करने की इच्छा रह गई। पर बिस्वास है कि मिसर जी कभी न कभी पूरी कर ही देंगे।
जवाब देंहटाएंदिनेश जी,
हटाएंयह कार्यक्रम पूरी तरह बच्चों द्वारा बच्चों के जरिये बाल युवा वृद्ध सभी के लिए है . हाँ बुजुर्गों की अवधारणा है और बच्चों को दिशा निर्देश है .
बाकी बाल पात्रों का आडिशन -चयन ,रिहर्सल ,संवाद ,सजावट आदि में बच्चों अपनी कल्पनाशीलता दिखाते हैं -कास्ट्यूम में बड़ों की भूमिका अवश्य है ,ज्यादा कोशिश यही रहती है कि बच्चों का हस्तक्षेप कम से कम हो ....पिछले बार सीता स्वयम्बर का दृश्य था ..इस बार लंका दहन
का प्रसंग था ....बच्चों ने कमाल का अभिनय किया . अगले वर्ष के प्रसंग पर विचार विमर्श चल रहा है ! किमाधिकम?
आप सभी के यहाँ से दुःख-दारिद्र्य भाग जाए दीपोत्सव की यही सर्वतोभद्र कामना है ........
तथास्तु !
बहुत अच्छी कामना है पंडित अरविंद मिश्र जी !
आपको भी
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♥~*~*~ஜ●दीपावली की रामराम!●ஜ~*~*~♥
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रोचक और जानकारी से परिपूर्ण पोस्ट है …
हमेशा की तरह
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
badhiyaa jaankari..
जवाब देंहटाएं....जैसे आपके दिन बहुरे, वैसे सबके बहुरें !
जवाब देंहटाएंशुक्र है आपके यहाँ ये रीति रिवाजें अभी तक जिन्दा हैं.
जवाब देंहटाएंअच्छा लगता है अपनी रूट्स से मिलकर .
शुभकामनायें .
Thanks. Nice narration. Am at mobile. No hindi . Happy diwali.
जवाब देंहटाएंशहरों में तो अब ये रीति रिवाज कम ही मिलते हैं .... अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी यह पोस्ट।
जवाब देंहटाएंदरिद्दर भगाने की परंपरा से संबंधित स्व0 पंडित विद्यानिवास मिश्र जी के ललिल निबंध की याद आ रही है जो कभी पढ़ा था अब भूल चुका हूँ।
अपनी परम्पराओं को जीवित रखना बहुत बड़ी बात है.उन सभी बच्चों को बधाई और ढेर सारी शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंरामलीलाएँ तो शायद अब गाँव- कस्बों तक ही सिमटने लगी हैं.
यह चित्रमय प्रस्तुति अच्छी लगी.
आंवले के पेड़ के नीचे भोज!नयी जानकारी है.
लीला, दीपावली और परंपरा प्रतीकों के बारे में पढ़ना बहुत अच्छा लगा, शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंआयोजन का पूरा विवरण अच्छा लगा...
जवाब देंहटाएंrecent post...: अपने साये में जीने दो.
भाग दरिद्दर: जा के स्विस बैंक में जमा हो जा।
जवाब देंहटाएंसांस्कृतिक विरासत को अभी भी संभाला है , जानकर अच्छा लगा .
जवाब देंहटाएंदरिद्दर भगाने की प्रथा रोचक है . राजस्थान में रात भर जलने वाले दिए को तडके झाड़ू लगा कर इकट्ठे किये गए कचरे के साथ घर से बाहर रखने का रिवाज़ भी शायद यही संकेत देता है .
बहुत शुभकामनायें !
बचपन की रामलीला याद आ गयीं..
जवाब देंहटाएंपूरा प्रवास समेट लिया आपने इस एक पोस्ट में.. चित्रों की झांकियां, रामलीला और अंत में भाग दरिद्दर भाग.. मेरी पत्नी भी अभी तक निर्वाह करती हैं इस परम्परा का!!
जवाब देंहटाएंसांस्कृतिक झलक देखी वार्षिक आयोजन की .एक अच्छी पहल की अच्छी रिपोर्टिंग के लिए आपका आभार .ब्रिज (ब्रज )मंडल के गिर्द भी दिलद्दर भगाने का रिवाज़ है .
जवाब देंहटाएंek sarthak tyohar manaya aapne parampara ke sath...sundar..
जवाब देंहटाएंसोणी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंहर वर्ष एक प्रसंग या एक कांड का नाट्य रूपांतरण करना भी एक अभिनव प्रयोग लगा।
पैतृक आवास में सामूहिक भोज की परम्परा बनी रहे
जवाब देंहटाएंआने वाली पीढ़ी को संस्कार व संस्कृति संभाल कर सौंपना हमारा ही उत्तरदायित्व है
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा आलेख जिसमें लोक परम्परा का सुंदर जिक्र भी समाहित है |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पोस्ट.....रस्मों रिवाजों से जुड़ी...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...
सादर
अनु
'लच्छिमी पैठे,दरिद्दर निकसे' हमारे यहाँ भी होता है-बड़े सवेरे ,सूप और चलनी बजा कर .
जवाब देंहटाएंआयोजन की सार्थकता दृष्टिगोचर हुई खुबसूरत
जवाब देंहटाएंपोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
अपना-अपना सा आलेख..यही हमारी पहचान है , हमारी खासियत है जिसपर हमें गर्व है . आप सबों को बधाई और शुभकामनाएं ..
जवाब देंहटाएंसंस्कृति के तत्वों को समाहित किये आती है आपकी पोस्ट .हम तो सोच के आये थे नै पोस्ट पढेंगे भाई साहब की .शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .
जवाब देंहटाएंसंस्कृति के तत्वों को समाहित किये आती है आपकी पोस्ट .हम तो सोच के आये थे नै पोस्ट पढेंगे भाई साहब की .शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .सैंडी सुपर के अलावा इस बरस टोर्नेडोज ने भी बहुत कहर ढाया ,हमारा मिशिगन राज्य बचा रह गया था .मौसमी चक्र टूट रहा है आँखों के आगे .
जवाब देंहटाएंदेर से इस पोस्ट पर आने व टिप्पड़ी हेतु क्षमा करेंगे। परंतु इसे पढ़कर अतिशय आनंद आया। बधाई व सुंदर प्रस्तुति हेतु आभार।
जवाब देंहटाएंसादर- देवेंद्र
मेरे ब्लाग पर नई पोस्ट्स-
कार्तिक पूर्णिमा और अन्नदेवं,सृष्टि-देवं,पूजयेत संरक्षयेत
आपकी नवीन पोस्ट प्रतीक्षित है ,टिपण्णी हमारी धरोहर हैं .शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंपरंपरा की सरल छवि गांवों में अब भी झलकती है।
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