जब माता जी ने करीब छः महीने पहले यह शिकायत की कि उनकी आँखों के सामने मकडी के जाले सा दिखता है तो मैंने उन्हें नेत्र चिकित्सक को दिखाने का निर्णय लिया .बनारस में आर के नेत्रालय सबसे अच्छा नेत्र चिकित्सालय है और डॉ. आर के ओझा एक जाने माने नेत्र सर्जन हैं . उन्होंने जांच कर बताया कि इनकी आँखों में मोतियाबिंद की शुरुआत है और दायीं आँख का आपरेशन करा लिया जाना उचित होगा . बाईं आँख के लिए इंतज़ार किया जा सकता है , आज सभी को मालूम है कि आँखों का कुदरती लेंस किन्ही कारणों (बल्कि कई कारण हो सकते हैं ) से धूसर होते जाते हैं तो दिखना प्रभावित होने लगता है . अब आपरेशन तुरंत कराया जाय या इंतज़ार किया जाय इस पर जैसा कि प्रायः सभी भारतीय परिवारों में दो विचार हो जाया करते हैं यहाँ भी हुआ . इन मामलों में मैं चिकित्सक का सुझाव निर्णायक मानता हूँ . डॉ ओझा ने स्पष्ट रूप से कहा कि आपरेशन जरुरी है . माता जी थोडा घबरा रही थीं तो उन्होंने कई दलीलें रखीं -गर्मी का मौसम है ,धूल बहुत उड़ रही है ,बिना नहाये दो तीन दिन कैसे रहा जाय ...घर के कुछ सदस्य भी दन से माता जी से सहमत हो लिए ..मैं अकेला पड़ गया मगर मन में निश्चय कर लिया कि जितना जल्दी हो आपरेशन तो कराना ही है . इसी के तत्काल बाद मेरा ट्रांसफर भी हो गया और ऐसी जगहं कि वहां आधुनिक चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध नहीं है ,सोनभद्र में ज्वाईन करते ही मेरे कार्यालय -मालिके मकान ने खुद अपना और एक और मामले का ऐसा उद्धरण दिया जिसमें वहां आपरेशन करने बाद आँख की रोशनी चली गयी थी .....अब तो बनारस में आपरेशन के अलावा कोई विकल्प ही नहीं था . सोनभद्र सर सामान ले कर जाने के पहले माता जी का आपरेशन करा लेना ही था .
माता जी आपरेशन के ठीक बाद
मुझे बचपन की जब मैं मात्र पांच साल का था यानी पचास साल पहले गाँव में ही एक वृद्ध महिला के मोतियाबिंद के आपरेशन का खौफनाक दृश्य आज भी याद है . वह आपरेशन जमीन पर बैठा कर हुआ था पीढ़े पर दोनों मरीज और ग्राम्य शल्य चिकित्सक बैठे थे ,अनेस्थेसिया तो था नहीं, ऐसे ही उसके औजार वृद्धा की आंख पर चल रहे थे और वे चिल्ला रही थीं ....यह दृश्य मुझे आज भी ठीक वैसे ही याद है .गनीमत कहिये या घोर आश्चर्य वह आपरेशन सफल हुआ था और वे महीनों तक एक हरे रंग की आँख -टोपी लगाती थी .बहुत झगडालू थीं अब दिवंगत बहुरूपा दादी की आँख ठीक हो गयी तो उन लोगों को भी जिन्हें वे देख नहीं पाती थीं देखने लग गयीं तो देखते ही आदतन गरियाने भी लग गयीं थीं . लोग शिकायत भी करते "काहें भैया इनका आपरेशन करा दिए इससे भली तो वे आन्हर ही थीं " :-) मगर उस समय जिस किसी ने उनकी आँख का आपरेशन उस ग्राम्य सर्जन से कराने का निर्णय लिया था ,उनके पति और हमारे आजा ( मैं उन्हें यही कहता था ) या उनके पुत्रों ने जिनमें एक अभी भी हैं को लेकर मेरे मन में बड़ा आदर है .उन्होंने एक बड़ा रिस्क तो लिया था क्योंकि उन दिनों उस तरह की सर्जरी के बिना और कोई सुविधा उपलब्ध नहीं थी ,
आपरेशन का दूसरा दिन -काला चश्मा लग गया
आज तो फेको सर्जरी है जिसमें आँख में बस एक-दो मिमी का चीरा लगा कर खराब लेंस को काटकर बाहर खींच लिया जाता है और नया लेंस लगा दिया जाता है .कुल आपरेशन महज 15-20 मिनट का ही है . परसों रात 10 बजे माता जी का आपरेशन हो गया . और ठीक दस मिनट बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी भी मिल गयी . रात भर एक पट्टी (बैंडेज) लगा रहा सुबह वह भी हट गया और काला चश्मा अभी कुछ दिन और लगा रहेगा , मगर बस इसी पल भर के आपरेशन कराने का निर्णय लेने में कुछ महीने लग गए ..क्या करें, अकेले किसी एक आदमी को संयुक्त परिवार में अब निर्णय लेने में समय लग ही जाता है और अब कोई भी निर्णय शायद बहुमत से होते भी नहीं -कई समाजार्थिक कारण इनके पीछे होते हैं .
प्रायः हम लोगों को कहते सुनते हैं कि अमुक आपरेशन तो बहुत हल्का, छोटा सा है। जैसे आँख के मोतियाबिंद का यही आपरेशन . किन्तु मैं समझता हूँ कि किसी भी आपरेशन में रिस्क फैक्टर हमेशा मौजूद रहता है चाहे वह छोटा हो या बड़ा . आपरेशन टेबल से सकुशल वापसी किसी बड़े युद्ध से सकुशल वापसी से कम नहीं है और बड़ी राहत वाली बात है . मुझे खुद अपना एक आपरेशन याद है 2005 का जब मैंने मेजर आपरेशन से अपने गाल ब्लैडर के स्टोन को निकलवाने का निर्णय लिया था .फिजिसियन और सर्जन दोनों ही मेरे क्लास फेलो थे ,बल्कि मैंने ही इस आपरेशन के लिए उन्हें चुना था . वह आपरेशन जनरल अनीसथीसिया में हुआ था यानी पूरा बेहोश करके . आपरेशन टेबल पर लेटने के पहले तरह तरह के विचार मन में आ रहे थे . उनमें एक तो यह था कि मुझे इसलिए चिंता नहीं करनी चाहिए कि अगर कुछ अनहोनी हुयी भी तो फिर तो आपरेशन के उपरान्त मुझे उसका पता ही नहीं चलेगा और आपरेशन सफल हुआ तो चिंता करने की बात ही नहीं है . यानी दोनों ही स्थितियों में फिकर नाट . और यह बड़ी राहत वाला विचार था . आपरेशन बहुत सफल था मगर मेरे मित्र सर्जन ने बाद में बताया कि मुझसे ज्यादा तो वे तनाव में थे -मित्र के शरीर पर सर्जरी में उनका मन स्थिर नहीं था .....मैंने पूछा था क्यों ? तो उन्होंने बताया था कि आपरेशन में अगर कुछ भी हो जाता तो वे मित्रता के कारण ज्यादा आहत होते और अपयश भी कम न मिलता . ऐसे मामलों में चिकित्सक भी कहाँ पूरी तरह प्रोफ़ेसनल रह पाते हैं .आपरेशन टेबल हमेशा ही निरापद नहीं रहता . एक सर्जन के जीवन की सबसे बुरी घटना होती है डी ओ टी यानी डेथ आन आपरेशन टेबल और यह एकदम असंभव भी नहीं है . माता जी के सारे परीक्षण हो चुके थे ,वे ब्लड प्रेशर की मरीज हैं .मुझे डर भी लग रहा था मगर वे आपरेशन टेबल से विजेता की तरह लौटीं -मेरे जान में जान आयी . सूत्र वाक्य यही कि जब तक सफल न हो जाय कोई भी आपरेशन छोटा -बड़ा नहीं होता यानी सब बड़े ही होते हैं!
प्रायः हम लोगों को कहते सुनते हैं कि अमुक आपरेशन तो बहुत हल्का, छोटा सा है। जैसे आँख के मोतियाबिंद का यही आपरेशन . किन्तु मैं समझता हूँ कि किसी भी आपरेशन में रिस्क फैक्टर हमेशा मौजूद रहता है चाहे वह छोटा हो या बड़ा . आपरेशन टेबल से सकुशल वापसी किसी बड़े युद्ध से सकुशल वापसी से कम नहीं है और बड़ी राहत वाली बात है . मुझे खुद अपना एक आपरेशन याद है 2005 का जब मैंने मेजर आपरेशन से अपने गाल ब्लैडर के स्टोन को निकलवाने का निर्णय लिया था .फिजिसियन और सर्जन दोनों ही मेरे क्लास फेलो थे ,बल्कि मैंने ही इस आपरेशन के लिए उन्हें चुना था . वह आपरेशन जनरल अनीसथीसिया में हुआ था यानी पूरा बेहोश करके . आपरेशन टेबल पर लेटने के पहले तरह तरह के विचार मन में आ रहे थे . उनमें एक तो यह था कि मुझे इसलिए चिंता नहीं करनी चाहिए कि अगर कुछ अनहोनी हुयी भी तो फिर तो आपरेशन के उपरान्त मुझे उसका पता ही नहीं चलेगा और आपरेशन सफल हुआ तो चिंता करने की बात ही नहीं है . यानी दोनों ही स्थितियों में फिकर नाट . और यह बड़ी राहत वाला विचार था . आपरेशन बहुत सफल था मगर मेरे मित्र सर्जन ने बाद में बताया कि मुझसे ज्यादा तो वे तनाव में थे -मित्र के शरीर पर सर्जरी में उनका मन स्थिर नहीं था .....मैंने पूछा था क्यों ? तो उन्होंने बताया था कि आपरेशन में अगर कुछ भी हो जाता तो वे मित्रता के कारण ज्यादा आहत होते और अपयश भी कम न मिलता . ऐसे मामलों में चिकित्सक भी कहाँ पूरी तरह प्रोफ़ेसनल रह पाते हैं .आपरेशन टेबल हमेशा ही निरापद नहीं रहता . एक सर्जन के जीवन की सबसे बुरी घटना होती है डी ओ टी यानी डेथ आन आपरेशन टेबल और यह एकदम असंभव भी नहीं है . माता जी के सारे परीक्षण हो चुके थे ,वे ब्लड प्रेशर की मरीज हैं .मुझे डर भी लग रहा था मगर वे आपरेशन टेबल से विजेता की तरह लौटीं -मेरे जान में जान आयी . सूत्र वाक्य यही कि जब तक सफल न हो जाय कोई भी आपरेशन छोटा -बड़ा नहीं होता यानी सब बड़े ही होते हैं!
मैंने यह पोस्ट कुछ तो मोतियाबिंद को लेकर अपने अनुभव आपसे शेयर करने के लिए लिखी है ,.दूजे फेको विधि से मोतियाबिंद -सर्जरी की अच्छाई बताने के लिए और यह भी क़ि एलोपैथी में सर्जरी का कोई श्रेष्ठ विकल्प नहीं है .
Deewalee kee anek shubh kamnayen!
जवाब देंहटाएंफेको विधि बहुत अच्छी है। मेरे एक मित्र डाक्टर डी डी वर्मा इस विधि के मास्टर हैं। लगातार इस विधि को विकसित करने में उनका बहुत योगदान है। वे इस काम को करने के साथ साथ लगातार शोध में रहते हैं और हर वर्ष कुछ न कुछ नया प्रस्तुत करते हैं जिसे चिकित्सक समुदाय भी मान्यता देता है।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी, आभार!!
जवाब देंहटाएंमाता जी शीघ्र ठीक हो जाएँ उनकी नजर वापस लौट आये यही ईश्वर से हम प्रार्थना करते हैं |
जवाब देंहटाएंजानकारी साझा करने के लिये आभार,,,,
जवाब देंहटाएंDeewalee kee anek shubh kamnayen,,,,,
RECENT POST:..........सागर
आज चिकित्सा विज्ञान ने बहुत तरक्की की है. कल तक की कई दुरूह विधियां आज वास्तव में आश्चर्यजनक लगती हैं
जवाब देंहटाएंमाताजी को प्रणाम और स्वास्थ्यलाभ की कामना !
जवाब देंहटाएं....चलो सब निपट गया ठीक से ।
माताजी के शीघ्र स्वास्थ्यलाभ के लिये शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंईश्वर उन्हें स्वस्थ रखे ...
जवाब देंहटाएंमाँ बाप या बुजुर्गों के लिए हमारा यह दृष्टिकोण हमारे संस्कारों को बतलाता है . अमूल्य अनमोल
जवाब देंहटाएंवे शीघ्र स्वस्थ हों ..... जानकारी तो सभी के काम की है ..... आभार
जवाब देंहटाएंअच्छा किया समय से ऑपरेशन करा लिया । प्रेंको सर्जरी के बारे में बताने के लिये धउस दिशा में ।
जवाब देंहटाएंपता नही क्या हुआ, पूरा वाक्य पोस्ट नही हुआ । फ्रेंको सर्जरी के बारे में बताने के लिये धन्यवाद । हम भी चल ही रहे हैं उस दिशा में ।
जवाब देंहटाएंफेको सर्जरी को जाना ...
जवाब देंहटाएंबढती उम्र में सबके लिए उपयोगी है ही !
आपरेशन सफ़ल रहा यह अच्छी बात है। नयी आंखों की रोशनी माताजी को अच्छी लग रही होगी।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
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माता जी को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना के साथ... वैसे अब अत्याधुनिक मोतियाबिन्द सर्जरी फेको की बजाय MICS {= microincision cataract surgery (MICS) with the Stellaris phacoemulsification platform (Bausch + Lomb)} के नाम से ज्यादा जानी जाती है।
...
प्रवीण जी शुक्रिया !
हटाएंआदमी हमेशा सूई और ऑपरेशन से डरते रहे हैं. यह भी एक विडंबना है -- इमरजेंसी में ऑपरेशन तुरंत हो जाता है , प्लांड ऑपरेशन की तैयारी में महीनों लगते हैं. यह भी सही कहा की जी ऐ में ऑपरेशन करते समय टेंशन डॉक्टर को होता है , न की मरीज़ को . वह तो आराम से चैन की नींद सो रहा होता है. :)
जवाब देंहटाएंसच में. ऑपरेशन कोई भी हो, छोटा नहीं होता और कभी-कभी इसके अतिरिक्त कोई विकल्प भी नहीं होता. मुझे 2004 में बाऊ जी का हार्निया का आपरेशन याद आ गया. सारे इलाज आजमाने और बरसों बेल्ट लगाने की कवायद के बाद भी ऑपरेशन से ही लाभ हुआ था.
जवाब देंहटाएंमाता जी को हमारा प्रणाम कहियेगा.
आधुनिक चिकित्सा में इसका समुचित निदान है, सरल विधियाँ है ऑपरेशन की।
जवाब देंहटाएंसच कहा है कि कोई ऑपरेशन छोटा नहीं होता..बड़ा ही होता है.
जवाब देंहटाएंआप की माताजी के शीघ्र स्वास्थ्यलाभ के लिये शुभकामनाएँ .
माँ जी को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंशायद मुझे भी जल्दी ही ज़रूरत पड़ जाये :) अच्छी जानकारी मिली ...
जवाब देंहटाएंमोतिया बिन्द भाई साहब काला भी हो सकता है सफ़ेद भी सफ़ेद मोतिया बोले तो Cataract और काला मोतिया तो बोले Glaucoma.
जवाब देंहटाएंपहला यानी सफ़ेद मोतिया बुढापे में ही अक्सर होता है 55 -60 के पार लेकिन काला और यही ज्यादा खतरनाक है नेत्र दाब बढ़ा बे -ढब और रौशनी ला पता .काले के लिए दवाएं हैं जो नेत्र दाब को
सामान्य करती हैं लेकिन सफ़ेद तो फिर बालों की सफेदी सा अटल है .अलबत्ता जब रोशनियों के घेरे रात को सड़क पार करते नजर आएं तब समझ लो पक गया सफ़ेद मोतिया .नाम मोतिया और ला -
परवाही में बीनाई को ही ले जाता है .हाँ अब यह आउट पेशेंट प्रोसीज़र है .आपरेशन करवाओ घर जाओ .इंट्राओक्युलर लेंस भी देशी विदेशी सस्ते महंगे उपलब्ध हैं .
बधाई सही निर्णय पर .हाँ हर आपरेशन में जोखिम निहित रहता है पूर्व और बाद सर्जरी .
दिवाली शुभ हो ,मुबारक हो ,सेहत मंद रहें सभी .
आपने तो दीपावली का बड़ा सुन्दर उपहार दिया है माँ जी को . हमें भी ख़ुशी हो रही है .
जवाब देंहटाएंमाता जी को शुभकामनाओं के लिए आप सभी मित्रों का आभार -दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंमाताजी जल्दी से स्वस्थ्य होवें, शुभाकांक्षाएं ।
जवाब देंहटाएंदीपावली रौशनी का पर्व है और इस पर्व पर अपने (स्वाभाविक) ओपरेशन सम्बंधित डर को परे कर उनका ओपरेशन कराया और माता जी को रौशनी का उपहार दिया है, बधाईयाँ , शुभकामनाएं :)
सौहाद्र का है पर्व दिवाली ,
जवाब देंहटाएंमिलजुल के मनाये दिवाली ,
कोई घर रहे न रौशनी से खाली .
हैपी दिवाली हैपी दिवाली
माताजी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना के साथ ... दीपोत्सव पर्व पर हार्दिक बधाई और शुभकामनायें ....
जवाब देंहटाएंआपको व आप के परिवार में सभी को दीप-पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएं