विगत सप्ताह अचानक फरमान मिला कि मुझे राजकीय कार्य से भारत निर्वाचन आयोग को इसी १९ जुलाई को रिपोर्ट करना है और आनन फानन में वहां जाने का जो कार्यक्रम बना तो जाने की यात्रा काशी विश्वनाथ ट्रेन जिसे आई एस ओ पहचान भी मिली हुई है के ऐ सी थ्री से हुयी ....अपने फ़ुरसतिया अनूप शुक्ल जी का सुमिरन कर मैं ट्रेन में १८ जुलाई को सवार हुआ ..सुमिरन इसलिए कि वे अक्सर यह असहज करने वाला सवाल पूछते रहे हैं कि मेरी ही यात्राओं में विघ्न आपदाएं क्यों पैदा हो जाती हैं ...मेरी दिल्ली यात्राएं निरापद नहीं रही हैं -सगुन -असगुन न मानने के बावजूद भी मैं कुछ आशंकित रहता हूँ ...तथापि मैं इस बार इस मनोबल को बनाये हुए था कि कम से कम इस बार तो अनूप जी को कुछ कहने का मौका न ही दूं ..पर होनी तो कुछ और ही थी ...
जब यह ट्रेन लखनऊ ८.३० बजे पहुँची तब तक सब कुछ ठीक था .....ट्रेन छूटने ही वाली थी कि गदह पचीसी की उम्र की देहरी तक पहुँचते चार युवा धडधडाते हुए कम्पार्टमेंट में आ पहुंचे और मेरा दुर्भाग्य कि मेरे सामने की तीनों खाली सीटों पर दावा ठोका ...सबने पी रखी थी ...और हौसला बुलंद अपराधियों की भाँति बिना आजू बाजू की परवाह किये अश्लील जोक और कहकहे सुनाने लग गए -अभी रात के ९.३० ही हुए थे.मगर न कोई टी टी और न ही कोई पुलिस /गार्ड ...लोगों ने समझा कि कुछ देर में शांत हो जायेगें ..मैंने भी उनसे नागरिक शिष्टाचार की फ़रियाद की मगर मुझे अंकल अंकल कहकर उपेक्षित किया जाने लगा -उनकी बातचीत से यह जानकर कि उनमें से कोई भी कभी भी ३-४ बजे के पहले नहीं सोता घबराहट होने लगी ....मैंने एक बार कुछ डिब्बों में चहलकदमी कर टी टी को ढूढने का प्रयास किया मगर कामयाबी नहीं मिली ....अब रात भी ज्यादा हो चली थी ..थक हार कर मैंने सोने का फैसला किया ...झपकी लगी ही थी कि सामने साईड बर्थ से एक महिला की चीख सुनायी पडी ..मैं ही नहीं एक साथ कई लोग उठ गए और क्या हुआ क्या हुआ करते हुए आ जुटे ....
मैंने देखा तीन तो वहां से गायब थे ...चौथा एक सबसे ज्यादा पियक्कड़ अचानक निचली बर्थ पर लेटने जा रहा था .साईड बर्थ के दम्पत्ति यात्री आर ये सी दर्जे के थे और अब दोनों उसी पियक्कड़ पर आरोप लगा रहे थे कि उसने कुछ बदतमीजी की थी .....अभी चिल्ल पो का यही माहौल था कि उसके तीन साथी न जाने कहाँ से तुरंत आ पहुंचे और आपदा प्रबंध करने में जुट गए .....बड़े सलीके से दंपत्ति को समझाने लगे -कि उन्हें ही कहीं कुछ गलतफहमी हो गयी है -वे तो बड़े शिष्ट हैं और अभी अंकल लोगों की तुलना में बेटे / बच्चे ही तो हैं ....उनकी यह रणनीतिक शील्डिंग इतनी कारगर रही कि बाकी लोग कुछ देर में अपने अपने बर्थ पर वापस चले गए ..हाँ उस तगड़े पियक्कड़ को सबने उठाकर अपर बर्थ पर डाल दिया ....अब वे थोडा काशस हो गए थे मगर उनका चपर चपर बतियाना जारी ही था ....
मुझे फिर झपकी आयी और रात करीब ३ बजे आदतन मुझे प्यास सी लगी तो मैंने अपने ग्लास होल्डर के बिसलेरी बोतल जिसे बस स्टेशन पर लेकर मैंने रख लिया था खोला भी नहीं था ..पूरी तरह खत्म हो गयी थी ....बस बोतल ही रह गयी थी ....अब मेरी हालत का अनुमान आप कर सकते हैं -उतनी रात पानी की दो घूँट भी मिलनी मुश्किल थी ..सारा उनके काकटेल में ही निपट गया था ...,..यह सब मैं फेसबुक पर डालता रहा ..सिद्धार्थ त्रिपाठी जी ने सुबह जाकर यह देखा और कहीं टिपियाया भी ! वे गुंडे गाजियाबाद में उतर गए तब मेरे और दीगर यात्रियों को जाकर राहत मिली ....
क्या अब थ्री ऐ सी पियक्कड़ो का ऐशगाह बन चुका है ...क्या रेल प्रशासन इसके लिए मुस्तैद नहीं है ..क्या ऐसे हौसला बुलंद अपराधी मानसिकता के लोगों की धरपकड़ और यात्रा से बेदखल करनी की कोई रणनीति रेलवे सुरक्षा अधिकारियों के पास है ..???? मेरे बी १ कोच में ४९ ,५०, ५१ बर्थ के असभ्य ,बदतमीज यात्रियों ने जो क़यामत ढायी वह बहुत मुमकिन है रोज ही किसी न किसी ट्रेन के ऐ सी कक्ष में दुहराई जा रही हो -यह दृष्टांत - भोगा हुआ घटनाक्रम सम्बन्धित रेल अधिकारियों के ध्यानाकर्षण लिए भी है -क्या वे सबक लेगें ?
दिल्ली यात्रा जारी ......
मेरी याददाश्त में, शायद ही किसी मित्र ने, रेल यात्राओं के सुरक्षित होने की बात कही हो ! अधिकतर का अनुभव आप जैसा ही था ! दुस्वप्न जैसा ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !!
डॉ साहिब....... कुछ लोग लिख देते हैं और कुछ दुवास्व्पन समझ भुला देते हैं.....
जवाब देंहटाएंबाकि जब देश ही राम भरोसे चल रहा हो - तो ट्रेन का क्या है......
दादागिरी जिंदाबाद.
सक्सेना जी, श्याद आपने डॉ साहिब को अगली यात्रा के लिए शुभकामनाएं दी हैं.........
पर वो भी पके पकाए हैं यात्रा शुरू होने से पहले जरूर 'फुरसतिया जी' को याद करेंगे.
ओह ! यह तो वही हाल हुआ जो डेल्ही बेल्ली देखते समय हमें महसूस हो रहा था . वहां भी कुछ युवक फिल्म के डायलोग दोहराते हुए बतियाते जा रहे थे जोर जोर से .
जवाब देंहटाएंलेकिन ट्रेन में तो हद ही हो गई भाई . हर डिब्बे में एक सिपाही का होना आवश्यक हैं .
उम्मीद है की दिल्ली पहुँचने के बाद आप इस दुस्वपन को भूल गए होंगे .
bataaiye...na koi GRP na TTE....kya hoga!!
जवाब देंहटाएंऐसा नसीब तो अपना ही है। जब भी मैं जनरल का टिकट लेकर स्लीपर में चढता हूं तो चढते ही टीटी आ धमकता है। कभी पचास तो कभी सौ लेकर ही छोडता है। आज भी तीन सौ की पर्ची कटवाई है। लेकिन जब मैं स्लीपर का टिकट लेकर सफर करता हूं तो कभी नहीं दिखता। यही भारतीय रेल है।
जवाब देंहटाएंइन असभ्य युवासमूह की सुताई होनी थी, वह भी जमकर।
जवाब देंहटाएंमुसाफिरत की शुरुवात में आपने 'फ़ुरसतिया' तो सही उचारा था ! प्रिय दीपक बाबा को 'फुरसतिया' उचारने की सजा मिलती तो बात समझ में आती :)
जवाब देंहटाएंकहीं वो चारों 'हिल्लम-डुल्लम' उस पुरातन मानसिकता के शिकार तो नहीं थे जिसके अनुसार सहयात्री की किताब, अखबार, पानी पर सहज अधिकार माना जाता था / है :)
जवाब देंहटाएंअब तो जो होना था हो चुका, लेकिन कल्पना कीजिए कि कम्बख्त किस अंदाज में आपकी पानी की बोतल खाली कर रहे होंगे -
हां, हां...और पानी डाल यार....वैसे भी अंकल तो सो रहा है.....सोते अंकल को कौन सा पानी में स्विम करना है। तू बोतल ही खाली कर। बाद में अंकल को सॉरी बोल देंगे....और सॉरी भी क्यूं....पानी पिलाना तो पुण्य का काम है.....ले भी लिया तो कौन सा कतल कर दिया.....औए तू बिंदास बोतल खाली कर ।
ओए....अंकल करवट ले रहा है.....वो देख सोते में कुछ बड़बड़ा भी रहा है.....हां यार ....ये अंकल तो बोले जा रिया है.....यात्रा... ब्लॉगर... मीट....ओए...ये तो अपनी कैटेगरी का है यार... मीट वीट की बातें करे जा रिया है :)
अगली पोस्ट का इंतजार है।
Uf! Baap re baap!
जवाब देंहटाएंरेल्वे पुलिस को बुलाना था, और अगर वह भी कोई कार्यवाही नहीं करती तो, अगले बड़े स्टेशन पर चैन खेंचकर पुलिस में रपट दर्ज करवानी चाहिये थी।
जवाब देंहटाएंखैर पता नहीं पुलिस कब अपना असली काम करेगी बजाय घूस खाने के ।
आगे की कड़ियों का इंतजार है, उम्मीद है कि आगे की यात्रा में इससे बुरा अनुभव तो नहीं हुआ होगा।
यह तो बड़ा ही बुरा अनुभव रहा!
जवाब देंहटाएंबहुत बुरा हुआ...
जवाब देंहटाएंयह तो अच्छा हुआ कि उस बर्थ पर आप थे। कोई अकेली छात्रा या रोजगार के सिलसिले मे दिल्ली जा रही नवयुवती नहीं ।
सुरक्षा का इतंजाम तो होना ही चाहिए।
पंचम की टीप भी इस्तालिश है......
जवाब देंहटाएंऔर अली सर
काहे सजा दिलवाने पर उतारूं है...... बन्दा तो पहले ही राम नाम से जिंदगी काट रहा है :)
@डॉ दराल,
जवाब देंहटाएंसच कहते हैं वह डेल्ही बेली वाली ही टीम थी ..असभ्य असंस्कृत लोग !
विवेक रस्तोगी की बात मुझे भी ठीक लग रही है। वैसे रेलवे/पुलिस चाहे तो आरक्षण रिकॉर्ड से अभी भी उन लोगों को खोज सकती है।
जवाब देंहटाएंजिन घरों में, मर्दों को पीने की आज़ादी नहीं होती वो ट्रेन, शादी, सगाई, पार्टी बगैहरा में इसी तरह पीने के मौक़े गांठ बांधते घूमते हैं... दूसरे जाएं भाड़ में
जवाब देंहटाएंगदह पचीसी की उम्र की देहरी पर खड़े अपराधी!!
जवाब देंहटाएंआपकी अभिव्यक्ति से हमने भी प्रताड़ना महसुस की!!!
इन अपराधियों को सजा मिलनी ही चाहिए। रेलवे को भी इस सुरक्षा चुक का सबक मिलना चाहिए।
अगले आलेख की प्रतिक्षा!!
अरविन्द जी ये वही लोग हैं जो पहले स्लीपर में चलते थे .ए सी थ्री वाले अब टू में आ गए हैं .वहां अपेक्षा कृत सुरक्षा है .हमने यही नजारा दिल्ली -बेंगलोर ए सी थ्री देखा था .ये लोग बाराती थे .बाद में गार्ड कंडक्टर ने इनसे पैसे उघाये और चलता बना .अब हाल ये सैयां भये कोतवाल फिर दर काहे का .रिश्वत देकर ये आश्वश्त और निडर हो गये थे .
जवाब देंहटाएंआप सोचिये जब ऐसी स्थिति महिलाओं के साथ जो अकेले सफर कर रही हों ...होती है तो क्या गुज़रती होगी ...
जवाब देंहटाएंआपने अच्छा किया कि फ़ुरसतिया स्मरण करके यात्रा शुरू की। इससे और आगे बवाल नहीं हुआ।
जवाब देंहटाएंबाकी ये तो जवानी है। पूरा देश हचक के जवान हो रहा है। जहां मौका मिलता है जवानी फ़ूट पड़ती है। सब जगह यही दिखाया जा रहा है। :)
अजब हाल है...फुरसतिया जी को याद करके चले तो यह सब तो होना ही था...कम ही समझो...
जवाब देंहटाएंभाई साहब गुड़ जहां होगा मख्खियाँ वहां ज़रूर आएँगी .जितनी सुन्दर आपकी कलम उससे कहीं सुन्दर आप निकले .मिले आपसे तो आगे के लेखन को एक दिशा मिली .यकीन मानिए बौद्धिक आकर्षण बड़ा प्रबल होता है और फिर आप -देह और देही,रचना और रचना -कार दोनों एक से बढ़ कर एक निकले .आप उस बैठकी के ,चिठ्ठाड़ी मिलन के सूत्रधार और कथाकार सभी तो थे एक साथ .ऊपर से सतीश सक्सेना इतना मीठे की मिलने के बाद कई दिनों तक शक्कर खाने की ज़रुरत न पड़े .और दाराल साहब तारीफ़ सिंह जी -उनसे मिलना एक पुनर -मिलन था ,दे -जावू था ,कहीं नहीं लगा हा पहली बार मिलें हैं .इति आप बे -दिल दिल से अपने घरोंदे में सुरक्षित लौट गए ,संतोष हुआ आजकल घर से निकलना और सलामती के साथ लौट आना भी एक इत्तेफाक ही तो है .
जवाब देंहटाएंगौतम जी ,
जवाब देंहटाएंअगर स्पष्टवादिता और मुंहदेखी बात न करना विनम्रता का दामन छोड़ना है तो है मुझे यह आरोप जो कोई नया नहीं है बार बार स्वीकार है ,एक ख़ास तरह की मानसिकता वाले यह आरोपण मेरे ऊपर करते रहते हैं -ताज्जुव है कई दोस्तों की शहादत के बाद भी आपकी खून सर्द है जुबान लकवा मार गयी है -एक सीमा प्रहरी यह बोल रहा है! और अलगाववादियों की खुलकर तरफदारी कर रहा है -यहाँ कोई क्षद्म देशभक्ति नहीं बल्कि आप मुट्ठी भर लोग जो कर रहे हैं वह क्षद्म निरपेक्षता से भी बढ़ कर देश की अखंडता और संप्रुभता के साथ कम्प्रोमायिज है ....आश्चर्य है देश के प्रहरी अब ऐसा सोचने लगे हैं जिनके पीछे करोड़ों लोगों के अरमान और आकांक्षायें गिरवी रखी होती हैं ..निश्चय ही ऐसे विचार आपके अपने निजी हैं भारतीय सेना की नुमायन्दगी नहीं करते होंगें ...
हमारा आक्रोश कोई व्यर्थ का आक्रोश नहीं है मान्यवर -यह क्या रंग खाएगा यह आपको कश्मीर में रहते ही पता चल जाएगा ..डरिये मत मेजर साहब .....हम आप जैसो की कमी भी पूरी करेगें ....आज नहीं तो तिरंगा वहां फहरेगा ही ....
और हम वहां शापिंग करने आयेगें तो अब आप जैसे दुभाषियों के बुलावे पर तो नहीं ही आयेंगे ---
हमें अब अपने बीच के ही परायों की पहचान करना आ गया है ....
jab aap ne yae sab apnae blog par likhaa thaa to mujhe lagaa thaa ki samay padnae par aap apni bahaduri sae kuchh logo ko sab to seekha hi daege par
afsos aap to us samay chhaddar taan kar so gayae
kyaa yae chillam chilli bas blog tak hi simit haen
kyaa aap ne station par utarnae kae baad TT kae khilaaf aaptti darj karaaii ???
dusro ko kehna jitna aasan hotaa haen blog par ki yae mukdmaa kar daegae wo kar dagae , yahaan daekh laegae wahaa daelaegae
utna hi aasan hotaa haen chaadar odh kar sonaa
koi aur hotaa to aap kehtey bisleri par bhi ek tanch to aap kaa ban hi jaataa !!!!!!!!!!!!!!!!!!!
likhtey rahiyae ham jo pehlae likhaa haen wo padhtey hi nahii yaad bhi rakhtey haen
आपने इनके खिलाफ कहीं शिकायत दर्ज की? कोई ऍफ़ आई आर किया? अगर नहीं किया तो मैं कहूँगा कि आपको करना चाहिए था. मैं तो कहूँगा कि आप अब भी ऍफ़ आई आर कीजिये. पुलिस को तहकीकात करनी पड़ेगी.
जवाब देंहटाएंया फिर पता लगाइए कि इन युवाओं का ब्लॉग है क्या? एक बार पता चल जाए तो फिर कमेन्ट करके हड़का दीजिये.
अब यात्राएँ निरापद नहीं रहीं. रेलगाड़ी का सफ़र तो कष्टदायक हो ही चला है.
जवाब देंहटाएंसुकुल का अमरन काहे किया? अब भुगतिये!
जवाब देंहटाएं@@रचना जी ,
जवाब देंहटाएंदोनों पृथक संदर्भ हैं ...मैं कोई स्व-औचित्य साबित करना नहीं चाहता ....यह स्वयं स्पष्ट है -
मनुष्य की बहादुरी मसल पावर की नहीं उसके भेजे की होनी चाहिए ...दो वरिष्ठ रेल सेवा के अधिकारी यह रिपोर्ट पढ़ चुके ..
यह उनकी जिम्मेदारी ज्यादा है ....मेरा यात्रा -लक्ष्य दूसरा और घटना की तुलना में बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण था ..विजन और कांटेक्स्ट महत्वपूर्ण होते हैं !
jaan bachi to lakh upaye.......lekin
जवाब देंहटाएंye vich comment me asandarvhit katha
kahan se aa gayee.........
pranam.
जब देश के महान नेता महान अफसर पैसा वसूली में लगे हों उस देश के युवा अपसंस्कृति के शिकार हो ही जायेंगे |कहीं कुछ मर्यादा नहीं बची है |पढ़कर दुःख पंहुचा |
जवाब देंहटाएंभैय्ये... हडबडी के समय फ़ुरसतिया का स्मरण... यह तो होना ही था :)
जवाब देंहटाएंकम से कम चेन खींच कर गाड़ी तो रुकवा सकते थे॥
जवाब देंहटाएंरेल यात्रा में सोना अब सपना हो चला है। कोई जमाना था जब हम पैसेंजर के जनरल डब्बे में चढ़ते थे। (उस में दूसरा डब्बा होता ही नहीं था) और ऊपर की सामान रखने की खाली सीट कबाड़ कर निद्रा में डूब जाते थे। आँख तभी खुलती थी जब हम अपने गंतव्य पर पहुँच जाते थे। कभी गंतव्य से आगे भी नहीं पहुँचे।
जवाब देंहटाएंआप अब की बार से ज्ञानदत्त जी का नाम ले कर यात्रा आरंभ किया कीजिए।
फिल्ड वर्क के लिए बनारस से देहरादून के रूट में हमें भी ऐसे यात्रिओं के सान्निध्य का अनुभव हुआ है. थर्ड एसी भी इन्होने स्लीपर ही बना दिया है. ऐसे कुछ बिगड़ैल लाडले और कई बार परीक्षाओं के वक्त रेल पास पर शाही यात्रा करने वाले भी यात्रिओं के लिए समस्या ही साबित हुए हैं. यूपी-बिहार का रूट यात्रियों के लिए दुह्स्वप्न से कम नहीं. फिर भी अब भी आपको रेलवे की उच्चाधिकारियों को पत्र लिखना चाहिए. सुना है अब भी थोड़ी गुंजाईश है इस विभाग में.
जवाब देंहटाएंआये दिन इस प्रकार की घटनाएं सुर्खियाँ बनती है| आज के युवाओं की यही पहचान हो गयी है | आपको भी इसका सामना करना पड़ा | अफ़सोसजनक है |
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