एक बात पहले ही साफ कर दूँ इस पोस्ट को कृपा कर आत्मश्लाघा या प्रचार के रूप में बिल्कुल न लिया जाय -बल्कि उन बातों पर गौर किया जाय जो यहाँ उठायी जा रही हैं .मनुष्य में अपनी जाति रक्षा की भावना कूट कूट कर भरी हुयी है तथापि यह आश्चर्यजनक है कि इसका प्रगटीकरण दुर्लभ सा हो गया है .जिस समाज से हम पल बढ़ कर आगे आते हैं उसे क्या कुछ वापस भी कर पाते हैं -उपकार ,प्रत्युपकार मनुष्य की एक बड़ी विशिष्टता है ! एक और श्रेणी है जो बिना प्रत्युपकार की इच्छा के भी लोगों की सेवा करती है -गीता में ऐसे लोगों को सुहृद शब्द दिया गया है यानी जो प्रत्युपकार की बिना आशा के मानवता का उपकार करता रहे वह सुहृत /सुहृद है ! अजितवडनेकर जी इस शब्द पर अधिक प्रकाश डाल सकेंगें ! अस्तु !
हममें में से तमाम लोग अति क्षुद्रता के स्तर तक उतर कर जीवन भर केवल अपने और बाल बच्चों की क्षुधापूर्ति में रह जाते हैं तरह तरह के हथकंडे अख्तियार करते हैं ,भ्रष्ट आचरण में लिप्त रहते हैं और यह नही सोचते कि उनका एक और दायित्व है कुछ समाज को देने का भी -समाज सेवा का भी ! वैसे समाज सेवियों के नाम पर सफेदपोशों और दलालों की एक बड़ी फौज हमें दिख जाती है और उनके निमित्त ही इन दिनों एक बड़े अश्वमेध की तैयारी भी जोरो पर है ! मैं उनकी बात नही कर रहा जो समाज सेवा के नाम पर मेवे खा रहे हैं -मैं सीधे आपकी बात कर रहा हूँ जो समाज सेवा के लिए ईमानदार जज्बा तो रखते हैं पर अक्सर यह नही सोच पाते कि शुरुआत कैसे करें , कहाँ से करें ! यह असमंजस सहज ही है पर इससे उबरने का एक आसान सा रास्ता अंगरेजी की एक उक्ति सुझाती है -चैरिटी बिगिन्स एट होम ! यानी हर अच्छे काम की शुरुआत अपने घर से ही क्यों नही ?
चिकित्सक परिचय -डॉ वर्मा बाएँ से तीसरे
और मैंने ,मेरे परिवार ने एक ऐसी ही विनम्र , टिट्टिभ प्रयास अभी कुछ दिनों पहले ही किया है .अवसर था मेरे पितामह पंडित उदरेश मिश्र जी के पुण्य दिवस पर एक निशुल्क चिकित्सा शिविर के आयोजन से जिसमें मेरे जौनपुर स्थित पैत्रिक गाँव तेलीतारा और इर्द गिर्द के गावों के लगभग ३०० रोगियों ने निदान और चिकित्सा ,मुफ्त में औषधियों के वितरण का लाभ उठाया ! चिकित्सा शिविर ही क्यों ? इसके लिए आपको मेरे पितामह के बारे में थोड़ा जानना होगा !
दवाओं की जांच परख
".........मझोले -साँवले कद के पंडित उदरेश मिश्र पित्रिश्री की भांति पूर्णतः भारतीय वेश धारक तो नही थे ,पर पाशचात्यता की आस्थाहीनता एवं आयुर्वेदिक भैषज्य की शक्तिमता को वे भी सकारते थे .वे एक बडे घोडे पर दवा के साथ चलते थे .देखते ही लोग चरण स्पर्श के लिए टूट पड़ते थे ...........उन दिनों नाडी पकड़ते ही शुल्क देयता की प्रथा नही थी -सामान्य औषधियां तो वे बिना किसी प्रतिदान की आशा के ही वितरित करते जाते थे .तब देशी औषधियां धनी लोगों के व्यय पर बनती थी और दीन जनों और साधन हीनों में वितरित होती थी ......अपने क्षेत्र के प्रख्यात वैद्य उदरेश मिश्र का ९० वर्ष की अवस्था में ३ मार्च १९९३ को निधन हो गया ..........." यह शब्द चित्र हैं पूर्वांचल के प्रख्यात कवि साहित्य वाचस्पति श्रीपाल सिंह क्षेम के जो राजेन्द्र स्मृति -डॉ राजेन्द्र प्रसाद मिश्र स्मृति ग्रन्थ में संग्रहीत हैं !
महिलायें अपनी पारी की बाट जोहती
तो यह कार्यक्रम मेरे बाबा जी की पुण्य स्मृति में आयोजित हुआ .हम लोगों ने इसके लिए पूरे साल भर पैसे बचाए ! कोई ज्यादा नही कोई १५००० रूपये ! योगदान किया -मेरे अनुज डॉ . मनोज मिश्र ,बेटे कौस्तुभ ,बेटी प्रियेषा ने अपने जेब खर्च में कटौती करके ,पत्नी संध्या ने मेरी भावना समझ कर अतीव उदारता दिखा कर मासिक बजट से -सभी ने कुछ न कुछ बचाया और योगदान किया ! पर मेरे कभी रूममेट रहे और कालांतर में के जी एम् सी लखनऊ से एम् डी करने वाले ह्रदय रोग विशेषग्य ,मेरे परम सनेही डॉ राम आशीष वर्मा और उनके चिकित्सीय दल के योगदानके बिना यह सम्भव नही था जिन्होंने मेरे अनुरोध पर इस "नेक" काम के लिए अपनी पूरे दिन की प्रैक्टिस तो छोडी ही दवा कम्पनियों से हजारों रूपये की दवाएं अनुदान स्वरुप दिलवायीं ! जो रोगियों में मुफ्त वितरित हुईं -देखिये आपका कोई अच्छा संकल्प किस तरह लोगों की अहैतुक सहायता से फलीभूत हो उठता है -आज भी अच्छे लोगों की कमी कहाँ है ?
आप भी समाज सेवा की कोई भी छोटी सी शरुआत करें तों ......... मगर बिल्कुल निश्वार्थ .....किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ की भावना से अलग होकर ही ....
अब जरा इन आंकडों को भी देख लें जिन्हें मेरी बिटिया ने तैयार किया है -
शिविर में ५७ प्रतिशत रोगी गठिया और वात रोग से पीड़ित थे ! ब्लड प्रेशर ह्रदय रोग के १७ प्रतिशत ,श्वास रोग फेफडे के १३ प्रतिशत और शेष १३ अन्य रोगों से ग्रसित थे ! महिलाओं की लगभग आधी संख्या थी !
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
-
Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
सत्य वचन महाराज,चैरिटी बिगिन्स एट होम।आपको और शिविर सम्पन्न कराने वाली टीम को बहुत-बहुत बधाई।ऐसे शिविरो का ग्रामीण अंचलो मे आयोजन असके महत्व को कई गुना बढा देता है।एक बार और बधाई और आपको सच्ची सेवा करने का मौका मिलता रहे।इन्ही शुभकामनाओं के साथ।
जवाब देंहटाएंचैरिटी बिगिन्स एट होम, ये बात आपने बिलकुल सही कही, आपने जो शिविर आयोजित किया वो एक मिसाल है अपने आप मे....आपको और शिविर सम्पन्न कराने वाली टीम को बहुत-बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंRegards
बहुत अच्छा लगा ....आप भी समाज सेवा की कोई भी छोटी सी शरुआत करें तों ......... मगर बिल्कुल निश्वार्थ .....किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ की भावना से अलग होकर ही ....
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही ... आवश्यक नहीं कि हम बडा काम ही करें ... छोटे छोटे स्तर पर भी अपने सामर्थ्यानुसार किया जा सकता है ... बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं।
इस प्रकार के कर्म की अपेक्षा और अपने से नेकनीयत चाह दोनो होते हैं। यदा कदा प्रारम्भ भी करते हैं, पर स्ट्रक्चर्ड तरीके से कुछ हो नहीं पाता।
जवाब देंहटाएंआपने इस पोस्ट के माध्यम से याद दिलाया। बहुत धन्यवाद।
डॉक्टसाब, इसमें आत्मश्लाघा या आत्मप्रचार जैसी तो कोई बात नहीं...यह बहुत अच्छी पहल है...ऐसा बहुत कुछ जो बताया जाना चाहिए, संभवतः इसी वजह से अनजाना रह जाता है क्योंकि वही हिचक बाधा बनती है जिसके उल्लेख से आपने पोस्ट शुरू की है।
जवाब देंहटाएंबड़ी बात यह भी है कि आपने अपने विचार से सबको राजी किया। नेक काम में सबको हाथ बंटाना चाहिए...बुजुर्गों ने सच कहा है, नेक काम ही याद आते हैं, नेकी ही साथ रहती है।
पितामह के पुण्यस्मरण के साथ आपके परिवार को शुभकामनाएं
बहुत ही सरहनीय अवं अनुकरणीय!
जवाब देंहटाएंहम भी समय-समय पर कुछ ऐसा करते रहते हैं, बस ऐसे कामों में यही ध्यान रखना पड़ता है कि मदद ज़रुरतमंदों को ही पहुँचे, मोटों को हज़म न हो जाए। इस कारण से बहुत सावधान बरतनी पड़ते है और लोग भी ...
हम तो वैसे भी चैरिटी बिगिन्स एट होम में ही बिलिव करते है.. पर क्या किया और किया भी या नही इन सब बातो पर लिखना मुझे ठीक नही लगता.. किंतु आपका प्रायोजन बिल्कुल उचित है.. बहुत अच्छा लगा जानकार.. शायद सभी लोग इस से प्रेरणा ले..
जवाब देंहटाएंसुहृद भाव का मन में आ जाना ही शुभ है, और यदि वह व्यवहार में उतरे तो शुभातिशुभ। इस शिविर के लिये आपको बधाइ और धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंये तो बहुत ही अच्छी बात है ।
जवाब देंहटाएंआपको और आपकी टीम को बहुत-बहुत बधाई ।
वास्तव में अच्छे कार्य को सहयोग और समर्थन मिलता ही है. आपको और आपके सभी सहयोगियों को बधाई.
जवाब देंहटाएंअच्चा कार्य किया।
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रयास. वृद्धों की सृजन शीलता का दोहन अभी अपना स्वरुप ले रहा है. आभार.
जवाब देंहटाएंसाधुवाद आपका,आपके परिवार तथा सहयोगियों का और आपके पूज्य पितामह का....निश्चित ही यह अनुकरणीय है...बहुत अच्छा किया आपने जो इस महत तथ्य को प्रकाशित कर दिया..इससे निश्चित ही समाजसेवा का पुनीत भाव रखने वालों को मार्गदर्शन मिलेगा...
जवाब देंहटाएंआपने सचमुच कमाल कर दिया...धन मन और तन से निः स्वार्थ सेवा. सबको साथ लेकर चलने में तो आप एक मिसाल कायम करते हैं. आप वाकई में एक प्रेरणास्रोत हैं. आपके पितामह के बारे में जानकार भी अच्छा लगा. ऐसे पोस्ट तो अवश्य लिखने चाहिए, और उनका प्रचार भी होना चाहिए. बहुत ही सीमित लोग होंगे चिट्ठाजगत में जिन्होंने कभी ऐसा कोई काम किया हो!! सच मानिये, जिस दिन मेरे पास ऐसी कोई बात होगी बताने को, तो मैं तो कम-से-कम दस चिट्ठों पर लिखूंगी -- हर भाषा में. हर वक्त बुराई के बारे में पढ़ते हैं, अच्छाई के बारे में भी तो पढने को मिलना चाहिए. मैंने तो लिंक डाल दिया है अपने ब्लॉग पर.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कोशिश है ..किसी तरह भी इस तरह से मदद की जा सके तो बहुत अच्छा है ..
जवाब देंहटाएंयह अनुकरणीय है...बहुत-बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंजो भी शिविर आपने आयोजित किये वो बहुत नेक काम है ....काबिले तारीफ़
जवाब देंहटाएंआपको और शिविर टीम को बहुत-बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छी शुरुआत है पर इससे लगातार जुडने की आवश्यकता है। वर्ष में एक बार किसी की पुण्यतिथि पर एक शिविर से लाभ नहीं न होगा। आशा है इस कार्य की निरंतरता बनाए रखी जाएगी। सार्थक प्रयास के लिए साधुवाद।
जवाब देंहटाएंयह तो हमारी परंपरा है। हमें सभी को चैरिटी के लिए अवश्य ही कुछ न कुछ योगदान करते रहना चाहिए। आप का प्रयास सराहनीय है। संभव हो तो इसे नियमित वार्षिक आयोजन बनाइए। मेरे पिता जी अध्यापक थे लेकिन साथ ही आयु्र्वेदाचार्य भी। सारे जीवन अपने सामर्थ्य के अनुसार निशुल्क चिकित्सा और औषध वितरण करते रहे। उन्हें लोग वैदजी ही कहते थे।
जवाब देंहटाएं@ सी एम् प्रसाद और दिनेश जी,
जवाब देंहटाएंजी हाँ हमारी फ़िक्र भी यही है कि इनकी निरंतरता बने रहे !
आप सभी ने ऐसे काम को उत्साह से लिया है और प्रशंसा की है .यद्यपि वह भाव अभिलषित नहीं था पर यह आपकी ही अच्छाई के प्रति मुझे गहरे आश्वस्त करता है !
स्नेह बनाएं रखें !
मिश्रा जी, आपने एक मिसाल सबके सामने रखी है, और इसी तरह से समाज मे किसी शुभकार्य की शुरुआत करने का जज्बा पैदा होता है. ईश्वर आपको इस कार्य को निरंतरता से करते रहने का संबल दे और हम लोग भी अपने स्तर से ऐसे कार्य करने के प्रति अग्रसर हों . बहुत शुभकामनाएं आपको.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत ही अच्छा लगा, मंदिर मस्जिद जाने से यह काम करना अ़च्छा है,
जवाब देंहटाएंआप को ओर आप की सारी टीम को हमारी तरफ़ से बहुत बहुत बधाई
प्रेरणादायक लेख.समाज सेवा ऐसे भी होती थी..और ऐसे भी हुई..और कैसे की जा सकती है के अनुकरणीय उदाहरण मिले.आप के पिता जी के बारे में क्षेम जी के विचार पढने को मिले.अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंआप का शिविर सभी की बराबर भागीदारी के करान सफल रहा.बधाई!
जो आंकडे प्रस्तुत किये गए उन में गठिया रोग का प्रतिशत अधिक है.शायद बढती उम्र के हार्मोनो के प्रभाव के अतिरिक्त इस का सीधा कारण कुपोषण /गलत खान पान की आदतें हो?या फिर शारीरिक व्यायाम का अभाव.
आप ने एक नया article लिखने का विषय दे दिया.धन्यवाद.
प्रेरणादायक प्रसँग बतलाने के लिये आभार
जवाब देंहटाएं- बहुत अच्छा लगा ये पढकर
- लावण्या
साधुवाद!!!
जवाब देंहटाएंऐसे सार्थक प्रयास जारी रखें.
बहुत बहुत शुभकामनाऐं पूरे मिश्र परिवार को.
प्रेरक कार्य के लिये बधाई!
जवाब देंहटाएं@अल्पना जी ,
जवाब देंहटाएंस्वर्गीय उदरेश मिश्र जी मेरे पिता नहीं पितामह रहे !
आपके नए आलेख का विचार मौलिक है ,लेख प्रतीक्षित है !
अरविन्द
अरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंइस पहल के बारे में जानकार बहुत प्रसन्नता हुई. सच है यदि मन में इच्छा हो तो बहुत से अच्छे काम किये जा सकते हैं मगर जैसा कि आपने कहा चैरिटी बिगिन्स एट होम. अपने पूर्वजों को याद करने का और उस याद से अच्छा महसूस करने का यह बहुत ही जनोपयोगी तरीका निकाला आप लोगों ने.
बहुत साधुवाद!
आपने जो कार्य किया निश्चित रूप से अच्छा किया. अपने प्रियजनों की पुण्यतिथि पर कई लोग शुभ कर्म करते हैं चाहे वह गरीबों को भोजन कराना क्यों न हो. वैसे कोई भी गृहस्थ जो समाज को कुछ देने की चाहत रखता है, ईमानदारी के साधनों से धनोपार्जन करते हुए अपने परिवार का भरण पोषण करे और अपनी संतान कोभी ऐसे ही संस्कार देने में समर्थ हो जाए तो यह बहुत बड़ी समाज सेवा हो जायेगी.
जवाब देंहटाएंअत्यंत सराहनीय और प्रेरणादायक कार्य रहा ये तो !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा कार्य. अगर इसी तरह के कार्य सक्षम लोग करने लगें तो जोंक की तरह व्याप्त पैसे के लिए बने एन.जी.ओ अपने आप ख़त्म हो जायेंगे और समाज सुधार के लिए किसी नेता की आवश्यकता नहीं होगी.
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रेरणाप्रद कार्य है।
जवाब देंहटाएंवास्तव में हम सब को इस तरह के कार्यों से जुडना चाहिए।