शनिवार, 11 सितंबर 2010

ये क्या हुआ ? कब हुआ ?? जब हुआ तब हुआ ?? कुछ न पूछो!

आज सतीश पंचम ने टिप्पणियों का आप्शन बंद  कर दिया .बीते दिनों एक धुंआधार  ब्लॉगर मोहतरमा ने टिप्पणी के दरवाजे धडाम से बंद कर लिए -मनुहार करने वालों की कतार में मैं भी था ....बहरहाल वे मान  गयीं ..जैसे मानने के लिए  ही टिप्पणी बक्सा बंद कर रखा था -प्रत्यक्ष मान मनौअल और अप्रत्यक्ष किरिया कसम जो भी हुआ हो जैसे भड़ाक से दरवाजे बंद कर दिए थे वैसे ही कपाटों को अनावृत कर दिया -ब्लॉग कालिदासों के चीत्कार -अनावृतम कपाटम द्वारं देहि पर आखिर किसी पाषाण हृदया का ही दिल न पसीजता ....फिर ये घटनाएं बीच बीच में दुहराई जाने लगीं जैसे लोग बाग़ अपने फैन बिरादरी की टोह ले रहे हों कि वह कितनी मजबूत है ,मौका बेमौका काम भी आयेगी या नहीं ..

इसी बीच एक दिन ज्ञानदत्त जी ने टिप्पणी बाक्स पर ताला लटका दिया .... -मैंने उन्हें लिखा ,यह भी खूब रही जबरा मारे और रोवे न दे ....बहरहाल उन्होंने भी टिप्पणी आप्शन बहाल कर दिया -पिछले दिनों अनुज गिरिजेश जी ने भी ऐसी ही एक घुडकी दे डाली कि टिप्पणी मत करियेगा टिप्पणीकारों ! और मजे की बात कि खुला टिप्पणी बक्सा ललचा  ललचा कर कह रहा था टिप्पणी करने को -वहां हम भी टीप आये ...हम तो ई बड्कों बडको की बात कर रहे हैं -इस बीच बिचारे कितने नए ब्लॉगर आये और टिप्पणी रूपी  प्रोत्साहन के अभाव में दम तोड़ गए -कोई मर्सिया भी नहीं हुआ और यहाँ टिप्पणी दान न लेने का आह्वान हो रहा है ...

कानून जानने पढने वाले एक जुमला अक्सर उछालते रहते हैं ....अल्टेरियर मोटिव का ..मतलब जो बात प्रत्यक्ष  कही जा रही है या दिख रही है उसका हेतु  कुछ और है -उन मोहतरमा ,ज्ञान जी या अब मेरे अभिन्न मित्र सतीश जी वह बात नहीं बोल रहे थे  /हैं जो असली बात थी /है बल्कि उसकी जगह लेप लपेट कर जाहिराना तौर पर कोई और बात सामने लाये थे /हैं . कम से कम इसी बहाने अपनी वक्तृता क्षमता का भी आकलन हो जाता है .... ज्ञान जी अभी भी स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं उनकी बात समझी जा सकती हैं मगर इन युवाओं को क्या हो गया है -वह कौन सी बात है जो इन्हें बर्र की डंक की तरह बेंध गयी है या टिप्पणियों से इनका मोहभंग कर रही है ? कारणों को तलाशा जांना  चाहिए ..

मुझे भी इन दिनों कुछ ऐसा लगा बल्कि आज ही ..कि लोग या तो ब्लॉग पढना कम कर रहे हैं या फिर ईमानदारी से टिप्पणियाँ न देकर पक्षपात कर रहे हैं -जिसके कई कारण हो सकते हैं -टिप्पणीकार समदर्शी नहीं रहे ....ब्लॉगर तो खैर समदर्शी होता ही नहीं -होता तो फिर ब्लॉग क्यों लिखता ...शायद  हम सभी कुछ बातों  को जान समझ रहे हैं मगर कहना नहीं चाहते ..अब कहना हम भी नहीं चाहते ..कोई शहीद होने का इरादा अब नहीं मेरा ..काफी कुछ मोहभंग मेरा  भी हुआ है ..मगर एक बात जरूर कहूँगा जीवन में कुछ संतुलन और उत्तरदायित्व बोध तो रखना ही होगा नहीं तो यह जीवन कितना निरर्थक ,निस्तेज सा ही नहीं हो जाएगा ...?

मुझे लगता है कि जब आपसे  कोई ब्लाग खुद को पूरा पढवा ले ..तब वह टिप्पणी डिजर्व कर जाता है ..फिर अपने कर्तव्य से आप च्युत क्यों हों ..मैंने वहां टिप्पणियाँ बंद कर दीं जहां वे कम से कम तीन बार माडरेट कर रोक ली गयीं ....जाहिर है ब्लॉग स्वामी नहीं चाहता कि मैं वहां अपनी टिप्पणी करुँ -और उसके निर्णय के सम्मान में मैंने टिप्पणी बंद कर दी ..मगर ध्यान रहे ब्लॉग विचार विमर्श के माध्यम हैं ,चर्चा परिचर्चा के फोरम हैं -यह ब्लागों  की मूल प्रकृति है -यदि हम इस मुक्त चिंतन प्रवाह और उसकी विचार सरणियों को बंद कर रहे हैं तो समझिये सरस्वती का अपमान सा कुछ कर रहे हैं - सिर धुन गिरा लाग पछताना जैसा ही ...

ब्लॉग पर लिखते जाना और टिप्पणी का आप्शन बंद कर देना किसी तानाशाही से कम नहीं है ..संवाद का गला घोटना है ...उस देश में जहाँ संवादों का एक भरा पूरा इतिहास पुराण रहा है ...गिनाऊ क्या ? परशुराम -लक्ष्मण संवाद ,अंगद -रावण संवाद ,हनुमान रावण संवाद ----संवादों पर पहरा मत लगाओ हे  मित्रों .....इतिहास को जानो पहचानो ......


54 टिप्‍पणियां:

  1. एक पाठक के नाते मै बस इतना बोलूँगा की लोग fill it , shut it and forget it की तरह ब्लॉग्गिंग भी करना चाहते है . सोचो, . लिखो और भूल जाओ. अब भैया इ कौनो हीरो होंडा motorbike का प्रचार थोड़े है ब्लोग्गिन्ग्वा .लिखिए तो आलोचना या प्रशंसा के लिए तैयार रहना ही होगा नहीं तो हमरे जैसे खालिस पाठक बन जाइये. इह़ा कौनो झंझट नहीं है.

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  2. परशुराम -लक्ष्मण संवाद ,अंगद -रावण संवाद ,हनुमान रावण संवाद ----संवादों पर पहरा मत लगाओ हे मित्रों
    सम्वाद बराबरी के धरातल पर होते हैं, असमानता में या अंगूठे काटे जाते हैं या गले। अब यह आपको तय करना है कि ब्लॉगर और टिप्पणीकार के रोल कितने समान हैं औए कितने असमान।

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  3. टिप्पणियों के माया जाल से मोह भंग हो गया होगा. यह तो बुद्धत्व प्राप्ति जैसा है.

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  4. ब्लॉग पर लिखते जाना और टिप्पणी का आप्शन बंद कर देना किसी तानाशाही से कम नहीं है ..संवाद का गला घोटना है ...

    आपसे सहमत हूँ । यह प्रक्रिया , पाठकों के लिए अपमानजनक सी लगती है ।

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  5. टिप्पणी ऑप्शन बंद करना ब्लॉगर का व्यक्तिगत निर्णय है जिसका सम्मान करना चाहिये. तानाशाही, संवाद का गला घोंटना आदि ठीक जुमले नहीं हैं.

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  6. मित्रवर भूत भंजक शायद आप सही कह रहे हैं -मगर मैंने अगर टिप्पणी का आप्शन बंद कर दिया होता तो क्या इतना बढियां और बेलौस बात्त निखर कर आ पाती ?

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  7. टिप्पणी ऑप्शन खुला होगा तो टिपण्णी करेगे, वरना वापिस चले जाये गे, हमे कोई फ़र्क नही पडता, मिन्नत नही करेगे जी....
    **जो दे उस का भला जो ना दे उस का भी भला***.... :)

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  8. “जीवन में कुछ संतुलन और उत्तरदायित्व बोध तो रखना ही होगा नहीं तो यह जीवन कितना निरर्थक, निस्तेज सा ही नहीं हो जाएगा ...?”

    सहमत।

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  9. पंडित जी,
    ओशो कहते हैं कि किसी व्यक्ति की प्रशंसा करें और वह जवाब में कहे कि मैं इस योग्य नहीं. आप यदि प्रत्युत्तर में उससे कहें कि मित्र तेरा कथन उचित है, तू वास्तव में इस प्रशंसा का पात्र नहीं… तो वह व्यक्ति आपसे क्रुद्ध हो जाता है.
    असल में जो ऐसा कहते हैं उनकी बड़ी प्रबल आंतरिक इच्छा होती है कि उनकी प्रशंसा की जाए… लेकिन पंडित जी टिप्पणी बॉक्स बंद करना अगर तानाशाही है तो उसपर मॉडरेटर लगाना और आफ्टर अप्रूवल छापने को क्या कहेंगे? इमरजेंसी!!

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  10. .
    .
    .
    ऐसा कुछ भी नहीं है अरविन्द जी... संसार में भांति-भांति के लोग हैं और उतनी ही तरह के ब्लॉगवुड में भी...किसी को टिप्पणी नहीं चाहिये...किसी को केवल प्रशंसा व इगो मसाज करती हुई टिप्पणियाँ मात्र चाहिये...किसी को हर तरह की चलती हैं...तो कोई बेनामी/सनामी बन खुद के ब्लॉग पर खुद ही टीप देता है...

    मुझे तो बुद्धत्व प्राप्त उस ब्लॉगर का इंतजार रहेगा जो पोस्ट तो लिखे, पर उस को पाठक द्वारा पढ़ने को ही बैन कर दे... तभी स्वर्णिम काल शुरू होगा ब्लॉगिंग का... बाद में वह ब्लॉगर अपने लिखे को पढ़ना भी बंद कर सकता है...केवल लिखने की क्रिया रहेगी... 'निर्वाण' तभी मिलेगा...हम सब को इसके लिये तैयार रहना चाहिये... :-))


    ...

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  11. अरविंद जी,

    अभी थोड़ी देर पहले ही गणेश पंडाल से लौटा हूं और अब यह पोस्ट पढ़ पाया।

    हांलाकि मैंने अपने ब्लॉग पर टिप्पणी ऑप्शन बंद करने की वजह अपने ब्लॉग पर एक पोस्ट में लिख दी है लेकिन फिर भी आप लोगों के मन में मेरे इस कदम से सवाल उठ रहा है तो मैं थोड़ा सा और स्पष्ट करना चाहूंगा कि यह कदम मैंने काफी सोच समझकर और अपने उपलब्ध समय, परिस्थितियों आदि को समझते हुए उठाया है।

    ब्लॉगिंग में ऐसा नहीं है कि पहले कभी बिना टिप्पणी ऑप्शन के कोई ब्लॉग नहीं चल रहा हो। हथकड़ http://hathkadh.blogspot.com/ ऐसा ही एक ब्लॉग है जिसमें कि टिप्पणी ऑप्शन नहीं है और मुझे वहां का लिखा पसंद भी आता है।

    हां ये जरूर है कि टिप्पणी ऑप्शन से दोतरफा संवाद बना रहता है, उससे अपने लिखे के प्रति आलोचना या निखार लाने में मदद मिलती है।

    लेकिन एक बात यह भी है कि ब्लॉगिंग अपने प्रति एक तरह का समर्पण भी ब्लॉग एडमिन से लगातार मांगती है जिसमें आपको टिप्पणी-प्रतिटिप्पणी अपनी प्रतिक्रियाएं भी देनी होती हैं। टिप्पणियों के आने पर उन पर ध्यान भी देना पड़ता है कि साथीगणों के विचार, भाव क्या कहते हैं, उनकी अपेक्षाएं क्या हैं। जाहिर है इन सब में वक्त लगता है और ध्यान बंटना लाजिमी है।

    और यही सब सोच समझकर टिप्पणी ऑप्शन बंद करने का मैने फैसला लिया है बाकि और कुछ बात नहीं है।

    आशा है आप लोग मेरी मजबूरी समझेंगे।

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  12. मुझे लगता है कि जब आपसे कोई ब्लाग खुद को पूरा पढवा ले ..तब वह टिप्पणी डिजर्व कर जाता है ..

    मैं आपसे सहमत नहीं हूँ.. अगर ऐसा नियम कोई बना दे तो और जादू से सामने वाले को पता चल जाए कि मैं पूरा पोस्ट पढकर निकल गया हूँ तो मैं शायद पढ़ना ही बन्द कर दूँ.. कुछ सायलेंट रीडरों के लिए भी छोड़ दिया जाए सर.. :)

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  13. मित्रों ,
    आप सुधी जनों की अब तक आयी टिप्पणियाँ एक आम सहमति इस मुद्दे पर नहीं बना पायी हैं -विभाजित दृष्टिकोण उभर रहा है -हम जब अपनी बात (एकतरफा) रखके चलते बन रहे होते हैं तो उस निरीह पाठक की मनोदशा की ज़रा सोचिये -उसकी अभिव्यक्ति पर ही आपने ताला या तमाचा जड़ दिया है -यह तो पाठकों के साथ पूरी नाइंसाफी है ...या उसे आप ई मेल से अपने उदगार व्यक्त करने की अतिरिक्त जहमत दे रहे हैं -जैसा की एक बार एक ब्लॉगर ने आह्वान किया भी था -
    क्या यह एक बौद्धिक आतंकवाद नहीं है (चलिए तानाशाही नहीं कहता ) की अपनी तो कर कह लो और अपने पाठक की इसलिए न सुनो कि वह आपके लिखे पर कुछ कहने के योग्य नहीं हुआ -या अधिकारी नहीं है -मतलब श्री आसन से केवल कहा जाता रहेगा -जनता जनादन उसे केवल सुने -प्रतिप्रश्न की इजाजत नहीं है ....यह एक धर्मगुरु सी मानसिकता नहीं है ? मत कहो कि कुन्हरा घना है यह किसीकी व्यक्तिगत आलोचना है -यह तो ब्लागिंग का आपातकाल हुआ ....बहरहाल मैंने केवल अपने विचार आपके सामने रखे की इंगित स्थितियों के सही कारण बताये जायं -चला बिहारी ......साहब आप दुरुस्त फरमाते हैं माडरेशन भी एक बला ही है -मगर इसके कारणों सीधे हैं लोग बाग़ गालियाँ बक जा रहे हैं -अडास भंडास रूपी अपने रंग बिरंगे पदार्थ छोड़ जा रहे हैं -क्या महज इसलिए टिप्पणियाँ ही /भी न ली जायं ?
    सतीश जी दरवाजे खोलिए मैं सहमत नहीं हूँ अब भी ....अच्छे लोग दरवाजे बंद करते चले ,और अपसंस्कृति के संवाहक तरह तरह की भंगिमाएं कर टिप्पणीकारों को ललचायें -यह गवारा नहीं !

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  14. कविता सुनाने वाले को झेलना भी आना ही चाहिए।

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  15. मुझे तो प्रवीण शाह और पी डी की प्रतिक्रियायें जम रही हैं !

    पाठक मुझे 'पढ़े' तो पर 'कहे' ना अजब सा द्वैध है सो इसे ब्लागर की अपनी इच्छा / अपनी स्वतंत्रता कैसे मान लूं ?

    मंशा कुछ और ही लगती है ?

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  16. "मित्रवर भूत भंजक शायद आप सही कह रहे हैं -मगर मैंने अगर टिप्पणी का आप्शन बंद कर दिया होता तो क्या इतना बढियां और बेलौस बात्त निखर कर आ पाती ? "

    :) :)

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  17. सतीश जी ने टिप्पणियां बंद कर दीं? सतीश जी ने उनके ब्लॉग पर टिपण्णी करने वालों के साथ हमेशा दोतरफा संवाद रखा. ऐसा संवाद हमेशा समय मांगता है. उन्हें समय की कमी भी तो हो सकती है शायद इसीलिए उन्होंने टिप्पणियां बंद कर दीं. कोई बात नहीं है. सतीश जी जैसा लिखते हैं उनके पाठक उन्हें पढेंगे ही. टिप्पणी करने का आप्शन हो या न हो. संवाद तो होते रहेंगे.

    आपने लिखा है;

    "उस देश में जहाँ संवादों का एक भरा पूरा इतिहास पुराण रहा है ...गिनाऊ क्या ? परशुराम -लक्ष्मण संवाद ,अंगद -रावण संवाद ,हनुमान रावण संवाद ----"

    अब देखिये ई लोग जो थे ऊ एक-दूसरे को कम जानते थे. अलग-अलग जिले के थे. संवाद न होता तो उन्हें एक-दूसरे की जानकारी ही नहीं मिलती. और इनलोगों के समय में ज्यादातर संवाद झगड़े के लिए होते थे. जैसे; "हे बानर, तुम कौन हो? हमें अपना परिचय दो....जिससे मैं झगड़े की रूपरेखा तैयार कर सकूँ...बिना परिचय लिए मैं गाना भी नहीं गाता..."

    अब यहाँ ऐसा कोई झमेला तो है नहीं. दूसरी बात यह कि यहाँ झगड़े वगैरह नहीं होते. कोई ज़रुरत ही नहीं है. यहाँ तो भाई-चारा है. ऐसे में संवाद न भी हों तो कोई झमेला नहीं है. और फिर लोगों के पास एक-दूसरे का टेलीफोन नंबर है. जब चाहे पिट पिट टिक, टिक टिक पिट
    किया और संवाद कर डाला.

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  18. करने दीजीए बंद हम कौन सा कम हैं , हम अपनी टिप्पणी वाली ठेली आगे निकाल ले जाएंगे । वैसे कई बार सच में ही किसी ब्लॉगर ने कुछ ऐसा लिखा होता है , जिसमें टिप्पणी की दरकार नहीं होती , न उस पोस्ट को , न ब्लॉग को .....

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  19. @ मुझे लगता है कि जब आपसे कोई ब्लाग खुद को पूरा पढवा ले ..तब वह टिप्पणी डिजर्व कर जाता है ..
    आपकी इन बातों से बिल्कुल सहमत हूं।
    @ ब्लॉग पर लिखते जाना और टिप्पणी का आप्शन बंद कर देना किसी तानाशाही से कम नहीं है
    यह भी मेरे मन की बातें है। ऐसा लगता है कि यह फ़रमान है कि जो बोलता हूं तुम सुनो और कुछ भी मत बोलो, तुम्हारी मैं सुनने वाला नहीं। तुम्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है।
    एक सामयिक और सटीक पोस्ट।
    @ संवाद का गला घोटना है ...उस देश में जहाँ संवादों का एक भरा पूरा इतिहास पुराण रहा है
    पंच लाइन!
    बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।

    देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें

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  20. @ मैंने वहां टिप्पणियाँ बंद कर दीं जहां वे कम से कम तीन बार माडरेट कर रोक ली गयीं ....जाहिर है ब्लॉग स्वामी नहीं चाहता कि मैं वहां अपनी टिप्पणी करुँ -और उसके निर्णय के सम्मान में मैंने टिप्पणी बंद कर दी ..
    आपने भी .....!
    ब्लॉग स्वामी की स्वीकृति के बाद दिखने लगेगा.
    जब यह संदेश आता है तो मुझे लगता है कि सरकार के दफ़्तर में अर्ज़ी दे आया हूं,.... जाने कब सुनवाई होगी!

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  21. चलिये, जैसी हरि इच्छा..वही मंजूर की तर्ज पर आगे बढ़ें.

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  22. चलिये, जैसी हरि इच्छा..वही मंजूर की तर्ज पर आगे बढ़ें.

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  23. ब्लॉग पर लिखते जाना और टिप्पणी का आप्शन बंद कर देना किसी तानाशाही से कम नहीं है ..संवाद का गला घोटना है ...

    आपसे सहमत हूँ ।

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  24. मित्रो,

    अब आप इसे तानाशाही मानें या जो कुछ ...... मैंने अपनी मजबूरी बता दी है। ब्लॉगिंग में उतरने से पहले वाली बेफिक्री को जीना चाहता हूँ...Enjoy करना चाहता हूँ।

    अब शायद आप कहें कि यार ऐसा भी क्या कि ब्लॉगिंग में आने से लाइफ डिस्टर्ब हो गई है तो इतना ही कहूंगा कि हर एक चीज का समय होता है। थोड़ा समय ब्लॉगजगत में बिताया, आप लोगों से विचार-विनिमय किया। बस्स....।

    लेकिन जब यही ब्लॉगिंग ज्यादा समय खाने लगे... लाइफ में ज्यादा इन्वॉल्व हो जाय तो थोड़ा दूरी रखना जरूरी हो जाता है। और मैं कोई ब्लॉगिंग बंद भी नहीं कर रहा हूँ। बस एक डिस्टर्बिंग मटेरियल था 'टिप्पणीकरण' उसी को निकाल दिया है।

    अब इसका लाभ यही देखिए कि जब भी मैं नई पोस्ट लिखता था तो हर चार या पांच घंटे में एकाध बार तो नेट पर चेक कर लेता था कि कौन क्या कह रहा है लेकिन अब देखिए कि कल से पोस्ट ठेल कर बैठा हूँ और बेफिक्र होकर बाकी के काम निपटा रहा हूँ। मोबाइल पर पहले जो कमेंट चेक करता था अब वह सब बंद।

    एक तरह की शांति।

    बस इससे ज्यादा और कुछ नहीं कहना चाहूँगा। आप लोग खुद भी समझदार हैं।

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  25. मुझे टीपना और टिपियाया जाना दोनों ही पसंद है ,ये तो ऊर्जा का काम करते हैं । कई बार ऐसे सुझाव मिले जिससे मेरे पोस्ट की त्रुटियां दूर हुईं ।
    टिप्पणीकार से एक जुड़ाव भी महसूस होता है । आखिर बात करने से ही तो बात बनती है ,और हमारे बातचीत का माध्यम तो टिप्पणी ही है ।

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  26. @प्रवीण शाह जी - अगर आपकी बात सही है तो आधे बुद्धत्व को तो मैं प्राप्त कर ही चुका हूँ.. क्योंकि अपने आधे से अधिक लिखी बातों को मैं ऐसे ब्लॉग पर डालता हूँ जहाँ किसी अन्य का आना प्रवेशा निषेध है.. ;-)

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  27. न्यूरॉन थ्योरी टिप्पणियां देने के लिए आवेग देती है...

    दूसरों को टिप्पणी देने से रोकने के लिए एंटी न्यूरॉन थ्योरी क्रांतिकारी है...गहनता से शोध किया जाए तो भारत में एक और नोबेल आने की संभावनाएं जगती हैं...

    जय हिंद...

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  28. आपने सही बात उठायी है ...कभी कभी ऐसी जगह जहाँ टिप्पणियाँ नहीं की जा सकतीं पढ़ने के बाद लिखने का मन होता है तो बहुत अजीब स लगता है ...पर सबकी अपनी सोच है और अपने मन की स्वतंत्रता भी ....

    लेकिन फिर भी टिप्पणी का ऑप्शन खुला रहे तो अच्छा है ..

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  29. जो दे उसका भला, जो ना दे उसका उससे भी ज्यादा भला, ऐसी उच्च सोच वाली परम आत्मा ही ब्लागरत्व को उपलब्ध होती है. अत: ऐसे द्विविधा में पडने से कोई फ़ायदा नही है. इस संसार की तरह यह ब्लागिंग तत्व भी नाशवान है, एक दिन नष्ट हो ही जायेगा. इसलिये जब तक सांसे हैं इस ब्लागामृत बूंटी को छानने घोटने का प्रयत्न होते रहना चाहिये, यही कर्म का सिद्धांत है.

    आपकी पोस्ट को पढकर परम उच्च योगी की स्थिति जैसा अनुभव कर पा रहे हैं. हरि ओम तत्सत.

    रामराम.

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  30. हम तो चाहते हैं कि सभी ब्लागर टिप्पणी लॊक लगा दें ताकि हम टीपने से बच जाएं :)

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  31. .इससे पहले कि मैं फटे में टाँग अड़ाऊँ, यह निवेदित करना चाहूँगा कि " Comment moderation has been enabled. All comments must be approved by the blog author." से बेहतर है, टिप्पणियों का विकल्प बन्द ही कर देना ।
    स्पैम का डर उन्हें हो, जो तमाम तरह के झाल-करताल से अपने टेम्प्लेट को लैस किये हों, रही बात मेरी... ब्लॉगिंग में बिरले ही होंगे जो K9 Web Security से अपने टेम्प्लेट को लैस रखते हों ।
    रही बात अशोभनीय टिप्पणियों, गाली गलौज भरी टिप्पणी को फ़िल्टर किये जाने के मुद्दे की.. तो यह " गरीबी हटाओ " की तर्ज़ पर " गँदगी हटाओ---भाईचारा बढ़ाओ " की अभिजात्य राजनीति है ।
    क्या इसकी तुलना अहिंसक विरोध प्रकट वालों को, जनता तक उनके विचार पहुँचने से पहले ही ऎसे विचारों को ज़ेल में ठूँस देने से नहीं करनी चाहिये ?
    भावी समय में तहरीर के लिये, क्या हिन्दी ब्लॉगिंग के सँक्रमण-काल के ऎसे कुछ साक्ष्य जीवित नहीं रखे जाने चाहिये ?
    अशालीन या अशोभन टिप्पणियाँ विकृत मानसिकताओं की ऎसी सनद हैं, जिन्हें अपने कापुरुष मनोविकारों के साथ यहाँ दर्ज़ रहना ही चाहिये ।
    क्या हम स्वयँ ही अस्वस्थ मानसिकता के शिकार हैं ? क्या मुद्रक, सँपादक से लताड़ दिये जाने की कल्पना से उठने वाली सिहरन की लहरों को हम टिप्पणीकारों को अपमानित कर के भुला रहे हैं ?
    मैं मूल-विषय से नहीं भटका, श्रीमान । यह तो टिप्पणी के लिये सन्नद्ध होते ही मुझे एक असम्बद्ध चेतावनी दिख गयी, शायद इसलिये....

    रही बात सतीश पँचम की, वह ऎसे निश्छल और माई डियर कोटि के मनुष्य हैं.. कि टिप्पणियों को लेकर मेरा ज़मीर उन्हें हर तरह से बरी करता है । उनको किस मुँह से ललकारा जाये ?

    यदि किसी टिप्पणी को अविकल रूप में दिखाना या उसकी ’हॉनर-किलिंग’ कर देना ब्लॉग-मालिक का अधिकार है, तो तकनीकी रूप से टिप्पणियाँ लेना या न लेना भी इसी अधिकार-क्षेत्र की परिधि में आते हैं । उन्होंने वही तो किया है । रही बात.. ब्लॉग के मालिक होने की, तो श्रीमन यहाँ सभी तो गेहूँ के चँद दाने लेकर पँसारी बने बैठे हैं.. ऊपर से एक तुर्रा यह भी कि जैसे एडसेन्स द्वारा तिज़ारत का न्यौता बस आने ही वाला है,.. यह ट्रैफ़िक, वो स्टैट, फ़लाँ पेजरैंक, एलेक्सा ग्राफ़, प्याज़ लहसुन... हुँह !

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  32. @देखिये डागडर आपका कमेन्ट बिना माडरेशन की छननी से बाहर -जान की अमां पाऊं तो किछु और अर्ज करूँ ?

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  33. सतीश भाई , आपको तो ऐसे हम जाने नाही देगें -हिन्दी फिल्मों में वह अक्सर दिखने वाला सीन याद है ना -अचानक विलेन /माफिया /डान के गुट के किसी सदस्य को बुद्धत्व की प्राप्ति होती है और वह वापस अपने पुरसकूँ संसार में लौटना चाहता है -मगर क्या उसे लौटने दिया जाता है ...ना ना अब रिश्ते तो पाईंट आफ नो रिटर्न तक जा पहुंचे हैं -भाई लोग को भेजें क्या ?

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  34. @ हिन्दी फिल्मों में वह अक्सर दिखने वाला सीन याद है ना -अचानक विलेन /माफिया /डान के गुट के किसी सदस्य को बुद्धत्व की प्राप्ति होती है और वह वापस अपने पुरसकूँ संसार में लौटना चाहता है -मगर क्या उसे लौटने दिया जाता है
    ---

    क्या खूब बात कही अरविंद जी।

    लेकिन यहां सवाल बुद्धत्व प्राप्त होने का नहीं है। सवाल है खुद को ब्लॉगिंग से जोड़े रहकर कुछ हल्का फुल्का रचते रहने से ।

    इसे एक तरह से आप मेरा निजी स्वार्थ भी कह सकते हैं कि खुद तो जब मन में आए लिखता जाउं और दूसरों को उस पर टिप्पणी करने से भी रोके रहूँ। लेकिन फिलहाल मुझे इस तरह की ब्लॉगिंग ही मेरे खुद के लिए उचित लग रही है।

    ब्लॉगिंग में आने से ढेरों प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लाभ मिले हैं तो कई जगह मुझे Hidden Time Loss के तौर पर नुकसान भी झेलना पड़ा है। जहां तक मैं समझ पाया हूँ कि - ब्लॉगिंग में अब तक पता नहीं कितने घंटे ऱफ्ता रफ्ता फुंक जाते हैं और समय का पता भी नहीं चलता। जबकि इसी Hidden Time को मैं कहीं और कार्यों में इस्तेमाल कर सकता था।

    चाहे-अनचाहे ध्यान बंटाने वाली टिप्पणीयों को बंद करना उसी Time loss को पाने का एक प्रयास है।

    आशा है कुछ और समय अपने पठन-पाठन में या रोजमर्रा के कामों में लगा पाउंगा।

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  35. मैं समझता हूँ की हर पाठक को अपनी प्रतिक्रिया देने का मौका अवश्य मिलना चाहिए. जीवन में बहुत सी बातें होती हैं जो हमें तंग करती हैं उनसे डरकर यूँ भगा तो नहीं जा सकता. समय की कमी तो सभी को है. कुछ बीच का रास्ता ढूँढना होगा.

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  36. ाक्सर हर एक को यही शिकायत रहती है कि लोग उनके ब्लाग पर टिप्पणी नही करते। मगर जो बडे ब्लागर अर्थात बडे लेखक हैं उनका भी फर्ज़ बनता है कि वो भी सभी को रोज़ नही तो कभी कभी तो उत्साहित करें और जो लोग कभी भी किसी ब्लाग पर नही जाते मैं उन्हें भी लोग क्यों टिप्पणी दें? हाँ लोग कहते नहीं मगर ये बात सभी को अखरती है फिर भी अगर विषय अपनी पसंद का हो तो जरूर टिपिया देती हूँ। जानती हूँ कि बहुत से लेखक हम से बहुत उच्च कोटी के हैं मगर छोटे लेखक कहाँ जायें? लेकिन सतीश जी ने शायद किसी और वजह से आप्शन बाक्स हटाया होगा। ब्लाग पर इस लिये लिखते हैं कि यहाँ त्वतरित प्रतिक्रुया मिलती है। अगर लोग सिर्फ दिखाने को टिप्पणी देते हैं तो ये उनस्का अपना निर्णय है आप किसी को रोक नही सकते। फिर्भी कहूँगी कि उनका दुख वाजिब है जो अच्छा लिखते हैं मगर टिप्पणी नही मिलती। मगर उन्हें भी कुछ दरियादिली से काम लेना चाहिये। मुझे तो नही लगता कि कोई ऐसा ब्लागर हो जिसे टिप्पणी की चाह न हो। सभी टिप्पणियां केवल वाह वाह नही होती। उनमे कुछ मार्गदर्शन भी करती हैं उत्साहित करती हैं। इस लिये सभी से विनती है कि टिप्पणियों वाले मामले को लेखक पर छोड दें। अब अपना अपना काम करें। वैसे आशीश की बात बिलकुल सही है। धन्यवाद

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  37. सोच लो, दुख बड़ा गहरा है,
    यहाँ तो संवाद पर पहरा है।
    सुनो बस, किसने हैं माँगे जबाब,
    छलकना गुस्ताखी है जनाब।

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  38. एक सज्जन थे. वे मिलना जुलना पसंद नहीं करते थे. लेकिन चाहते थे उनकी ख्याति उनके बंद द्वार से बाहर तक जाए. इसके लिये उन्होंने संवाद करना शुरू किया. घर-घर जाकर मिलते और अपने विचार प्रकट करते. लेकिन कभी अपने घर पर निमंत्रण/आमंत्रण नहीं देते. क्योंकि वे सम्मान पाने में विश्वास करते थे. विचार प्रकट करने में विश्वास करते थे. वे वैचारिक जंग को श्रीराम की भाँति दूसरे के घर में लड़ना पसंद करते थे. सो, उन्होंने घर के द्वार अतिथितियों के लिये बंद कर दिए. ना मेहमान आयेंगे, ना ही खिदमत के वचन बोलने होंगे.

    एक दिन
    उन्हें स्वयं समझ में आयेगा कि वे संवाद तभी कर पाते है जब अन्य लोग द्वार खोले रहते हैं.

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  39. मुझे ऐसा लगता है कि अगर आप यहाँ लिख रहे हैं तो जाहिर है कि आप उसे पढ़वाना चाहते हैं ..वर्ना डायरी में लिखिए ..और अगर पढ़वाना चाहते हैं तो उसपर प्रतिक्रिया देना पाठक का हक होना चाहिए ..
    बाकि तो आजाद देश के आजाद नागरिक हैं सब :)

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  40. सतीश जी और मित्रों ,
    खेल के नियम साफ़ होते जा रहे हैं -
    ९० फीसदी लोगों के विचार हैं कि टिप्पणी का आप्शन बंद करना एक प्राजातांत्रिक निर्णय नहीं है
    यह संवाद पर पहरा है -आप खेल में हैं तो खेल के नियमों का साम्मान करना होगा
    अब मान भी जाईये ना सतीश जी ...

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  41. इस पोस्ट ने एक सार्थक बहस छेड़ी है।
    मेरी राय में ब्लॉग में लिखने का सबसे बड़ा लाभ तो यही है कि लिखे पर तत्काल प्रतिक्रिया मिलती है। किसी प्रतिष्ठित पत्रिका में लेख प्रकाशित हो, हजारों लोग पढ़ें लेकिन कितने हैं जो पढ़कर तत्काल प्रतिक्रिया देते हैं ? लिखे की आलोचना या प्रशंसा तत्काल मिल जाय तो इससे अच्छी बात दूसरी हो ही नहीं सकती। यह आपस में संवाद का ही परिणाम है कि हम एक-दूसरे को सिर्फ उसके लिखे से जानते हैं। पद प्रतिष्ठा से दूर, अदने सी आर्थिक या समाजिक हैसियत का आदमी भी अपने उच्च लेखन से सभी का आदरणीय हो जाता है।
    अच्छे लेखक की पहचान सिर्फ उसके लेखों से नहीं अपितु दूसरे के लेखों पर उसके कमेंट से भी होती है। इन सबके बावजूद यदि सतीश जी समयाभाव के कारण, किसी ने कमेंट किया है तो मैं भी करूँ, इस कर्तव्य बोध से परेशान होने के कारण, यह सोच कर कि जितनी उर्जा मैं कमेंट लिखने में खर्च करूंगा उतने में तो एक पोस्ट लिख डालुंगा या फिर झूठी प्रशंसा से खिन्न होकर कमेंट का विकल्प ही बंद कर देना चाहते हैं तो इसके लिए वे स्वतंत्र हैं। कमेंट करना, कमेंट न करना, कमेंट के लिए प्रार्थना करना या कमेंट करने का विकल्प ही बंद कर देना, ये सब खयाल अपने-अपने, विचार अपना-अपना है। मेरा यह भी विश्वास है कि मन की यह दशा चिर स्थाई नहीं रहने वाली। सतीश जी पुनः विकल्प परिवर्तित कर सकते हैं । मैं कभी मॉडरेशन का विकल्प खोल देता हूँ कभी बंद कर देता हूँ। कभी कोई पोस्ट नहीं पढ़ता, कभी खूब पढ़ता हूँ..प्रयास सिर्फ यह करता हूँ कि जो लिखूँ उसका संबध लेख से हो न कि व्यक्ति से।
    प्रतिबंध तो सिर्फ इस बात के लिए लगना चाहिए कि कोई किसी को अमर्यादित ढंग से आलोचना न करे।

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  42. @ शिखा जी's comment

    मुझे ऐसा लगता है कि अगर आप यहाँ लिख रहे हैं तो जाहिर है कि आप उसे पढ़वाना चाहते हैं ..वर्ना डायरी में लिखिए ..और अगर पढ़वाना चाहते हैं तो उसपर प्रतिक्रिया देना पाठक का हक होना चाहिए ..
    -----

    मेरे द्वारा टिप्पणी बंद करने वाले इस कदम को इस नजरिए से क्यों नहीं देखा जाता कि जैसे राह चलते रास्ते में अगल-बगल अनगिनत वस्तुएं दिखती हैं, इमारतें दिखती हैं... चीजें दिखती है कहीं कुछ तो कहीं कुछ।

    अब क्या यह जरूरी है कि हर इमारत को देख...हर वस्तु को देख उस पर कमेंट किया ही जाय।

    उस वस्तु को देख लिया... देख लिया....उसके बाद आगे बढ़ लिए।

    मैं अपने ब्लॉग को फिलहाल उसी कोटि का मानता हूँ।

    लिखता इसलिए हूँ क्योकि लिखना अच्छा लगता है....अब उसे लिख कर एक पन्ने में कहीं दबाकर रख दूं तो वो भी तो अच्छा नहीं है। इसलिए मुफ्त के मिले इस ब्लॉगिंग मंच का उपयोग कर रहा हूँ।

    जिस दिन ब्लॉगिंग से मन भर जायगा अपना डेरा डम्मर उठा कर चलता बनूंगा....लेकिन फिलहाल तो ब्लॉगिंग में वन वे ट्रैफिक बनाए रखने का विचार है :)

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  43. @ प्रतिबंध तो सिर्फ इस बात के लिए लगना चाहिए कि कोई किसी को अमर्यादित ढंग से आलोचना न करे....

    सौ बात की एक बात ..!

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  44. अरविन्द जी , एक ब्लोगर के लिए यही तो अपनी खेती है , जब चाहो , बीज बोवो , जब मर्जी फसल काट लो !

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  45. कहीं ये टिप्पणियाँ पाने का आधुनिकतम तरीका तो नहीं?

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  46. और लोगों का तो नहीं पता...किस वजह से टिप्पणी के ऑप्शन बंद किए थे, उन्होंने...पर सतीश जी ने जो कारण बताये हैं..तर्क सम्मत लग रहें हैं. अगर वह टिप्पणियाँ देखने की उत्सुकता में अपने दूसरे कार्यों पर पूरी तरह ध्यान नहीं दे पा रहें ....तो उनकी इच्छा का सम्मान करना चाहिए.

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  47. ब्लॉगिंग में आने से ढेरों प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लाभ मिले हैं तो कई जगह मुझे Hidden Time Loss के तौर पर नुकसान भी झेलना पड़ा है। जहां तक मैं समझ पाया हूँ कि - ब्लॉगिंग में अब तक पता नहीं कितने घंटे ऱफ्ता रफ्ता फुंक जाते हैं और समय का पता भी नहीं चलता।

    सतीश जी की इस 24 कैरेट सोने जैसी खरी बात से हम भी पूरी तरह से सहमत हैं.....

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  48. सतीश जी के ब्लॉग पर यदाकदा जब भी मैं टिप्पणी कर पाया, उनसे उसका जवाब मिला और यह एक टिप्पणीकार को चेताता है कि भला मानस उनकी टिप्पणी को पढ रहा है... वैसे भी अब ब्लॉगिंग के ३-४ साल बाद गैर-जरूरी टिप्पणियां मुझसे हो भी नहीं पातीं।

    टिप्पणियों में पढा कि सतीश जी ने टिप्पणी बंद करके प्रजातांत्रिक कार्य नहीं किया..
    तो भई आप लोग उनपर टिप्पणी द्वार खोलने का दबाव बनाकर कौन सा प्रजातंत्र बना रहे हैं...

    गिव हिम सम स्पेस.. आई थिंक ही नीड्स इट..

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  49. हम्म ! भई ये तो उनका व्यक्तिगत निर्णय है. हाँ इतना ज़रूर है कि ब्लोगिंग की ये खासियत है कि वह दोतरफा संवाद कायम करता है. अब आगे सतीश जी की मर्जी.

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  50. ब्लॉग पर लिखते जाना और टिप्पणी का आप्शन बंद कर देना किसी तानाशाही से कम नहीं है ..संवाद का गला घोटना है ...अच्छा विवेचन प्रस्तुत किया है आपने.
    आपकी इन बातों से बिल्कुल सहमत हूं।

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  51. बरसात में तुमसे मिले हम पंचम...
    बरसात में!

    (संदर्भ: हवा में तैरती फुसफुसाहटें)

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