बुधवार, 1 सितंबर 2010

आप सभी को कृष्ण जो स्वयं भगवान हैं ,के जन्म पर बधाई और शुभकामनाएं !

मित्रों इस पोस्ट के मूल कंटेंट को हटा रहा हूँ -अनूप शुक्ल ने देर रात फोन कर आग्रह किया और कहा कि दिव्या श्रीवास्तव ने उनके अनुरोध पर अपनी आपत्तिजनक पोस्ट हटा ली है .अब चिट्ठा -भातृत्व का और किसी भी सद्कार्य का प्रतिफल तो होना ही चाहिए न  -दिव्या ने मुझसे फोन के बजाय मेल कर ही कह दिया होता तो मैं कभी क्या इतना असहिष्णु हुआ कि किसी महिला का अनुरोध न सुनूँ :) ? मगर अब वे बडकी अदालत में चली गयीं ....छोटी अदालत के मामले बड़ी अदालतों में ले जाना ..अब कौन बताये ? बड़ी अदालतें यही तो चाहती हैं और बाद में केस दुत्कार कर ख़ारिज कर देती हैं ....  इसलिए उनका समय जाया नहीं करना चाहिए ...उनके मसौदे और मसले अलग  हुआ करते हैं ....मसलन बड़का ब्लॉगर जो सबसे अधिक टिप्पणियाँ बटोर रहा है ,फलां  ब्लॉगर जो इत्ते समय से टिका हुआ है आदि आदि ...मैंने दिव्या जी को सलाह दी है कि वे पतिदेव समीर जी के साथ वीकेंड कर आयें -वे उन महान मोहतरमा का कैप्टिव बनने से भी बच गयीं -यही राहत है ......किसी के चरित्र हनन से खुद को प्रोमोट करने का कुटिल चातुर्य धराशायी हुआ...यह पब्लिक है यह सब जानती है !


 मित्रों 'बी ट्रू टू योरसेल्फ . " फिर कौनो नौबत नहीं ...प्यार कोई गुनाह नहीं है ..उसे डिफेंड मत करो -स्वीकार कर लो ...कृष्ण भारतीय लोकमानस के नायक हैं उन्होंने सब कुछ ईमानदारी से किया,राधा से प्रेम ,गोपियों से प्रेम -वह व्यभिचार नहीं था -शुद्ध सात्विक प्रेम था ...लोकमानस आज भी राधा कृष्ण कथा को दिल से लगाये हुए है .    भागवत में रसिया  कृष्ण.... छलिया कृष्ण .....मनबसिया कृष्ण की छबियाँ उभरती हैं .....अब कहाँ है वह कृष्ण और राधा का उदात्त प्रेम ? सच मानिए प्रेम सच्चे निर्विकार दिल के लोग कर सकते हैं जिनके दिल में टुच्चई भरी हो प्रेम उनके वजूद को स्पर्श नहीं करता ..कभी भूले कर भी जाता है तो फिर उच्चाटन भी शीघ्र हो जाता है ..मैंने आपने सभी ने प्रेम किया है परिणतियाँ जो भी हुई हों ...जो अभागा है प्रेम उसे रिक्त कर गया ...हम तो इसी कृष्ण रस में ही सराबोर हैं -यही जीवन्तता की उर्जा है यही इस कलि काल में  जीवन का अवलंबन हैं .मूरख नहीं समझते ...जीवन की बढ़ती  विभीषिकाओं के इस दौर में जीवन के प्रति यह प्रेम  ही आशा जगाता है ,जिलाए चलता है ..हमारे हरि हारिल की लकड़ी ...अभागे हैं वे लोग जो इस अनुभूति से वंचित रह जाते हैं ...प्रेम मन और ह्रदय की उदात्तता है ....कलुष नहीं ....प्रेम को जब भी कटघरे में रखा जाएगा वह निर्दोषता को उजागर करने खुद नैसर्गिक मदद के रूप में आ  जायेगा ...
 राधाकृष्ण -यह उन्हें  समर्पित जो जांन  कर अनजान हैं !
पूरे प्रकरण से एक यही सकारात्मक सीख मिलती है कि जीवन में  खुद  और अपने रिश्तों के प्रति ईमानदार रहो ..कोई किसी से जबरदस्ती प्रेम नहीं करता ..यह हो ही जाता है ...इससे बड़े ऋषि मुनि नहीं बचे तो हम साधारण मार्टल्स की क्या औकात -चीयर अप  कि आप किसी से प्रेम करते हैं और कोई आपको प्रेम करता है   -यह गहरे मन की अनुभूति है ,चौराहे पर टंटा करने की नही.वे बदनसीब हैं जिनसे कोई प्रेम नहीं करता ..हैं न ?


इस पोस्ट पर मित्रों की सहमति /असहमति  बेशकीमती है इसलिए वे एक स्मृति दंश /पुष्प के रूप में यहाँ रहेगीं ....एक बार फिर कृष्ण जन्माष्टमी पर आपको शुभकामनाएं ..
 

44 टिप्‍पणियां:

  1. किसी ने सही कहा है कि यह संसार भांति भांति के लोगों से भरा पड़ा है और हमें सारी उम्र सीखते जाना है।

    जवाब देंहटाएं
  2. मिश्रा जी , अपुन तो न तीन में और न तेरह में , मगर मैं भी खुशदीप जी की बात का ही समर्थन करूंगा. कि आपको शिष्यों ..... क्योंकि शायद जहां तक इस लेख का सम्बन्ध मैं समझ पा रहा हूँ तो आपको याद होगा कि कुछ महीने पहले एक लेख लिखकर उनकी टी आर पी भी आपने ही बढाई थी , इस ब्लॉग जगत पर !

    जवाब देंहटाएं
  3. मिश्राजी आपकी भाषा का स्तर बहुत गिरा हुआ है. इस विवाद पर मैं कुछ नहीं कहना चाहती.

    जवाब देंहटाएं
  4. ..ज्योत्स्ना जी भाषा का या कथ्य का ...कमेन्ट के लिए शुक्रिया !

    जवाब देंहटाएं
  5. पोस्ट का पहला पैराग्राफ देखें. आपने जिन संज्ञाओं और उपमाओं का प्रयोग किया है वे भर्त्सनीय हैं. इससे अच्छा होता कि आप सीधेसीधे रचना और दिव्या का नाम ही लिख देते.

    जवाब देंहटाएं
  6. चलिए आपने तो ले लिया :) देखिये आपकी यह बेनामी टिप्पणी है मगर मैं फिर भी प्रकाशित कर रहा हूँ ..यह सदाशयता कुछ कम है क्या ?

    जवाब देंहटाएं
  7. श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई ।

    अच्छा लेख ....

    कृपया एक बार पढ़कर टिपण्णी अवश्य दे
    (आकाश से उत्पन्न किया जा सकता है गेहू ?!!)
    http://oshotheone.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  8. .
    .
    .

    आग्रह है आपसे... यह प्रकरण अब यहीं पर समाप्त होना चाहिये/समाप्त हुआ माना जाना चाहिये...

    हम सबको सद् मति मिले...

    चीयर अप सर, देखिये दुनिया अभी भी सुन्दर है!

    आपकी अगली विचारोत्तेजक सार्थक पोस्ट के इंतजार में...

    आभार!


    ...

    जवाब देंहटाएं
  9. जी प्रवीण जी अब अपने बस कह दिया तो बस ....
    मगर दुनिया शायद इतनी हसीं नहीं है !

    जवाब देंहटाएं
  10. लिखते बढ़िया है आप,थोड़ा फोन्टवा को मोटा कर दें,हमारे जैसे अन्धरों के लिए !

    जवाब देंहटाएं
  11. बाक़ी वो सब तो ठीक पर मछलियाँ आपके पास खुद आ जाती हैं तो इसमें दुर्भाग्य जैसी कोई बात हो यह समझ नहीं आया (!)...लगता है आपने किसी कंवारे से इस पर वाक्य पर राय नहीं ली :) (नि:संदेह मेरी टिप्पणी भी गंभीर नहीं ही है)

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत देर से सोच रहा था कि टिप्पणी कैसे करूं ? जो मित्रता के सम्बन्धों से इतर और फेयर हो !

    मेरे ख्याल से यह प्रकरण शुरुवाती दौर में ज्ञान जी तक सीमित था उस वक्त ज्ञान जी के साथ जो व्यवहार किया गया वह एक खास किस्म की असभ्यता में गिना जायेगा और उस असभ्यता से असहमति ही इस प्रकरण का मूल है !

    ये तो अरविन्द जी ही बतला सकते हैं कि उन्होनें अपने मित्रों से केवल 'हाँ जी ब्रांड' टिप्पाणियों का अनुबन्ध तो नही कर रखा था जो 'असहमति' से बात इतनी बढ गई ?

    प्रकरण को अधूरा देखनें का कोई अर्थ नही है इसलिये मैं इसे चैट की पहल से ही देखूंगा असहमति से उत्तेजित कोई मित्र अगर मुझे आस्तीन का सांप कहता और मुझसे पर थूकता भी है तो मेरा रिएक्शन क्या होता ? तय नही कर सका हूँ कि क्या कहता ? पर यह तय है मेरी प्रतिक्रिया गर्मजोशी से लबरेज़ भी नहीं होती ! मैं ही क्यों किसी भी सामान्य व्यक्ति के हिस्से में इतना सौजन्य भार नहीं डाला जा सकता ! इसलिये मैं केवल एक पार्टी को दोषी नहीं मान सकता !

    अपशब्दों के चयन पर मेरा व्यक्तिगत अभिमत किंचित साफ्ट हो सकता है ! पर दोषी एक व्यक्ति को मानकर फेयर नहीं हुआ जा सकता !

    एक और मुद्दा जो मुझे सूझता है वो ये कि जब दो व्यक्तियों नें मित्रता की थी तो क्या ब्लाग जगत और स्त्री पुरुष समूहों से चरित्र प्रमाणपत्र मांग कर की थी ? तो चैटिंग से उपजी व्यक्तिगत दुश्मनी /वैमनष्य ब्लाग समूहों अथवा स्त्री पुरुषों के सार्वजनिक अपमान के तौर पर क्यों पेश किया जा रहा है !

    अपने व्यक्तिगत सौजन्य /असौजन्यता /मित्रता /कलह , समूह पर ओढानें की कोशिश सरासर गलत लगती है मुझे !

    जब सम्बन्धों की शुभ्रता /शुभता /मधुरता आपकी व्यक्तिगत थी तो कलुषता /अशुभता / तिक्तता ,ब्लाग समुदाय के क्यों कर हुए ?

    अरविन्द जी कुंठाओं का कोई इलाज़ नहीं होता , कई मित्र गर्म तवे के इंतज़ार में थे ! नामों / छद्मनामों से कुंठायें और गरल बाहर आ रहा है,भद्दी भद्दी गालियां संस्कारवान शीलवान बौद्धिक मित्र ही चिलमन की ओट से लिख रहे हैं !

    निवेदन ये कि मामला यहीं समाप्त करें ! कुछ अच्छी पोस्ट लिखें !

    जवाब देंहटाएं
  13. दुर्भाग्य है कि मछलियाँ मेरे पास खुद आ जाती हैं -जैसे उसे खुद फंसने की चाह होती हो -ऐसा सभी मछलियों में नहीं होता...विरली मछलियाँ होती हैं नायाब ,अलभ्य सी .....मगर उनमें कोई शार्क बन जाए यह तो पहली बार हुआ ..
    हाय रे किस्मत लेकिन कोई कोई मछली शार्क प्रजाति की तो हो ही सकती है कुल मिला कर लब्बो लुबाब यह है कि हे पार्थ संशय ग्रस्त ना हो
    कोई ना कोई सोन मछरिया आयेगी जरूर
    जैसे मिले बुलंदी से सुनंदा और थरूर
    कोई केमिकल अवश्य काम कर रहा है इस उम्र में , वैसे भी थरूर साहब तो पथप्रदर्शक बन ही गए है इस उम्र में सभी हम उम्र लोगो के लेकिन ब्लाग जगत कि सुनंदाये विश्वसनीय नहीं निकली आपके पूर्व लेख प्रेम कि रूहानी यादो से कुछ कुछ आभास हो रहा था कि अचानक ही नही यह सब हो रहा है
    छोडिये बीती बातो को आपके मछली फंसने की बात पर एक शेर याद आ गया
    बदन होता है बूढ़ा , दिल की फितरत कब बदलती है
    पुराना कुकर क्या सीटी बजाना छोड़ देता है

    यहाँ तो सीटी भी बज रही है और दाल भी उबल कर गिर रही है कंट्रोल यार

    जवाब देंहटाएं
  14. "कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्!"
    --
    योगीराज श्री कृष्ण जी के जन्म दिवस की बहुत-बहुत बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  15. शास्त्री जी धनयवाद ,आपको भी कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं !
    इधर भी कुछ कृष्ण लीला सा ही माहौल है !

    जवाब देंहटाएं
  16. आर्विंद जी, हम तो मास मच्छी खाते भी नही, पकडते भी नही, एक बार मच्छी पकडी तो महीने भर हाथो से बदबू आती रही.... अब तो इन्हे देख कर दुर से ही रास्ता बदल लेते है.... आप भी मस्त रहे.
    कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

    जवाब देंहटाएं

  17. दुर्भाग्य है कि मछलियाँ मेरे पास खुद आ जाती हैं -जैसे उसे खुद फंसने की चाह होती हो
    फंसने की चाह में निहित कटिया का प्रलोभन अपरिभाषित रह गया है ।

    नत मस्तक चरण स्पर्श ... कहीं आपका इशारा मेरी तरफ़ तो नहीं ?
    एक और मुद्दा जो मुझे सूझता है वो ये कि जब दो व्यक्तियों नें मित्रता की थी तो क्या ब्लाग जगत और स्त्री पुरुष समूहों से चरित्र प्रमाणपत्र मांग कर की थी ? तो चैटिंग से उपजी व्यक्तिगत दुश्मनी /वैमनष्य ब्लाग समूहों अथवा स्त्री पुरुषों के सार्वजनिक अपमान के तौर पर क्यों पेश किया जा रहा है ! अपने व्यक्तिगत सौजन्य /असौजन्यता /मित्रता /कलह , समूह पर ओढानें की कोशिश सरासर गलत लगती है मुझे ! जब सम्बन्धों की शुभ्रता /शुभता /मधुरता आपकी व्यक्तिगत थी तो कलुषता /अशुभता / तिक्तता ,ब्लाग समुदाय के क्यों कर हुए ?
    ज़नाब अली साहब के इस अवलोकन को सौ में साढ़े सवा-सौ नम्बर !
    अब मेरे लिये कहने को बचा ही क्या है ?

    जवाब देंहटाएं

  18. वैसे भी यहाँ सैंयाँ कोतवाल मॉडरेशन जी तैनात हैं, अगली टिप्पणी ई-मेल से भेजूँ ?

    जवाब देंहटाएं
  19. एक बार जाल और फ़ेंक रे मछेरे
    जाने किस मछली में बंधन की चाह हो....
    ........
    रेत के घरौंदों में सीप के बसेरे
    इस अंधेर में कैसे नेह का निबाह हो!....
    .........
    चन्दा के इर्द-गिर्द मेघों के घेरे
    ऐसे में क्यों न कोई मौसमी गुनाह हो!....
    ..........

    जवाब देंहटाएं
  20. आभारी हूँ अरविन्द जी कि आपने अनुरोध माना ! क्रोध में कुछ अच्छा नहीं होता ......

    जवाब देंहटाएं
  21. पश्चाताप से मन निर्मल होता है, कामना है यहाँ भी वही होगा.

    जवाब देंहटाएं
  22. शत प्रतिशत राज जी से सहमत, सामाजिक ताना बाना ही कुछ ऐसा है कि कुछ गलियाँ छोड़ ही देना चाहिये..... और अच्छे से मंदिर में जाकर भजन गाना चाहिये।

    जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  23. आपको सपरिवार श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ ...!!
    बड़ा नटखट है रे

    जवाब देंहटाएं
  24. हम तो बहुत पहले(साल भर) से ही इस नतीजे पर पहुँचे हुए हैं कि अरविन्द मिश्रा जी बेशक उम्रदराज और विद्वान व्यक्ति हैं लेकिन इनमें इन्सान को पहचानने की समझ बेहद मामूली है....
    बहरहाल, श्रीकृ्ष्ण जन्माष्टमी की अशेष शुभकामनाऎँ!!

    जवाब देंहटाएं
  25. डॉ अमर ,
    यह नत मस्तक चरण स्पर्श अर्थ देसाई एलियास स्वप्निल भारतीय का है,आप कैसे हो सकते हैं याद है रकाबत के फेर में वह आपसे भिड चुका है ,अव्यवस्थित चित्त का आदमी कब क्या कह दे कुछ नहीं कहा जा सकता ...
    हमारा दामन गन्दा है तो कब तक आप अपने शुभ्र धवल दामन को बचाकर रह सकेंगे
    हम भी काफी अरसे से सब कुछ देख ही रहे हैं ...बुडबक नहीं है डागदर!
    दिव्य अध्याय अब खत्म हुआ ..दंश छोड़ गया मन पर ,
    नारी तुम ऐसी हो ...महा पुरुषों के नारी विचार पर एक श्रंखला पक्की !

    जवाब देंहटाएं
  26. yahan hum janab aliji se ikthaphakh
    rakhte hain.

    ye prakaran yahin khatm ho......hum aapke bachhe hain....jo kolaj aapka man me bana hai....oose mat toro prabhu.

    sadar pranam.

    जवाब देंहटाएं
  27. आपकी इस पोस्ट को पढ़ना शुरू किया था कि नीचे आपकी पुरानी पोस्ट; "मानव एक नंगा कपि है" पर नज़र गई. ऊपर लिखा था You might also like;

    इसे छोड़कर उसे पढ़ गया. बढ़िया पोस्ट है. हमेशा याद दिलाती रहेगी कि "मानव एक नंगा कपि है."

    यह पोस्ट पढ़ने बाद में आता हूँ.

    जवाब देंहटाएं
  28. प्रेम कहां निर्विकार रह पाता है अरविंद जी
    जब अपेक्षाएं व आकांशाए हावी होने लगती है।
    प्रकरण समाप्ति जान हर्ष हुआ।
    श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  29. वापस आ गया इस पोस्ट को पढ़ने. और यह रही मेरी टिप्पणी. चूंकि आपने लिखा है कि सहमति असहमति बेशकीमती है इसलिए टिप्पणी दे रहा हूँ.

    चिट्ठा भ्रातृत्व की बात खूब कही आपने. आप मानते भी हैं इसे. अब जब मानना ही था तो ये बड़की अदालत, छोटकी अदालत की बात बेमानी है. यह आपकी उस जिद को दर्शाती है जिसकी वजह से आप अंतिम क्षणों तक खुद को डिफेंड करते हैं. चरित्र हनन से खुद को प्रमोट करना उतना ईजी है क्या, जितना आप बता रहे हैं? अगर किसी ने आपका चरित्र हनन करने की कोशिश ही की तो उसको प्रमोशन कैसे मिला? कितना मिला? यह क्या सबके सामने नहीं है?

    प्यार गुनाह नहीं है, इस बात से किसे इन्कार है? लेकिन प्यार करने और झगड़ा करने की जगह एक ही होगी या अलग-अलग? प्यार चैट और टेलीफोन पर किया जाएगा और झगड़ा और चरित्र हनन ब्लॉग पर? यह कैसा प्यार है भाई? ऊपर से दोनों तरफ के लोग बाकी ब्लॉगर को उलाहना दे रहे हैं कि वे बोल नहीं रहे? आपलोग पिछले दो दिनों में कितने अंधे हो चुके हैं उसका अंदाजा है आपलोगों को? दोनों पक्षों को उन्ही की बात मान्य है जो उनका समर्थन कर रहा है. ऊपर से तुर्रा यह कि दोनों पढ़े-लिखे और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मान देते हैं? आपदोनो के कर्म यह तो नहीं दर्शाते.

    और आप जरा सोचिये कि आप किस तरफ की दलीलें दे रहे हैं? आप इसे प्यार बता रहे हैं और यह भी कह रहे हैं कि अभागे हैं वे लोग जो इससे वंचित रह जाते हैं? डूब गए तो हर गंगे कह रहे हैं? निहायत ही वाहियात और चिरकुटई भरी अभिलाषा को प्रेम बता रहे हैं. आप क्या समझते हैं? भगवद गीता और रामायण की चौपाई में बातों को लपेट देंगे तो उन बातों के ऊपर से चिरकुटई की चादर उतर जायेगी? आप अपनी जिद छोड़ कर एक बार विचार करें कि क्या लिखा है आपने? और आप इस निश्कर्च पर पहुंचेंगे कि जिसे आप प्यार बता रहे हैं वह निहायत ही अव्वल दर्जे की चिरकुटई है. क्षमा कीजियेगा, राधा और कृष्ण की बात करके आप उसे प्रेम नहीं बना सकते.

    "कोई किसी से जबरदस्ती प्रेम नहीं करता यह हो जाता है.."

    कौन से प्रेम की बात कर रहे हैं आप? एक पब्लिक प्लेटफार्म पर क्या लिख रहे हैं आप, इसका भान है आपको? ऊपर से अपनी बात मनवाने के लिए ऋषियों और मुनियों को आगे कर दे रहे हैं. क्या हो गया आपको सर? अपने तथाकथित प्रेम के प्रति आप इतने उदात्त हैं?

    "चीयर अप कि आप किसी से प्रेम करते हैं और कोई आपसे प्रेम करता है..."

    लखनऊ से लौटे हैं इसलिए मन में वह वाक्य फंस कर रह गया है कि "मुस्कुराइए कि आप लखनऊ में हैं.."

    आपकी गलती नहीं है. गहरे मन की अनुभूति? चौराहे पर टंटा न करने की बात? ऐसा ही था तो काहे दो दिनों से पिले पड़े हैं आप दोनों? कभी सोचिये कि प्रेम की यही अनुभूति की बातें अगर परिवार वालों के सामने उठ जाएँ तो? सारा प्रेम छू मंतर हो जाएगा. फिर रामायण की चौपाई और भगवद गीता के श्लोक पढ़कर कन्विश करते रह जायेंगे और कुछ नहीं होगा.

    "बी ट्र्यु टू योरशेल्फ़"

    कहना बड़ा आसान है. जरा सोच कर देखें कि कितना ट्रुथफुल हैं योरशेल्फ़ के साथ. ज़रूर सोचिये.

    मुझे मालूम है कि बहुत ही कड़वा कमेन्ट है मेरा लेकिन क्या करता? आपने खुद लिखा है कि; "इस पोस्ट पर मित्रों की सहमति /असहमति बेशकीमती है इसलिए वे एक स्मृति दंश /पुष्प के रूप में यहाँ रहेगीं ."

    मैंने आजतक इतना कड़वा कमेन्ट कहीं नहीं लिखा. अगर आपको बुरा लगे तो क्षमा कीजियेगा और छापने की भी आवश्यकता नहीं है.

    जवाब देंहटाएं
  30. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  31. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  32. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  33. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  34. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  35. @शिव जी आप आक्रोशित न हों यहाँ इस कथित प्रेम की बात नहीं है -यहाँ प्रेम था ही नहीं न सूरत न सीरत कटही कुतिया से कौन प्रेम करेगा -मैंने उससे प्रेम किया यह कब कहा ?
    आप मूल पोस्ट नहीं पढ़ पाए ,जो डिलीट हो गयी -यहाँ मेरे उस प्रेम की बात है जो अतीत(का ) है ...
    अब आपकी पूरी प्रतिक्रया ही परिप्रेक्ष्य से कटी हुई हो गयी -बैड लैक ! एक बार और ट्राई करेगें ? :)

    जवाब देंहटाएं
  36. नहीं, सर. फिर से ट्राई करने की इच्छा नहीं है. आप ठीक कहते हैं, मुझे पोस्ट ही समझ नहीं आई. बनारस में रहने की वजह से जयशंकर प्रसाद का कुछ तो असर रहेगा ही. ब्लागिंग में छायावाद को वापस लाने के लिए बधाई...:-)

    जवाब देंहटाएं
  37. हा... हा.... यह घालमेल इसलिए हुआ कि पुराने पोस्ट को ही मिटा कर उस पर नई पोस्ट डाल दी गयी ...अनूप प्रभाव !
    आपने पोस्ट तो नई देखी मगर दिमाग में पुरानी बातें रह गयीं ....जो अब औचित्यपूर्ण नहीं हैं ,देवि के साथ मेरे प्रेम सम्बन्ध नहीं और न ही कोई टुच्ची चाहना ही -हाँ चैटिंग हुई थी जब वे अमर प्रेम से संतप्त कुछ भावनात्मक संबल ढूंढ रही थीं और ऐसे अवसरों पर बंदा काम आ जाता है -परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर -जैसे ही कुछ भावनात्मक संतृप्तता आई वे किसी और बड़े संत समागम को प्रस्थान कर गयीं -त्रिया चरित्रं पुरुषस्य भाग्यम देवो न जानपि कुतो मनुष्यः
    अब सारी पोल खुलवाएगें क्या ? चुप ही रहिये ! तीसरा नेत्र न खोलिए -कामदेव को अनंग भी नहीं बने रहने देना चाहते क्या ?

    जवाब देंहटाएं
  38. दे रहा तर्क आज का युवा — "क्या है अनुचित? /
    है कौन व्यक्ति जो नहीं काम से अब कुंठित? /
    अब की ही करता बात नहीं देखो अतीत /
    कितने श्रृंगारिक रच डाले पद, चित्र, गीत।
    जिसको कहते भगवान् कृष्ण था महारसिक /
    सौलह हज़ार रानियाँ धरा करता।" 'धिक्-धिक्'
    — करता मेरा मन सुनकर अपलापी अलाप /
    कवियों ने ईश्वर पर खुद का थोंप दिया पाप।
    रच रहे तभी से कविगण किस्से मनगणंत /
    मन के विकार का आरोपण करते तुरंत। /
    भक्ति के बहाने हुआ बहुत कुछ है अब तक /
    हो रहा आज भी और ना जाने हो कब तक?
    ईश्वर की भक्ति हो अथवा दे...श की भक्ति। /
    विकृत होती जा रही अर्चना की पद्धति। ....
    पण्डे भी अपना स्वार्थ सिद्ध करने निमित्त /
    भक्ति में दिखलाते अपने को दत्तचित्त/
    घंटा निनाद ओ' थाली करके इधर-उधर /
    ईश्वर को भोग लगा पर खुद का बढे उदर।

    भक्तकवियों की कारिस्तानी से कुछ अंश
    http://pratul-kavyatherapy.blogspot.com/2010/04/rahne-samvidhaan-kavi-kaa-kaushal.html

    पहली बात .. मैंने यह कहना चाहा है कि भक्त कवियों ने जो रच दिया वही आज के प्रेम-विशेषज्ञ राधा-कृष्ण की दुहाई देकर अपने प्रेम को सात्विक करार देते हैं.
    दूसरी बात ... जब यह 'प्रेम' ह्रदय में घर करता है तब दूसरे भाव की सत्ता ह्रदय से समाप्त हो जाती है. तब न तो अपशब्द रहते हैं और ना ही घृणा. और ना ही कोई चाहना. तब सर्वत्र ही प्रेममय वातावरण होता है.
    तीसरी बात ..... क्षमा बड़न को चाहिए............. छोटन को उत्पात.
    चौथी बात ......... कृष्ण जन्म की शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  39. शुक्रिया आपका कि आपने मेरे अनुरोध पर ध्यान दिया।

    लेकिन आपकी जिद बरकरार है। मुझे लगता है कि जिसको भी आप पसंद करें उसको आपसे डरने लगना चाहिये। अपने ही ब्लॉग पर जिन लोगों के बारे में बहुत अच्छी बातें लिखीं/कहीं उन लोगों के लिये ही आपने ऐसी बातें लिखीं कि पढ़कर ताज्जुब होता है कि क्या दोनों पोस्टें एक ही व्यक्ति की लिखी हैं। खैर आपका अपना अन्दाज है, अपनी पसंद है।

    इस पोस्ट पर कमेंट क्या करें।आप अपनी बात को हर हाल में सही ही साबित करते रहेंगे। शिवकुमार मिश्र ने काफ़ी कुछ कहा लेकिन आपने उसको भी इधर-उधर कर दिया।

    जवाब देंहटाएं
  40. @शिव भाई एक राजा शिबि थे ,मगर छोडिये आपका कमेन्ट अनौचित्यपूर्ण होने के बाद भी कुछ अंश पर प्रतिक्रिया जरूरी है -
    दोनों तरफ के लोग बाकी ब्लॉगर को उलाहना दे रहे हैं कि वे बोल नहीं रहे?
    मैंने तो किसी का आह्वान नहीं किया ,किया क्या ? मुझे बे फालतू जन समर्थन नहीं चाहिए और न ही कौआरोर मुझे पसंद है ..मगर कुछ कौए आ जुटने को मजबूर होते हैं -मैंने किसी कौए को नहीं बुलाया ...गोस्वामी के काक भुसुंडी देखिये कहीं नहीं जाते लोग उन तक खुद आते हैं ...
    @चिर कुटई प्रेम और आप वाले प्रेम में क्या फर्क है ?
    @प्रेम और परिवार -जो घर छोड़े आपना चले हमारे साथ -भूल गए क्या ? मगर सुर तो मिले !
    दरअसल कडवा या मीठा कमेन्ट मनुष्य की खुद के अंतर्द्वंद्वों और मनस्थिति की देंन होती है ,मैं समझ सकता हूँ
    आप एक स्नेही जन हैं बस दूसरे खेमे में हैं ! ज्ञान जी को अंतिम प्रणाम कहने वालों की आपने खोज खबर नहीं ली ??????

    जवाब देंहटाएं
  41. @प्रतुल ,
    आपकी विद्वाता का कायल होता जा रहा हूँ ,रोकिये इसे ,,,
    राधा कृष्ण प्रेम के वृत्तांतों /दन्त कथाओं में जन आरोपण ही अधिक है
    मगर जन भावनाएं हैं तो हैं -क्या 'लोक' में आपका भरोसा नहीं मित्र ?

    जवाब देंहटाएं
  42. @अनूप शुक्ल
    जो अपने विचार नहीं बदलते वे या तो मृतक हैं या मूर्ख :)
    असली चेहरे देर से उघरते हैं ...
    उघरहिं अंत न होहि निबाहू !
    आप और शिव जी मानस पढ़ा करें
    ई परसाई वरसाई कालजयी रचनाकार नहीं हैं ...
    आपसे ज्यादा मैंने परसाई और शरद जोशी को पढ़ा है
    हलके फुल्के मन पर ही इनका चिरस्थायी प्रभाव रहता है ...
    कब तक वहीं अटके रहेगें ! आगे बढिए !

    जवाब देंहटाएं
  43. @मित्र दमनक अरे अरे अरुण
    क्या करें कंट्रोलें नहीं होता -कोई दवाई सवाई ?

    जवाब देंहटाएं

यदि आपको लगता है कि आपको इस पोस्ट पर कुछ कहना है तो बहुमूल्य विचारों से अवश्य अवगत कराएं-आपकी प्रतिक्रिया का सदैव स्वागत है !

मेरी ब्लॉग सूची

ब्लॉग आर्काइव